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भाग १७९
लो मेरे भैया बन गयी घोड़ी
( आरुषि जी से प्रेरित उन्ही को समर्पित, होली के अवसर पर यहपोस्ट )
पति, पत्नी और
वो ( पति की बहिनिया)
दस पंद्रह मिनट में वो भी आ गए ,साथ में चाइनीज खाना।
……………….
लो मेरे भइया बन गयी घोड़ी
डाल दो लौडा कर दो चौड़ी
इनके आने के पहले मैंने गुड्डी को आरुषि दयाल की यह पंक्तिया पढ़वाई थीं तो गुड्डी खिलखिला के बोली,
" अरे आरुषी जी को मेरे मन की ये बातें कैसे पता चल गयीं " तो मैंने उसे हँस के समझाया,
" जिसे तन की सब एक नजर में देख के पता चल जाए उसे डाक्टर साहिबा कहते हैं और जिस बिन देखे मन की बात पता चल जाए उसे आरुषि दयाल कहते हैं , लेकिन ये बोल तेरा मन करता है घोड़ी बनने का "
" एकदम भाभी, आपके साजन का घोड़े जैसा है तो घोड़ी तो बनना बनता है न " वो गुड्डी मेरी ननद कम छिनार नहीं थी , और अभी खाना खाते हुए भी मैं उसे वही दो लाइने बार बार सुना के चिढ़ा रही थी,....
खाना बाद में ख़तम हुआ , इनकी नयी नयी रखैल को हम दोनों ने पहले ही खाना शुरू कर दिया। सामने इत्ते मस्त कच्चे टिकोरे हों तो कौन छोड़ता है। उसकी वही हाईस्कूल वाली फ्राक , और अब तो ब्रा का कवच भी नहीं था कच्ची अमिया के ऊपर , हम दोनों कुतरने लगे , वो हलके हलके प्यार से , और मैं कचकचा कर।
कुछ देर में हम तीनों बेड रूम में थे , और ननद रानी की फ्राक जमीन पर ( उसके अलावा कुछ पहना भी नहीं था उसने ).
बस उस को हम दोनों ने बाँट लिया , बाएं वाला उस छिनार के बचपन के यार के हिस्से , और दाएं वाला मेरे।
यही तो मैं चाहती थी उनकी इस सो कॉल्ड सीधी साधी बहना की हम दोनों मिल के बिस्तर पर , ... और आज तो गुड्डी रानी की ऐसी की तैसी होने वाली थी , और ये बस शुरुआत थी।
सच में मैं उनको ब्लेम नहीं करती , स्साली के नए नए आये छुटके जुबना थे ही ऐसे , किसी का ईमान डोल जाय। मैं कभी हलके से तो कभी कचकचा के उसकी कच्ची अमिया कुतर रही , दांतो के निशान पड़ने हो तो पड़ें ,
कुछ देर में हम दोनों के कपडे भी फर्श पर ,जहाँ गुड्डी की फ्राक पड़ी थी।
हाँ अपने भइया की शार्ट तो उसी ने खोली ,और जैसे बटन दबाने पर स्प्रिंग वाला चाक़ू उछल कर बाहर , उसी तरह वो मोटा मूसल भी ,एकदम खड़ा तना ,तन्नाया ,बौराया।
और हम दोनों ने साथ चाटना शुरू कर दिया ,जैसे दो सहेलियां मिल कर लॉलीपॉप चाटती हैं , बस उसी तरह से। एक ओर से उनकी किशोर ममेरी बहन की जीभ सपड़ सपड़ और दूसरी ओर से मेरी जीभ लपड़ लपड़ लंड के बेस से लेकर , एक दम ऊपर तक , कभी सुपाड़े को वो अपनी जीभ से चाटती तो कभी मैं , और फिर लिक करते हुए वापस लंड के बेस तक , मस्त लिक कर रही थी वो अपने भैया के खूंटे को एकदम जैसे कोई हाईस्कूल वाली लड़की सॉफ्टी चाटती है ,
बिचारे उनकी हालत ख़राब हो रही थी , पर हालत तो उनकी तबसे ख़राब थी जबसे उनकी इस बहना पर जवानी चढ़ी थी ,
'सॉफ्टी ' शेयर करते हुए मैं और गुड्डी एक दूसरे को देख भी रहे थे ,मुस्करा भी रहे थे , सुपाड़ा उनका गजब का कड़ा , तना , और मुझसे नहीं रहा गया ,
गप्प
पूरा सुपाड़ा मैं घोंट गयी और चूसने चुभलाने लगी , नीचे का हिस्सा उनकी टीनेजर बहन के हिस्से में था , पर मेरे रसीले होंठ सरकते हुए और नीचे ,और नीचे , ,
मेरे और मेरी ननद की लार ने इनके लंड को एकदम मस्त चिकना कर दिया था और सटक लिया मैंने आधे से ज्यादा , पांच छह इंच , ... गुड्डी की जीभ अब सिर्फ बेस के आसपास ,
एक पल के लिए मैंने होंठ बाहर किये और अपनी ननद को समझाया ,
" अरे यार बाँट लेते हैं न , मैं गन्ना चूस रही हूँ तो तू रसगुल्ले का मजा ले न। "
समझ तो वो गयी ,पर जो नहीं समझी तो मेरे हाथ ने समझा दिया।
अबकी गन्ना आलमोस्ट पूरा मेरे मुंह के अंदर और मेरे हाथ ने मेरी किशोर ननदी के होंठ उनके बॉल्स पर , और उस नदीदी ने उनके एक बॉल को अपने रसीले होंठ के बीच गड़प कर लिया ,और लगी चूसने चुभलाने। उनका गन्ना अब सीधे मेरे हलक पर ठोकर मार रहा था , मैं मजे से उस मोटे मीठे डंडे को चूस रही थी , और इनकी ममेरी बहन इनके पेल्हड़ ( बॉल्स )को
मैंने गुड्डी को जरा सा इशारा किया तो उसने पैतरा बदला और अब दूसरा वाला उस किशोरी के मुंह में था , कुछ देर तक तो बारी बारी से उसने ,फिर एक बार बड़ा सा मुंह उसने खोला , कल जैसे गीता ने उसका मुंह खोलवाया
और
गप्प
दोनों रसगुल्ले उनकी ममेरी बहन के मुंह में ,
पूरा खूंटा मेरे मुंह में ,... कुछ देर चूस के मेरे होंठ खूंटे को चाटते हुए ऊपर और एक बार फिर मेरी जीभ उनके पेशाब के छेद को छेड़ रही थी ,सुरसुरी कर रही थी ,
मेरी ननद ने भी मेरी देखा देखी दोनों बॉल्स को आजाद किया पर उसकी जीभ अब बॉल्स को कस कस के चाट रही थीं और जैसे ही मेरे होंठ सरकते हुए एक बार फिर उनके बालिश्त भर के लंड के बेस तक पहुंचे ,
मेरी टीनेजर ननद ने ,एक बार फिर से रसगुल्लों को अपने मुंह में लेकर चूसना चुभलाना शुरू कर दिया।
बीबी और बहन के इस डबल अटैक ने उनकी हालत खराब कर दी थी , वो सिसक रहे थे चूतड़ पटक रहे थे , पर अभी तो बाजी हम दोनों के हाथ में थी। मै कसकस के चूस रही थी और उनकी बहन भी ,
लो मेरे भैया बन गयी घोड़ी
( आरुषि जी से प्रेरित उन्ही को समर्पित, होली के अवसर पर यहपोस्ट )
पति, पत्नी और
वो ( पति की बहिनिया)
दस पंद्रह मिनट में वो भी आ गए ,साथ में चाइनीज खाना।
……………….
लो मेरे भइया बन गयी घोड़ी
डाल दो लौडा कर दो चौड़ी
इनके आने के पहले मैंने गुड्डी को आरुषि दयाल की यह पंक्तिया पढ़वाई थीं तो गुड्डी खिलखिला के बोली,
" अरे आरुषी जी को मेरे मन की ये बातें कैसे पता चल गयीं " तो मैंने उसे हँस के समझाया,
" जिसे तन की सब एक नजर में देख के पता चल जाए उसे डाक्टर साहिबा कहते हैं और जिस बिन देखे मन की बात पता चल जाए उसे आरुषि दयाल कहते हैं , लेकिन ये बोल तेरा मन करता है घोड़ी बनने का "
" एकदम भाभी, आपके साजन का घोड़े जैसा है तो घोड़ी तो बनना बनता है न " वो गुड्डी मेरी ननद कम छिनार नहीं थी , और अभी खाना खाते हुए भी मैं उसे वही दो लाइने बार बार सुना के चिढ़ा रही थी,....
खाना बाद में ख़तम हुआ , इनकी नयी नयी रखैल को हम दोनों ने पहले ही खाना शुरू कर दिया। सामने इत्ते मस्त कच्चे टिकोरे हों तो कौन छोड़ता है। उसकी वही हाईस्कूल वाली फ्राक , और अब तो ब्रा का कवच भी नहीं था कच्ची अमिया के ऊपर , हम दोनों कुतरने लगे , वो हलके हलके प्यार से , और मैं कचकचा कर।
कुछ देर में हम तीनों बेड रूम में थे , और ननद रानी की फ्राक जमीन पर ( उसके अलावा कुछ पहना भी नहीं था उसने ).
बस उस को हम दोनों ने बाँट लिया , बाएं वाला उस छिनार के बचपन के यार के हिस्से , और दाएं वाला मेरे।
यही तो मैं चाहती थी उनकी इस सो कॉल्ड सीधी साधी बहना की हम दोनों मिल के बिस्तर पर , ... और आज तो गुड्डी रानी की ऐसी की तैसी होने वाली थी , और ये बस शुरुआत थी।
सच में मैं उनको ब्लेम नहीं करती , स्साली के नए नए आये छुटके जुबना थे ही ऐसे , किसी का ईमान डोल जाय। मैं कभी हलके से तो कभी कचकचा के उसकी कच्ची अमिया कुतर रही , दांतो के निशान पड़ने हो तो पड़ें ,
कुछ देर में हम दोनों के कपडे भी फर्श पर ,जहाँ गुड्डी की फ्राक पड़ी थी।
हाँ अपने भइया की शार्ट तो उसी ने खोली ,और जैसे बटन दबाने पर स्प्रिंग वाला चाक़ू उछल कर बाहर , उसी तरह वो मोटा मूसल भी ,एकदम खड़ा तना ,तन्नाया ,बौराया।
और हम दोनों ने साथ चाटना शुरू कर दिया ,जैसे दो सहेलियां मिल कर लॉलीपॉप चाटती हैं , बस उसी तरह से। एक ओर से उनकी किशोर ममेरी बहन की जीभ सपड़ सपड़ और दूसरी ओर से मेरी जीभ लपड़ लपड़ लंड के बेस से लेकर , एक दम ऊपर तक , कभी सुपाड़े को वो अपनी जीभ से चाटती तो कभी मैं , और फिर लिक करते हुए वापस लंड के बेस तक , मस्त लिक कर रही थी वो अपने भैया के खूंटे को एकदम जैसे कोई हाईस्कूल वाली लड़की सॉफ्टी चाटती है ,
बिचारे उनकी हालत ख़राब हो रही थी , पर हालत तो उनकी तबसे ख़राब थी जबसे उनकी इस बहना पर जवानी चढ़ी थी ,
'सॉफ्टी ' शेयर करते हुए मैं और गुड्डी एक दूसरे को देख भी रहे थे ,मुस्करा भी रहे थे , सुपाड़ा उनका गजब का कड़ा , तना , और मुझसे नहीं रहा गया ,
गप्प
पूरा सुपाड़ा मैं घोंट गयी और चूसने चुभलाने लगी , नीचे का हिस्सा उनकी टीनेजर बहन के हिस्से में था , पर मेरे रसीले होंठ सरकते हुए और नीचे ,और नीचे , ,
मेरे और मेरी ननद की लार ने इनके लंड को एकदम मस्त चिकना कर दिया था और सटक लिया मैंने आधे से ज्यादा , पांच छह इंच , ... गुड्डी की जीभ अब सिर्फ बेस के आसपास ,
एक पल के लिए मैंने होंठ बाहर किये और अपनी ननद को समझाया ,
" अरे यार बाँट लेते हैं न , मैं गन्ना चूस रही हूँ तो तू रसगुल्ले का मजा ले न। "
समझ तो वो गयी ,पर जो नहीं समझी तो मेरे हाथ ने समझा दिया।
अबकी गन्ना आलमोस्ट पूरा मेरे मुंह के अंदर और मेरे हाथ ने मेरी किशोर ननदी के होंठ उनके बॉल्स पर , और उस नदीदी ने उनके एक बॉल को अपने रसीले होंठ के बीच गड़प कर लिया ,और लगी चूसने चुभलाने। उनका गन्ना अब सीधे मेरे हलक पर ठोकर मार रहा था , मैं मजे से उस मोटे मीठे डंडे को चूस रही थी , और इनकी ममेरी बहन इनके पेल्हड़ ( बॉल्स )को
मैंने गुड्डी को जरा सा इशारा किया तो उसने पैतरा बदला और अब दूसरा वाला उस किशोरी के मुंह में था , कुछ देर तक तो बारी बारी से उसने ,फिर एक बार बड़ा सा मुंह उसने खोला , कल जैसे गीता ने उसका मुंह खोलवाया
और
गप्प
दोनों रसगुल्ले उनकी ममेरी बहन के मुंह में ,
पूरा खूंटा मेरे मुंह में ,... कुछ देर चूस के मेरे होंठ खूंटे को चाटते हुए ऊपर और एक बार फिर मेरी जीभ उनके पेशाब के छेद को छेड़ रही थी ,सुरसुरी कर रही थी ,
मेरी ननद ने भी मेरी देखा देखी दोनों बॉल्स को आजाद किया पर उसकी जीभ अब बॉल्स को कस कस के चाट रही थीं और जैसे ही मेरे होंठ सरकते हुए एक बार फिर उनके बालिश्त भर के लंड के बेस तक पहुंचे ,
मेरी टीनेजर ननद ने ,एक बार फिर से रसगुल्लों को अपने मुंह में लेकर चूसना चुभलाना शुरू कर दिया।
बीबी और बहन के इस डबल अटैक ने उनकी हालत खराब कर दी थी , वो सिसक रहे थे चूतड़ पटक रहे थे , पर अभी तो बाजी हम दोनों के हाथ में थी। मै कसकस के चूस रही थी और उनकी बहन भी ,
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