Premkumar65
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Komal ji aapki lekhin ka jab nahin.हमारी तिकड़ी
हम दोनों ननद भाभी मिल के उन्हें तंग कर रहे थे,
बारिश भी हम लोगों का साथ दे रही थी, गुड्डी ने खिड़कियां खोल दी थीं, बारिश की फुहार हवा जब भी तेज चलती थी, बिस्तर तक आ के हम लोगों को भिगो दे रही थी,
गुड्डी बड़ी शैतान, ... वो खिड़की के पास खड़ी हो गयी और अंजुली भर बारिश का पानी भर,
के शरारत से बूँद बूँद उनके आधे सोये आधे जागे खूंटे पे, धीरे धीरे टपका रही थी जैसे बाहर पेड़ों की पत्तियों से बूंदे धीरे धीरे चू रही थीं, बारिश ने उस टीनेजर के खुश खुश चेहरे को भी गीला कर दिया, बस अपने गोरे गुलाबी गालों से अपने भैया के तन्नाते खूंटे पे हलके हलके रगड़ना शुरू कर दिया, कौन होता जिसका नहीं फनफनाता, और उनका तो रात भर खड़ा रहने वाला,
वो सोच रहे थे उनके बचपन का माल अब मुंह खोल के ले लेगा, लेकिन मैंने आँख के इशारे से मना कर दिया, मेरी ननद अब एकदम भौजाई की हर बात हर इशारे पे चलने वाली, वो भी आज तड़पाने के मूड में थी, मुंह उसने कस के बंद कर लिया और बंद होंठों को तगड़े तने अब एकदम खड़े खूंटे पर हलके हलके रगड़ना शुरू कर दिया और एकदम बेस पर,... मैंने उनके दोनों रसगुल्लों की ओर इशारा किया और इनकी छिनार बहिनिया ने गप्प से घोंट लिया और लगी चूसने, ...
मैं भी अब मैदान में आगयी, रसगुल्ले मेरे ननद के हवाले और गन्ना मेरे हिस्से में हम ननद भाभी मिल के चूस चाट रही थीं,
मैंने होंठ के जोर से उनका सुपाड़ा खोल दिया था, एकदम फूला बौराया, मैंने इशारे से उनकी बहिनिया को बुलाया और अब हम दोनों जीभ निकाल के सिर्फ जीभ से सुपाड़ा चाट रहे थे, दायां उसके हिस्से में बायां मेरे हिस्से में , सपड़ सपड़, जब बिजली चमकती तो वो हम दोनों का चेहरा देखते और उनकी हालत और खराब,
अब बेचारे बार बार कभी अपनी बहन से कभी मुझसे कहते, कुछ कर न , कुछ कर न ,
मैं और गुड्डी दोनों समझ रहे थे उनका मन क्या कर रहा है, बहन का मुंह चोद चुके थे, चूँची चोद चुके थे पर चूत में ताला लगा था, असुविधा के लिए खेद है , सर्विस टेम्परेरली डाउन का,...
और मन उनका चुनमुनिया का ही कर रहा था, गुड्डी मुझे बारे बार इशारे कर रहे थी की मैं ही चढ़ जाऊं , कल रात भी तो हम दोनों ने मिल के उन्हें चोदा था,... और अब उनकी आँख भी मुझसे यही कह रहा था, बिन बोले मैंने गुड्डी से दर्जनों शर्ते मनवा ली,... और धीरे धीरे कर के मैं उनके बित्ते भर के पागल बांस के ऊपर चढ़ गयी,...
बाहर बारिश बहुत तेज हो गयी थी गीली हवा के साथ अब भीगी भीगी बूंदे भी हम तीनो की देह पर,...
मैंने लेकिन पूरा नहीं घोंटा, सिर्फ आधा और उन्हें आँख के इशारे से बरज दिया की वो नीचे से धक्के न मारे,... आधा खूंटा मेरे अंदर धंसा, आधा बाहर, चूत सिकोड कर मैं उसे निचोड़ रही थी, कभी ढीली कभी एकदम टाइट,... गुड्डी चुपचाप मेरी बदमाशी देख रही थी, सीख रही थी, उसे खींच के मैं बगल में ले आयी,
लड़की समझदार थी, इनके मायके वालियां सभी इस मामले में तेज हैं,... बस जीभ निकाल के वो इनके खूंटे के बेस से जितना हिस्सा बाहर था, उसे चाट रही थी,... और फिर चाटते चाटते उसकी जीभ की टिप मेरी फांको तक, फिर बिंदी की तरह योनि के ऊपर लगी क्लिट पर, जैसे जैसे बाहर पड़ रही बूंदो की रफ़्तार बढ़ रही थी उसी तरह नन्द की जीभ भी, थोड़ी देर में ही उनकी हालत एकदम खराब, ...
मैंने इशारे से उसे हटा दिया और अब खुद तेज रफ़्तार से उन्हें चोदने लगी, पर गुड्डी अभी भी, उनके सीने पर अपने दोनों जोबन रगड़ रही थी,... हाँ उसके भाई को कुछ करने की इजाजत नहीं थी और क्या चाहिए उन्हें एक टीनेजर इंटर वाली एक तरुणी, एक साथ
पर उनसे नहीं रहा गया, और अब मैं नीचे वो ऊपर, मेरी दोनों टाँगे फैली उनकी कंधे पे और एकदम तूफानी धक्के, बाहर चल रहा तूफ़ान अब मेरी प्रेम गली में घुस गया था और उसको और तेज हवा दे रही थी मेरी ननद उनकी बहन, उनके पीछे खड़ी हो के अपनी कच्ची अमिया उनकी पीठ में रगड़ती अपने नाख़ून से उनके मेल टिट्स को खरोंचती , कान में कभी जीभ कभी दांत से हलके से निबल करती
आज रोज से भी तेज वो बिना रुके धक्के लगा रहे थे और मैं भी साथ दे रही थी,...
कुछ देर में जब वो झड़ने लगे तो मैंने उन्हें कस के भींच लिया , और सब कुछ अपनी बिलिया में, एक हाथ से उन्होंने गुड्डी को भी भींच लिया था, थोड़ी देर तक हम तीनो ऐसे ही पड़े रहे,... और जब वो हटे
तो मैंने अपनी खुली जांघों के बीच अपनी ननद को खींच लिया, उसके भैया की ही तो मलाई थी,... बड़ी चालाक वो,... पहले जो जांघ पर बह रही मलाई उसने चाटी, कुप्पी वाले कहाँ भागी जा रही थी,... फिर फांको पर लगी,...
हम सब चुप थे पर इनका फोन घनघनाया ,
मैं पहचान गयी इनके अलार्म की आवाज
……………………………………
और उसके तुरंत बाद इनके आफिस का फोन ,... इनके आफिस से इनकी ऑफिसियल कार चल दी थी , बस पन्दरह बीस मिनट में पहुँचने वाली थी। मैं भूल ही गयी थी इनकी कांफ्रेंस काल , साढ़े पांच बजे तीन चार देशों के बीच वाली ,
घंटे पौन घंटे पहिले इन्हे आफिस पंहुचना होता था , थोड़ी बहुत तैयारी , पेपर्स , और साढ़े चार बज रहे थे।
थोड़ी देर में तैयार होकर ये आफिस चले गए और मैं और मेरी ननद ,
न मेरी देह की प्यास बुझी थी न उसकी।