वाह उस बखत का मज़ाक मस्ती सूरजवा ने अपनी आँखों के सामने देखा था. कैसे ठकुराइन और उसकी मामियों के बिच ननंद भौजाई वाला नंगा मज़ाक हुआ. गरियाना चुदाई का ताना तो ठीक ठकुराइन की बुरिया मे उसकी मामी ने कलाई तक मुट्ठी भर ठूस दिया. माझा तो ठकुराइन को भी खूब आया. अब इमरतिया ने उसी माहौल की यादें फिर ताज़ा कर दी. एक बार फिर ठकुराइन की भौजी मैदान मे आ गई. अपने लौते भांजे के ब्याह पर. और मजे की बात एक और सूरजवा की बाहनिया आ गई. बुची तो है ही. अब एक और. बहोत माझा आने वाला है.छोटी मामी, सूरजु और सूरजु क माई
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और छोटी मामी ने चिढ़ाया,
" अरे ननद रानी, जिस बुरिया से इतना जानदार तगड़ा लौंडा निकाल दी हो, उसका एक दो ऊँगली से का होगा, ऊंट के मुंह में जीरा।। फिर सूरजु के मामा, हमरे मरद बचपन में बहुत सेवा किये होंगे, हमरे जेठ देवर, तो भाई के साथ मौज मस्ती और भौजाई की बारी आने पे छिनरपन,..? ."
" सही तो कह रही है, नयको, ( छोटी मामी सबसे नई थीं घर में तो उनकी सास, जेठानियाँ उन्हें नयको ही कहती थीं ) बड़ी मामी बोली और सूरजु की माई को छेड़ा,
"और सूरजु क मामा तो हमसे खुदे क़बूले हैं की खाली थूक लगाए के तोहार मारते थे, ये तो भौजी लोग तोहार शरीफ हैं की की कडुआ तेल लगाय के, "
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और मंझली मामी ने सूरजु की माई के बिल में से दो उंगलिया निकाल के दोनों निचले होंठ फैला दिए, छोटी मामी ने लालटेन की ओर इशारा किया तो एक गाँव की औरत ने लालटेन सीधे वहीँ सामने
और अब सूरजु अपनी माई के दोनों निचले होंठ साफ़ साफ़ देख रहे थे, खुले फैले
और छोटी मामी एक बार बस उनकी ओर मुड़ के मुस्करा दीं, जैसे कह रही हों देख ले मुन्ना, मन भर के
बेचारे सूरजु की हालत खराब और उससे ज्यादा, ' उसके उसकी ' टनटनाया, फनफनया और ऊपर से छुटकी मामी ने नेकर भी सरका के घुटने तक कर दिया था, जाड़े में हल्का पसीना आने लगा,
लेकिन फिर बड़की मामी ने तेल के बोतल की ढक्क्न खोली और फिर बूँद बूँद, टप टप, सूरजु की माई की खुली, फैली बिल में
और छोटी मामी ने भी सीधे बोतल से अपने हाथ पे तेल गिराया और पहले एक ऊँगली, फिर दो ऊँगली और जब उसके साथ जोड़ के उन्होंने तीसरी ऊँगली की, तो सूरजु की माई चीख पड़ीं,
" नहीं नहीं भौजी बस दो से ज्यादा नहीं "
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और छोटी मामी ने मन ही मन सोचा, " तीन ऊँगली से मोट तो तोहरे लौंडा क अभी से है " लेकिन बोलीं
" अरे याद है हमार पहली रात, तोहार छोट भाई, ….बांस अस, हम ऐसे चीख रहे थे लेकिन पूरा पेले और अगले दिन केतना चिढायी थीं आप "
और फिर तीनो ऊँगली अंदर
और उसके बाद, वो छटपटाती रहीं, छोटी मामी पेलती रहीं, ठेलती रहीं, और चिढ़ाती रहीं,
" मुन्ना के पैदा होने के टाइम तो गदहवा से चुदवावे गयी थीं न "
दर्द के बावजूद सूरजु की मई के मुंह पे मुस्कान आगयी, अपनी भौजाई से बोलीं,
: “हम तो ना, लेकिन तोहरे ननदोई के टाइम हमार सास जरूर सांड़, गदहा, घोडा कुछ भी नहीं छोड़ी थीं "
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और फिर छुटकी मामी ने मुट्ठी बना के,.....
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सूरजु देख रहे थे दर्द के साथ एक मजा भी था, चीख के साथ सिसकी भी,
और सारी रात ये मस्ती चली, लेकिन उसके बाद आज तक उन्होंने रतजगा नहीं देखा था,
उसके महीने दो महीने बाद ही वो अखाड़े में चले गए, लंगोट बाँध लिया,
लेकिन आज इमरती भौजी का जुगाड़, और अब तो वो खुद मजा ले लिए थे और अब उन्हें लग रहा था की क्या चीज वो मिस कर रहे थे,
सच में सब कहते थे, जिंदगी का असली मजा इसी में, माई भी तो दसो बार, यही बात समझाने की कोशिश करती थीं,।साफ़ साफ़ तो नहीं इशारा यही करती थीं की अब अखाडा बहुत लड़ लिए अब और सब,
और उन्हें मंजू भौजी की बात याद आगयी, अभी जाने के पहले, उनके कान में बोलीं, बुच्चि को दिखा के,
" इसका नेवान अभी किये हो की नहीं, चलो छोट देवर हो, २४ घंटे का मौका देती हूँ, कुँवारी का, झिल्ली फाड़ने का मजा लेना हो तो बस कल रात के पहले, वरना आज तो छोड़ दूंगी लेकिन कल रतजगे में जरूर अपनी इस ननद की ऊँगली करुँगी और नहीं फटी होगी तो फट जायेगी, तो बस कल रात के पहले ,"
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और यही सोचते सोचते नींद आ गयी,
सूरजु न खाली बीस पचास गाँव में अखाड़े के लिए दंगल लूटने के लिए अपने दंड पेलने के लिए, ५-६०० दंड बैठक तो कभी भी, लेकिन उसके साथ साथ उनके गुरु ने उन्हें एक अपने साथ के गुरु के पास भेजा था तो योगासन, ध्यान, और भी बहुत कुछ और उसमे भी अपने गुरु का नाम कर के आये
तो उन्हें कंट्रोल बहुत था, अपने देह की एक एक चीज पर, नींद पर भी, अगर खेत रखाना हो, कोई काम काज, तो चार पांच रात नहीं सोयेंगे और दिन में वैसे ही ताजा और सोने का मन करे तो खड़े खड़े घोड़े की तरह नींद ले लें और पांच मिनट की नींद भी उनके लिए रात भर की नींद के बराबर
बस वो सो गए,
हाँ, छोटी मामी आज शाम को आ गयी थीं,
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और सूरजु भी वहीँ उस समय नीचे थे, उनकी माई, कांती बूआ, मंजू भाभी, बुच्ची, चुनिया, गाँव की ढेर सारी औरतें, लेकिन आते ही अपनी ननद, से गले मिलने के बाद सूरजु को देख के सीधे दोनों ऊँगली से छेद बना के एक ऊँगली उसमे डाल के, सबके सामने चुदाई का इंटनेशनल सिंबल, हचक हचक के और सूरजु को छेड़ते बोलीं,
" तैयारी हो गयी, नए माल के साथ कुछ प्रैक्टिस हो रही है, रोज ? "
सूरजु की माई अब उन्हें फरक नहीं पड़ता था की जवान बेटा सामने खड़ा है, शादी बियाह का घर, अब हंसी मजाक नहीं होगा तो कब होगा, अपनी भौजाई, सूरजु की छोटी मामी को छेड़ते बोलीं,
" तोहरे इन्तजार था, ....तोहरे ऐस मायके क खेली खायी कहाँ मिलेगी, .... सिखाने वाली ,...८४ आसन "
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सूरजु मामी के पास ही थे, उनका गाल सहलाते बोलीं, " अरे पहला हक़ तो बहिनिया का है, देखो एक माल तो मैं साथ ही लायी हूँ, आज ही कर दो नेवान "
उनके साथ बड़ी मामी की बेटी भी आयी थी, सूरजु की समौरिया, और वो बजाय लजाने के, खिलखिला के हंस दी,
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तबतक इमरतिया पानी और मिठाई लेकर आयी मामी के पास, बस छोटी मामी ने उसे हड़का लिया,
" और बहन के पहले भौजाई का हक भी और जिम्मेदारी भी, अभी तक कितने बार कुश्ती कराई हो अपने देवर की, मुफ्त में देवरानी उतार लोगी, नहीं तो नाक कटाएगा ये "
" अरे एकदम नाक नहीं कटाएगा, मेरा देवर, देवरानी अइसन चीखेगी की ओकरे मायके में माई बहिन सब को मालूम पड़
जाएगा की कौन पहलवान के पास बिटिया भेजे हैं " इमरतिया हँसते बोली।

वाह ठकुराइन ने गांव की सारी बहुओ को हुकम दे दिया. एक भी छिनारिया. मतलब की नांदिया बचनी नही चाहिये. साडी, सलवार उठकार गच से. अमेज़िंग. आखिर वो भी तो गांव की बहु ही है. पर माझा तो तब आएगा जब कांति बुआ और मामी के बिच मुकाबला होगा. अरे भौजी कितनी भी छिनार नांदिया की ले ले. पर मुकाबला जब नांदिया के ससुराल वालों से हो तो पूरा साथ देती है. पर अलायन्स के बिच ठकुराइन ना पीस जाए. वैसे भी वो दूल्हे की महतारी है तो फसनी तो वाह है ही. अब माहौल भी शुरू हो गया. ठकुराइन ने स्पेशल भाँग वाले लड्डू बनवाई है. माझा ही आने वाला है. अमेज़िंग...रतजगे की तैयारी
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छोटी मामी के आने से तैयारी में और जोश आ गया,
अभी तक तो बूआ ही थीं, बड़ी भी थीं और बाकी सब नाउन कहाईन लेकिन असल में बियाह सादी में गाना तो रोज ही होता है, हर समय होता है लेकिन जो कहीं खोइया, कहीं डोमकच तो कहीं रतजगा कहते हैं वो तो जब बरात चली जाती है, घर में कोई मरद नहीं होता तब,
लेकिन सूरजबली सिंह क महतारी ने मुन्ना बहू से साफ़ कह दिया,
"कौन टोला बचना नहीं चाहिए जो सबसे तगड़ी गौनहर हों, कोई बचनी नहीं चाहिए, ....ठीक नौ बजे प्रोग्राम शुरू हो जाएगा, तो आधा घंटा पहले.
और हाँ असली बात, रतजगा समझो, उससे भी ज्यादा मस्ती होनी चाहिए, कउनो ननद बचे नहीं छिनार, सबकी साडी शलवार चड्ढी उतरेगी, पक्की मस्ती रोज। कुल इंतजाम तुंही सब पे हो, मंजू भाभी से भी बात कर लेना लेकिन असल जिम्मेदारी तोहार है।
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मुन्ना बहू घर में काम करती थी, कहारिन थी, एकदम मुंहलगी, गाँव के रिश्ते में उनकी बहू और सूरजु क भौजाई , मजाक में इमरतिया का भी कान काटती है और कोहबर क रखवारी करने में पांच में वो भी थी, दो लड़कियां, बुच्ची और उसकी सहेली शीला, इमरतिया, मंजू भाभी और मुन्ना बहू, सब को बियाह तक कोहबर में ही रात में सोना होता है।
और मुन्ना बहू सबसे आगे थी, मंजू भाभी से मिल के बुच्ची की रगड़ाई करने में,
और मुन्ना बहू ने और नमक मिर्चा लगा के बड़की ठकुराइन की बात,
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दो चार लोग मिल के बुलौवा देने का काम बाँट लिए, इमरतीय क टोले क उसकी देवरान लगती थी, बबुआने का जिम्मेदारी उनके ऊपर, बाकी आधे टोला क काम मुन्ना बहू और आधे का बेलवा क माई।
लेकिन जैसे कोलिशन के ज़माने में पार्टियां पलटा मारते देर नहीं लगातीं , उसी तरह शादी बियाह में औरतों के हंसी मजाक में,
ज्यादतर तो ये मौका होता था, भौजाइयों का मिल के ननदों को गरियाने का, उनकी चड्ढी शलवार उतरवाने का,
नाच में भी ननद भाभी मिल के और ननद भी बुरा नहीं मानती थीं, जब रात भर वाली गवनहि में जाती थीं, तो ये मान के चलती थीं, गाने से ज्यादा मस्ती होगी। और सास सब अक्सर न्यूट्रल रहतीं या अगर कहीं दूल्हे की बूआ पकड़ में आ गयी तो फिर दूल्हे की महतारी, चाची, मौसी से लेकर सब उसके पीछे
लेकिन छोटी मामी के आते ही पास पलट गया,
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वैसे तो कांती बूआ से उनका भयानक मजाक का रिश्ता, भले ही उमर में बड़ी हों लेकिन ननद की ननद हों अगर ननद मतब छिनार तो ननद की ननद तो डबल छिनार , पर एक तो छोटी मामी ने उनका पैर छुआ और फिर अलायंस बना लिया ,
छोटी मामी की ननद थीं, सूरजु की माई तो बूआ की भौजाई, मजाक का रिश्ता तो दोनों का,
और अकेले दोनों में से कोई,.. सूरजु की माई सेपार नहीं पार सकता था न गरियाने में न मजाक में.
सूरजु की माई दो चार को तो अकेले निपटा देती थीं, फिर अपने गाँव में थीं, और अकसर बहुये जब मामला बूआ को गरियाने का आता था तो सास के साथ हो जाती थीं, क्योंकि बूआ भी तो ननद ही थीं, गाँव की बिटिया और यही सब तो मौका होता था ननदो की शलवार का नाडा खोलने का, जो जितना लजाती उसकी उतनी खुल के रगड़ाई होती।
लेकिन छोटी मामी और कांती बूआ का अलायन्स, एक की ननद लगतीं ( सुरजू की छोटी मामी की ) और एक की
भौजाई ( कांती बुआ की ), सुरजू की माई तो मजाक का रिश्ता से दोनों का,.... और दोनों मिल गयीं।
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उन्होंने सबसे पहले मुन्ना बहू को ही पटाया, और गाँव की बहुओं को सास लोगो के खिलाफ तोड़ लिया, अरे दस दिन गाना होना है फिर दो दिन जब बरात जायेगी तब तो कोई ननद बचेगी नहीं वैसे तो आज भी शुरू में लेकिन बाद में सब मिल के, अरे दूल्हे क महतारी क पेटीकोट सबसे पहले खुलना चाहिए उसके बाद ननदों को तो कपडे पहनने ही नहीं देना है,
और बहुएं गाँव की मान गयी,
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आखिर सास की रगड़ाई का मौका रोज थोड़ी मिलता है, और भले, दूल्हे की माँ की रगड़ाई सबसे ज्यादा, सबसे पहला, फिर उसके बाद दूल्हे की चाची, काकी, अरे सगी चाची नहीं है तो पट्टीदारी की गाँव की, जितनी सास हैं सब को मन भर के गरियाया जाएगा, और ननदें तो छोटी हैं जब चाहो तब रगड़ लो
और सबसे बड़ी बात ये डर नहीं है की बड़की ठकुराइन बुरा मान जायेगीं, वो तो खुद उकसा उकसा के, जैसे कोई नयी बहुरिया आती थी तो ढोलक उसको पकड़ाने के बाद जहाँ दो चार गाने हो गए तो उस नयी दुल्हन से उसकी सास को जरूर गाली दिलवाती थीं , और वो भी असली वाली,
तो मामला तय हो गया
और सबसे तगड़ा मोर्चा मंजू भाभी को, बड़ी मामी की लड़की सुनीता और रामपुर वाली भाभी की छोटी बहन चुनिया और मुन्ना बहू तो थी ही। खेल ये था की जो जो लड़कियां, औरतें आती थीं, उन्हें बरामदे में बैठने के पहले उनका स्वागत किया जाता था, और दो दो लड्डू खिलाये जाते थे, लड़कियां भरोसे कर के खा लें इसलिए चुनिया और सुनीता की डुयटी थी, गाँव की लड़कियों से दोस्ती करने की, उन्हें कम से कम दो लड्डू खिलाने की, और एक फायदा ये भी था की चुनिया ( रामपुर वाली भाभी की छोटी बहन) और सुनीता ( बड़ी मामी की बिटिया ) सुरजू की माई के मायके से आयी थीं, सुरजू के ननिहाल से तो इस गाँव की लड़कियों से भी दोस्ती हो जाती और गाने में, बियाह में सब काम मिल जुल के, काम भी मस्ती भी
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और औरतों के लिए मंजू भाभी और मुन्ना बहू
हाँ मुन्ना बहू और मंजू को मालूम था की बकड़ी ठकुराइन ने ख़ास लड्डू हलवाई से गाने के प्रोग्राम के लिए बनवाएं हैं , हर लड्डू में भांग की की एक एक बड़ी वाली गोली, …जहाँ गोली का असर चढ़ेगा, सारी झिझक शर्म बाहर,
और जो सीधे से लड्डू खा ले वो ठीक वरना, इसलिए हर टीम में तीन से चार लोग थे, लड़कियों वाली में भी और औरतों वाली में भी, बस एक पीछे से हाथ पकड़ लेती और दूसरी मुंह में लड्डू,
लेकिन असली खेल तो दूसरा था, हुकुम था कउनो ढक्क्न लगाय के ना आये, न ऊपर न नीचे, मतलब न ब्रा न चड्ढी, औरतें तो वैसे ही ये सब नहीं पहनती थीं, बबुआने की कुछ कुछ नयी नयी बहुएं हो तो बात अलग है, और फायदा भी था, रहरिया में, गन्ने के खेत में, जब मौका मिला साडी पेटीकोट खोल के कमर पे लपेट लिया, काम के लिए तैयार , कोई लौंडा ज्यादा मजा लेना चाहता है तो ब्लाउज भी चुटपुटिया बटन, झट्ट झट्ट, दुनो जोबना बाहर,
लेकिन रतजगे में कुछ कुछ जो ज्यादा घबड़ाती थीं, चड्ढी वड्ढि पहन के, पेटीकोट तो पलटा ही जाएगा तो जांघ भींच के चड्ढी बचा लेंगे और ऊपर भी,
पर जहाँ लड्डू मुंह में गया, मुंह तो बंद और आराम से टोकर, टटोलकर, और नहीं तो ब्लाउज खोलकर पेटीकोट उठाकर जांच होती थी और उसी में मजाक भी, एकदम खुल्लम खुला, तो लड़कियों भौजाइयों की लाज शर्म उसी में ख़तम हो गयी
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और हाँ कुछ देर बाद टीमों का काम बदल गया,
लड़कियां औरतों को लड्डू खिलाने लगी और भौजाइयां लड़कियों को, और सिर्फ गाँव वालियों को नहीं, घर से जो लड़कियां हंसती खिलखिलाती सीढ़ी से चढ़कर ऊपर आ रही थीं , उन सब की भी,
और जिसकी चूँचियाँ बस आ ही रही थीं, अभी ढक्क्न लगाना नहीं भी शुरू किया था उनकी तो और,
" देखूं कितनी बड़ी हो गयी है , अरे हमरे देवर से मिजवाना शुरू कर दो झट से ऊंच हो जायेगी, "
भौजाइयां और अपने देवरों के फायदे में बहन भाई के बीच टांका भिड़वाती, लेकिन लड़कियां भी कम बहादुर नहीं थी। बड़ी मामी की बेटी, जो सूरजु की समौरिया थी , बियाह हो गया था, गौना नहीं हुआ था, एक भरौटी की भौजी का लहण्गा उठायी तो वो भौजी खुदे अपनी बिल में ऊँगली डाल के बोली,
" तोहरे भैया क मलाई भरी है बुचो बुच, ला चाटा । "
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लेकिन बड़ी बूढी इंतजाम देख रही थी,
" कैसे गाना खुल के होई, अरे मरद सब, " तो दूसरी बोली, अरे ससुर भसुर मडराते रहेंगे का मजा आएगा , बरात जाने के बाद कउनो मर्द नहीं रहता तो भले नन्दो को नंगे नचा दो, लेकिन "
पर इंतजाम देखकर वो सब मान गयीं।
मरद क्या मरद का बच्चा भी पर नहीं मार सकता था।
पहली बात की इंतजाम छत पे था और वहां मरदों की परछाई भी नहीं आ सकती थी, सीढ़ी से ही एक एक को, और ऊपर कोहबर और दूल्हे के कमरे के अलावा कोई कमरा नहीं था , बरामदा था, जहां गाना होना था।
दूसरी बात, बड़का घर, बड़की ठकुराइन का उनके ससुर के बाबू जी का बनवाया, दो हिस्से थे, बाहर वाले में मरद और अंदर वाले में औरतें,
औरतों के आने जाने के लिए पीछे से एक पिछवाड़े की खिड़की थी, कामवालियां भी वहीँ से आती जाती थीं, जिससे मरदो का आमना समाना न हो, परदे का जमाना, तो अभी बड़की ठकुराईन ने सब मर्दों का इंतजाम, बाहर वाले हिस्से में यहाँ तक की ब्बच्चों का भी
और औरतें अंदर, और जो दोनों को जोड़ने वाला रास्ता था, उसमे खुद कांती बुआ ने ढाई सेर का ताला लगा के चाभी अपने साडी में
और उससे भी बड़ी बात, की बरामदा जो छत पे खुलता था, उस को ढकने के लिए एक खूब मोटा त्रिपाल, ( तारपोलिन ) जिससे गाने की , मजाक की औरतों की न आवाज बाहर जाए, न कोई झाँक झुक पाए, और सीढ़ी के रास्ते पे भी मोटा ताला। यहां तक की मंजू भाभी ने दूल्हे के कमरे के बाहर भी एक मोटा ताला लगा दिया और रामपुर वाली भाभी ने खुद हाथ से खींच सबको दिखा के चेक भी कर लिया।
और जाड़ा था तो दो चार बोरसी, दो चार रजाई भी थी और फर्श पे दरी भी।
मान गयीं सब ' इंतजाम जबरदस्त है और आज तो सब का पेटीकोट खुलेगा।

अमेज़िंग. कोमलजी आप ने तो शादी वाला वही देहाती माहौल बना दिया. छत पर औरतों का जमावड़ा. औरते जवान नई ब्याही और खेली खाई पुरानी. नई नई लोंड़िया सब मिलकर ढोलक की ताल पर गाना गाते और नाचते. गाने भी पुराने लोक गीत और रिस्तो मे ताना देते गरियाने वाले. अमेज़िंग लव इट.रतजगे की मस्ती
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ढोलक ठनकने लगी, पाँव थिरकने लगे,
और लड़कियां, बहुएं तालियों पर ही साथ दे रही थी।
इतना बड़ा बरामदा जहाँ पूरी बारात की पंगत एक साथ बैठ जाए, एकदम घचमच घचमच भरी थी, देह से देह सटी, और भौजाइयां, थोड़ी बड़ी उम्र की औरतें, इसी का फायदा उठा के कभी चूतड़ में चिकोटी काट लेतीं, कभी दबा देतीं। सबसे सेंटर में दूल्हे की महतारी, सुरजू क माई, और उनके बगल में एकदम सटी सुरजू क मामी, छोटी मामी, और दूसरी ओर सुरजू की बुआ, कांति बुआ, उनके ठीक पीछे मुन्ना बहू, घर की कहारिन, और इमरतिया, दोनों सुरजू क मुंह बोली भौजी, मुन्ना बहू के साथ उसी के टोले की एक दो और, गाँव में सूरजबली की गाँव के रिश्ते में लगने वाली दो चार बुआ, उनकी माई की ननद लगती थीं, कांति बूआ के साथ, उसी तरह उनके ननिहाल की उनकी मामी, भाभियाँ छोटी मामी के साथ,
अरे चालीस पचास से कम नहीं, बाईसपुरवा का कौन पुरवा नहीं बचा था जहाँ से दो चार गौनहारिन न आयी हों,
और सबसे ज्यादा जोश में सुरजू सिंह क भौजाई लगती थीं, पठानटोला के बड़े सैयद की मेहरारू, अभी घूंघट नहीं हटा था लेकिन उसी के अंदर से ऐसे मजाक करती थीं खुल के, नाऊटोला का नाउन और भरोटिन क कहारिन लजा जाएँ, न उमर देखती थीं न लिहाज, होली में चढ़के खुद रंग लगाती थीं, और सुरजू तो उनके फेवरिट देवर थे,
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और बाकी भौजाई लोग भी खूब गरमाई थीं,
और गाँव की लड़कियां भी, जो एक साथ बैठीं थी, और उन्ही के साथ घर की लड़कियां भी, बुच्ची, रामपुर वाली भौजी क छोट बहिन चुनिया, खूब सुन्दर, खूब चुलबुली, और बुच्ची की पक्की सहेली,
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कोई कहता, पिछले जन्म में दोनों जुड़वा बहिने रही होंगी, तो कोई कहता इन दोनों की शादी एक ही घर में दो सगे भाइयों से करवा देनी चाहिए, अगल बगल के कमरे में चोदी जाएंगी साथ साथ, तो कोई कहता, की अरे नहीं बुच्ची, चुनिया दोनों मिल के सास ननद की गांड मार लेंगी।
लेकिन बात सही थी, मिलते ही दोनों एक थाली में खातीं, एक साथ चिपक के सोतीं, एक रजाई में,
और आज कल क्या काफी दिन से चुनिया एक ही बात के पीछे पड़ी थी, बुच्ची के,
'हे दे दे न उसके भाई गप्पू को,'
अभी अभी बारहवें में गया था, लेकिन बुच्ची की कच्ची अमिया के पीछे साल भर से पड़ा था।
" यार छह इंच के चीज के बदले दो इंच की चीज देनी है, काहें को इत्ता नखड़ा कर रही है, अच्छा चल अपनी अमिया ही कुतरवा ले उससे "चुनिया मजे से चिढ़ाती उसे
" तू छह इंच की बात कर रही है, मैं तुझे नौ इंच का ऑफर दे रही हूँ, पहले तू घोंट ले मेरे भैया का " बुचिया ने उसे चिढ़ाया और चुनिया समझ गयी सुरजू की बात हो रही है।
जब इमरतिया सुबह रस्म के लिए ले गयी, चुनिया क्या दो चार साल से बियाहता, रोज बिना नागा लंड घोंट रही भौजाइयों का दिल दहल गया था,
जब इमरतिया ने सुरजू को ला के चौके पर बैठाया था, ढीली नेकर तब भी एकदम तनी, तम्बू में बम्बू खड़ा,
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खेली खायी आँखों ने नाप भी लिया, बित्ते से कम नहीं होगा, ज्यादा ही होगा, और बुच्ची ने तो साफ़ साफ़ देखा भी था, पकड़ा भी था और अपने चूतड़ से, बिलिया से रगड़ा भी था।
चुनिया समझ गयी और हंस के बोली, " ना स्साली, पहले तू उस से कुश्ती लड़ ले, अगर तू बची रही तो दो बातें होंगी "
" क्या " बुच्ची समझी नहीं लेकिन चुनिया ने खोल के बता दिया,
" चल यार तू अपने भैया से चुद जायेगी तो मैं भी टाँगे खोल दूंगी उनके आगे, ये तो पहली बात, और दूसरी बात मैं तेरे भैया को दूंगी तो तुझे भी मेरे भाई को "
बुच्ची कुछ बोलीं नहीं लेकिन मुस्करा दी और कस के चुनिया को दबोच लिया।
" स्साली अब तो हाँ बोल दे, बेचारा गप्पू कब से पीछे पड़ा है " गुस्सा होते हुए चुनिया बोली,
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" कमीनी, मना भी तो नहीं किया, क्या पता बेचारे की किस्मत जल्द ही खुल जाए "
खिलखिलाती हुयी बुच्ची बोली और मुड़ के चुनिया को चूम लिया।
तो वो दोनों साथ साथ चिपकी बैठीं, और भी गाँव की लड़कियां, बुच्ची की पक्की सहेली,शीला, दक्खिन पट्टी की ही मधु और चंदा, कम से कम आठ दस
लेकिन सबसे पहले देबी का गाना होता था, कम से कम पांच और ये गाँव की बड़ी बूढी औरतें गाती थीं। साथ तो सब औरतें देती थीं , लड़कियां भी लेकिन सब बस सोचती थी कब ये गाने ख़त्म हों और हम लोगों का नंबर आये
और फिर बन्ना बन्नी और जैसे ही देवी क गाना ख़त्म हुआ,
बुच्ची और चुनिया ने ढोलक अपनी ओर खींच ली। और उन दोनों का साथ गाँव की घर की बाकी लड़कियां और गाना बुच्ची ने ही शुरू किया, बुच्ची और चुनिया जब गाती तो एकदम मिलकर, एक कोयल थी तो दूसरी बुलबुल और दोनों को एक दूसरे के गाने एकदम अच्छी तरह याद थे, कितनी बार शादी ब्याह में जोड़ी बना के गातीं थीं और सब लोग आवाज सुन के चित्त, सब यही कहते इन दोनों का जैसा रूप है, जोबन आ रहा है वैसी ही मीठी शक्कर घुली आवाज।
बन्ना जी तोरी चितवन जादू भरी,
बन्ना जी तोरी चितवन जादू भरी,
बन्ना जी तोरी चितवन आज दिखाओ
बन्ना जी तोरी बिहासन जादू भरी
बन्ना जी तोरी अधरों की अरुणाई
बन्ना जी तोरी बोली जादू भरी
आवाज बुच्ची की गले से नहीं दिल से निकल रही थी और चुनिया भी उसी तरह साथ दे रही थी,
लेकिन बुच्ची के मन में बस सुरजू भैया की छबि आज से नहीं बचपन से, न उसका कोई भाई था न बहन और सुरजू भैया की भी न कोई बहन थी न भाई।
पास ही के गाँव में ,मुश्किल से दस पन्दरह कोस ( बीस -तीस मील) , और हर साल राखी के एक दो दिन पहले से ही आ जाती,
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सुरजू भैया से दोस्ती भी थी, झगड़ा भी करती धींगामुश्ती भी, फिर धीरे धीरे वो भी बड़ी हुयी और भैया तो पक्के पहलवान, और उस को भी गाँव के लौंडे जवानी चढ़ने का अहसान करा रहे थे। औ
र वो भैया की अगल बगल गाँव में कोई कुश्ती हो तो जरूर जाती, और सबसे ज्यादा जोर से हो हो करती औरकई बार उसकी गाँव की औरतें भी, पास के जवार की भौजाइयां और चिढ़ाती भी,
" हे तेरे भैया के लंगोट के अंदर देख, केतना फूला फूला है, जबरदस्त नाग तोहार भाई पाले होंगे , कभी सोहराई हो की नहीं "
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और बजाय बुरा मानने के वो भी, " बस वहीँ ' देखती एकटक। और कोई सहेली चिढ़ाती भी,
" अरे आज कल ऐसा भाई हो तो मैं सगे को न छोडूं,स्साले को पटक के चोद दूँ, ....तेरा तो ममेरा है। "
लेकिन सुरजू भैया भी भीड़ में उनकी आँखे उसे ढूंढती रहती थी और जब आँखे चार होतीं तो दोनों इत्ता जबरदस्त मुस्कराते, और बुच्ची के साथ की सहेलियां चूतड़ में कस के चिकोटी काटतीं, और कान में फुसफुसातीं,
" स्साली एकदम पटाने लायक है, छोड़ना मत इसको। मेरा सगा भाई भी होता न तो अबतक कब का घोंट चुकी होती, एकदम जबरदस्त होगा। "
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वो गाना ख़तम हो गया और बुच्ची ने ही दूसरा गाना छेड़ा,
बन्ने तेरी अंखिया सुरमेदानी,
एक पता नहीं कब से चल रहा गाना और अब सब औरते गा रहीं थी, सुरजू की माई, बूआ और मामी भी,
तेरा मुखड़ा है लाख का
लेकिन चुनिया ने इशारा कर दिया था अगला बन्ना-वो गायेगी



बिलकुल सही कहा. लड़की वाले बन्नी के गीत गाते और लड़के वाले बन्ना के. और यह भी सही है बन्ना के गीत गाते वक्त बन्ना की भेजाई लोग बन्ना की ही ज्यादा खिचाई करते है. क्यों की देवरनी आएगी तो उन्ही की पार्टी मे.बन्ना- बन्नी ---बुच्ची चुनिया
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असल में लड़के के घर में बन्ने गाये जाते हैं और लड़की के घर में बन्नी, और लड़के के घर के गाने में लड़की वालों का मजाक होता है, और लड़की के यहां बन्ने को चिढ़ाया जाता है,
लेकिन भौजाइयां बन्ने को भी नहीं छोड़ती, आखिर आने वाली दुलहिनिया, बन्नी उनकी देवरानी होगी और उन्ही के साथ ननदों का शलवार खोलेगी और फिर चुनिया भी तो रामपुर वाली भौजी की छोटी बहन तो वो भी, और उसके पास तो छेड़खानी वाले गानों का खजाना था तो वो चालू हो गयी,
अपनी सहेली बुच्ची को चमका चमका के चिढ़ा चिढ़ा के गाने,
बन्दर ले गया पाजामा, बन्ना कैसे तरसे
बन्ना कैसे तरसे, हो बन्ना कैसे तरसे
बन्दर ले गया पाजामा, बन्ना कैसे तरसे
बन्ने के बाबू गए छुड़ाने, बन्दर घुड़की मारे
अरे घुड़की की तो घुड़की मारे, अरे दिखा दिखा के फाड़े
बन्दर ले गया पाजामा, बन्ना कैसे तरसे
मंजू भाभी ने मुंह में दो उंगली डाल के जोर से सीटी मारी और बोलीं,
" अरे बन्ने के पाजामे के अंदर वाला, पिछवाड़े वाला तो नहीं फाड़ दिया,? '
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' अरे वो बच भी जाएगा तो ससुराल में सास और सलहज कोहबर में फाड़ देंगी, फटने वाली चीज तो फटेगी ही " जवाब रामपुर वाली भौजी, चुनिया की बड़ी बहन ने दिया
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और चुनिया ने गाना अब बुच्ची की ओर मोड़ दिया
बन्ने की बहना पहने शलवार, बुच्ची रानी पहने शलवार
बन्दर ले गया शलवार, बन्ने की बहना कैसे तरसे,
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बन्ना बिचारा गया छुड़ाने, बुच्ची के भैया गए छुड़ाने
बन्दर घुड़की मारे
अरे घुड़की की तो घुड़की मारे, अरे दिखा दिखा के फाड़े
बेचारी बुच्ची नंगी नाचे रे, बन्ना मेरा ताली बजाये रे
और अब तो सुरजू की माई के मायके वाली सब लड़कियां औरत्ते, सुरजू की भौजाइयां हँसते हँसते,
बुच्ची ने आँखे तरेर कर अपनी सहेली को देखा फिर वो भी मुस्करायी और ढोलक अपनी ओर खींचने की कोशिश की पर चुनिया बोली,
" यार बस एक, एक सेहरा तो हो जाए बन्ने का, तेरे भैया का, और ढोलक फिर टनकना शुरू हो गयी,
और चुनिया चालू हो गयी,
अलबेला बन्ना, अरे सुन्दर बना
बन्ने के माथे सेहरा सोहे, सेहरा सोहे,
मैं तुमसे पूछूं ऐ बन्ने, सेहरा कहाँ पाया,
मेरा बहना का यार, मलिया ले आया,
अरे बुच्ची सोई उसके संग, मलिया ले आया
बुच्ची और चुनिया हमेशा साथ साथ गातीं, एक गाना शुरू करता तो दूसरा और उसके साथ में बाकी लड़कियां औरतें उस लाइन को दुहरातीं, लेकिन बुच्ची गा तो रही थी लेकिन बनावटी गुस्से से अपनी पक्की सहेली को देखा।
असली बात थी, गाने में जिसका नाम लेकर न छेड़ा जाय जो न गरियाया जाय वो ज्यादा बुरा मानता था।
बन्ने के पैरों में जूता सोहे, जूता सोहे अरे जूता सोहे
मैं तुमसे पूछूं ए बन्ने, जूता कहाँ पाया
अरे मेरी बहना का यार, मेरी बुच्ची का यार मोची ले आया,
अरे बुच्ची सोई उसके संग, टांग उठायी, जांघ फैलाई उसके संग,
अरे मोची ले आया
तबतक भरौटी क कउनो भौजी बोलीं," आज कल क बिटिहिनीं सब, अरे साफ़ साफ़ काहे न बोलती,
" अरे बुच्ची चोदावे मोचिया से, जुतवा वही लाया "
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" अरे तो कौन गलत कर रही है "
चुनिया की बड़ी बहन, रामपुर वाली भौजी, जो सुरुजू के ननिहाल से आयी थीं , सुरजू की माई के पास छोटी मामी के पीछे बैठीं थीं, वही से बुच्ची के समर्थन में गुहार लगाई,
" अरे तो हमर ननद रानी कौन गलत कर रही हैं , बुरिया है तो चोदी ही जायेगी, तो मालिया से चुदवा के सेहरा, बजजवा से चुदवा के कपड़ा और मोचिया से चुदवा के अपने भैया के लिए जूता ले आयी तो बहन हो तो ऐसी, चुदाई का मजा भी और पैसे की बचत भी , मंहगाई के जमाने में "
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लेकिन साथ ही में अपनी छोटी बहन चुनिया को अपने सामने बैठी अपनी फुफिया सास, सुरजू की माई की ओर इशारा किया
और चुनिया के पास तो खजाना था, वो चालू हो गयी और अबकी निशाने पे सुरजू की माई थीं, वैसे भी दूल्हे की बहन और माई सबसे ज्यादा गरियाई जाती हैं और बहन से भी ज्यादा माई
एक दो लाइने तो बन्ने की तारीफ़ में फिर बाद मुद्दे पे पहुँच गयी
बन्ने के सर पे सेहरा सोहे, सेहरा सोहे,
बन्ने के सर पे सेहरा सोहे, सेहरा सोहे
बन्ने के सर पे सेहरा सोहे, सेहरा सोहे, अरे लोग कहें मलिया का जना,
बन्ने के तन पे सूट सोहे , अरे सूट सोहे,
अरे सूट सोहे, लोग कहें,, बजजवा जना
सुरजू की गाँव की एक बूआ अपनी भौजाई, सुरजू की माई से बोलीं,
" अरे भौजी केतना लोगन से चुदाई के मुन्ना को पैदा की हो, मालिया भी बजजवा भी , मोचिया भी, की अपने मामा क जनमल हो "
सुरजू क माई अपनी ननद को कुछ जवाब देती उसके पहले चुनिया ने अगली लाइन शुरू कर दी
धोबी की गली हो के आया बना, लोग कहें धोबी का जना
अरे लोग कहे, अरे लग कहें, गदहे का जना
अबकी तो खूब जबरदस्त ठहाका लगा और सबसे ज्यादा खुद सुरजू क माई और सबसे पहले कमेंट उन्होंने ही मारा, अपने पीछे बैठी मुन्ना बहू और इमरतिया और रामपुर वाली भौजी को देख के
" भाई गदहे वाली बात तो दूल्हे क भौजाई लोग अच्छी तरह से बता सकती हैं,.... अब ये जिन कहा की नाप तौल नहीं की हो अपने देवर की "
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बहुत बहुत आभारतो बस खूंटा फड़फड़ायेगा, झिझक ख़तम होगी और इमरतिया सोचती थी की सूरजु को बारात जाने के पहले कम से कम आठ दस पे, आठ दस बार नहीं, आठ दस लड़कियों औरतों पे चढ़ा दे तो तरह तरह क बुर क मजा लेना सीख जायेंगे तो एक तो दुलहिनिया के साथ कउनो हिचक नहीं होगी, रगड़ के पेलेंगे, दूसरे एक बार बियाहे के पहले जो मरद को दस बारह बुर का स्वाद लग गया, वो बियाहे के बाद भी किसी एक के पेटीकोट के नाड़े से नहीं बंधा रहेगा, सांड की तरह सबका खेत चरेगा।
तो बस रात भर नाच गाना देखने का इंतजाम इमरतिया ने कर
Superb....
Tab to din raat ek karna hoga sarju ko.













एकदम आयी है सुनीता नाम हैगाँव में चाहे बुलाना हो या गरियाना हो, तो बहिन महतारी को भाई, बेटे के नाम से ही तो सुरुजू का नाम लिया जा रहा थी, उनकी एक रिश्ते की ममेरी बहन को गरियाने के लिए, गाँव की भौजाइयां पीछे पड़ी थीं, उनकी बड़ी मामी की बेटी, उन्ही की उम्र की रही होगी,या थोड़ी बहुत छोटी,हाँ दो ढाई साल छोटी ही थी, लेकिन कच्ची अमिया जबरदस्त आ गयी थीं, पिछवाड़ा भी गोल गोल होना शुरू हो गया था, खूनखच्चर भी पिछले साल होना शुरू हो गया था
Tab to sadi main ye bhi ayegi.
शादी बियाह का घर जमावड़ा तो होगा और नयी उम्र की नयी फसल टाइप लड़के लड़कियों को मौका भी खूब मिलेगा,Naye naye charector.Kahani intersting hoti ja rahi hai
इस कहानी में यह वाला पस्ट बहुत अच्छा लगा कहानी छोटी लिखो यह बडी यह मायने नहीं रखता में न किरदार को कैसे दर्शाते हैं कहानी में यह मायने रखता हैरतजगे की मस्ती