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इस तरह गुज़र जाए दिन चार मुहब्बत में।
दोज़ख भी सँवर जाए दिलदार मुहब्बत में।।
प्यारेे वतन के सदके हर दिल से उठें ऐसे,
नफ़रत भी बदल जाए बस प्यार मुहब्बत में।।
ये मज़हबों की रंजिश, ये जातियों के झगड़े,
छँट जाएँ ग़र्दिशें सब गुलजार मुहब्बत में।।
आए ग़मों से खुश्बू खुसियों की सदा लेकर,
हर दर्द बने खुशदिल इजहार मुहब्बत में।।
नाहक़ न पिसे गुर्बत अमीर सोहरतों में,
हर दिल से फ़र्ज़ का हो इकरार मुहब्बत में।।
दरिया-ए-वतन में हों मौज़े-अमन रवाँ यूँ,
साहिल भी नज़र आए रू-दार मुहब्बत में।।
हर दिल अज़ीज जैसे गुल सा खिलें चमन में,
बहरें ये नेकियाँ यूँ हर बार मुहब्बत में।।
________गोपाल शरण सिंह
दोज़ख भी सँवर जाए दिलदार मुहब्बत में।।
प्यारेे वतन के सदके हर दिल से उठें ऐसे,
नफ़रत भी बदल जाए बस प्यार मुहब्बत में।।
ये मज़हबों की रंजिश, ये जातियों के झगड़े,
छँट जाएँ ग़र्दिशें सब गुलजार मुहब्बत में।।
आए ग़मों से खुश्बू खुसियों की सदा लेकर,
हर दर्द बने खुशदिल इजहार मुहब्बत में।।
नाहक़ न पिसे गुर्बत अमीर सोहरतों में,
हर दिल से फ़र्ज़ का हो इकरार मुहब्बत में।।
दरिया-ए-वतन में हों मौज़े-अमन रवाँ यूँ,
साहिल भी नज़र आए रू-दार मुहब्बत में।।
हर दिल अज़ीज जैसे गुल सा खिलें चमन में,
बहरें ये नेकियाँ यूँ हर बार मुहब्बत में।।
________गोपाल शरण सिंह