मेरे प्रिय पाठकों...प्रस्तुत है अनाचार यथार्थता पर एक नई कविता। आशा है कि मुझे वही प्रेरणा मिलेगी जो मुझे पहले मिली थी….
शुरू कर रही हूं सलहज और ननदोई की कहानी
कैसे एक सलहज बन गई ननदोई की दीवानी
सुंदर बांका नौजवान और दिखाने में शरीफ
ननद रानी भी करती थी उनकी खूब तारीफ
पंकज जी भी बड़े शर्मीले देख के आँख चुराते थे
भाभी जी के सम्बोधन से मुझको सदा बुलाते थे
गुड्डी मेरे बहुत करीब थी मुझको बहुत ही भाती थी
दोनों जी भर बतियाते वो जब भी मायके आती थी
मेरी ननद की शादी को अभी हुआ था एक ही साल
पर एक साल में ही ननदोई जी ने कर दिया कमाल
दुबली पतली ननद थी मेरी और नींबू छोटे छोटे
अब बाहर को निकली गांड और मम्मे मोटे मोटे
पूछो जब भी राज़ इसका वो थोडा शरमाती थी
सब पति की मेहनत बस इतना ही कह पाती थी
वैसे तो मेरे पति भी बिस्तर में दिखलाते थे पूरा दम
पर दस साल की शादी में अब रोमांस हो गया कम
हफ़्ते में बस एक दो बार ही चुत मे लंड घुसाते थे
और एक बार में होकर ठंडे वो जल्दी सो जाते थे
बत्तीस की उमर थी मेरी और उमंगे अभी जवान
सेक्स को लेकर दिल में मेरे भरे थे खूब अरमान
कुचल दी दिल की चाहत सब छोड़ दिया किस्मत पे
खुद को मैंने झोंक दिया था अपनों की खिदमत में
लेकिन कभी देख ननद को दिल में होती थी हलचल
कुछ नादानी करने को मेरा भी मन मचले था हर पल
इस बार जब आई गुड्डी तो मैंने खूब उसे उक्साया
जाग उठी सब दबी चाहते फिर जो उसने बतलाया
खुल के बोलो ननद रानी अब मुझसे क्या शरमाना
हम दोनों तो राज़दार हैं फिर मुझसे क्या घबराना
बालिशत भर का ख़ूँटा इनका और हद से ज़्यादा मोटा
कड़क तो इतना हो जाता है जैसे कोई बांस का सोटा
सुहागरात को नंगा करके पतिदेव ने इतनी करी ठुकाई
अगले दो दिन गरम पानी के टब में करती रही सिकाई
ख़ूब दबाते हैं मम्मे मेरे और ख़ूब चूसते चूत
चूस चूस के निकाल देते हैं मेरी चूत से मुत
जब भी मौका मिलता इनको मैं जाती हूं पेली
पहले हफ़्ते में ही पंकज ने गांड थी मेरी ले ली
दिन रात मेरी चूत से कामरस की नदिया बहती थी
पूरी रात मेरी चूत और गांड इनके लौड़े पे रहती थी
हनीमून में तो चोद चोद के हालत पतली कर दी थी
मेरे हर इक छेद में पंकज ने अपनी मलाई भर दी थी
अब भी इतनी ठरकी है ये मेरी रोज़ रात को लेते हैं
पहले चुसवाते अच्छे से लौड़े फ़िर मेरी चूत में देते हैं
भारी हो गई सांसे मेरी धड़क धड़क दिल जाए
ऐसा कोई मर्द कभी भी काश मुझे मिल जाए
कितनी अलग है गुड्डी से ये सेक्स लाइफ हमारी
दस साल की शादी में बाद भी मेरी गांड कुंवारी
दिन मैं तो जो मुझे बनाकर रखे वो अपनी रानी
रोज़ रात को खोद खोद के निकाले चूत का पानी
दस साल में औरत की क्या सब हसरते मर जाती है
अपने दिल की बात वो किसी से क्यों नहीं कह पाती है
भाभी अब तुम अपनी बोलो क्या अब भी भैया सताते हैं
मेरी इस गदराई भाभी को क्या अब भी रोज़ जगाते हैं
तेरी शादी अभी नई है हमारे बीत गए दस साल
अपना तो हफ़्ते में दो दिन तेरे जैसा नहीं है हाल
भाभी तुम तो अभी जवान ही क्यों करती हो ऐसी बात
भैया की जगह पंकज होते तो सोने ना दे तुम्हें पूरी रात
गुड्डी ने तो बेख्याली मे बोल दी ऐसी बात
लेकिन उसने छेड़ दिए थे सोए हुए जज्बात