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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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आप कहानी के इतर अपनी राय बनाने के लिए स्वतंत्र है


Thanks so much, you have said what i wanted to said.
 

komaalrani

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Superbb....waiting the update

Thanks so much, kahani ka, is katha yatra ka sath dene ke liye, for showing a perfect and mature understanding of this genre, nuances and underlying theme of the story,
 
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Funkguy

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Thanks so much, you have said what i wanted to said.
अब तो इतना लंबा साथ हो गया है आप जैसे लेखकों का, कि कहानी पढ़ के ही समझ आ जाता है कि कहानी किस दिशा में जा रही है जब तक की कोई भयानक ट्विस्ट न आ जाये।

आप लोगों जैसे लेखक इरोटिका जगत में बने रहे, नयी कहानियां पढ़ने को मिलती रहे, इतना क्या कम है हम जैसे पाठकों के लिए
 
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Rahul201220

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Thanks so much, you have said what i wanted to said.

लेखिका उन्ही को रिपलाई करती है, जो उनकी हाँ मे हाँ मिलाते है,

और नायिका की जलन, कपट और साजिश को भी लेखिका को खुश करने के लिए नायिका का उसके पति के लिए अलग ढंग का प्यार ही बताते है। :lol1:

नायिका के मजे मे जिसने जिसने रुकावट डाली थी, चाहे पति हो या जेठानी,
नायिका सबसे साजिश करके कपट से सबक सिखा रही है और अपनी सभी से मस्ती करने के रास्ते को खोल रही है, ताकि भविष्य मे भी किसी के साथ भी नायिका मस्ती करे तो कोई रोक टोक ना कर पाए,

नायिका का तर्क की पति को हर तरह का सुख दिलवाना चाहती थी तो अपने पति से अपने प्यारे कमल जीजू की गांड मरवा कर अपने जीजू को वो सुख क्यों नही दिलवाई, क्योंकि नायिका के लिए पति की औकात कुत्ते से ज्यादा है ही नही, उसके तो सबसे खास जीजू और बाहर के मर्द ही है।

ये सब हो रहा है इस तर्क के साथ कि पति को घर मे आजादी नही मिली इसलिए नायिका अपने पति की खुशी के लिए उसके मन की गांठे खोल रही है। :lotpot:
 
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Funkguy

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भाई
मैंने लेखिका की रचनाओं के साथ 5000 दिन से ऊपर (14 साल) बिताये है, हम लोगों का साथ मे ये तीसरा प्लेटफॉर्म है (नियमों के अनुसार मैं किसी और साइट का नाम नही ले सकता)।

और आप जानते है न कि ये एक कहानी है और हिंदी साहित्य की उक्ति के अनुसार, " रचनाकार स्रष्टा (सृष्टि का रचयिता) होता है"

और ये सारी घटनाएं एक कहानी में हो रही है। आप एक अश्लील साहित्य की साइट पर है और शील ढूंढ रहे है जो संभव ही नही है। अगर ये आपका मनोरंजन नही कर रहा है तो जिनका कर रहा है उनके किये छोड़ दीजिए।
सभी यही करते है।
धन्यवाद
 

komaalrani

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Rahul Bhai ki baat ekdam sahi hai or Jo story ka naam hai usi ke hisab se likhi jarahi hai lekin Rahul Bhai or mai bas yahi kahana chahate ki hamane pichhe Jo ab tak pada ki heroin Jo bhi pyar jata rahi thi o sab ek dikhava tha o to apne pati se badla lene ke lie Kiya na ki use pyar karti thi or ha pyar apne dono jijo or aiyasio se karti thi Jo uske pati ke side rahate Puri nahi ho parahi thi lekin ab kuchh bhi nahi kahega kyo ki jiski gand khul gayi o muh


Thanks so much, let us agree to disagree. Divergence of opinion is hall mark of civil society.
 
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komaalrani

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komaalrani

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कभी कभी किसी कहानी पर राहु की दशा लग जाती है या कुछ बात राहु काल में हो जाती हैं, तो करबद्ध प्रार्थना विनम्रता के साथ ही करनी चाहिए ,

और अगर कोई ऐसा हो जो ३० जून बुधवार को ११.३६ पर अवतरित हो, और १२. ०४ पर इस कथा के १०० से अधिक पृष्ठों को पढ़कर, उस पर अपनी राय बना कर अंतिम निर्णय भी सुना दे, मात्र २८ मिनट, कुछ समय तो कहानी को खोलने में लिखने में लगा होगा बस फोरम पर आगमन के २०-२५ मिनट के अंदर,

शाम के ५. ३१ पर किसी ने एक रिव्यू पेटिशन डालने का दुस्साहस किया उसे भी तुरत फुरत निबटा दिया गया,


मैं सिर्फ यही कह सकती हूँ की इस त्वरित निर्णय की क्षमता, जजमेन्ट पास करने का गुण अगर माँननीय न्याय करने वालों को मिल जाए तो हजारों लाखों मामले जो पेंडिंग हैं, उनका निबटारा भी ऐसे ही क्षिप्र गति से हो जाए, हाँ फैसला क्या होगा, किसके चरित्र पर क्या कहा जाएगा, इसकी गारंटी नहीं लेकिन फैसला तो हो जाएगा,

मेरे अंदर २० मिनट में १०० पेज पढ़ने की क्षमता तो नहीं है, पर मंथर गति से मैंने एक बार अपने लिखे को आद्योपांत पढ़ने की कोशिश की , निर्णय में कथा की नैरेटर की चाची का जिक्र भी है , चरित्रहीन होने का, पर मेरी मुलाकात इस कथा में उस चरित्रहीन चरित्र से नहीं हो पायी, पर ये मेरी लिमिट है, मैं निर्णय देने वाले न्यायाधीश पर कमेंट नहीं कर रही हं, न मेरी क्षमता है,

हाँ मैं इस भावना से सहमत हूँ जिससे व्याप्त होकर निर्णय सुनाया गया , अब ये कहानी तो जैसे चल रही है वैसे ही चलेगी, पर मेरा भी एक सुझाव है एकदम विनम्र सुझाव ,


निर्णय की एक प्रति इस फोरम के मॉडरेटर्स नियम निर्धारकों को भी भिजवा दी जाए और जैसे बाकी लेखक, लेखिकाओं को पता रहे की कहानी में कोई भी चरित्रहीन , बहु पुरुषगामी महिला/कन्या का जिक्र न हो। अर्थात कहानी में वर्णित कन्या, तरुणी, युवती और उसकी माँ चाची और मौसियों का संबंध मात्र पतियों से रहे, जाहिर बात है अगर कहानी की सभी महिलायें इस प्रकार होंगी तो पुरुषों का संबध भी अपनी पत्नी से , " घूंघट उठा रहा हूँ मैं ' प्रथम रात्रि को ही होगा और आदर्श स्थिति होगी।


क्योंकि अगर कोई महिला चरित्रहीन होती है तो साथ में कोई चरित्रवान पुरुष भी संसर्ग युक्त होता है , और दोनों के लिए न्याय की तराजू अलग अलग तरह से तो नहीं तौलेगी, अब इस कहानी में भी जो मुख्य पुरुष पात्र है उसका संबंध कई महिला पात्रों से अपनी पत्नी के सिवाय हो चूका है , तो फिर तो वो भी चरित्रहीन हुआ। और अब चरित्रहीनों का चरित्रचित्रण होना नहीं है , तो,...



पर ये कहानी, जैसा मैंने पहले भी कहा है कई बार , पहली बार नहीं पोस्ट हो रही है , थोड़ा सवर्धन परिवर्धन के साथ , ... फिर से , तो मैं इसके मिजाज में ज्यादा बदलाव नहीं कर पाऊँगी ,

अपना देश १५ अगस्त १९४७ को आजाद हो गया , और पाठकों भी पूर्ण स्वत्रंत्रता है , की जिस कहानी का मूड मिजाज उन्हें न पसंद हो जिसमें चरित्रहीन महिलाओं का चरित्र उकेरा गया हो ,
जहाँ चरित्र की एक मात्र परिभाषा देह से न जुडी हो ,

उस कहानी को सुधारने में अपना समय न वृथा करें क्योंकि उस कहानी के पात्र और लिखने वाली दोनों असुधारणीय हैं

हाँ और भी कहानियां है इस फोरम में ,

चरित्रवान इन्सेस्ट से भरपूर जहाँ चरित्रवान पुरुष, निज घर की ही महिलाओं कन्याओं को चरित्रहीन बनाने का आनंद उठाते है , वहाँ रसग्राही रस का अवगाहन कर सकते हैं, ...



और जो बचे खुचे दो चार पाठक, पाठिकाएं , सुहृदय मित्र होंगे उनके साथ यह कथा यात्रा आगे बढ़ेगी, जिस तरह से अब तक बढ़ रही है,..
.
 

Rahul201220

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कभी कभी किसी कहानी पर राहु की दशा लग जाती है या कुछ बात राहु काल में हो जाती हैं, तो करबद्ध प्रार्थना विनम्रता के साथ ही करनी चाहिए ,

और अगर कोई ऐसा हो जो ३० जून बुधवार को ११.३६ पर अवतरित हो, और १२. ०४ पर इस कथा के १०० से अधिक पृष्ठों को पढ़कर, उस पर अपनी राय बना कर अंतिम निर्णय भी सुना दे, मात्र २८ मिनट, कुछ समय तो कहानी को खोलने में लिखने में लगा होगा बस फोरम पर आगमन के २०-२५ मिनट के अंदर,

शाम के ५. ३१ पर किसी ने एक रिव्यू पेटिशन डालने का दुस्साहस किया उसे भी तुरत फुरत निबटा दिया गया,


मैं सिर्फ यही कह सकती हूँ की इस त्वरित निर्णय की क्षमता, जजमेन्ट पास करने का गुण अगर माँननीय न्याय करने वालों को मिल जाए तो हजारों लाखों मामले जो पेंडिंग हैं, उनका निबटारा भी ऐसे ही क्षिप्र गति से हो जाए, हाँ फैसला क्या होगा, किसके चरित्र पर क्या कहा जाएगा, इसकी गारंटी नहीं लेकिन फैसला तो हो जाएगा,

मेरे अंदर २० मिनट में १०० पेज पढ़ने की क्षमता तो नहीं है, पर मंथर गति से मैंने एक बार अपने लिखे को आद्योपांत पढ़ने की कोशिश की , निर्णय में कथा की नैरेटर की चाची का जिक्र भी है , चरित्रहीन होने का, पर मेरी मुलाकात इस कथा में उस चरित्रहीन चरित्र से नहीं हो पायी, पर ये मेरी लिमिट है, मैं निर्णय देने वाले न्यायाधीश पर कमेंट नहीं कर रही हं, न मेरी क्षमता है,

हाँ मैं इस भावना से सहमत हूँ जिससे व्याप्त होकर निर्णय सुनाया गया , अब ये कहानी तो जैसे चल रही है वैसे ही चलेगी, पर मेरा भी एक सुझाव है एकदम विनम्र सुझाव ,


निर्णय की एक प्रति इस फोरम के मॉडरेटर्स नियम निर्धारकों को भी भिजवा दी जाए और जैसे बाकी लेखक, लेखिकाओं को पता रहे की कहानी में कोई भी चरित्रहीन , बहु पुरुषगामी महिला/कन्या का जिक्र न हो। अर्थात कहानी में वर्णित कन्या, तरुणी, युवती और उसकी माँ चाची और मौसियों का संबंध मात्र पतियों से रहे, जाहिर बात है अगर कहानी की सभी महिलायें इस प्रकार होंगी तो पुरुषों का संबध भी अपनी पत्नी से , " घूंघट उठा रहा हूँ मैं ' प्रथम रात्रि को ही होगा और आदर्श स्थिति होगी।


क्योंकि अगर कोई महिला चरित्रहीन होती है तो साथ में कोई चरित्रवान पुरुष भी संसर्ग युक्त होता है , और दोनों के लिए न्याय की तराजू अलग अलग तरह से तो नहीं तौलेगी, अब इस कहानी में भी जो मुख्य पुरुष पात्र है उसका संबंध कई महिला पात्रों से अपनी पत्नी के सिवाय हो चूका है , तो फिर तो वो भी चरित्रहीन हुआ। और अब चरित्रहीनों का चरित्रचित्रण होना नहीं है , तो,...



पर ये कहानी, जैसा मैंने पहले भी कहा है कई बार , पहली बार नहीं पोस्ट हो रही है , थोड़ा सवर्धन परिवर्धन के साथ , ... फिर से , तो मैं इसके मिजाज में ज्यादा बदलाव नहीं कर पाऊँगी ,

अपना देश १५ अगस्त १९४७ को आजाद हो गया , और पाठकों भी पूर्ण स्वत्रंत्रता है , की जिस कहानी का मूड मिजाज उन्हें न पसंद हो जिसमें चरित्रहीन महिलाओं का चरित्र उकेरा गया हो ,
जहाँ चरित्र की एक मात्र परिभाषा देह से न जुडी हो ,

उस कहानी को सुधारने में अपना समय न वृथा करें क्योंकि उस कहानी के पात्र और लिखने वाली दोनों असुधारणीय हैं

हाँ और भी कहानियां है इस फोरम में ,

चरित्रवान इन्सेस्ट से भरपूर जहाँ चरित्रवान पुरुष, निज घर की ही महिलाओं कन्याओं को चरित्रहीन बनाने का आनंद उठाते है , वहाँ रसग्राही रस का अवगाहन कर सकते हैं, ...



और जो बचे खुचे दो चार पाठक, पाठिकाएं , सुहृदय मित्र होंगे उनके साथ यह कथा यात्रा आगे बढ़ेगी, जिस तरह से अब तक बढ़ रही है,..
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कोमल जी

कोई आपकी कहानी मे कुछ सख्त बात कह रहा है, इसका मतलब ये नही की आपकी लेखनी मुझे पसंद नही ,

जैसे अगर कोई जिसे आप पसंद करते है वो आपको प्यार से अपने हांथो से स्वादिष्ट खीर खिलाये तो तारीफ भी होनी चाहिए, लेकिन इसका मतलब ये नही कि वो उसी प्यार से अपने हांथो से गोबर / मिट्टी खिलाये तो भी आप तारीफ ही करे,

अच्छी को अच्छी और घटिया को घटिया कहना आपसी प्यार को कम नही करता है। आपको आपकी लेखनी मे सही बात लिखने को प्रोत्साहित करता है।

आपका सोचना गलत है कि मैंने 26 मिनट मे आपकी कहानी पर रिव्यू दे दिया,

मै 7-8 महीने से इस फोरम मे सिर्फ कहानी पढ़ता था, पर मैंने एकाउंट बनाया नही था,

पर आपका "मान- मनौअल" अपडेट पढ़कर लगा कि नायिका की इतनी घटिया साजिश के लिए कुछ जवाब देना तो जरूरी है,
क्योंकि 2-3 महीने पहले आपने किसी को रिपलाई किया था कि नायिका के पति को घर मे बहुत पाबंदी के साथ रखा गया था इसलिए नायिका अपने पति को और प्यार और खुशी देने के लिए उसकी "मन की गाँठों" को खोल रही है।

जबकि सच्चाई ये थी कि कहानी अनुसार नायिका के मायके की लगभग सभी औरते ही ( उसकी माँ, बहन आदि सभी ) एक के साथ संतुष्ट होने वाली नही थी, उनके लिए जहाँ मौका मिले वही सेक्स करने को तैयार रहती थी।

किन्तु जब नायिका की ऐसे घर मे शादी हुई, जहाँ नायिका को सबसे मस्ती की आजादी नही थी, फिर भी वो अपने मायके मे मस्ती करने की आस मे शांत रही,

लेकिन जब नायिका को उसके जीजुओ के साथ मस्ती का मौका नही मिला और नायिका को लगा कि ऐसे तो उसकी सारी मस्ती का प्लान फेल हो जायेगा,

तब "मान- मनौअल" के अपडेट मे साजिश रची गयी कि नायिका अपने पति को प्यार से चुतिया बनाते हुए अपने जीजू के नीचे लायेगी, जिससे उसका पति कभी भी उसके जीजू या नायिका के बाकी किसी यार को कुछ भी बोलने या नायिका को रोकने टोकने की औकात मे ही ना रहे।

क्या नायिका का पति चरित्रहीन था ? - नही।
नायिका ने खुद ही अपने पति को दूसरी औरतो के साथ सेक्स करवाया, ताकि वो भी जब अपने जीजू या दुसरो से सेक्स करे तो लेखिका के तर्क अनुसार बराबरी की बात करके मस्ती करती रहे।

अब नायिका को अपनी खानदान की महिलाओ जैसी सेक्स की भूक को मिटाने के लिए खुली छुट मिले, इसके लिए की गयी साजिश को आप नायिका का अपने पति के लिए प्यार कहेंगे तो मै यही कहूंगा की ऐसा प्यार आपको मुबारक।

प्यार को प्यार या साजिश को साजिश कहने मे बुराई क्या है।

तर्क के आधार पर तर्क होना चाहिए,

आपकी बात मे हाँ मे हाँ नही मिला रहा इसका मतलब मुझे महिला को गंदा बोलने वाला या उनके चरित्र पर इल्जाम लगाने वाले ना कहे,

कहानी अनुसार मेरी बात अगर गलत है तो आप तर्क देकर साबित करे,
कि शुरू से नायिका अपना स्वार्थ पूरा करने और अपने जीजुओ को खुश करने के लिए अपने पति से प्यार का दिखावा करते हुए साजिश नही रच रही थी , ताकि उसका पति नायिका की मस्ती मे रोक टोक लगाने की औकात मे ना रहे ?
 
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