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Serious ज़रा मुलाहिजा फरमाइये,,,,,

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Waaah kamaal The_InnoCent bhai_____

Iski starting ki kuch lines shayad maine salman khan ki film kick me Nawajuddin Shiddiqui ke mukh se suna tha. Kafi majedaar tarike se bola tha usne_____

Bhai mujhe aaj pata chala ki ye to mirja galib ka karnama hai hahaha____
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,

जी हाॅ भाई, इस ग़ज़ल की कुछ लाइनें उस फिल्म के खलनायक ने बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा था।
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे।
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे।।

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे,
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे।।

हँसो आज इतना कि इस शोर में,
सदा सिसकियों की सुनाई न दे।।

अभी तो बदन में लहू है बहुत,
कलम छीन ले रोशनाई न दे।।

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो,
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे।।

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें,
असीरों को ऐसी रिहाई न दे।।

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए,
जहाँ से मदीना दिखाई न दे।।

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ,
क़लम छीन ले रोशनाई न दे।।

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है,
रहे सामने और दिखाई न दे।।



______डाॅ.बशीर बद्र
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं।
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं।।

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं।।

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं।।

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बांधी थी,
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं।।

किसी की आरज़ू के पांवों में ज़ंजीर डाली थी,
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं।।

पकाकर रोटियां रखती थी मां जिसमें सलीक़े से,
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं।।

हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है,
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं।।

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहां जब थे,
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं।।

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं,
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं।।

गले मिलती हुई नदियां गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नजारा छोड़ आए हैं।।

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की,
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं।।


______मुनव्वर राना
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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किया है प्यार सलीक़े से निभाने के लिये।
किसी के दर्द को बस अपना बनाने के लिये।।

मिला न कोई भी रहबर मुझे अब तक ऐसा,
जो रोक पाये ग़लत राह पे जाने के लिये।।

किसी की चाह में दिल बेक़रार रहता है,
मचल रहा है ये दिल उसको ही पाने के लिये।।

मिला है ज्ञान निराला जो आप को केवल,
तो बाँटिये उसे सोते को जगाने के लिये।।

इस तरह जाया क्यों करते हैं अपनी ताक़त को,
एक मज़लूम को बेवजह सताने के लिये।।

लुट रही होती हों राहों में बेटियाँ जब भी,
कोई आता ही नहीं उनको बचाने के लिये।।

किसी से नज़रें मिलाऊँ तो किस तरह "राही",
कोई तो आता नहीं दिल से लगाने के लिये।।


____"राही"भोजपुरी,जबलपुर मध्य प्रदेश।
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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आप जिनके क़रीब होते हैं।
वो बड़े ख़ुश-नसीब होते हैं।।

जब तबीअ'त किसी पर आती है,
मौत के दिन क़रीब होते हैं।।

मुझ से मिलना फिर आप का मिलना,
आप किस को नसीब होते हैं।।

ज़ुल्म सह कर जो उफ़ नहीं करते,
उन के दिल भी अजीब होते हैं।।

इश्क़ में और कुछ नहीं मिलता,
सैकड़ों ग़म नसीब होते हैं।।

'नूह' की क़द्र कोई क्या जाने,
कहीं ऐसे अदीब होते हैं।।



______"नूह" नारवी
 
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मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं।
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं।।

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं।।

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं।।

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बांधी थी,
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं।।

किसी की आरज़ू के पांवों में ज़ंजीर डाली थी,
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं।।

पकाकर रोटियां रखती थी मां जिसमें सलीक़े से,
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं।।

हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है,
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं।।

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहां जब थे,
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं।।

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं,
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं।।

गले मिलती हुई नदियां गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नजारा छोड़ आए हैं।।

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की,
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं।।


______मुनव्वर राना
Emotional Kar Diya sir ji .
Bohat khubsurt poetry . :bow:
 
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लज़्ज़त-ए-हयात तो कुछ तल्ख़ियाँ भी हैं।
हँसने के साथ साथ यहाँ सिसकियाँ भी हैं।।

कहते हैं लोग तुझ को गुल-ए-बदनसीब भी,
सुनती हूँ जुस्तज़ू में तेरी तितलियाँ भी हैं।।

आँखों के रास्ते से निकलते हैं रंज़-ओ-ग़म,
अच्छा है इस मकान में कुछ खिड़कियाँ भी हैं।।

तूफान भी शबाब पे आने लगा उधर,
बेताब डूबने को इधर कश्तियाँ भी हैं।।

छेड़ा न कीजिए उसे वो ऐसी शम'अ है,
दामन बचा के जिस से चली आँधियाँ भी हैं।।

आतिश फ़िशां से दूर रहा कर ज़रा 'सुमन',
सूरज के पास देख कहीं बस्तियाँ भी हैं।।

______सुमन धिंगरा दुग्गल
 
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सुर्खे चमन- ए- दिल यूं नजारे बिखर गये।
जितने खिले थे फूल वो सारे बिखर गये।।


मौजें उफान पर थीं बगावत में इस तरह,
दरिया ए दिल के सख्त किनारे बिखर गये।।


तुमने किया उजाला तो बेशक जमीन पर,
लेकिन एे आफताब सितारे बिखर गये।।


खामोशियों ने अपनी सताया हमें बहुत,
नादानियों से उनकी इशारे बिखर गये।।


वो तो मगन हैं आज नजाकत ओ शोख में,
उनको पता न ख्वाब हमारे बिखर गये।।


कैसे बुझाएं प्यास गमों की बता 'मनुज',
आँखों से गिरके अश्क भी खारे बिखर गये।।

______मनोज राठौर "मनुज"
 
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Emotional Kar Diya sir ji .
Bohat khubsurt poetry . :bow:
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,
 
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