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अपडेट पोस्टेड - एक मेगा अपडेट, जोरू का गुलाम - भाग २३९ -बंबई -बुधवार - वॉर -२ पृष्ठ १४५६
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Kya masti kar rahi hai nanad bhabhi se, adbhut.घर बाहर
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गीता हंस के बोली,
" अरे नयकी भौजी तोहार लजाल शरमायल क दिन गयल ,चला अरे कोई देखेगा तो तोहार देवर ननदोई ही लगेगा। और ई जुबना छुपाने के लिए थोड़े,... दिखाने ललचाने के लिए ही है। ज्यादा नहीं बस पीछे होते के ठीक बाहर ही है ,.. "
कुछ मना के कुछ जबरदस्ती गुड्डी बस उसी लांग शर्ट में ,... घर के बाहर पिछवाड़े ,
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वैसे भी वहां खुला नहीं था , एक किचेन गार्डेन था , फेंसिंग थी और उसपर हेज , उसी के ठीक बाहर सोसायटी का गार्बेज बिन , एक छोटा सा विकेट गेट था।
गुड्डी उसी गेट पर खड़ी रही और गीता गार्बेज बैग फेंक कर आ गयी।
लेकिन गीता और बिना शरारत के छोड़ दे ,
वहीँ फेन्स के किनारे अंदर की ओर उसने गुड्डी को खींच के और खुद उकडू मुकड़ू घुटने मोड़ के,साड़ी जाँघों से ऊपर
और गुड्डी को भी उसी तरह ,
"अरे बैठ न ,आ रही न तुझको भी न ,... यहां कौन देखने वाला है , हमको तो बड़ी मूतवास लग रही है जोर से ,... " गीता ने गुड्डी को भी जबरन बैठा दिया।
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"इहाँ खुल्ले में ,... ?" गुड्डी अचरज में पूछ रही थी।
लेकिन गीता और बिना शरारत के छोड़ दे ,
और गुड्डी को भी उसी तरह ,
" अरे खुले में करने करवाने का मजा ही और है , अरे ससुराल में कौन लाज ,... बैठा करा , हमको तो बहुत जोर से आ रही है "
आ तो गुड्डी को भी रही थी , रात में आधी बोतल से ज्यादा व्हिस्की गटक गयी थी और सुबह से भी उसको टाइम नहीं मिला था , फिर भइया भाभी के कमरे का तो बाथरूम उसने देखा था ,दूसरा कमरा शायद लॉक था ,..वो दोनों लोग सो रहे थे, उन्हें वो जगाना नहीं चाहती थी बहुत जोर से आ रही थी और बड़ी देर से, किचेन में जब वो झाड़ू लगा रही थी, किसी तरह जांघ को दबाये, भींचे, कुछ समझ में नहीं आ रहा था किससे पूछे,... अब बस लग रहा था हो जाएगी,... और अब गीता उसके बगल में बैठी, सामने थोड़ी झाडी तो थी ही,...
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पर लाज शर्म , वो अभी भी रोके भींचे बैठी और गीता बगल में तेज धार के के साथ,... और गीता ने बैठे बैठे गुड्डी के पी होल पे छेड़ दिया ,ऊँगली से जोर जोर से रगड़ रगड़ के सुरसुरी कर
गुड्डी की भी अपने आप ,...पहले तो बूँद बूँद फिर इतनी देर का प्रेशर,... गुड्डी ने आँखे बंद कर ली थीं की जैसे वो नहीं देखेगी तो कोई नहीं देखेगा
और फिर ननद भौजाई दोनों साथ साथ ,..निहुरे बैठ के खुले में सुबह सबेरे
गीता बस यही सोच रही थी ,.. अगर उसे मना न किया गया होता की अभी दो चार दिन जब तक यह चिड़िया अच्छी तरह ,... और सही बात है अभी कहीं बिचक गयी तो ,.. वरना जब एह चिरई से बुर चुसवा रही थी तो उसी समय घल घल घल ,सुनहला शरबत ,... पीयेगी तो ये है ही ,बस दो चार दिन की बात है , ... यही हाते में ,..
फिर उसकी माई भी बोल गयी थी ,..
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मुझे आने देना ,... अकेले अकेले मत कुल मजा लेना , मिल के पिलायेंगे नयकी चिरैया को ,.. हाथ गोड़ छान के ,.. अरे जबरदस्ती का मजै कुछ और है ,....
ननद कौन जो बदमाशी न करे, वो भी भौजाई का ससुराल में पहला दिन हो तो और,...
गीता ने मारे शरारत के गुड्डी को पीछे से पकड़ के थोड़ा सा घुमा दिया, बस अब सामने की झाडी की ओट हट गयी ,... और सामने सीधे कालोनी की सड़क दस हाथ पे दो स्कूल जाने वाले लड़के,... रुक गए,... गुड्डी की तो आँखे बंद थी पर चिकोटी काट के गीता ने आँखे खुलवा दी,
" अरे सामने देखा, ससुरारी में कैसे सरमाना कुल लौंडे देवर नन्दोई तो लगीहें,... खोला आँख "
और गुड्डी ने आँख खोली तो झाडी की ओट नहीं थी और थोड़ी ही देर पे दो लड़के टुकुर टुकुर,... शरम से लाल, लेकिन बीच में कैसे फिर गीता की सँड़सी ऐसी पकड़,...
गुड्डी किसी तरह ख़तम कर के,
तब तक गीता उसे चिढ़ाते भागी, लेकिन घर के अंदर नहीं होते के दूसरे कोने में , और गुड्डी ने दौड़ा के उसे पकड़ लिया गीता ने उसे अँकवार में भर लिया प्यार दुलार से और और गुड्डी की आँखों में आँख मिला के देखा ,
लजाते शरमाते गुड्डी की दिया ऐसे बड़ी बड़ी आँखे झुक गयी ,
गुड्डी की ठुड्डी पकड़ के उठा के ,वहीं खुले में , गीता ने उसे कचकचा के चूम लिया ,
"अरे काहें लजात हउ , रात भर सैंया के साथ टंगिया उठा के,... गपागप घोंटबू , चूतड़ उठा उठा के मजा लेबू , कल भिनसारे आइके तोहरी बिलिया में गचाक से उँगरी डार के देखूंगी , ... रबड़ी मलाई छल छल छलकती रहेगी। "
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और गुड्डी की गीली भीगी सहेली को अपनी गदोरी से गीता ने रगड़ दिया और एक बार फिर कचकचा के चूम लिया।
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और गुड्डी की भीगी गीली बिल से गीले अपने हाथ को गुड्डी के होंठों पे रगड़ दिया, मन में सोचते आज अपना स्वाद चख, जल्द ही मेरा और सब का चखोगी रोज बिना नागा,...
Gazab samvad,nanad bhabhi ke beech.बेड टी
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मेरी आँख खुल गयी थी पर ये कुनमुना रहे थे , सोये भी तो हम लोग साढ़े चार बजे के बाद ही थे। और उसके पहले वाली रात को इन्होने अपनी संस्कारी भौजाई की कुटाई की थी , रात भर ,अगवाड़े पिछवाड़े सब। और आज रात इनकी बहन का नंबर था। और कुछ दिन बाद मेरी सास का
मुझे इनके खूंटे पर सच में बहुत प्यार आ रहा था , मैंने उनकी ओर मुड़ कर उन्हें बाहों में भर लिया और खूंटे को मुट्ठी में ,
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एकदम टनटनाया ,तैयार सुबह सुबह,....
दबाते मुस्कराते मैंने चिढ़ाया
" क्यों बहिनिया की याद आ रही है क्या , अब तो ग्रीन सिंग्नल मिल गया है ,फटेगी स्साली की आज रात। लेकिन अभी तो आफिस जाना होगा न मुन्ने को ,.. "
उन्होंने पटर पटर आँखे खोल दी और मुस्कराने लगे ,
और उसी समय वो किशोरी सुबह की धूप की तरह मुस्कराती हुयी चहकती कमरे में दाखिल हुयी हाथ में चाय की ट्रे , बिस्किट्स ,
और सीधे पहले उनसे आँखे चार हुईं उसकी और फिर उनके खड़े खूंटे पे जाके टिक गयी ,
थोड़ी लजायी ,झिझकी लेकिन बाद में चोरी से फिर एक बार निगाह वहीँ ,...
गुड मॉर्निंग , भइया ,भाभी , हंस के वो बोली और चाय की ट्रे बेड के बगल में रख दिया।
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और मैंने और उनके भइया ने मिल के उसे बिस्तर पर खींच लिया , हम दोनों के बीच में।
मैं उसे चिढ़ाते गुदगुदी लगाने लगी ,
" हे ननद रानी ऐसे गुड मॉर्निंग थोड़े चलेगी भाभी से , ... ऐसे होती है गुड मॉर्निंग ,.. "
और उसे दबोच कर बाँहों में मेरे होंठों ने उसके होंठों से गुड मॉर्निंग कर लिया।
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सच में बहुत मीठी है ये , ... ये फ़िदा हो गए इसकी जवानी आते ही तो कुछ गलत नहीं
मेरी आँखे उन्हें चढ़ा रही थीं ,उकसा रही थीं , पर वो भी न ,.. सीधे साधे ,.. शरमाते हिचकिचाते ,मैं समझ गयी उनके बस का नहीं है ,मैंने गुड्डी को ही चढ़ाया
" हे भैय्या से भी गुड मॉर्निंग कर ले , ... "उसके कान में मैं फुसफुसाई,.. "
एकदम भाभी ,वो शोख छोरी मुस्करायी और मुड़ के उन्हें अपनी लम्बी छरहरी बांहों में भर लिया और कस के होंठ चिपका दिए ,फिर अपनी मछली सी मचलती बड़ी बड़ी आँखों से उन्हें चिढ़ाती उकसाती बोली , गुड मॉर्निंग भइया ,
और अब वो रुकते तो गड़बड़ होती ,
उन्होंने भी एक कस के चुम्मी ले ली।
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सुबह की धूप कमरे में छा गयी।
" भैया बेड टी" अब लजाने शरमाने का नंबर उस छुई मुई का था।
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सिर्फ दो कप , उनकी निगाहों ने सवाल कर दिया , और जवाब मैंने दिया ,
अपने कप को गुड्डी के मीठे मीठे होंठों से लगा के ,
" हे जरा चीनी तो घोल ननद रानी , ... "
मुस्कराती गुड्डी ने एक चुस्की ले ली और उसके हाथ से चाय का कप ले कर मैंने उनकी ओर बढ़ा दिया ,
उन्होंने गुड्डी को दिखाते हुए वहीँ होंठ लगाया जहां कुछ देर पहले गुड्डी ने लगाया था , उनका कप मेरे होंठों के बीच था ,
और दो का तीन हम तीन ने कर लिया।
मैं उनकी ओर देख कर मुस्करा रही थी ,वो भी समझ कर मीठी मीठी,
जैसे आज हम लोग चाय बाँट कर ,...वैसे ही इस भोली भाली ननदिया को भी हम बाँट लेंगे।
" क्यों भाभी , बेड टी कैसे लगी , ... " चाय सुड़कती हुयी हम लोगों के प्लानिंग से अनजान उस किशोरी ने पूछा ,
और मेरे मन में कुछ और कौंध गया , मैंने फिर उनकी ओर देखा और गुड्डी के पान ऐसे चिकने गाल को सहलाते उसे और उसके भैय्या दोनों को सुनाया ,
"चलो यार एक दो दिन और फिर मैं तुम्हे ही रोज बेड टी पिलाऊंगी , एकदम स्पेशल ,परसनल वाली , मेरा अपना टच होगा ,बोल पीयेगी न नखड़े तो नहीं बनाएगी। "
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वो मेरी बात सुनके समझ भी रहे थे जोर जोर से मुस्करा भी रहे थे। लेकिन मेरी भोली ननद उसे क्या मालूम मैं किस 'बेड टी ' की बात कर रही थी। उसने तुरंत सकार दिया , मुझे पकड़ के बहुत दुलार से बोली ,
" एकदम भौजी , अरे हमार मीठी मीठी भौजी पिलाये तो कौन ननद मना करेगी , ये ननद तो कतई नहीं। "
अब उसके होंठों का नंबर था , उन्हें दिखाते हुए मैंने उनकी बहिनिया के होंठों को चूम लिया , हलके से नहीं कचकचा के।
और होंठ छोड़े तो हलके से प्यारी सी एक चपत अपनी टीनेजर ,जस्ट इंटर पास ननद के गाल पे मारती बोली ,
" सुन लो , अगर अब तूने मना किया न , तो तेरे भइया के सामने बोल रही हूँ , जबरदस्ती पिलाऊंगी रोज बिना नागा अपनी बेड टी। " और उनकी ओर आँख मार दी।
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मैं और मम्मी तो उन्हें 'बेड टी' पिलाती थीं ही , और उनके मायके में भी रोज तो नहीं लेकिन एक दो दिन तो मैंने वहां भी ,... गुड्डी जिस दिन पहली बार आयी थी ,उस दिन ननद के आने की ख़ुशी में तो मैंने उन्हें दिन दहाड़े ही ,...
पर वो हुआ जो मैंने सपने भी भी नहीं सोचा था , वो बोल पड़े ,
" अरे मना क्यों करेगी , ... तुम तो पिलाओगी ही मैं भी अपनी चिरैया को बेड टी पिलाऊंगा " और उनके हाथ भी गुड्डी के कंधे पर,
मुझे अपने कान पर विश्वास नहीं हुआ ,
मैं तो उन्हें ,.. पर वो भी ,.. हाँ चाहती तो मैं भी थी की वो हम लोगो के खेल तमाशे में शामिल हो , पर मैंने तय कर लिया , मुँह के अंदर डाल के नहीं ,... ये चिरैया चोंच खोल के घल घल वो सुनहला शरबत , जिस पर हर ननद का हक़ होता है ,...
और मेरी ननद भी न , जैसे जाल में फंसे कबूतर को अंदाज नहीं होता की वो जाल में है , वो एकदम नारमली ,उसी तरह वो भी हँसते हुए बोली ,
"तो आप लोग बारी बारी से ,.. एक दिन भैया एक दिन भाभी ,.."
हम दोनों ने एक साथ मना किया और एक साथ बोले ,
' अरे नहीं बावरी , बारी बारी से क्यों ,... रोज हम दोनों सुबह सुबह , दो कप बेड टी नहीं पी सकती क्या तू ,.. ?"
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मुंह बोली बहन ने ममेरी बहन को अपनी भाभी की बना लिया और रखेल बनने पर राजी भी कर लिया ।गीता
गुड्डी ने दरवाज़ा खोला , और गीता ने उसे गपुच लिया।
सीधे अपनी बाहों में ,और जोबन के ऊपर जोबन , दोनों किशोरियां ,...
और गीता ने गुड्डी के साथ अपना रिश्ता मिलते ही तय कर लिया ,
अपने भारी भारी दूध भरे जोबन से गुड्डी के कच्चे टिकोरों को रगड़ते ,पहले तो कचकचा के गुड्डी के होंठों को चूमा , हलके से काटा और खिलखिलाते हुए पूछ लिया ,
" का हो भौजी ,चोदोवउली की ना , फटल ,... "
गुड्डी ने भी खिलखिलाते हुए पहले चुम्मी का जवाब चुम्मी से दिया और हंस के छेड़ते हुए मुंह बना के जवाब दिया ,
" उन्ह ना ना , " फिर उसने भी गीता को गलबाहीं में भरा और बोली
" मेरी ननदो से बचे तब न ,... "
और ननद भाभी का रिश्ता बन गया दोनों में , गुड्डी भौजी और गीता उसकी ननद।
गीता आलमोस्ट गुड्डी की समौरिया ही तो थी , मुश्किल से गुड्डी से एक डेढ़ साल बड़ी होगी। हाँ साल भर पहले उसकी शादी हो गयी थी , और गाभिन कब हुयी थी ये तो पता नहीं लेकिन शादी के ठीक आठ महीने बाद केहाँ केहाँ ,
अँजोरिया सी बिटिया और गीता के थन में छलछलाता दूध , उसकी माँ मंजू बाई से गीता की सास की कुछ कहा सुनी हुयी तो चार पांच महीने के लिए गीता अपनी माँ के पास आ गयी बच्चे को सास के पास छोड़कर।
(गीता से मिलवाया तो था आप लोगों से भाग ४४ पेज ४८ पर, और याद दिलाने के लिए इस पन्ने पर एक पोस्ट भी जस की तस छाप दी थी , लिंक भी )
रूप उसका ,
चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,
माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।
गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया
और खूब भरे भरे नितम्ब।
सबसे ज्यादा वो मेरे पीछे पड़ी थी , गुड्डी को लिवा आने के लिए अपने साथ ,
इनको तो उसने पहले दिन से ही भइया बना लिया था और मेरी सारी ननदों की तरह भाईचोद तो वो थी ही। तो पहले दिन ही ,
और मुझसे ज्यादा इनके पीछे पड़ी थी गुड्डी को लिवा आने के लिए ,
सिर्फ लिवा आने के लिए ही नहीं , गुड्डी को गाभिन भी करने के लिए और ,उसके हिसाब से पहलौठी के दूध का मजा चखने के लिए भी
( अभी तो वही पहलौठी का दूध अपने भैया और मेरे सैंया को भरपूर चुसुक चुसुक पिलाती थी )
( और साथ में अपने मुंह बोले भैया और मेरे सैंया के मोटे खूंटे पर पहलौठी के दूध से मालिश भी, मंजू ने इनको बताया था, और इनकी सास ने सर हिला हिला के हामी भी भरी थी कि, पहलौठी का दूध, सांडे के तेल से १२ गुना ज्यादा असर करता है, मोटा भी करता है लोहे के खम्भे ऐसा टनाटन भी, ... रोज बिना नागा गीता इनके खूंटे पे, पहले तो अपनी चूँचियों के बीच रगड़ रगड़ के,...
थोड़ी देर में ही इनका फनफना जाता था, ... फिर अपने हाथ से अपनी चूँची से दूध निकाल के लंड पे जबरदस्त मालिश, हाँ जबतक वो चूँची चोदन करती या इनके लंड पे दूध की मालिश, इन्हे एक से एक गाली अपनी माँ बहन को देना पड़ता,... और असर तो मैं देख ही रही थी, कड़ा भी, झट से खड़ा भी और मैदान तो खैर पहले भी भी ये नहीं जल्दी छोड़ते थे पर अब तो बीस पच्चीस मिनट नार्मल था )
मुझसे तो उसने खुल के बोला था , बस आप उसको ले आइये , फिर मेरे ऊपर छोड़ दीजिये देखिये कैसे उसको नम्बरी छिनार बनाती हूँ ,
मैं उसे चिढ़ाते उसका गाल पिंच कर बोलती , एकदम अपनी तरह।
" ना ना ,मुझसे भी चार हाथ आगे जायेगी , बस एक बार मेरे हाथ में आ तो जाय वो सोन चिरैया , बहुत तड़पाया है स्साली ने मेरे भैय्या को। आने दीजिये एक बार ,.. खुद ही अपने हाथ से लंड पकड़ के वो छिनार अपनी चूत में घोंटेंगी। "
वो जवाब देती।
मुझे बस यही डर लगता था पता नहीं गुड्डी गीता के साथ कैसे रिएक्ट करेगी , किस तरह बिहैव करेगी ?
पर पहली मुलाकात में ही गीता ने न सिर्फ गुड्डी को शीशे में उतार लिया ,अपना ननद भाभी का रिश्ता बना लिया और दोस्ती भी कर ली ,पक्की वाली।
और गीता गुड्डी का आलमोस्ट हाथ पकड़ कर खींचते ,किचेन में ले गयी।
किचेन तो गुड्डी ने कल रात ही देख लिया था , मेरी प्लानिंग भी यही थी की घर के काम काज धीरे धीरे उसी के हवाले ,...सिर्फ चुदवाने और चुसवाने थोड़ी लायी थी उसे ,
उसे पक्की रखैल बनाना था और घर का सारा काम काज, बर्तन, किचेन, झाड़ू पोंछा,... जो अपने घर में उसने कभी न किया हो, वो सब और ये भी सिखाने की जिम्मेदारी गीता ने अपने सर पे ले रखी थी
पक्की रखैल बना के छोड़ेगी गीता गुड्डी को ।और किचेन में
किचेन तो गुड्डी ने कल रात ही देख लिया था , मेरी प्लानिंग भी यही थी की घर के काम काज धीरे धीरे उसी के हवाले ,...
और किचेन में घुसते ही पीछे से कस के गीता ने ऐसे चुटकी काटी , की गुड्डी की टाँगे अपने आप फ़ैल गयीं।
बस गीता ने अबकी खुल के गुड्डी की जाँघों के बीच में हाथ डाल के उसकी सोनचिरैया पर हाथ डाल के दबोच लिया , और लगी मसलने।
वैसे भी गुड्डी ने अपने भैय्या की लांग शर्ट के अलावा अंदर कुछ भी नहीं पहिना था।
और गीता ने जब अपनी गदोरी के बीच में दबा के उस नयी चिरैया की बिलिया को मसलना मीजना शुरू कर दिया , बस थोड़ी देर में ही वो गीली हो गयी। गीता की ऊँगली गुड्डी की दरार में रगड़ रही थी , और उस एलवल वाली की जाँघे अपने आप फैलने लगी ,
" का हो भौजी, बोला चोदलें कल रात हमार भइया न ,कचकचाई के , ... "
गीता का अंगूठा अब गुड्डी की क्लिट पर था , हलके हलके सहलाते ,..
गीता की उंगलियां तो चार बच्चो को उगलने वाली भोंसड़ी को पानी पिला देती थीं ,ये तो नयी नयी बछेड़ी थी।
गुड्डी जोर जोर से सिसक रही थी ,चूतड़ मटका रही थी , पर उसके मुंह से सच निकला
"नहीं ,नाहीईईई , कुछ नहीं हुआ ,... "
और साथ ही गीता ने अपनी ऊँगली जो उस कच्ची कली की कोरी प्रेमगली में घुसाने की कोशिश की तो , ... समझ गयी ,
इस चिड़िया ने चारा अभी तक नहीं घोंटा है।
पूरी ताकत के बाद भी एक पोर भी ऊँगली नहीं घुसी ,
गीता समझ गयी न सिर्फ ये छोरी अब तक चुदी नहीं है बल्कि उसकी चूत बहुत ही कसी है , जबरदस्त खून खच्चर होगा।
दरार में ऊँगली रगड़ती गीता बोली ,
" कउनो बात नहीं भौजी , अरे अपनी एह ननदिया क बात माना , बस आज रात भरतपुर लुट जाई , पक्का , सबेरे ई ननदिया आय के उठाएगी , इहाँ रबड़ी मलाई भरी रहेगी। "
रगड़ाई से गुड्डी झड़ने के करीब आ गयी थी और जान बूझ के गीता रुक गयी।
और गुड्डी के मीठे मीठे गाल पे चुम्मा लेती बोली ,
" बस ई ननदिया क बात माना ,आज से रोज बिना नागा ,मोट मोट पिचकारी, लेकिन चलो कुछ काम निपटाए दें , भौजी ज़रा हाथ बटा दो तो जल्दी हो जायेगी।"
और धुलने वाले बरतन गुड्डी को पकड़ा दिया , वैसे भी ज्यादा काम नहीं था ,खाली कल रात के ही बर्तन थे।और जैसे ही गुड्डी ने कटोरी मांजना शुरू किया , गीता ने छेड़ा
" अरे भौजी जस हमार भइया तोहार कटोरी मांजते हैं वैसे मांजा न ,दो ऊँगली अंदर , बाकी बाहर , तनी जोर लगाय के , अरे हाँ ऐसे "
और गुड्डी ने कस कस के ,
लेकिन गीता तो एकदम पक्की ननद बनी , गुड्डी के गालों को जोर से पिंच करती बोली ,
" अरे भौजी मस्त है ,... कब से ऊँगली करना शुरू किया था ,झांट आने के पहले से की झांट आते ही ,.. एकदम हमार भौजी मायके की बांकी छिनार लाग रही हैं हाँ ऐसे ही रगड़ो ,.. अरे ससुराल में आयी हो दिन रात मेहनत करना होगा ,.. "
गुड्डी कौन सीधी थी , एकदम भौजाई के रोल में ,.. झट से आँख नचा के बोली ,
" अरे वाह , हम काहें मेहनत करेंगे , करें तोहार भइया ,.. "
" अरे रात भर टंगिया उठाये रहोगी मेहनत ना पड़ी का। फिर जब तक धक्का दुनो ओर से न लगे तबतक का मजा , कल सबरे भिन्सारे आके पूछूँगी भाभी ,मेहनत पड़ी की ना , रात में सैंया और दिन में ,.. हम हैं न तोहार ननद मेहनत करवावे के लिए ,.. "
दोनों एकदम मिलकर काम कर रहीं थी ,और ननद भौजाई की तरह खुल के मजाक , छेड़छाड़ भी।
पर गीता भी ,.. थोड़ी ही देर में उसने सारा काम गुड्डी को पकड़ा दिया और खुद किचेन के सिंक के बगल में धप्प से बैठ गयी।
" अरे आज रात में तो भैय्या तुमको बख्श दिए तो ,जरा सा बरतन है , ... जल्दी जल्दी निपटा दो , ... फिर आगे का काम भी तो पड़ा है। "
अब बजाय काम करने के वो गुड्डी से काम करवा रही थी।
और गुड्डी भी चुपचाप उसकी बात मान कर बरतन साफ़ करने में लगी थी ,
मांजने के बाद धुलवाया भी गीता ने गुड्डी से ही , और अब तक गीता की साडी सरक कर गीता की जाँघों के ऊपर पहुंच चुकी थी।
" एही लिए हम भइया से कह रहे थे, तुमको जरूर ले आवें जल्द, ओनहु के आराम ,हम सब को आराम, भौजी बस दो तीन दिन में कुल काम धाम,.. सिखा दूंगी मैं.”
गीता की आँखों में चमक और मुस्कान साफ़ साफ़ दिख रही थी, पहले दिन ही वो गुड्डी को,... जैसा चाहती थी एकदम उसी ओर,....
"चलो तुमने इतना बढ़िया बर्तन साफ़ किया , थोड़ा इनाम तो बनता ही है न , ज़रा मिठाई खिला दूँ अपनी नयकी भौजी को."
![]()
अरे पहले भैया का और जीजा का तो मजा ले ले तो नंदोई तो बाद में आएंगे ।पक्की ननद भौजाई
"चलो तुमने इतना बढ़िया बर्तन साफ़ किया , थोड़ा इनाम तो बनता ही है न , ज़रा मिठाई खिला दूँ अपनी नयकी भौजी को."
गीता बोली और और खींच कर गुड्डी को अपनी जाँघों के बीच में ,गीता की साडी सरक कर कमर से लिपट गयी थी ,एक छल्ले की तरह। गीता के निचले होंठों से गुड्डी के रसीले कुंवारे किशोर होंठ चिपक गए ,
,और गीता ने कस कस के अपनी मांसल जांघों की सँडसी में गुड्डी के सर को दबोच लिया।
बिचारी , किशोरी के बस में क्या था ,
गीता की तगड़ी मांसल जाँघों के आगे , उसके भैय्या भी सरेंडर कर देते थे , तो इस नयी बछेड़ी को तो ,..
और पहली बार बिल तो गुड्डी ने चूसी नहीं थी ,अपनी सहेलियों के साथ , दिया ने तो उसे सब खेल सिखा दिए थे और बाकी जब वो मेरे नीचे आयी तो
एक कुँवारी नौसिखिया टीनेजर का मजा ही कुछ और है , गीता कुछ देर में ही सिसकियाँ लेने लगी
गीता ऊपर किचेन में सिंक के बगल में बैठी ,जाँघे फैलाकर और गुड्डी नीचे बैठी , उसका सर गीता की जाँघों में फंसा दबा,
और कुछ ही देर में धक्के पर धक्का,क्या कोई मरद चोदेगा जिस तरह से गीता अपनी नयकी भौजी का मुंह अपनी बुर से चोद रही थी. और ननद भौजाई की ये टक्कर ,
गुड्डी भी कुछ देर में मजे ले ले कर चूसने लगी , अपनी जीभ से अपने होंठ से ,... गुड्डी की जीभ गीता की बुर के नीचे ऊपर तो कभी अंदर बाहर ,
कुछ ही देर में चाशनी बहने लगी और गुड्डी मजे ले ले कर , ....
ननद भाभी का रिश्ता पहली मुलाकात में ही पक्का हो गया।
और गीता धक्के दे दे कर ,.. जितना उसने सोचा था उससे भी रसीली ये निकली , और एक बार उसके हाथ में अब पड़ गयी तो बस अब उसकी जिम्मेदारी , कुछ पता के कुछ जोर ज़बरदस्ती ,..जल्द ही ,..
मजा दोनों को आ रहा था।
गीता कुछ देर में ही झड़ने लगी लेकिन न वो रुकी न गुड्डी
एक एक बूँद रस की गुड्डी ने चाट लिया।
धीरे से गीता उठी और गुड्डी के मुंह में लगा सब बुर रस चाट लिया।
और कस के उसे गले लगाती बोली , पक्की भौजाई हो हमार। चलो अब बाकी काम निपटा देते हैं।
सबसे पहले कुछ देर तो गीता ने झुक के झाड़ू लगाया फिर गुड्डी के हाथ में झाड़ू पकड़ा दिया ,
" चल झाड़ू ज़रा ,तनी देखी मायके में कुछ सीखा है झाड़ना ,झड़वाना ,.. अंदर घुस के रगड़ रगड़ के झाड़ तब तक मैं डस्टिंग कर लेती हूँ। "
गुड्डी झाड़ू लगा रही थी की गीता ने उसकी लांग शार्ट और ऊपर कर दिया , कमर से भी ऊपर ,.. और चिढ़ाते बोली
" राजा तनी चूतड़ और ऊपर करो , "
और जैसे ही गुड्डी ने अपने किशोर नितम्बो की उठाया ,
चटाक , एक हाथ हलके से गीता लगाती बोली ,
" अरे नयकी भौजी , चूतड़ तो तोहार बहुत मस्त है , चिक्कन नमकीन लौंडन मात हैं तोहरे चिक्क्न चूतड़ के आगे जैसे तोहरे मायके वाले लौंडे, भाई कुल चूतड़ उठा उठा के गाँड़ मरवाते हैं, वैसे चूतड़ उठा के,... हाँ ,... हां थोड़ा और सीख लो,... ऐसे झाड़ू बढ़िया लगेगा, दो चार दिन में कुल काम सिखाय दूंगी। ""
गीता ने काम ख़तम कर दिया ,
निहुरे निहुरे गुड्डी की कमर झुकी झुकी ,लेकिन उसने भी झाड़ू ख़तम कर दिया पर उसके उठने के पहले ही गीता ने फिर प्यार से एक हाथ कस के जड़ा और चिढ़ाया
" अरे भौजी ससुरार में हो , अब निहुरने की प्रैक्टिस कर लो ,रात भर सैंया निहुरा के चांपेंगे , ...और दिन में देवर , ननदोई ,.. "
गुड्डी भी अब एकदम गीता के रंग में रंगती जा रही थी। पक्की भौजाई की तरह उसने गीता के गाल पे जोर से पिंच किया बोली ,
" अरे ननद तो एक है ,... और ननदोई ,.. " फिर गुड्डी खुद ही गुनगुना के जवाब देने लगी ,
" मेरे तो एक पिया है, ननदी के दस दस ,... क्यों ननद रानी है न "
गीता ने बहुत बुरा सा मुंह बनाया ,बोली ,
"अरे भौजी ,दस से का होगा तोहरी ननद का , पन्दरह बीस से कम नहीं "
" अरे मायके में हो सब बचपन के यार होंगे इंहा कौन कमी हमारी ननद को यारों की। "
मेरे साथ साथ गुड्डी भी अब जवाब देने में तेज हो गयी थी ,उसने भी गीता को चिढ़ाया।
" और का भौजी , ...कुछ दिन अपने सैंया के साथ मौज उड़ा लो फिर हमारे सैंया का भी मजा ले लेना , सब तोहार ननदोई लगेंगे और नन्दोई का तो सलहज पर हक होता है। "
इतनी ही देर में गीता गुड्डी पक्की ननद भौजाई हो गयी थीं।