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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

pprsprs0

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Aap ke pati aur saas ka no kab aaye ga please
+1 इसका इन्तेज़ार बहुत देरी से हो रहा है
 
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komaalrani

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Holi ke samay jija sali ki masti bahut mast hai komal ji . Love you
Thnks lekin aap page 264 ka update miss kar gaye, usapar aap ka koyi comment nahi aaya, like bhi nahi
 
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komaalrani

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आज के अपडेट्स

होली के रंग --चार पोस्ट्स


जोरू का गुलाम - तीन पोस्ट्स

छुटकी - चार पोस्ट्स


.............waiting for comments and your views
 
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pprsprs0

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सहेलियों की कुश्ती


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लेकिन हम दोनों के झगडे में किसी का पिछवाड़ा नहीं बचने वाला था, नीरज जो था, उस चिकने ने थर्ड अम्पायर की तरह फैसला सुना दिया



“तुम दोनों तो बचपन की सहेली हो बचपन से ही चुम्मा चाटी, चुस्सम चुस्साई, रगड़म रगड़ाई, घिसम घिसाई करती होगी , तो बस आज हम दोनों के सामने, और बस जो पहले झड़ेगी, उसकी गाण्ड पहले मारी जायेगी…”

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और जीजू क्यों चुप रहते , उन्होंने थर्ड अम्पायर के फैसले पर एक्सपर्ट कमेंटेटर की तरह अपना कमेंट भी सुना दिया

“मतलब मारी तो दोनों की गाँड़ जायेगी, हाँ जो झड़ेगी पहले उसकी पहले मारी जायेगी, तो बस…”

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और ये मौका मैं गवाना नहीं चाहती थी,


वो खेल सच में मैंने और ज्योती ने कितनी बार खेला था, जब हम दोनों की झांटे भी नहीं आई थी तब से। पर अभी गुलबिया और वो कहारिन भौजी , जो हमारे कुंए से पानी निकालती थी और गाँव के रिश्ते से भौजाई लगती थी, आज होली में जिसने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की थी, गुलबिया से भी ज्यादा इस खेल की उस्ताद थी, उसकी रगड़घिस्स से मैंने जो गुन सीखे थे,..

ज्योती को धक्का देकर मैंने गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई। पर ज्योति तगड़ी भी थी और कबड्डी चैम्म्पयन भी। कुछ देर में वो ऊपर, मैं नीचे और हम दोनों 69 की पोज में। कन्या कुश्ती चालू और आज तो, हमारी कोरी कुँवारी गाँड़ दांव पर लगी थी।

ज्योती हर बार इस खेल में मुझसे बीस पड़ती थी, और ऊपर से, आज वो ऊपर भी थी। सड़प सड़प, सड़प सड़प, शुरू से ही चौथे गियर में, लकिन मैंने गुलबबया की सिखाई पढ़ाई, , पहले सीधे सीधे जीभ की नोक से ज्योती की गुलाबो के किनारे किनारे जैसे लाइन खींच कर जीभ से ही दो संतरे की फांको को, दो फांक किया लेकिन जीभ अंदर नहीं घुसायी बस हलके हलके ।


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ज्योती की देह गिनगिनाने लगी, पर मेरी हालत कम खराब नहीं थी, ज्योती की चूत चुसाई मेरी चूत में आग लगा दी थी। मैंने थोड़ी देर तो डिफेन्स बढ़ाया यहाँ वहां ध्यान अपना इधर उधर लगाने की कोशिश की, पर ज्योती की जीभ मेरी चूत में सेंध लगा चुकी थी।

फिर मुझे ध्यान आया आज सुबह की होली का, एक मेरी दीदी गाँव के रिश्ते से, चार पांच साल मुझसे बड़ी, गौने के बाद पहली बार आई थी, ननद पहली बार ससुराल से अपने मायके आये तो बस, वो भी होली में, सारी गाँव की भौजाइयां पिल पड़ीं । लेकिन मेरी वो दीदी सब पर 20 पड़ रही थी। कोई भी उनको झड़ाने में कामयाब नहीं हो रहा था।



फिर वही कहारिन भौजी , बताया तो था जो हमारे कुंवे पे पानी भरती थी, गाली देने और ऐसे वैसे मजाक में गुलबिया से भी चार हाथ आगे, और गाूँव के रिश्ते में भौजी तो थी ही मेरी। उन्होंने दीदी की ऐसी की तैसी कर दी, पांच मिनट के अंदर ऊँगली होंठ , जीभ दांत सब इस्तेमाल किया एक साथ और बस मैंने भी व्ही ट्रिक ज्योति ऊपर। पहले तो फूंक फूंक कर कर हल्के हल्के, फिर तेजी से, उसकी गुलाबी फांको को के ऊपर , फिर दोनों फांको को फैला के अंदर तक । और ज्योति की हालत खराब हो गई।

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पर ये तो शुरुआत थी, उसके बाद मेरी जीभ फांको के ऊपर, कसकर चूसते हुए मेरी उँगलियों ने ज्योति की बुर फैलाई और अब मेरी जीभ अंदर। लेकिन मैं बजाय जीभ से चोदने के ज्योति की बुर के अंदर वो जादू का बटन ढूंढ़ने लगी जो मुझे गुलबिया ने अच्छी तरह सिखाया था, और मिल गया वो बस,



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जीभ की टिप से कभी उस बटन ( जी प्वाइंट ) को मैं रगड़ाती कभी खोदती, कभी सहलाती, मेरी सहेली हाथ पैर पटक रही थी , चूतड़ उछाल रही थी , मुझे हटाने की कोशिश कर रहे थी पर मेरी जीभ , ज्योति की बुर के अंदर उस जादू की बटन को,.. और साथ में मेरी ऊँगली और अंगूठा उसके क्लिट पे,...

पल भर में ज्योति की बुर एक तार की चासनी छोड़ने लगी,

फिर क्या था गोल गोल, गोल गोल मेरी जीभ उसकी बुर में और हर चक्कर पूरा होने के बाद थोड़ी देर उस जादू के बटन को दबा देती रगड़ देती। और ज्योति सिहर उठती, काँप जाती। जब मैंने जीभ बाहर निकाला उसकी लसलसी बुर से तो मेरी दो उँगलियाँ एक साथ, कुहनी के जोर से पूरे अंदर तक और साथ साथ मेरे होंठों ने ज्योति की फूली फुदकती क्लिट को दबोच लिया और लगी चूसने पूरी ताकत से।

दोनों अम्पायर ध्यान से देख रहे थे, कौन हारने वाली है किसकी गाँड़ मारी जायेगी,...

ज्योति की बुर में मेरी अब तीन तीन उँगलियाँ घुसी थीं और इंजन के पिस्टन की तरह उसे चोद रही थीं और होंठ वैक्यूम क्लीनर की तरह मैं अपनी सहेली की क्लिट पूरी ताकत से चूस रही थी.

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अब ज्योति ने हार कबूल कर ली,

बजाय मुझे झड़ाने के चक्कर में पड़ने के वो सिर्फ मजा ले रही थी। कुछ ही देर में वो झड़ने के कगार पर पहुँच गई, और मैंने अपने दांतो से से हल्के से ज्योति की क्लिट काट ली। बस जैसे ज्वालामुखी फूट पड़ा हो , तूफ़ान आ गया हो ज्योति कांप रही थी, सिसक रही थी , झड़ रही थी।

मैंने कनखियों से देखा , नीरज जीजू मेरे होंठ की शैतानी देख रहे थे, खूंटा उनका पूरा कड़क, ऊपर से मुठिया भी रहे थे।

ये बात मैंने कहारिन भौजी से सीखी थी की झड़ने के बाद तो दूनी ताकत से हमला,



और बस मेरी उँगलियाँ क्या कोई लण्ड चोदेगा, सटासट सटासट ,...


आज होली में मैंने एकदम बगल से देखा था, मम्मी कैसे सटासट पहले चार ऊँगली से अपनी ननद की , मेरी बूआ की बुर चोद रही थीं , फिर पूरी मुट्ठी कलाई के जोर से, और बीच बीच में मुझे देख के मुस्करा भी रही थीं , बस उसी तरह कलाई की पूरी ताकत से, जैसे मर्द कमर के जोर से लौंडिया चोदते हैं ।

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और होंठ अब एक बार फिर कुछ रुक के, क्लिट चूसने में लग गए, ज्योति तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी और अबकी दो मिनट में ही,... , जैसे मैंने अपना अंगूठा उसके क्लिट पर लगाया पहले से भी दूनी तेजी से वो झड़ने लगी। झड़ती रही झड़ती रही।

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और अब बजाय उँगलियों के एक बार फिर उस लथपथ बुर पर मेरे होंठ वैक्यूम क्लीनर से भी तेज चूस रहे थी। फिर मैंने कनखियों से देिा, नीरज वहां नहीं थे , पर जीजू एकदम पास में। और अबकी जो ज्योति झड़ी तो झड़ती रही झड़ती रही , झड़ती रही , एकदम थेथर हो गयी, पर मैंने चूसना नहीं रोका।

बोलने की ताकत भी नहीं बची थी, मुश्किल से बोल पायी “हार मानती हूँ मैं…”

विजयी मुस्कान से मैंने पास बैठे जीजू की ओर देखा और उन्होंने स्कोर अनाउंस कर दिया

“अब जो पहले झड़ा उसकी गाण्ड मारी जायेगी…”

जीजू का खूंटा भी एकदम तन्नाया, फन्नाया, बौराया, मोटा सुपाड़ा एकदम खुला , गाँड़ फाड़ने को एकदम तैयार,



पीछे से तब तक नीरज जीजू की आवाज आई “और जो बाद में झड़ा, उसकी बुर चोदी जायेगी…”
Bahut masst
 
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ASR

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कोमल जी - अति सुन्दर कहानी पूरी कामरस से परिपूर्ण 😍 अभी 100 page पूरे किए हैं

एक बात पूछने की जिज्ञासा है आप की कहानी फागुन के दिन चार का लिंक शेयर करे बहुत ही सुंदर कहानी (नॉवल) था है,

और भी अगले अंक को पढ़ने के बाद
komaalrani आप की कहानी kaफागुन के दिन चार का लिंक या pdf शेयर करियेगा
 
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komaalrani

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komaalrani आप की कहानी kaफागुन के दिन चार का लिंक या pdf शेयर करियेगा
Thanks so much , it is available in this forum and here is the link

 
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ASR

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Jiashishji

दिल का अच्छा
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जोरू का गुलाम भाग १३६

मस्ती होली की - जीजू साली की


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“अरे स्साली दो और मजा आप सिर्फ एक से ले रहे हैं …”

और अब वो मुस्करा रहे थे। अपने खूंटे को मेरी गुलाबो पे रगड़ते बोले,..." मुझे तो यही चाहिए "

मैं हंस के बोली


“अरे जिज्जू किस स्साली की हिम्मत मेरे इस हैंडसम जीजू को मना करे…”

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उनसे भी जोर से मैंने अपने निचले होंठों को उनके खूंटे पे रगड़ते बोला। और उसी तेजी से मेरे रंगे पुते जोबन जीजू की छाती पे रगड़ रहे थे।

और मैंने जीजू को ज्योति के खिलाफ और चढ़ाया

“अरे जरा मेरी सहेली के कबूतरों को भी तो आजाद करिये न? दो से चार अच्छे, ये स्साली तो आपकी हर बात मानने को तैयार है तो आप मेरी थोड़ी सी बात…”


और बिना उनकी हाँ का इन्तजार किये बिना मैंने कसकर चुम्मी ली, मेरे होंठों ने उनके होठों को गपूच लिया मेरी जीभ उनके मुूँह में घुस गई, और मेरी देह एकदम उनकी देह से चिपकी । ज्योती के पैरों की आहट पाकर मैं थोड़ा दूर हो गई।

और जीजू भी जैसे कुछ हुआ न हो , अलग।

ज्योती मुझे देखकर मुस्कराती हुयी , एक टेबल पर गहरे कटोरे गाढ़ा गीला पेण्ट , और जब वो झुकी थी तो जीजू ने उसे पीछे से दबोच लिया ,




ज्योति की भी ३२ नबर की ब्रा खुली

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और ब्रा ज्योती की भी कलाई की शोभा बढ़ा रही थी। उसके हाथ भी जीजू ने कस के बाँध दिए और जोबना दोनों एकदम खुले ,

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और उसके बाद ज्योति की भी शलवार, पैंटी मेरी शलवार पैंटी के साथ। जीजू अब ज्योती के अंग अंग रंग रहे थे और मैं बता रही थी,

" यहाँ अभी बचा हैं , जीजू बायीं चूँची के नीचे, दाएं चूतड़ पर,... "
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थोड़ी देर में वो गीला गाढ़ा रंग ज्योति के अंग प्रत्यंग पर लगा हुआ, और ज्योती चिल्ला रही थी


“ फाउंल फाउल , जीजू मैंने बोला था न की मैं इसको रंग लगवा दूंगी तो आप बिना नखड़ा किया चुपचाप, बिना उछले कूदे हर जगह रंग लगवा लेंगे…”


जीजू महा दुष्ट , मुस्कराते हुये बोले

“अरे स्साली की बात टाले किस जीजा की हिम्मत चल मैं बिना नखड़े के चुपचाप, बिना उछले कूदे रंग लगवा लूंगा लेकिन हर जगह …कोई जगह बचनी नहीं चाहिए सालियों ”

“पर, पर, जीजू, हम दोनों के तो हाथ बंधे हैं …” वो बेचारी बोली।

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“ये तुम दोनों की प्रॉब्लम है …” हंसते हुए वो बोले।

फिर बोले

“अच्छा पांच मिनट में तुम दोनों ने मुझे हर जगह रंग दिया न तो हाथ खोल दूंगा तुम दोनों के …” मान गए वो।
ज्योति सोच में डूबी, हाथ बंधे , कैसे?
पर मेरे शैतानी दिमाग ने रास्ता ढूूँढ़ लिया ।
Sahi baat hai kis jija ki himmat hai jo sali ki baat ko taal de
 
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Jiashishji

दिल का अच्छा
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बंधे हाथ और होली

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ज्योति सोच में डूबी, हाथ बंधे , कैसे?
पर मेरे शैतानी दिमाग ने रास्ता ढूूँढ़ लिया ।

ज्योती उदास मन से जीजू की चड्ढी में फंसे, ढंके तने खूंटे को देख थी, इसे कैसे खोलेंगे , रंग हर जगह लगाना है तो यहाँ भी,...पर ।



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मैं उसे देखकर मुश्कुरायी और जीजू से बोली “जीजू शर्त मंजूर। "

और एक बार फिर ज्योति मेरे साथ, लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था मैं ' हर जगह ' वाली शर्त 'बंधे हाथ ' होने के बावजूद कैसे पूरी करुँगी,.. पर इत्ते हैंडसम जीजू को रंग लगाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी।



ज्योति को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था की जवान होती हुयी लड़की के तरकश में कितने तीर होते हैं, और उन्हें कब कैसे चलाना चाहिए।



मैं जीजू के सामने घुटनों के बल बैठ गयी, चड्ढी एकदम तनी। ज्योति बीएस , टुकुर टुकुर मुझे देख रही थी।

एक जबरदस्त चुम्मा उस मस्त खूंटे पर चड्ढी के ऊपर से, और जीजू का सुपाड़ा एकदम फूल उठा। जीभ निकाल कर मैंने चड्ढी के ऊपर से ही सुपाडे को लिक किया।



जीजू की हालत खराब लेकिन ज्योति की अभी भी समझ में नहीं आरहा था की बंधे हाथों से मैं कैसे जीजू की चड्ढी खोल के इसे आजाद कराउंगी।

और एक झटके में मैंने अपने रसीले होंठों को खोलकर,




गप्प, चड्ढी के ऊपर से ही जीजू के मोटे सुपाड़े को गप्प कर लिया और लगी चूसने, बेचारे जीजू की हालत खराब, लंड तड़फड़ा रहा था।

बस , मैंने आराम से धीरे धीरे उन्ही रसीले होंठों से जीजू की चड्डी की इलैस्टिक पकड़ी , और खूब धीरे धीरे, हौले हौले , होंठों के जोर से नीचे सरकाती ,... लौंड़े का बेस दिखने लगा था , जीजू सालियों के लिए उसका मुंडन करवा के एकदम साफ़ चिकना,...

और ज्योति को भी समझ में आ गया , होंठों का जादू ,... पीछे से उसने भी होंठों से जीजू की चड्ढी की इलैस्टिक पकड़ के , चूतड़ के ऊपर से, वो सरकती गयी , चूतड़ की दरार,... और और ,..और नीचे,...



सटाक , फटा पोस्टर निकला हीरो, खूब बड़ा , और मोटा भी,..





ज्योति ने तो अपनी दी की शादी के चार दिन के अंदर ही न सिर्फ इसे देख भी लिया था बल्कि घोंटा भी था और वो भी रोज बिना नागा,...


मैं पहली बार देख रही थी और साथ में मेरे हाथ से रंगे रंगों से लिपा पुता, और मैंने एक बार फिर अपनी जीभ की टिप से हल्की सी लिक , सीधे सुपाड़े पे और जीजू गिनगीना गए ,




मुजफ्फरपुर की लीची की तरह मोटा, रस से चूता, रसीला, मांसल सुपाड़ा,


मैंने बस अपनी जीभ की टिप उनके पेशाब के छेद पर छुला दिया। जैसे तेज करेंट लगा हो, जीजू एकदम काँप गए। अबकी उस छेद में जीभ की टिप डालकर मैं थोड़ी देर तक ,… सुरसुराती रही , लंड तड़पता रहा,... फिर झट से झटके से पूरा सुपाड़ा , साली के मुंह में गप्प।




एक हाईस्कूल वाली कच्चे टिकोरों वाली साली खुद घुटनों के बल बैठ के सुपाड़े पर अपनी गुलाबी जीभ फिराए तो कौन जीजू काबू में रह पायेगा, जीजू तड़प रहे थे.

पूरा सुपाड़ा मेरे मुूँह में।




मैं चुभलाती रही , चूसती रही और मेरी नाचती आँखे जीजू की आँखों में सीधे झांकती उनको उकसाती, चढ़ाती, रहीं । हाथ भले मेरे बंधे थे, लेकिन होंठ कौन कम। सुपाड़े को, आजाद करके, मेरी जीभ लण्ड के बेस पर, लम्बे लम्बे लिक करने लगी.



एक बार तो मैंने बाल्स भी लिक कर लिया




और फिर एक झटके में पहले तो पूरा सुपाड़ा, फिरआधा लण्ड, गटक लिया।

ज्योति भी, वो कौन कम छिनाल थी, उसने पिछवाड़े का मोर्चा सम्हाला था, कभी वो जीजू के चूतड़ चूमती तो कभी उसकी जीभ बीच की दरार में।


अब जीजू समझ गए, हमारे हाथ खोलने पर उन्हें क्या मिलने वाला हैं , लेकिन रंग तो लगाना ही था। अपने गाल से पहले मैंने उस तन्नाए लंड पर रंग लगाना शुरू किया , फिर मेरे रंगे पुते जोबन।


ज्योति भी जीजू के नितम्बो पर अपने जोबन से रंग लगा रही थी। और तड़पाने तरसाने के बाद हम दोनों खड़े खड़े , जीजू हम दोनों के बीच सैंडविच बने,


आगे का हिस्सा मेरे हिस्से , पीछे का ज्योति के।


हम दोनों के किशोर उभार ब्रश से कम नहीं थे, कोई जगह नहीं बची।



और जब रंग कम पड़ गए तो उन रंग भरे कटोरों में झुक के हम दोनों ने, अपने जुबना रंग लिया । और एक बार फिर से, कोई जगह नहीं बची जीजू की देह की,... उनकी देह कैनवास थी , हम दोनों किशोरों के जस्ट आते हुए उभार, ब्रश और हम दोनों


मैंने ज्योति के कान में कुछ फुसफुसाया , और उसने रंग भरे वो कटोरे , सीधे मेरे ऊपर ढरका दिए ,





और मैंने जीजू को हल्के से धक्का दिया और वो सीधे फर्श पर, नीचे जीजू और ऊपर मैं,

मेरी देह का रिंग जीजू पे सरकते हुए , पहले मेरे जुबना ने जीजू के गाल रंगे फिर उनकी छाती, और फिर उनका खड़ा भूखा बौराया खूंटा यहाँ तक की पैर, तलुवे भी। पांच मिनट का टाइम भी ख़तम होने ही वाला था।

और पांच मिनट के पहले ही जीजू के देह का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां सालियों की देह का रंग उनकी देह पर न छलका हो,...



मान गए जीजू भी, पहले उन्होंने ज्योति के हाथ खोले, फिर मेरे इत्ते देर से बंधे हाथ,
Rang lagaane ka tarika itna majedaar ho to kon Holi nahi khelna chahe ga
 
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