ऑपरेशन गोल दरवाजा
तो रीनू का आपरेशन ' गोल दरवाजा' शुरू हो गया था जिसके दो टारगेट थे, एक तो ये, उसके जीजू , उन्हें पक्का पिछवाड़े का रसिया बनाना, ....और दूसरे गुड्डी, जिसके गोल दरवाजे में सुबह सुबह ही एक मोटा बट्ट प्लग रीनू ने ठेल दिया था, जिससे गुड्डी की गांड को आदत पड़ जाए।
और अब वो गुड्डी के भैया को गुड्डी के पिछवाड़े चढ़ने के लिए उकसा रही थी। अभय दान तो रीनू ने खाली कल रात के लिए दिया था अब नई सुबह नए काम,
फिर रीनू अलग हट कर गुड्डी को सुनाते चिढ़ाते बोली ,
" जीजू मेरी ननदिया ने इत्ती बढ़िया , अपनी ,...आपको अभी , सुबह सुबह ,... तो आपको भी तो मेरी सेक्सी टीनेजर ननद के लिए कुछ करना चाहिए न , बेचारी की कसी कसी गांड ही मार लीजिये , सुबह से खुजली मच रही है , इसके पिछवाड़े ,... "
जोरू का गुलाम तो आधे से ज्यादा मर्द होते हैं, बाकी होते हैं लेकिन मानते नहीं, कम से कम होने दोस्तों और मायके वालों के सामने। लेकिन साली के गुलाम तो सौ प्रतिशत होते हैं और ख़ुशी से होते हैं, और ये तो अपनी साली रीनू के गुलाम ही नहीं चमचे भी थे।
तो अब गुड्डी के पिछवाड़े के बचने का सवाल ही नहीं था,
और उनकी बहन गुड्डी कौन कम छिनार थी,
फिर जिसकी जिसकी गांड में कमल जीजू का मूसल घुस जाता है वो उसके पिछवाड़े हरदम चींटी काटती रहती है,
और ऊपर से इस आपरेशन गुड्डी का गोल दरवाजा में मैं भी शामिल थी, रीनू अपने जीजू के साथ और मैं अपनी ननदिया के साथ।
गुड्डी निहुरि हुयी, उसके ब्याविश लौंडा मार्का चूतड़, जिसे देख के जिन लौण्डेबाजो का इलाज नीम के पेड़ के बगल वाले, मर्दाना कमजोरी का शर्तिया इलाज करने वाले डाक्टर जैन भी नहीं कर पाते, उन का भी खूंटा गुड्डी के लौंडा छाप छोटे छोटे खूब टाइट चूतड़ देख के खड़ा हो जाता है। और अभी तो गुड्डी रानी अपने भैया को चूतड़ मटका के, उचका के उकसा भी रही थी, ललचा भी रही थी,
और उसके भैया का खूंटा खड़ा, तन्नाया और उनकी साली ललकार रही थी,
" स्साली रंडी कुतिया बनी निहुरी है मार लो "
लेकिन मेरा यार भी आज बदमाशी पर तुला था।
उनका खूब मोटा फूला सुपाड़ा, अपनी बहन के पिछवाड़े के छेद पर बस वो रगड़ रहे थे, जब लगता अगले धक्के में अंदर घुसेगा बस छुला के हटा लेते, और गुड्डी सिसक उठती।
मेरे साथ भी तो वही करते थे, मेरे गुलाबो के साथ और मैं जैसे गरम तावे पे कोई दो बूँद पानी की डाल दे, उस तरह से छनक उठती थी, और यही हालत गुड्डी की भी हो रही थी। मैं तो उनकी भीं महतारी गरियाती थी, फिर धक्के ऐसे चालू होते थे लेकिन गुड्डी अभी नयी नयी थी, नहीं रहा गया तो बेचारी सिसकती बोली,
" भैया करो न "
कुछ साली का असर और कुछ एक बार अपनी बहन और साली के पिछवाड़े का मजा ले लेने का असर, वो और चिढ़ाते हुए बोले,
" क्या डालूं मेरी दुलारी बहिनिया "
गुड्डी बेचारी सिसक रही थी लेकिन झिझक भी रही थी बोलने से, पर मैं उसकी भौजाई थी न उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए, समझाने के लिए
" अरे कस के गरिया के एकदम खुल के बोल, मैं जानती हूँ तेरे भैया की बदमाशी, ऐसे तड़पाते रहेंगे, " फुसफुसा के उसके कान में मैं बोली।
लेकिन रीनू जो अपने जीजू की ओर से थी, गुड्डी को गरियाते बोली,
" अबे स्साली रंडी, कुछ पूछ रहे हैं, बोल साफ़ साफ़, रंडी को रंडी की ही जुबान अच्छी लगाती है। "
गुड्डी अब असली रूप में आ गयी, बोली, " अरे मेरे बहन चोद भइया, अपनी बहन की गांड मार अपने मोटे लंड से, पेल दे अपना मोटा लंड मेरी अपनी बहन की गांड में "
बस रीनू ने अपनी ननद के दोनों चूतड़ फैलाये, और रीनू के जीजू ने वो करारा धक्का मारा की एक बार में सुपाड़ा अंदर,
" उईईई, नहीं भैया, जान गयी, लग रहा है ओह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ रुक जा, ओह्ह्ह नहीं उफ्फ्फ "
दर्द से जो गुड्डी चीखी, बाहर सड़क तो उसकी चीख जरूर गयी होगी।
" ज़रा और जोर से चीख रंडी रानी, आस पास के मोहल्लों में भी खबर फ़ैल जायेगी, जबरदस्त माल है, कल से तेरी गांड के आशिकों की लाइन लगी रहेगी, "
रीनू एकदम असली भाभी की तरह गुड्डी ननदिया से बोली।
गुड्डी १६० + आई क्यू वाली थी, एक बार में ही सीख गयी थी, गांड मरवाने के लिए आइडियल पोज, निहुरी, सर एकदम नीचे सटा लेकिन चूतड़ खूब उठे और टाँगे फैली, जाँघे खुलीं, लेकिन थी उसकी बहुत कसी, वैसे भी अभी उम्र ही क्या थी, महीने भर पहले ही इंटर पास किया, और कल पहली बार पिछवाड़े का फीता कटा, और तीन तीन मूसल एक के बाद एक पिछवाड़े में चले, लेकिन रात भर में फिर जस की तस,
टाइट, चुहिया की चूत ऐसी, और मेरे मरद का ऐसा की सांड लजा जाये उसके सामने,
ये पूरी ताकत से ठेल रहे थे, पेल रहे थे, दोनों हाथों से कस के उन्होंने अपनी बहिनिया की कमर पकड़ रखी थी, एकदम धीरे धीरे सरक सरक कर, दरेरता, रगड़ता, अंदर घुस रहा था। गुड्डी को कल कमल जीजू ने सबसे पहले, और जिसकी कुँवारी बिन चुदी गांड कमल जीजू खोलें वो अंदर छिली न हो, चमड़ी अंदर की फटी न हो ये हो नहीं सकता और आज जब उसे रगड़ते गुड्डी के भैया का घुस रहा था गुड्डी जोर जोर से चिल्लाती,
" भैया लग रहा है, दर्द हो रहा है ओह्ह ओह्ह, भैया प्लीज "
" सच में दर्द हो रहा है, मेरी बहन को " धक्का रोकते हुए ये बोले,
" हाँ भैया बहुत, मिर्चे ऐसा छरछरा रहा है " सुबकते हुए वो टीनेजर बोली,
" तो निकाल लूँ क्या " अपनी बहन को चिढ़ाते छेड़ते ये मुस्करा के बोले।
अब गुड्डी अलफ़, मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रहे थे उस टीनेजर के, बोली भी तो जहर, एकदम जैसे कोई ड्रैगन फुफकार रहा हो
" खबरदार जो निकलने के बारे में सोचा भी, मैंने निकालने के लिए कहा क्या, अगर अगली बार गलती से भी निकालने के लिए बोलै न तो जिंदगी भर राखी नहीं बांधूंगी, बिना पैसे के राखी बाँधने वाली दुनिया की अकेली बहन हूँ मैं और ऊपर से , "
मैं और रीनू मुस्करा रहे थे, असली दर्द तो अभी बाकी था, गांड के छल्ले का और बहन की इस धमकी का तो किसी भाई के पास जवाब नहीं तो कमर पकड़ के इन्होने कस के ठेल दिया और गांड का छल्ला पार, दर्द से गुड्डी की हालत खराब थी, चेहरा एकदम टेन्स, आँखों में आंसू डबडबा रहे थे, दांतों से होंठ को काट के दर्द को रोकने की कोशिश कर रही थी, दोनों हाथों से चद्दर को कस के दबोचे थी, और बहुत रोकने के बाद भी चीख निकल गयी,
उईईई, उईईई ओह्ह्ह, नहीं उईईई
और एक कतरा शबनम का गुड्डी के दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखों से टपक के गालों पे, गुलाब ऐसे मुलायम ननद के गाल पर से उसके खारे आंसू चाटने का मजा ही और है और मैंने वो आंसू चाट लिया और कचकचा के अपनी ननद का गाल काट लिया, एकदम मालपुआ
गौने की रात दुल्हन की झिल्ली फाड़ने का और किसी कमसिन के गांड फाड़ने का मजा सौ गुना हो जाता है जब वो तड़पे, पानी से निकली मछली की तरह फड़फड़ाये, हाथ पैर फेंके और फिर कस के दबोच के पूरी ताकत के साथ, ठेलने का, पेलने का, धकेलने का
और गुड्डी के भैया ने वही किया।
पेल दिया, ढकेल, ठेल दिया उस सुकुमारी कन्या की कोमल कोमल गांड में,
गुड्डी एक बार फिर जोर से चीखी, दर्द से तड़पी, हवा में उछली, लेकिन फिर,