मुझे लगता था की जैसे मैंने किसी तिलस्म को तोड़ तो दिया है ,
जिसमें इनके मायकेवालियों ने इन्हे बंद कर रखा था ,
लेकिन तब भी ऐसे कई कमरे हैं जिसकी चाभी मेरे पास नहीं है।
बात करते करते वो अक्सर 'आफ ' हो जाते थे , कई बार मुझे लगता था की वो मेरे पास हैं लेकिन ,मेरे पास नहीं है।
चारो ओर जैसे रौशनी की दरिया बह रही हो ,
लेकिन बीच में अँधेरे के बड़े बड़े द्वीप होंऔर वो वहां ये ग़ुम हो जाते हों।
बस मैंने सीढ़ी लगा ली ,
सिर्फ उनके मन के गहरे अँधेरे कूएँ में ही नहीं , बल्कि उसके अंदर से ढेर सारी सुरंगे निकलती हुईं ,
ये लाइने न सिर्फ इस कहानी की नायिका की मन की अन्तर्दशा बयान करती हैं बल्कि ढेर सारी नयी ब्याही महिलाओं की जहाँ रात में तो लगता है पति के लिए उनके अलावा और कोई नहीं है लेकिन बाद में दिन में, कई बार बात करते हुए
इस कहानी के शुरू के पन्नो में , पोस्टों में उस व्यथा कथा को मैंने समझने की समझाने की कोशिश की है
और एक बात और क्योंकि बात मन की है तन की नहीं, और थोड़ी उदासी है मस्ती नहीं
इसलिए सारी पिक्चर्स ब्लैक एंड व्हाइट हैं , क्योंकि मैं पूरी तरह वो असर क्रिएट करना चाहती थी जो ऐसे अवसाद के समय हो
लेकिन ये कहानी अवसाद की नहीं बल्कि उससे निकलने की है और अकेले निकलने या पलायन करने की नहीं साथी को भी साथ निकालने की है
और इसलिए आगे की लाइने भी वो बात बयान करती हैं
कुछ पर भारी भारी पत्थर रखे हुए , कुछ जाले पड़े हुएउनके अंदर चलना मुश्किल , मेरी ऐसी 'बोल्ड ब्यूटी ' के लिए भी ,
आप को यह भाग अच्छा लगा बहुत बहुत आभार