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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २१ -

संध्या भाभी और गुड्डी

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बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की

संध्या भाभी मुस्कराते हुए, आँखे नचा के बोलीं,

" गुड्डी को ले जा रहे हो, आज रात हचक के पेलना, महीना उसका ख़तम हो गया न "

" हाँ, भौजी, नहा के निकली थी बाल धो के, खुद ही बोली, पांच दिन वाली आंटी जी गयीं, " मुस्कराते हुए मैंने कबूला।

" अरे तब तो आज बहुत गर्मायी होगी, छनछना रही होगी खुद ही लंड लेने को, मेरा महीना तो कल ख़तम हुआ था तब से ऐसी आग लगी थी, बुर में ऐसे चींटे काट रहे थे, वो तो तुमने अभी हचक के पेला है तो जा के ठंडक आयी है। कब से चक्कर चल रहा है तुम दोनों का ? "
भौजी अब एकदम पक्की दोस्त की तरह बतिया रही थीं। क्या बताता मैं, कुछ सोचा,... कुछ जोड़ा और बोल दिया,

" भौजी, ढाई तीन साल तो हो गया होगा, बल्कि शायद ज्यादा ही । "

संध्या भाभी आश्चर्य चकित हो के मुझे देखने लगीं, फिर कस के मुझे पकड़ के मेरी आँखों में देखते बोलीं

" ढाई तीन साल ? और अभी तक पेले नहीं हो उसको ? गुड्डिया सहिये कहती है, एकदम बुरबक हो। आजकल के लड़के तो सबेरे लड़की से बात होती है, नाम पूछते हैं और शाम को पर्स में बोरोलीन की ट्यूब और कंडोम लेके पहुँच जाते है और तुम तीन साल से लटकाये टहल रहे हो। "


कुछ देर वो चुप बैठी रहीं, मैं भी क्या जवाब देता, फिर वो कुछ सोच के, समझ के बोलीं,

" गुड्डी ही मना करती थी क्या, झिझकती होगी, लेकिन लड़की तो मना करेगी ही, लड़के का काम है थोड़ा जोर जबरदस्ती, थोड़ा मनाना, "


मैं क्या बोलता उनसे, झिझक तो मेरी सब गुड्डी ने ही दूर की, मैं तो खाली उसे देख के ललचाता रहता था।

उसकी कच्ची अमिया देख के मुंह में पानी आता था, ....और समझती तो वो थी ही, पिक्चर हाल के अँधेरे में उसने खुद मेरा हाथ खींच के अपने टिकोरों पे रखा था , डेढ़ पौने दो साल पहले और उसी बार पाटी से पाटी सटा के हम दोनों सोते थे नीचे बरामदे में गर्मी में, कभी बतियाते, कभी बस देखते रहते, और उसी ने खींच के मेरा हाथ अपनी शलवार के ऊपर, और मुझसे नाड़ा नहीं खुला तो खुद नाड़ा खोल के मेरा हाथ अंदर, उस भट्ठी को पहली बार मैंने छुआ था और गुड्डी ने भी मेरे पाजामे में हाथ डाल के ' उसका हाल चाल ' लिया था लेकिन तब भी मेरी हिम्मत नहीं पड़ी।



कुछ तो ये डर की बरामदे में खुले में, और कुछ मेरी झिझक, लेकिन संध्या भाभी की बात का जवाब तो देना ही था तो मैंने बोल दिया


" नहीं, नहीं गुड्डी ने कभी मना नहीं किया, झिझकता मैं ही ज्यादा था, फिर लगता था हम दू बरामदे में हैं कोई आ गया तो, गुड्डी ने आज तक मुझे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया। "

मैंने कबूल कर लिया।



" तो आज, कैसे " संध्या भाभी सब बात पूछ लेना चाहती थीं जैसे कम्पनी के कंसल्टेंट सब बात पूछ के उसी से कुछ रिपोर्ट बना के दे देत्ते हिन्


" अभी तो हलकी ठडंक है, हम लोग कमरे में ही रहेंगे, नीचे वाली मंजिल में, और भैया भाभी तो ऊपर वाले कमरे में और एक बार भाभी ऊपर चली जाती हैं तो फिर सुबह ही उतरती हैं, बर्तन वाली आती है तो दरवाजा मैं ही खोलता हूँ तो इसलिए इस समय,"

मैंने धीरे से अपनी प्लानिंग बताई।



और संध्या भौजी खिलखिलाने लगीं,

" एकदम सही कह रहे हो, बिंन्नो दी ( मतलब मेरी भाभी ) भी यही कह रही थीं की तेरे भैया तो एकदम चुंबक हैं, चिपक जाते हैं तो रात भर छोड़ते नहीं हैं, तीन बार से तो कम कभी नहीं और कई बार तो सुबह भी और कभी पिछवाड़ा भी , ....एक बार वो ऊपर गयीं तो फिर दरवाजा बंद तो सुबह ही खुलता है और घडी की सुई नौ पे गयी नहीं की ऊपर से पुकार आने लगती है "




मैं भी याद करके मुस्कराने लगा और बोला,

" एकदम यही है, कई बार मुझसे गप्प मारने में भाभी को देर हो गयी, और सबसे पहले मुझे अपने सामने बैठा के डांट डांट के खिलाती हैं, और नौ बज गया तो अपना खाना ले के ऊपर "


" तो नीचे और कोई नहीं, तोहार महतारी तो दक्षिण की तीर्थ यात्रा पे निकली हैं वो तो मई जून में आएँगी, "

संध्या भाभी को काफी कुछ मालूम था तब भी उन्होंने पूछा,

" नहीं एक मंजू भौजी हैं, ....घर की ही समझिये बल्कि घर से बढ़के, घर सम्हालती वही हैं वो पीछे दो कोठरिया बनी है उसमें रहती हैं , ...तो नीचे मैं और गुड्डी ही " मैंने मुस्कराते हुए भौजी से कबूला।



वो भी जोर से मुस्करायीं, उनकी आँखों में चमक आयी और फिर उन्होंने हलके से थोड़ा सोये थोड़ा जागे, जंगबहादुर को सहलाते, दुलराते

मेरे गाल पे छोटी सी चुम्मी ले के कहा, "स्साले फिर तो तेरी चांदी है, ...पेलना मजे ले ले के "
 
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ज्ञान की बातें -संध्या भाभी








लेकिन कुछ सोच के उन्होंने कुछ समझना शुरू किया,

" देख, तुम हो तो अभी नौसिखिया ही और गुड्डी का भी पहली बार ही होगा, इसलिए बता रही हूँ, जब नयी सील खोलनी हो, तो कुछ बातों का जरूर ध्यान देना चाहिए और ये जिम्मेदारी लड़के की है। सब सोचते हैं की टाँगे फैला लो, जाँघे खोल लो तो कच्ची कोरी बिल में घुसने का काम हो गया। एकदम गलत है, ये सब बातें ठीक हैं लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है तकिया। "

और बजाय रहस्य खोलने के वो मुस्कराने लगीं और मैं चकित हो के देखता रहा ।

मैंने मदन मंजरी से लेकर असली सचित्र कोकशास्त्र ८४ आसन सचित्र, बड़ा तक छुप छुप के पढ़ा था लेकिन कहीं तकिये का नाम नहीं आया। मैंने पूछ ही लिया

" मतलब "


" अबे स्साले तेरी उस भोंसड़ी वाली महतारी ने कुछ सिखाया नहीं, खाली अपने भोंसडे में, अरे भोंसड़ा चोदने और मेरी कुँवारी कोरी कच्ची छोटी बहिनिया को पेलने में बहुत फर्क है "


संध्या भौजी अपने रंग में आ गयी थीं, लेकिन उन्होंने मेरे बाल सहलाते हुए समझा दिया

" तकिया मतलब, ...चूतड़ के नीचे गुड्डी के तकिया जरूर लगाना. जितना चूतड़ उठा पाओगे, चार अंगुल, एक बित्ता, ....उतना ही उसकी बुर खुल के सामने आएगी और जब दोनों टांगों को गुड्डी के कंधे पे रखोगे न तो उसकी फूली फूली मालपुवे ऐसे बुर एकदम उभरी रहेगी,





तुझे दोनों फांको को फैला के तेल, वैसलीन जो भी लगाना हो, फांक दोनों फैला केअपने इस बदमाश को अंदर सरकाना हो, तो ज्यादा आसान रहेगा, वरना तेरे ऐसा बुरबक रात भर बिल का छेद ढूंढने में ही लगा देगा और मेरी गुड्डी तड़पती रहेगी। और हाँ एक बात और,..."

लेकिन बजाय एक बात और बताने के संध्या भाभी चुप हो गयीं, वो मुझसे कहलवाना चाहती थीं और मैंने पूछ ही लिया

" क्या बात भौजी? "

अब वो मेरे खूंटे को कस कस के दबा रही थीं, मूसल कड़ा भी हो रहा था, भौजी के मुलायम हाथ अब उसने पहचान लिए थे, वो बोलीं

" एक बात बल्कि, दो बात, एक तो कभी किसी लड़की को, औरत को, तोहार बहिन, महतारी, चाची, बूआ, मौसी जो भी हो, एक बार चोद के कभी मत छोड़ना। पहली बार में तो यही सोचने में लग जाता है लड़की को की स्साला टू मिंट नूडल है या लम्बी रेस का घोडा, और दूसरी बार ही असली मजा आता है, दोनों खिलाड़ी एक दूसरे को जान समझ लेते हैं। तो गुड्डी को एक बार पेलने के बाद गरम कर के दुबारा, बल्कि ऊपर तोहरी भाभी हैट ट्रिक करेंगी तो तुम भी कम से कम कम तीन बार, इस उम्र में रात सोने के लिए थोड़े ही होती है।

और मौका मिले तो दिन में भी नंबर जरूर लगाना, वैसे गुड्डी को कितने दिन के लिए ले जा रहे हो?


मैंने कुछ मन में जोड़ा, कुछ ऊँगली पे और संध्या भाभी को बताया,

" देखिये भौजी, चार दिन बाद तो होली है, और ओकरे बाद, ,...पहिले तो हम दोनों वहीँ आजमगढ़ में ही, लेकिन अब एक तो दूबे भाभी बोलीं हैं की रंग पंचमी के एक दो दिन पहले तो फिर उनकी बात और, गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी हो सकता है कानपूर से जल्दी आ जाएँ तो हम दोनों उनसे बोले हैं की उन लोगो को लेने के लिए मैं और गुड्डी स्टेशन पे रहेंगे, तब भी छह सात दिन, सात दिन तो पक्का "

मैंने जोड़ के बोला

और जब मैंने गुड्डी की मम्मी मतलब मम्मी बोला तो जिस तरह से समझ के संध्या भाभी ने देखा, ...एक पल के लिए मैं लजा गया।


लेकिन संध्या भाभी भी कुछ जोड़ घटाना कर रही थीं, जोड़ के बोलीं,

" तो चलो सात दिन और जैसा तेरा बम्बू है और ताकत है तो रात में तो किसी दिन तीन बार से कम नहीं और दिन में भी एकाध बार जरूर नंबर लगाना और कुछ नहीं हो तो चुसम चुसाई, तो २८ बार, और उतना नहीं तो २०-२२ बार तो कम से कम, तो मेरे इस मुन्ने की दावत हो गयी। "


और उनका मुन्ना, उनकी मुट्ठी से बाहर आने के लिए जंग कर रहा था, अब वो एकदम बड़ा और खड़ा दोनों हो गया था और भौजी भी अब खुल के मुठिया रही थीं। एक तो गुड्डी का नाम लेने से ही वो मेरा जंगबहादुर आप से बाहर हो जाता था फिर संध्या भौजी का कोमल कोमल हाथ

संध्या भौजी ने सुपाड़े को अंगूठे से रगड़ते हुए कहा


" और असली दावत तो तेरी यहाँ पहुँचने पे होगी, गूंजा, गुड्डी की बहने,...."


और उनकी बात काट के मैंने याद दिलाया " और आपकी ननद और उसकी बेटी "

वो जोर से हंसी, " पहले आज गुड्डी को तो निबटाओ, "

पर मुझे याद आया उन्होंने दो बात कही थी और सिर्फ एक ज्ञान तकिये वाला देकर बात मोड़ दी पर मैं नहीं भूला था, मैंने तुरंत याद दिलाया,



" भौजी, आपने दो बात कही थी लेकिन दूसरी बात, "

" तुम स्साले, कुछ भुलाते नहीं हो " मुस्करा के भौजी बोलीं और समझाया,

" बात चिकनाई की है और खास तौर से कोरी कच्ची कली की, और तोहरे किस्मत में खाली गुड्डी नहीं दर्जनो की झिल्ली फाड़ना लिखा है, पहले तो वो तोहार बहिनिया, ...दूबे भाभी का हुकुम है. फिर यहाँ आओगे तो गूंजा, और गुड्डी की बहने,.. और भी .


लेकिन तोहार मूसल जस है, कउनो खूब चुदी चुदाई हो तोहरे बहिन महतारी की तरह,.... तब भी हर बार तेल पानी जरूरी है। कुछ लोग ये सोचते हैं की बिल में पानी गिरा है तो सट्ट से चला जाएगा, दुबारा करने पे। सबके लिए होगा तोहरे लिए नहीं,... एक तो बुरिया में जो बीज गिरता है केतना होता है फिर गिरता तो एकदम अंदर है, तो उससे कितनी चिकनाई होगी। हाँ एक बार सुपाड़ा घुस जाने के बाद,... इसलिए जितनी बार करो तेल पानी लगा के, और गुड्डी के साथ तो आज रात एकदम ध्यान रखना,"



और जैसी उनकी आदत थी ऐन मौके पे वो चुप हो गयीं जिससे मैं निहोरा करूँ, जैसे कुछ लिखने वालियां होती हैं न ऐन मौके पे पोस्ट पे ब्रेक दे देती हैं और फिर जब तक कमेंट न करो, आगे की पोस्ट आती नहीं है, एकदम वैसे।



और मैंने बोला,

" बताइये न भौजी, गुड्डी के साथ क्या, आज की रात के लिए " मैं एकदम उकता रहा था।

संध्या भौजी ने एक पल के लिए अपने मोटू मुन्ना को सहलाना बंद किया और मेरी आँखों में देखती बोलीं

" देख सबसे पहली बात ये सिर्फ तेरे साथ नहीं है सब मर्दो के साथ,...ख़ास तौर से नए लौंडो के साथ कच्ची चूत चोदने को सब पगलाए रहते हैं लेकिन इंतजाम नहीं करते "

मुझे भी लगा इसी गलती से आज गुंजा बच गयी अगर थोड़ा सा भी कडुवा तेल या कुछ भी होता तो बिना फाड़े मैंने उसे जाने नहीं देता लेकिन लौट के आऊंगा तो सबसे पहले उसी का नंबर लगेगा, जेब में अब से बोरोलीन की ट्यूब या वैसलीन की छोटी शीशी,

लेकिन अबकी संध्या भाभी रुकी नहीं उनका ज्ञान जारी था,

" देख यार सबसे अच्छा तो सरसो का तेल, एकदम सटासट जाता है ,





लेकिन आधी रात में कहाँ रसोई में डब्बा ढूंढते फिरोगे, फिर दाग धब्बा और सूंघने वाले अगले दिन भी सूंघ लेते हैं की सरसो की तेल की झार मतलब गपागप हुआ है तो तेल तो नहीं तो वैसलीन, इसका इंतजाम, "

मैं उन्हें क्या बोलता, मेरे बस का कुछ नहीं है लेकिन वो जो मेरी सारंग नयनी है जो मेरे जनम जिंदगी का ठेका ले के पैदा हुयी है उसने वैसलीन, की सबसे बड़ी शीशी खुद खरीदी है, मुझे दिखा के।



" और उसके बाद ऊँगली "

संध्या भाभी से आज मैं बहुत कुछ सीख रहा था, फिर उन्होंने जोड़ा,

"बहुत लोग बिस्तर पे जाने पे के पहले माउथवाश, मंजन सब करते हैं लेकिन ऊँगली का ध्यान नहीं रखते। "

मैं ध्यान से सुन रहा था और भौजी बोलीं " ऊँगली में एक तो नाख़ून एकदम नहीं, और दूसरे साफ़, एकदम साफ़, जैसे अमिताभ बच्चन नहीं हाथ धो के दिखाते हैं डिटॉल वाले में बस वैसे ही, "



" ये ऊँगली पे इतना जोर क्यों " मैं सच में इन मामलों में एकदम स्लो था। एक प्यार की चपत मेरे गाल पे मार के बोलीं

" स्साले मादरचोद, वैसलीन लगाएगा किस चीज से? लंड से की अपनी महतारी की बड़ी बड़ी चूँची से ? अरे लंड से पहले तोहरी जानेजाना, गुड्डी रानी की बुरिया में का घुसी, इहे उँगरिया न। "

फिर एक जोर की चुम्मी संध्या भाभी ने मेरे गाल पे ली और कचकचा के गाल काट लिया और बोलीं

"देख साले, कब भी कोरी बुर चोदो, और हमार आशीर्वाद है तोहें एक से कली मिलेंगी जिनकी झांट भी ठीक से नहीं आयी हो,... तो पहली बात ये याद रखो, एक ऊँगली का तर्जनी का कम से कम दो पोर,... और दोनों ऊँगली तर्जनी और मंझली का एक पोर.

पहले एक ऊँगली डाल के खूब तेल में, वैसलीन में चुपड़ के हलके हलके धँसाओ, पुश मत करना, और फिर गोल गोल, एक तो उससे बिलिया थोड़ी खुलेगी, दूसरे लौंडिया स्साली गर्माएगी, पनियायेगी, खुद चूतड़ पटकेगी लंड लेने के लिए। और जब दो पोर देर तक गोल गोल तो वो ऊँगली निकल के फिर से चिकनाई लगा के उसके पीछे एकदम चिपका के दूसरी ऊँगली और थोड़ी देर बाद दोनों ऊँगली अलग अलग, चूत की अंदर की दीवार पे, ....सब मजा तो वहीँ हैं, कभी अंदर बाहर कभी कैंची की फाल की तरह फैला दिया, चीखेगी स्साली, जोर से चीखेगी, तो घबड़ाना मत। तेरा इत्ता मोटा सुपाड़ा है कम से कम दोनों फांके इतनी तो खुल जाएँ, की सुपाड़े का मुंह उसमे फंस जाये, तो,.... चिकनाई और ऊँगली। "



भौजी की सब बाते मैंने गाँठ बाँध ली।

उन्होंने कुछ बात ही ऐसे की माहौल सीरियस हो गया, पहले तो मुस्करा के वो बोलीं,

" देखो २०-२५ बार तो वहां और यहाँ भी तीन चार दिन रहोगे तो मौका निकाल के आठ दस बार, तो जाने के पहले ३० -३५ बार तो पेलोगे ही उसको, लेकिन अभी भी मान नहीं सकती की आज के जमाने में तोहरे अस कोई लड़का, लड़की ढाई तीन साल से पटी, खुद शलवार का नाडा खोल दिया, औजार भी इतना मस्त तगड़ा, हरदम टनटनाया रहता है फिर भी चोदा नहीं, एकदम ही अलग हो। "

मैं क्या बोलता बस मुस्करा दिया। ३० -३५ बार का जो उन्होंने टारगेट दिया था अब गुड्डी के साथ मुझे डाँकना था,

लेकिन संध्या भाभी इस बार बिना मेरी हुंकारी के बोलीं,

" देखो, चुदाई का रिश्ता तीन चार तरह का, एक तो रंडी टाइप, उसमें भी कोई बुराई नहीं, और वो नहीं जो दालमंडी में खड़ी रहती हैं जहाँ तेरी बहनिया आके,... मेरा मतलब स्कूल में नंबर के लिए पास कराई, नौकरी में प्रमोशन, पोस्टिंग कुछ भी बात के लिए, लेकिन दोनों का काम होता है दोनों की ख़ुशी, तो मुझे इसमें कोई गलत नहीं लगता।


लेकिन ज्यादातर, जब दोनों की मर्जी हो, दोनों गर्मायें हो , दोनोंमज़ा लेना चाहते हों,... अब हर बार जिसको चोदोगे या लड़की जिससे चुदवायेगी उससे शादी थोड़ी हो ।जायेगी अब मैंने ही तुझसे चुदवाया सच में ऐसा मजा आज तक नहीं आया था और अब जब भी मिलोगे, स्साले, बिना तुझसे गपागप किये, भले मुझे तेरा रेप करना पड़े मैं छोडूंगी नहीं , लकिन शादी तो मेरी पहले ही हो गयी है।

फिर गुंजा है और गुड्डी की बहने, और भी लड़कियां, औरतें,.... तो सबसे शादी थोड़े कोई करेगा और ये बात लड़के से पहले लड़की को मालूम होती है इसलिए वो गोली वोली का इंतजाम किये रहती है। हाँ मजा असली तभी आता है जब पहले मन मिले, मन करे और लड़का केयरिंग हो, और तुझसे बड़ा केयरिंग तो मैंने देखा नहीं। सही कह रही हूँ न "

अबकी उन्होंने हुंकारी भरवाई और मैंने भरी भी बोला भी, " एकदम सही कह रही है आप , "


अब कल रात में मैंने चंदा भाभी को तीन बार चोदा था, अभी संध्या भाभी और दोनों शादी शुदा और गुंजा बस चुदवाती चुदवाती रह गयी, दो छटांक तेल के चक्कर में,... तो उस का भी तो रिश्ता तो जीजा साली का था।



लेकिन अब जो संध्या भाभी ने बात की,

"तो वही गुड्डी के साथ, मतलब ३०-४० बार तो, मेरा मतलब की तुम दोनों का मजा लेने का या,... मतलब अब कैसे कहूं, अब हर बार चुदाई के बाद बियाह, और का पता तोहरे घर वाले कहीं और लड़की वड़की देख के, ....या कोई और लड़की वाले तोहरे घरे, मतलब, देखो गुड्डी को मैं जानती हूँ , वो न बोलेगी न बुरा मानेगी"



मैं धक्क से रह गया, कुछ बोल ही नहीं निकल रहे थे बस किसी तरह से आवाज फूटी,



" मैं, मतलब, ....मेरा क्या, गुड्डी नहीं बोलेगी लेकिन मैं फिर, ....फिर मेरे रहने का क्या मतलब, होने का क्या मतलब, ....अगर वो, "



जैसे कोई भीत भहरा गयी।




जो कुछ मैंने कभी गुड्डी से भी नहीं, किसी से भी नहीं कहा था वो सब मेरे मुंह से निकल रहा था, मुझे पता भी नहीं
 
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गुड्डी -सिर्फ गुड्डी





लेकिन अब जो संध्या भाभी ने बात की,

"तो वही गुड्डी के साथ, मतलब ३०-४० बार तो, मेरा मतलब की तुम दोनों का मजा लेने का या, मतलब अब कैसे कहूं, अब हर बार चुदाई के बाद बियाह, और का पता तोहरे घर वाले कहीं और लड़की वड़की देख के, या कोई और लड़की वाले तोहरे घरे, मतलब, देखो गुड्डी को मैं जानती हूँ , वो न बोलेगी न बुरा मानेगी "



मैं धक्क से रह गया, कुछ बोल ही नहीं निकल रहे थे बस किसी तरह से आवाज फूटी,



" मैं, मतलब, मेरा क्या, गुड्डी नहीं बोलेगी लेकिन मैं फिर, फिर मेरे रहने का क्या मतलब, होने का क्या मतलब, अगर वो, "

जैसे कोई भीत भहरा गयी।



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जो कुछ मैंने कभी गुड्डी से भी नहीं, किसी से भी नहीं कहा था वो सब मेरे मुंह से निकल रहा था, मुझे पता भी नहीं चल रहा था मैं क्या बोल रहा हूँ , संध्या भाभी को कैसे लगेगा, बस जो बादल इतने दिन से उमड़ घुमड़ रहे थे सब बरस गए।



संध्या भाभी बस मुझे देख रही थीं।


" भौजी, मुझे गुड्डी चाहिए। कम से कम इस जन्म के लिए, उस के बिना तो मेरे रहने का ही मतलब नहीं। कैसे बताऊँ। वो मुझे एक दिन सेक्स न करने दे, चलेगा। चुम्मी भी न दे तो भी, छूने भी न दे। वो जब पास में रहती हैं न तो भले मुझे बात भी न करे, अपने काम में बिजी रहे , तब भी, अपनी सहेलियों के साथ भी रहे न तो जिस तरह से एक बार मुड़ के देख लेती है, हल्के से मुस्करा देती हैं, बस। उससे ज्यादा क्या चाहिए किसी को जिंदगी में। इसलिए ये तो मैं सोच भी नहीं सकता। "


संध्या भाभी कभी मेरे बाल सहलातीं कभी कभी गाल और बस हलके हलके मुस्करा रही थीं। और मैं बिना रुके बोले चला जा रहा था



" आप सोच नहीं सकती, मुझे उससे कुछ कहना नहीं पड़ता, मेरे बिना कहे उसे पता चल जाता है की मेरा क्या मन कर रहा है। और मेरी कोई परेशानी हो, छोटी बड़ी, जो मुझे एकदम परेशान किये हो, कुछ न समझ में आ रहा हो, उससे बोलूं तो बस एक मिनट में, और फिर मेरा काम आसान। वो रहेगी तो बस मुझे सोचना ही नहीं, सोचने का काम उसका और मेरा काम बस जो वह कहे उसकी बात मान लूँ "



" और उसकी बात टालने की तेरी हिम्मत नहीं "

मेरे कान मरोड़ते हुए संध्या भाभी मुस्करा के बोलीं,


" बुद्धू हूँ लेकिन इतना भी नहीं, जो उसकी बात टालूँ, ...पिटना है क्या " मैं भी मुस्कराते हुए बोला,



,मैं उन्हें क्या बताऊँ, जो मेरी नौकरी मिली, वो भी सब, धौलपुर हाउस में इंटरव्यू के आधे घंटे पहले मेरी हालत ख़राब थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सब कह रहे थे बड़ा टफ बोर्ड है, एक शिफ्ट में चार लोगो का इंटरव्यू, जो जो इंटरव्यू दे के आ रहे थे पसीने पसीने, और ये सोच सोच के मेरी हालत खराब, क्या पूछेंगे, कहीं सब भूल गया।

आखिर में मैंने गुड्डी को फोन लगाया, वो हसंते हुए बोलीं, 'हो गया' , और मैंने कहा " यार मेरी फटी पड़ रही है और तू हंस रही है, बार बार,"


मेरी बात काटते वो सुनयना बोली,

" अरे यार फटेगी तो तेरी है ही और अच्छे से फटेगी, ...तेरे शहर के मोची भी नहीं सिल पाएंगे, लेकिन तेरी फाड़ेंगे मेरे मायके वाले और मैं , और उनके अलावा और किसी का हक़ नहीं है तेरी फाड़ने का,.... और मन में, ...तो एक इत्ती अच्छी प्यारी सी सेक्सी लड़की से बात कर रहे हो, उसी के बारे में सोचो, सब चिंता भाग जायेगी। "


और मैंने वही किया, बस उसी के बारे में,... और एकदम नॉमर्ल हो के इंटरव्यू, २५० में २२५ मिला और रैंक भी अच्छी। जिस दिन रिजल्ट आया वो घर में ही थी और सब के साथ पीछे पड़ी मिठाई खिलाओ, और मैंने उसकी कच्ची अमिया को देख के बड़ी हिम्मत से कह दिया


" मिठाई तो मुझे खानी है " बस उस ने मेरी ओर से अनाउंस कर दिया की मैं सबको पिक्चर दिखाने वाला हूँ और पिक्चर में मेरा हाथ खींच के अपनी हवा मिठाई पे



हम दोनों चुप थे, संध्या भाभी मुस्करा रही थीं, बोली,

"तुम पागल हो। और फिर पुछा गुड्डी से कुछ कहा, आजकल तो लड़के नाम बाद में पूछते हैं आई लव यू पहले बोलते हैं, तो ये सब,....कभी उससे कहा है,... आई लव यू बोला है, गुड्डी को।"



मैं उचक गया।

" अरे भौजी पिटना है क्या, " हंस के बोला।

और भौजी ने प्यार से एक चांटा मेरे गाल पर लगा दिया. लेकिन हल्के से नहीं और बोली क्या ऐसे मारती है , वो।

" नहीं नहीं इससे भी जोर से, लेकिन मुक्का और पीठ पे, फिर पूछती है लगा तो नहीं और फिर सहलाती है " हंस के मैंने अपनी,... गुड्डी की बात बताई।




" तो आज तुम बदला लेना, मार के उसकी, तुम पहले सहलाना फिर मारना " खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं।

मैं भी हंसने लगा लेकिन भौजी फिर सीरियस हो गयीं।


" तेरे यहाँ फैसला लेगा कौन, तेरी महतारी तो लेंगी नहीं " और मैं कुछ बोलता उसके पहले उन्होंने राज खोला।

बात ये थी की जब मेरी माँ सावन में महीने भर गुड्डी के यहाँ थीं, उनकी मनौती थी सावन में बनारस में रहने की और हर सोमवार....तो मेरी अपनी भाभी ने भी बोला और गुड्डी की मम्मी ने भी तो, वो गुड्डी के यहाँ ही रुकी थीं महीने भर तो सावन फिर पंद्रह बीस दिन और .

तो संध्या भाभी उसी समय,... उनका भी शादी के बाद पहला सावन था तो मायके में आयी थी और फिर दोनों लोगों में पक्की दोस्ती हो गयी।

पहले तो मेरी भाभी से संध्या भाभी का बहन का रिश्ता तो मेरी माँ से सास बहू का रिश्ता और छेड़छाड़, फिर घाट पे दोनों लोग साथ साथ,... तो एकदम सहेली वाला मामला भी और शुद्ध बनारसी गारी का भी, संध्या भाभी बोलीं की अगर किसी दिन बिना गरियाये बात की, तो वो पूछती 'तेरी तबियत ठीक है न'। तो उन्हें भी मालूम था की साल में पांच छह महीना तो घर से बाहर ही,.... और किसी काम के लिए कोई पूछता तो वो कह देती, 'बहू क्यों लायी हूँ अब जो फैसला करना होगा वो करेगी। '

इसलिए मेरे बारे में भी उनका यही फैसला था जो कुछ होगा,... उनकी बहू मतलब मेरी भाभी।

" तो तेरे भैया और भाभी बचे " संध्या भाभी अब लॉजिकल सोच रही थीं।

और मैं जोर से हंसा,


" भैया तो घर में घुसते ही सीधे ऊपर अपने कमरे में और भाभी का पांच मिनट में बुलावा आ जाता है। एक बार किसी ने मेरी शादी के बारे में बोला भी तो भैया ने तुरंत मेरे और भाभी के ऊपर टाल दिया, की आनंद और उनकी भाभी जाने, तो भाभी बोलीं की देवरानी मेरी आएगी की इसकी,... तो आनंद से क्या मतलब?"


संध्या भाभी ने बात मुझे आगे नहीं खींचने दिया और बोलीं की इसका मतलब की बिन्नो दी ही फैसला करेंगी, और देखो, कौन औरत अपनी छोटी बहन को देवरानी नहीं बनाना चाहती, और गुड्डी तो उनकी सगी छोटी बहन से बढ़ के, लेकिन बोलना तुझे ही पडेगा उनसे, बिना तेरे कहे वो कुछ करेंगी भी नहीं और अबकी जब जा रहे हो तो कुछ भी करके होली के पहले उन्हें बोल देना।

लेकिन तुझे ये बात भी सोचनी चाहिए की गुड्डी के यहाँ कौन फैसला करेगा और किस तरह से करेगा।




बात तो संध्या भाभी की एकदम सही थी, ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। लेकिन संध्या भाभी ने ही हल भी बताया।
 
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गुड्डी की मम्मी और गुड्डी के लिए शर्तें


" देखो गुड्डी के यहाँ बिना गुड्डी की मम्मी के कहे तो पत्ता भी नहीं हिलता, सब फैसला वही लेती हैं तो उनका मानना जरूरी है और उन्होंने पहले से दूबे भाभी को बोला था की वो गुड्डी के मरद में चार बात देखेंगी तभी हाँ करेगीं । हम लोगो की आपस की बात तुझे बताना तो नहीं चाहिए लेकिन तुम्हारी इतनी खराब हालत है तो बोल देती हूँ।"

जैसे किस को खजाने का नक्शा मिल जाए मैं इस तरह से गौर से संध्या भाभी की बात सुन रहा था, लेकिन मैं जानता था की ज्यादातर माँ अपनी बेटियों के लिए कैसा लड़का खोजती हैं, या मैं सोचता था की मैं जानता हूँ, और मैंने बोलना शुरू कर दिया,

" पहली बात तो नौकरी, वो भी सरकारी, ....तो मुझे नौकरी मिल भी गयी है, ट्रेनिंग में भी तनख्वाह पूरी मिलती है और वो ट्रेनिंग भी बस दो चार महीने में ख़तम होने वाली है तो अगर नौकरी तो



लेकिन मैं अपनी नौकरी की और यशोगाथा गाता उसके पहले भौजी ने पतंग की डोर काट दी

" नहीं नहीं नौकरी नहीं, ....नौकरी भी है लेकिन वो सबसे बाद में . गुड्डी की मम्मी का मानना है की आज कल तो लड़कियां भी पढ़ लिख के कमा लेती हैं और मरद है तो कुछ कमायेगा ही, असली बात कुछ और है लेकिन स्साले घबड़ा मत उसमे तुझे १०० में ११० नंबर मिलेंगे "

हँसते हुए वो बोलीं और कस के मेरे तन्नाए मुन्ना को पकड़ के मुठियाने लगीं, और बोलीं


" गुड्डी की मम्मी का मानना है की ये हथोड़ा जबरदस्त न हो तो भी ठीक ठाक होना चाहिए, ५ इंच वाला नहीं चलेगा। तो तेरा तो जबरदस्त ही नहीं सुपर जबरदस्त है, जितना लोग तेल लगा के मुठिया के बहुत जोर लगा के खड़ा करते हैं स्साले उतना तो तेरा सोता रहता है तब होता है, और खड़ा होने में भी टाइम नहीं लगाता फिर आज सबने देख भी लिया, नाप जोख भी कर लिया,



और दूबे भाभी भी यही मानती है की लड़की जब तक ढंग से चोदी न जाए, न उसे ठीक से नींद आती है न सुख मिलता है। तो जो तुम ये बोलते हो न की तुम्हे तो गुड्डी को सिर्फ देखना है, साथ रहने से ही काम हो जाएगा तो एकदम नहीं होगा। कल ही देखना तेरी होने वाली सास का फोन आएगा सुबह अपनी बेटी के पास और सिर्फ एक चीज पूछेंगी, ' चुदी की नहीं' , इसलिए सिर्फ पेलने से नहीं, बल्कि हचक हचक के पेलने से काम बनेगा सुबह गुड्डी की आवाज से उसकी महतारी को लगे की,... बेटी जम के चुदी है "



" एकदम भौजी " मैंने प्वाइंट नोट कर लिया और मन तो मेरा भी यही कर रहा था, अब चोर सिपाही बहुत होगया अब खेल खिलाडी का होना चाहिए।

" और सिर्फ लम्बा मोटा ही नहीं नंबरी चुदक्क्ड़ होना चाहिए, उसमें थोड़ा तुममे झिझक है, शरमाते बहुत हो लेकिन बनारस ससुराल होगी तो ससुराल वालियां सब ठीक कर देंगी। "

संध्या भाभी ने प्यार से मूसल को दुलराते हुए कहा और जोड़ा

"और गुड्डी के साथ तो एकदम खुल के बोला करो, लंड, बुर. चुदाई उसके बिना मजा नहीं आता, समझे बुद्धू राम। "


और संध्या भाभी ने एक खूब प्यार भरी चुम्मी ले ली और मैं शर्मा गया।

" और दूसरी बात भौजी " मुझे कुछ भी हो इस चार की कसौटी पे पूरी उतरना था।

" दूसरी बात की चिंता न करो हम सबने देख लिए और वो आएँगी कानपुर से तो उन्हें पता भी चल जायेगी। "संध्या भाभी मुस्कराते बोली और फिर उन्हें लगा अभी भी मैं दुविधा में हूँ तो उन्होंने वो प्वाइंट भी बता दिया ,

' केयरिंग, ख्याल रखने वाला, केतना भी चोदू क्यों न हो और गर बीबी का ख्याल न करे तो फिर जिंदगी बेकार लड़की की। लेकिन हम सब ने देखा, मस्ती तुम मेरे साथ कर रहे थे , रीत के साथ लेकिन निगाह बार बार गुड्डी की ओर ही थी , और वो मुस्करा के और उकसा रही थी। तो बिना कहे कोई भी कह देगा गुड्डी को तुझसे बात मनवानी नहीं पड़ेगी तुम खुद उसके पीछे पीछे,..."

लेकिन ये बात मुझे जंची नहीं मैंने बोल दिया,

'लेकिन उसमें मेरी क्या गलती, गुड्डी है ही ऐसी, ....उसे देखने के बाद मैं सोच नहीं सकता,... मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है बस जो वो कहे। "

संध्या भौजी खिलखिला के हंसी और मेरे सीधे होंठों पे चुम्मी ले ली और बोली, "किस्मत अच्छी है उसकी भी तेरी भी , लेकिन एक बाद उसकी मम्मी की मैं भी मानती हूँ,.... ख्याल रखने का मतलब ये नहीं की तुम उसी से बंधे रहो, ...जिस से मन करे उसको चोदो, लेकिन धोखा नहीं देना चाहिए. उसकी स्साले मादरचोद तेरी औकात नहीं है और वो दस बार किसी लड़की को बोलेगी तब तुम उसकी ओर , ....इसलिए इस पर्चे में भी पूरे नम्बर मिलेंगे।

और तीसरा और चौथा, मैं जल्दी से जल्दी ये इम्तहान पास करना चाहता था, तो मैंने संध्या भाभी को आगे बढ़ाते हुए पूछा,

गुड्डी की मम्मी की शर्ते मालूम होने का मतलब परचा आउट होना है। और गुड्डी को पाने के लिए तो मैं कुछ भी करना चाहता था।


संध्या भौजी भी, जिसे देवर के मन की बात मालुम हो जाएँ तो और उसे तंग करती हैं बस उसी तरह से मुझे आँखों से चिढ़ा रही थीं और मुझे चार बार बोलना पड़ा, भौजी प्लीज, बोलिये ना।


" देख यार, मान लो मरद मस्त चुदककड़ हो, तेरी तरह से बुद्धू न हो, बीबी का भी ख्याल करता हो, एकदम असली तेरी तरह का जोरू का गुलाम, लेकिन ससुराल में सब एक से एक कंटाइन,.... तो का जिंदगी होगी बेचारी की, मर्द तो रात को आएगा, टांग उठाएगा, धँसायेगा, बीबी ज्यादा बोलेगी, उसकी माँ बहन भौजाई की बुराई करेगी तो टाल देगा, बोलेगा, ' सुबह यार आफिस जाना,... यही ऑफिस में दिन भर बॉस किच किच, सोने दो '

और उसकी बीबी को तो दिन भर सास जेठानी ननद को झेलना पडेगा न।

ननद तो चलो पैदाशी छिनार कुछ दिन बाद ससुराल चली जायेगी या अपने यारों में उलझी रहेगी, लेकिन असली खेल तो सास, जेठानी, तो उनका कहना है की लड़के के साथ उसकी माँ और भौजाई को भी ,.... कोई पहले की जान पहचान वाले लोग हों तो बहुत अच्छा ,"



मैंने चैन की साँस ली और झट से बोला, लेकिन भाभी तो हमारी,


और संध्या भाभी बोलीं, ' बिन्नो दी की तो बात ही मत करना, हम सब की आँख की पुतरी है लेकिन उनहुँ से ज्यादा दोस्ती अब गुड्डी की ममी की तोहरी महतारी से, यह सावन ने जो महीने भर थीं उनके साथ, "

मुझे गुड्डी की मम्मी, मतलब मम्मी की बात याद आ गयी, क्या क्या गन्दी गन्दी गालियां और बातें, और सावन के बारे, हाँ ये बात सही है की सावन भर वो यहीं थीं, मैं ही छोड़ के गया था, इसी बहाने गुड्डी से मिलना भी हो गया और मैंने भाभी से कह दिया ,

" अरे भौजी, वो तो पता नहीं, मम्मी अइसन किस्सा बना बना के कह रही थी बनारस के पंडा, १०० से ऊपर "

" एकदम सही कह रहे हो एकदम बढ़ा चढ़ा के बोलती हैं कभी कभी, " संध्या भाभी हँसते बोलीं,

फिर जोड़ा, ' १०० से ऊपर तो कतई नहीं पण्डे, मैंने ही तो लिस्ट बनायीं थी, कुल ५१ थे शुभ संख्या। सब का फोन नंबर दिन मेरी डायरी में , अरे जेवन कराने की बात थी, सावन भर पंडो को, लेकिन गुड्डी की मम्मी बोलीं जेवन के बाद नेग भी तो देने होता है गोड़ छू के, और यहाँ बीस आना से काम नहीं चलेगा जेवन के बाद जोबन क दान और तीनो गोड़ छूना होगा तो बस, बनारस के पण्डे सब नंबरी चोदू,, ....'




तो गुड्डी की मम्मी से और मुझसे उनकी पक्की दोस्ती हो गयी कई बार तो साथ साथ, घाट पे , नदी नहाते समय भी खूब मस्ती, बस,

तो ये सवाल भी तेरे पक्ष में जाएगा और चौथी बात नौकरी वाली, सरकारी तो वो तुम्हारी है ही। "

नौकरी की बात आते ही मैंने प्लस प्वाइंट को लीवरेज किया, " एकदम भाभी और जल्दी ही पोस्टिंग "


पर भौजी ने उस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और लेकिन कह के रुक गयी और मेरी साँस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे
 
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मम्मी


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पर भौजी ने उस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और लेकिन कह के रुक गयी और मेरी साँस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे


और मैं जानता था भौजी खुद ही राज खोलेंगी और लम्बी सांस लेके वो बोलीं,

" देखो इत्ते दिन में तुम समझ गए हो गुड्डी के पापा को, ...महीने में 20 दिन तो बाहर रहते हैं और जब रहते भी है तो कभी काम तो कभी दोस्ती यारी, "

संध्या भाभी चुप हो गयीं, और मैं भी समझ गया,

कल ही तो की बात है, जब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहने पहले तो वो सीधे स्टेशन पर ही पहुंचे और फिर जब बाद में ट्रेन चलने के घण्टे दो घंटे बाद में गुड्डी ने मम्मी से बात कराई तो वो अपनी बर्थ श्वेता के लिए छोड़ के,.... दूसरे डिब्बे में किसी अपने दोस्त के पास, ...और उनके नहीं रहने पे मम्मी और दोनों बहने जयादा खुले खुले,

" और कुछ नहीं, कुछ उनकी नौकरी है ऐसी आधे टाइम पे तो टूर पे और फिर काम धंधे का प्रेशर, और दोस्ती यारी भी ज्यादा है, इसलिए "

संध्या भाभी ने समझाया और बात आगे बढ़ाई,

" तो गुड्डी क मम्मी अस सोचती हैं की जो उनकी सबसे बड़ी बेटी का, ....मतलब बड़ा दामाद हो, एकदम हंसमुख, खुला खुला और सबसे बढ़ के उनका भी हाथ बटावे, और दोनों छोटी बहनों का भी, मतलब उन्हें बच्ची न माने,... साली माने, वो तो अभी से दोनों को चिढ़ाती हैं, 'ज्यादा दिन इन्तजार नहीं करना पड़ेगा तुम दोनों का, गुड्डी का बियाह मैं जल्दिये करा दूंगी, फिर वो तुम दोनों की भी झिल्ली फाड़ेगा'' लेकिन वो दोनों भी इतनी खुली, मेरे सामने ही, वो चिढ़ा रही थीं तो मंझली जो बहुत कम बोलती है, बोली, ' मैं तो दीदी के पहले कोहबर में ही नंबर लगवा लूंगी, ' तो छुटकी तो हर बात में उससे आगे रहने की होड़ में, चढ़ के गुड्डी से बोली, " कोहबर तक मैं इन्तजार न करने वाली, सगाई में ही, दीदी उनको ऊँगली में अंगूठी पहनाएंगी तो मैंने अपनी गुलाबी अंगूठी, ' और उसकी बात काट के उसकी मम्मी बोलीं, ' तिसरकी टांग में ' और सब एकदम खुल के '



और मुझे गलती का अहसास हुआ.


साल में एक दो चक्कर तो औरंगाबाद का, गुड्डी के घर का, लग ही जाता था, लेकिन वहां पहुँचते ही गुड्डी के अलावा मुझे कुछ दिखता नहीं था, वो पास में न भी हो, उसकी बहने मुझसे बात कर रही हों लेकिन ध्यान मेरा वहीँ,गुड्डी के पास, में एकदम गुड्डी की दोनों छोटी बहनों को ऐसे नजअंदाज करता था जैसे वो वहां हों ही नहीं। लेकिन कल से दो तीन बार बात हो गयी थी फोन से, तो मैं मुस्कराते हुए बोला,

" फोन से बात हुयी थी उन लोगों से कल ट्रेन में थी वो और आज कानपुर पहुँचने पे "

लेकिन संध्या भाभी सख्त एक्जामिनर थीं, तुरंत पूछ लिया, ' फोन किसने किया था'


' गुड्डी ने , फिर उसने मुझसे मम्मी से बात कराई, फोन पे छुटकी और श्वेता भी थीं। "

मैंने बोला लेकिन मेरे जवाब के पूरा होते होते मुझे अहसास हो गया की गलती कहाँ हुयी और भौजी ने तुरंत कान पकड़ लिया,

" तुम्हारे पास फोन नहीं है क्या, तुम नहीं कर सकते थे ? "

मैंने झट कान पकड़ लिया, मेरा चेहरा भी उतर गया और भौजी ने मामला हल्का करना लिए के मुझे गरियाना शुरू कर दिया,

" फोन अपनी महतारी के भोसड़े में तो नहीं घुसेड़ दिया था,... की अपनी उस एलवल वाली बहिनिया के लिए ग्राहकों की एडवांस बुकिंग कर रहे थे, वैसे तेरी महतारी के ग्राहक भी बहुत है इस बनारस में, जो जो पण्डे सावन में उतरे थे सब गुणगान कर रहे हैं "

मैंने बोल भी दिया और सोच भी लिया आज घर पहुँच के नहीं तो कल सुबह पक्का लेकिन भौजी ने दूसरी गलती का भी अहसास दिला दिया

" बात सिर्फ गुड्डी की महतारी से ही मत करना, .....उनकी दोनों बेटियों से भी "




और मैंने मूढ़मति की तरह सर हिलाया,

सच में गलती यही थी की मेरा तो बस अर्जुन की तरह ध्यान चिड़िया की आँख पे, गुड्डी पे ही और ये बात भी थी की दोनों को मैं एकदम छोटी समझता था। रिक्शे पे भी गुड्डी ने जानबूझ के मुझे अपनी दोनों बहनों के साथ और मुझे अंगूठा दिखा के मम्मी के साथ, और छुटकी रिक्शे पे भी जिद कर रही थी, मेरी गोद में बैठने की लेकिन मैंने हड़का लिया, गिर जाओगी और उसने जो डबल मीनिंग डायलॉग धीरे से बोला था वो मुझे अब समझ में आया,

" मैं तो नहीं गिरूँगी, लेकिन आप तो नहीं गिर जाओगे ? '।

मेरा ध्यान तो अगले रिक्शे पे बैठी गुड्डी पे था, जो शलवार कुर्ती में बहुत हॉट लग रही थी। और स्टेशन में भी उन दोनों को मैंने बच्चो वाली कॉमिक और चॉकलेट दिलवाई, तो छुटकी बोली,
' गुड्डी दी को कौन सी चॉकलेट खिलाते हैं हमें भी वही चाहिए '

लेकिन किसी तरह दोनों को डिब्बे में चढ़ाकर मैं अपनी सारंग नयनी का दर्शन लाभ के चक्कर में ,


फिर मुझे चंदा भाभी की बात याद आयी,... जब वो अपनी होली में पहली चुदाई जो उनकी पड़ोस के एक जीजा ने की थी, उसका जिक्र करते हुए बताया था की वो छुटकी की ही उम्र की थीं फिर आगे ये भी जोड़ा की पिछले साल होली में उन्होंने छुटकी की बिल में खूब ऊँगली की थी, बहुत मस्ती की और उसकी चिड़िया एकदम उड़ने को तैयार है,

मैंने संध्या भाभी से सिर्फ ये कहा, " भौजी चंदा भाभी कह रही थीं की पिछले साल होली में उन्होंने छुटकी के साथ,.... "



भौजी के गाल गुलाबी नैन शराबी हो गए उस होली को याद कर के, बोलीं

"सच में बहुत मजा आया था, छुटकी, मैं और श्वेता, और गुड्डी की मम्मी, चंदा भाभी, दूबे भाभी, फिर कुछ सोच के वो मुस्करायी और कस के मुंझे डांटा



" अच्छा तो तू सोचता है की कुँवारी लड़की की ऊँगली कैसे, ....कहीं झिल्ली फटफटा तो नहीं जायेगी, एकदम नहीं। तुझे मालूम भी है की झिल्ली होती कहाँ है और कैसी होती है। स्साले, तीन साल से लौंडिया पटी है और अब तक पेली नहीं, ......तेरा ऐसा बुरबक, ये तो अच्छा है की गुड्डी है,... दूसरी कोई होती तो कोई और ढूंढ लेती।

पहली बात तो झिल्ली थोड़ा नीचे होती है, अंदर, तो एक पोर, दो पोर ऊँगली करने से फटेगी नहीं।

दूसरी बात, झिल्ली बहुत इलास्टिक होती है, एकदम लचीली, तो ऊँगली का जरा सा जोर पड़ भी गया तो नीचे धंस जाती है

और तीसरे जो लड़किया एक दूसरे को या खुद ऊँगली कर के झाड़ती हैं न वो सबसे पहले तो दोनों फांको को आपस में रगड़ के, या हथेली से रद्द के और ऊँगली डाला भी तो लंड की तरह धक्के नहीं मारती, जैसे कान खुजाते हैं बस वैसे ही, थोड़ा सा मोड़ के अंदर घुसेड़ के और एक बार बुर की अंदर की दीवार पे ऊँगली रगड़ती हैं न तो बेचारी नहीं लड़की का तो पानी निकलना तय है एकदम। "


और फिर संध्या भाभी, टाइम मशीन पर बैठ कर पिछले साल की होली में पहुँच गयीं।





और बात और किसकी, होली की और रीत की । बोलीं,

" इस साल होली में बहुत मस्ती हुयी, रीत तो एकदम उधरा गयी थी, तुम्हारे और गुड्डी के चक्कर में। नहीं तो, लेकिन पिछले साल भी, बहुत दिन बाद पहली बार वो होली में निकली, ....निकली क्या गुड्डी खींच के ले आयी और उसके बाद उन दोनों ने क्या धमाल मचाया, लेकिन आज की तरह नहीं, बस घण्टे दो घंटे, अगले दिन दोनों का ही परचा था, गुड्डी का दर्जा दस का मैथ्स का और रीत का बारहवीं का अंग्रेजी का, इसलिए, और मंझली की भी तबियत खराब थी। "

" क्या हो गया था मंझली को,"? मैंने पूछा.

मंझली मतलब, गुड्डी की मंझली बहन, जो उस समय नौवीं में थी।


संध्या भाभी जोर से खिलखिलाई,


" होगा क्या, स्कूल में जबरदस्त होली हुयी, घंटों



और कोई गड्ढा था उसमे पानी भरा था तो मंझली ने कुछ लड़कियों को उसमे धकेला तो चार पांच लड़कियों ने पकड़ के उसे भी, और सब जगह, अच्छी तरह से, बस भीग गयी थी तो सर्दी जुकाम और बुखार, तो एक दो घण्टे के बाद रीत और गुड्डी एक ही कमरे में बंद कर के, पढाई से ज्यादा ये डर था कहीं भीग गयीं तो इम्तहान, और मंझली भी उसी कमरे में और कमरा हम लोगो ने बाहर से भी बंद कर दिया था।

" तो फिर होली का, ....रीत गुड्डी और मंझली तो, " मैं अपनी आशंका ठीक से उजागर भी करता फिर उनका खिलखिलाना शुरू हो गया और कस के उन्होंने मुझे पकड़ के चूम लिया और बोलीं,

" स्साले, बहन महतारी के भंडुए, अभी तूने देखा ही क्या है, आज जितना चंदा और दूबे भाभी रगड़ाई कर रही थीं उससे कही ज्यादा गुड्डी की मम्मी अकेले,.... और जो तेरा पिछवाड़ा बच गया न आज, अगर गुड्डी की मम्मी होतीं न तो सीधे मुट्ठी जाती अंदर, और तेरे ऊपर चढ़ के रेप करतीं वो अलग। होली के दिन एकदम से, न रिश्ता न उमर बस मस्ती, ...."


मेरी आँखों के सामने उनकी तस्वीर आ गयी भाभी की शादी में, अकेला छोटा भाई था, अभी इंटर ही पास किया था, हाँ JEE में हो गया था,

और औरतों में घिरा, मंडप में ,कप्तान गुड्डी की मम्मी ही थीं और गुड्डी भी रस ले रही थी, मुझे आँखों से चिढ़ा रही थी,

गुड्डी की मम्मी ने अपना आँचल भी नहीं ठीक किया, बस एकदम सट के, उन्हें अपने गद्दर ब्लाउज से झांकते जोबन का मेरे ऊपर असर मालूम पड़ गया था। दोनों जोबन एकदम मेरे सीने से सटा कर, अपनी बड़ी सी अठन्नी साइज की लाल लाल टिकुली, अपने चौड़े माथे से निकाल के मेरे माथे पे चिपका दीं और वार्निंग भी दे दी ,

" खबरदार, अपनी महतारी के भतार,.... अगर इसे उतारा कल बिदाई के पहले, तोहरे सुहाग क निशानी है । "


और जोबन से खूब जोरदार धक्का दिया और धीरे से बोलीं,

" अरे मालूम है मुझे इसका असर, बहुत टनटना रहा है न। पहला पानी इसी में दबा के रगड़ रगड़ के निकालूंगी, फिर अंजुरी में भर के तोहीं को पिलाऊंगी, ऐसी गरमी लगेगी, सीधे अपनी महतारी के भोंसडे में जाकर डुबकी मारोगे तभी गरमी शांत होगी। "
 
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छुटकी -कच्ची अमिया


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संध्या भौजी की चिकोटी से मैं मंडप की यादों से वापस आया और संध्या भाभी बोलीं,

" तीन तीन भौजाई, गुड्डी क मम्मी, चंदा भाभी और दूबे भौजी लेकिन मैं अकेली ननद, ...लेकिन गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी थी और गुड्डी की एक पक्की सहेली, एकदम घर जैसे, स्कूल में उससे एक क्लास आगे है ११ वी में थी वो भी पकड़ी गयी, तो बस दूबे भाभी ने मुझे दबोचा और श्वेता को गुड्डी की मम्मी ने छुटकी, चंदा भाभी के हिस्से में आयी। और फिर होली रगड़ के हुयी।"




संध्या भाभी ने जो बताया उसका सारांश ये था की खेल छुटकी, गुड्डी की सबसे छोटी बहन से ही शुरू हुआ, और उकसाया और किसने, उसकी मतलब गुड्डी की मम्मी ने चंदा भाभी को,

चंदा भाभी रंग तो खूब रगड़ रगड़ के लगा रही थीं छुटकी को, हाथ एक उनका छुटकी की फ्राक के अंदर घुस के कच्ची अमियो को रगड़ रही थीं, कभी मटर के दाने ऐसे आ रहे निपल को पकड़ के मरोड़ देतीं, और दूसरा हाथ छुटकी की जांघ के सरकते हुए चड्ढी के अंदर घुस रहा था। हाँ जैसा यहाँ होली का कायदा था, भौजाइयां हाथ पहले बाँध देती थीं, पीछे मरोड़ के,... तो चंदा भाभी ने छुटकी का हाथ भी पीछे,

लेकिन असली मस्ती तो श्वेता के साथ हो रही थी,

गुड्डी की मम्मी तो गुड्डी की मम्मी ही थीं। उन्हें इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता था की सामने उनकी बेटी है और जिसकी वो ले रही हैं वो बेटी की सहेली है। उस समय तो जो लड़की पकड़ में आये वो ननद की तरह ही हो जाती है।

श्वेता का पहले उन्होंने दुपट्टा खींचा और आराम से दोनों हाथ पीछे कर के कस के कलाई बाँध दी। अब वो लाख उछले कूदे, फिर श्वेता का टॉप उतरा और फिर दोनों कबूतर खुले और श्वेता की ब्रा खोल के उन्होंने चंदा भाभी की ओर उछाल दी, जिससे छुटकी के हाथ उन्होंने बाँध दिए .

संध्या भाभी मुस्कराते हुए बोलीं,

" लेकिन गुड्डी की मम्मी ने जिस तरह श्वेता की शलवार खोली और उसकी चिड़िया दिखाई,.... वो देखने लायक था "

मैं चुप था और संध्या भाभी ने खुद बताया,

"आराम आराम से उन्होंने श्वेता की शलवार का नाड़ा खोला । हाथ तो उसके उन्होंने पहले ही बाँध दिया थे लेकिन तब भी वो छोरी पैर पटक के, जाँघों को चिपका के, एक पैर को दूसरे पैर में फंसा के रेजिस्ट कर रही थी, लेकिन गुड्डी की मम्मी को फरक नहीं पड़ रहा था। आराम से उन्होंने पहले नाड़ा खोला, और फिर शलवार उतारने, खींचने के बजाय, श्वेता को दिखा के नाड़ा शलवार में से खींच के निकाल दिया और उसे तोड़ दिया। अब वो चाह के भी शलवार नहीं बाँध सकती थी। फिर कभी यहाँ कभी यहाँ गुदगुदी, जाँघे खुलीं , पैर फैले और शलवार सरक के नीचे, गुड्डी के मम्मी के हाथ में और जब तक श्वेता कुछ समझे उन्होंने पूरी ताकत से शलवार उठा के छत के नीचे आंगन में फेक दिया। एक तो नाड़ा टूट गया और फिर शलवार भी अब बहुत दूर , लेकिन एक और रक्षा पंक्ति थी अभी, चड्ढी,



" हे कोई खजाना छुपा के रखा है, कब तक चिड़िया को ऐसी पिंजड़े में बंद रखेगी "

मुस्कराते हुए वो बोलीं फिर दोनों हाथ पैंटी के अंदर डाल के कस के जो जोर लगाया, वो जाँघों के बीच की दो फांको की तरह, दो फांक हो गयी। उसे शलवार से बिछुड़े हुए थोड़ा वक्त हो गया था तो गुड्डी की मम्मी ने चड्ढी के दोनों टुकड़ों को भी आंगन में शलवार के पास भेज दिया। और फिर चंदा भाभी को हड़काया,

" हे आज के दिन तो कम से कम बुलबुल को हवा पानी लगने दो, का ढक्क्न के अंदर से,... और ढक्कन उठा के,... हटा के शहद खाओ "

चंदा भाभी छुटकी की चड्ढी के अंदर हाथ डाल के छुटकी की नयी नयी बुलबुल का हाल चाल पूछ रही थीं, थोड़ी झिझक उन्हें गुड्डी की मम्मी की ही थी लेकिन अब वो खुद उकसा रही थीं,

तो बस छुटकी की भी चड्ढी उतर गयी और हथेली से पहले रंग लगा फिर रगड़ रगड़ के चाशनी निकालनी शुरू की, उधर गुड्डी की मम्मी की दो उंगलिया श्वेता की बिल में मथानी चला चला के मक्खन निकाल रही थीं और उसे गरिया भी रही थीं।



रंग की होली मंद पड़ गयी थी, देह की होली जोर पकड़ रही थी

और चंदा भाभी हर भाभी की तरह जानती थीं, जब ननदों का हाथ पीछे से बंधा होता है, चिड़िया खुल जाती है तब भी भौजी की मेहनत बढ़ाने के लिए अपनी जांघें जोर से सिकोड़ लेती हैं, जबरदस्ती की चीख पुकार मचाती हैं और छुटकी ने यही किया लेकिन चंदा भाभी कौन छोड़ने वाली थीं, छुटकी को पहले तो उन्होंने चिढ़ाया,

" हे अभी कउनो यार मिल जाए न तो झट से टाँगे फैला दोगी, खुद ही अपने हाथों से चिड़िया का मुंह खोल दोगी "

श्वेता की ऊँगली करते हुए, गुड्डी की मम्मी, चंदा भाभी और छुटकी को देखते हुए गुड्डी की मम्मी भी बोलीं,

"एकदम सही कहती हो, मन तो करता है की पूरी ऊँगली अंदर जाए और ऊपर से नखड़ा, अरे जड़ तक ऊँगली अंदर पेलो, बरस बरस का त्यौहार, आज एकदम बचनी नहीं चाहिए "

चंदा भाभी ने उस कच्ची कली की दोनों फांको को बस ऊँगली से फैलाया ही थी की छुटकी चीखने लगी,



" नहीं अंदर नहीं, अंदर नहीं, बस ऊपर ऊपर से कर लीजिये, बहुत दर्द होगा, "

और अबकी श्वेता ने उसे चिढ़ाया

" हे ऊँगली से घबड़ा रही है, मैं तेरे उमर की थी तो चार चार मोटे मोटे लौंड़े घोंट चुकी थी, तन से भले बड़ी हो गयी लेकिन अभी भी तू बच्ची ही है छोटी वाली, दूध अभी ग्लास से पीना शुरू किया या बोतल से ही "

किसी जवान होती किशोरी के लिए इससे बढ़के बेइज्जती क्या हो सकती थी

छुटकी अलफ़ गुस्से में पैर पटकते हुए बोली, " श्वेता दी, मैं कतई बच्ची नहीं हूँ, "

लेकिन फिर शरारत से मुस्कराते हुए, कैशोर्य की दहलीज पर खड़ी, उस शोख गुड्डी की छोटी बहन ने आँख नचाते, श्वेता को चिढ़ाते बोली
 
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छुटकी, और श्वेता -


होली की मस्ती

" दी, आप जिन मोटे मोटे लौंड़ो की बात कर रही नहीं है, असल में केंचुआ छाप टाइप, वाला, जो मेरी फाड़ेगा न वो उन सबसे बीस नहीं पच्चीस होगा, और वो तय भी है की कौन होगा। मेरी क्लास में भी कितनों की चिड़िया उड़ रही है लेकिन मैं रोज अपनी सुंदरी को, इस सहेली को समझातीं हूँ, थोड़ा सबर कर, जिसे गुड्डी दी पटाएंगीं न, जिससे उनकी गाँठ जुड़ेगी, मेरे जीजू,…. गुड्डी दीदी से पहले मेरे साथ, ….सगाई के दिन ही, ..."


लेकिन श्वेता कौन जल्दी हार मानने वाली थी, छुटकी को छेड़ते बोली,

" हे इतना मोटा होगा तो बहुत दर्द होगा तुझे, फट के हाथ में आ जाएगी, और मान लो जो छोटे छोटे चूतड़ मटका के चलती है न तू, कहीं तेरी गांड न मार लें, तेरे जीजू "

छुटकी खुश , लेकिन बनावटी गुस्से से श्वेता दी से बोली,

" देखिए दी, आप मेरी दी भी हैं पक्की सहेली भी लेकिन इसका मतलब ये नहीं की, " और छुटकी ने मुंह फुला लिया और फिर जोड़ा, " और चाहे आप हों , चाहे गुड्डी दी खुद, साली और जीजू के बीच कोई नहीं आ सकता जो मेरे जीजू की मर्जी, करें, और जीजू कौन जो साली से पूछे या साली के मना करेने से मान जाए "

संध्या दी, गुड्डी की छोटी बहन, छुटकी और श्वेता की छेड़छाड़ सुना रही थीं,

मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आ रही थी की कैसे जब वो गूंजा भी से छोटी थीं, छुटकी के आसपस की उम्र की, पड़ोस के एक जिज्जा ने होली में अपनी सलहज के साथ मिल के उनका फीता काट दिया था, फिर मुस्करा के कहने लगीं चंदा भाभी बोलीं, अब जीजा साली की नहीं फाड़ेगा तो कौन लेगा।



संध्या भाभी ने फिर श्वेता की बात सुनाई, की कैसे वो पलटा मार गयी और कुछ छुटकी को मनाते कुछ गुड्डी की मम्मी को सुनाते बोलीं,

" चल यार बात तेरी एकदम सही है, सबसे छोटी साली है तू तो तेरा हक़ सबसे पहले, लेकिन साली तो मैं भी हूँ, छोटी न सही बड़ी ही सही तो क्या मैं छोडूंगी उस स्साले को बिना घोंटे "

अब छुटकी मान गयी और हँसते हुए बोली ,

" ये बात हुयी न मेरी दी वाली, एकदम सही कहा आपने, अगर कहीं ज्यादा शर्मायेंगे, न तो बस हम सब बहने मिल के रेप कर देंगे उनका। और हक़ तो आपका है, पूरा है , लेकिन पहले मेरा नंबर, उसके बाद मंझली का फिर जीजू आपके हवाले, गुड्डी दी का नंबर सबसे बाद में "

और अब गुड्डी की मम्मी भी मैदान में आ गयीं, गचागच श्वेता की बुर में दो दो ऊँगली एक साथ पेलते बोलीं,

" बात तुम दोनों सही कह रही हो, जीजा का हक़ तो है ही सालियों पे चाहे छोटी हो बड़ी, लेकिन छोटी का नंबर पहले, और ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा तुम दोनों को,

“ स्साली छिनार, गुड्डी के मरद का लम्बा मोटा घोंटने के लिए तैयार बैठी हैं बुर फैलाय के अभी से,… और यहाँ ऊँगली घोटने में गाँड़ फटी जा रही है। अबे स्साली, तेरे जीजू का काम आसान कर रही हूँ, घोंट ,…घोंट न"

चंदा भाभी बोलीं और झट से एक ऊँगली छुटकी की बिल में दो पोर तक, वो पैर पटकती रही लेकिन जैसे चूड़ी वाली चूड़ी पहनाती हैं उसी तरह बड़ी उमर की लड़कियां, चिढ़ा के, खिला के, कच्ची कलियों की बिल में ऊँगली कभी कभी गोल गोल घुमा के, कभी धीमे धीमे सरका के, आराम आराम से तो पहले एक ऊँगली का दो पोर, फिर दो उँगलियाँ, लेकिन उनका आधा पोर हो घुस पाया।

और अब श्वेता की रगड़ाई अगले लेवल पे पहुँच गयी थी। गुड्डी की मम्मी कस के दो ऊँगली से उसकी बोल चोदते बोलीं,

" अरे श्वेता उस उमर में तूने चार चार लौंड़े घोंटे थे तो अब तो दो चार का नाश्ता कर लेती होगी और चंदा भाभी से बोलीं," सुन यार इस श्वेता की गांड और बुर दोनों में मुट्ठी करनी होगी इसकी मस्ती ऊँगली से नहीं निकलेगी। "

अब श्वेता भी घबड़ायी और मैं भी। मैंने पूछा

" क्या सच में मुट्ठी हुयी ?



" अरे नहीं " खिलखिलाती हुयी संध्या भाभी बोलीं और फिर ज्ञान दिया,

" कुंवारियों की कभी नहीं होती और शादी शुदा की भी,… एक बच्चे के हो जाने के बाद ही लेकिन श्वेता को डरा के गुड्डी की मम्मी ने और चंदा भाभी ने बड़ी मस्ती की। दोनों लोग मेरी भी लेने के चक्कर में थी तो थोड़ी देर बाद दूबे भाभी के चंगुल से मैं छूटी तो वो दोनों लोग इन्तजार ही कर रही थीं, दोनों ने मुझे दबोच लिया एक साथ लेकिन गुड्डी की मम्मी ने श्वेता को बोला



" सुन स्साली, अगर मुट्ठी से बचना है तो दस मिनट में छुटकी को पकड़ के,... " और आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की

" चूस चूस के झाड़ दो, वरना तेरी गांड और बुर दोनों में मुट्ठी एक साथ होगी "


कहानी में मोड़ आ गया था और मैं धयान से सुन रहा था।

छुटकी तेज शोख, श्वेता को अंगूठा दिखा के भागी और श्वेता पीछे पीछे, कभी छुटकी कन्नी काट के निकल जाती तो कभी पास में आके चिढ़ाती और दूर भाग जाती। लेकिन अंत में पकड़ी गयी,पटकी गयी और दोनों जाँघे फैला के श्वेता ने चूसना शुरू किया और साथ में हल्की हलकी ऊँगली। नयी लड़की चार पांच मिनट में ही झड़ गयी, पर श्वेता ने छोड़ा नहीं चूसती रही जब तक छुटकी थेथर नहीं हो गयी और फिर खुद उसके ऊपर चढ़ के अपनी बुर भी सबके सामने उससे चुसवाई।

मुझे याद आया कल शाम को ही तो, जब मैं और गुड्डी, मम्मी से वीडियो काल पे बात कर रहे थे, और वीडियों काल में छुटकी और श्वेता भी दिख रही थीं। छुटकी चिढ़ा रही थी,

" मैं जीत गयी, मैं जीत गयी दी, हार गयीं "

और श्वेता उसे गुदगुदाते हुए बोल रही थी, तूने बेईमानी की है , तूने पत्ते छिपाये थे मैं तेरी तलाशी लूंगी अभी देख मैं निकलती हूँ तेरी चड्ढी से, वहीँ छुपाये हैं तूने "

और जैसे श्वेता ने अंदर हाथ डाला चड्ढी के, वो बड़ी जोर से उछली,

" दी, वहां नहीं, वहां नहीं, बदमाशी नहीं अंदर नहीं, निकाल लीजिये, प्लीज अंदर नहीं "

लेकिन श्वेता और, ....

कुछ देर बाद छुटकी बोली, " दी आपने देख लिया, चेक कर लिया, अब तो हाथ निकाल लीजिये "लेकिन श्वेता और मस्ती के मूड में थी। छुटकी की मंम्मी भी देख रही थी लेकिन मुस्करा रही थीं।

तो ये चक्कर था, छुटकी और श्वेता एक और इसकिये मम्मी भी बजाय कुछ बोलने के नयन सुख ही ले रही थीं।


लेकिन छुटकी और श्वेता के इस लेस्बियन दंगल और जिस तरह से डिटेल में संध्या भाभी उस कच्ची कली की चिपकी चिपकी एकदम कसी गुलाबी मुलायम टाइट फुद्दी की फूली फूली भरी भरी फांको की बात कर रही थीं, जंगबहादुर फनफना गए।

और उनके बौराने का एक कारण संध्या भाभी के नरम गरम चूतड़ भी थे, जिस तरह से वो अपने चूतड़ मेरे खड़े खूंटे पे रगड़ रही थीं उसी से अंदाजा लग रहा था की कितनी गरमा गयीं, बुर उनकी एकदम पनिया गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के जुबना मीस रहा था और वो सिसकते हुए बोल रहीं थी,

" उस स्साली छुटकी के कच्चे टिकोरे भी ऐसी ही कस कस के मसलना और कुतरना जरूर।

और मेरे सामने सुबह की वीडियो काल में दिख रही छुटकी याद आ रही थी, छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,



एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,

२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,

साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,



बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,



और संध्या भाभी की बात एकदम सही थी, स्साली गरमा भी रही थी, तैयार भी थी, सुबह जिस तरह मम्मी के वीडियो काल से जाने के बाद छुटकी ने फोन थोड़ा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एकदम पास से दिखाया, झुक के क्लीवेज का दर्शन कराया, लेकिन अभी तो सामने संध्या भाभी थीं, तो बस,...
 
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Mass

Well-Known Member
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Wonderful updates Madam....
Each part is very good...
the conversation between Sandhya bhabhi and Anand babu was very erotic...and the "takiya" reference by Sandhya bhabhi was good as well...
the greatness of your writing is that..most of your updates have daily mundane routine references which are very hard to find in erotic stories.
and Sandhya Bhabhi's "gyaan" to Anand Babu of having sex twice in a night was just as sexy...with "2 mins noodles" reference...
this update was a "proper" erotic lesson by Sandhya bhabhi to Anand Babu...
Anand Babu's infatuation for Guddi was the highlight of this update...
Right from "takiya" to "ungli"...and the "shart"/"conditions" of Guddi's mother was just as good...
A "proper" full episode of teasing and erotica...
The pics were also quite good.

Quite a good update Madam...both in terms of quality and quantity (length).

👏 👏 👏 👍👍👍

komaalrani
I think this is the first time that I am the first one to post my review on your updates...and hence you "do not" have to "wait"... :)
 
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तौबा ! पहले चंदा भाभी और अब संध्या भाभी ने जिस तरह से , जिस बारीकी से और जिस तरीके से आनंद साहब को सेक्सुअल ज्ञान का पाठ कंठस्थ करा रही है उससे आनंद साहब बहुत जल्द शहजादा गुलफाम के अवतार मे दिखाई देने लगेंगे ।
इनके छतरी से छाया ...साॅरी छत्रछाया मतलब छतरछाया से यह बालक कहीं वूमेनाइजर , लेडीजमैन न बन जाए तो बड़ी बात नही होगी ।
शादी के बंधन मे बंधकर बड़े बड़े आशिक मिजाज सुधर जाते हैं और एकपत्नीब्रत का पालन करने लगते हैं लेकिन आनंद साहब के इर्द-गिर्द जिस तरह से निहायत खुबसूरत हसीन और नौजवान महिलाओं का मेला लगा हुआ है और वो न्यौछावर होने के लिए मरी जा रही है उससे आनंद साहब तो क्या ऋषि - मुनिगण भी विचलित हो जाए ।
बहुत ही बेहतरीन कन्वर्सेशन था संध्या और आनंद का । सेक्स सिर्फ हमबिस्तर होने का चीज नही है यह एक आर्ट भी है । दो दिलों को जोड़ने का एक साधन भी है । यह एहसास दिलाता है कि आप बहुत ही खास है । मानसिक तनाव दूर करने का प्रयास भी है ।

इस अपडेट से पता चला कि आनंद साहब और गुड्डी के लग्न की डोर आनंद के भाभी जी और गुड्डी की मां के हाथो मे है । अम्मा जी ऑलरेडी तैयार बैठी है और भाभी जी इंकार कर नही सकती ।
लेकिन संध्या भाभी का हथौड़े का निरिक्षण करना , साइज नापना और हथौड़े की शक्ति आजमाना शादी से पूर्व हर लड़के पर नही लागू हो सकता । यह वहीं सम्भव है जहां रिश्ते लिव इन रिलेशनशिप पर आधारित हो ।

श्वेता मैडम इतनी तजुर्बेकार थी यह हमे पता ही न चला । साथ मे गुड्डी की सबसे छोटी बहन भी । आनंद साहब के जलवे ही जलवे है ।
पुराने जमाने मे ऐसे ही तो सयाने लोग नही कहते थे कि कुएं का जल , ईट का घर , बड़ का पेड़ और युवा नारी का शरीर -- गर्मियों मे ठंडा और सर्दियों मे गरम ।

बेहतरीन और शानदार अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 
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Sutradhar

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छुटकी, और श्वेता -


होली की मस्ती

" दी, आप जिन मोटे मोटे लौंड़ो की बात कर रही नहीं है, असल में केंचुआ छाप टाइप, वाला, जो मेरी फाड़ेगा न वो उन सबसे बीस नहीं पच्चीस होगा, और वो तय भी है की कौन होगा। मेरी क्लास में भी कितनों की चिड़िया उड़ रही है लेकिन मैं रोज अपनी सुंदरी को, इस सहेली को समझातीं हूँ, थोड़ा सबर कर, जिसे गुड्डी दी पटाएंगीं न, जिससे उनकी गाँठ जुड़ेगी, मेरे जीजू,…. गुड्डी दीदी से पहले मेरे साथ, ….सगाई के दिन ही, ..."


लेकिन श्वेता कौन जल्दी हार मानने वाली थी, छुटकी को छेड़ते बोली,

" हे इतना मोटा होगा तो बहुत दर्द होगा तुझे, फट के हाथ में आ जाएगी, और मान लो जो छोटे छोटे चूतड़ मटका के चलती है न तू, कहीं तेरी गांड न मार लें, तेरे जीजू "

छुटकी खुश , लेकिन बनावटी गुस्से से श्वेता दी से बोली,

" देखिए दी, आप मेरी दी भी हैं पक्की सहेली भी लेकिन इसका मतलब ये नहीं की, " और छुटकी ने मुंह फुला लिया और फिर जोड़ा, " और चाहे आप हों , चाहे गुड्डी दी खुद, साली और जीजू के बीच कोई नहीं आ सकता जो मेरे जीजू की मर्जी, करें, और जीजू कौन जो साली से पूछे या साली के मना करेने से मान जाए "

संध्या दी, गुड्डी की छोटी बहन, छुटकी और श्वेता की छेड़छाड़ सुना रही थीं,

मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आ रही थी की कैसे जब वो गूंजा भी से छोटी थीं, छुटकी के आसपस की उम्र की, पड़ोस के एक जिज्जा ने होली में अपनी सलहज के साथ मिल के उनका फीता काट दिया था, फिर मुस्करा के कहने लगीं चंदा भाभी बोलीं, अब जीजा साली की नहीं फाड़ेगा तो कौन लेगा।



संध्या भाभी ने फिर श्वेता की बात सुनाई, की कैसे वो पलटा मार गयी और कुछ छुटकी को मनाते कुछ गुड्डी की मम्मी को सुनाते बोलीं,

" चल यार बात तेरी एकदम सही है, सबसे छोटी साली है तू तो तेरा हक़ सबसे पहले, लेकिन साली तो मैं भी हूँ, छोटी न सही बड़ी ही सही तो क्या मैं छोडूंगी उस स्साले को बिना घोंटे "

अब छुटकी मान गयी और हँसते हुए बोली ,

" ये बात हुयी न मेरी दी वाली, एकदम सही कहा आपने, अगर कहीं ज्यादा शर्मायेंगे, न तो बस हम सब बहने मिल के रेप कर देंगे उनका। और हक़ तो आपका है, पूरा है , लेकिन पहले मेरा नंबर, उसके बाद मंझली का फिर जीजू आपके हवाले, गुड्डी दी का नंबर सबसे बाद में "

और अब गुड्डी की मम्मी भी मैदान में आ गयीं, गचागच श्वेता की बुर में दो दो ऊँगली एक साथ पेलते बोलीं,

" बात तुम दोनों सही कह रही हो, जीजा का हक़ तो है ही सालियों पे चाहे छोटी हो बड़ी, लेकिन छोटी का नंबर पहले, और ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा तुम दोनों को,

“ स्साली छिनार, गुड्डी के मरद का लम्बा मोटा घोंटने के लिए तैयार बैठी हैं बुर फैलाय के अभी से,… और यहाँ ऊँगली घोटने में गाँड़ फटी जा रही है। अबे स्साली, तेरे जीजू का काम आसान कर रही हूँ, घोंट ,…घोंट न"

चंदा भाभी बोलीं और झट से एक ऊँगली छुटकी की बिल में दो पोर तक, वो पैर पटकती रही लेकिन जैसे चूड़ी वाली चूड़ी पहनाती हैं उसी तरह बड़ी उमर की लड़कियां, चिढ़ा के, खिला के, कच्ची कलियों की बिल में ऊँगली कभी कभी गोल गोल घुमा के, कभी धीमे धीमे सरका के, आराम आराम से तो पहले एक ऊँगली का दो पोर, फिर दो उँगलियाँ, लेकिन उनका आधा पोर हो घुस पाया।

और अब श्वेता की रगड़ाई अगले लेवल पे पहुँच गयी थी। गुड्डी की मम्मी कस के दो ऊँगली से उसकी बोल चोदते बोलीं,

" अरे श्वेता उस उमर में तूने चार चार लौंड़े घोंटे थे तो अब तो दो चार का नाश्ता कर लेती होगी और चंदा भाभी से बोलीं," सुन यार इस श्वेता की गांड और बुर दोनों में मुट्ठी करनी होगी इसकी मस्ती ऊँगली से नहीं निकलेगी। "

अब श्वेता भी घबड़ायी और मैं भी। मैंने पूछा

" क्या सच में मुट्ठी हुयी ?



" अरे नहीं " खिलखिलाती हुयी संध्या भाभी बोलीं और फिर ज्ञान दिया,

" कुंवारियों की कभी नहीं होती और शादी शुदा की भी,… एक बच्चे के हो जाने के बाद ही लेकिन श्वेता को डरा के गुड्डी की मम्मी ने और चंदा भाभी ने बड़ी मस्ती की। दोनों लोग मेरी भी लेने के चक्कर में थी तो थोड़ी देर बाद दूबे भाभी के चंगुल से मैं छूटी तो वो दोनों लोग इन्तजार ही कर रही थीं, दोनों ने मुझे दबोच लिया एक साथ लेकिन गुड्डी की मम्मी ने श्वेता को बोला



" सुन स्साली, अगर मुट्ठी से बचना है तो दस मिनट में छुटकी को पकड़ के,... " और आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की

" चूस चूस के झाड़ दो, वरना तेरी गांड और बुर दोनों में मुट्ठी एक साथ होगी "


कहानी में मोड़ आ गया था और मैं धयान से सुन रहा था।

छुटकी तेज शोख, श्वेता को अंगूठा दिखा के भागी और श्वेता पीछे पीछे, कभी छुटकी कन्नी काट के निकल जाती तो कभी पास में आके चिढ़ाती और दूर भाग जाती। लेकिन अंत में पकड़ी गयी,पटकी गयी और दोनों जाँघे फैला के श्वेता ने चूसना शुरू किया और साथ में हल्की हलकी ऊँगली। नयी लड़की चार पांच मिनट में ही झड़ गयी, पर श्वेता ने छोड़ा नहीं चूसती रही जब तक छुटकी थेथर नहीं हो गयी और फिर खुद उसके ऊपर चढ़ के अपनी बुर भी सबके सामने उससे चुसवाई।

मुझे याद आया कल शाम को ही तो, जब मैं और गुड्डी, मम्मी से वीडियो काल पे बात कर रहे थे, और वीडियों काल में छुटकी और श्वेता भी दिख रही थीं। छुटकी चिढ़ा रही थी,

" मैं जीत गयी, मैं जीत गयी दी, हार गयीं "

और श्वेता उसे गुदगुदाते हुए बोल रही थी, तूने बेईमानी की है , तूने पत्ते छिपाये थे मैं तेरी तलाशी लूंगी अभी देख मैं निकलती हूँ तेरी चड्ढी से, वहीँ छुपाये हैं तूने "

और जैसे श्वेता ने अंदर हाथ डाला चड्ढी के, वो बड़ी जोर से उछली,

" दी, वहां नहीं, वहां नहीं, बदमाशी नहीं अंदर नहीं, निकाल लीजिये, प्लीज अंदर नहीं "

लेकिन श्वेता और, ....

कुछ देर बाद छुटकी बोली, " दी आपने देख लिया, चेक कर लिया, अब तो हाथ निकाल लीजिये "लेकिन श्वेता और मस्ती के मूड में थी। छुटकी की मंम्मी भी देख रही थी लेकिन मुस्करा रही थीं।

तो ये चक्कर था, छुटकी और श्वेता एक और इसकिये मम्मी भी बजाय कुछ बोलने के नयन सुख ही ले रही थीं।


लेकिन छुटकी और श्वेता के इस लेस्बियन दंगल और जिस तरह से डिटेल में संध्या भाभी उस कच्ची कली की चिपकी चिपकी एकदम कसी गुलाबी मुलायम टाइट फुद्दी की फूली फूली भरी भरी फांको की बात कर रही थीं, जंगबहादुर फनफना गए।

और उनके बौराने का एक कारण संध्या भाभी के नरम गरम चूतड़ भी थे, जिस तरह से वो अपने चूतड़ मेरे खड़े खूंटे पे रगड़ रही थीं उसी से अंदाजा लग रहा था की कितनी गरमा गयीं, बुर उनकी एकदम पनिया गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के जुबना मीस रहा था और वो सिसकते हुए बोल रहीं थी,

" उस स्साली छुटकी के कच्चे टिकोरे भी ऐसी ही कस कस के मसलना और कुतरना जरूर।

और मेरे सामने सुबह की वीडियो काल में दिख रही छुटकी याद आ रही थी, छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,



एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,

२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,

साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,



बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,



और संध्या भाभी की बात एकदम सही थी, स्साली गरमा भी रही थी, तैयार भी थी, सुबह जिस तरह मम्मी के वीडियो काल से जाने के बाद छुटकी ने फोन थोड़ा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एकदम पास से दिखाया, झुक के क्लीवेज का दर्शन कराया, लेकिन अभी तो सामने संध्या भाभी थीं, तो बस,...

वाह कोमल मैम

सुखद आश्चर्य।

जहां तक रफूगिरी या कशीदाकारी की बात है तो यहां तो बात इससे भी आगे निकल गई है।

ये तो जैसा मैंने पहले भी कहा था कि ये तो आपने आरी - तारी, जड़ाऊ, गोटा या भारी काम जैसा कुछ कर डाला हैं।

पूर्व कहानी में इतना शानदार fill in the blanks तो कल्पना से भी परे हैं।

वही पात्रों की भूमिका के बारे में तो कहना ही क्या !!

कल्पना से भी परे ऐसा लेखन सिर्फ आप ही कर सकती है।

और कहानी को रोका भी ऐसी जगह कि बस, आपकी प्यारी सी शरारत पर मुस्करा ही सकते हैं।


सादर
 
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