इस कहानी के इन पार्ट्स में मैंने कुछ कुछ बातें एक एक लाइनों में मन की कहने की कोशिश की है, जैसे
" नहीं बात स्मोकिंग की नहीं थी , बात उनके एट्टीट्यूड की थी और चेंज को खुलेआम स्वीकार करने की थी , मजे लेने की थी।
स्मोकिंग तो सिर्फ एक बहाना था,"
या
परेशानी यही थी। वो बदल तो रहे थे , अपने नए रूप को इंज्वाय भी करना उन्होंने शुरू कर दिया था ,लेकिन घर के अंदर ,सिर्फ मेरे सामने।
बाहर वही ,जो बचपन से अपनी इमेज एक बना रखी थी , उनके असली 'पर्सोना ' जो मन से मजा लेना चाहती थी , एंज्वॉय करना चाहती थी और जो उन्होंने पूरी दुनिया के सामने अपने मायके वालों के सामने एक इमेज बना रखी थी ,
एक तगड़ा अंतर्द्वंद चल रहा था।
मैं उसकी गवाह थी लेकिन सिर्फ मूक गवाह बनने से काम नहीं चलने वाला था , मुझे अपने 'उनके ' जो रियल वो थे , जो मस्ती करना चाहते थे , वाइल्ड होना चाहते थे ,उसे आजाद कराना था।
या फिर इस पोस्ट के पहले वाली पोस्ट में
इत्ती ख़ुशी मुझे आज पहली बार हो रही थी।
मेरा साजन ,अब मेरा था ,सिर्फ मेरा।
बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में लपटे , भींचे , दूसरे को दबोचे लेटे रहे।
और जब मेरी आँखे खुली , तो वो मुझे टुकुर टुकुर देख रहे थे। मुस्कराते।
लाल बिंदी अभी भी उनके माथे पे दमक रही थी।
उन्हें मालूम हो था गया था की कभी कभी हार में भी जीत होती है।
और जीत हम दोनों गए थे ,
वह मुझे और मैं उन्हें।
तो ये लाइनें कहानी की अंडरलाइंग भावना को हाईलाइट करती हैं और अच्छी बात है की कई पाठक सेक्स के चक्कर में इन्हे छोड़ देते है या बस यूँही
देह तो बस एक नसेनी है , एक सीढ़ी है मन तक पहुँचने के लिए
लेकिन देह को नकार कर, तन को मन से दूर कर भी आप मन तक नहीं पहंच सकते और आपने न सिर्फ इस स्प्रीट को समझा बल्कि अपनी पिक्स और कमेंट से सकारा भी,
व्यूज, लाइक्स आते रहते हैं लेकिन हर लिखने वाला एक ऐसा पाठक ढूंढता है जिसके साथ वो तादाम्य स्थापित कर सके , जिस तक जो वो कहना चाहता है वो पहुंचा सके , और मैं कभी भी यांत्रिक ढंग से देह के सुख नहीं लिखती,
और ऐसे पाठक विरले ही मिलते हैं और मिलने के साथ साथ वो कमेंट्स भी दें , कदम से कदम मिला के चलें ये सौभाग्य की बात है