एकदम, गीता और मंजू दोनों की ही इच्छा थी की ये गुड्डी को ले आएं , दोनों ने उनके साथ उनकी बहन और माँ का रोल प्ले भी इसी लिए एकदम खुल के किया की इनकी मन की माँ -बहन के प्रति दबी इच्छा खुल के सामने आ जाए
और पृष्ठ ४६ भाग ४२ में जहाँ मंजू बाई पहली बार इस कहानी में पहली बार आती हैं वो रिश्ता वहीँ से सेट हो जाता है
"लेकिन मम्मी की निगाह से इनकी चोरी कैसे बचती , उन्होंने मंजू बाई से इनकी ओर इशारा कर के पूछ लिया ,
" सुन तू मेरी बेटी को बहू कहती है तो फिर ,... तेरी बेटी इसकी क्या लगेगी। "
मंजू बाई इशारा समझ गयी थी , मुस्करा के इनकी ओर देख के बोली ,
" बहन लगेगी ,और क्या। "
और फिर अपने बड़े बड़े उभार छलकाते हुए पल्लू खोंस लिया।
( गीता ,मंजू बाई की बेटी ,देह तो मंजू बाई ऐसे थी खूब भरी भरी थी ,गदरायी लेकिन रंग एकदम गोरा चम्पई था ,जैसे कोई दूध में केसर डाल दे।)
फिर मंजू बाई जब पहली बार गुड्डी की पिक्चर घर में देखती है तो फिर से,...
" डस्टिंग करते करते उनकी निगाह पिक्चर फ्रेम पे पड़ी जिसमें गुड्डी की तस्वीर लगी थी।
वो उसे झाड़ रहे थे की पीछे से काम ख़तम कर के मंजू बाई भी आगयी।
" बड़ा पटाखा माल है ,कौन है ये। "
" मेरी बहन है ,छोटी। गुड्डी। "
उन्होंने बोल दिया।
" कबूतर तो बड़े मस्त हैं इसके , खूब दबाये होंगे तूने। "
और पेज ४९ पर जब गीता और इनका प्रसंग परवान चढ़ता है, तो उस समय फिर गीता को को देख के इन्हे अपनी ममेरी बहन याद आती है,...
" सच में भैया बहुत नाइंसाफी है मैंने तो तेरा सब कुछ देख लिया ,छू लिया ,इतना मस्त मोटा और अपना , खजाना छुपा के बैठी हूँ। "
कुछ देर तक तो वो उनका चेहरा देखती रही फिर उकसाया
" अरे भैया देख क्या रहे हो खोल दो न अपने हाथ से बहन के पेटीकोट का नाड़ा "
उनके आँखों के सामने एक बार फिर गुड्डी का चेहरा घूम गया।
गुड्डी का नाड़ा
वो भी तो उन्हें ऐसे भैया बोलती थी ,ऐसे ही खूब प्यार से ,..
और आज कल तो वो कुरता शलवार ही पहनती है ,
शलवार का नाडा।
" शरमाते काहें हो ,भइय्या तुम सच में बहुत बुद्धू हो ,प्यारे वाले बुद्धू , अरे हर बहन यही चाहती है , इससे अच्छी बात क्या हो सकती है बहन के लिए की उसका भाई नाडा खोले , ,... खोलो न। "
और गीता ने खुद उसका हाथ पकड़ के अपने नाड़े पर रख दिया।
बस अपने आप उनके हाथ नाडा खोलने लगे , सरसरा के पेटीकोट नीचे ,
लेकिन मन उनका कहीं और , उस दिन जब वो मौका चूक गए थे।
शादी में ,
गुड्डी ने पहले उनसे केयरफ्री लाने को बोला था और जैसे ही वो निकले ,
ढेर सारी स्माइली के साथ गुड्डी का मेसेज आया
,"आल लाइन क्लीयर ,अब नहीं चहिये। आंटी जी चली गयीं। टाटा बाई बाई। मेरी छुट्टी खत्म "
और साथ में हग की साइन भी।
और गीता ने वादा किया था की बस गुड्डी को किसी तरह पटा के लाने की देर है, ... बस एक बार घर की चौखट डांक गयी तो अगली सुबह से उसकी जिम्मेदारी होगी, उसे गीता से भी चार हाथ आगे बढ़ाने की,... तो बस उसी पृष्ठ भूमि में ये प्रसंग है,
और इस कहानी के किंक से जुड़े जो प्रसंग है वो भी मंजू और गीता वाले प्रसंग में ही इसलिए न मैंने सिर्फ लिंक दिया बल्कि गीता वाले हिस्से की पहली पोस्ट जस की तस छाप दी ,
आप के कमेंट्स के लिए कोई भी आभार कम हैं , कहानी का कोई भी प्रसंग, संवाद बचता नहीं और मैं मानती हूँ , की पत्रिका में छपी कहानी या किताब की कहानी और फोरम में यही फरक है,
यहाँ कहानी सुनाने वाला और सुनने वाला दोनों के बीच संवाद भी होता रहता है और कहानी के प्रसंगों को विस्तारित करके चर्चा भी,
एक बार फिर धन्यवाद