कोमल जी,
सच कहूँ तो मैं केवल अपने विचार रख रहा था.. आपके लेखन की समीक्षा करना मतलब सूरज को दीपक दिखाने के बराबर होगा.. !! आपका लेखन कौशल अतुल्य है.. शब्द संरचना में जिस तरह की आपकी महारथ है.. उसे मैं हमेशा ही विस्मय से पढ़ता हूँ.. !!
उदाहरण रूप.. आपका यह वाक्य "कहानी तभी कहनी चाहिए, जब कुछ कहने को हो" चंद शब्दों में कितना कुछ कह गई आप.. !! निरुद्देश्य लेखन से परहेज लेखक/लेखिका के दृष्टिकोण को परिभाषित करता है.. कहानी का निर्माण और उसकी प्रस्तुति तभी करनी चाहिए, जब उसके पीछे एक ठोस वजह, विचार, या संदेश हो.. केवल मनोरंजन तो मदारी के बंदर को सायकिल चलाते देखकर भी मिल सकता है.. और वैसे भी मनोरंजन या समय बिताने के लिए कहानी लिखी जाए, तो उसका प्रभाव सीमित ही होगा..
आपने महिला यौन वर्चस्व और SMTR का उल्लेख किया..सच कहूँ तो मैंने इन विषयों का इतनी संजीदगी से विवरण नहीं देखा.. अमूमन इन विषयों के वर्णन मे जिस तरह की आक्रामकता का प्रयोग होता है, वो मुझे राज नहीं आता.. पर आपका अंदाज बेहद निराला था..!!!
कॉर्पोरेट जटिलताओ के ताने बाने, कहानी के इर्दगिर्द बुनते हुए जिस तरह की असाधारण पृष्ठभूमि को आपने कथा में पिरोया है.. शब्द कम पड़ेंगे सराहना करते हुए.. लेखन मे ऐसा साहस ज्यादातर देखने को नहीं मिलता.. लेखक उसी पृष्ठभू से खेलना पसंद करते है, जिनका उन्हें परिचय हो.. !!
अंत मे बस इतना ही कहूँगा.. अपनी लेखनी से ऐसे ही प्रेरित करते रहिए.. !!
सादर..
वखारिया