और किचेन में
किचेन तो गुड्डी ने कल रात ही देख लिया था , मेरी प्लानिंग भी यही थी की घर के काम काज धीरे धीरे उसी के हवाले ,...
और किचेन में घुसते ही पीछे से कस के गीता ने ऐसे चुटकी काटी , की गुड्डी की टाँगे अपने आप फ़ैल गयीं।
बस गीता ने अबकी खुल के गुड्डी की जाँघों के बीच में हाथ डाल के उसकी सोनचिरैया पर हाथ डाल के दबोच लिया , और लगी मसलने।
वैसे भी गुड्डी ने अपने भैय्या की लांग शर्ट के अलावा अंदर कुछ भी नहीं पहिना था।
और गीता ने जब अपनी गदोरी के बीच में दबा के उस नयी चिरैया की बिलिया को मसलना मीजना शुरू कर दिया , बस थोड़ी देर में ही वो गीली हो गयी। गीता की ऊँगली गुड्डी की दरार में रगड़ रही थी , और उस एलवल वाली की जाँघे अपने आप फैलने लगी ,
" का हो भौजी बोला चोदलें कल रात हमार भइया न ,कचकचाई के , ... "
गीता का अंगूठा अब गुड्डी की क्लिट पर था , हलके हलके सहलाते ,..
गीता की उंगलियां तो चार बच्चो को उगलने वाली भोंसड़ी को पानी पिला देती थीं ,ये तो नयी नयी बछेड़ी थी।
गुड्डी जोर जोर से सिसक रही थी ,चूतड़ मटका रही थी , पर उसके मुंह से सच निकला
"नहीं ,नाहीईईई , कुछ नहीं हुआ ,... "
और साथ ही गीता ने अपनी ऊँगली जो उस कच्ची कली की कोरी प्रेमगली में घुसाने की कोशिश की तो , ... समझ गयी ,
इस चिड़िया ने चारा अभी तक नहीं घोंटा है।
पूरी ताकत के बाद भी एक पोर भी ऊँगली नहीं घुसी ,
गीता समझ गयी न सिर्फ ये छोरी अब तक चुदी नहीं है बल्कि उसकी चूत बहुत ही कसी है , जबरदस्त खून खच्चर होगा।
दरार में ऊँगली रगड़ती गीता बोली ,
" कउनो बात नहीं भौजी , अरे अपनी एह ननदिया क बात माना , बस आज रात भरतपुर लुट जाई , पक्का , सबेरे ई ननदिया आय के उठाएगी , इहाँ रबड़ी मलाई भरी रहेगी। "
रगड़ाई से गुड्डी झड़ने के करीब आ गयी थी और जान बूझ के गीता रुक गयी।
और गुड्डी के मीठे मीठे गाल पे चुम्मा लेती बोली ,
" बस ई ननदिया क बात माना ,आज से रोज बिना नागा ,मोट मोट पिचकारी, लेकिन चलो कुछ काम निपटाए दें , भौजी ज़रा हाथ बटा दो तो जल्दी हो जायेगी। "
और धुलने वाले बरतन गुड्डी को पकड़ा दिया , वैसे भी ज्यादा काम नहीं था ,खाली कल रात के ही बर्तन थे।और जैसे ही गुड्डी ने कटोरी मांजना शुरू किया , गीता ने छेड़ा
" अरे भौजी जस हमार भइया तोहार कटोरी मांजते हैं वैसे मांजा न ,दो ऊँगली अंदर , बाकी बाहर , तनी जोर लगाय के , अरे हाँ ऐसे "
और गुड्डी ने कस कस के ,
लेकिन गीता तो एकदम पक्की ननद बनी , गुड्डी के गालों को जोर से पिंच करती बोली ,
" अरे भौजी मस्त है ,... कब से ऊँगली करना शुरू किया था ,झांट आने के पहले से की झांट आते ही ,.. एकदम हमार भौजी मायके की बांकी छिनार लाग रही हैं हाँ ऐसे ही रगड़ो ,.. अरे ससुराल में आयी हो दिन रात मेहनत करना होगा ,.. "
गुड्डी कौन सीधी थी , एकदम भौजाई के रोल में ,.. झट से आँख नचा के बोली ,
" अरे वाह , हम काहें मेहनत करेंगे , करें तोहार भइया ,.. "
" अरे रात भर टंगिया उठाये रहोगी मेहनत ना पड़ी का। फिर जब तक धक्का दुनो ओर से न लगे तबतक का मजा , कल सबरे भिन्सारे आके पूछूँगी भाभी ,मेहनत पड़ी की ना , रात में सैंया और दिन में ,.. हम हैं न तोहार ननद मेहनत करवावे के लिए ,.. "
दोनों एकदम मिलकर काम कर रहीं थी ,और ननद भौजाई की तरह खुल के मजाक , छेड़छाड़ भी।
पर गीता भी ,.. थोड़ी ही देर में उसने सारा काम गुड्डी को पकड़ा दिया और खुद किचेन के सिंक के बगल में धप्प से बैठ गयी।
" अरे आज रात में तो भैय्या तुमको बख्श दिए तो ,जरा सा बरतन है , ... जल्दी जल्दी निपटा दो , ... फिर आगे का काम भी तो पड़ा है। "
अब बजाय काम करने के वो गुड्डी से काम करवा रही थी।
और गुड्डी भी चुपचाप उसकी बात मान कर बरतन साफ़ करने में लगी थी ,
मांजने के बाद धुलवाया भी गीता ने गुड्डी से ही , और अब तक गीता की साडी सरक कर गीता की जाँघों के ऊपर पहुंच चुकी थी।
" एही लिए हम भइया से कह रहे थे, तुमको जरूर ले आवें जल्द, ओनहु के आराम ,हम सब को आराम, भौजी बस दो तीन दिन में कुल काम धाम,.. सिखा दूंगी मैं.”
"चलो तुमने इतना बढ़िया बर्तन साफ़ किया , थोड़ा इनाम तो बनता ही है न , ज़रा मिठाई खिला दूँ अपनी नयकी भौजी को."