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Serious ज़रा मुलाहिजा फरमाइये,,,,,

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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किस को क़ातिल मैं कहूं किस को मसीहा समझूं।
सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूं।।

वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था,
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूं।।

दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे,
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूं।।

ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी,
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूं।।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके।
कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके।।

मेरी तबाही दिल पर तो रहम खा न सकी,
जो रोशनी में रहे रोशनी को पा न सके।।

न जाने आह! कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री,
जो दिल से आँख तक आये मिश्गाँ तक आ न सके।।

रहें ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात जहाँ,
मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके।।

करेंगे मर के बक़ा-ए-दवाम क्या हासिल,
जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके।।

नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने,
नई ज़मीं, नया आसमाँ बना न सके।।

______जोश मलीहाबादी
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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कोई उम्मीद बर नहीं आती ।
कोई सूरत नज़र नहीं आती।।

मौत का एक दिन मु'अय्यन है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।।

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी,
अब किसी बात पर नहीं आती।।

जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद,
पर तबीयत इधर नहीं आती।।

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ,
वर्ना क्या बात कर नहीं आती।।

क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं,
मेरी आवाज़ गर नहीं आती।।

दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता,
बू-ए-चारागर नहीं आती ।।

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती ।।

मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती।।

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब',
शर्म तुमको मगर नहीं आती।।

_____मिर्ज़ा ग़ालिब
 

The Immortal

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कोई उम्मीद बर नहीं आती ।
कोई सूरत नज़र नहीं आती।।

मौत का एक दिन मु'अय्यन है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।।

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी,
अब किसी बात पर नहीं आती।।

जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद,
पर तबीयत इधर नहीं आती।।

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ,
वर्ना क्या बात कर नहीं आती।।

क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं,
मेरी आवाज़ गर नहीं आती।।

दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता,
बू-ए-चारागर नहीं आती ।।

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती ।।

मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती।।

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब',
शर्म तुमको मगर नहीं आती।।

_____मिर्ज़ा ग़ालिब
Mirza Galib :bow:. Thanx for sharing these stuffs
 
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Mr. Pandit

SAB KUCH JAYAZ HAI....
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दोस्तो, इस थ्रीड पर जो भी ग़ज़लें मेरे द्वारा पोस्ट की जाएॅगी वो सब ग़ज़लें बड़े बड़े मशहूर शायरों की ही होंगी ना कि मेरी ख़ुद की लिखी हुई। लिखता तो मैं भी हूॅ ग़ज़लें किन्तु उन्हें मैं यहाॅ पर पोस्ट नहीं कर सकता, हलाॅकि अपनी खुद की ग़ज़लों को मैने अपनी कहानियों में ज़रूर प्रयोग किया है। जिन्हें मेरे दोस्त भाईयों ने शायद पढ़ा भी होगा। ख़ैर,,,,,,

आप सबके सामने हाज़िर हैं दुनियाॅ के मशहूर शायरों की बेमिशाल ग़ज़लें जो आपके दिलों में उतर कर अपना मीठा सा असर दिखाएॅगी। आशा करता हूॅ कि आप सभी को ये ग़ज़लें बेहद पसंद आएॅगी।

!! धन्यवाद !!



अब तो ये भी नहीं रहा एहसास।
दर्द होता है या नहीं होता।।

इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा,
आदमी काम का नहीं होता ।

टूट पड़ता है दफ़अतन जो इश्क़,
बेश-तर देर-पा नहीं होता ।

वो भी होता है एक वक़्त कि जब,
मा-सिवा मा-सिवा नहीं होता ।

दिल हमारा है या तुम्हारा है,
हम से ये फ़ैसला नहीं होता ।

जिस पे तेरी नज़र नहीं होती,
उस की ज़ानिब ख़ुदा नहीं होता ।

मैं कि बे-ज़ार उम्र के लिए,
दिल कि दम-भर जुदा नहीं होता ।

वो हमारे क़रीब होते हैं,
जब हमारा पता नहीं होता ।

दिल को क्या क्या सुकून होता है,
जब कोई आसरा नहीं होता ।

हो के इक बार सामना उन से,
फिर कभी सामना नहीं होता ।

Bole to jhakaaaaas hai bhaya....:good::good:
 

Mr. Perfect

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Waaah kamaal The_InnoCent bhai_____

Iski starting ki kuch lines shayad maine salman khan ki film kick me Nawajuddin Shiddiqui ke mukh se suna tha. Kafi majedaar tarike se bola tha usne_____

Bhai mujhe aaj pata chala ki ye to mirja galib ka karnama hai hahaha____

कोई उम्मीद बर नहीं आती ।
कोई सूरत नज़र नहीं आती।।

मौत का एक दिन मु'अय्यन है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।।

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी,
अब किसी बात पर नहीं आती।।

जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद,
पर तबीयत इधर नहीं आती।।

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ,
वर्ना क्या बात कर नहीं आती।।

क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं,
मेरी आवाज़ गर नहीं आती।।

दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता,
बू-ए-चारागर नहीं आती ।।

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती ।।

मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती।।

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब',
शर्म तुमको मगर नहीं आती।।

_____मिर्ज़ा ग़ालिब
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं।
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं।।

जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है,
सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं।।

अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो,
के लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं।।

टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती,
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं।।

सबा फिर हमें पूछती फिर रही है,
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं।।

चलो "फ़ैज़" फिर से कहीं दिल लगायेँ,
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं।।

______फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
 
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