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मेरे साथ तुम भी दुआ करो यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो।
कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुदा न हो।।
मेरे घर से रात की सेज तक वो इक आँसू की लकीर है,
ज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो इसी तरफ़ से गया न हो।।
सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं, आसमाँ है झुका हुआ,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले कर खड़ा न हो।।
वो फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये कहानियों की किताब में,
जो बुरा कहें न बुरा सुने कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो।।
वो विसाल हो के फ़िराक़ हो तेरी आग महकेगी एक दिन,
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग़ बन के जला न हो।।
मुझे यूँ लगा कि ख़ामोश ख़ुश्बू के होँठ तितली ने छू लिये,
इन्ही ज़र्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो।।
इसी एहतियात में मैं रहा, इसी एहतियात में वो रहा,
वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी और को ये पता न हो।।
_______डाॅ. बशीर बद्र
कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुदा न हो।।
मेरे घर से रात की सेज तक वो इक आँसू की लकीर है,
ज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो इसी तरफ़ से गया न हो।।
सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं, आसमाँ है झुका हुआ,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले कर खड़ा न हो।।
वो फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये कहानियों की किताब में,
जो बुरा कहें न बुरा सुने कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो।।
वो विसाल हो के फ़िराक़ हो तेरी आग महकेगी एक दिन,
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग़ बन के जला न हो।।
मुझे यूँ लगा कि ख़ामोश ख़ुश्बू के होँठ तितली ने छू लिये,
इन्ही ज़र्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो।।
इसी एहतियात में मैं रहा, इसी एहतियात में वो रहा,
वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी और को ये पता न हो।।
_______डाॅ. बशीर बद्र