- 22,509
- 58,923
- 259
अपडेट पोस्टेड - एक मेगा अपडेट, जोरू का गुलाम - भाग २३९ -बंबई -बुधवार - वॉर -२ पृष्ठ १४५६
कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
कहानी जो स्टोरीलाइन के साथ हो तो इतना बड़ा होना स्वाभाविक है...जोरू का गुलाम में अब तक ४६, ४८,७९ शब्द लिखे जा चुके हैं, और कहानी पोस्ट करते समय थोड़े बहुत शब्द प्रसंग के अनुसार बढ़ ही जाते हैं तो करीब ५ लाख शब्द मैं आप सब मित्रों के सामने अब प्रस्तुत कर चुकी हूँ,
मैं यह कहानी एम एस वर्ड में सेव करती हूँ ( फ़ॉन्ट साइज ११ ) और टाइप गूगल की सहायता से,... देवनागरी में,
और यह अबतक १९५५ पृष्ठ पार कर चुकी है, और जैसा मैंने कहा लिखते समय कुछ जुड़ ही जाता है तो २,००० पृष्ठ, जो किसी हार्डबाउंड पुस्तक के स्वरूप का शायद होता और अभी १००० पृष्ठों के आस पास की कहानी बची है,...
यह कथा यात्रा लम्बी है, अनेक प्रसंग, अनेक चरित्र,... उपन्यास के रूप में ज्यादा,...
तो अब गुड्डी का भैया भाभी के घर में नयी सुबह बस शुरू हो रही है,...
नहीं मैं विराम नहीं ले रही हूँ ,अल्प विराम भी नहीं,... बस जल्द ही अगली पोस्ट में आप नए परिवेश में उस टीनेजर से मिलेंगे, एक दूसरी टीनेजर के साथ,...
पुनरावृत्ति पर बस इतना कहना चाहूंगा कि ये गीता ... छुटकी वाली गीता से अलग हट के है....गीता
( भाग ४४ पृष्ठ ४८ की पुनर्प्रस्तुति )
और फिर एक खिलखिलाहट ,जैसे चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठी हों।
और उन्होंने मुड़ कर देखा तो जैसे कोई सपना हो , एक खूबसूरत परछाईं , एक साया सा ,
बस वो जड़ से होगये जैसे उन्हें किसी ने मूठ मार दी हो।
झिलमिलाती दीपशिखा सी , और एक बार फिर वही हजार चांदी के घंटियों की खनखनाहट ,
' भइया क्या हुआ , क्या देख रहे हो , मैं ही तो हूँ "
उस जादू की जादुई आवाज ने , वो जादू तोडा.
" माँ ने कहा था तुम आओगे ,अरे ताला बाहर से मैंने ही बंद किया है। ये रही ताली। "
चूड़ियों की खनखनाहट के साथ कलाई हिला के उसने चाभी दिखाई.
बुरा हो दीवार का , अमिताभ बच्चन का,।
एकदम फ़िल्मी स्टाइल ,
और लग भी रही थी वो एक फ़िल्मी गाँव की छोरी की तरह ,
लेकिन निगाह उनकी बस वहीँ चिपकी थी जहां चाभी छुपी थी ,
छल छलाते ,छलकते हुए गोरे गोरे दूध से ,
दूध से भरे दोनों थन।
एकदम जोबन से चिपका एकदम पतले कपडे का ब्लाउज , बहुत ही लो कट ,
ब्रा का तो सवाल ही नहीं था ,
अपनी माँ की तरह वो भी नहीं पहनती थी और आँचल कब का सरक कर, ढलक कर ,...
गोल गोल गोलाइयाँ।
"भइया क्या देख रहे हो ,... " शरारत से खिलखिलाते उसने पूछा।
मालुम तो उसे भी था की उनकी निगाहें कहाँ चिपकी है। ,
चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,
माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।
साडी भी खूब नीचे कस के बाँधी ,न सिर्फ गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया खुल के दिख रही थी ,ललचा रही थी , बल्कि भरे भरे कूल्हे की हड्डियां भी जहन पर साडी बस अटकी थी।
और खूब भरे भरे नितम्ब।
पैरों में चांदी की घुँघुरु वाली पायल ,घुंघरू वाले बिछुए , कामदेव की रण दुंदुभि और उन का साथ देती ,
खनखनाती ,चुरमुर चुरमुर करती लाल लाल चूड़ियां ,कलाई में , पूरे हाथ में , कुहनी तक।
गले में एक मंगल सूत्र ,गले से एकदम चिपका और ठुड्डी पर एक बड़ा सा काला तिल ,
एक दम फ़िल्मी गोरियों की तरह , लेकिन मेकअप वाला नहीं एकदम असली।
हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ जाते।
और एक बार फिर हंस के ,खिलखलाते हुए उसने वही सवाल दुहराया , एकदम उनके पास आके , अपने एक हाथ से अपनी लम्बी चोटी लहराते ,उसमें लगा लाल परांदा जब उनके गालों निकल गया तो बस ४४० वोल्ट का करेंट उन्हें मार गया।
" भैया क्या देख रहे हो , बैठो न ,पहली बार तो आये हो। "
और गीता ने उनकी और एक मोढ़ा बढ़ा दिया। और खुद घस्स से पास में ही फर्श पर बैठ गयी।
मोढ़े पर बैठ कर उन्होंने उस जादू बंध से निकलने की कोशिश की , बोलना शुरू किया ,
" असल में मैं आया था ये कहने की ,... लेकिन दरवाजा खुला था इसलिए अंदर आ गया ,... "
लेकिन नए नए आये जोबन के जादू से निकलना आसान है क्या ,और ऊपर से जब वो दूध से छलछला रहा हो ,नयी बियाई का थन वैसे ही खूब गदरा जाता है और गीता के तो पहले से ही गद्दर जोबन ,...
फिर जिस तरह से वो मोढ़े पर बैठे थे और वो नीचे फर्श पर बैठी थी , बिन ढंके ब्लाउज से उसकी गहराई , उभार और कटाव सब एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था।
एक बार फिर आँख और जुबान की जंग में आँखों की जीत हो गयी थी ,उनकी बोलती बंद हो गयी थी।
" हाँ भैया बोल न ,... "
उसने फिर उकसाया।
वह उठ कर जाना चाहते थे लेकिन उनके पैर जमीन से चिपक गए थे। दस दस मन के।
और फिर ताला भी बाहर से बंद था और चाभी गीता की ,
हिम्मत कर के उन्होंने फिर बोलना शुरू किया ,
" असल में ,असल में ,... मैं ये कहने आया था न की तेरी माँ से की,... की ,... कल ,... "
एक बार फिर चांदी के घुंघरुओं ने उनकी आवाज को डुबो दिया।
गीता बड़े जोर से खिलखिलाई।
" अरे भैय्या , वो मैंने माँ को बोल दिया है। यही कहना था की न भौजी कल सबेरे खूब देर में आएँगी , वो और उनकी माँ कही बाहर गयी है ,यही न "
चंपा के फूल झड रहे थे। बेला महक रही थी।
उनकी निगाहें तो बस उसके गोल गोल चन्दा से चेहरे पर , लरजते रसीले होंठों पर चिपकी थी।
" अब तुम कहोगे की मुझे कैसे मालुम हो गया ये सब तो भैया हुआ ये ,की मैं बनिया के यहाँ कुछ सौदा सुलुफ लेने गयी थी , बस निकली तो भौजी दिख गयीं। गाडी चला रही थी.एकदम मस्त लग रही थी गाडी चलाते। बस ,मुझे देख के गाडी रोक लिया। "
गीता दोनों हाथों से स्टियरिंग व्हील घुमाने की एक्टिंग कर रही थी और उनकी निगाह उसकी कोमल कोमल कलाइयों पर ,लम्बी लम्बी उँगलियों से चिपकी हुयी थी।
जब इतना कुछ देखने को हो तो सुनता कौन है। गीता चालू रही
" भौजी बहुत अच्छी है , मुझसे बहुत देर तक बातें की फिर बोली की वो लोग रात भर बाहर रहेंगी ,कल सबेरे भी बहुत देर में आएँगी। घर पे आप अकेले है , इसलिए मैं माँ को बोल दूँ की सबेरे जाने की जरुरत नहीं है बस दुपहरिया को आये। और मैंने माँ को बोल भी दिया। वो भी बाहर गयी है , मुझसे रास्ते में मिली थी , तो बस आप का काम मैंने कर दिया ,ठीक न। "
और एक बार फिर दूध खील बिखेरती हंसी ,उस हंसिनी की।
और अब जब वो तन्वंगी उठी तो बस उसके उभार उनकी देह से रगड़ते , छीलते , ,... ऊपर से कटार मारती काजर से भरी कजरारी निगाहें ,
बरछी की नोक सी ब्लाउज फाड़ते जुबना की नोक।
" भैया कुछ खाओगे ,पियोगे? "
अब वो खड़ी थी तो उनकी निगाह गीता के चिकने चम्पई पेट पर ,गहरी नाभी पर थी।
गीता के सवाल ने उन्हें जैसे जगा दिया और अचानक कही से उनके मन में मंजू बाई की बात कौंध गयी ,
" ,... लेकिन तुझे पहले खाना पीना पडेगा ,गीता का , सब कुछ ,... लेकिन घबड़ाओ मत हम दोनों रहेंगे न ,एकदम हाथ पैर बाँध के , जबरदस्ती ,... "
और वो घबड़ा के बोले ,
" नहीं नहीं कुछ नहीं मैं खा पी के आया हूँ ,बस चलता हूँ। " उन्होंने मोढ़े पर से उठने की कोशिश की।
पर झुक कर गीता ने उनके दोनों कंधे पकड़ के रोक लिया।
पहली बार गीता का स्पर्श उनकी देह से हुआ था ,और वो जैसे झुकी थी , गहरे कटे ब्लाउज से झांकते गीता के कड़े कड़े गोरे गुलाबी उभार उनके कांपते प्यासे होंठों से इंच भर भी दूर नहीं थे।
" वाह वाह ऐसे कैसे जाओगे , मैं जाने थोड़े ही दूंगी। भले आये हो अपनी मर्जी से लेकिन अब जाओगे मेरी मर्जी से , फिर वहां कौन है ,भौजी तो देर सबेरे लौंटेगी न। बैठे रहो चुपचाप ,चलो मैं चाय बनाती हूँ आये हो तो कम से कम मेरे हाथ की चाय तो पी के जाओ न भइया। "
वो बोली और पास ही चूल्हे पर चाय का बर्तन चढ़ा दिया।
चूल्हे की आग की रोशनी में उसका चम्पई रंग ,खुली गोलाइयाँ और दहक़ रही थी।
……चाय बनाते समय भी वो टुकुर टुकुर , अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों से ,उन्हें देख रही थी।
आँचल अभी भी ढलका हुआ था.
" लो भैया चाय " एक कांच की ग्लास में गीता ने चाय ढाल कर उन्हें पकड़ा दिया और दूसरे ग्लास में उड़ेलकर खुद सुड़ुक सुड़ुक पीने लगी।
वास्तव में चाय ने उनकी सारी थकान एक झटके में दूर कर दी। गरम ,कड़क ,... और कुछ और भी था उसमें। या शायद जो उन्होंने बीयर पी थी ,उसका असर रहा होगा।
आँख नचाकर ,शरारत से मुस्कराते हुए गीता ने पूछा ,
" क्यों भैय्या ,चाय मस्त है ना , कड़क। "
और न चाहते हुए भी उनके मुंह से निकल गया ,
" हाँ एकदम तेरी तरह। "
और जिस शोख निगाह से गीता ने मेरी ओर देखा और अदा से बोली ,
" भैया ,आप भी न "
न जाने मुझे क्या हो रहा था , चाय में कुछ था या बीयर का नशा ,
" हे आप नहीं तुम बोलो। " मैं बोल पड़ा।
" धत्त , आप बड़े हो न " खिस्स से हंस पड़ी वो और दूर बादलों में बिजली चमक गयी।
" तो क्या हुआ ,बोल न ,... तुम। " मैंने जिद की।
" ठीक है ,तुम ,...लेकिन तुम को मेरी सारी बातें माननी पड़ेगीं। " उठती हुयी वो बोलीं ,और जब उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया तो पता नहीं जाने अनजाने देर तक उसकी उँगलियाँ ,मेरी उँगलियों से रगडती रहीं।
देह में तो मेरी मस्ती छा रही थी पर सर में कुछ कुछ , अजीब सा ,... "
और मैंने उससे बोल ही दिया ,
" मेरे सर में कुछ दर्द सा ,... "
" अरे अभी ठीक कर देती हूँ ,मैं हूँ न आपकी छोटी बहना। "
और उसने एक कटोरी में तेल लेके आग पे रख दिया गरम होने और मेरे पास आके मुझे भी उठा दिया। मेरे नीचे से मोढा हटा के उसने चटाई बिछा दी।
और फिर एक दम मुझसे सट के ,मेरी छाती पे अपना सीना रगड़ते , उसने बिना कुछ कहे सुने मेरी शर्ट उतार कर वही खूंटी पे टांग दी,
फिर बोली ,
" तुम लेट जाओ ,मैं तेल लगा देती हूँ। "
फिर बोली "नहीं नहीं रुको , आपकी , तेरी पैंट गन्दी हो जाएगी। आप ये मेरी साडी लुंगी बना के पहन लो न। "
और जब तक मैं मना करूँ ,कुछ समझूँ ,सर्र से सरकती हुयी उसकी साडी उसकी देह से अलग हो गयी और बस उसने मेरी कमर के चारो ओर बाँध के मेरी पैंट उतार दी। पेंट भी अब शर्ट के साथ खूंटी पे
और मैं उसकी साडी लुंगी की तरह लपेटे ,
लेकिन मैं उसे पेटीकोट ब्लाउज में देख नहीं पाया ज्यादा ,
उसने मुझे चटाई पर लिटा दिया , पेट के बल ,बोला आँखे बंद क्र लूँ।
लगता है गीता को आने की खबर कर दी थी...भाग १६०
नया घर नयी सुबह
और उनको थोड़ा टाइम लगता पर
मेरी छिनार ननदिया
वो कोमल कुँवारी किशोरी ,....
वो भी मैदान में आ गयी बुर चूसने , नौसिखिये का मज़ा अपना अलग है
(हालांकि गीता ने मुझसे पहले से ही कसम खिलवा रखी थी ,बल्कि तीन तिरबाचा भरवा लिया था की मेरी ननदिया के आते ही वो उसे अपनी छत्र छाया में लेलेगी और उसे ट्रेन करके ,चाहे सीधे से चाहे जबरदस्ती , वो उसे चूसने चाटने में तो अपने से भी बड़ी एक्सपर्ट बना देगी ,बाकी सारी चीजे भी सिखा पढ़ा के पक्का ,... )
जिस तरह से वो मेरी बुर पर अपनी जीभ हिला रही थी ,बुर का छेद जीभ से ढूंढ रही थी ,मजा आ गया मुझे
गरम तो मुझे मेरे सैंया ने कर दिया था ,किनारे तक वो ले भी आये
पर पार मेरी ननदिया ने ही कराया , झड़ी मैं उसी की चाटने से ,
वो भी एक दो बार नहीं ,...जब तक गिनना नहीं भूल गयी
यही तो मैं चाहती थी, ऐसा ही खेल खिलौना, कभी ये बाहर चले जाएँ या मीटिंग विटिंग में फंसे रहे तो कोई हो ऐसी जो चूत रानी की सेवा अपनी जीभ से होंठों से, बेचारी गुलाबो का तो वैसे ही हर महीने पांच दिन का उपवास,... तो उससे ज्यादा उपवास हो ये मैं नहीं चाहती थी,... तो साजन नहीं तो साजन की छुटकी बहिनिया, जिस तरह से वो चाट रही थी मेरी चूत,...
एकदम भुक्खड़, नदीदी, चूत की चाशनी की प्यासी,....
एक बार वो झाड़ती ,दूसरी बार उसके भैय्या
मैं लथरपथर , वैसे ही सो गयी
एक ओर मेरी ननद , मेरे सैंया की रखैल और दूसरे ओर मेरे सैंया।
उनका खूंटा सोते में भी खड़ा था ,
गुड्डी और वो दोनों मेरी ओर करवट कर के सोये थे ,मेरे एक जोबन पर गुड्डी का हाथ था और दूसरे पर उसका ,जिसका रोज रहता था।
और गुड्डी का दूसरा हाथ अपने भइया के मोटे खूंटे को पकडे ,
साढ़े चार बज गया था ,
और बस थोड़ी देर बाद ही ,बाहर मुर्गे ने बांग दी और साथ ही घंटी बजी।
मुझे घड़ी देखने की जरूरत नहीं थी। पौने छः बजे ठीक गीता आती थी ,मंजू बाई कहीं बाहर गयी थी उसे कल सुबह लौटना था।
"हे गीता आयी होगी ,ज़रा जा के खोल दे न ,.. और थोड़ी उसकी हेल्प करा देना , ... मैं उठूंगी तो तेरे भैय्या उठ जाएंगे। वो कल रात और परसों रात के जगे ,...और आज आफिस भी जाना है नौ साढ़े नौ बजे ,... प्लीज मेरी अच्छी ननद रानी। "
गुड्डी आँखे बंद किये उठ गयी और बस अपनी देह पर अपने भइया की लांग शर्ट टांग ली।
जब वो निकल रही थी तो मैंने एक फरमाइश और लगा दी
हाँ ,साढ़े आठ ,...बल्कि पौने नौ बजे बेड टी ,.. है ना ,गीता समझा देगी तुझे क्या करना है कैसे ,और नाश्ते की तैयारी भी कर लेना। मैं उठ के तेरे साथ बनवा दूंगी। "
तब तक घण्टी दुबारा बजी और गुड्डी कमरे से बाहर।
एक बात समझ नहीं आई ...गीता
गुड्डी ने दरवाज़ा खोला , और गीता ने उसे गपुच लिया।
सीधे अपनी बाहों में ,और जोबन के ऊपर जोबन , दोनों किशोरियां ,...
और गीता ने गुड्डी के साथ अपना रिश्ता मिलते ही तय कर लिया ,
अपने भारी भारी दूध भरे जोबन से गुड्डी के कच्चे टिकोरों को रगड़ते ,पहले तो कचकचा के गुड्डी के होंठों को चूमा , हलके से काटा और खिलखिलाते हुए पूछ लिया ,
" का हो भौजी ,चोदोवउली की ना , फटल ,... "
गुड्डी ने भी खिलखिलाते हुए पहले चुम्मी का जवाब चुम्मी से दिया और हंस के छेड़ते हुए मुंह बना के जवाब दिया ,
" उन्ह ना ना , " फिर उसने भी गीता को गलबाहीं में भरा और बोली
" मेरी ननदो से बचे तब न ,... "
और ननद भाभी का रिश्ता बन गया दोनों में , गुड्डी भौजी और गीता उसकी ननद।
गीता आलमोस्ट गुड्डी की समौरिया ही तो थी , मुश्किल से गुड्डी से एक डेढ़ साल बड़ी होगी। हाँ साल भर पहले उसकी शादी हो गयी थी , और गाभिन कब हुयी थी ये तो पता नहीं लेकिन शादी के ठीक आठ महीने बाद केहाँ केहाँ ,
अँजोरिया सी बिटिया और गीता के थन में छलछलाता दूध , उसकी माँ मंजू बाई से गीता की सास की कुछ कहा सुनी हुयी तो चार पांच महीने के लिए गीता अपनी माँ के पास आ गयी बच्चे को सास के पास छोड़कर।
(गीता से मिलवाया तो था आप लोगों से भाग ४४ पेज ४८ पर, और याद दिलाने के लिए इस पन्ने पर एक पोस्ट भी जस की तस छाप दी थी , लिंक भी )
रूप उसका ,
चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,
माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।
गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया
और खूब भरे भरे नितम्ब।
सबसे ज्यादा वो मेरे पीछे पड़ी थी , गुड्डी को लिवा आने के लिए अपने साथ ,
इनको तो उसने पहले दिन से ही भइया बना लिया था और मेरी सारी ननदों की तरह भाईचोद तो वो थी ही। तो पहले दिन ही ,
और मुझसे ज्यादा इनके पीछे पड़ी थी गुड्डी को लिवा आने के लिए ,
सिर्फ लिवा आने के लिए ही नहीं , गुड्डी को गाभिन भी करने के लिए और ,उसके हिसाब से पहलौठी के दूध का मजा चखने के लिए भी
( अभी तो वही पहलौठी का दूध अपने भैया और मेरे सैंया को भरपूर चुसुक चुसुक पिलाती थी )
( और साथ में अपने मुंह बोले भैया और मेरे सैंया के मोटे खूंटे पर पहलौठी के दूध से मालिश भी, मंजू ने इनको बताया था, और इनकी सास ने सर हिला हिला के हामी भी भरी थी कि, पहलौठी का दूध, सांडे के तेल से १२ गुना ज्यादा असर करता है, मोटा भी करता है लोहे के खम्भे ऐसा टनाटन भी, ... रोज बिना नागा गीता इनके खूंटे पे, पहले तो अपनी चूँचियों के बीच रगड़ रगड़ के,...
थोड़ी देर में ही इनका फनफना जाता था, ... फिर अपने हाथ से अपनी चूँची से दूध निकाल के लंड पे जबरदस्त मालिश, हाँ जबतक वो चूँची चोदन करती या इनके लंड पे दूध की मालिश, इन्हे एक से एक गाली अपनी माँ बहन को देना पड़ता,... और असर तो मैं देख ही रही थी, कड़ा भी, झट से खड़ा भी और मैदान तो खैर पहले भी भी ये नहीं जल्दी छोड़ते थे पर अब तो बीस पच्चीस मिनट नार्मल था )
मुझसे तो उसने खुल के बोला था , बस आप उसको ले आइये , फिर मेरे ऊपर छोड़ दीजिये देखिये कैसे उसको नम्बरी छिनार बनाती हूँ ,
मैं उसे चिढ़ाते उसका गाल पिंच कर बोलती , एकदम अपनी तरह।
" ना ना ,मुझसे भी चार हाथ आगे जायेगी , बस एक बार मेरे हाथ में आ तो जाय वो सोन चिरैया , बहुत तड़पाया है स्साली ने मेरे भैय्या को। आने दीजिये एक बार ,.. खुद ही अपने हाथ से लंड पकड़ के वो छिनार अपनी चूत में घोंटेंगी। "
वो जवाब देती।
मुझे बस यही डर लगता था पता नहीं गुड्डी गीता के साथ कैसे रिएक्ट करेगी , किस तरह बिहैव करेगी ?
पर पहली मुलाकात में ही गीता ने न सिर्फ गुड्डी को शीशे में उतार लिया ,अपना ननद भाभी का रिश्ता बना लिया और दोस्ती भी कर ली ,पक्की वाली।
और गीता गुड्डी का आलमोस्ट हाथ पकड़ कर खींचते ,किचेन में ले गयी।
किचेन तो गुड्डी ने कल रात ही देख लिया था , मेरी प्लानिंग भी यही थी की घर के काम काज धीरे धीरे उसी के हवाले ,...सिर्फ चुदवाने और चुसवाने थोड़ी लायी थी उसे ,
उसे पक्की रखैल बनाना था और घर का सारा काम काज, बर्तन, किचेन, झाड़ू पोंछा,... जो अपने घर में उसने कभी न किया हो, वो सब और ये भी सिखाने की जिम्मेदारी गीता ने अपने सर पे ले रखी थी
ओहो... तो बिन ब्याहे गुड्डी ... भौजाई के रोल में आ गई...और किचेन में
किचेन तो गुड्डी ने कल रात ही देख लिया था , मेरी प्लानिंग भी यही थी की घर के काम काज धीरे धीरे उसी के हवाले ,...
और किचेन में घुसते ही पीछे से कस के गीता ने ऐसे चुटकी काटी , की गुड्डी की टाँगे अपने आप फ़ैल गयीं।
बस गीता ने अबकी खुल के गुड्डी की जाँघों के बीच में हाथ डाल के उसकी सोनचिरैया पर हाथ डाल के दबोच लिया , और लगी मसलने।
वैसे भी गुड्डी ने अपने भैय्या की लांग शर्ट के अलावा अंदर कुछ भी नहीं पहिना था।
और गीता ने जब अपनी गदोरी के बीच में दबा के उस नयी चिरैया की बिलिया को मसलना मीजना शुरू कर दिया , बस थोड़ी देर में ही वो गीली हो गयी। गीता की ऊँगली गुड्डी की दरार में रगड़ रही थी , और उस एलवल वाली की जाँघे अपने आप फैलने लगी ,
" का हो भौजी, बोला चोदलें कल रात हमार भइया न ,कचकचाई के , ... "
गीता का अंगूठा अब गुड्डी की क्लिट पर था , हलके हलके सहलाते ,..
गीता की उंगलियां तो चार बच्चो को उगलने वाली भोंसड़ी को पानी पिला देती थीं ,ये तो नयी नयी बछेड़ी थी।
गुड्डी जोर जोर से सिसक रही थी ,चूतड़ मटका रही थी , पर उसके मुंह से सच निकला
"नहीं ,नाहीईईई , कुछ नहीं हुआ ,... "
और साथ ही गीता ने अपनी ऊँगली जो उस कच्ची कली की कोरी प्रेमगली में घुसाने की कोशिश की तो , ... समझ गयी ,
इस चिड़िया ने चारा अभी तक नहीं घोंटा है।
पूरी ताकत के बाद भी एक पोर भी ऊँगली नहीं घुसी ,
गीता समझ गयी न सिर्फ ये छोरी अब तक चुदी नहीं है बल्कि उसकी चूत बहुत ही कसी है , जबरदस्त खून खच्चर होगा।
दरार में ऊँगली रगड़ती गीता बोली ,
" कउनो बात नहीं भौजी , अरे अपनी एह ननदिया क बात माना , बस आज रात भरतपुर लुट जाई , पक्का , सबेरे ई ननदिया आय के उठाएगी , इहाँ रबड़ी मलाई भरी रहेगी। "
रगड़ाई से गुड्डी झड़ने के करीब आ गयी थी और जान बूझ के गीता रुक गयी।
और गुड्डी के मीठे मीठे गाल पे चुम्मा लेती बोली ,
" बस ई ननदिया क बात माना ,आज से रोज बिना नागा ,मोट मोट पिचकारी, लेकिन चलो कुछ काम निपटाए दें , भौजी ज़रा हाथ बटा दो तो जल्दी हो जायेगी।"
और धुलने वाले बरतन गुड्डी को पकड़ा दिया , वैसे भी ज्यादा काम नहीं था ,खाली कल रात के ही बर्तन थे।और जैसे ही गुड्डी ने कटोरी मांजना शुरू किया , गीता ने छेड़ा
" अरे भौजी जस हमार भइया तोहार कटोरी मांजते हैं वैसे मांजा न ,दो ऊँगली अंदर , बाकी बाहर , तनी जोर लगाय के , अरे हाँ ऐसे "
और गुड्डी ने कस कस के ,
लेकिन गीता तो एकदम पक्की ननद बनी , गुड्डी के गालों को जोर से पिंच करती बोली ,
" अरे भौजी मस्त है ,... कब से ऊँगली करना शुरू किया था ,झांट आने के पहले से की झांट आते ही ,.. एकदम हमार भौजी मायके की बांकी छिनार लाग रही हैं हाँ ऐसे ही रगड़ो ,.. अरे ससुराल में आयी हो दिन रात मेहनत करना होगा ,.. "
गुड्डी कौन सीधी थी , एकदम भौजाई के रोल में ,.. झट से आँख नचा के बोली ,
" अरे वाह , हम काहें मेहनत करेंगे , करें तोहार भइया ,.. "
" अरे रात भर टंगिया उठाये रहोगी मेहनत ना पड़ी का। फिर जब तक धक्का दुनो ओर से न लगे तबतक का मजा , कल सबरे भिन्सारे आके पूछूँगी भाभी ,मेहनत पड़ी की ना , रात में सैंया और दिन में ,.. हम हैं न तोहार ननद मेहनत करवावे के लिए ,.. "
दोनों एकदम मिलकर काम कर रहीं थी ,और ननद भौजाई की तरह खुल के मजाक , छेड़छाड़ भी।
पर गीता भी ,.. थोड़ी ही देर में उसने सारा काम गुड्डी को पकड़ा दिया और खुद किचेन के सिंक के बगल में धप्प से बैठ गयी।
" अरे आज रात में तो भैय्या तुमको बख्श दिए तो ,जरा सा बरतन है , ... जल्दी जल्दी निपटा दो , ... फिर आगे का काम भी तो पड़ा है। "
अब बजाय काम करने के वो गुड्डी से काम करवा रही थी।
और गुड्डी भी चुपचाप उसकी बात मान कर बरतन साफ़ करने में लगी थी ,
मांजने के बाद धुलवाया भी गीता ने गुड्डी से ही , और अब तक गीता की साडी सरक कर गीता की जाँघों के ऊपर पहुंच चुकी थी।
" एही लिए हम भइया से कह रहे थे, तुमको जरूर ले आवें जल्द, ओनहु के आराम ,हम सब को आराम, भौजी बस दो तीन दिन में कुल काम धाम,.. सिखा दूंगी मैं.”
गीता की आँखों में चमक और मुस्कान साफ़ साफ़ दिख रही थी, पहले दिन ही वो गुड्डी को,... जैसा चाहती थी एकदम उसी ओर,....
"चलो तुमने इतना बढ़िया बर्तन साफ़ किया , थोड़ा इनाम तो बनता ही है न , ज़रा मिठाई खिला दूँ अपनी नयकी भौजी को."
![]()
जबरदस्त सिखा-पढ़ा रही है गीता गुड्डी को...पक्की ननद भौजाई
"चलो तुमने इतना बढ़िया बर्तन साफ़ किया , थोड़ा इनाम तो बनता ही है न , ज़रा मिठाई खिला दूँ अपनी नयकी भौजी को."
गीता बोली और और खींच कर गुड्डी को अपनी जाँघों के बीच में ,गीता की साडी सरक कर कमर से लिपट गयी थी ,एक छल्ले की तरह। गीता के निचले होंठों से गुड्डी के रसीले कुंवारे किशोर होंठ चिपक गए ,
,और गीता ने कस कस के अपनी मांसल जांघों की सँडसी में गुड्डी के सर को दबोच लिया।
बिचारी , किशोरी के बस में क्या था ,
गीता की तगड़ी मांसल जाँघों के आगे , उसके भैय्या भी सरेंडर कर देते थे , तो इस नयी बछेड़ी को तो ,..
और पहली बार बिल तो गुड्डी ने चूसी नहीं थी ,अपनी सहेलियों के साथ , दिया ने तो उसे सब खेल सिखा दिए थे और बाकी जब वो मेरे नीचे आयी तो
एक कुँवारी नौसिखिया टीनेजर का मजा ही कुछ और है , गीता कुछ देर में ही सिसकियाँ लेने लगी
गीता ऊपर किचेन में सिंक के बगल में बैठी ,जाँघे फैलाकर और गुड्डी नीचे बैठी , उसका सर गीता की जाँघों में फंसा दबा,
और कुछ ही देर में धक्के पर धक्का,क्या कोई मरद चोदेगा जिस तरह से गीता अपनी नयकी भौजी का मुंह अपनी बुर से चोद रही थी. और ननद भौजाई की ये टक्कर ,
गुड्डी भी कुछ देर में मजे ले ले कर चूसने लगी , अपनी जीभ से अपने होंठ से ,... गुड्डी की जीभ गीता की बुर के नीचे ऊपर तो कभी अंदर बाहर ,
कुछ ही देर में चाशनी बहने लगी और गुड्डी मजे ले ले कर , ....
ननद भाभी का रिश्ता पहली मुलाकात में ही पक्का हो गया।
और गीता धक्के दे दे कर ,.. जितना उसने सोचा था उससे भी रसीली ये निकली , और एक बार उसके हाथ में अब पड़ गयी तो बस अब उसकी जिम्मेदारी , कुछ पता के कुछ जोर ज़बरदस्ती ,..जल्द ही ,..
मजा दोनों को आ रहा था।
गीता कुछ देर में ही झड़ने लगी लेकिन न वो रुकी न गुड्डी
एक एक बूँद रस की गुड्डी ने चाट लिया।
धीरे से गीता उठी और गुड्डी के मुंह में लगा सब बुर रस चाट लिया।
और कस के उसे गले लगाती बोली , पक्की भौजाई हो हमार। चलो अब बाकी काम निपटा देते हैं।
सबसे पहले कुछ देर तो गीता ने झुक के झाड़ू लगाया फिर गुड्डी के हाथ में झाड़ू पकड़ा दिया ,
" चल झाड़ू ज़रा ,तनी देखी मायके में कुछ सीखा है झाड़ना ,झड़वाना ,.. अंदर घुस के रगड़ रगड़ के झाड़ तब तक मैं डस्टिंग कर लेती हूँ। "
गुड्डी झाड़ू लगा रही थी की गीता ने उसकी लांग शार्ट और ऊपर कर दिया , कमर से भी ऊपर ,.. और चिढ़ाते बोली
" राजा तनी चूतड़ और ऊपर करो , "
और जैसे ही गुड्डी ने अपने किशोर नितम्बो की उठाया ,
चटाक , एक हाथ हलके से गीता लगाती बोली ,
" अरे नयकी भौजी , चूतड़ तो तोहार बहुत मस्त है , चिक्कन नमकीन लौंडन मात हैं तोहरे चिक्क्न चूतड़ के आगे जैसे तोहरे मायके वाले लौंडे, भाई कुल चूतड़ उठा उठा के गाँड़ मरवाते हैं, वैसे चूतड़ उठा के,... हाँ ,... हां थोड़ा और सीख लो,... ऐसे झाड़ू बढ़िया लगेगा, दो चार दिन में कुल काम सिखाय दूंगी। ""
गीता ने काम ख़तम कर दिया ,
निहुरे निहुरे गुड्डी की कमर झुकी झुकी ,लेकिन उसने भी झाड़ू ख़तम कर दिया पर उसके उठने के पहले ही गीता ने फिर प्यार से एक हाथ कस के जड़ा और चिढ़ाया
" अरे भौजी ससुरार में हो , अब निहुरने की प्रैक्टिस कर लो ,रात भर सैंया निहुरा के चांपेंगे , ...और दिन में देवर , ननदोई ,.. "
गुड्डी भी अब एकदम गीता के रंग में रंगती जा रही थी। पक्की भौजाई की तरह उसने गीता के गाल पे जोर से पिंच किया बोली ,
" अरे ननद तो एक है ,... और ननदोई ,.. " फिर गुड्डी खुद ही गुनगुना के जवाब देने लगी ,
" मेरे तो एक पिया है, ननदी के दस दस ,... क्यों ननद रानी है न "
गीता ने बहुत बुरा सा मुंह बनाया ,बोली ,
"अरे भौजी ,दस से का होगा तोहरी ननद का , पन्दरह बीस से कम नहीं "
" अरे मायके में हो सब बचपन के यार होंगे इंहा कौन कमी हमारी ननद को यारों की। "
मेरे साथ साथ गुड्डी भी अब जवाब देने में तेज हो गयी थी ,उसने भी गीता को चिढ़ाया।
" और का भौजी , ...कुछ दिन अपने सैंया के साथ मौज उड़ा लो फिर हमारे सैंया का भी मजा ले लेना , सब तोहार ननदोई लगेंगे और नन्दोई का तो सलहज पर हक होता है। "
इतनी ही देर में गीता गुड्डी पक्की ननद भौजाई हो गयी थीं।
ये यात्रा तो अब कारवां बन गया है...Bhut shandaar tarike se leke chal rahe ho aap hame Iss Pyaar bhari yatra par....
रंगीली गीता... गुड्डी को और रस लेने को तैयार कर रही है....Bhut shandaar update.... geeta apne rang me rang rahi h guddi ko....
बहन बहन के रिश्ते में गीता रगड़ाई कैसे कर पाती गुड्डी रानी की, फिर रिश्ते तो मन के और तन के होते हैं,...एक बात समझ नहीं आई ...
गीता गुड्डी के भैया को तो भैया कहती है तो उस हिसाब से इन दोनों का बहन का रिश्ता हुआ...
फिर ननद-भौजाई कैसे...
Lajawab updateभाग १६०
नया घर नयी सुबह
और उनको थोड़ा टाइम लगता पर
मेरी छिनार ननदिया
वो कोमल कुँवारी किशोरी ,....
वो भी मैदान में आ गयी बुर चूसने , नौसिखिये का मज़ा अपना अलग है
(हालांकि गीता ने मुझसे पहले से ही कसम खिलवा रखी थी ,बल्कि तीन तिरबाचा भरवा लिया था की मेरी ननदिया के आते ही वो उसे अपनी छत्र छाया में लेलेगी और उसे ट्रेन करके ,चाहे सीधे से चाहे जबरदस्ती , वो उसे चूसने चाटने में तो अपने से भी बड़ी एक्सपर्ट बना देगी ,बाकी सारी चीजे भी सिखा पढ़ा के पक्का ,... )
जिस तरह से वो मेरी बुर पर अपनी जीभ हिला रही थी ,बुर का छेद जीभ से ढूंढ रही थी ,मजा आ गया मुझे
गरम तो मुझे मेरे सैंया ने कर दिया था ,किनारे तक वो ले भी आये
पर पार मेरी ननदिया ने ही कराया , झड़ी मैं उसी की चाटने से ,
वो भी एक दो बार नहीं ,...जब तक गिनना नहीं भूल गयी
यही तो मैं चाहती थी, ऐसा ही खेल खिलौना, कभी ये बाहर चले जाएँ या मीटिंग विटिंग में फंसे रहे तो कोई हो ऐसी जो चूत रानी की सेवा अपनी जीभ से होंठों से, बेचारी गुलाबो का तो वैसे ही हर महीने पांच दिन का उपवास,... तो उससे ज्यादा उपवास हो ये मैं नहीं चाहती थी,... तो साजन नहीं तो साजन की छुटकी बहिनिया, जिस तरह से वो चाट रही थी मेरी चूत,...
एकदम भुक्खड़, नदीदी, चूत की चाशनी की प्यासी,....
एक बार वो झाड़ती ,दूसरी बार उसके भैय्या
मैं लथरपथर , वैसे ही सो गयी
एक ओर मेरी ननद , मेरे सैंया की रखैल और दूसरे ओर मेरे सैंया।
उनका खूंटा सोते में भी खड़ा था ,
गुड्डी और वो दोनों मेरी ओर करवट कर के सोये थे ,मेरे एक जोबन पर गुड्डी का हाथ था और दूसरे पर उसका ,जिसका रोज रहता था।
और गुड्डी का दूसरा हाथ अपने भइया के मोटे खूंटे को पकडे ,
साढ़े चार बज गया था ,
और बस थोड़ी देर बाद ही ,बाहर मुर्गे ने बांग दी और साथ ही घंटी बजी।
मुझे घड़ी देखने की जरूरत नहीं थी। पौने छः बजे ठीक गीता आती थी ,मंजू बाई कहीं बाहर गयी थी उसे कल सुबह लौटना था।
"हे गीता आयी होगी ,ज़रा जा के खोल दे न ,.. और थोड़ी उसकी हेल्प करा देना , ... मैं उठूंगी तो तेरे भैय्या उठ जाएंगे। वो कल रात और परसों रात के जगे ,...और आज आफिस भी जाना है नौ साढ़े नौ बजे ,... प्लीज मेरी अच्छी ननद रानी। "
गुड्डी आँखे बंद किये उठ गयी और बस अपनी देह पर अपने भइया की लांग शर्ट टांग ली।
जब वो निकल रही थी तो मैंने एक फरमाइश और लगा दी
हाँ ,साढ़े आठ ,...बल्कि पौने नौ बजे बेड टी ,.. है ना ,गीता समझा देगी तुझे क्या करना है कैसे ,और नाश्ते की तैयारी भी कर लेना। मैं उठ के तेरे साथ बनवा दूंगी। "
तब तक घण्टी दुबारा बजी और गुड्डी कमरे से बाहर।