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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग १३६

मस्ती होली की - जीजू साली की


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“अरे स्साली दो और मजा आप सिर्फ एक से ले रहे हैं …”

और अब वो मुस्करा रहे थे। अपने खूंटे को मेरी गुलाबो पे रगड़ते बोले,..." मुझे तो यही चाहिए "

मैं हंस के बोली

“अरे जिज्जू किस स्साली की हिम्मत मेरे इस हैंडसम जीजू को मना करे…”

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उनसे भी जोर से मैंने अपने निचले होंठों को उनके खूंटे पे रगड़ते बोला। और उसी तेजी से मेरे रंगे पुते जोबन जीजू की छाती पे रगड़ रहे थे।

और मैंने जीजू को ज्योति के खिलाफ और चढ़ाया

“अरे जरा मेरी सहेली के कबूतरों को भी तो आजाद करिये न? दो से चार अच्छे, ये स्साली तो आपकी हर बात मानने को तैयार है तो आप मेरी थोड़ी सी बात…”


और बिना उनकी हाँ का इन्तजार किये बिना मैंने कसकर चुम्मी ली, मेरे होंठों ने उनके होठों को गपूच लिया मेरी जीभ उनके मुूँह में घुस गई, और मेरी देह एकदम उनकी देह से चिपकी । ज्योती के पैरों की आहट पाकर मैं थोड़ा दूर हो गई।

और जीजू भी जैसे कुछ हुआ न हो , अलग।

ज्योती मुझे देखकर मुस्कराती हुयी , एक टेबल पर गहरे कटोरे गाढ़ा गीला पेण्ट , और जब वो झुकी थी तो जीजू ने उसे पीछे से दबोच लिया ,



ज्योति की भी ३२ नबर की ब्रा खुली

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और ब्रा ज्योती की भी कलाई की शोभा बढ़ा रही थी। उसके हाथ भी जीजू ने कस के बाँध दिए और जोबना दोनों एकदम खुले ,

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और उसके बाद ज्योति की भी शलवार, पैंटी मेरी शलवार पैंटी के साथ। जीजू अब ज्योती के अंग अंग रंग रहे थे और मैं बता रही थी,

" यहाँ अभी बचा हैं , जीजू बायीं चूँची के नीचे, दाएं चूतड़ पर,... "
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थोड़ी देर में वो गीला गाढ़ा रंग ज्योति के अंग प्रत्यंग पर लगा हुआ, और ज्योती चिल्ला रही थी


“ फाउंल फाउल , जीजू मैंने बोला था न की मैं इसको रंग लगवा दूंगी तो आप बिना नखड़ा किया चुपचाप, बिना उछले कूदे हर जगह रंग लगवा लेंगे…”


जीजू महा दुष्ट , मुस्कराते हुये बोले

“अरे स्साली की बात टाले किस जीजा की हिम्मत चल मैं बिना नखड़े के चुपचाप, बिना उछले कूदे रंग लगवा लूंगा लेकिन हर जगह …कोई जगह बचनी नहीं चाहिए सालियों ”

“पर, पर, जीजू, हम दोनों के तो हाथ बंधे हैं …” वो बेचारी बोली।

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“ये तुम दोनों की प्रॉब्लम है …” हंसते हुए वो बोले।

फिर बोले

“अच्छा पांच मिनट में तुम दोनों ने मुझे हर जगह रंग दिया न तो हाथ खोल दूंगा तुम दोनों के …” मान गए वो।
ज्योति सोच में डूबी, हाथ बंधे , कैसे?
पर मेरे शैतानी दिमाग ने रास्ता ढूूँढ़ लिया ।
 

komaalrani

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बंधे हाथ और होली

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ज्योति सोच में डूबी, हाथ बंधे , कैसे?
पर मेरे शैतानी दिमाग ने रास्ता ढूूँढ़ लिया ।

ज्योती उदास मन से जीजू की चड्ढी में फंसे, ढंके तने खूंटे को देख थी, इसे कैसे खोलेंगे , रंग हर जगह लगाना है तो यहाँ भी,...पर ।



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मैं उसे देखकर मुश्कुरायी और जीजू से बोली “जीजू शर्त मंजूर। "

और एक बार फिर ज्योति मेरे साथ, लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था मैं ' हर जगह ' वाली शर्त 'बंधे हाथ ' होने के बावजूद कैसे पूरी करुँगी,.. पर इत्ते हैंडसम जीजू को रंग लगाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी।



ज्योति को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था की जवान होती हुयी लड़की के तरकश में कितने तीर होते हैं, और उन्हें कब कैसे चलाना चाहिए।



मैं जीजू के सामने घुटनों के बल बैठ गयी, चड्ढी एकदम तनी। ज्योति बीएस , टुकुर टुकुर मुझे देख रही थी।

एक जबरदस्त चुम्मा उस मस्त खूंटे पर चड्ढी के ऊपर से, और जीजू का सुपाड़ा एकदम फूल उठा। जीभ निकाल कर मैंने चड्ढी के ऊपर से ही सुपाडे को लिक किया।



जीजू की हालत खराब लेकिन ज्योति की अभी भी समझ में नहीं आरहा था की बंधे हाथों से मैं कैसे जीजू की चड्ढी खोल के इसे आजाद कराउंगी।

और एक झटके में मैंने अपने रसीले होंठों को खोलकर,




गप्प, चड्ढी के ऊपर से ही जीजू के मोटे सुपाड़े को गप्प कर लिया और लगी चूसने, बेचारे जीजू की हालत खराब, लंड तड़फड़ा रहा था।

बस , मैंने आराम से धीरे धीरे उन्ही रसीले होंठों से जीजू की चड्डी की इलैस्टिक पकड़ी , और खूब धीरे धीरे, हौले हौले , होंठों के जोर से नीचे सरकाती ,... लौंड़े का बेस दिखने लगा था , जीजू सालियों के लिए उसका मुंडन करवा के एकदम साफ़ चिकना,...

और ज्योति को भी समझ में आ गया , होंठों का जादू ,... पीछे से उसने भी होंठों से जीजू की चड्ढी की इलैस्टिक पकड़ के , चूतड़ के ऊपर से, वो सरकती गयी , चूतड़ की दरार,... और और ,..और नीचे,...



सटाक , फटा पोस्टर निकला हीरो, खूब बड़ा , और मोटा भी,..





ज्योति ने तो अपनी दी की शादी के चार दिन के अंदर ही न सिर्फ इसे देख भी लिया था बल्कि घोंटा भी था और वो भी रोज बिना नागा,...


मैं पहली बार देख रही थी और साथ में मेरे हाथ से रंगे रंगों से लिपा पुता, और मैंने एक बार फिर अपनी जीभ की टिप से हल्की सी लिक , सीधे सुपाड़े पे और जीजू गिनगीना गए ,




मुजफ्फरपुर की लीची की तरह मोटा, रस से चूता, रसीला, मांसल सुपाड़ा,


मैंने बस अपनी जीभ की टिप उनके पेशाब के छेद पर छुला दिया। जैसे तेज करेंट लगा हो, जीजू एकदम काँप गए। अबकी उस छेद में जीभ की टिप डालकर मैं थोड़ी देर तक ,… सुरसुराती रही , लंड तड़पता रहा,... फिर झट से झटके से पूरा सुपाड़ा , साली के मुंह में गप्प।




एक हाईस्कूल वाली कच्चे टिकोरों वाली साली खुद घुटनों के बल बैठ के सुपाड़े पर अपनी गुलाबी जीभ फिराए तो कौन जीजू काबू में रह पायेगा, जीजू तड़प रहे थे.

पूरा सुपाड़ा मेरे मुूँह में।




मैं चुभलाती रही , चूसती रही और मेरी नाचती आँखे जीजू की आँखों में सीधे झांकती उनको उकसाती, चढ़ाती, रहीं । हाथ भले मेरे बंधे थे, लेकिन होंठ कौन कम। सुपाड़े को, आजाद करके, मेरी जीभ लण्ड के बेस पर, लम्बे लम्बे लिक करने लगी.



एक बार तो मैंने बाल्स भी लिक कर लिया




और फिर एक झटके में पहले तो पूरा सुपाड़ा, फिरआधा लण्ड, गटक लिया।

ज्योति भी, वो कौन कम छिनाल थी, उसने पिछवाड़े का मोर्चा सम्हाला था, कभी वो जीजू के चूतड़ चूमती तो कभी उसकी जीभ बीच की दरार में।


अब जीजू समझ गए, हमारे हाथ खोलने पर उन्हें क्या मिलने वाला हैं , लेकिन रंग तो लगाना ही था। अपने गाल से पहले मैंने उस तन्नाए लंड पर रंग लगाना शुरू किया , फिर मेरे रंगे पुते जोबन।


ज्योति भी जीजू के नितम्बो पर अपने जोबन से रंग लगा रही थी। और तड़पाने तरसाने के बाद हम दोनों खड़े खड़े , जीजू हम दोनों के बीच सैंडविच बने,


आगे का हिस्सा मेरे हिस्से , पीछे का ज्योति के।

हम दोनों के किशोर उभार ब्रश से कम नहीं थे, कोई जगह नहीं बची।




और जब रंग कम पड़ गए तो उन रंग भरे कटोरों में झुक के हम दोनों ने, अपने जुबना रंग लिया । और एक बार फिर से, कोई जगह नहीं बची जीजू की देह की,... उनकी देह कैनवास थी , हम दोनों किशोरों के जस्ट आते हुए उभार, ब्रश और हम दोनों


मैंने ज्योति के कान में कुछ फुसफुसाया , और उसने रंग भरे वो कटोरे , सीधे मेरे ऊपर ढरका दिए ,





और मैंने जीजू को हल्के से धक्का दिया और वो सीधे फर्श पर, नीचे जीजू और ऊपर मैं,

मेरी देह का रिंग जीजू पे सरकते हुए , पहले मेरे जुबना ने जीजू के गाल रंगे फिर उनकी छाती, और फिर उनका खड़ा भूखा बौराया खूंटा यहाँ तक की पैर, तलुवे भी। पांच मिनट का टाइम भी ख़तम होने ही वाला था।

और पांच मिनट के पहले ही जीजू के देह का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां सालियों की देह का रंग उनकी देह पर न छलका हो,...



मान गए जीजू भी, पहले उन्होंने ज्योति के हाथ खोले, फिर मेरे इत्ते देर से बंधे हाथ,
 
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komaalrani

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देह की होली











मान गए जीजू भी, पहले उन्होंने ज्योति के हाथ खोले, फिर मेरे इत्ते देर से बंधे हाथ,

लेकिन मेरे हाथ फिर बंध गए , जीजू के हाथों में,... मैं फर्श पर तो थी ही , फर्क सिर्फ इतना था की पहले मैं ऊपर थी जीजू नीचे और अब जीजू ऊपर मैं नीचे



पहले मैं लगा रही थी और अब वो लगा रहे थे।



मेरी लम्बी टाँगे जीजू के कंधे पर और देह की होली शुरू हो गई थी।



क्या हचक के धक्का मारा था जीजू ने, और हथयार भी उनका खूब मोटा कड़ा। मेरी चीख निकल गई और गाली भी… अरे जीजू हों , स्सालीहो और गाली न हो ये कैसे हो सकता हैं । मैं दर्द से चीखते हुए बोली,

“अरे जीज्जु, अपनी माूँ का भोंसड़ा समझा है क्या, जो एक धक्के में…”


ज्योती क्यों चुप रहती, बोली

“अरे यार बचपन से अपनी माूँ के भोंसड़े में ही तो प्रैक्टिस की है उन्होंने तो इसीलिए तो…”





जवाब जीजू ने नहीं उनके हथियार ने दिया । दोनों हाथों से कसकर बदमाश जीजू ने मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ पकड़ी अपना मोटा मूसल ालमसोत बाहर निकाला और अबकी, पहले से भी दूनी ताकत से, मोटे सुपाड़े का धक्का सीधे मेरी बच्चेदानी पर लगा, और इस जोर से की मेरा कलेजा दहल गया।


मैं चीखी पहले दर्द से फिर मज़े से, और उन्हें छेड़ा

“जीजू मुझे क्या मालूम, मंडवे में जो गारी मैंने आपकी माँ को गाई थी वो सही थी। उन्होंने गदहों और घोड़ों से चुदवाया तो आप पैदा हए , तभी आपका गदहे ऐसा…”

और जीजू ने कचकचा के मेरे गाल काट लिए, हफ्ते भर तो ये दांत के निशान नहीं जाने वाले थे.



ज्योति फिर बोली

“तू न फालतू में दीदी की सास के पीछे, अरे तुझे बिचारी की असली कहानी तो मालूम नहीं । मुझे खुद बताई थी दीदी की सास ने , जब मैं जीजू के मायके गयी थी. जवानी चढ़ ही रही थी उनकी , इनकी माँ की ,तो मायके में सगे चचेरे फुफेरे मौसेरे भाइयों ने, गाँव के सारे मदों, चमरौटी, भरौटी, पठान टोला कुछ भी नहीं बचा, शादी के पहले ही उनका भोंसड़ा बन गया था। तो उस पोखर में में और किसी से उन्हें मजा नहीं मिलता था , इसलिए मजबूरी में,गदहों घोड़ों के पास…”




जीजू जवाब में ताबड़तोड़ धक्के लगाकर हचक हचक के चोद रहे थे ,






साथ में उनके होंठ कभी मेरे गालों को चूस काट रहे थे तो कभी जुबना को। दर्द के मारे मेरी देह टूट रही थी लेकिन मजा भी खूब आ रहा था , सुबह भौजाइयों ने मजे तो खूब दिए थे, लेकिन झड़ने नहीं दिया , वो ऊँगली करती, चाटतीं , चूसती लेकिन जैसे ही मैं झड़ने के कगार पर आती वो रुक जातीं।

मेरी गुलाबो सुबह से तड़प रही थी, और यहाँ भी जीजू के साथ होली में, एकदम गीली, पनियाई, पगलाई , झड़ने को बेताब,...


और अब मैं भी जीजू के धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी, चुम्मे का चुम्मे से। और देह की होली के साथ रंगो की होली भी जारी थी।

ज्योती, मेरे हाथों में रंग लगती खूब गाढ़े गाढ़े और, मेरे किशोर हाथों के वो रंग कभी जीजू के गालों पर तो कभी उनकी पीठ पर।

ज्योती साथ साथ मुझसे भी होली खेल रही थी , अपने दोनों हाथों से मेरी सहेली, रंग मेरे उभारों पर और वो मेरे उभार जीजू के हाथों से छूते तो उसपर वो गाढ़ा गीला रंग मेरे रंगे पुते जुबना से जीजू की चौड़ी छाती पर लाल, नीले काही काही रंग



जीजू होली खेलने के लिए सिर्फ अपनी मोटी खूब कड़ी चर्मदण्ड वाली पिचकारी का इस्तेमाल कर रहे थे। हचहच हचहच




और रंगों के साथ गालियां भी नहीं रुक रही थीं थी मेरी, आखिरकार साली थी तो गाली, और वो भी सिर्फ जीजू की माँ को



“मादरचोद, भोंसड़ी के, अपनी माँ के खसम , तेरी माँ को चमरौटी , भरौटी के सारे लौंडों से चुदवाउ , तनी धीरे धक्का मारो न…”
 
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komaalrani

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धक्के पर धक्का ,


जीजू की पिचकारी , साली की होली



और रंगों के साथ गालियां भी नहीं रुक रही थीं थी मेरी, आखिरकार साली थी तो गाली, और वो भी सिर्फ जीजू की माँ को

“मादरचोद, भोंसड़ी के, अपनी माँ के खसम , तेरी माँ को चमरौटी , भरौटी के सारे लौंडों से चुदवाउ , तनी धीरे धक्का मारो न…”




और बजाय धक्के धीरे करने के, अगला धक्का एकदम तूफानी सीधे बच्चेदानी पर साथ में उनकी उँगलियाँ मेरे क्लिट पे, और अब उनसे नहीं रहा गया, तो वो भी मेरी चूची मसलते बोल पड़े

“स्साली, अरे अपनी माूँ की याद आ रही तो मेरी माँ का नाम ले रही है । अरे बहुत मन कर रहा है तुझे अपनी माँ चुदवाने का तो उस छिनार रंडी को भी चोद दूंगा । अरे सास को तो चोदना बनता है , जिस भोसड़े से दूध वालों से चोदवाकर दूध जैसी गोरी गोरी बिटिया पैदा की, उस भोंसड़े में तो…”


जीजू की गाली का असर, क्लिट पर उनकी ऊँगली का असर, जुबना पर उनके होंठो का असर, बच्चेदानी पर लगे मूसल के धक्के का असर, मेरी देह कांपने लगी, मेरी चूत अपने आप सिकुड़ फ़ैल रही थी। और मैंने झड़ना शुरू कर दिया ।

तूफान में पत्ते की तरह मेरी देह काँप रही थी, सुबह से कितनी बार किनारे पर जा जा जाकर रुक गयी थी,... लेकिन अब पूरी देह मन मष्तिस्क सब मथा जा रहा था, इत्ता अच्छा लग रहा था, कभी मन करता जीजू रुक जाएँ बस एक पल के लिए तो कभी मन करता नहीं ऐसे ही रगड़ रगड़ के चोदते रहें,... लेकिन जीजू ने छोड़ा नहीं




हाँ पल भर के लिए उनके धक्के रुक गए थे, पर लण्ड जड़ तक, सीधे मेरी बच्चेदानी तक ठूंसा हुआ , और लण्ड का बेस वो हलके हलके मेरी क्लिट पर रगड़ रहे थे । वो मेरा झड़ना बंद होने का इन्तजार कर रहे थे और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई शुरू हुयी की, हर धक्के पर मेरी चूल चूल हिल रही थी, नंबरी चोदू थे जीजू।



मैं भी रंग और गाली भूलकर जबरदस्त धक्कों का मजा ले रही थी, धक्कों का जवाब दे रही थी। जीजू न मेरी चूची छू रहे थे न क्लिट , सिर्फ धक्के पर धक्का। मैं आँखे बंद करके जीजू की चुदाई का मजा ले रही थी। और अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू ने चुदाई रोकी भी नहीं ।



मुझे लग था जैसे समय रुक गया है , बस मैं हौं और जीजू का मस्त मोटा तगड़ा लण्ड, और मैं चुद रही हूँ चुद रही हूँ । मैं सिसक रही थी तड़प रही थी, मेरी जाँघे फटी जा रही थी, और हल्के ह ल्के मैं भी नीचे से, कभी कभी जीजू के तगड़े धक्कों का जवाब रुक रुक के दे रही थी। पांच मिनट , दस मिनट पता नहीं कब तक , कितनी देर तक जीजू चोदते रहे , मैं चुदती रही, , मेरी आँखे बंद थी।



हाँ अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू भी साथ साथ।

मैं अपनी चूत में उनकी गाढ़ी मलाई म सूस कर ही थी। गिरते हुए बहते हुए , चूत मैंने कसकर भींच लिया था, मैं भी जीजू के लण्ड को निचोड़ रही थी।

बड़ी देर तक म दोनों ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में लथपथ, आँखे मेरी बंद । लग रहा था जीजू एक बार झड़ने के बाद दुबारा फिर मलाई की बार बार फुहार मेरे अंदर छूट रही थी , जीजू की पिचकारी का रंग ख़तम ही नहीं हो रहा था। उसके कुछ थक्के मेरी जाँघों पर भी, बह कर ।




जब जीजू ने अपना निकाला तो बस अभी भी उनकी पिचकारी,... मन कर रहा था , क्या मन कर रहा था ये भी नहीं समझ में आ रहा था।
 
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Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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बंधे हाथ और होली

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ज्योति सोच में डूबी, हाथ बंधे , कैसे?
पर मेरे शैतानी दिमाग ने रास्ता ढूूँढ़ लिया ।

ज्योती उदास मन से जीजू की चड्ढी में फंसे, ढंके तने खूंटे को देख थी, इसे कैसे खोलेंगे , रंग हर जगह लगाना है तो यहाँ भी,...पर ।



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मैं उसे देखकर मुश्कुरायी और जीजू से बोली “जीजू शर्त मंजूर। "

और एक बार फिर ज्योति मेरे साथ, लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था मैं ' हर जगह ' वाली शर्त 'बंधे हाथ ' होने के बावजूद कैसे पूरी करुँगी,.. पर इत्ते हैंडसम जीजू को रंग लगाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी।



ज्योति को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था की जवान होती हुयी लड़की के तरकश में कितने तीर होते हैं, और उन्हें कब कैसे चलाना चाहिए।



मैं जीजू के सामने घुटनों के बल बैठ गयी, चड्ढी एकदम तनी। ज्योति बीएस , टुकुर टुकुर मुझे देख रही थी।

एक जबरदस्त चुम्मा उस मस्त खूंटे पर चड्ढी के ऊपर से, और जीजू का सुपाड़ा एकदम फूल उठा। जीभ निकाल कर मैंने चड्ढी के ऊपर से ही सुपाडे को लिक किया।



जीजू की हालत खराब लेकिन ज्योति की अभी भी समझ में नहीं आरहा था की बंधे हाथों से मैं कैसे जीजू की चड्ढी खोल के इसे आजाद कराउंगी।

और एक झटके में मैंने अपने रसीले होंठों को खोलकर,




गप्प, चड्ढी के ऊपर से ही जीजू के मोटे सुपाड़े को गप्प कर लिया और लगी चूसने, बेचारे जीजू की हालत खराब, लंड तड़फड़ा रहा था।

बस , मैंने आराम से धीरे धीरे उन्ही रसीले होंठों से जीजू की चड्डी की इलैस्टिक पकड़ी , और खूब धीरे धीरे, हौले हौले , होंठों के जोर से नीचे सरकाती ,... लौंड़े का बेस दिखने लगा था , जीजू सालियों के लिए उसका मुंडन करवा के एकदम साफ़ चिकना,...

और ज्योति को भी समझ में आ गया , होंठों का जादू ,... पीछे से उसने भी होंठों से जीजू की चड्ढी की इलैस्टिक पकड़ के , चूतड़ के ऊपर से, वो सरकती गयी , चूतड़ की दरार,... और और ,..और नीचे,...



सटाक , फटा पोस्टर निकला हीरो, खूब बड़ा , और मोटा भी,..





ज्योति ने तो अपनी दी की शादी के चार दिन के अंदर ही न सिर्फ इसे देख भी लिया था बल्कि घोंटा भी था और वो भी रोज बिना नागा,...


मैं पहली बार देख रही थी और साथ में मेरे हाथ से रंगे रंगों से लिपा पुता, और मैंने एक बार फिर अपनी जीभ की टिप से हल्की सी लिक , सीधे सुपाड़े पे और जीजू गिनगीना गए ,




मुजफ्फरपुर की लीची की तरह मोटा, रस से चूता, रसीला, मांसल सुपाड़ा,


मैंने बस अपनी जीभ की टिप उनके पेशाब के छेद पर छुला दिया। जैसे तेज करेंट लगा हो, जीजू एकदम काँप गए। अबकी उस छेद में जीभ की टिप डालकर मैं थोड़ी देर तक ,… सुरसुराती रही , लंड तड़पता रहा,... फिर झट से झटके से पूरा सुपाड़ा , साली के मुंह में गप्प।




एक हाईस्कूल वाली कच्चे टिकोरों वाली साली खुद घुटनों के बल बैठ के सुपाड़े पर अपनी गुलाबी जीभ फिराए तो कौन जीजू काबू में रह पायेगा, जीजू तड़प रहे थे.

पूरा सुपाड़ा मेरे मुूँह में।




मैं चुभलाती रही , चूसती रही और मेरी नाचती आँखे जीजू की आँखों में सीधे झांकती उनको उकसाती, चढ़ाती, रहीं । हाथ भले मेरे बंधे थे, लेकिन होंठ कौन कम। सुपाड़े को, आजाद करके, मेरी जीभ लण्ड के बेस पर, लम्बे लम्बे लिक करने लगी.



एक बार तो मैंने बाल्स भी लिक कर लिया




और फिर एक झटके में पहले तो पूरा सुपाड़ा, फिरआधा लण्ड, गटक लिया।

ज्योति भी, वो कौन कम छिनाल थी, उसने पिछवाड़े का मोर्चा सम्हाला था, कभी वो जीजू के चूतड़ चूमती तो कभी उसकी जीभ बीच की दरार में।


अब जीजू समझ गए, हमारे हाथ खोलने पर उन्हें क्या मिलने वाला हैं , लेकिन रंग तो लगाना ही था। अपने गाल से पहले मैंने उस तन्नाए लंड पर रंग लगाना शुरू किया , फिर मेरे रंगे पुते जोबन।


ज्योति भी जीजू के नितम्बो पर अपने जोबन से रंग लगा रही थी। और तड़पाने तरसाने के बाद हम दोनों खड़े खड़े , जीजू हम दोनों के बीच सैंडविच बने,


आगे का हिस्सा मेरे हिस्से , पीछे का ज्योति के।


हम दोनों के किशोर उभार ब्रश से कम नहीं थे, कोई जगह नहीं बची।



और जब रंग कम पड़ गए तो उन रंग भरे कटोरों में झुक के हम दोनों ने, अपने जुबना रंग लिया । और एक बार फिर से, कोई जगह नहीं बची जीजू की देह की,... उनकी देह कैनवास थी , हम दोनों किशोरों के जस्ट आते हुए उभार, ब्रश और हम दोनों


मैंने ज्योति के कान में कुछ फुसफुसाया , और उसने रंग भरे वो कटोरे , सीधे मेरे ऊपर ढरका दिए ,





और मैंने जीजू को हल्के से धक्का दिया और वो सीधे फर्श पर, नीचे जीजू और ऊपर मैं,

मेरी देह का रिंग जीजू पे सरकते हुए , पहले मेरे जुबना ने जीजू के गाल रंगे फिर उनकी छाती, और फिर उनका खड़ा भूखा बौराया खूंटा यहाँ तक की पैर, तलुवे भी। पांच मिनट का टाइम भी ख़तम होने ही वाला था।

और पांच मिनट के पहले ही जीजू के देह का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां सालियों की देह का रंग उनकी देह पर न छलका हो,...



मान गए जीजू भी, पहले उन्होंने ज्योति के हाथ खोले, फिर मेरे इत्ते देर से बंधे हाथ,
Akhir salio ne dunke ki chot par manaya jiju ko, apni deh ke rangon se puri tarah rang kar.Adbhut, fabulous update 👌👌👌👌👌👌update decorated with very nice , exquisite gifs 💞♥️♥️u Komal sis
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komaalrani

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ज्योति सोच में डूबी, हाथ बंधे , कैसे?
पर मेरे शैतानी दिमाग ने रास्ता ढूूँढ़ लिया ।

ज्योती उदास मन से जीजू की चड्ढी में फंसे, ढंके तने खूंटे को देख थी, इसे कैसे खोलेंगे , रंग हर जगह लगाना है तो यहाँ भी,...पर ।



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मैं उसे देखकर मुश्कुरायी और जीजू से बोली “जीजू शर्त मंजूर। "

और एक बार फिर ज्योति मेरे साथ, लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था मैं ' हर जगह ' वाली शर्त 'बंधे हाथ ' होने के बावजूद कैसे पूरी करुँगी,.. पर इत्ते हैंडसम जीजू को रंग लगाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी।



ज्योति को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था की जवान होती हुयी लड़की के तरकश में कितने तीर होते हैं, और उन्हें कब कैसे चलाना चाहिए।



मैं जीजू के सामने घुटनों के बल बैठ गयी, चड्ढी एकदम तनी। ज्योति बीएस , टुकुर टुकुर मुझे देख रही थी।

एक जबरदस्त चुम्मा उस मस्त खूंटे पर चड्ढी के ऊपर से, और जीजू का सुपाड़ा एकदम फूल उठा। जीभ निकाल कर मैंने चड्ढी के ऊपर से ही सुपाडे को लिक किया।



जीजू की हालत खराब लेकिन ज्योति की अभी भी समझ में नहीं आरहा था की बंधे हाथों से मैं कैसे जीजू की चड्ढी खोल के इसे आजाद कराउंगी।

और एक झटके में मैंने अपने रसीले होंठों को खोलकर,




गप्प, चड्ढी के ऊपर से ही जीजू के मोटे सुपाड़े को गप्प कर लिया और लगी चूसने, बेचारे जीजू की हालत खराब, लंड तड़फड़ा रहा था।

बस , मैंने आराम से धीरे धीरे उन्ही रसीले होंठों से जीजू की चड्डी की इलैस्टिक पकड़ी , और खूब धीरे धीरे, हौले हौले , होंठों के जोर से नीचे सरकाती ,... लौंड़े का बेस दिखने लगा था , जीजू सालियों के लिए उसका मुंडन करवा के एकदम साफ़ चिकना,...

और ज्योति को भी समझ में आ गया , होंठों का जादू ,... पीछे से उसने भी होंठों से जीजू की चड्ढी की इलैस्टिक पकड़ के , चूतड़ के ऊपर से, वो सरकती गयी , चूतड़ की दरार,... और और ,..और नीचे,...



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ज्योति ने तो अपनी दी की शादी के चार दिन के अंदर ही न सिर्फ इसे देख भी लिया था बल्कि घोंटा भी था और वो भी रोज बिना नागा,...


मैं पहली बार देख रही थी और साथ में मेरे हाथ से रंगे रंगों से लिपा पुता, और मैंने एक बार फिर अपनी जीभ की टिप से हल्की सी लिक , सीधे सुपाड़े पे और जीजू गिनगीना गए ,




मुजफ्फरपुर की लीची की तरह मोटा, रस से चूता, रसीला, मांसल सुपाड़ा,


मैंने बस अपनी जीभ की टिप उनके पेशाब के छेद पर छुला दिया। जैसे तेज करेंट लगा हो, जीजू एकदम काँप गए। अबकी उस छेद में जीभ की टिप डालकर मैं थोड़ी देर तक ,… सुरसुराती रही , लंड तड़पता रहा,... फिर झट से झटके से पूरा सुपाड़ा , साली के मुंह में गप्प।




एक हाईस्कूल वाली कच्चे टिकोरों वाली साली खुद घुटनों के बल बैठ के सुपाड़े पर अपनी गुलाबी जीभ फिराए तो कौन जीजू काबू में रह पायेगा, जीजू तड़प रहे थे.

पूरा सुपाड़ा मेरे मुूँह में।




मैं चुभलाती रही , चूसती रही और मेरी नाचती आँखे जीजू की आँखों में सीधे झांकती उनको उकसाती, चढ़ाती, रहीं । हाथ भले मेरे बंधे थे, लेकिन होंठ कौन कम। सुपाड़े को, आजाद करके, मेरी जीभ लण्ड के बेस पर, लम्बे लम्बे लिक करने लगी.



एक बार तो मैंने बाल्स भी लिक कर लिया




और फिर एक झटके में पहले तो पूरा सुपाड़ा, फिरआधा लण्ड, गटक लिया।

ज्योति भी, वो कौन कम छिनाल थी, उसने पिछवाड़े का मोर्चा सम्हाला था, कभी वो जीजू के चूतड़ चूमती तो कभी उसकी जीभ बीच की दरार में।


अब जीजू समझ गए, हमारे हाथ खोलने पर उन्हें क्या मिलने वाला हैं , लेकिन रंग तो लगाना ही था। अपने गाल से पहले मैंने उस तन्नाए लंड पर रंग लगाना शुरू किया , फिर मेरे रंगे पुते जोबन।


ज्योति भी जीजू के नितम्बो पर अपने जोबन से रंग लगा रही थी। और तड़पाने तरसाने के बाद हम दोनों खड़े खड़े , जीजू हम दोनों के बीच सैंडविच बने,


आगे का हिस्सा मेरे हिस्से , पीछे का ज्योति के।


हम दोनों के किशोर उभार ब्रश से कम नहीं थे, कोई जगह नहीं बची।



और जब रंग कम पड़ गए तो उन रंग भरे कटोरों में झुक के हम दोनों ने, अपने जुबना रंग लिया । और एक बार फिर से, कोई जगह नहीं बची जीजू की देह की,... उनकी देह कैनवास थी , हम दोनों किशोरों के जस्ट आते हुए उभार, ब्रश और हम दोनों


मैंने ज्योति के कान में कुछ फुसफुसाया , और उसने रंग भरे वो कटोरे , सीधे मेरे ऊपर ढरका दिए ,





और मैंने जीजू को हल्के से धक्का दिया और वो सीधे फर्श पर, नीचे जीजू और ऊपर मैं,

मेरी देह का रिंग जीजू पे सरकते हुए , पहले मेरे जुबना ने जीजू के गाल रंगे फिर उनकी छाती, और फिर उनका खड़ा भूखा बौराया खूंटा यहाँ तक की पैर, तलुवे भी। पांच मिनट का टाइम भी ख़तम होने ही वाला था।

और पांच मिनट के पहले ही जीजू के देह का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां सालियों की देह का रंग उनकी देह पर न छलका हो,...



मान गए जीजू भी, पहले उन्होंने ज्योति के हाथ खोले, फिर मेरे इत्ते देर से बंधे हाथ,
"जवान होती हुयी लड़की के तरकश में कितने तीर होते हैं, और उन्हें कब कैसे चलाना चाहिए।"

Waaah
 

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देह की होली











मान गए जीजू भी, पहले उन्होंने ज्योति के हाथ खोले, फिर मेरे इत्ते देर से बंधे हाथ,

लेकिन मेरे हाथ फिर बंध गए , जीजू के हाथों में,... मैं फर्श पर तो थी ही , फर्क सिर्फ इतना था की पहले मैं ऊपर थी जीजू नीचे और अब जीजू ऊपर मैं नीचे



पहले मैं लगा रही थी और अब वो लगा रहे थे।



मेरी लम्बी टाँगे जीजू के कंधे पर और देह की होली शुरू हो गई थी।



क्या हचक के धक्का मारा था जीजू ने, और हथयार भी उनका खूब मोटा कड़ा। मेरी चीख निकल गई और गाली भी… अरे जीजू हों , स्सालीहो और गाली न हो ये कैसे हो सकता हैं । मैं दर्द से चीखते हुए बोली,

“अरे जीज्जु, अपनी माूँ का भोंसड़ा समझा है क्या, जो एक धक्के में…”


ज्योती क्यों चुप रहती, बोली

“अरे यार बचपन से अपनी माूँ के भोंसड़े में ही तो प्रैक्टिस की है उन्होंने तो इसीलिए तो…”





जवाब जीजू ने नहीं उनके हथियार ने दिया । दोनों हाथों से कसकर बदमाश जीजू ने मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ पकड़ी अपना मोटा मूसल ालमसोत बाहर निकाला और अबकी, पहले से भी दूनी ताकत से, मोटे सुपाड़े का धक्का सीधे मेरी बच्चेदानी पर लगा, और इस जोर से की मेरा कलेजा दहल गया।


मैं चीखी पहले दर्द से फिर मज़े से, और उन्हें छेड़ा


“जीजू मुझे क्या मालूम, मंडवे में जो गारी मैंने आपकी माँ को गाई थी वो सही थी। उन्होंने गदहों और घोड़ों से चुदवाया तो आप पैदा हए , तभी आपका गदहे ऐसा…”

और जीजू ने कचकचा के मेरे गाल काट लिए, हफ्ते भर तो ये दांत के निशान नहीं जाने वाले थे.



ज्योति फिर बोली

“तू न फालतू में दीदी की सास के पीछे, अरे तुझे बिचारी की असली कहानी तो मालूम नहीं । मुझे खुद बताई थी दीदी की सास ने , जब मैं जीजू के मायके गयी थी. जवानी चढ़ ही रही थी उनकी , इनकी माँ की ,तो मायके में सगे चचेरे फुफेरे मौसेरे भाइयों ने, गाँव के सारे मदों, चमरौटी, भरौटी, पठान टोला कुछ भी नहीं बचा, शादी के पहले ही उनका भोंसड़ा बन गया था। तो उस पोखर में में और किसी से उन्हें मजा नहीं मिलता था , इसलिए मजबूरी में,गदहों घोड़ों के पास…”




जीजू जवाब में ताबड़तोड़ धक्के लगाकर हचक हचक के चोद रहे थे ,






साथ में उनके होंठ कभी मेरे गालों को चूस काट रहे थे तो कभी जुबना को। दर्द के मारे मेरी देह टूट रही थी लेकिन मजा भी खूब आ रहा था , सुबह भौजाइयों ने मजे तो खूब दिए थे, लेकिन झड़ने नहीं दिया , वो ऊँगली करती, चाटतीं , चूसती लेकिन जैसे ही मैं झड़ने के कगार पर आती वो रुक जातीं।

मेरी गुलाबो सुबह से तड़प रही थी, और यहाँ भी जीजू के साथ होली में, एकदम गीली, पनियाई, पगलाई , झड़ने को बेताब,...


और अब मैं भी जीजू के धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी, चुम्मे का चुम्मे से। और देह की होली के साथ रंगो की होली भी जारी थी।

ज्योती, मेरे हाथों में रंग लगती खूब गाढ़े गाढ़े और, मेरे किशोर हाथों के वो रंग कभी जीजू के गालों पर तो कभी उनकी पीठ पर।

ज्योती साथ साथ मुझसे भी होली खेल रही थी , अपने दोनों हाथों से मेरी सहेली, रंग मेरे उभारों पर और वो मेरे उभार जीजू के हाथों से छूते तो उसपर वो गाढ़ा गीला रंग मेरे रंगे पुते जुबना से जीजू की चौड़ी छाती पर लाल, नीले काही काही रंग



जीजू होली खेलने के लिए सिर्फ अपनी मोटी खूब कड़ी चर्मदण्ड वाली पिचकारी का इस्तेमाल कर रहे थे। हचहच हचहच




और रंगों के साथ गालियां भी नहीं रुक रही थीं थी मेरी, आखिरकार साली थी तो गाली, और वो भी सिर्फ जीजू की माँ को



“मादरचोद, भोंसड़ी के, अपनी माँ के खसम , तेरी माँ को चमरौटी , भरौटी के सारे लौंडों से चुदवाउ , तनी धीरे धक्का मारो न…”
“अरे जीज्जु, अपनी माूँ का भोंसड़ा समझा है क्या, जो एक धक्के में…”


ज्योती क्यों चुप रहती, बोली

“अरे यार बचपन से अपनी माूँ के भोंसड़े में ही तो प्रैक्टिस की है उन्होंने तो इसीलिए
तो…”

Masssstttttt
 
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जीजू एक
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सालियाँ दो -डबल मस्ती होली की

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जीजू सुबह की होली के रंगों से सराबोर कुर्ता पैजामा पहने थे ,

आगे से ज्योति पीछे से मैं बीच में जीजू ,होली में दो किशोर कुँवारी सालियों के बीच सैंडविच बने ,

मेरे जोबन की बरछी मेरी ,ब्रा और उनका कुरता फाड़ के जीजू की पीठ में छेद कर रही थी।


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ज्योति ने जीजू का कुरता उतारने की कोशिश की ,पर मैंने आँख से बरज दिया।

सुबह भौजाइयों की हुयी रगड़ाई से मैंने सीख लिया था ,

होली में किसी के कपडे उतारना एकदम गलत है ,

कपडे सिर्फ फाड़ देने चाहिए ,अरे उतरे हुए कपडे कोई दुबारा पहन ले तो !

और रंगों में में भीगे कपडे तो झट से फटते हैं।

बस कुर्ते के अंदर हाथ डाल के पीछे से , चररर

और बस ज्योती भी सीख गयी , आगे से भी चरररर , थोड़ी देर में उनका फटा रंगा कुर्ता हम लोगों के कुत्ते और कुर्ती के बगल में।



" हे जीजू की ब्रा भी तो उतार , ... इनकी माँ बहने तो ब्रा पहनती नहीं ,गाँव जवार में अपना जुबना उभार के दिखाते ललचाते चलती हैं ,है न जीजू , "

पीछे से उनकी बनयान में हाथ डालते मैं बोली।

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" अरे तू भी न बेकार में मेरी दीदी की सास ननद को ब्लेम कर रही है ,सही तो करती हैं वो जो दिखता है वो बिकता है। क्यों जीजू। "ज्योति बोली।

" तो फिर हमारे जीजू ही क्यों ब्रा पहन के ,...कुछ छिपाने की चीज है क्या इसके अंदर ,... " पीछे से मैंने छेड़ा पर ज्योति ने मुझे हड़का लिया।

"तो खोल के देख क्यों नहीं लेती मेरी नानी। "

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सुबह की होली में मेरी भौजाइयों ने सिखा दिया था और अब मैं खोलने में नहीं फाड़ने में यकीन रखती थी ,

मैं और ज्योती एक साथ ,

चरररर ,

जीजू की फटी रंगी पुती बनयान उनके कुर्ते के ऊपर और बस अब मेरी ब्रा और उनकी पीठ।

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और मेरे रगे पुते हाथ ने जीजू के मर्दाने टिट्स को , ( ये ट्रिक भी गुलबिया की सिखाई थी )
पहले तो मेरे लम्बे नाखूनों ने उसे फ्लिक किया ,



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फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच जीजू के निप्स को रोल करते मैंने छेड़ा ,

" जीजू आपने तो हम सालियों को आधा तीहा ही टॉपलेस किया था , हमने आपको पूरा कर दिया। "


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" और क्या आधे तिहे में क्या मजा "



ज्योति जीजू के गालों का आराम से मजा लेते, रंग लगाते बोली।

" स्सालियों ,जब मैं पूरा डालूंगा न तो पता चलेगा फट के , ... " कुछ चिढ़ते ,कुछ चिढ़ाते जीजू बोले।

"अरे जीजू डालियेगा न ,ये स्साली तो डलवाने ही आयी है। लेकिन अभी मैं डाल रही हूँ ,आप डलवाने का मजा लो , ... "

मैंने जवाब दिया।

ऊपर की मन्जिल पर तो मेरी सहेली ने कब्जा कर लिया था ,मैंने नीचे का रुख किया ,सीधे जीजू के पिछवाड़े , पाजामे के अंदर।

मैं हाथ में कड़ाही की कालिख , पक्के पेण्ट और गाढ़े लाल रंग की जो कातिल कॉकटेल बना के लायी थी , घर में घुसने से पहले ,वो सारा का सारा



जीजू के पिछवाड़े ,



पहले तो दोनों चूतड़ रंगे गए ,और उसके बाद एक रंगी पुती ऊँगली , दोनों चूतड़ के बीच की दरार पर , हलके हलके सहलाती।

और साथ मेरी लेसी टीन ब्रा के अंदर से मेरे जुबना जीजू की पीठ को रगड़ते ,



हलके से मैंने अपनी जीभ से बस जीजू के कान के लोब्स को छू भर लिया और पिछवाड़े मेरी ऊँगली का उनकी दरार पर दबाव भी बढ़ गया ,

" बड़ी कसी है जीजू आपकी , लगता है बहुत दिनों से आपका पिछवाड़ा कोरा है , लेकिन आज नहीं बचेगा "

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और मेरी ऊँगली की टिप का , पूरा प्रेशर , घुसी नहीं लेकिन ,...

" अपनी बचाना तू ,आज बिना फाडे नहीं छोडूंगा , " जीजा खलबलाते बोले।

" अरे जीजू फाड़ लेना तो न उसकी पीछे वाले भी , स्साली है ,होली है ,... और आयी ही है ये मेरी सहेली डलवाने। "

ज्योती ,जीजा की चमची ,दलबदलू।

मैंने भी जीजा को पटाना शुरू कर दिया ,

" जीजू , वो स्साली कौन जो जीजू से होली में न डलवाये। लेकिन मेरी बात मानिये , आप ने इस ज्योती की आगे की फाड़ी थी न बस , आज इसके पिछवाड़े की भी फाड़ दीजिये , इसका पिछवाड़ा , मेरा अगवाड़ा दोनों का मजा। "


दो किशोर सालियों की गरम गरम बातें , और सबसे बढ़कर पिछवाड़े की मेरी ऊँगली ,पीठ पर मेरे जुबना का प्रेशर , ... जीजू का तम्बू तनने लगा था।
उत्तेजित कलम रचना
 

komaalrani

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