बात आपने एकदम सही कही, आप काफी दिन बाद आये इस तरफ,
लेकिन आप का क्या दोष एक तो बादल, ऊपर से आवारा और फिर सावन का मौसम और ऊपर से दो महीने का सावन था इस बार,.... पहले आप ६ जुलाई को आये और फिर ७ जुलाई को एक कमेंट पर आपने कमेंट भी दिया सुझाव भी और एक पंथ दो काज, तो कमेंट मेरे बारे में भी था राजी जी के बारे में भी,... लेकिन मेरी पोस्ट पर ही आपने हम दोनों को सलाह दे दी,
"इंडेक्स कहानी के शुरू में होना ही चाहिए . इससे नये पाठकों को कहानी तक पहुँच और ज्यादा आसान हो जाती हे और पढने में समय कम लगता हे , कमेन्ट भी कुछ ही काम के होते हें , वेसे कोमल जी ने मेरी सलाह भी मानी हे . कहानी के बीच की लाइनों का स्पेस कम करने के लिये , एक बात और कहना चाहता हूँ की फोटो या इमेज कहानी पढने में बाधा नही बनना चाहिए आपकी कहानी खुद ही पढ़ते समय पाठको के दिमाग में एक इमेज बनाते हुए चलती हे . उसे विदेशियों के फोटो या gif की जरूरत नही लगती ,
पर राजी जी ध्यान दें आपकी कहानी की लाइनों के बीच में इमेज खटकती हें इमेज अगर आप डालना ही चाहते हें तो वाक्य या पेराग्राफ कहने के बाद ही हो"
आपको लगा होगा राजी जी आती ही रहती हैं इधर पढ़ लेंगी सुधर जाएंगी।
उस समय यह कहानी पेज नंबर ८७० पर थी,
सच बताऊँ, मैं रोज रोज इन्तजार करती थी जैसे लगान में किसान लोग इन्तजार कर रहे थे न बस उसी तरह बादल के लिए,
कितने तरह के बादल देखे मैंने, मैं सोच रही थी इंडेक्स भी बन गया है, लाइनों के बीच का स्पेस भी कम हो गया है तो बस शायद आपके कमेंट पढ़ने का मौका मिलेगा,...
और मैंने इस बार फिर से कालिदास का पूर्व मेघ भी पढ़ डाला,...
“धूमज्योति: सलिलमरुतां संन्निपात: क्व मेघ:
संदेशार्था: क्व पटुकरणै: प्राणिभि: प्रापणीया:.
इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन् गुह्यकस्तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनेषु..”
-पूर्वमेघ, 5
आकाश में तरह-तरह के रूप धारण करना, पिछले भाग से झुक कर नदियों का जलपान करना, बरसने के बाद द्रुत गति से भागना, दयालु स्वभाव के कारण कृषक जनों के प्रति आद्र होना, संतप्तों को राहत प्रदान करना इत्यादि मेघ की विशेषताओं का हवाला देते हुए कालिदास ने उन मौसम वैज्ञानिकों के सामने तर्क पेश किए हैं कि उनका मेघ चैतन्य पुरुष के सभी गुणों से सम्पन्न है. पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह मेघ जहां भी जाता है मार्गपथ में कृषिफल की अपार संभावनाएं उससे जुड़ी हुई हैं.
तो बादल के जिम्मे इतने काम हों तो एक जगह कहाँ वो बार बार आ पायेगा,...
उमंग से ग्राम-बधूटियाँ प्रेम से गीले अपने नेत्रों में उसे समा लेती हैं. और मेघ भी प्रेम में दिवाना होते हुए माल क्षेत्र के ऊपर इस प्रकार उमड़- घुमड़ कर बरसता है कि हल से तत्काल खुरची हुई धरती गन्धवती हो उठती है. परोपकारी मेघ तब भी ठहरता नहीं है. कुछ देर बाद पुनः लघुगति से: उत्तर की ओर चल पड़ता है-
“त्वाय्यायत्तं कृषिफलमिति भ्रूविलासानभिज्ञै:
प्रीतिस्निग्धैरर्जनपदवधूलोचनै: पीयमान:.
सद्य: सीरोत्कषणसुरभि क्षेत्रमारुह्य मालं
किंचित्प:श्चा्द् व्रज लघुगतिर्भूय एवोत्तरेण
तो करीब १०० पेज के बाद , सवा दो महीने गुजरने पर आप ने इधर भी एक नज़र डाली इसके लिए कोटिश आभार, अभी मानसून का मौसम खतम कहाँ हुआ,... मैं बेकार में निराश हो रही थी,
कई बार जीवन की आपाधापी के बीच कई मित्र न कहानी पढ़ पाते हैं न कमेंट कर पाते हैं तो वह बार समझ में आती है,
जुलाई में ही ( सात जुलाई के बाद जब इंडेक्स बन गया था ) यहाँ आने के बाद अपने ८३ कमेंट पोस्ट किये २४ दिनों ( इस कहानी पर कमेंट के बाद ) तीन कमेंट से भी प्रतीदिन ज्यादा,
सितंबर के चौदह दिनों में भी ४१ कमेंट ( जिसमें मेरी कहानी पर किया गया एक कमेंट भी शामिल था )
तो अगर इस रफ़्तार से देखा जाये तो करीब १०० पेज के अंतर पर मेरी कहानी उम्मीद है १००० पृष्ठ पूरे कर चुकेगी।
इंडेक्स पाठकों की सुविधा के लिए होते हैं लेकिन अगर वो दो तीन महीने में एक बार आये तो इंडेकस, हाइपर लिंक आप कुछ भी दें
इसलिए जो आपने इंडेक्स में सुधार बताया है वो मैं नहीं करने वाली,... कयोंकि उतनी मेहनत में मैं एक दो पार्ट पोस्ट कर लुंगी।
और अगर पाठक को कहानी सचमुच में पढ़नी होगी तो अगर दो सौ अपडेट में २ % अपडेट में उसे दो चार पन्ने पलटने होंगे तो वो पलट लेगा और अभी मेरा कोई अपडेट उस पन्ने के आगे नहीं बढ़ता
हाँ बादल जी आपसे अनुरोध है की अगली बार जब आएं तो जो भी पार्ट अपने पढ़ा हो जो वो कैसा लगा, अच्छा बुरा, बहुत बुरा अगर ये बताएं तो शायद मैं ज्यादा सुधार कर पाऊँगी और अपनी कहानी को इस लायक बना पाउंगी की आप आते जाते इधर भी कभी कभी नजर डाल लें /