• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Serious ज़रा मुलाहिजा फरमाइये,,,,,

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
मेरे साथ तुम भी दुआ करो यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो।
कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुदा न हो।।

मेरे घर से रात की सेज तक वो इक आँसू की लकीर है,
ज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो इसी तरफ़ से गया न हो।।

सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं, आसमाँ है झुका हुआ,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले कर खड़ा न हो।।

वो फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये कहानियों की किताब में,
जो बुरा कहें न बुरा सुने कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो।।

वो विसाल हो के फ़िराक़ हो तेरी आग महकेगी एक दिन,
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग़ बन के जला न हो।।

मुझे यूँ लगा कि ख़ामोश ख़ुश्बू के होँठ तितली ने छू लिये,
इन्ही ज़र्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो।।

इसी एहतियात में मैं रहा, इसी एहतियात में वो रहा,
वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी और को ये पता न हो।।

_______डाॅ. बशीर बद्र
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
सब क़त्ल होके तेरे मुक़ाबिल से आये हैं।
हम लोग सुर्ख-रू हैं कि मंजिल से आये हैं।।

शम्मए नज़र, खयाल के अंजुम, जिगर के दाग़,
जितने चिराग़ हैं तेरी महफ़िल से आये हैं।।

उठकर तो आ गये हैं तेरी बज़्म से मगर,
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आये हैं।।

हर इक क़दम अज़ल था, हर इक ग़ाम ज़िन्दगी,
हम घूम-फिर के कूचा-ए-क़ातिल से आये हैं।।

बादे-ख़िज़ां का शुक्र करो फ़ैज़ जिसके हाथ,
नामे किसी बहार-शमाइल से आये हैं।।

_______फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते।
सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते।।

आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते,
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते।।

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल,
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।।

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले,
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते।।

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना,
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते।।

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त,
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते।।

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माअ़ने,
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते।।

______अकबर इलाहाबादी
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवाना-वार गुज़रे।
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे।।

बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडर सजा कर,
शायद इसी तरफ़ से इक दिन बहार गुज़रे।।

दार-ओ-रसन से दिल तक सब रास्ते अधूरे,
जो एक बार गुज़रे वो बार-बार गुज़रे।।

बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे,
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे।।

मस्जिद के ज़ेर-ए-साया बैठे तो थक-थका कर,
बोला हर इक मिनारा तुझ से हज़ार गुज़रे।।

क़ुर्बान इस नज़र पे मरियम की सादगी भी,
साए से जिस नज़र के सौ किर्दगार गुज़रे।।

तू ने भी हम को देखा हम ने भी तुझ को देखा,
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे।।

_________मीना कुमारी 'नाज़'
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो।
मैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल कर दो।।

न तुम्हें होश रहे और न मुझे होश रहे,
इस क़दर टूट के चाहो मुझे पागल कर दो।।

तुम हथेली को मिरे प्यार की मेहंदी से रंगो,
अपनी आँखों में मिरे नाम का काजल कर दो।।

इस के साए में मिरे ख़्वाब दहक उट्ठेंगे,
मेरे चेहरे पे चमकता हुआ आँचल कर दो।।

धूप ही धूप हूँ मैं टूट के बरसो मुझ पर,
इस क़दर बरसो मिरी रूह में जल-थल कर दो।।

जैसे सहराओं में हर शाम हवा चलती है,
इस तरह मुझ में चलो और मुझे जल-थल कर दो।।

तुम छुपा लो मिरा दिल ओट में अपने दिल की,
और मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो।।

मसअला हूँ तो निगाहें न चुराओ मुझ से,
अपनी चाहत से तवज्जोह से मुझे हल कर दो।।

अपने ग़म से कहो हर वक़्त मिरे साथ रहे,
एक एहसान करो इस को मुसलसल कर दो।।

मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत जानाँ,
और मिरी ज़ात को सूखा हुआ जंगल कर दो।।

________वसी शाह
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है।
उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है।।

चमक रहा है उफ़ुक़ तक ग़ुबार-ए-तीरा-शबी,
कोई चराग़ सफ़र पर रवाना हो गया है।।

हमें तो ख़ैर बिखरना ही था कभी न कभी,
हवा-ए-ताज़ा का झोंका बहाना हो गया है।।

ग़रज़ कि पूछते क्या हो मआल-ए-सोख़्तगाँ,
तमाम जलना जलाना फ़साना हो गया है।।

फ़ज़ा-ए-शौक़ में उस की बिसात ही क्या थी,
परिंद अपने परों का निशाना हो गया है।।

किसी ने देखे हैं पतझड़ में फूल खिलते हुए,
दिल अपनी ख़ुश-नज़री में दिवाना हो गया है।।

________इरफ़ान सिद्दीक़ी
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।
तेरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से,
कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

तिरी यादों की ख़ुश्बू खिड़कियों में रक़्स करती है,
तिरे ग़म में सुलगता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

न जाने हो गया हूँ इस क़दर हस्सास मैं कब से,
किसी से बात करता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

मैं सारा दिन बहुत मसरूफ़ रहता हूँ मगर जूँही,
क़दम चौखट पे रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

हर इक मुफ़्लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं,
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

बड़े लोगों के ऊँचे बद-नुमा और सर्द महलों को,
ग़रीब आँखों से तकता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

तिरे कूचे से अब मेरा तअ'ल्लुक़ वाजिबी सा है,
मगर जब भी गुज़रता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर,
'वसी' मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।।

________'वसी' शाह
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
गुनगुनाते हुए आँचल की हवा दे मुझ को।
उँगलियाँ फेर के बालों में सुला दे मुझ को।।

जिस तरह फ़ालतू गुल-दान पड़े रहते हैं,
अपने घर के किसी कोने से लगा दे मुझ को।।

याद कर के मुझे तकलीफ़ ही होती होगी,
एक क़िस्सा हूँ पुराना सा भुला दे मुझ को।।


डूबते डूबते आवाज़ तिरी सुन जाऊँ,
आख़िरी बार तो साहिल से सदा दे मुझ को।।

मैं तिरे हिज्र में चुप-चाप न मर जाऊँ कहीं,
मैं हूँ सकते में कभी आ के रुला दे मुझ को।।

देख मैं हो गया बदनाम किताबों की तरह,
मेरी तश्हीर न कर अब तो जला दे मुझ को।।

रूठना तेरा मिरी जान लिए जाता है,
ऐसे नाराज़ न हो हँस के दिखा दे मुझ को।।

और कुछ भी नहीं माँगा मिरे मालिक तुझ से,
उस की गलियों में पड़ी ख़ाक बना दे मुझ को।।

लोग कहते हैं कि ये इश्क़ निगल जाता है,
मैं भी इस इश्क़ में आया हूँ दुआ दे मुझ को।।

यही औक़ात है मेरी तिरे जीवन में कि मैं,
कोई कमज़ोर सा लम्हा हूँ भुला दे मुझ को।।

_________'वसी' शाह
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
1,434
3,733
143
Waahh The_InnoCent bhai____

Ugaliya fer ke baalo me sula de mujhko Fantastic______


गुनगुनाते हुए आँचल की हवा दे मुझ को।
उँगलियाँ फेर के बालों में सुला दे मुझ को।।

जिस तरह फ़ालतू गुल-दान पड़े रहते हैं,
अपने घर के किसी कोने से लगा दे मुझ को।।

याद कर के मुझे तकलीफ़ ही होती होगी,
एक क़िस्सा हूँ पुराना सा भुला दे मुझ को।।


डूबते डूबते आवाज़ तिरी सुन जाऊँ,
आख़िरी बार तो साहिल से सदा दे मुझ को।।

मैं तिरे हिज्र में चुप-चाप न मर जाऊँ कहीं,
मैं हूँ सकते में कभी आ के रुला दे मुझ को।।

देख मैं हो गया बदनाम किताबों की तरह,
मेरी तश्हीर न कर अब तो जला दे मुझ को।।

रूठना तेरा मिरी जान लिए जाता है,
ऐसे नाराज़ न हो हँस के दिखा दे मुझ को।।

और कुछ भी नहीं माँगा मिरे मालिक तुझ से,
उस की गलियों में पड़ी ख़ाक बना दे मुझ को।।

लोग कहते हैं कि ये इश्क़ निगल जाता है,
मैं भी इस इश्क़ में आया हूँ दुआ दे मुझ को।।

यही औक़ात है मेरी तिरे जीवन में कि मैं,
कोई कमज़ोर सा लम्हा हूँ भुला दे मुझ को।।

_________'वसी' शाह
 
Top