Part 3
एक दिन फिर सुबह सुबह बदन पर मल के तेल
बड़े मजे से बाहर आंगन में ससुर जी दंड रहे पेल
बदन पे उनके बधा हुआ था एक छोटा सा लंगोट
उस लंगोट से बाहर झाक रहे दो मोटे से अखरोट
देख कठोर बदन ससुर का दिल में उठी इक टीस
ससुर जी होते मेरे पति तो अपने नीचे देते पीस
देख उभार लौड़े का लंगोट में अरमान लगे मचलने
डाल हाथ कच्छी में अपनी मैं लगी थी चूत मसलने
एक जवान छोरे की भँति वो ऐसे पेल रहे थे दंड
मुझे लगे ऐसे वो जैसे मेरी चूत में पेल रहे हो लंड
वैसे ही मैं तड़प रही थी पिछले तीन महीने से प्यासी
ससुर के नंगे बदन ने मेरी प्यास थी और भड़का दी
रसोईघर में जाके फिर मैं एक मोटा सा खीरा लाई
देके अपनी चूत में उस को मैंने अपनी प्यास बुझाई
लन कीप्यास कहां बुझती है एक बेजान से खीरे से
लगी रेंगने हजारो चींटियाँ नीचे मेरी चूत के चिरे में
एक अदद लम्बे लौड़े की मुझे अब थी बहुत तलाश
बिना चुदाए चुत इतने दिनों से मैं होने लगी हताश
काश ससुर जी आज ही मुझे अपने नीचे बिछा ले
और चोद चोद के चूत मेरी को इसकी आग बुझा दे