कभी कभी किसी कहानी पर राहु की दशा लग जाती है या कुछ बात राहु काल में हो जाती हैं, तो करबद्ध प्रार्थना विनम्रता के साथ ही करनी चाहिए ,
और अगर कोई ऐसा हो जो ३० जून बुधवार को ११.३६ पर अवतरित हो, और १२. ०४ पर इस कथा के १०० से अधिक पृष्ठों को पढ़कर, उस पर अपनी राय बना कर अंतिम निर्णय भी सुना दे, मात्र २८ मिनट, कुछ समय तो कहानी को खोलने में लिखने में लगा होगा बस फोरम पर आगमन के २०-२५ मिनट के अंदर,
शाम के ५. ३१ पर किसी ने एक रिव्यू पेटिशन डालने का दुस्साहस किया उसे भी तुरत फुरत निबटा दिया गया,
मैं सिर्फ यही कह सकती हूँ की इस त्वरित निर्णय की क्षमता, जजमेन्ट पास करने का गुण अगर माँननीय न्याय करने वालों को मिल जाए तो हजारों लाखों मामले जो पेंडिंग हैं, उनका निबटारा भी ऐसे ही क्षिप्र गति से हो जाए, हाँ फैसला क्या होगा, किसके चरित्र पर क्या कहा जाएगा, इसकी गारंटी नहीं लेकिन फैसला तो हो जाएगा,
मेरे अंदर २० मिनट में १०० पेज पढ़ने की क्षमता तो नहीं है, पर मंथर गति से मैंने एक बार अपने लिखे को आद्योपांत पढ़ने की कोशिश की , निर्णय में कथा की नैरेटर की चाची का जिक्र भी है , चरित्रहीन होने का, पर मेरी मुलाकात इस कथा में उस चरित्रहीन चरित्र से नहीं हो पायी, पर ये मेरी लिमिट है, मैं निर्णय देने वाले न्यायाधीश पर कमेंट नहीं कर रही हं, न मेरी क्षमता है,
हाँ मैं इस भावना से सहमत हूँ जिससे व्याप्त होकर निर्णय सुनाया गया , अब ये कहानी तो जैसे चल रही है वैसे ही चलेगी, पर मेरा भी एक सुझाव है एकदम विनम्र सुझाव ,
निर्णय की एक प्रति इस फोरम के मॉडरेटर्स नियम निर्धारकों को भी भिजवा दी जाए और जैसे बाकी लेखक, लेखिकाओं को पता रहे की कहानी में कोई भी चरित्रहीन , बहु पुरुषगामी महिला/कन्या का जिक्र न हो। अर्थात कहानी में वर्णित कन्या, तरुणी, युवती और उसकी माँ चाची और मौसियों का संबंध मात्र पतियों से रहे, जाहिर बात है अगर कहानी की सभी महिलायें इस प्रकार होंगी तो पुरुषों का संबध भी अपनी पत्नी से , " घूंघट उठा रहा हूँ मैं ' प्रथम रात्रि को ही होगा और आदर्श स्थिति होगी।
क्योंकि अगर कोई महिला चरित्रहीन होती है तो साथ में कोई चरित्रवान पुरुष भी संसर्ग युक्त होता है , और दोनों के लिए न्याय की तराजू अलग अलग तरह से तो नहीं तौलेगी, अब इस कहानी में भी जो मुख्य पुरुष पात्र है उसका संबंध कई महिला पात्रों से अपनी पत्नी के सिवाय हो चूका है , तो फिर तो वो भी चरित्रहीन हुआ। और अब चरित्रहीनों का चरित्रचित्रण होना नहीं है , तो,...
पर ये कहानी, जैसा मैंने पहले भी कहा है कई बार , पहली बार नहीं पोस्ट हो रही है , थोड़ा सवर्धन परिवर्धन के साथ , ... फिर से , तो मैं इसके मिजाज में ज्यादा बदलाव नहीं कर पाऊँगी ,
अपना देश १५ अगस्त १९४७ को आजाद हो गया , और पाठकों भी पूर्ण स्वत्रंत्रता है , की जिस कहानी का मूड मिजाज उन्हें न पसंद हो जिसमें चरित्रहीन महिलाओं का चरित्र उकेरा गया हो ,
जहाँ चरित्र की एक मात्र परिभाषा देह से न जुडी हो ,
उस कहानी को सुधारने में अपना समय न वृथा करें क्योंकि उस कहानी के पात्र और लिखने वाली दोनों असुधारणीय हैं
हाँ और भी कहानियां है इस फोरम में ,
चरित्रवान इन्सेस्ट से भरपूर जहाँ चरित्रवान पुरुष, निज घर की ही महिलाओं कन्याओं को चरित्रहीन बनाने का आनंद उठाते है , वहाँ रसग्राही रस का अवगाहन कर सकते हैं, ...
और जो बचे खुचे दो चार पाठक, पाठिकाएं , सुहृदय मित्र होंगे उनके साथ यह कथा यात्रा आगे बढ़ेगी, जिस तरह से अब तक बढ़ रही है,...