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Adultery जब तक है जान

Rekha rani

Well-Known Member
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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
Awesome update
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
Shandar jabardast update 👌
 

parkas

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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and beautiful update....
 

kas1709

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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
Nice update....
 

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“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
लगता हैं आज रात देव की पिस्ता के साथ रंगिन होने वाली हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Tiger 786

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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
Lazwaab shandaar update
 

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“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
Naaz kahan thi or uske sath kya hua tha
 
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