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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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Sigaval

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कितना जबरदस्त वर्णन करती है आप ! पढ़ते पढ़ते हाथ अपने आप लौड़े पर चला जाता है ! अभी ही पढ़ रहा था और कामवाली कमरे में आ गयी !
अभी और अपडेट पढूंगा तो पता नही क्या होगा ।
लगता है आज मुठ्ठ मार के माल झाड़ना ही पड़ेगा ।
 

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कितना जबरदस्त वर्णन करती है आप ! पढ़ते पढ़ते हाथ अपने आप लौड़े पर चला जाता है ! अभी ही पढ़ रहा था और कामवाली कमरे में आ गयी !
अभी और अपडेट पढूंगा तो पता नही क्या होगा ।
लगता है आज मुठ्ठ मार के माल झाड़ना ही पड़ेगा ।
क्या बात कही है आपने , चलिए इसी बात पर एक और अपडेट पोस्ट कर देती हूँ , इस कहानी में , होली की मस्ती का जीजू और सालियों का।


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Sigaval

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क्या बात कही है आपने , चलिए इसी बात पर एक और अपडेट पोस्ट कर देती हूँ , इस कहानी में , होली की मस्ती का जीजू और सालियों का।


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आज तो कयामत ही हो जाएगी ! लौड़ा आपके अप्डेट्स पढ़कर सुबह से तना हुआ है । बैठ ही नही रहा ! सुपाड़ा फूल के आलू हुआ जा रहा है ! बिस्तर से ही निकला नही जा रहा !
 
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जोरू का गुलाम भाग १३७

चिकना,... जीजू नंबर २
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मैं थकी लथपथ, और जो मेरी आँख खुली तो सामने एक खूब लम्बा तगड़ा, कसरती बदन वाला, ताकत उसके जिस्म से छलक रही थी, गोरा ऐसा की लड़कियां मात,मक्खन सा चिकना , सिर्फ एक छोटे से शार्ट में, जो दिखाता ज्यादा था, छुपाता कम था। हल्के हल्के मुश्कुराता।

पीछे से ज्योती उसे पकड़े, खिलखिला रही थी। मुझसे बोली

“ये तेरा सरप्राइज पॅकेज , एक के साथ एक फ्री वाला…”

मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा जहाँ हम तीनों रंग से लथपथ, वहां वो जैसे नहा धोकर चिकना होकर आयाथा । उस चिकने को देखकर मुश्कुराते हुए मैं फर्श पर लेटी लेटी बोली

“ स्साला बड़ा चिकना है ,इसे तो लगाना पड़ेगा…”

मैं जीजू की तूफानी चुदाई के बाद उसी तरह लथपथ थकी पड़ी थी।

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“ मेरा काम लगाना है । लगवाना सालियों का काम हैं …” उसने उसी तरह मुस्कराकर जवाब दिया।

और मैं उछलकर उसके पीछे खड़ी हुयी जहाँ कुछ देर पहले ज्योती खड़ी थी। ज्योति हट गयी और अब मैंने उसे पीछे से कस कर दबोच लिया । और मेरी देह का रंग उसकी देह में, अपनी देह उसकी देह में रगड़ते मैंने उसे हड़काया

“ससुराल में आये हो , अब हम तय करेंगे, कौन डालेगा, कहाँ डालेगा, कितना डालेगा, समझे चिकने ? चुपचाप डलवा ले…वरना ऐसी फटेगी न की तेरे मायके में जिस मोची से तेरी माँ सिलवाती हैं, वहां भी नहीं सिलवा पायेगा ”

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और उसके पिछवाड़े उस सफ़ेद शार्ट में मेरे रंग लगे पुते हाथ घुस गए। और चिकने का चिकना पिछवाड़ा मैंने दबोच लिया।

ज्योति सामने से चालू थी

“ हां अगर अपनी माँ बहनों को ले आये होते तो बस छिनरों को …” उसने छेड़ा।

पर मैंने उसकी बात काट दी

“तू भी न ज्योती यार, अरे इनकी माँ बहनों की तो होली में साल भर पहले से बुकिंग रहती है , सिर्फ इनके गाँव वाले नहीं, आसपास के दस पंदह गाँव के लोग, बोली लगती है । बेचारे उनको होली में कैसे ले आ पाते, लेकिन ये कौन कम चिकने हैं ? अरे लंबा छेद नहीं तो गोल छेद, छेद तो छेद”

शार्ट में पीछे से बबल बॉम ऐसे चूतड़ों को रगड़ते मसलते मैं बोली।



ये और कोई था नीरज, ....जीजू का दोस्त, मंडप में जिसे जीजू से भी ज्यादा नाम ले ले कर गालियाँ पड़ी थी, और उसके गोरे चिकने होने से सबसे ज्यादा तो गाँव की औरतों ने, हमारी नाउन ने,


“ये स्साला तो लौंडे के नाच वाला चिकना लगता है , मुछमुंडा …”

“बचपन का गंडुआ है …” बगल वाली ने जोड़ा

“आज तो एह गाँव के लौण्डेबाजन क चांदी हो गई…” नाउन खूब जोर से एकदम उसकी और इशारा कर के बोली।


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और फिर तो हम लोग भी उसे हर गारी में गँड़ुआ और भंड़ुआ कह कर ही,…


नीरज स्साला गँड़ुआ है , अपनी बहिनी क भंड़ुआ है

और बात उन सब औरतों की सही भी थी, क्लीन शेव्ड , एकदम गोरे, मुलायम गाल।बस जीजू के दोस्त के पिछवाड़े दबाते, मसलते, रंग लगाते मैंने उसको मंडवे की याद दिलाई

“पिछली बार बच गया था तेरा पिछवाड़ा चिकने , अबकी बिना मरवाये नहीं जा पाओगे…”

ज्योति क्यों चुप रहती, वो भी चालू हो गई

“ये तो आये ही मरवाने हैं , अरे पिछली बार तो इनके साथ एक से एक चिकनी माल थी, कच्चे टिकोरे वालियां घरातियों के सामने टांग उठाने को तैयार, इसलिए इनका नंबर न लग पाया। अबकी तो मौका भी है , देख नहीं रही हो , नहा धोकर एकदम चिकने …”

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“ऐसी मस्त गाण्ड हो तो न मारना एकदम नाइंसाफी है …और नाइंसाफी न मुझे पसंद है न हमारे गाँव के लौण्डेबाजों को ”

मैंने नीरज के बारे में अपना फैसला सुना दिया।

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अब मेरी ऊँगली उसके पिछवाड़े की दरार में रगड़ घिस करने लगी थी और तर्जनी पिछवाड़े के छेद में घुसने की जुगत लगा रही थी। स्साला सच में कोरा लग रहा था।

“और उस चिकने चूतड़ को छिपा के रखना और नाइंसाफी है …”

ये कह कर ज्योति ने शार्ट आगे से पकड़ा और मैंने पीछे से,, फिर १, २, ३ बोल कर हमदोनो सहेलियों ने साथ,... साथ
और वो अगले ही पल जीजू साली की होली के पेटेंट ड्रेस में हो गए , नो कपडे ,सिर्फ रंग।
 
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पिछवाड़े पर खतरा



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और वो अगले ही पल जीजू साली की होली के पेटेंट ड्रेस में हो गए , नो कपडे ,सिर्फ रंग।



लेकिन तब तक जीजू अपने दोस्त की सहांयता के लिए आ गए और पलड़ा उन दोनों का भारी हो गया । पक्के बेईमान, अभी मैंने अपनी मस्त गुलाबो की इतनी तगड़ी घूस उन्हें दी थी पर,... कलियुग के जमाने में इत्ती दोस्ती,

नीरज ने आगे से ज्योती को पकड़ लिया और उसके चूतड़ दबोचते हुए बोला

“स्साली सही बोल रही है,ऐसी चिकनी गाण्ड को तो न मारना एकदम सख्त नाइंसाफी है …”

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बात नीरज की एकदम सही थी, पूरे स्कूल में क्या, आस पास के कई गांवो में मेरे जोबन की सानी नहीं थी। लेकिन पिछवाड़े के मामले में ज्योति को मैं भी टक्कर नहीं दे सकती थी। खूब गोल मोल , कसमस कसमस करते बबल बॉटम ।

“और नाइंसाफी मुझे पसंद नहीं …” आगे से जीजू ने ज्योति के दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहा।

और मैं समझ गई, आज तो गाण्ड गई। पर मुझे जो डर था वही हुआ।

ज्योति मौका परस्त, दलबदलू अपने को बचाने के लिए उसने मुझे आगे कर दिया

“पहले इसकी मारो न…”

उसने मुझे खींचकर नीरज के आगे कर दिया , और जोड़ा

“ये तो आई ही है मरवाने…”

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मैंने अभी अभी हुयी मेरी चुदाई की दुहांई दी और बोली

“मेरे अगवाड़े देख लो एकदम अभी तक, बजबजा रही है …”

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ज्योति अपना पिछवाड़े बचाने के चक्कर में एकदम दलबदलू, नीरज से बोली,

" अरे पिछवाड़ा तो अभी एकदम सूखा है , अगवाड़ा मारने के लिए कौन कह रहा है, ... मस्त टाइट "

जीजू भी न मेरे ही पीछे पड़ गए, बोले “अरे तो अगवाड़े व पछवाड़े में अंतर नहीं करना चाहिए न ”

“एकदम, छेद छेद में भेद नहीं होना चाहिए …” उनके दोस्त नीरज ने गुरुज्ञान दिया।

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मैंने स्ट्रेटेजी चेंज की और ज्योति की तरफ इशारा करते बोली “ नहीं मेरा मतलब है , मैंने तो अभी अभी जीजू से , इसलिए आप ज्योति की …”

“मारी तो तुम दोनों की जायेगी, हाँ पहले किसकी गाण्ड फटेगी तुम दोनों तय कर लो?”

नीरज स्साला आज एकदम पिछवाड़े के पीछे ही पड़ गया था।

" टॉस कर लें?” खिलखिलाती हुयी ज्योति बोली।

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“चुप कमीनी, मुझे मालूम है तेरे पास शोले वाला सिक्का है …” मैंने तुरंत उसका प्रस्ताव खारिज कर दिया।

लेकिन हम दोनों के झगडे में किसी का पिछवाड़ा नहीं बचने वाला था, नीरज जो था, उस चिकने ने थर्ड अम्पायर की तरह फैसला सुना दिया



“तुम दोनों तो बचपन की सहेली हो बचपन से ही चुम्मा चाटी, चुस्सम चुस्साई, रगड़म रगड़ाई, घिसम घिसाई करती होगी , तो बस आज हम दोनों के सामने, और बस जो पहले झड़ेगी, उसकी गाण्ड पहले मारी जायेगी…”

और जीजू क्यों चुप रहते , उन्होंने थर्ड अम्पायर के फैसले पर एक्सपर्ट कमेंटेटर की तरह अपना कमेंट भी सुना दिया

“मतलब मारी तो दोनों की गाँड़ जायेगी, हाँ जो झड़ेगी पहले उसकी पहले मारी जायेगी, तो बस…”
 

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सहेलियों की कुश्ती


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लेकिन हम दोनों के झगडे में किसी का पिछवाड़ा नहीं बचने वाला था, नीरज जो था, उस चिकने ने थर्ड अम्पायर की तरह फैसला सुना दिया



“तुम दोनों तो बचपन की सहेली हो बचपन से ही चुम्मा चाटी, चुस्सम चुस्साई, रगड़म रगड़ाई, घिसम घिसाई करती होगी , तो बस आज हम दोनों के सामने, और बस जो पहले झड़ेगी, उसकी गाण्ड पहले मारी जायेगी…”

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और जीजू क्यों चुप रहते , उन्होंने थर्ड अम्पायर के फैसले पर एक्सपर्ट कमेंटेटर की तरह अपना कमेंट भी सुना दिया

“मतलब मारी तो दोनों की गाँड़ जायेगी, हाँ जो झड़ेगी पहले उसकी पहले मारी जायेगी, तो बस…”

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और ये मौका मैं गवाना नहीं चाहती थी,


वो खेल सच में मैंने और ज्योती ने कितनी बार खेला था, जब हम दोनों की झांटे भी नहीं आई थी तब से। पर अभी गुलबिया और वो कहारिन भौजी , जो हमारे कुंए से पानी निकालती थी और गाँव के रिश्ते से भौजाई लगती थी, आज होली में जिसने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की थी, गुलबिया से भी ज्यादा इस खेल की उस्ताद थी, उसकी रगड़घिस्स से मैंने जो गुन सीखे थे,..

ज्योती को धक्का देकर मैंने गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई। पर ज्योति तगड़ी भी थी और कबड्डी चैम्म्पयन भी। कुछ देर में वो ऊपर, मैं नीचे और हम दोनों 69 की पोज में। कन्या कुश्ती चालू और आज तो, हमारी कोरी कुँवारी गाँड़ दांव पर लगी थी।

ज्योती हर बार इस खेल में मुझसे बीस पड़ती थी, और ऊपर से, आज वो ऊपर भी थी। सड़प सड़प, सड़प सड़प, शुरू से ही चौथे गियर में, लकिन मैंने गुलबबया की सिखाई पढ़ाई, , पहले सीधे सीधे जीभ की नोक से ज्योती की गुलाबो के किनारे किनारे जैसे लाइन खींच कर जीभ से ही दो संतरे की फांको को, दो फांक किया लेकिन जीभ अंदर नहीं घुसायी बस हलके हलके ।


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ज्योती की देह गिनगिनाने लगी, पर मेरी हालत कम खराब नहीं थी, ज्योती की चूत चुसाई मेरी चूत में आग लगा दी थी। मैंने थोड़ी देर तो डिफेन्स बढ़ाया यहाँ वहां ध्यान अपना इधर उधर लगाने की कोशिश की, पर ज्योती की जीभ मेरी चूत में सेंध लगा चुकी थी।

फिर मुझे ध्यान आया आज सुबह की होली का, एक मेरी दीदी गाँव के रिश्ते से, चार पांच साल मुझसे बड़ी, गौने के बाद पहली बार आई थी, ननद पहली बार ससुराल से अपने मायके आये तो बस, वो भी होली में, सारी गाँव की भौजाइयां पिल पड़ीं । लेकिन मेरी वो दीदी सब पर 20 पड़ रही थी। कोई भी उनको झड़ाने में कामयाब नहीं हो रहा था।



फिर वही कहारिन भौजी , बताया तो था जो हमारे कुंवे पे पानी भरती थी, गाली देने और ऐसे वैसे मजाक में गुलबिया से भी चार हाथ आगे, और गाूँव के रिश्ते में भौजी तो थी ही मेरी। उन्होंने दीदी की ऐसी की तैसी कर दी, पांच मिनट के अंदर ऊँगली होंठ , जीभ दांत सब इस्तेमाल किया एक साथ और बस मैंने भी व्ही ट्रिक ज्योति ऊपर। पहले तो फूंक फूंक कर कर हल्के हल्के, फिर तेजी से, उसकी गुलाबी फांको को के ऊपर , फिर दोनों फांको को फैला के अंदर तक । और ज्योति की हालत खराब हो गई।

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पर ये तो शुरुआत थी, उसके बाद मेरी जीभ फांको के ऊपर, कसकर चूसते हुए मेरी उँगलियों ने ज्योति की बुर फैलाई और अब मेरी जीभ अंदर। लेकिन मैं बजाय जीभ से चोदने के ज्योति की बुर के अंदर वो जादू का बटन ढूंढ़ने लगी जो मुझे गुलबिया ने अच्छी तरह सिखाया था, और मिल गया वो बस,



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जीभ की टिप से कभी उस बटन ( जी प्वाइंट ) को मैं रगड़ाती कभी खोदती, कभी सहलाती, मेरी सहेली हाथ पैर पटक रही थी , चूतड़ उछाल रही थी , मुझे हटाने की कोशिश कर रहे थी पर मेरी जीभ , ज्योति की बुर के अंदर उस जादू की बटन को,.. और साथ में मेरी ऊँगली और अंगूठा उसके क्लिट पे,...

पल भर में ज्योति की बुर एक तार की चासनी छोड़ने लगी,

फिर क्या था गोल गोल, गोल गोल मेरी जीभ उसकी बुर में और हर चक्कर पूरा होने के बाद थोड़ी देर उस जादू के बटन को दबा देती रगड़ देती। और ज्योति सिहर उठती, काँप जाती। जब मैंने जीभ बाहर निकाला उसकी लसलसी बुर से तो मेरी दो उँगलियाँ एक साथ, कुहनी के जोर से पूरे अंदर तक और साथ साथ मेरे होंठों ने ज्योति की फूली फुदकती क्लिट को दबोच लिया और लगी चूसने पूरी ताकत से।

दोनों अम्पायर ध्यान से देख रहे थे, कौन हारने वाली है किसकी गाँड़ मारी जायेगी,...

ज्योति की बुर में मेरी अब तीन तीन उँगलियाँ घुसी थीं और इंजन के पिस्टन की तरह उसे चोद रही थीं और होंठ वैक्यूम क्लीनर की तरह मैं अपनी सहेली की क्लिट पूरी ताकत से चूस रही थी.

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अब ज्योति ने हार कबूल कर ली,

बजाय मुझे झड़ाने के चक्कर में पड़ने के वो सिर्फ मजा ले रही थी। कुछ ही देर में वो झड़ने के कगार पर पहुँच गई, और मैंने अपने दांतो से से हल्के से ज्योति की क्लिट काट ली। बस जैसे ज्वालामुखी फूट पड़ा हो , तूफ़ान आ गया हो ज्योति कांप रही थी, सिसक रही थी , झड़ रही थी।

मैंने कनखियों से देखा , नीरज जीजू मेरे होंठ की शैतानी देख रहे थे, खूंटा उनका पूरा कड़क, ऊपर से मुठिया भी रहे थे।

ये बात मैंने कहारिन भौजी से सीखी थी की झड़ने के बाद तो दूनी ताकत से हमला,



और बस मेरी उँगलियाँ क्या कोई लण्ड चोदेगा, सटासट सटासट ,...


आज होली में मैंने एकदम बगल से देखा था, मम्मी कैसे सटासट पहले चार ऊँगली से अपनी ननद की , मेरी बूआ की बुर चोद रही थीं , फिर पूरी मुट्ठी कलाई के जोर से, और बीच बीच में मुझे देख के मुस्करा भी रही थीं , बस उसी तरह कलाई की पूरी ताकत से, जैसे मर्द कमर के जोर से लौंडिया चोदते हैं ।

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और होंठ अब एक बार फिर कुछ रुक के, क्लिट चूसने में लग गए, ज्योति तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी और अबकी दो मिनट में ही,... , जैसे मैंने अपना अंगूठा उसके क्लिट पर लगाया पहले से भी दूनी तेजी से वो झड़ने लगी। झड़ती रही झड़ती रही।

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और अब बजाय उँगलियों के एक बार फिर उस लथपथ बुर पर मेरे होंठ वैक्यूम क्लीनर से भी तेज चूस रहे थी। फिर मैंने कनखियों से देिा, नीरज वहां नहीं थे , पर जीजू एकदम पास में। और अबकी जो ज्योति झड़ी तो झड़ती रही झड़ती रही , झड़ती रही , एकदम थेथर हो गयी, पर मैंने चूसना नहीं रोका।

बोलने की ताकत भी नहीं बची थी, मुश्किल से बोल पायी “हार मानती हूँ मैं…”

विजयी मुस्कान से मैंने पास बैठे जीजू की ओर देखा और उन्होंने स्कोर अनाउंस कर दिया

“अब जो पहले झड़ा उसकी गाण्ड मारी जायेगी…”

जीजू का खूंटा भी एकदम तन्नाया, फन्नाया, बौराया, मोटा सुपाड़ा एकदम खुला , गाँड़ फाड़ने को एकदम तैयार,



पीछे से तब तक नीरज जीजू की आवाज आई “और जो बाद में झड़ा, उसकी बुर चोदी जायेगी…”
 
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Jiashishji

दिल का अच्छा
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Holi ke samay jija sali ki masti bahut mast hai komal ji . Love you
 
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