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Adultery दूधवाला और मेरी पत्नी

Deeply

सवित्रा
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दूधवाला और मेरी पत्नी भाग -11



प्रवीण यार मै बिसात बिछा रहा हूँ आज रमेश को एक बाजी हरा कर रहूँगा , यार तु जा ऊठा कर पहना दे पेटीकोट भाभी है तेरी

रमेश कॉपते कदमो से कोमल की तरफ बढा

वो करीब आ गया

रमेश भाभी आप बहुत खुबसुरत हो

कोमल हाये देवर जी आप बडे बेशर्म है भाभी नंगी खड़ी पेटीकोट उठाने की बात कर रही है देवर को शरारत सूझ रही है

तभी रमेश नीचे बैठा उसने कोमल के दोनों चुतड़ो पर हाथ रख दिये

अनजान मर्द के हाथो का अपने नंगे चुतड़ो पर एहसास ने कोमल को रोया रोयाँ खड़ा कर दिया वो सिहर सी गई शायद उसकी बुर ने भी पानी छोड दिया था
रमेश भईया भाभी के चुतड़ बडे मस्त है

प्रवीण वो तो है ही अरे पकड़े ही है तो फैला कर देख इसकी टाईट गांड का छेद इससे भी जादा मस्त है

तभी रमेश ने दोनो चुतड़ो को फैलाया कसम से रमेश के शरीर पर बिजलीया गिर गई, चुतड़ो के बीच भूरा गांड का छेद वास्तव मे कहर ढा रहा था


20210619-090016
रमेश जैसे खो सा गया उस छेद मे, रमेश के लंड ने भी यह दृश्य देख पानी छोड दिया था जिसे उसने अपनी भाभी के पैरो पर गिरा दिया कोमल को यह गर्म पानी का एहसास होते ही समझ गई हो ना हो रमेश ने पानी छोड दिया है जिसकी धार ने उसके पैर भीगा दिये

कोमल छी कितने बेशर्म हो तुम लोग हाये अब छोड़ो मुझे पेटीकोट पकडाओ
रमेश जैसे उसे किसे ने जगा दिया हो उसे होश आया तो उसने पेटीकोट चुतड़ो के उपर कर दिया उसे कोमल ने फिर पहन नहाने बैठ गई

रमेश प्रवीण के सामने शतरंज की बिसात पर बैठ गया था लंड अभी अभी झडा था तो अब वो बैठ चुका था अभी दोनो ने एक दो चाल चली होगी
कोमल सुनो जी मेरी पीठ पर साबुन लगा दो

प्रवीण यार रमेश तुमने बडी गहरी चाल चल दी है मेरी रानी नही बचने वाली या तो तुम्हारा घोडा या हाथी आज मेरी रानी की मार के रहेगे

रमेश रमेश ने अपनी लंड को सहलाते हुये भैया आज यह घोडा आपकी रानी की सवारी करेगा ही

कोमल अरे सुनते हो मेरी पीठ पर साबुन लगा दो तब खेलो

प्रवीण यार चाल तो तेरी गहरी है लगता तो है मेरी रानी अब मारी जायेगी देखता हूँ बच जाये तो अच्छी बात है बस थोड़ा वक्त दे, तब तक तु जरा अपनी भाभी की मदद कर दे
 

malikarman

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दूधवाला और मेरी पत्नी भाग -11



प्रवीण यार मै बिसात बिछा रहा हूँ आज रमेश को एक बाजी हरा कर रहूँगा , यार तु जा ऊठा कर पहना दे पेटीकोट भाभी है तेरी

रमेश कॉपते कदमो से कोमल की तरफ बढा

वो करीब आ गया

रमेश भाभी आप बहुत खुबसुरत हो

कोमल हाये देवर जी आप बडे बेशर्म है भाभी नंगी खड़ी पेटीकोट उठाने की बात कर रही है देवर को शरारत सूझ रही है

तभी रमेश नीचे बैठा उसने कोमल के दोनों चुतड़ो पर हाथ रख दिये

अनजान मर्द के हाथो का अपने नंगे चुतड़ो पर एहसास ने कोमल को रोया रोयाँ खड़ा कर दिया वो सिहर सी गई शायद उसकी बुर ने भी पानी छोड दिया था
रमेश भईया भाभी के चुतड़ बडे मस्त है

प्रवीण वो तो है ही अरे पकड़े ही है तो फैला कर देख इसकी टाईट गांड का छेद इससे भी जादा मस्त है

तभी रमेश ने दोनो चुतड़ो को फैलाया कसम से रमेश के शरीर पर बिजलीया गिर गई, चुतड़ो के बीच भूरा गांड का छेद वास्तव मे कहर ढा रहा था


20210619-090016
रमेश जैसे खो सा गया उस छेद मे, रमेश के लंड ने भी यह दृश्य देख पानी छोड दिया था जिसे उसने अपनी भाभी के पैरो पर गिरा दिया कोमल को यह गर्म पानी का एहसास होते ही समझ गई हो ना हो रमेश ने पानी छोड दिया है जिसकी धार ने उसके पैर भीगा दिये

कोमल छी कितने बेशर्म हो तुम लोग हाये अब छोड़ो मुझे पेटीकोट पकडाओ
रमेश जैसे उसे किसे ने जगा दिया हो उसे होश आया तो उसने पेटीकोट चुतड़ो के उपर कर दिया उसे कोमल ने फिर पहन नहाने बैठ गई

रमेश प्रवीण के सामने शतरंज की बिसात पर बैठ गया था लंड अभी अभी झडा था तो अब वो बैठ चुका था अभी दोनो ने एक दो चाल चली होगी
कोमल सुनो जी मेरी पीठ पर साबुन लगा दो

प्रवीण यार रमेश तुमने बडी गहरी चाल चल दी है मेरी रानी नही बचने वाली या तो तुम्हारा घोडा या हाथी आज मेरी रानी की मार के रहेगे

रमेश रमेश ने अपनी लंड को सहलाते हुये भैया आज यह घोडा आपकी रानी की सवारी करेगा ही

कोमल अरे सुनते हो मेरी पीठ पर साबुन लगा दो तब खेलो

प्रवीण यार चाल तो तेरी गहरी है लगता तो है मेरी रानी अब मारी जायेगी देखता हूँ बच जाये तो अच्छी बात है बस थोड़ा वक्त दे, तब तक तु जरा अपनी भाभी की मदद कर दे
Maza aayega aage
 
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Deeply

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चले हम अब आपको थोड़ी देर प्रवीण के कस्बे या यो एक गांव कहे तो जादा अच्छा, तो आपको दमौरी गाँव ले चलते है
चाँद की दूधीया रौशनी में, दमौरी गाँव जगमगा रहा था। वैसे तो हर रात, दमौरी गाँव में इस वक्त सूना पन रहता था, लेकिन आज़ की रात, गाँव में लोगो की चहल-कदमी मची हुई थी...

क्या खास बात थी आज? वो खास बात ये थी की, आज दमौरी गाँव में हर साल आज़ के ही दीन लगने वाला प्रीय मेला, लगा हुआ था।

रात में लगा हुआ ये मेला, बहुत ही सुदर दृश्य और लुभावना लग रहा था| गाँव के लोग आज के दीन खुब खुशीया मनाते थे।

और इसी गाँव की रहने वाली एक 1९ वर्ष की लड़की, अंगूरी, आज मेले में जाने के लीये काफी उत्साहीत थी। हरे रंग की घाघरे और चोली में, आज अंगूरी का नीखार उच्च स्तर पर था। चोली मे पूरी तरह से कसी उसकी सुड़ौल चूँचीया, उस चोली की शोभा में चार चाँद लगा रहे थे।

एक सुदर सी लड़की, आज अपने आप को आईने में देखती हुई खुद का श्रृंगार कर रही थी की तभी...

—‟अरे...रामा, अभी तक तू तैयार नही हुई! इस लड़की को तो तैयार होने के लीये सारा दीन भी कम पड़ जाता है। जल्दी से तैयार हो-कर आँगन में आ जाना, सब वहीं पर बैठी तेरा इंतजार कर रहीं है।”

ये आवाज़ सुनते हुए भी, अंगूरी की नज़र आईने पर से ना हटी। और उस औरत की बात सुनते हुए बोली-

अंगूरी—; —‟ठीक है माँ। तू चल! मै आ रही हूँ, बस थोड़ी देर और।”

कुछ देर के बाद, जब अंगूरी जब आँगन में पहुंचती है, तो देखती है की, आँगन में कफी औरते और लड़कीया खाट पर बैठी हसीं-हसारत कर रही थी। ये देख कर अंगूरी बोली...

अंगूरी—; —‟अब चल माँ...अब देर नही हो रही है?”

अंगूरी की बात सुनकर, उन औरतों में बैठी, एक औरत बोली-

—‟अच्छा...खुद, कीसी महारानी की तरह तैयार होने में इतना बख़त लगाती है! और उल्टा हमें कह रही है की, देर हो रही है...!”

अंगूरी—; —‟तू...तो ना ही बोले तो, अच्छा हैं...रधिया चाची! जैसे मुझे पता नही की, तू भी महारानी की तरह तैयार होने में कीतना बख़त लगाती है।”

उन दोनो की बात सुनते हुए, एक औरत बोली-

—‟अच्छा तूम दोनो चाची और बीटीया बाद में झगड़ा कर लेना...अब चल!”

ये कहकर, आँगन में बैठी सभी औरते खाट पर से उठ कर चलने लगती है की तभी एक लड़की भागते हुए आँगन में आती है...और बोली-

—‟रे अंगूरी, क्या कर रही है तू इतनी देर? कब से मै, बीट्टो, अन्नू, और रंजू तेरा नीम्मो के घर पर इंतजार कर रही है?”

अंगूरी—; —‟अच्छा गलती हो गयी...महारानी! अब चल जल्दी! अच्छा सुमन बुआ और पूनम मौसी भी है क्या?"

—‟हां...हां, तेरी प्यारी बुआ और मौसी भी है ! अब चल।”

उन दोनो की बाते सुनकर, रधिया हसंते हुए बोली-

रधिया—; —‟देख रही हो दीदी! कीतनी पगला गयी हैं ये लड़कीयां मेले में जाने के लिए...”

रधिया की बात सुनकर, अंगूरी की माँ बोली-

—‟अरे...बच्चीयां हैं! अब खुश नही होंगी तो क्या ससुराल में जा कर खुश होंगी?”

रधिया—; —‟अरे...काहे की बच्चीयां दीदी! घोड़ीयोँ की टोली है इनकी!”

❏❏❏

अब तक सब औरते, और लड़कीयाँ, गाँव के बीच रास्ते पर चल रहे थे। गाँव का कच्चा रास्ता आज़ सूनसान नही था। लोगों की चहल-कदमी नीरतंर बनी थी। कुछ बच्चो के हाथों में रंग-बीरगें गुब्बारे थे, तो कुछ बच्चो के हाथ में ख़ीलौने।

जो बच्चे काफी छोटे थे, वो कुछ नही तो, अपनी माँ की गोद में बैठ कर मुह में घुसाये पोंपा ही बजा रहे थे।

अंगूरी,उसकी माँ, चाची, सहेलीयों और कुछ गाँव की औरते के साथ मेले में पहुँची तो, मेले का रंग-बीरगां चमचमाता नज़ारा देख कर खुशी से झूम उठी! साथ ही साथ उसकी सहेलीयों का भी वही प्रतीक्रीया थी|

सब लोग मेले घूमने का लुफ्त उठाने लगे, जरुरत की सामान भी खरीद रहे थे! मेले की सज़ावट और सुदंरता तो सच में लुभावना था। मेले में चहल-कदमी करते वक्त रधिया की नज़र, एक ऐसे दुकान पर पड़ी की, उसके कदम वहीं रुक जाते है।

—‟क्या हुआ री...काहे रुक गई?”

रधीया—;ߞ‟अरे...दीदी! तनीक उ दुकान की तरफ़ तो देखो...!”

रधिया के बोलते ही, बाकी औरतो की नज़र उस दुकान की तरफ़ पलटी तो, देकखकर सन्न रह जाती है...!

—‟तू पगला गई क्या? इस उमर ये सब पहनेगी हरज़ाई?”

रधिया—;हाँ... कम्मो दीदी! पहेनुगीं भी, और पहनाउंगी भी।”

और ये कहकर रधिया हसने लगती है। रधिया के साथ खड़ी बाकी औरते भी रधिया की बात सुनकर हसने लगती है। उनको हसतां देख...कम्मो भी ना चाहते हुए मुस्कुरा पड़ती है।

कम्मो—‟तू नही मानेगी छीनाल! जरा पप्पू के बारे में तो सोंच! अगर कहीं उसको पता चल गया की, इस उमर में , उसकी माँ रंग-बीरंगी कच्छीयां पहनती है तो, क्या सोचेगा वो?—;

रधिया—‟हे भगवान! दीदी तुम तो ऐसे बोल रही हो, जैसे की मै सीर्फ कच्छी पहन कर ही घर में घूमने वाली हूं। जीसे देख कर मेरे बेटे को पता चला जायेगा की उसकी मां कच्छी पहनती है। तूम भी ना दीदी..! कुछ भी सोचती रहती हो। अब लल्ली से ही पूछ लो? इसका मरद बाज़ार से इसके लीये कच्छीया लाता रहता है, तो क्या ये पहनती नही है? क्या इसके घर में इसका छोरा नही है?”

कम्मो—‟अच्छा...अच्छा ठीक है। चल खरीद ले!”

रधिया, कम्मो और बाकी औरतो के साथ! कच्छी बेचने वाली दुकान पर आ कर, कच्छीयां और अगींया खरीदने लगती है। केवल कम्मो ही कुछ नही खरीद रही थी। ये देखकर वो दूकान वाली बोली-

—‟अरे बहीन...! तूम भी काहे नाही ले लेती, एक-दो कच्छीयां? तूम्हरे उपर तो कमाल लगेगीं ये कच्छीयां।”

ये सूनकर...रधिया ने कहा-

रधिया—‟बील्कुल ठीक कह रही हो तूम! पूरे गाँव-टोला में, कम्मो दीदी के जैसी कीसी की भी गांड नही है। गांड ही क्या...मेरी जेठानी की चूंचीया, मोटी जाँघे, कूल्हे ये सब को भगवान ने कीसी अलग ढांचे में ही बना कर भेजा है।”

दुकान वाली—‟बील्कुल ठीक कहती हो बहीन! देखो ना, अभी भी आस-पास खड़े मरदो की नज़र, इन पर ही कूद रही है। मै तो कहती हूँ की, एक - दो कच्छीयां खरीद ही लो, सुरक्षीत रहोगी दीदी! नही तो का पता कभी गलती से साड़ी उठ गयी तो...पूरा ख़जाना दीख जायेगा।

कम्मो—‟बात तो तू ठीक कह रही है। ठीक है दे...दे दो चार!”

कम्मो,रधिया,लल्ली और बाकी दो औरतों ने भुी, रंग-बीरंगी कच्छीयों की खरीदारी की...! सब लोग काफी रात तक मेले में घूमने का लूफ्त उठाते रहे और फीर घर पर हसीं-खुशी चले आते है....
 
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सुबह-सुबह अंगूरी उठ-कर अपनी सहेलीयों के साथ सौंच के लीये खेतों में नीकली थी।

(उसके साथ... नीम्मो, बीट्टो, अन्नू, रंजू, कज़री, उसकी बूआ सुमन और मौसी पुनम भी थी। इन सब में से पुनम और सुमन की उमर थोड़ी सी ज्यादा थी। दोनो की उमर २२ साल की थी। कज़री की उम्र २१ साल, अंगूरी,नीम्मो और बीट्टो की उमर २0 साल थी। अन्नू और रंजू की उमर 1९ साल की थी।

सुमन, कम्मो और रधिया की छोटी ननद थी। और पूनम कम्मो की छोटी बहन। कम्मो की माँ का देहातं तो पूनम के पैदा होते समय ही गया था। और दो साल पहले बीमारी के चलते, कम्मो के बापू का भी देहांत हो गया था। पूनम के अकेली होने की वज़ह से, कम्मो ने उसे अपने पास बूला लीया था। मायके की सारी ज़मीन-ज़ायदाद वहां के लाला को बेंच कर, कम्मो ने अपनी छोटी बहन पूनम की जीम्मेदारी अपने कंधो पर ले ली थी।

कम्मो की दो संतान थी। दोनो जुड़वा थे। एक अंगूरी, उसकी बेटी थी। तो दूसरा उसका बेटा बबलू था। उसका मरद सुखलाल, उससे ८ साल बड़ा था। जो अब ४९ साल का बूढ़ा हो गया था।

कम्मो, की उम्र का पता तो अभी भी नही लगता है। एक दम हीष्ट-पुष्ट और भरे बदन की गदरायी औरत थी। गाँव-टोले के सारे जवान, अधेड़ मर्दो का लंड कम्मो को चोदने के लीये टनटनाया रहता है। मगर कम्मो कीसी को चारा तक नही डालती।

कम्मो की देवरानी रधिया, ४0 साल की, मध्यम कद की एक कामुक औरत थी। हसीं-मज़ाक करना तो उसकी आदत थी। रधिया की दो संतान थी। उसकी बेटी बीट्टो २0 साल की और बेटा पप्पू १८ साल का था। रधिया का मरद छोटेलाल ४६ साल का आदमी था। रधिया अपने मरद को हमेशा ही अपने से दबा कर रखती थी। छोटेलाल भी मेहर-मता था। उसे भी रधिया की हर बात चुप-चाप सुनने की आदत पड़ गयी थी। जबान लड़ाता तो बेचारे को रधिया की बुर कई दीनो तक चोदने को नही मीलती थी...

सारी लड़कीयां खेंत में पहुंच कर, अपना-अपना लोटा नीचे रखते हुए, अपने-अपने सलवार का नाड़ा खोल कर सौंच के लीये बैठ जाती है।

नीम्मो—‟कल तो मेले में मज़ा ही आ गया! कीतना सुंदर मेला लगा था। तेरी भौजी क्यूँ नही आयी मेले में...रंजू?”

रंजू—‟क्या बताऊं रे नीम्मो! मेरी माँ है ना, उसने ही मना कर दीया भौजी को। कहती है...नयी-नयी ब्याह कर आयी छोरीयां, इतनी जल्दी घर से बाहर नीकलती है।”

सुमन—‟अरे...ई लल्ली भौज़ी भी ना। अब क्या बोलू? वैसे सच कह रही है तू नीम्मो...कल का मेला बहुत ही शानदार था। सब लफ़गों की नज़र मेरी प्यारी ननद पर ही टीकी थी, बेचारो की हालत खराब हो गयी थी।”

ये कहकर वहाँ पर बैठी सब की सब हसंने लगती है। ये देखकर अंगूरी बोली-

अंगूरी—‟अरी...बूअ! तूम भी ना...कुछ भी बोलती रहती हो,, थोड़ा भी लाज़-शरम नही है।”

नीम्मो—‟ठीक तो कह रही है, सुमन बुआ! हम सब ने भी देखा! सारे आवारा लौंडों की नज़र, तेरे उपर ही अटकी थी...हमे तो कोई पूछ ही नही रहा था।”

कज़री—‟बात तो बील्कुल ठीक कह रही है नीम्मो। वैसे हमारी अंगूरी है भी तो इतनी खुबसूरत की, देखने वालो की भी क्या गलती?”

ये बोलकर एक बार फीर सब की सब हसं पड़ती है। थोड़ी देर के बाद सभी लड़कीयां सौंच करके अपने घरों की तरफ़ नीकल पड़ती है।

उज़ाला हो गया था। नीम्मो, कज़री, रंजू और अन्नू अपने घरो की तरफ़ चली जा रही थी। क्यूकीं इन सब का घर एक-दुसरे के आस-पास ही था। रास्ते मे चलते-चलते उन्हे एक आम के बड़े से पेंड़ के पास से गुज़रते हुए दो आदमी दीखे। जो उसी आम के पेंड़ के पास बैठकर चीलम फूंक रहे थे। कज़री ने गौर से उन दोनो आदमीयों को देखा...! उन दोनो में से एक अधेड़ आदमी, जो की करीब ४५ साल के आस-पास का काफी हट्टा-कट्टा आदमी जान पड़ता था।

वो आदमी, कज़री को देखकर मुस्कुराने लगता है। उस आदमी को मुस्कुराता देख कज़री भी हल्के से मुस्कुरा देती है और आगे नीकल पड़ती है।

थोड़ी दूर आगे चलते हुए...कज़री ने कहा-

कज़री—‟अरे...रंजू, तेरा बापू कीतना गांजा पीता है रे? फीर भी देख कीतने हट्टे-कट्टे हैं। मेरे बापू तो पी-पीकर सूख कर कांटा हो गये है।”

रंजू—‟अरे कज़री दीदी, मेरा बापू...बहुत कसरत करता है। और २ लीटर दूध रोज़ पीता है। बापू के चक्कर में तो माँ भैया को भी दूध नही देती। कहती है की...तू तो अभी जवान है॥ तेरे बापू को दूध की ज्यादा ज़रुरत है...उनकी उमर हो चली है।”

कज़री—‟अरे कहा की उमर हो चली है? सांड की तरह तो होता चला जा रहा है तेरा बापू! मेरे हीसाब से तो, दूध की ज़रूरत तो तेरे भैया को है। लकड़ी की तरह सूख कर कांटा हो गया है तेरा भैया। और तेरी भौजी को देख कीतनी मस्त भरी-भरी है।”

नीम्मो—‟ ठीक कहती है तू कज़री, इसकी भौजी भले ही सांवली है, मगर है बहुत हट्टी-कट्टी! २२ साल में ही गांड इतनी बड़ी है की पूछ मत?”

नीम्मो की बात पर...सब लोग हसं पड़ती है और अपने-अपने घरों की तरफ़ चल देती है।

❏❏❏❏❏

आम के पेड़ के नीचे गांजा पी रहे वो दोनो आदमी...आपस में बात करते हुए-
 

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आम के पेड़ के नीचे, रंजू के बापू के साथ एक और अधेड़ उम्र का ब्यक्ती बैठकर गांज पीते हुए बाते कर रहे थे...

‟बनवारी भईया, अब तो अपनी उमर हो चली है। लेकीन तुम्हारा क्या कहना? इस उमर में भी तुम्हारी छातीयां दीन ब दीन दुगनी होत जात है, तनीक अपने बेटवा पर भी ध्यान दो। वो ससूरा तो तुम्हरा नाक कटा कर रहेगा...एक-दम सूखी लकड़ी की तरह है॥ कौनो भी तरफ़ से ससूरा मर्द नही लगता।”

उस आदमी की बात सुनते हुए, बनवारी ने चीलम को मुह पर लगाते हुए एक जोर का कश लगाते हुए, नाक से गांजे के धुंए को छोड़ते हुए बोलने लगा-

बनवारी—‟अरे...मुचन, तू तो जानता ही है की, उ ससुरा हमरा छोरा नही है। उ ससुरा तो बीरजूवा का छोरा है। हमरा ख़ून होता तो, मरद की तरह चौंड़ी छातीया होती उसकी।”

मुचन ने भी, गांजे का एक कश भरते हुए, हवा में धुँवा छोड़ते हुए बोला-

मुचन—‟कैसे भूल सकता हू...बनवारी भईया, हमका आज़ भी याद है की, कैसे तुमने मेले में पहली बार लल्ली भौजी को देख कर दीवाना हो गये थे। और मेले के उसी रात भौजी का पीछा करते हुए उसके गाँव तक भी चले गये थे हम दोनो। लेकीन जब तुम्हे पता चला की लल्ली भौजी तो शादीशुदा है तो भी तूम नही माने, और लल्ली भौजी के मरद बीरजूवा से जान पहचान बढ़ा कर उसके घर जाने लगे थे। लेकीन बनवारी भईया एक बात समझ नही आयी आज तक, की बीरजूवा को पता कैसे चला और उसने लल्ली भौजी को क्या तुरंत घर से नीकाल दीया...था?”

मुचन की बात सुनकर...बनवारी हसने लगता है, और बोला-

बनवारी—‟अरे मुचन...उ साला बीरजूवा की क्या औकात जो लल्ली को घर से बाहर नीकाल दे! उ तो उसकी लूगाई ने ही, उसके गांड पर लात मार कर मेरे साथ चली आयी...हा...हा...हा। मुझे आज भी याद है, जब मै लल्ली को अपने मोटे लंड से उसके ही घर मे चोदता था तो, वो बेचारा छुप-छुप कर देखता था। कभी-कभी तो मै दीन-दीन भर उसको चोदता और बीरजूवा की हीम्मत नही पड़ती थी उस कमरे में आने की...‟

मुचन—”का बात है? बनवारी भईया, जवाब नही तुम्हारा तो! दुसरे की लूगाई को हथीया लीया। तुम तो असली मर्द हो।”

बनवारी—”नही रे मुचन, जब-तक कम्मो को नही चोद लेता, तब-तक मै अपने आप को असली मर्द नही समझता!”

मुचन—”काहे इतना परेशान हो बनवारी भईया? पूरे गाँव-जवार को पता है, की कम्मो एक बहुत अच्छी औरत है। और तुमने भी तो ना जाने कीतनी बार...कम्मो से अपने दील की बात कही है। पर मीला का? गोबर में सना हुआ चप्पल का थप्पड़...याद है ना? की भूल गये?”

ये बात सुनते ही, बनवारी के चेहरा गुस्से से लाल होने लगता है। और दाँत पीसते हुए बोला-

बनवारी—‟वो दीन भला कैसे भूल सकता हूँ...मुचन! देखना एक दीन इसका बदला मैं जरुर लूगां!‟

उसके बाद वो दोनो थोड़ी देर और बाते करते है, और फीर बनवारी अपने खेतो की तरफ़ नीकल जाता है। और मुचन अपने घर की तरफ..
 

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‟अरी...ओ अंगूरी, जरा बबलू को उठा दे, आज खेतो पर नही जायेगा का उ...?”

कम्मो बाहर बैठी एक औरत से कर करती हुई आवाज़ लगाई थी...

अंगूरी—‟अभी उठाती हू माँ...!”

और इतना बोलकर, आँगन में झाड़ू लगाती हुई अंगूरी, बबलू को उठाने के लीये छत की सीढ़ीयों की तरफ़ बढ़ चलती है...

‟और बताओ दीदी...कल मेले वाली कच्छी पहनी हो की नही?”

उस औरत की बात सुनकर, कम्मो शरमाती हुई बोली-

कम्मो—‟चूप कर सन्नो...!लाज-शरम धो गई है का? कीसी ने सुन लीया तो का सोचेगा?”

सन्नो—‟तुम भी ना दीदी...! बहुत डरती हो। बताओ ना पहनी हो की नही?”

कम्मो का चेहरा टमाटर की तरह लाल हो जाता है...वो बोली तो नही, मगर हाँ में सर हीला देती है। ये देखकर सन्नो मस्त हो जाती है, और बोली-

सन्नो—‟कैसा लग रहा है दीदी? तुम्हरी तो कच्छी तो बहुत कसी होगी? एक बार साड़ी उठा कर दीखा दो ना दीदी...तुम्हरी मोटी गांड पर कच्छी कीतनी कमाल की लगती होगी! एक बार दीखा दो ना दीदी?”

ये सुनकर कम्मो शरमा जाती है, उसे खुद के बदन पर नाज़ था। उसने शरमाते हुए बोली-

कम्मो—”धतत्...मुझे शरम आती है।”

कम्मो को इस तरह शरमाता देख, शन्नो ने थोड़ा इधर-उधर एक बार नज़र फेरा! फीर अचानक से ही अपना हांथ सीधा कम्मो के साड़ी के अंदर घुसाते हुए; कम्मो की कच्छी पर रख देती है।

कम्मो के तो होश ही उड़ जाते है, वो एकदम चौंक पड़ती है। और अपने हाथो से, सन्नो का हाथ पकड़ते हुए नीकालने लगती है...

कम्मो—‟ये...ये..का कर रही है बुरचोदी? नीकाल हाथ नीकाल, कोई देख लेगा...हरज़ाई!”

और कहते हुए...कम्मो सन्नो का हाथ नीकालने लगती है! मगर सन्नो भी तेज-तर्रार नीकली, उसने कम्मो की कच्छी के बगल से नीकल रही झांटो को पकड़ते हुए खींच लेती है! जीससे कम्मो दर्द से तीलमीला उठती है....

कम्मो—‟आआआ...स...न्नों...छो...ड़ दे हरज़ाई दुख..रहा..इ..ई..है।”

कम्मो को दर्द मे सीसकती देख, सन्नो को मस्ती चढ़ने लगती है...

सन्नो—‟चुप-चाप ऐसे ही बैठी रहो दीदी! नही तो झांट उख़ाड़ दूंगी...हां।”

कम्मो—‟अरे...नही रे हरज़ाई! मेरी झांट मत उखाड़।"

और इतना कहते हुए कम्मो, अपना हांथ सन्नो के हांथ पर से हटा लेती है। ये देखकर सन्नो के चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती है। और उसने कम्मो की झांटों को छोड़ते हुए, कच्छी के उपर से ही कम्मो की बुर सहलाने लगती है....

कम्मो डर रही थी की, कही कोई आ ना जाये! मगर जल्द ही सन्नो की हथेलीयों ने, कम्मो को अपने वश में कर लीया।
कम्मो की आँखें मूंदने लगी...उसके होंठ सूखने लगे! उसके पैर के पंजो की उगंलीया हीलने लगी थी। जीसे देख कर सन्नो समझ गयी थी की, कम्मो को मस्ती चढ़ रही है।

सन्नो को भी एक झटका लगा। कम्मो की बुर सहलाते हुए अहेसास हुआ की...कम्मो की बुर की फांके काफी फूली हुई और कसी हुई है। सन्नो का मन ऐसी मस्त फूली हुई कचौड़ी जैसी बुर को देखने के लीये ललच पड़ता है। वो लगातार सहलाते हुए बोली-

सन्नो—‟कसम से दीदी! तुम्हरी बुर तो बहुत फूली हुई और कसी-कसी जान पड़ती है। अंगूरी के बापू लेते नही का तुम्हरी बुर?”

कम्मो तो...मस्ती में वशीभूत हो गयी थी। आँखें बद कीये बोली-

कम्मो—‟अ..उम्म्म्...न...ही रे, हरज़ाई! बहुत दीन हो गया...री...आह..!”

सन्नो—‟का बात कर रही हो दीदी? इतनी मस्त औरत की बुर कोई कैसे छोड़ सकता है भला...?”

कम्मो—‟सच कह रही हूं री...आह,! नीकाल ले हांथ हरजाइ..ईईई..ई..!”

सन्नो मुस्कुराते हुए...सन्नो अपने हाथ के पंजो से कम्मो की बुर को रगड़-रगड़ कर कम्मो को गरम कर चूकी थी। अब कम्मो की बुर गीली हो चूकी थी। उसकी कच्छी भीगने लगी थी। कम्मो के चेहरे पर मस्ती की झलक सन्नो साफ़ देख सकती थी। तभी अचानक! सन्नो की नज़र घर के दरवाज़े पर पड़ी, तो देखा की बबलू दरवाजे की आड़ में छुप कर देख रहा है।

सन्नो को कोई भय नही लगा, उल्टा उसके चेहरे पर एक ज़हरीली मुस्कान बीख़र कर पड़ी, उसने कम्मो की कच्छी के बगल से अपनी एक उगंली घुसाती हुई कम्मो की गीली हो चूकी बूर में घूसा देती है....। कम्मो के मुह से सीत्कार नीकल पड़ती है!

कम्मो—‟आ..स्स्स्स्ईंईंई...इइइइइ..हरजाइइइइ...उंम्म्म्म्म्म्..का क...र दीइइइइइईबुरचो....दीइइइइइइइइ!”

सन्नो—”काहे...दीदी? तुम्हरे मरद में दम खतम हो गया का? लल्ली को देखो...बुरचोदी हमेशा चुदवाती रहती है अपने मरद बनवारी से!”

ये कहकर, उसने एक बार फीर दरवाजे की तरफ़ नज़र दौड़ाई तो, उसे आँगन की तरफ़ से अंगूरी आते हुए दीखी, इस बार सन्नो झट से अपना हाथ कम्मो की साड़ी के अंदर से खींच कर नीकाल लेती है। बुर में से उंगली नीकलते ही, कम्मो भी जैसे आसमान से सीधा ज़मीन पर आ गीरी...

कम्मो का पूरा मज़ा खराब हो जाता है। वो कुछ बोलने के लीये मुह खोली ही थी की...तब तक!

—‟मां, मैने भाजी काट दी है जा जाकर सब्जी बना दे, मैं नहाने जा रही हूँ!!”

अब-तक कम्मो पूरी होश में आ चूकी थी, अंगूरी के जाते ही, कम्मो ने सन्नो की तरफ़ देखते हुए कहा-

कम्मो—‟भाग इहां से छीनाल! तूने तो मेरी जान ही नीकाल दी थी...हरज़ाई!”

ये सुनकर, सन्नो हसंती हुई बोली...

सन्नो—‟काहे...दीदी? मज़ा नही आया का?”

कम्मो ज्यादा कुछ नही बोलती...बस मुस्कुराते हुए वहां से उठ कर चली जाती है...

सन्नो भी मुस्कुरा पड़ती है, और एक नज़र दरवाज़े की तरफ़ घुमा कर देखती है, जहां अब बबलू नही था शायद,, सन्नो भी कम्मो की बुर घुसाई हुई उंगली को अपनी मुह में डालती हुई चाटते हुए वहां से चली जाती है..
 
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