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जोरू का गुलाम भाग १८४
शॉपिंग
भाग १८३- कैसे ननदिया होगी गाभिन पिछला भाग page 663
भाग १८२डाक्टर गिल - पेज ६४५
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Jese shas bhi kabhi bahu thi.जोरू का गुलाम भाग 125
सामू की साइकिल, साइकिल का डंडा
मम्मी जीप से जा रही थीं ,दूर से उन्होंने हाथ हिलाया ,मैंने भी। और सामू की साइकिल के डंडे पे बैठ गयी।
तब मुझे याद आया चड्ढी तो मैंने पहनी नहीं ,घी लगाने के बाद ,
लेकिन सामू की साइकिल चल पड़ी थी।
….
और अब मैं दूसरी सोच में पड़ गयी थी , आज कहाँ ले जाएगा वो।
गन्ने के खेत शुरू हो गए , ऊँचे ऊँचे , .... पतली सी पगडंडी , वो जगह भी आ गयी जहां कल उसने साइकिल खड़ी की थी और पतले से कच्चे रास्ते से मुझे गन्ने के खेत के बीच खींच कर ले गया था जहाँ कल मेरी नथ उतरी थी।
मुझे लगने लगा , अब रोके , अब रोके , पर वो ,...
कहीं वो भूल तो नहीं गया की असल में आज स्कूल बंद है , और एक्स्ट्रा क्लास भी बस ,...
और अब वो बीच वाली सूनसान जगह भी आगयी जहाँ बाग़ थी ,बाग़ क्या एकदम जंगल सा , और मुझे लगा मुझे ही उसे याद कराना पडेगा।
बस एक जगह मैंने जिद कर के साइकिल रुकवा दी की मुझे लगता है चींटी काट रही है।
" तेरे डंडे में आज कुछ मीठा मीठा लगा था क्या , लगता है मुझे चींटी , .. ज़रा देखो न ,झुक के : और मैंने थोड़ी सी स्कर्ट ऊपर कर के उसका हाथ खींच लिया ,बस मेरी मखमली जाँघों को सहलाते हुए , उसका हाथ ऊपर बढ़ने लगा।
" हाँ हाँ बस ज़रा सा और ऊपर , बस इसी जगह ,थोड़ा सा और ऊपर ,... हाँ एक अंगुल और ,..
जैसे ही उसको इस बात का अहसास हुआ की मैंने चड्ढी नहीं पहन रखी है बस ,गचाक से उसने चुनमुनिया दबोच ली। और लगा रगड़ने मसलने ,
" हाँ हाँ ,नहीं नहीं " मैं मुस्करा रही थी छेड़ रही थी ," छोडो न , चींटी भाग गयी है अब "
और अचानक जैसे उसे कुछ याद आया बस जैसे कोई खिलौने की गुड़िया के उठा दे ,उसने,... बस मुझे उठा के साइकल के डंडे पे बिठाया और डबल स्पीड पे , कुछ मिनट में ही हम उस बाग़ या जंगल के सबसे घने हिस्से के बगल वाली सड़क पे ,
वो दोनों ओर देख रहा था ,एक बहुत पतली सी पगडंडी , बरगद ,बबूल ,पाकड़ के बहुत ही घने पुराने पेड़ ,दोनों ओर से पेड़ देह छील रहे थे ,पर कुछ देर ही हम चले होंगे की आम की एक बाग़ , असल में वो बाग़ ही थी बस चार ओर दस बीस कतार जंगली पेड़ों के , लेकिन आम की बाग़ भी बहुत गझिन।
और उस में भी कहीं कहीं पुराने बरगद और पाकुड़ के पेड़ , ... एक पुराने पेड़ के बगल में उसने साइकल रोक दी और मुझे खिंच के पेड़ के पीछे ,
मुझे लगा कल गन्ने के खेत में तो आज अमराई में मेरी मरवाई होगी पर , एक छोटी सी कोठरी मुश्किल से नजर आयी। दरवाजा लकड़ी का पुराना ताला।
सामू ने फेंटे से चाभी निकाल के ताला खोला और मुझे कमरे में धकेल के ताला फिर से बाहर से बंद कर दिया।
एकदम अँधेरा ,लेकिन थोड़ी देर में आँखे आदी हो गयीं। कमरा इतना छोटा भी नहीं था , एक दो रोशनदान थे जिनसे थोड़ी थोड़ी धूप आ रही थी।
Bachpan ki sokhin he jethani ji.बछिया एक सांड़ दो
और मैंने दरवाजा बंद भी कर दिया , ताला भी लगा दिया तब सामू की आवाज सुनाई दी ,"
अरे स्साली गीले कपडे में बीमार पड़ जायेगी ,कपडे उतार के दे दे यही फ़ैलाने को ,जब तक हम चलेंगे सूख जांयेंगे। "
सामू की बात टालने की मेरी हिम्मत नहीं थी। टॉप के बटन तो उसने पहले ही खोल दिए थे मैं मुड़ी ,सीधे उसके दोस्त के सामने , और अपनी टॉप उतार के उसके हाथ में , फिर स्कर्ट भी।
वो सामू भी अब तक जांघिये में आ चुके थे। सामू के दोस्त ने खींच के मुझे अपनी गोद में बिठा लिया और अपने हाथ से मेरी ब्रा खोल के कच्ची अमिया के मजे लेने लगा। "
रिकार्डिंग चालू थी ,एक पल के लिए मैंने माइक पे हाथ रख कर स्टोरी को फास्ट फारवर्ड किया और उनसे काम वाली बात पूछी।
" दीदी नाम क्या था उसका और दोनों ने कितनी बार ,... "
" भगेलू ,... अभी भी वो वहीँ पोस्टेड है , अब तो सेण्टर का इंचार्ज बन गया ही। और दोनों ने तीन बार , पहले उस भगेलू ने वहीँ निहुरा के , जैसे सांड़ बछिया पे चढ़ा था बस उसी तरह। सामू से बीस तो नहीं था लेकिन अट्ठारह भी नहीं था ,आलमोस्ट टक्कर का। और ऐसे हचक हचक केधक्के मार रहा था की , सामू बस बैठे देख रहा था।
उसके बाद सामू का नंबर लगा ,बल्कि खुद में सामू की गोद में उसके खड़े खूंटे पर बैठ गयी। और खुद ऊपर नीचे कर के , हम दोनों की चुदाई देख के कुछ देर में ही सके दोस्त का खड़ा हो गया।
सामू के झड़ने के बाद फिर मुझे निहुरा के , ... और मैंने थोड़ी देर में सामू का अपने मुंह में लेलिया। सामू मेरे मुंह में झड़ा और भगेलू मेरी चूत में। "
वो अपनी भाभी का मुंह देख रहे थे , एक साथ दो मर्दों के साथ खुल के ताबड़तोड़ ,...
पर जेठानी का ध्यान मेरी ओर था , बोलीं ,
" जानती हो वो भगेलू , अभी मैं कुछ दिन पहले मायके गयी तो मिला था। अब तो बड़ा आदमी हो गया है , उस दिन मैंने टॉप और स्कर्ट तो पहन लिए पर ब्रा और चड्ढी भगेलू ने रख ली थी। मुझसे बोला की कल सेंटर में आना तेरी एक चीज मेरे पास है। "
" आप गयी क्या " मुझसे रहा नहीं गया।
"कहाँ ,अरे मन तो मेरा बहुत कर रहा था, पर ,... उसी दिन तेरे जेठ जी आ गए ,सासु माँ की तबियत कुछ ,... तो बस थोड़ी देर बाद मुझे चलना पड़ा। " उन्होंने ठंडी सांस ले कर कहा।
यही तो मैं चाहती थी ,रिकार्डिंग में जेठानी की आवाज में सब डिटेल्स और नाम।
" लेकिन दीदी आपकी तो खूब गाड़ी चल निकली रोज उस सामू के साथ ,.. "
जेठानी की ठंडी साँसे जारी थी।
" नहीं यार " तंज हो के बोलीं।
Kheto or zadiyo me aaj bhi jethani ji ke nishan mojud heगन्ने के खेत में खुलमखुला
मेरी बात सुन के मम्मी मुस्करा के मुझसे बोली,
" तू भी न , अच्छी तो है साइकिल, रोज तो चढ़ती है तू , कभी कभार देर सबेर हो जाती है,... "
और सामू को उन्होंने कोई और काम पकड़ा दिया और उनकी जीप तैयार खड़ी थीं, ब्लाक के लिए चल दी.
लेकिन कुंवे पे वो हमारी कंहारिन भौजी थी न जो जो रोज मुझसे भी और समुआ से भी खुल्लम खुला मजाक करती थीं, मुस्करा के मुझे देख रही थीं,. और समझ रही थी, क्या चढ़ने चढाने में इत्ता टाइम लगा,... मम्मी के जाते ही मुझसे और समुआ से बोलीं,
" अरे हमरी ननद के ऊपर चढ़ने में काहें टाइम लेते हो, हाँ उतरने में चाहे जित्ता टाइम ले लो,... "
"भौजी, "
खीज के मैं बोली , और मुस्कराती खिलखिलाती अपने कमरे में ऊपर की मंजिल पर वहां गुलबिया थी ही, पहला काम उसने किया मेरे बैग से मेरी चड्ढी निकाली और मेरी गुलाबो में गच्चाक से दो ऊँगली एक साथ पेली,... भलभला के सामू की रबड़ी मलाई बाहर,...
" अब हो रही है हमरी ननद धीरे धीरे जवान,.... " हंस के वो बोली और अपनी ऊँगली में लगी मलाई कुछ मुझे चटा दी , कुछ खुद चाट गयी।
अगले दिन तो उस चपरासीन ने और, ...और सामू क तो और,.... उस दिन बाथरूम में बड़का ताला लटका था, सामू भी उस से बतिया रहा था, एक दो बार मैं बोली तो घुडुक दिया, कौन जल्दी हो,.... और जब सब लड़कियां चली गयीं , टीचर भी, उस चपरासीन ने स्कूल में ताला भी लगा दिया, तो वो मुझसे बोली,....
" चल मूत, पहले आपन चड्ढी निकाल के हमके दा "
उसकी बात तो मैं टाल भी जाती लेकिन जब सामू ने भी आँख से इशारा किया, तो मेरे पास क्या रास्ता था,... बस चड्ढी उसे दी, और बैठ गयी नाली पे,....
" हे ऐसी जायेगी, .. गीला गीला कुल साईकिल पे लगेगा, अरे आपन चड्डी से पोंछ ला,... "
वो बोली और चड्ढी मुझे दे दी , बात मुझे भी उसकी सही लगी जाते समय तो वैसे भी बिना चड्ढी के ही साइकल पे जाती जब डंडा वहां रगड़ता था तो बड़ा मजा आता था,.. पर उसके बाद , उसने मुझसे वो गीली भीगी चड्ढी, लेकर ये कह के अरे तोहरे गाल पर कुछ लगा है, उसी गीली चड्ढी से मेरे मुंह पे,.. "
सामू खूब हंस रहा था,... मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन सामू की हंसी देख के गायब हो गया , और उस दिन सामू ने ऐसे जबरद्स्त चोदा,... अमराई में चौकीदार की कोठरी में, चौकीदार था वहीँ, जब हम दोनों पहुंचे लेकिन सामू ने उसे फुटा दिया।
जेठानी जी के किस्से चालू थे , उनके देवर ने वाइन का एक घूँट और पिलाया और जेठानी जी ने उनके और सामू के किस्से अध्याय और जोड़ा,...
" मम्मी ने एक दिन सामू को बजार के लिए बोला, पास ही में हफ्ते में एक दिन, शुक्रवार को बाजार लगती थी, वहीँ से कुछ लाना था और किसी से कुछ पता करना था, मन तो मेरा भी करता था बजार का, लेकिन उस दिन स्कूल होता था, पर सामू बोला की मुझे पहले घर छोड़ के बाजार जाने में दुकाने बंद हो जाएंगी,... मैं जानती थी सामू की चलाकी,.... बस मम्मी ने वही कह दिया जो वो चाहता था , यानी स्कूल से मुझे लेके बाजार, फिर घर,...
और मारे ख़ुशी के मैं स्कूल गयी ही नहीं, बस मैंने सामू को चढ़ा दिया,. बहुत दिन हो गया गन्ने के खेत में गन्ना खाये, वो भी जानता था की मुझे किस गन्ने का मन कर रहा है ,...
लेकिन बदमास नंबर एक, उसने देखा की हमारे गाँव की ही कुछ औरतें लड़कियां घास छील रही थीं, सब मुझे जानती थीं, और मैं भी उन्हें बस उन्ही के सामने, मुझे गन्ने के खेत में, एक बल्कि बोली भी,... की
अरे बबुनी, गन्ने क खेतवा में कहाँ जात हो,
तो वो बोला ' अरे आज इसको भी गन्ना खिलाने ले जा रहा हूँ, मोटका गन्ना,... "
और सब खिलखिला के हंस पड़ीं,... मैंने उसे मना भी किया पर जहाँ वो सब घास छील रही थीं, बस उसी के बगल में ही गन्ने के खेत में, उन सब की हंसी मजाक सब सुनाई दे रहा था तो उन सबों को मेरी चीख पुकार भी सुनाई दे रही होगी, बल्कि जैसेमैंने गुलबिया की चुदाई देखी थी, उस से तो ये सब बहुत नजदीक थी, जरूर देखी होंगी,...
मैंने सामूआ को बोला भी लेकिन जब चोदने चुदवाने क गर्मी चढ़ती है तो कुछ पता चलता है क्या, ... और जानती हो क्या सबसे ज्यादा गड़बड़ हुयी,
उन्होंने मुझसे हुँकारी भरवाई, और मैंने भर भी दी , माइक बंद कर के, और पूछा भी,...
"क्या हुआ दी "
" अरे उ हमार कहारिन भौजी जो कूंवा पे पानी भरने वाली, खूब हमको सामू को रोज छेड़ती थीं, जैसे हम लोग गन्ने के खेत से बाहर निकले वो मिल गयीं, कोई एकदमै बेवकूफ होता तो भी समझ जाता की मैं का करवा के आ रही हूँ , मेरी स्कूल की स्कर्ट पे खेत क कुल मट्टी लगी थी, टांग छितरा के चल रही थी, और ऊपर से , उन्ही के सामने, वीर्य का एक बड़ा सा टुकड़ा मेरी बिलिया से सरक के जांघ से फिसलता,... फिर सबेरे उन्ही के सामने मम्मी से स्कूल के लिए बोल के, और अबहीं कोई स्कूल से छुट्टी क टाइम भी नहीं हुआ था,... तो इंहा गन्ने के खेत में,...
लेकिन उ हमको खाली मजाक की निगाह से देखी, फिर समुआ से बोली,...
" अकेले अकेले कच्ची अमिया क मजा ले रहे हो "
" अरे तुंहु ले ला न भौजी, तोहरो त ननद हौ" समुआ बोला, और मेरी स्कूल की टॉप उठा के,... ब्रा मैंने पहन नहीं रखी थी, और छोटे छोटे उभारों पर समुआ के ताजे काटे गाये दांतों के निशान,... "
" अरे तोता त बहुत कस कस के ठोर मरले हौ " कहारिन भौजी हमको चिढ़ाती बोलीं, और मैं सामू के डंडे मेरा मतलब साइकिल के डंडे पर,... लेकिन मैं कुछ बोलती , समुआ खुदे बोल दिया,
' अरे या तो चोदाय ला या लजाय ला '
मुझे भी लगा की बात तो वो सही कह रहा था, फिर समुआ ने सबके किस्से सुनाये, वो जउन कहारिन भौजी, उनको तो जब बियाह के आयी थीं दो चार महीने के अंदर ही, ऐन होली के दिन, भांग पिआय के पटक पटक के चोदा,मरद तो उनका पंजाब गया था कमाने , और यहाँ तक की उनकी एक कुँवार ननद थी अरे हमरे उमर की, भौजी खुदे ओके पटाय के, पटक के समुआ को उसके ऊपर , अपने सामने चढ़ाई थीं, ... और जउने दिन गौना था उनकी ननद का उस दिन तो खुदे समुआ से बोलीं , आज तो एका एतना चोदो, एतना चोदो, छिनार क गाभिन कर के भेजब ओकरी ससुराली, ... और सच में ठीक नौ महीने बाद, आधी से ज्यादा काम वाली औरतों लड़कियों पर चढ़ चुका था, तभी तो वो सब उसे गाँव का सांड़ कहती थीं,...
मैं और ये जेठानी जी की बात सुन रहे थे , पर ये बाजार का किस्सा सुनने के लिए बेताब थे, तो उन्होंने पन्ना पलट दिया और फ़ास्ट फॉरवर्ड करते बोले ,
" भाभी बजार वाला किस्सा बताइए "
Apne time ki jilla top thi jethani ji.जुगनू, ग्वाला,...जेठानी का नया यार
" जुगनू वही न जो गुलबिया का यार था ,.. " मैंने फिर फास्ट पेडल करने की कोशिश की।
" हाँ वही जिसे मैंने गुलबिया के ऊपर चढ़े गन्ने के खेत में देखा था। वही २१- २२ साल का जवान था एकदम। " वो बोली ,फिर बताया
" हे दूध पियेगा इसके , रोज तो तू इसे दूध पिलाता है आज तू पी ले। "
गुलबिया ने पीछे से मुझे दबोच लिया था गुलबिया की बायीं कलाई में मेरे दोनों हाथ फंसे बंधे। अपने दाएं हाथ से फ्राक के ऊपर से मेरे कबूतरों को सहलाती ,दबाती ,जुगनू को ललचाती वो बोली।
" बिचारा जुगनू शर्मा रहा था। लेकिन गुलबिया भी न उसे छेड़ते बोली ,
" झूठ मत बोल रोज चुपके चुपके इसकी कच्ची अमिया देखता है न ,चल आज घर में सिर्फ मैं हूँ शाम तक , इससे कोई शर्म नहीं है "
और गुलबिया ने मेरी फ्राक ऊपर कर के , ब्रा रात में तो मैं पहनती नहीं थी तो ,सीधे मेरे उभार , और गुलबिया क्या कोई मरद दबाएगा जिस तरह दबा मसल रही थी मेरे खुले चूजे।
जुगनू का खूंटा पाजामे में खड़ा हो गया था।
" अरे यार ये मुफ्त में नहीं पिलाएगी , दूध के बदले में तेरी मलाई घोंटेंगी। ले पकड़ " और जबरन जुगनू के हाथ में मेरा जुबना पकड़ा दिए।
और उसके पाजामे का नाडा ख़ोल दिया, एक दम तना खूंटा। मेरा तो उसी समय मन करने लगा।
" तो दीदी क्या सुबह सुबह उस क्या नाम बताया था आपने ,... "मैंने फिर से पूछा, नाम रिकार्ड कराना जरूरी था न उनकी आवाज में,...
" जुगनू , और क्या एकदम मस्त जवान पट्ठा ,... वहीँ बरामदे में एक पलंग पड़ी थी उसी पर। कुछ देर तक तो गुलबिया वही रही और दूध लेकर फिर किचेन मीन चली गयी औटाने।
असल में गुलबिया को मुझसे ज्या,दा जुगनू का डर था, खड़ा तो मेरी छोटी छोटी चूँची देखकर उसका हो गया था, पर बाद में मेरी समझ में आया, गुलबिया के दिमाग में क्या चल रहा था,... जुगनू उसको तो चोदता था और जबरदस्त चोदता था लेकिन मेरी बात और थी, मैं बबुआन क बिटिया, अभिन हाईस्कूल में गयी थी,... और मम्मी का इतना रोबदाब, कहीं मैं शिकायत कर दूँ,... या कोई और चुगली लगा दे,... समुआ की बात और थी,... वो वैसे ही गाँव का सांड़ था,... मम्मी का भी मुंहलगा,... फिर मम्मी ने खुद उससे कहा था , मुझे स्कूल छोड़ दूँ , और पहल भी मैंने की थी,...
जेठानी जी ने विस्तार से समझाया
मैं कान लगा के बात सुन रही थी , रिकार्डिंग भी चल रही थी , उनके देवर भी अपनी भाभी के टीनेज के किस्से, सांस लेकर जेठानी ने बात आगे बढ़ाई
' पर गुलबिया, मेरी असल भौजी, उसे मालूम था मेरी गुलाबो में कित्ती जबरदस्त आग लगी थी,... और इधर उधर और किसी से तो मैं कह भी नहीं सकती थी, ... और जुगनू उस का पक्का यार था, वो भी उसका पक्का यार था और उससे भी बड़ी बात उसे मालूम था की सामू से चुद चुद के , तो किसी छोटे मोटे से तो मेरी ,... जुगनू का समुआ से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं था फिर सबसे बड़ी बात मौका, आज देर रात तक घर में कोई नहीं था, दरवाजा खुद गुलबिया ने बंद किया,.. तो गुलबिया ने कुहनी से मार के इशारा किया, तो इतना तो मैं भी समझ गयी थी,... की पहल मुझे ही करनी पड़ेगी, अगर ये ऐसे ही झिझकता रहा , तो इतना मस्त मोटा खूंटा मेरे हाथ से निकल जाएगा, ...
बस पहले मैंने तो पकड़ा, फिर सहलाया और धीरे धीरे मुठियाना शुरू कर दिया,... "
मुझसे नहीं रहा गया, मैं पूछ बैठी और गुलबिया,
जेठानी खिलखिलाने लगीं, .
अरे वो भी वहीँ , उसके बिना तो जुगनुआ ऐसा घबड़ा रहा था ,... गुलबिया ने पहले तो मेरी फ्राक पूरी खींच के फेंक दी,...
फिर उसका हाथ मेरे टिकोरों पर, और हड़काया अपने यार को
" अब्बे स्साले दबा कस के, देख आज तूने मेरी ननद को न चोदा न तो ननद मिलेगी न मैं, इसकी असल भौजाई, बस मुट्ठ मारना या अपनी महतारी क भोंसड़ा चोदना। "
इतनी धमकी बहुत थी, पलंग पर मैं नीचे वो ऊपर, ...
कित्ती बार तो मैं चुद चुकी थी गन्ने के खेत में, अरहरिया में , सरपत के पीछे, अमराई में , चौकीदार की कोठरिया में , बजार में गुड़ की बोरी पे,...
लेकिन पहली बार अपने घर के अंदर दिन दहाड़े चुद रही थी, खटिया पे,... अपने ग्वाले से,... और साथ में गुलबिया उसे ललकार रही थी,
" अरे इसकी गाय, भैस तो रोज दुहता है आज वैसे ही इसकी चूँची भी,... "
और जुगनू ने क्या जबरदस्त मेरी चूँची मसली, दर्द के मारे आँख में पानी आ गया और मजे से मेरी चूत पानी छोड़ने लगी,... जब मेरी दोनों टाँगे जुगनू के कंधे पे सेट हो गयीं और वो हचक हचक के धक्के मारने लगा तभी गुलबिया गई दूध लेकर औटाने।
आधे घंटे बाद वो लौटी तो तब भी हम लोगों की कुश्ती चल रही थी। जुगनू जम के धक्के लगा रहा था। उस के सामने ही वो झड़ा।
लेकिन उसे अभी एक दो घर और भैस दुहने जाना था। पर गुलबिया ने हुकुम सूना दिया ,कल से बिना नागा ये गाय दुही जायेगी समझ ले और जब खाली हो जाना तो आना। बारह बजे के करीब जुगनू फिर आया ,और उस बार मेरे ऊपर वाले कमरे में।
और उस बार क्या रगड़ाई की उसने मेरी,... पोज बदल के, निहुरा के तो समूआ भी जरूर चोदता था, लेकिन इसने अपनी गोद में बिठा के,
पलंग में लिटा के,... अपने कमरे में अपने बिस्तर पे चुदने का मजा ही कुछ और है, और ज्यादातर टाइम गुलबिया भी वहीँ, लेकिन बस वो देखती रहती,...
अगले दिन से सुबह दूध रख के,जुगनू रोज बिना बिना नागा मेरा दूध ,... बहुत भिन्सारे आता था, मम्मी तो सोती रहती थीं , कभी गुलबिया दरवाजा खोलती कभी मैं,... और बस वो जबरदस्त "
जेठानी जी ने बताया की हाईस्कूल के जमाने में उनकी गुडमार्निंग कैसे होती थी।
" भौजी हो तो ऐसी "मैंने भी गुलबिया की तारीफ़ की।
"एकदम और कुछ दिन बाद संदीप , मैं उनकी ममेरी बहन , ... "
"जैसे ये और गुड्डी , है न दीदी। "मुझे मौक़ा मिल गया।
और बात बदलते हुए खिलखिला के इनकी भाभी ने एक बात और जोड़ी,
" अरे बताये तो थे की गुलबिया बोली थी, दसवें में हो दसवां पास करने के पहले कम से कम दस मरद चढ़ाउंगी तोहरे ऊपर,... और मैं बोली भौजी तोहरे मुंह में घी गुड़, तोहार ननद हूँ, मैं पीछे ना हटूंगी बाकी आगे तोहरे हाथ में "
" तो आपकी भौजी का आसिरबाद सही हुआ की नहीं, ... " मैंने पूछ लिया।
" अरे भौजी का आशिर्बाद कभी ननद के लिए गलत होता है,... बकी, दस नहीं बारह , दर्जन पूर होगया था दसवें के पास होते होते। "
जेठानी जी ने बिना लाग लपेट के अपने ऊपर चढ़ने वालों संख्या गिनवा दी।