Jiashishji
दिल का अच्छा
- 1,123
- 1,922
- 158
Man kar raha ta ki ye Holi aise hi chalti raheधक्के पर धक्का ,
जीजू की पिचकारी , साली की होली
और रंगों के साथ गालियां भी नहीं रुक रही थीं थी मेरी, आखिरकार साली थी तो गाली, और वो भी सिर्फ जीजू की माँ को
“मादरचोद, भोंसड़ी के, अपनी माँ के खसम , तेरी माँ को चमरौटी , भरौटी के सारे लौंडों से चुदवाउ , तनी धीरे धक्का मारो न…”
और बजाय धक्के धीरे करने के, अगला धक्का एकदम तूफानी सीधे बच्चेदानी पर साथ में उनकी उँगलियाँ मेरे क्लिट पे, और अब उनसे नहीं रहा गया, तो वो भी मेरी चूची मसलते बोल पड़े
“स्साली, अरे अपनी माूँ की याद आ रही तो मेरी माँ का नाम ले रही है । अरे बहुत मन कर रहा है तुझे अपनी माँ चुदवाने का तो उस छिनार रंडी को भी चोद दूंगा । अरे सास को तो चोदना बनता है , जिस भोसड़े से दूध वालों से चोदवाकर दूध जैसी गोरी गोरी बिटिया पैदा की, उस भोंसड़े में तो…”
जीजू की गाली का असर, क्लिट पर उनकी ऊँगली का असर, जुबना पर उनके होंठो का असर, बच्चेदानी पर लगे मूसल के धक्के का असर, मेरी देह कांपने लगी, मेरी चूत अपने आप सिकुड़ फ़ैल रही थी। और मैंने झड़ना शुरू कर दिया ।
तूफान में पत्ते की तरह मेरी देह काँप रही थी, सुबह से कितनी बार किनारे पर जा जा जाकर रुक गयी थी,... लेकिन अब पूरी देह मन मष्तिस्क सब मथा जा रहा था, इत्ता अच्छा लग रहा था, कभी मन करता जीजू रुक जाएँ बस एक पल के लिए तो कभी मन करता नहीं ऐसे ही रगड़ रगड़ के चोदते रहें,... लेकिन जीजू ने छोड़ा नहीं
हाँ पल भर के लिए उनके धक्के रुक गए थे, पर लण्ड जड़ तक, सीधे मेरी बच्चेदानी तक ठूंसा हुआ , और लण्ड का बेस वो हलके हलके मेरी क्लिट पर रगड़ रहे थे । वो मेरा झड़ना बंद होने का इन्तजार कर रहे थे और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई शुरू हुयी की, हर धक्के पर मेरी चूल चूल हिल रही थी, नंबरी चोदू थे जीजू।
मैं भी रंग और गाली भूलकर जबरदस्त धक्कों का मजा ले रही थी, धक्कों का जवाब दे रही थी। जीजू न मेरी चूची छू रहे थे न क्लिट , सिर्फ धक्के पर धक्का। मैं आँखे बंद करके जीजू की चुदाई का मजा ले रही थी। और अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू ने चुदाई रोकी भी नहीं ।
मुझे लग था जैसे समय रुक गया है , बस मैं हौं और जीजू का मस्त मोटा तगड़ा लण्ड, और मैं चुद रही हूँ चुद रही हूँ । मैं सिसक रही थी तड़प रही थी, मेरी जाँघे फटी जा रही थी, और हल्के ह ल्के मैं भी नीचे से, कभी कभी जीजू के तगड़े धक्कों का जवाब रुक रुक के दे रही थी। पांच मिनट , दस मिनट पता नहीं कब तक , कितनी देर तक जीजू चोदते रहे , मैं चुदती रही, , मेरी आँखे बंद थी।
हाँ अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू भी साथ साथ।
मैं अपनी चूत में उनकी गाढ़ी मलाई म सूस कर ही थी। गिरते हुए बहते हुए , चूत मैंने कसकर भींच लिया था, मैं भी जीजू के लण्ड को निचोड़ रही थी।
बड़ी देर तक म दोनों ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में लथपथ, आँखे मेरी बंद । लग रहा था जीजू एक बार झड़ने के बाद दुबारा फिर मलाई की बार बार फुहार मेरे अंदर छूट रही थी , जीजू की पिचकारी का रंग ख़तम ही नहीं हो रहा था। उसके कुछ थक्के मेरी जाँघों पर भी, बह कर ।
जब जीजू ने अपना निकाला तो बस अभी भी उनकी पिचकारी,... मन कर रहा था , क्या मन कर रहा था ये भी नहीं समझ में आ रहा था।