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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २३६ - मंगलवार, दिल्ली

अपडेट पोस्टड, पृष्ठ १४३३ फायनेंसियल थ्रिलर का नया मोड़,

कृपया पढ़ें, आंनद लें और कमेंट जरूर करें
 
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motaalund

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यहाँ माहौल भी था, सुनने वाले रसिया भी थे,

और सबसे बढ़कर गुड्डी बाई

और आपकी फरमाइश का ध्यान था मुझे और छुटकी में तो सारा खेल आम और महुआ के बाग़ में हो रहा था, तो गाँव का मजा गाँव में और कोठे का मजा कोठी में
जिय हो गुड्डी बाई...
जियरा लूट के ले गइल तू...
सौ के गड्डी मोटालंड के नाम से न्योछावर....
 

motaalund

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गुलाबी बाई या गुलाब बाई

कानपुर की नौटंकी कम्पनी थी गुलाब बाई की, तब न शोभा थियेटर का जोर था न आर्केस्ट्रा टाइप डांस का और नौटंकी में नौटंकी होती थी, नाच के साथ

गुलाब बाई के कई गानों के रिकार्ड भी बने

या क्या पता गुलाबी बाई ही हों
काफी दिन हो गए...
शायद मेरी याददाश्त कुछ कमजोर हो गई हो...
 

motaalund

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नौटंकी की बात ही और थी, आर्केस्ट्रा ने वो सब जमाने बिसरा दिए

नौटंकी के नगाड़े की आवाज दूर दूर तक जाती थी, और विदूषक का रोल भी अहम् होता था, शुरू में सब कलाकार एक साथ मंच पर आ कर साथ साथ गाते थे,
और एनाउंसर भी अपने वाक् पटुता से...
द्विअर्थी संवादों से मजमा बांधे रहते थे...
 

motaalund

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गाने के बॉल थोड़े बदल दिए गए, लेकिन बदले हुए शब्द ज्यादा अनुकूल थे
यही तो आपकी विशिष्ट कलाकारी है...
जो दूसरे अपनी कहानियों में कर नहीं पाते...
 

motaalund

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भौजाई के लिए इससे ज्यादा मजे की बात क्या होगी

ननद एक भाई तीन

कितने भाई थे,

सिर्फ तीन भाभी ,
कितनी भाभियां थी --- दो
और भाई सिर्फ तीन --- ये तो पूरे नाइंसाफी है...
 

motaalund

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आज की रात तो नहीं, लेकिन रीनू को तो गुड्डी ने कह सुन के तीन दिन के लिए रोक लिया है तो आप सब की मांग उन तक पहुंचा दी गयी है तो क्या पता, अगली किसी पोस्ट में
तीन दिन... तीन भाई... और तीन हीं छेद....
हर बार बदल बदल के...
 

motaalund

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जोरू का गुलाम भाग २२३

रात अभी बाकी है

२६,२२,६२६
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लेकिन बचे हम दोनों भी नहीं, हम दोनों अपने अपने जीजा की गोद में बैठे थे, मैं कमल जीजू के गोद और रीनू मेरे मरद, अपने जीजू की गोद में,

रीनू ने लाइट बंद कर दी थी, सिर्फ नाइट लैम्प जल रहा था,
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खिड़की के बाहर से बरसती बूंदे दिख रही थीं, और शीशे पर पेड़ के पत्तो पर उनकी गिरती आवाज और धीरे धीरे पत्तों से सरक कर मिटटी में बारिश के गिरने की आवाज और मादक लग रही थी, ऊपर से गुड्डी का बाई को मात कर देने वाला नाच, और उसके साथ अजय,

सैंया मारे सटा सट, मारे सटा सट,

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कमल जीजू ने मुझे थोड़ा सा उचका के मेरे चौड़े नितम्बों को और फैला दिया था पूरी ताकत से और अब जब मैं बैठी थी उनका मोटा खूंटा सीधे मेरी पिछवाड़े की दरार के अंदर, म्यूजिक के साथ ताल देते जब कमल जीजू आगे पीछे होते, तो वो मोटा खूंटा भी उनकी साली के पिछवाड़े की दरार में आगे पीछे रगड़ घिस्स रगड़ घिस्स, और मैं भी साथ देते हुए आगे पीछे अपनी दरार को उनके मोटे मूसल पे रगड़ रही थी, कभी पूरा जोर लगा के उसे दबा भी देती,

जैसे कोई कुण्डी खडका रहा हो अंदर आने के लिए, और मुझे मालूम था की ये शेर आज पागल हो रहा है अंदर घुसेगा तो चीड़ फाड़ के रख देगा,


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रख देगा, तो रख देगा, मेरे जीजू हैं,

और कमल जीजू मेरी बड़ी बड़ी चूँचियों को भी पकड़ के साथ में रगड़ रहे थे, और मतलब हलके हलके नहीं, पूरी ताकत से, दबा रहे थे, पीस रहे थे, कभी कस के मेरे निप्स को पिंच कर देते,

और जैसे अजय ने गुड्डी को निहुरा के, कुतिया बना के पेलना शुरू किया हम दोनों बहने भी अपनी ननद की जबरदस्त रगड़ाई के लिए अजय जीजू को उकसा रही थीं,

पेल दे, फाड़ दे, चोद दे, जीजू. मैं बोल रही थी,

अरे भोंसड़ा बना दे, दो दिन तक खड़ी न हो पाए, हचक के चोदो, ऐसा माल चोदने का मौका रोज नहीं मिलत। रीनू बोल रही थी ,अजय को अपने मरद को ललकार रही थी,

और अजय के शॉट को देखकर कमल जीजू की भी हालत खराब हो रही थी और उनकी गोद में बैठी उनकी साली, मेरी भी। मैंने कस के अपने पिछवाड़े का जोर कमल जीजू के मोटे मूसल पर बढ़ा दिया था, अब जो होना हो सो हो, वो कल की लड़की, महीना भर भी नहीं हुआ था मेरे मरद से फ़टे और कैसे चूतड़ उचका उचका के अजय जीजू के धक्को का जवाब धक्को से दे रही थी।
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कमल जीजू से भी नहीं रहा जा रहा था, मोटा लंड साली की गांड के दरार से इतने देर से रगड़ घिस कर रहा था, और सामने एक इंटर वाली कस के चुदवा रही थी,

अजय जीजू ने गुड्डी के लौंडा मार्का चूतड़ पर दो तमाचे लगाए चटाक चटाक और खूंटा पूरा बाहर निकाल लिया,

" निहुर स्साली, " जोर से गुड्डी का सर एकदम फर्श पे दबाते हुए अजय जीजू बोले, और अब गुड्डी का सर जमीन पर, चूतड़ हवा में खूब उठे हुए,

नहीं अजय जीजू ने गांड नहीं मारी गुड्डी की। आज की रात तो रीनू ने गुड्डी के पिछवाड़े को अभयदान दिया था। लेकिन जिस ताकत से अपना मोटा खूंटा उस किशोरी की कच्ची बिल में ठेला, बेचारी की तो चीख निकल ही गयी, हम सब हदस गए, और उसका असर कमल जीजू पर भी हुआ ,

उन्होंने मेरी पीठ पर जोर देकर मुझे झुकाया और बोले,

" निहुर स्साली "
अब तो भूखा शेर ...
जोरदार हमले के लिए पोज बना चुका है...
बल्कि निहुरा के पोज बनवा दिया है...
और पंजे (लंड) को धंसाने हीं वाला है...
शिकार छटपटाने अलावा कुछ कर नहीं सकता...
 
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motaalund

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कमल जीजू


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अजय जीजू ने गुड्डी के लौंडा मार्का चूतड़ पर दो तमाचे लगाए चटाक चटाक और खूंटा पूरा बाहर निकाल लिया,

" निहुर स्साली, " जोर से गुड्डी का सर एकदम फर्श पे दबाते हुए अजय जीजू बोले, और अब गुड्डी का सर जमीन पर, चूतड़ हवा में खूब उठे हुए, नहीं अजय जीजू ने गांड नहीं मारी गुड्डी की। आज की रात तो रीनू ने गुड्डी के पिछवाड़े को अभयदान दिया था। लेकिन जिस ताकत से अपना मोटा खूंटा उस किशोरी की कच्ची बिल में ठेला, बेचारी की तो चीख निकल ही गयी,

हम सब हदस गए, और उसका असर कमल जीजू पर भी हुआ ,

उन्होंने मेरी पीठ पर जोर देकर मुझे झुकाया और बोले,

" निहुर स्साली "

और मैं निहुर गयी।


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मैं तो इसी का इन्तजार कर रही थी, इत्ती जोर से जीजू का मोटू जो मेरे पिछवाड़े रगड़ रहा था बड़ी जोर जोर से चींटियां काट रही थीं, मन कर रहा बस कमल जीजू कब निहराएँ कब सटाये, कब घुसेड़ें,

कमल जीजू ने कस के मेरी पीठ दबाये और मैं भी अब एकदम गुड्डी की तरह मेरा सर फर्श से चिपका, चूतड़ हवा में उठा,

मेरी गांड में आग लगी थी, इतने देर से कमल जीजू का शैतान मोटू पीछे तंग कर रहा था, बस मन कर रहा था घुसेड़ दें, पेल दें, वैसे तो ललचाते रहेंगे, कभी चूतड़ में चिकोटी काटेंगे, कभी दरार में ऊँगली कर देंगे, और मैं ललचाती भी थी उनको अपने मोटे मोटे नितम्बो मटका के, तीनो बहनो में सबसे चौड़े मेरे ही थे, और आज जब मैं निहुर के तैयार थी, वो तड़पा थे,

" जीजू करो न " मैंने दबी जुबान से कहा,

" का करूँ स्साली "

चिढ़ाते हुए वो बोले और मैं समझ गयी वो गारी सुनना चाहते हैं , मेरे और रीनू दोनों के जीजू , जब तक बहन महतारी गरियाई न जाए, उनका मन नहीं भरता था,

" अरे स्साली क गांड मारो, तोहार बहन महतारी तो हैं नहीं यहाँ जिनकी मारोगे, एक है भी तो उस पे अजय जीजू चढ़े है, "

छनछना के मैं बोली और खुद अपने दोनों हाथों को पीछे कर के कस के अपने दोनों चूतड़ फैला लिए, कसी दरार अच्छी खासी फ़ैल गयी



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और सामने छप्पन भोग रखा हो, तो कौन रोक सकता है अपने को और कमल जीजू तो गांड के पुराने शैदाई और मेरे पिछवाड़े के तो वो दीवाने थे।
एक हाथ से उन्होंने चूँची दबोच रखी थी, दूसरे हाथ से कमर को पकड़ के उन्होंने करारा धक्का मारा,
मेरी चीख निकल गयी, लेकिन ये तो अभी कुछ भी नहीं था, अब दोनों हाथ कमर को कस के पकड़ के जो उन्होंने धकेला,

उफ्फ्फ्फ़ ओह्ह्ह्हह रोकते रोकते भी मैं सिसक पड़ी, पास में फर्श पे रखे एक तकिये को खींच के अपना सर उसमे भींच लिया, दोनों हतहों से तकिये को पकड़ लिया, पिछली बार भी चार पांच बार उन्होंने मेरी मारी थी, और उस बार तो एकदम पहली बार लेकिन ऐसा दर्द,

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जीजू ने बाहर निकाल कर बस हलके से ठोंक दिया, पूरा सुपाड़ा भी अंदर नहीं घुसा था लेकिन इतनी कस के उसने मेरी पिछवाड़े की सुरंग की दीवाल को रगड़ा दरेरा, लगता था कुछ छिल सा गया, और वो बार अपना मोटा सुपाड़ा वहीं रगड़ रहे थे, दरेर रहे थे,

दर्द से मैं बेहाल थी, और अभी तो पिछवाड़े का खैबर का दर्रा पार भी नहीं हुआ था, जैसे मेरे मन की बात उन्होंने सुन ली और क्या करारा धक्का मारा की खैबर का दर्रा पार, लेकिन इस बार वहां भी कुछ छिल सा गया,

दर्द भी बहुत हुआ था और मजा भी बहुत आया था जब पिछली बार कमल जीजू ने मारा था लेकिन इस बार तो दर्द की इंतहा से थी, मेर्रो दोनों आँखों से आंसू टप टप चू रहे थे, मैंने मुंह तकिये में भींच रखा था की चीखे न निकलें, लेकिन दर्द इतना हो रहा था की मेरे मुंह से निकल ही पड़ी चीखें

उईईई ओह्ह उईईईईई नहीं नहीं जीजू बहुत लग रहा है थोड़ा हलके से, एक मिनट एक मिनट प्लीज,

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जीजू रुक तो गए उन्होंने बाहर निकाल भी लिया लेकिन अबकी जो पेला तो बंद कमरे में भी तारे दिख गए, दर्द बहुत हो रहा था लेकिन मजा भी आ रहा

जहाँ जहां छिला था अंदर उसी जगह पर दरेरते रगड़ते, और अभी आधा से ज्यादा अंदर था, बिन रोये मेरी आँखों से आंसू छलक रहे थे लेकिन i उत्तेजना के मारे पूरी देह काँप रही थी, मस्ती से मेरे जोबन पथरा रहे थे,
अभी तारे दिखे...
फिर आसमान की सैर...
हिंडोले पर..
ऊपर नीचे ऊपर नीचे....
 
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