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पकौड़े कब के ख़तम हो चुके थे ,बड़ी प्लेट में लम्बी मोटी सुनहली सिन्दूरी रसीली कटी हुयी दसहरी आम की फांके , गुड्डी ने पहले तो मेरी और जेठानी जी की प्लेट में रखा , फिर अपनी प्लेट में ,
तबतक उनकी भौजाई को शरारत सूझी , छेड़ा उन्होंने ,
" दिन में खाने के टाइम गुड्डी से क्या मांग रहे थे , जरा एक बार फिर से बोलो न ,"
वो बिचारे एकदम झेंप गए, और ऊपर से गुड्डी ने और उन्हें चिढ़ाते हुए बोला ,
" हाँ भैया मैंने भी नहीं सुना था ,ठीक से। "
और उन्हें ललचाते हुए रसीले दसहरी की एक फांक अपने गुलाबी रसीले होंठों के बीच दबा लिया।
" हे बोल न , अब तो गुड्डी भी बोल रही है जिससे तूने माँगा था। "
मैंने भी ननद का साथ दिया।
थोड़े झिझके वो लेकिन गुड्डी के साथ अब वो भी ,.... बहुत बोल्ड हो गए थे। और मुस्कराते हुए उन्होंने बोल दिया ,
गुड्डी के होंठों में पकड़ी दबोची आम की लम्बी फांक की टिप अब बस आलमोस्ट उनकेहोंठों को छू रही थी।
" गुड्डी ,मुझे अपनी चूत दो न "
और वो शरीर ,शोख , शरारती मेरी ननद ,... जोर जोर से उसने ना में सर हिलाया और आम की सारी फांक गड़प।
गुड्डी के चेहरे से बदमाशी टपक रही थी।
" हे एक बार मांगो शायद अबकी देने को तैयार हो जाए " मैंने उन्हें उकसाया।
और उधर गुड्डी ने भी आम की फांक अपने मुंह में चुभलाते चूसते ,बंद मुंह से सर ऊपर नीचे हिला के हामी भरी।
और उन्होंने भी ,
" गुड्डी ,प्लीज मुझे अपनी चूत दो न ,... "
और अबकी गुड्डी ने न सिर्फ सर ऊपर नीचे कर के हामी भरी , बल्कि जो फांक वो चूस चुभला रही थी ,एक बार फिर गुड्डी के रसीले होंठो से सरकती सीधे ,इनके होंठों तक ,...होंठों के बीच।
इन्होने गुड्डी का सर पकड़ा इससे पहले गुड्डी ने इनका सर पकड़ा और कस के अपने मुंह की कूची,चूसी खायी फांक सीधे उनके मुंह में ठेल दी।
और साथ में अपनी जीभ भी , गुड्डी के मुख रस में लिथड़ी आम की फांक के साथ वो अब गुड्डी की जीभ भी चूस रहे थे।
दोनों के होंठ अब एक दम लिप लॉक।
और सिर्फ यही नहीं उनके हाथ अब सीधे कच्ची अमिया पर ,
और जेठानी जी बैठी , उन्होंने उठने की कई बार कोशिश की लेकिन मैंने रोक दिया।
जब वो और गुड्डी टेबल पर से प्लेट्स हटा रहे थे तो मैंने जेठानी जी से पूछा ,दी आपका कोई सीरियल तो नहीं आता ,
" नहीं यार आज का एकदम बोरिंग ,कोई अवार्ड का भी प्रोग्राम नहीं। " वो बोर होते बोलीं।
" तो ठीक है ये अभी जाएंगे न गुड्डी को छोड़ने तो बस इनसे मंगा लेते है कोई बढ़िया पिक्चर ,बस बैठ के देखेंगे " मैंने प्लान बताया।
" कौन सी "
" जो आपके देवर चाहें ,और साथ में कुछ खाने का भी उन्हें बोल देंगे ,उन्ही को आराम हो जाएगा ,वरना पिक्चर छोड़ के मैं तो जाउंगी नहीं और न आपको जाने दूंगी। "मैं बोली।
तबतक देवर जेठानी के आ ही गए , और उनको मैंने खाने का आर्डर दे दिया।
" हे ,आप की भौजाई आज कबाब खाना चाहती हैं , बढ़िया वाला। अरे जहाँ आपकी बहनें शाम को सज धज के ग्राहक पटाने बैठती है न वही पे जो ,... "
वो न एक बार में समझते नहीं , कन्फ्यूज बोले
" पर वो तो ,... "
और मैंने बहुत जोर से आँख मारी और उनकी खुली।
" हाँ समझ गया परफेक्ट वेज वाले,बिना लहसुन प्याज के , ... साथ में पराठे भी ले आऊंगा "
उनके पीछे पीछे गुड्डी , और वो दूर से ही बोली ,
" भाभी कपडे " वो जो कपडे पहन के आयी थी वो मांग रही थी।
मैं उसे लेके कपडे देने चली तो गुड्डी ने धीरे से बोला ,
" भाभी ,भइया को समझाइये न ,ज़रा घर पे मेरे प्रेस कर के समझायेंगे न तो लोग मान जाएंगे ,मुझे आप लोगों के साथ भेजने के लिए ,कोचिंग के लिए। "
" एकदम ,मेरी प्यारी ननद रानी , और अगर वो नहीं कन्विंस कर पाए न तो मैं निहुरा के उनकी गांड मार लूंगी ,पक्का "
उसके चिकने गाल पे हाथ फिराती मैं बोली
और खिलखिलाती वो दिवाली की फुलझड़ी की तरह हंस पड़ी।
मैंने मुड़ के देखा तो पीछे उसके भैय्या ,हम लोगों की बात सुनते ,मुस्कराते।
" सुन तो तूने लिया ही न , अब समझ लो , अगर गुड्डी कोचिंग नहीं ज्वाइन कर पायी ,हम लोगों के साथ नहीं चली , तो ये तो नहीं ही मिलेगी , मेरी ओर से भी पूरी हड़ताल , जैसे शादी से पहले अपनी बहनों का नाम लेके ६१ -६२ करते थे बस वैसे ही करते रहना। "
गुड्डी को वो जिस शलवार कुर्ते में आयी थी वो मैंने दे तो दिए , लेकिन ब्रा पैंटी उसे दिखा के जब्त कर ली ,आज की निशानी।
आग लग रही थी आग , जब मेरी मस्त ननदिया बाहर निकल के आयी।
बिना ब्रा के वो छोटे छोटे कबूतर तो साफ़ साफ़ दिख रहे ही थे उनकी लाल लाल छोटी छोटी चोंचें भी ,कड़ी कड़ी।
मैंने बस पास में जा के उसके दुपट्टे को एकदम उसकी लम्बी हिरनी की तरह गर्दन से एकदम चिपका दिया।
" अरे इत्ते मस्त जोबन और छिपा के , सख्त नाइंसाफी है " मैं बोली।
तबतक वो भी तैयार हो के आ गए एकदम हाट ,टाइट जींस , टी शर्ट।
हे तुम भाई बहन ने मिल के तो आम सब ख़तम कर दिए , तो २ किलो दसहरी ,और गुड्डी तेरे भैय्या को तो आम वाम की कुछ पहचान है नहीं तो तू ही इन्हे खरदीवा देना , और तेरी गली के आसपास कोई सी डी वाला है क्या ,
मेरी बात ख़तम होने के पहले वो चिड़िया चहक के बोली ,
" एकदम भाभी आप की बात एकदम सही है इन्हे आम की कुछ भी समझ नहीं है ,दिलवा दूंगी इन्हे आम भी और सीडी भी। चुन्नू है न उसी की दूकान एकदम मेरी गली के मोड़ पे , मुझे तो कंसेशन भी देता है कोई भी नयी पाइटेरेटड आये ,दूकान पे बुला के मुझे। "
" और अच्छी वाली लाना , चेक कर के दो कम से कम अब तो गुड्डी गाइड है न तेरे पास। "
" ठीक है ठीक जल्दी चल न गुड्डी " और उस का हाथ पकड़ के ,
मेरी निगाह जेठानी जी पे पड़ी, वो एकदम कुलबुला रही थीं और मैंने एक तीर और चला दिया।
वो लोग निकल गए थे , लेकिन मैंने जोर से चिल्ला के कहा ,
" हे तेरी सिगी का पैकेट ख़तम हो गया है , याद कर के ले लेना वरना ,.... "
उनकी आवाज तो नहीं आयी पर उनकी बहना की हंसती खिलखिलाती आवाज आयी ,
" भाभी याद रखूंगी ,ये भूल जायेंगे तो मैं याद दिला दूंगी। "
जेठानी जी का मुंह जैसे लटका था मैंने सोचा थोड़ी देर,...
मैं समझ रही थी उनकी झांटे सुलग रही हैं, कस कस के,
और बात ही सुलगने वाली थी, मैंने उनके ही मोहरे से उनको, जिस गुड्डी को आगे कर कर के अपनी बात,... आज वही, जैसे कोई मुख्यमंत्री अपने पूरे मंत्रिमण्डल के साथ दल बदल कर जाए, बस वही,
देवर के बारे में तो उन्होंने मान लिया था, मेरे रूप जोबन का नशा,... लेकिन उनकी वो ननदिया, जिसका इस्तेमाल न जाने कितनी बार उन्होंने किया था, उनका साथ छोड़ के हम लोगों के साथ,... और ऊपर से जो मेरी आखिरी लाइन थी , सिग्गी वाली,... और ऊपर से गुड्डी बजाय चौकने के बोली, भाभी मैं इन्हे याद दिला दूंगी,... जोर का झटका जोर से लगा,
मैं अबकी समझ गयी थी असली खेल इन्ही का था , क्यों था , ये भी मैं बॉबी जासूस पता लगा ही लूंगी,...
लेकिन मैं भी कौन , ... मैं उनकी वही देवरानी बनी, सीधी साधी, जिसे उन्होंने साल भर पहले ही तो उतारा था इसी घर में और तभी से कभी ज्ञान , कभी व्यंग्य बाण,....
और उनके पास जा के मैं बैठ गयी और फिर वही जो उनकी पुरानी आदत थी , ज्ञान गंगा बहने लगी।
" तुम कुछ करने के पहले सोचा करो न , ये गुड्डी को क्या बोल रही थी , तू उसे अपने साथ ले जाओगी और वहां अपने साथ रखोगी। "
"दीदी अब तो गुड्डी के घर वालों पर डिपेंड करेगा , फिर उसका ऐडमिशन हो जाए तब ,... " मैं धीमे से बहुत आदरपूर्वक बोली।
" लेकिन ये नहीं सोचा की कहीं तेरे वो , और गुड्डी का उनसे तो पहले ही ,... " वो मुझे कोंचती बोली ,लेकिन मैं चुप रही।
मन तो कह रहा था साफ़ साफ़ बता दूँ की उसे चुदवाने ले जा रही हूँ और उसकी सील तो उसके भैय्या से ही तुड़वानी है पर ,..कितने और चढ़ेंगे उसके ऊपर, किससे किससे मैं बयाना बट्टा ले चुकीं हूँ और उस रसमलाई का रस मैं भी तो लूंगी ....मैंने बड़ी मुश्किल से अपने को रोका
" ये नहीं सोचा की भूस और आग एक साथ रहें तो क्या होगा , मरद की जात और तेरी ननद को जोबन भी जबरदस्त आया है , मुश्किल हो जायेगा तुझे उन्हें रोकना , मैं बता देती हूँ। "
उन्होंने फिर ज्ञान दिया और बोला.
" कोशिश करो की ये प्रोग्राम कैंसिल हो जाये। "
मुझसे नहीं रहा गया , मैं बोल ही उठी ,
"दीदी आपने देखा ही न ,वो बेचारी कित्ता कोचिंग के लिए बेताब थी और सच में एक बार उसका मेडिकल में हो जाय तो ,.... "
"चाहने से सब मिलता है क्या , फिर इस शहर में लड़कियां नहीं है क्या , जो आगे नहीं पढ़ती क्या वो लड़कियां लड़कियां नहीं होती, मैंने भी तो इंटर पास किया है,। अरे दो चार साल शादी हो जायेगी ,बच्चे पैदा करेगी ,... तुम तो खुद ही पढ़ी लिखी हो समझ जाओ। "
जेठानी जी की शिक्षा चालू थी।
मैंने मन मारके बोला ,
"दीदी आपकी बात सही है अभी तो कुछ पक्का भी नहीं है। आपकी बात की तो मैं हरदम रिस्पेक्ट करती हूँ।"
इत्ता उपदेश देने से कुछ उनका मन ठीक हुआ ,बोलीं
"मैं जानती नहीं क्या तुझे , इस घर के जित्ते संस्कार है उसे तुम अच्छी तरह से माना है। "
फिर उन्होंने जोड़ा,
" तू बहुत सीधी है, इसलिए बोल रही हूँ, देख साल दो साल के बाद शादी के, मरद का मन ललचने लगता है, वही मिठाई खा खा के,... इधर उधर तो,... "
वो एक मिनट के लिए रुकीं और गहरी सांस ली , और मैंने भी गहरी सांस ली, सोचा बोल दूँ,
" दी, आप अपने इस देवर को नहीं जानती, मैं तो उसे धक्का दे दे के भेजती हूँ, तब भी वह बुद्धू बौड़म, उसे तो बस यही मिठाई अच्छी लगती है, ...सहेलियां कित्ता, सब उसकी स्साली लगती हैं, मैं भी कित्ती बार बोल चुकी हूँ, लेकिन उसे तो बस कोमलिया चाहिए,... दिन में दस बार तो आफिस से फोन,... और घर में भी बस इशारा समझने की कोशिश मैं क्या चाहती हूँ,... "
लेकिन नहीं बोली, उन्ही की बात सुनती रही, मुझे लगा बेचारी हार तो गयी ही हैं , अब अपनी भंडास बोल के निकाल लें , एक बार ये आ जायेंगे तो ये काली जीभ बंद हो जायेगी।
फिर उन्होंने जोड़ा देख अभी वो कितना चिपक रही थी , कैसे छिनार की तरह तेरे सामने चूम चूस रही थी, कैसी उसकी जवानी में आग लग रही थी , अरे जोबन सबको आते हैं, मेरे भी आये थे, लेकिन इस तरह खुल्लम खुल्ला, कोई लिहाज सरम नहीं, मैं एक बार फिर समझा रही हूँ, ... और मेरा देवर इत्ता सीधा है उसे तो ,... यही चरित्तर रहा तो कहीं बाहर कुछ ऊंच नीच हो गया तो उस का तो कुछ नहीं,... लेकिन तुम लोगों की नाक कटेगी, तुम समझाओ मेरे देवर को, लड़की की जात, ये हाईस्कूल इंटर वाली उमर बड़ी खतरनाक होती है ,... फिर खर्चा ऊपर से "
मैं ध्यान से चेहरे की ओर देखते हुए सुन रही थी, फिर एक लाइन जोड़ी उन्होंने, खूब गहरी सांस लेकर,
" लेकिन चलो, अभी पहले उसके घर वाले,... इस उमर में ऐसे साल साल भर के लिए बाहर भेजना,... मुझको तो नहीं लगता वो लोग मानेंगे,"
मुझे भी पतली गली से निकलने का रास्ता मिल गया, मैंने भी उनकी हाँ में हां मिलाते बोला,
" हाँ दी, आप सही कह रही हैं , पहले उसके घर वाले माने, अभी तो बस बात हुयी है,... "
लेकिन सुनने की सीमा होती है , मैंने बहाना बनाया,
,
" अच्छा दी चलती हूँ ऊपर ज़रा कुछ काम है बस थोड़ी देर में आती हूँ ,तब तक आपके देवर भी आ जाएंगे। "
लेकिन ऊपर चलने के पहले एक बात कहना मैं नहीं भूली ,
" दी ,आपके देवर पे मझे पूरा भरोसा है और शादी के दिन से ही ,जैसे कहते हैं हाथी घूमे गाँव गाँव , जिसका हाथ उसका नाम। तो बस वही हालत मर्दों की होती है , जितना लगाम लगाओ न उत्ते ज्यादा उछलते हैं खूंटा तुड़ाने की कोशिश करते हैं ,लेकिन अगर थोड़ा बहुत इधर उधर मुंह मार भी लेते हैं न तो उससे कुछ नहीं होता , वो मेरे हैं , मेरे ही रहेंगे। "
और ऊपर पहुंचते ही एक जबरस्त मेसेज आया , लिखा कुछ नहीं थी बस स्माइलीज ,लेकिन बात सारी उसने कह दी।
हग्स ,किसेज और लव एक नहीं ढेर सारे।
भेजने वाली और कौन मेरी प्यारी छिनार ननद गुड्डी।
मैंने भी ढेर सारे हग्स और किसेज भेज दिए। मतलब तीर निशाने पर लगा ,गुड्डी हमारे साथ चलेगी ,
मतलब तीर निशाने पर लगा ,गुड्डी हमारे साथ चलेगी ,
…………………………………………
और दन दनादन उसकी कसी छोटी सी ओखली में मोटे मोटे मूसल चलेंगे। सब से पहले तो इन्हिका ,
और मैं इन्ही का इंतजार कर रही थी , उनके मुंह से ही पक्की खबर सुनूंगी तो मुझे विश्वास होगा।
लेकिन मम्मी से तो मैंने ये खबर शेयर कर ही दी ,पहले उन्हें टेक्स्ट किया फिर वो स्काइप पे आ गयीं। मुझ से ज्यादा वो खुश वो थी और इस बात से और की मेरी छुटकी ननदिया,हफ्ते दस दिन केलिए नहीं पूरे साल भर के लिए चल रही थी हमारे पास।
बस अब कोई जल्दी नहीं थी ,आराम से धीरे धीरे,... मैंने उन्हें वो सारी फोटुएं भेज दीं जो गुड्डी की मैंने खींची थी।
उसके बाद कुछ फोटो ,कुछ वीडियों को जोड़ घटा के ,... और साथ में मैंने अपनी फेसबुक के साथ गुड्डी की भी स्टेटस अपडेट कर दी।
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था ६०० से ऊपर फ्रेंड्स रिक्वेस्ट ,मैंने सबको यस कर दिया। टीनेजर्स की तरह हर घंटे पर तो नहीं लेकिन दिन में चार पांच बार तो मैं भी अपनी फेसबुक स्टेटस अपडेट करती थी।
आलमोस्ट एक घंटे हो गए थे मुझे ऊपर आये और तब मुझे याद आया ये आने ही वाले होंगे।
इनका तो बेसब्री से इन्तजार था ,एक तो लम्बी शॉपिंग लिस्ट और दूसरे गुड्डी की चलने वाली खबर तो पक्की इन्ही से होनी थी।
मैं नीचे पहुंची तो जेठानी जी बरामदे में ही बैठीं थीं। थोड़ी देर हम लोग गप्पे मार रहे थे की दरवाजा खुला और ये आ गए।
मैं बता नहीं सकती थी ,इनके चेहरे पर छलकती ख़ुशी , और इनकी ख़ुशी के अहसास से ही मेरीखुशी दूनी हो जाती थी।
बस इन्होने मुझे कस के बाहों में भींच लिया ,बिना इस बात की परवाह किये की मेरी जेठानी सामने बैठी हैं , वो क्या सोचेंगी ,इत्यादि इत्यादि।
चुम्मे पर चुम्मा , गाल ,होंठ कुछ भी नहीं छोड़ा मेरे बावरे बेताब सैंया ने ,
तो मैं क्यों छोड़ती अपने सोना मोना को ,मेरे गदराये कड़े कड़े उभार भी कस कस के उनकी छाती पर रगड़ने लगे ,
मेरी हथेली उनके खूंटे का हाल जानने के लिए नीचे उनकी जींस के ऊपर तो ,जींस एकदम टाइट, बल्ज खूब तना।
मेरे साजन की खुशी का सबसे बड़ा बैरोमीटर वही था और मेरी हथेली ने जींस के ऊपर से ही रगडन मसलन चालू कर दी.
अंगूठे और तर्जनी के बीच जींस से छलकते उनके सुपाड़े को कस के दबा दिया।
उनका भी एक हाथ मेरे नितम्बो को खुल के दबा रहा था ,मसल रहा था ,ऊँगली सीधे मेरे पिछवाड़े की दरार पे ,
इसी घर में रात भर चिपके रहने के बाद ,दिन में हम दोनों एक दूसरे के पास भी नहीं बैठ पाते थे , एकदम न तुम हमें जानो न हम तुम्हे जाने ,
बस इसलिए की जेठानी जी क्या कहेंगी ,क्या सोचेंगी ,
छोड़िये और अब उन्ही जेठानी जी के सामने ,... मैंने उन पुरानी बातों को धक्का के देके हटाया , छोडो अब तो ये बालक सिर्फ मेरा है।
उनके चुम्मे रुके तो मेरे चालू हो गए और उनके होंठों पे अपने होंठ रगड़ते मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में ठेल दी। और वो इस तरह से चूस रहे थे जैसे कुछ ही दिन में उनकी बहिनिया उनका मोटा लंड चूसेगी।
और जब हम लोगों के होंठ थोड़े अलग तो हुए तो उन्होंने वो बात बतायी जो उनके चुम्मो ने पहले ही बता दी थी।
" गुड्डी के घर के लोग मान गए हैं , कल एडमिशन फ़ार्म उसके पास आ जाएगा और वो भर के मेल कर देगी। फिर हम लोगों के साथ ,...,... गुड्डी बहुत खुश है उसके घर के लोग भी "
आगे कुछ बोलने के पहले मैंने उन्हें एक बार फिर से चूमना शुरू कर दिया।
गुड्डी खुश ,वो खुश लेकिन सबसे ज्यादा मैं खुश थी।
मम्मी ने मुझसे कहा था इनके माल को लाने के लिए ,
मंजू बाई और गीता दोनों लार टपका रही थीं इस लॉलीपॉप के लिए ,
कमल जीजू को भी मैंने प्रॉमिस कर दिया , अपने सैंया की छुटकी बहिनिया ,
लेकिन कैसे ,... और अब वो न सिर्फ चलने को तैयार हो गयी है , बल्कि पूरे साल भर हम लोगों के साथ
वो कच्ची कोरी कली ,कच्ची अमिया वाली किशोरी।
लेकिन जेठानी जी ने इन्हे टोका ,
" अरे खाने वाने को भी कुछ लाने वाले थे न तुम , या अपने माल के चक्कर में भूल गए। "
एकदम नहीं भाभी सब लाया हूँ ,और सबसे पहले उन्होंने आम निकाले ,दसहरी ,परफेक्ट राइप और कड़े कड़े
" अरे खाने वाने को भी कुछ लाने वाले थे न तुम , या अपने माल के चक्कर में भूल गए। "
एकदम नहीं भाभी सब लाया हूँ ,और सबसे पहले उन्होंने आम निकाले ,दसहरी ,परफेक्ट राइप और कड़े कड़े
उनकी भाभी ने पकड़कर ,दबाकर चेक किया ,
" वाह देवर जी ,एक ही दिन में आम की अच्छी पहचान हो गयी है तुझे , खूब कड़े कड़े हैं "
" गुड्डी ने खरीदवाया " झेंपते हुए उन्होंने कबूल किया।
लेकिन जेठानी जी क्यों छोड़तीं ,छेड़ने का मौका , चिढ़ाते हुए बोलीं ,
" अच्छा उसकी कच्ची अमिया भी कुतरी की नहीं। "
वो झेंप गए लेकिन मैंने जेठानी की ओर उन्हें डाइवर्ट किया ,
" और दो दिन बाद जो रसीले आमों की दावत होनी है ,याद है की , ... "
उनकी निगाहें अब खुल के अपनी भाभी के चोली फाड् ३६ डी डी छलकते जोबनो पर टिकी थी।
वो भी बदमाश बेशरम , होंठों पर जीभ फिराते बोले कैसे ख़तम होंगे ये दो दिन।
और जेठानी मजा ले रही थी लेकिन थोड़ी झेंप गयी। उनकी पांच दिन वाली छुट्टी दो दिन बाद ख़तम होने वाली थी।
" अच्छा चलो बहुत देख लिया अपनी भाभी के उभार , अब चलो ये आम धो के और बाकी खाने पीने का सामान किचेन में रखो मैं आती हूँ ,और घर में भी क्या यही डाटे रहोगे। "
वो किचेन में गए और मैंने जेठानी को दबोच लिया ,
" अरे दीदी बिचारे कैसे ललचा के देख रहे थे ,छुट्टी तो निचली मंजिल की है ज़रा आम का स्वाद तो चखा दीजिये न उन्हें। "
" तू भी न ,... बहुत बदमाश हो गयी है और मेरे देवर को भी बदमाश बना दिया है " खिलखिलाते वो बोलीं।
" अच्छा दी आपको लिमका पसंद है न , खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक हो जाए। "
मेरे दिमाग में कुछ चल रहा था।
" एकदम तुझे तो मेरी सारी पसंद मालूम है। " हंस के वो बोलीं।
" दी आज खाना बेड रूम में ही लगाती हूँ ,ये फिल्म भी तो लाये हैं ,हमीं तीन तो हैं बस वहीँ खाना खाते फिल्म भी भी ,... आप बेड रूम में चलिए आपके देवर देवरानी वहीँ पर लगाते हैं "
" देवरानी हो तो ऐसी , एकदम तेरा आइड्या एकदम फर्स्ट क्लास होता है " मेरे गालों पे जेठानी जी ने चिकोटी काटी और अपने बैडरूम की ओर।
ये किचेन से निकल कर ऊपर हमारे बेडरूम की ओर जा रहे थे ,चेंज करने तो मैंने इन्हे इशारे से रोका और पास जा के कान में बोली ,
" वो वोडका वाली बड़ी बोतल ले आना हमारे कमरे से ,और जल्दी आना "
……………………………..
वो ऊपर गए और में किचेन में।
कबाब दर्जन से तो ऊपर ही थे मटन के ,मैंने जरा सा चखा ,एकदम स्वादिष्ट
पराठे भी मुगलाई। मैंने तवे पर पहले कबाब रखे गरम करने को ,
कल इस किचेन में चिकेन और पोर्क वाला पिज्जा और मटन बिरयानी ,आज कबाब और मुगलाई पराठा।
जहाँ इनकी बर्थ डे पर मेरी लायी एगलेस पेस्ट्री भी फेंक दी गयी थी , क्या पता के नाम पे और आज ,
मैंने फिर पुराने ख्यालों को झटक के बाहर निकाला और तबतक वो आगये।
उन्हें देख के ऐसे ही मेरी पुराने दिनों के दुःख दर्द भूल जाते थे।वो कबाब और पराठा गर्म करने में लग गए और मैं लिम्का -वोडका का मिश्रण बनाने में। आफ कोर्स वोडका ज्यादा थी।
आम काटने का काम तो इनका था ही , बस आधे घंटे में हम सब सामान लेके जेठानी जी के बेडरूम में ,
वो भी एकदम तैयार थीं , बिस्तर बिछा और टीवी में डीवीडी प्लेयर लगा के ,
थोड़ी देर में ही लिम्का मिली वोडका का असर मेरी जेठानी पे चालू हो गया और मैंने इनसे कह के डीवीडी चालू करवा दी।
मटन कबाब ,मुगलाई पराठा , वोडका और सामने टीवी पर हार्ड कोर ब्ल्यू फिल्म ,...
ये मेरे और जेठानी जी के बीच में बैठे थे।
लंड की हालत तो इनकी मैंने किचेन में ही चूस चूस के ख़राब कर दी , बिना झाड़े और अब वो साढ़े साथ इंच एकदम शीयर शार्ट से झांकता ,