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जोरू का गुलाम भाग २३८ पृष्ठ १४५०
वार -१ शेयर मार्केट में मारकाट
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धन्यवाद कोमल जी. आपकी टिप्पणियाँ पढ़कर बहुत खुशी और संतुष्टि मिलती है। बिल्कुल अपनी कहानी की तरह, आप एक माला में मोतियों की तरह टिप्पणियाँ देती है। रिश्तों के बीच सहजता और परिपक्वता को लेकर आपमें जिस तरह की समझ है....उसका कोई मुकाबला नहीं है। मैं आप जैसी मित्र और समीक्षक पाकर प्रसन्न और भाग्यशाली हूंक्या जबरदस्त रिश्ता चुना आपने, नन्दोई और सलहज का।
जो तीन रिश्ते, जिसमे कुछ कुछ छूट रहती है, जीजा-साली, देवर -भाभी, और नन्दोई- सलहज तीनो में सबसे न्यारा है सलहज का रिश्ता।
जीजा- साली में साली कुँवारी, बिना अनुभव की और देवर भाभी में देवर कुंवारा, अनाड़ी।
लेकिन सलहज -नन्दोई में दोनों ही शादी शुदा, दोनों ही अनुभवी, और भावनात्मक तौर पर भी इसलिए जुड़े रहते है की एक तरह से ' दोनों बाहरी ', सलहज अपने मायके से आयी और नन्दोई अपने मायके से. ससुराल में ननद हो ( नन्दोई की पत्नी ) या ननद के भाई ( सलहज के पति ) दोनों तो घर से जुड़े रहते हैं, शेयर्ड एक्सपीरियंस, शेयर्ड जोक्स, बचपन की बातें,... ' आपको नहीं मालूम होगा आपके पहले की बात है ' टाइप्स,... और नन्दोई सलहज दोनों बाहरी,
इसलिए कहा गया है साली से सलहज अधिक पियारी,
और सबसे बड़ी बात, इन सबसे बड़ी बात जो आपने इस कविता -चित्र कथा में लिख दी,..
नारी जबतक प्रौढ़ा होती है उसकी काम ज्वाला धधकने लगती है, ... पुरुष की काम ज्वाला, आफिस के टारगेट मीट करने में, घर के बाहर एक्सेल करने में लग जाती है, दूसरी बात,... पुरुष के लिए अक्सर काम एक बॉक्स टिक करने जैसा, क्यूरियासिटी से शुरू होकर परफॉर्मेंस अचीवमेंट तक,...
और उस समय एक ऐसे नवविहित पुरुष जिसके साथ खुल कर सेक्सी बातों की मज़ाक़ की इजाजत है,... और ये उस की शक्ति और क्षमता का पता चले तो एक बार फिर मन का बहकना स्वाभाविक है,...
लेकिन ये सब शुद्ध गद्य है,
रस शून्य ,... सिर्फ तर्क और अनुभव पर आश्रित,
लेकिन रससिक्त इस रिश्ते को बनाया आपने, आपकी कविता और चित्रों ने,... और चित्र भी ऐसे की लगता है बोल पड़ेंगे। हजार शब्दों के बराबर एक चित्र, और उसी की तरह रस का झरना बहानेवली कवितायेँ, ...
बहुत बहुत आभार, कोटिश: धन्यवाद
Amezing Aarushi ji. Aap sabdo ke sath sath tashwiro ke bhi mahir ho. Jabardastमेरे प्रिय पाठकों...प्रस्तुत है अनाचार यथार्थता पर एक नई कविता। आशा है कि मुझे वही प्रेरणा मिलेगी जो मुझे पहले मिली थी….
शुरू कर रही हूं सलहज और ननदोई की कहानी
कैसे एक सलहज बन गई ननदोई की दीवानी
सुंदर बांका नौजवान और दिखाने में शरीफ
ननद रानी भी करती थी उनकी खूब तारीफ
पंकज जी भी बड़े शर्मीले देख के आँख चुराते थे
भाभी जी के सम्बोधन से मुझको सदा बुलाते थे
गुड्डी मेरे बहुत करीब थी मुझको बहुत ही भाती थी
दोनों जी भर बतियाते वो जब भी मायके आती थी
मेरी ननद की शादी को अभी हुआ था एक ही साल
पर एक साल में ही ननदोई जी ने कर दिया कमाल
दुबली पतली ननद थी मेरी और नींबू छोटे छोटे
अब बाहर को निकली गांड और मम्मे मोटे मोटे
पूछो जब भी राज़ इसका वो थोडा शरमाती थी
सब पति की मेहनत बस इतना ही कह पाती थी
वैसे तो मेरे पति भी बिस्तर में दिखलाते थे पूरा दम
पर दस साल की शादी में अब रोमांस हो गया कम
हफ़्ते में बस एक दो बार ही चुत मे लंड घुसाते थे
और एक बार में होकर ठंडे वो जल्दी सो जाते थे
बत्तीस की उमर थी मेरी और उमंगे अभी जवान
सेक्स को लेकर दिल में मेरे भरे थे खूब अरमान
कुचल दी दिल की चाहत सब छोड़ दिया किस्मत पे
खुद को मैंने झोंक दिया था अपनों की खिदमत में
लेकिन कभी देख ननद को दिल में होती थी हलचल
कुछ नादानी करने को मेरा भी मन मचले था हर पल
इस बार जब आई गुड्डी तो मैंने खूब उसे उक्साया
जाग उठी सब दबी चाहते फिर जो उसने बतलाया
खुल के बोलो ननद रानी अब मुझसे क्या शरमाना
हम दोनों तो राज़दार हैं फिर मुझसे क्या घबराना
बालिशत भर का ख़ूँटा इनका और हद से ज़्यादा मोटा
कड़क तो इतना हो जाता है जैसे कोई बांस का सोटा
सुहागरात को नंगा करके पतिदेव ने इतनी करी ठुकाई
अगले दो दिन गरम पानी के टब में करती रही सिकाई
ख़ूब दबाते हैं मम्मे मेरे और ख़ूब चूसते चूत
चूस चूस के निकाल देते हैं मेरी चूत से मुत
जब भी मौका मिलता इनको मैं जाती हूं पेली
पहले हफ़्ते में ही पंकज ने गांड थी मेरी ले ली
दिन रात मेरी चूत से कामरस की नदिया बहती थी
पूरी रात मेरी चूत और गांड इनके लौड़े पे रहती थी
हनीमून में तो चोद चोद के हालत पतली कर दी थी
मेरे हर इक छेद में पंकज ने अपनी मलाई भर दी थी
अब भी इतनी ठरकी है ये मेरी रोज़ रात को लेते हैं
पहले चुसवाते अच्छे से लौड़े फ़िर मेरी चूत में देते हैं
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भारी हो गई सांसे मेरी धड़क धड़क दिल जाए
ऐसा कोई मर्द कभी भी काश मुझे मिल जाए
कितनी अलग है गुड्डी से ये सेक्स लाइफ हमारी
दस साल की शादी में बाद भी मेरी गांड कुंवारी
दिन मैं तो जो मुझे बनाकर रखे वो अपनी रानी
रोज़ रात को खोद खोद के निकाले चूत का पानी
दस साल में औरत की क्या सब हसरते मर जाती है
अपने दिल की बात वो किसी से क्यों नहीं कह पाती है
भाभी अब तुम अपनी बोलो क्या अब भी भैया सताते हैं
मेरी इस गदराई भाभी को क्या अब भी रोज़ जगाते हैं
तेरी शादी अभी नई है हमारे बीत गए दस साल
अपना तो हफ़्ते में दो दिन तेरे जैसा नहीं है हाल
भाभी तुम तो अभी जवान ही क्यों करती हो ऐसी बात
भैया की जगह पंकज होते तो सोने ना दे तुम्हें पूरी रात
गुड्डी ने तो बेख्याली मे बोल दी ऐसी बात
लेकिन उसने छेड़ दिए थे सोए हुए जज्बात
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धन्यवाद कोमल जी. आपकी टिप्पणियाँ पढ़कर बहुत खुशी और संतुष्टि मिलती है। बिल्कुल अपनी कहानी की तरह, आप एक माला में मोतियों की तरह टिप्पणियाँ देती है। रिश्तों के बीच सहजता और परिपक्वता को लेकर आपमें जिस तरह की समझ है....उसका कोई मुकाबला नहीं है। मैं आप जैसी मित्र और समीक्षक पाकर प्रसन्न और भाग्यशाली हूं![]()
You may use imgbb ( which i use),imgbb.co, upload picture from your folder and paste it. Another option is use upload image tab given at the end of your comment box.Komal, Raji, need a small help.
If I need to add/insert a photo (.gif, .jpg) in my replies to a post, how do I do it?
Haven't done it before..hence seeking your help. Thanks.
komaalrani Rajizexy
Thanks Madam...try karta hoon ek baarYou may use imgbb ( which i use),imgbb.co, upload picture from your folder and paste it. Another option is use upload image tab given at the end of your comment box.
Welcome
तन की व्यथा तो हर कोई बांच देता हैPart 2
क्या पंकज जी गुड्डी की तरह मेरे यौवन से खेलेंगे
अपने लौड़े पे मुझे बिठाकर क्या सारी रात वो पेलेंगे
इतना मोटा लौड़ा उनका मैं चूत में क्या ले पाऊँगी
गुड्डी को जब पता चला तो उसको क्या बतलाऊंगी
जो बातें नहीं हो मुमकिन क्यों उनका करु ख्याल
ऐसा ही सब से होता है मैं क्यों दिल में रखू मलाल
ये सब मैं क्या सोच रही हूं ये सब है बेकार
ननदोई जी कैसे जुड़ जायेंगे मेरे दिल के तार
दिल के तार जोडू काहे बस तन का मिलन ही काफी है
दिल की मानू और तन की न मानू ये भी तो नाइंसाफी है
फ़िर रात को पतिदेव ने बिस्तर पे मुझे अधूरा छोड़ दिया
पांच मिनट में निकाल के पानी अपना मुखड़ा मोड़ लिया
number spinner google
देख के ऐसा रुख पति का गुस्सा बहुत था आया
सोच लिया था अब अपने लिए ढूंढूंगी मर्द पराया
ठान लिया था मैंने उतार दूंगी ये शराफत का चोला
बाथरूम में बैठी रगड़ रही थी जब मैं चूत का छोला
ख्यालो में खोयी मैं पंकज का ले रही थी लन
अब उनसे ही चुदने का मैं बना चुकी थी मन
एक नई सुबह हुई और मिट गई रात की स्याही
अपने घर को लौट आया रात का भटका राही
सोचा था जो रात को मैंने निकाल दिया अब मन से
ऐसा कैसे मुमकिन है मैं चुद जाऊ पंकज के लन से
ऐसा कौन इंसान यहाँ है जिसने जो मांगा वो पाया
सोच का पंछी मार उड्डारी वापस धरती पर आया
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Yeh kia likh diya apne arushi ji. Itni hot kavita. Jo kaam badi badi story nhi ke pati ( komal ji exception) wo is kavita ne kr diya, bilkul feeling ke sathमेरे प्रिय पाठकों...प्रस्तुत है अनाचार यथार्थता पर एक नई कविता। आशा है कि मुझे वही प्रेरणा मिलेगी जो मुझे पहले मिली थी….
शुरू कर रही हूं सलहज और ननदोई की कहानी
कैसे एक सलहज बन गई ननदोई की दीवानी
सुंदर बांका नौजवान और दिखाने में शरीफ
ननद रानी भी करती थी उनकी खूब तारीफ
पंकज जी भी बड़े शर्मीले देख के आँख चुराते थे
भाभी जी के सम्बोधन से मुझको सदा बुलाते थे
गुड्डी मेरे बहुत करीब थी मुझको बहुत ही भाती थी
दोनों जी भर बतियाते वो जब भी मायके आती थी
मेरी ननद की शादी को अभी हुआ था एक ही साल
पर एक साल में ही ननदोई जी ने कर दिया कमाल
दुबली पतली ननद थी मेरी और नींबू छोटे छोटे
अब बाहर को निकली गांड और मम्मे मोटे मोटे
पूछो जब भी राज़ इसका वो थोडा शरमाती थी
सब पति की मेहनत बस इतना ही कह पाती थी
वैसे तो मेरे पति भी बिस्तर में दिखलाते थे पूरा दम
पर दस साल की शादी में अब रोमांस हो गया कम
हफ़्ते में बस एक दो बार ही चुत मे लंड घुसाते थे
और एक बार में होकर ठंडे वो जल्दी सो जाते थे
बत्तीस की उमर थी मेरी और उमंगे अभी जवान
सेक्स को लेकर दिल में मेरे भरे थे खूब अरमान
कुचल दी दिल की चाहत सब छोड़ दिया किस्मत पे
खुद को मैंने झोंक दिया था अपनों की खिदमत में
लेकिन कभी देख ननद को दिल में होती थी हलचल
कुछ नादानी करने को मेरा भी मन मचले था हर पल
इस बार जब आई गुड्डी तो मैंने खूब उसे उक्साया
जाग उठी सब दबी चाहते फिर जो उसने बतलाया
खुल के बोलो ननद रानी अब मुझसे क्या शरमाना
हम दोनों तो राज़दार हैं फिर मुझसे क्या घबराना
बालिशत भर का ख़ूँटा इनका और हद से ज़्यादा मोटा
कड़क तो इतना हो जाता है जैसे कोई बांस का सोटा
सुहागरात को नंगा करके पतिदेव ने इतनी करी ठुकाई
अगले दो दिन गरम पानी के टब में करती रही सिकाई
ख़ूब दबाते हैं मम्मे मेरे और ख़ूब चूसते चूत
चूस चूस के निकाल देते हैं मेरी चूत से मुत
जब भी मौका मिलता इनको मैं जाती हूं पेली
पहले हफ़्ते में ही पंकज ने गांड थी मेरी ले ली
दिन रात मेरी चूत से कामरस की नदिया बहती थी
पूरी रात मेरी चूत और गांड इनके लौड़े पे रहती थी
हनीमून में तो चोद चोद के हालत पतली कर दी थी
मेरे हर इक छेद में पंकज ने अपनी मलाई भर दी थी
अब भी इतनी ठरकी है ये मेरी रोज़ रात को लेते हैं
पहले चुसवाते अच्छे से लौड़े फ़िर मेरी चूत में देते हैं
![]()
भारी हो गई सांसे मेरी धड़क धड़क दिल जाए
ऐसा कोई मर्द कभी भी काश मुझे मिल जाए
कितनी अलग है गुड्डी से ये सेक्स लाइफ हमारी
दस साल की शादी में बाद भी मेरी गांड कुंवारी
दिन मैं तो जो मुझे बनाकर रखे वो अपनी रानी
रोज़ रात को खोद खोद के निकाले चूत का पानी
दस साल में औरत की क्या सब हसरते मर जाती है
अपने दिल की बात वो किसी से क्यों नहीं कह पाती है
भाभी अब तुम अपनी बोलो क्या अब भी भैया सताते हैं
मेरी इस गदराई भाभी को क्या अब भी रोज़ जगाते हैं
तेरी शादी अभी नई है हमारे बीत गए दस साल
अपना तो हफ़्ते में दो दिन तेरे जैसा नहीं है हाल
भाभी तुम तो अभी जवान ही क्यों करती हो ऐसी बात
भैया की जगह पंकज होते तो सोने ना दे तुम्हें पूरी रात
गुड्डी ने तो बेख्याली मे बोल दी ऐसी बात
लेकिन उसने छेड़ दिए थे सोए हुए जज्बात
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