Kasam se ye to aisa lag raha hai independence ke pehle ki baat ho gayi
Kasam se ye to aisa lag raha hai independence ke pehle ki baat ho gayi
You may try Opera browser which has free VPN.Phone ke liye brave ya duck duck go browser is enough but not sure for PC
क्रिया धरावे के कोई बाते नहीं था....Sacchi, ham to bhojpuri vaali angreji ekdam nahi.....tohar kiriya,
Small screen of mobile also deters me.I fully agree but i am aware about this issue, anything with INCEST tag in the story is likely to garner million eyeballs just because of the tag,... and erotica is shunned, in the erotica category there are only three stories which have more than 1 million views ( two of them are mine , this one and mohe rang de) but in the incest tag there are dozens and dozens.
I am not aware about any forum where they had published my original version. You need not give the link but may be can share the name if moderators permit and they dont permit they will certainly delete it . So i have a handful of readers but they are my friends and lovers of this genre. I have nothing against incest as a genre but preference of most of the readers as you mentioned is clear. Now, after your suggestion, may be as i am reaching here the place where monologue happened and i too like that, so may be i will share it in this story itself, ( not as a part of story but with a footnote and history and i am sure my readers will appreciate it. ) Thanks again. But meanwhile my story is being threatened by some problem in this forum which i had mentioned before and i use a lappy with a very convoluted way of writing. I type in google internet tools in Hindi save in MS word, check it and then from there after opening this forum transfer it from MS word and if their are some suggestions and i want to incorporate again i make changes. I have created a library of jpg,png and gif ( mostly non-erotic) and from there pic pictures to add.
and i am not very smart in typing on smart phones so please have a look
Very right.main lappy use karti hun aur bina anti-virus ke nahin operate karti
Haye ram tum bhi itni achi english bolte hoThose who are good reader will be good writer.
Without reading you can not write even a paragraph..
I think Komal Rani is a greedy reader of many text on so many languages, that is why she has command over such language.
Apart from that she must be nice person, that is why she is able to feel the emotion of others and the same are expressed in her story telling.
दिल दिमाग गुर्दा जिगर सब लबरेज कर देंगी...... कोमल रानीAbhi na jao chod k.....
Ki dil abhi bhara nahi
भाग १५२
वापसी की तैयारी
और मेरी निगाह एक बार फिर दीवाल पर टंगे कैलेण्डर पर चिपकी थी , आज बुधवार ,आज हम लोग दो तीन घंटे में इनकी बुलबुल को लेके अपने घर पहुँच जायेंगे।
और बृहस्पतिवार ,शुक्रवार , उसके ठीक एक हफ्ते बाद , अगले शुक्रवार को मम्मी मेरी सास को लेके दोपहर तक हमारे घर पहुँच जाएंगी।
जैसा तय था ,एक दो दिन पहले ही इनकी किशोर बहन ,मेरी ननद गुड्डी रानी मेरे गाँव ,
शुक्रवार को ,
मेरी जेठानी कोठे पर चढ़ जाएंगी ,.... रात भर एक से एक मोटे लौंड़े घोंटेंगीं।
मेरी सास उस दिन रात में अपने बेटे का , जिस भोंसडे से ये निकले हैं उसी भोंसडे में इनका ,..
वो भी मेरे और इनकी सास के सामने ,..... गपागप सास मेरी घोंटेंगी।
मैंने आने वाले ११ दिन बाद के शुक्रवार को , लाल रंग से घेर दिया।
दिया ने जेठानी को ब्लाउज दे दिया था , वही जिसकी नाप कल दिया ने मॉल में दिलवाया था और बाद में सिल कर दिया को मिला था।
हाँ ब्रा नहीं दिया ,लेकिन उस ब्लाउज के साथ ब्रा पहनी भी नहीं जा सकती थी। सिर्फ दो ढाई इंच की पट्टी मुश्किल से ,पीछे से एकदम बैकलेस बस एक पतली सी डोरी , आगे से भी बस जेठानी के भारी भारी गदराये उभारों को बस जैसे वो सपोर्ट कर रही थी , निप्स भी आधे दिख रख थे। पूरा क्लीवेज , सब उभार का कड़ापन ,कटाव ,शेप साइज ,सब कुछ।
जेठानी अपना वो ब्लाउज पहन ही रहे थीं की बाहर हंसने खिलखिलाने की आवाज सुनाई पड़ी ,
गुड्डी और उसके भइया ,मेरे सैंया।
तब मुझे याद आया की वो दोनों सामान पैक करने गए थे ,पता नहीं कुछ सामान छोड़ न दिया हो और अब चलने का भी टाइम हो रहा था।
" हे ऊपर खाली चुम्मा चाटी अपने भैय्या के साथ कर रही थी या पैकिंग भी ,.. "
" देखिये ना ,आपका सारा सामान ,.. " गुड्डी हँसते हुए बोली।
सच में मेरा सूटकेस इनके हाथ में था और बैग भी था।
" और तेरे कपडे ,... तू भी तो अपना सामान पैक करके लायी थी न सुबह ,..तेरे कपडे . " मैंने गुड्डी को याद दिलाया।
और जवाब कमरे के अंदर से आया ,दिया और गुड्डी की बड़की भाभी एक साथ हँसते बोलीं ,
" ये क्या करेगी कपडे , ... इसके भैय्या इसको कपडे पहनने देंगे तब न। "
" क्यों इसी लिए कपडे यहीं छोड़ के चल रही थी ,.. " मैं क्यों अपनी ननद को छेड़ने का मौक़ा छोड़ देती।
गुड्डी बिचारी ,... जोर से ब्लश किया उसने ,और उसके ब्लश करते गालों को चूमने का मौका कौन भाभी छोड़ देती।
तो मैंने चूम लिया और ऊपर अपने कमरे में ,लेकिन मेरा मन कही और था।
अगर मेरी इस दुष्ट जेठानी की चाल चल गयी होती ,
तो मुस्कराती खिलखलाती मेरी ननद और मेरे सैयां ,.... दोनों के मुंह लटके होते। सिर्फ इस बार नहीं हमेशा के लिए दोनों के मिलने का चांस ख़तम हो जाता ,जो वो जब से हाईस्कूल में आयी ,तब से उसकी कच्ची अमियों को देख के ललचा रहे थे ,वो सब बस ,
एक बार अगर मेरी जेठानी मेरी सासु को पटा लेती और वो गुड्डी के घर वालों को मना कर देतीं तो फिर हम लाख कोशिश कर लेते , ...गुड्डी यहीं पढ़ती और जेठानी की ताबेदार बन के , .. मेरी कभी हिम्मत नहीं पड़ती न जेठानी से आँखे मिलाने की न गुड्डी से।
और ये बिचारे , मैं कितने दिनों से इन्हे चिढ़ा भी रही थी , चढ़ा भी थी की मैं अपनी ननद के ऊपर इन्हे चढ़ा के ही मानूंगी ,... वो सब ख्याल ख्याल ही रह जाता।
लेकिन सब मेरी जेठानी का प्लान धरा का धरा रह गयामेरे साजन की इतने दिनों की चाहत अब पूरी होनेवाली है ,बेचारी जेठानी।
और ये सब दिया का करा धरा था , उसकी प्लानिंग एकदम पक्की।
मम्मी ने मुझे वार्न भी किया था की अगर मैं गुड्डी को ले कर चली भी जाउंगी तो जब तक मैं जेठानी का कोई पक्का इंतजाम नहीं करुँगी , तो वो बाद में भी ,...
और दिया ने मुझे पूरा भरोसा दिलाया ,... वो तो रहेगी न यहां।
और जिस तरह चम्पा बाई के कोठे वाला उसने प्लान रचा , खुद जेठानी के मोबाईल से और फेसबुक पर भी , अब जेठानी जाल में पूरी तरह फंसी थी।
मैं ऊपर अपने कमरे में पहुँच गयी थी।
सच में गुड्डी और इन्होने पैकिंग पूरी तरह की थी , गुड्डी के सूटकेस के अलावा कुछ भी नहीं था।
लेकिन मेरा दिमाग जेठानी में लगा था , ये जरूरी था की ११ दिन बाद शुक्रवार को वो चंपा बाई के कोठे पर एक बार , ... लेकिन उसके लिए जरूरी था की मेरी सास मम्मी के साथ , ११ दिन बाद शुक्रवार को दोपहर तक हम लोगों के घर पहुँच जाए , तभी तो।
मम्मी भी मेरी,
किस तरह सास को उन्होंने शीशे में उतारा ,...
चिढ़ाती तो वो पहले से थीं इनको मादरचोद कह के और मुझसे उन्होंने बोला था की इसे बहनचोद बनाने की जिम्मेदारी तेरी है,
तो मैं क्यों पीछे रहती मैं ने भी उन्हें चढ़ा दिया
"लेकिन ठीक है मम्मी ,उसके बाद मादरचोद बनाने की जिम्मेदारी आपकी। "
दिल, दिमाग और चूत/गांड़ से सास को जबरदस्त तैयार कर दिया है आपकी मम्मी ने....भाग १५२
वापसी की तैयारी
और मेरी निगाह एक बार फिर दीवाल पर टंगे कैलेण्डर पर चिपकी थी , आज बुधवार ,आज हम लोग दो तीन घंटे में इनकी बुलबुल को लेके अपने घर पहुँच जायेंगे।
और बृहस्पतिवार ,शुक्रवार , उसके ठीक एक हफ्ते बाद , अगले शुक्रवार को मम्मी मेरी सास को लेके दोपहर तक हमारे घर पहुँच जाएंगी।
जैसा तय था ,एक दो दिन पहले ही इनकी किशोर बहन ,मेरी ननद गुड्डी रानी मेरे गाँव ,
शुक्रवार को ,
मेरी जेठानी कोठे पर चढ़ जाएंगी ,.... रात भर एक से एक मोटे लौंड़े घोंटेंगीं।
मेरी सास उस दिन रात में अपने बेटे का , जिस भोंसडे से ये निकले हैं उसी भोंसडे में इनका ,..
वो भी मेरे और इनकी सास के सामने ,..... गपागप सास मेरी घोंटेंगी।
मैंने आने वाले ११ दिन बाद के शुक्रवार को , लाल रंग से घेर दिया।
दिया ने जेठानी को ब्लाउज दे दिया था , वही जिसकी नाप कल दिया ने मॉल में दिलवाया था और बाद में सिल कर दिया को मिला था।
हाँ ब्रा नहीं दिया ,लेकिन उस ब्लाउज के साथ ब्रा पहनी भी नहीं जा सकती थी। सिर्फ दो ढाई इंच की पट्टी मुश्किल से ,पीछे से एकदम बैकलेस बस एक पतली सी डोरी , आगे से भी बस जेठानी के भारी भारी गदराये उभारों को बस जैसे वो सपोर्ट कर रही थी , निप्स भी आधे दिख रख थे। पूरा क्लीवेज , सब उभार का कड़ापन ,कटाव ,शेप साइज ,सब कुछ।
जेठानी अपना वो ब्लाउज पहन ही रहे थीं की बाहर हंसने खिलखिलाने की आवाज सुनाई पड़ी ,
गुड्डी और उसके भइया ,मेरे सैंया।
तब मुझे याद आया की वो दोनों सामान पैक करने गए थे ,पता नहीं कुछ सामान छोड़ न दिया हो और अब चलने का भी टाइम हो रहा था।
" हे ऊपर खाली चुम्मा चाटी अपने भैय्या के साथ कर रही थी या पैकिंग भी ,.. "
" देखिये ना ,आपका सारा सामान ,.. " गुड्डी हँसते हुए बोली।
सच में मेरा सूटकेस इनके हाथ में था और बैग भी था।
" और तेरे कपडे ,... तू भी तो अपना सामान पैक करके लायी थी न सुबह ,..तेरे कपडे . " मैंने गुड्डी को याद दिलाया।
और जवाब कमरे के अंदर से आया ,दिया और गुड्डी की बड़की भाभी एक साथ हँसते बोलीं ,
" ये क्या करेगी कपडे , ... इसके भैय्या इसको कपडे पहनने देंगे तब न। "
" क्यों इसी लिए कपडे यहीं छोड़ के चल रही थी ,.. " मैं क्यों अपनी ननद को छेड़ने का मौक़ा छोड़ देती।
गुड्डी बिचारी ,... जोर से ब्लश किया उसने ,और उसके ब्लश करते गालों को चूमने का मौका कौन भाभी छोड़ देती।
तो मैंने चूम लिया और ऊपर अपने कमरे में ,लेकिन मेरा मन कही और था।
अगर मेरी इस दुष्ट जेठानी की चाल चल गयी होती ,
तो मुस्कराती खिलखलाती मेरी ननद और मेरे सैयां ,.... दोनों के मुंह लटके होते। सिर्फ इस बार नहीं हमेशा के लिए दोनों के मिलने का चांस ख़तम हो जाता ,जो वो जब से हाईस्कूल में आयी ,तब से उसकी कच्ची अमियों को देख के ललचा रहे थे ,वो सब बस ,
एक बार अगर मेरी जेठानी मेरी सासु को पटा लेती और वो गुड्डी के घर वालों को मना कर देतीं तो फिर हम लाख कोशिश कर लेते , ...गुड्डी यहीं पढ़ती और जेठानी की ताबेदार बन के , .. मेरी कभी हिम्मत नहीं पड़ती न जेठानी से आँखे मिलाने की न गुड्डी से।
और ये बिचारे , मैं कितने दिनों से इन्हे चिढ़ा भी रही थी , चढ़ा भी थी की मैं अपनी ननद के ऊपर इन्हे चढ़ा के ही मानूंगी ,... वो सब ख्याल ख्याल ही रह जाता।
लेकिन सब मेरी जेठानी का प्लान धरा का धरा रह गयामेरे साजन की इतने दिनों की चाहत अब पूरी होनेवाली है ,बेचारी जेठानी।
और ये सब दिया का करा धरा था , उसकी प्लानिंग एकदम पक्की।
मम्मी ने मुझे वार्न भी किया था की अगर मैं गुड्डी को ले कर चली भी जाउंगी तो जब तक मैं जेठानी का कोई पक्का इंतजाम नहीं करुँगी , तो वो बाद में भी ,...
और दिया ने मुझे पूरा भरोसा दिलाया ,... वो तो रहेगी न यहां।
और जिस तरह चम्पा बाई के कोठे वाला उसने प्लान रचा , खुद जेठानी के मोबाईल से और फेसबुक पर भी , अब जेठानी जाल में पूरी तरह फंसी थी।
मैं ऊपर अपने कमरे में पहुँच गयी थी।
सच में गुड्डी और इन्होने पैकिंग पूरी तरह की थी , गुड्डी के सूटकेस के अलावा कुछ भी नहीं था।
लेकिन मेरा दिमाग जेठानी में लगा था , ये जरूरी था की ११ दिन बाद शुक्रवार को वो चंपा बाई के कोठे पर एक बार , ... लेकिन उसके लिए जरूरी था की मेरी सास मम्मी के साथ , ११ दिन बाद शुक्रवार को दोपहर तक हम लोगों के घर पहुँच जाए , तभी तो।
मम्मी भी मेरी,
किस तरह सास को उन्होंने शीशे में उतारा ,...
चिढ़ाती तो वो पहले से थीं इनको मादरचोद कह के और मुझसे उन्होंने बोला था की इसे बहनचोद बनाने की जिम्मेदारी तेरी है,
तो मैं क्यों पीछे रहती मैं ने भी उन्हें चढ़ा दिया
"लेकिन ठीक है मम्मी ,उसके बाद मादरचोद बनाने की जिम्मेदारी आपकी। "
ये दोनों समधनों की छेड़-छाड़ भी जबरदस्त है....मेरी सास, इनकी सास
"लेकिन ठीक है मम्मी ,उसके बाद मादरचोद बनाने की जिम्मेदारी आपकी। "
……
और उसके बाद तो ,मैं भूल नहीं सकती सुबह सुबह ,मम्मी जब निकलने वाली थी और उसके दो दिन बाद हम लोगों को यहां आना था।
मम्मी ने अपनी समधन को पटा तो लिया ही था की जब वो तीरथ से लौटेंगी तो मेरी मम्मी मेरी ससुराल जाएंगी और उन्हें लेकर हम लोगों के पास आएँगी लेकिन उस दिन तो उन्होंने हद कर दी ,मेरी सास से साफ साफ कबुलवा लिया की जब वो आएँगी तो ,..
एक एक बात याद थी मुझे और उस के पहले वाली रात तो सास दामाद की जबरदस्त रात भर कुश्ती भी हुयी थी , पूरे चार राउंड। इसलिए ये भी पूरे मूड में ,
जैसे मैं बिस्तर पर अक्सर गुड्डी बनकर इनसे ,..
उसी तरह उस दिन उनकी सास, सारी रात मेरी सास बन कर इनके साथ ,मिमिक तो वो पक्की थीं, एकदम मेरी सास की आवाज अंदाज में
सुबह सुबह।
और फोन उस दिन मेरी सास का ही आया था , रोज सुबह सुबह ब्रेकफास्ट के समय दोनों समधनों के बीच ऐसे संवाद होते थे की मस्तराम मात। और वो भी स्पीकर फोन ऑन कर के , ... और ये भी अपनी माँ की 'अच्छी अच्छी बाते ' खूब कान पार कर ,रस ले ले कर सुनते।
लेकिन उस दिन तो फोन उनकी माँ ,मेरी सास का ही आया ,पहले
" देर हो गयी आज , लगता है रात भर खूब मूसल चला ओखली में। " उधर से मेरी सास की आवाज आयी ,
( आफ कोर्स स्पीकर फोन आन था )
बात एकदम सही थी , मेरी सास का सिक्स्थ सेन्स गजब का था।
तीर एकदम निशाने पर लगा ,मैं और वो मॉम की ओर देख के मुस्कराने लगे। पर मॉम कौन सी कम थी ,पलटी मार के उन्होंने उल्टा हमला बोला।
" अरे घबड़ाती क्यों हैं , कुछ दिन की तो बात है , ले आउंगी न आपको यहाँ पे , फिर आपकी ओखल में भी दिन रात वही वाला मोटा मूसल चलेगा यहां पर। " मॉम बोली।
" अरे नेकी और पूछ पूछ , आपके मुंह में घी शक्कर , कब आएगा वो दिन , बहुत दिन से मेरी ओखल उपवास कर रही है। "
मेरी सास की खिलखलाती हुयी आवाज उधर से आयी।
" अरे वो मूसल भी बेताब हो रहा है आपकी ओखल की सेवा करने के लिए , "
खिलखिलाते हुए मॉम बोलीं और उनका आधा सोया आधा जागा मूसल उनके शार्ट से बाहर निकाल के रगड़ने मसलने लगीं।
" बहुत लंबा मोटा है मूसल आपकी आवाज सुन के खड़ा ,कड़ा हो रहा है। " अपने दामाद को छेडते ,चिढाते मम्मी अपनी समधन से बोली।
" अरे रात भर आपने लन्ड घोंटा है आपको मालुम होगा कितना मोटा ,कितना कड़ा ,... और मेरी ओखल लंबे मोटे से नहीं डरती अगर मेरी समधन ने घोंट लिया है तो मैं भी घोंट लुंगी , निचोड़ के रख दूंगी उसको। "
हंसती हुयी मेरी सास की आवाज आयी और उन्होंने संवाद का लेवल एक लेवल और बढ़ाया।
" देखूंगी ताकत आपकी , अपने हाथ से पकड़ के मोटा मूसल आपके भोंसडे में घुंसवाऊँगी , और फिर आप लाख मना करे ,चीखें चिल्लाएं , अपने मोटे मोटे चूतड़ पटकें ,बिना आपको दो बार झाड़े ,झड़ने वाला लन्ड नहीं है ये। " मम्मी ने भी उसी तरह जवाब दिया।
कुछ समधनों की बात चीत का असर , कुछ मम्मी की जादुई उँगलियों का ,उनका लन्ड एकदम मोटा ,पूरा ७ इंच का खड़ा कड़ा ,ताजादम हो गया था।
मम्मी ने एकझटके में खींच के सुपाड़ा भी खोल दिया और खूब मोटा ,गुलाबी भूखा सुपाड़ा बाहर।
" अरे मैं काहें मना करुँगी , मैं तो खुद घोंटने के लिए बेताब हूँ , और अच्छा हुआ आपने पहले चख के ट्राई कर के देख लिया छोटे पतले में मुझे तो पता ही नहीं चलेगा , जिस भोंसड़ी से दो दो बच्चे बाहर निकल चुके हों ,न जाने कितने अंदर बाहर हो चुके हों तो उसको तो लंबा मोटा ही ,... "
लेकिन मेरी सास की बात काटते हुए ,मम्मी ने जोर से उनके लन्ड को मुठियाते अपनी समधन को भरोसा दिलाया ,
" गारंटी मेरी , आपको गौने की रात याद आ जाएगी ,ऐसे हचक हचक के , ... एकदम कड़क है। चलिए आपको इसकी फोटो भेजती हूँ आपके व्हाट्सएप्प पर फिर देख कर बोलियेगा, हाँ पसन्द आये तो जरूर दो चुम्मी लीजियेगा उस मूसल की। "
टेक्नीकल असिस्टेंस तो मैं थी ही ,झट से मॉम के मोबाइल से उनके कड़े लन्ड की मैंने दो तीन फोटुएं खींची ,एक पगलाए बौराये सुपाड़े का क्लोज भी और अपनी सास को व्हाट्सएप्प कर दिया, उन्ही के बेटे के फोन से
३०-४० सेकेण्ड तक उधर से कोई नहीं आयी लगता है सासु जी उनके लन्ड का दर्शन करने में बिजी थीं ,और तभी दो मुआ मुआह ,..चुम्मियों की जबरदस्त आवाज आयी।
" पसन्द आया न " मम्मी ने पूछा।
" बहुत ,बस अब तो मन कर रहा है की कब अंदर घोटूं इसे। " सासु की बेचैन आवाज आयी।
" बस आप तीरथ से लौट आइये , और हाँ वहां पंडों से खूब दबवाइयेगा ,मसलवाइयेगा लेकिन नीचे की कुठरिया पर खबरदार ,... अब तो वहां यहीं ,... आप जिसदिन लौटेंगी अगले दिन मैं आपके पास और उसके अगले दिन हम दोनों यहां बस ,... "
मम्मी ने इनकी माँ के लिए पूरा प्रोग्राम बना दिया।
" एकदम ,.. हँसते हुए मेरी सास बोलीं , और पंडों की बात आपने एकदम सही कही ,तीर्थ का तो वो भी एक मजा है और बिना दबाये मसले , मीजे रगड़े तो वो छोड़ते भी नहीं है , लेकिन आप पक्का ,बल्कि जिस दिन मैं लौटूंगी उसी दिन आप आइये न और अगले दिन आपके साथ चल दूंगी। " मेरी सास हँसते हुए बोली।
मेरी मम्मी भी ,उस दिन तो उन्होंने लिमिट क्रास कर दी , सीधे इनसे बात करवा दी , और ये बिचारे
मालिश.. नालिश (सेवा) तो जोरदार होनी है....मेरे साजन, मेरी सास
मेरी मम्मी भी ,उस दिन तो उन्होंने लिमिट क्रास कर दी , सीधे इनसे बात करवा दी , और ये बिचारे
" अच्छा ज़रा फोन काटने के पहले मूसल वाले से बात तो कर लीजिये " मम्मी धीरे से मेरी सास से बोलीं और उन्हें फोन पकड़ा दिया।
वो शर्मा सकुचा रहे थे लेकिन मेरी सास ने इशारे में ही अपनी बात कह दी ,
" तुझे अपनी सास को धन्यवाद देना चाहिए ,ऐसी सास बहुत मुश्किल से मिलती हैं। तीर्थ से लौटने के बाद मैं आउंगी तुम लोगों के पास। उनसे बात हो गयी है , अब अकेले तो मुश्किल था लेकिन वो आएँगी तो उनके साथ आउंगी , फिर सारी थकान वहीँ उतारूंगी। खूब सेवा करवाउंगी तुम दोनों से। "
हंसते हुए मेरी सास बोलीं।
मैं समझ रही थी किस सेवा की बात हो रहे है ,समझ तो ये भी रहे थे लेकिन थोड़े झिझक रहे थे।
इसलिए कमान मैंने अपने हाथ में ले ली , फोन पर पहले मैंने प्रणाम किया फिर चालू हो गयी ,
" एकदम आप बस आ जाइये , उसके आगे की बात हमारे हाथ पर छोड़ दीजिये , खूब सेवा होगी आपकी , ऐसी कहीं भी कभी भी हुई न होगी ," मैं बोली
" अरे जीती रहो , तेरे मुंह में घी शक्कर बहू , अरे तेरे यही सब गुन लक्षन देख के तो तुझे मैं ले आयी थी , मुझे पूरा मालुम था तू इस घोंचू को ट्रेन करके ठीक कर देगी ,वरना मेरा मुन्ना तो , ...लेकिन एक बात समझ लो मैं तेरी माँ की तरह जल्दी और कम सेवा से संतुष्ट नहीं होनेवाली , कित्ते दिनों से ,... " वो हँसते हुए बोलीं।
" बस आप आ जाइये ,फिर आप अपनी समधन और बहू पे छोड़ दीजिये , और आपका मुन्ना , वो तो अब अब एकदम बदल गए हैं बस यही सोचते है की कब आप आएं और कब , आप करवाते करवाते थक जाएंगी , वो करते करते नहीं थकेंगे आपकी बहू की गारंटी। " मैं भी हँसते हुए बोली।
सास का मन बार बार कह रहा था उनसे बात करने को ,उनसे बात करते बोली
"अपनी सासू और मेरी समधन को डबल बल्कि ट्रिपल थैंक्स दे देना ,जरा अच्छी तरह से एक बार अपनी तरफ से और दो बार मेरी तरफ से , और उनकी और मेरी बहू की सब बातें मानना , वरना जब आउंगी न तो बहुत पिटाई होगी तेरी। अरे बस दस दिन की बात है , फिर देखूंगी , बहुत दिन हो गया तुझे देखे हुए , चलती हूँ , नहाने को देर हो रही है। "
वो फोन रखती ,उसके पहले मुझसे नहीं रहा गया मैं बोल ही पड़ी ,
" अरे अभी अभी तो देखा है आपने , अभी तो मैंने व्हाट्सऐप किया था आपके फोन पे , हाँ इन एक्शन आइयेगा तो देख लीजियेगा। " मैंने हँसते खिलखलाते बोला।
मेरी सास भी मॉम से कम नहीं थी , कुछ उधार नहीं रखती थीं , तुरंत सूद समेत लौटा देती थी।
" बहू तू भी न एकदम पक्की बदमाश है , बाप का तो पता नहीं लेकिन अपनी माँ पे गयी है. अरे आउंगी तो देखना दिखाना सब होयेगा ही। घबड़ा मत तुझसे भी सेवा करवाउंगी अच्छी तरह से और तेरे मरद से भी , मिलते हैं ब्रेक के बाद , तीरथ से लौटने पर । "
जिस रात मेरी सास निकलने वाली थीं , उस रात तो मम्मी ने सीधे अपने दामाद से ही फोन करवाया , मेरी सास और जेठ के घर से ठीक निकलने के पहले। और वो भी ,उन्होंने मेरी सास से तीन तिरबाचा भरवाया की तीरथ से लौटने के अगले दिन ही वो हमारे घर ,और सास ने हामी भी भर ली।
लेकिन फिर उनकी सास यानी मेरी मम्मी मैदान में और उनके हाथ से फोन लेकर अपनी समधन के साथ चालू हो गयीं
" अरे इसका मतलब है की इसकी मातृभूमि साफ़ सूफ कर ली है न ,चिक्कन मुक्कन ,आपका लौंडा नम्बरी चूत चटोरा है। अभी से इसकी जीभ लपलपा रही है ,सोच सोच के टनटना रहा है। "
कहने की बात नहीं ,मम्मी ने उनके शार्ट से उनका खूँटा बाहर कर दिया था और जोर जोर से रगड़ मसल रही थीं।
लेकिन बजाय बुरा मानने के मेरी सास खिलखिला के हंसी , बोली ,
" एकदम तैयारी कर ली है , और इसके पास आउंगी तो एक बार फिर से ,... कर लूंगी। :"
" और इतनी पूजा मनौती करियेगा तो एक मेरी भी अर्जी लगा दीजियेगा , " मम्मी ने गुजारिश की।
" एकदम बोलिये न आपकी इच्छा तो मेरी इच्छा से भी पहले पूरी होगी , एकदम अर्जी लगाउंगी। " मेरी सास हंस के बोलीं।
" मेरा दामाद आपकी ओखली में धमाधम मूसल चलाये , दिन रात ," मम्मी ने आज एकदम खुल के बोल दिया।
वो बीर बहूटी हो गए ,लजा के लेकिन मम्मी ने एकझटके से ऐसे रगड़ा की चमड़ा हट के मोटा सुपाड़ा बाहर , और उनकी मम्मी के जवाब ने तो उनकी और हालत और खराब कर दी. हँसते हुए वो बोलीं ,
" फिर तो मेरी और आपकी अर्जी एक ही हुयी , जरूर पूरी होगी ,डबल जोर जो है। बस दस दिन बाद मैं लौट के आ जाउंगी , आप तो आइयेगा ही न बस उसके अगले दिन आपके दामाद के पास। "
सारी बातें फ्लैश बैक की तरह मेरे दिमाग में चल रही थीं।
"तेरी सास से अभी अभी बात हुयी है। इस शुक्रवार को नहीं अगले शुक्रवार को ,इसके एक दिन पहले ही मैं आ जाउंगी ,उस दिन उन्होंने कुछ तीर्थ से लौटने के बाद की पूजा वूजा रखी है , बहुत दिनों से समधियाने गयी भी नहीं हूँ। बस अगले दिन सुबह ही उन्हें लेकर चल दूंगी , तीन घंटे कार से लगता है तेरे यहां पहुँचने पर। दिन का खाना तुम लोगों के साथ ,अपने मूसलचंद से ही बनवाना। "
मम्मी ने मुझे फोन पे बताया।
यही तो मैं चाहती थी ,यही दिन चम्पा बाई के साथ तय हुआ था जेठानी का।
हाँ मम्मी ने ये भी मुझे समझाया की निकलने के पहले मैं भी एक बार अपनी सास से बात कर लूँ , और इनसे भी बात करवा दूँ।
तो अब इनका मादरचोद बनना पक्का।