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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २४२, 'कीड़े' और 'कीड़े पकड़ने की मशीन, पृष्ठ १४९१

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर दें
 
Last edited:

motaalund

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Komal bhabhi aap bhaiya ko bolna kam tu chalte rahte hai
Kam ki tension ni lete hai wrna bhaiya ki tabiyat khrab ho jaygi
खराब तबीयत की देखभाल के लिए कोमल जी हैं ना....
 

motaalund

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Main bahut dino se pratiksha kar raha tha ki kab khani pichle forum se aage ki taraf badhegi. Maine to socha tha ki kacchi amiya khane aur khilane ke baad ab meethe rasgullon ka swad milega, per yeh bhi sahi hai. Corporate world ki politics, utaar chadaav kahani ko rochak aur vaastavikta ke adhik paas le aayenge. Saath me alag-alag logon ke pov bhi milte rahenge, unke khud ke munh se apni uttejna aur mann ki sthiti ka vivaran majedaar hoga.
👍👍👍👍
 

motaalund

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कमल तो साली के साथ साली की ननद को भी अपना गुलम बना लया इस पर रहते हैं नहला पर दहला जहां रोज लल्ली से खेलती थी कमल का उतना मोटा और लंबा नंनद भाभी तो मिस तो करेंगे ही अगर गुड्डी के भाई शेर हैं तो शेर के मुंह से शिकार छीन के करना कमल बब्बर शेर कहलाता है इसे कहते हैं मर्द जो कमल का किरदार है कहानी पढ़ने के बाद ऐसा लगता है असली हीरो यही है
समय समय की बात है...
और हीरो वही नहीं जो सबसे बलशाली हो... या किसी एक गुण में बढ़कर हो...
बल्कि compassionate and caring हो...
वो सबके दिलों पर राज करता है...
 

motaalund

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इस तेज चेंज पर मुझे लगा रहा था की पता नहीं कोई पढ़ेगा भी की नहीं और फिर कमेंट,

लेकिन आपने न सिर्फ कहानी का यह मोड़ पढ़ा, उसे लाइक किया और बदले परिदृश्य को सराहा भी और आपके साथ अनेक मित्रों ने भी, और मुझे आत्मविश्वास मिला की अब कहानी जिधर मुड़ पड़ी है वह दिशा भी मित्र पाठक पसंद करेंगे सराहेंगे

बाकी दो कहानियो में भी थोड़ा बदलाव आप देखंगे

और कोशिश करुँगी की फागुन के दिन चार, जिसमे भी जबरदस्त बदलाव आएगा आज कल में पोस्ट कर दूँ

वहां भी आपके कमेंट का इन्तजार रहेगा।
एक लंबे मौज-मस्ती वाले अपडेट के बाद इस तरह का चेंज आवश्यक था...
 

motaalund

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अभी तो कहानी शुरू हुयी है मेरा मतलब ये वाला हिस्सा

बस साथ बनाये रखियेगा, और इसी तरह से कमेंट तो देखिएगा इस कहानी में और क्या क्या आएगा
इब्तदाए इश्क है...
आगे आगे देखिए होता है क्या...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग २५ रंग पृष्ठ ३०८
एक मेगा अपडेट पोस्टेड
कृपया, पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें


अपडेट की कुछ बानगी

पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली। ये आर्डिनरी चेन नहीं थी, चेन का एक फेस बहुत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था। गिटार के तार की तरह,.... ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी। दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगाकर। गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहुत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे।

प्रैक्टिस, सही जगह तार का लगना और बहुत फास्ट रिएक्शन तीनों जरूरी थे।


पनद्रह बीस सेकंड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था

और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली, माडल 640।

मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहुत एक्युरेट।

इसमें 5 शाट्स थे। लेकिन एक ही काफी था। उसने पहले मुझे सामने खोजा, फिर गुड्डी की ओर।

तब तक तार उसके गले पे।

पहले ही लूप बनाकर मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में, तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे।

छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया। वो इस पेशे में इतना पुराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और,...

लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था।

मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से, और घुटना मुड़ गया। और दूसरी किक दूसरे घुटने पे। वो घुटनों के बल हो गया। लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी, और तार गले में फँसा हुआ था।

मैंने उसके कान में बोला- “मैं पांच तक गिनूंगा गिनती और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…”

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धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ-

“कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…”

गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।

और पीछे से थानेदार साहब।

पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।

“साल्ला मच्छर…”

बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-

“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को,... लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।

“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”

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तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।



क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।

सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।

खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।



एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।


सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-

“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।



Please do read latest action filled update of Phagun ke din chaar
माहौल का सटीक वर्णन...
 

motaalund

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आपकी टिप्पणी पढ़कर बस यही लगता है की कोई व्यक्ति एक लब्धप्रतिष्ठित लेखक होने के साथ कुशल समीक्षक भी कैसे हो सकता है।

मैं मानती हूँ कहानी तभी कहनी चाहिए, जब कुछ कहने को हो। उस पर आवरण, इरोटिका का हो, थ्रिलर का हो या कोई और, लेकिन बात कुछ होनी चाहिए , लेकिन यह तो मानने की बात है, साथ में यह मनाती हूँ की कुछ ऐसे मित्र पाठक मिल जाएँ जो ऊपर के कलेवर को हटा के जो मैं कहना चाहती हूँ, उस तह तक पहुंचे और उस का न सिर्फ आनंद उठायें बल्कि कमेंट में भी कहें,

उपन्यास या लम्बी कहानी में इस बात की संभावना ज्यादा रहती है, इस कहानी के शुरू के प्रसंगो में लाइट फेम डॉम या उसका एक और रूप ' शी मेक्स द रूल ( SMTR ) की भी कुछ झलक है, इसी तरह से कोचिंग के बारे में भी,

और यह कारपोरेट रूप इस कहानी का अभी कुछ दिन तक चलेगा, जो मेरे लिए थोड़ा जटिल है और उसे कम्युनिकेट करना और जटिल लग रहा था , लेकिन आपके इन शब्दों ने मेरी हिम्मत बढ़ाई और मैं कोशिश करुँगी की यह पक्ष जो मेरे लिए तो नया है ही, इस फोरम में भी इस तरह के प्रयोग कम ही हैं, उस पर थोड़ा, लुढ़कते पुढ़कते ही सही आगे बढ़ सकूँ।

मुझे विश्वास है की अगर लड़खड़ाउंगी भी तो आप ऐसे स्नेही जन हाथ थाम के सहारा देने के लिए, हिम्मत बढ़ाने के लिए हैं

फागुन के दिन चार के भी लेटेस्ट अपडेट में इसी तरह का एक बदलाव है और तीसरी कहानी भी एक बदलाव की ओर मुड़ रही है

एक बार फिर आभार।
एक अच्छे लेखक के लिए एक अच्छा पाठक होना जरुरी है...
और तभी वो एक अच्छा समीक्षक भी बन सकता है...
 
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