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Update-14
गजरे वाला- साब बीस के दो
सरला- हाय रहने दो कीतने महंगे है
गजरे वाला- अरे भाभी जी कहा महंगे है
सुनिल- ये लो बीस रूपये
गजरे वाला- अरे साब ये लिजीये, देखिये भाभी जी आपके पति आपसे कीतना प्यार करते है।
सरला उसके बात से शरमा गई और उसने मुंह घुमा लिया । जीससे सुनिल देख ना ले ।
दोनो घर पहूंचे
सरलाने कविता के घर की कुंडी खटखटाई
कविता- अरे दीदी आ गई
सरला- हां
कविता- तोह मजे कीये की नही दोनो ने आज हा हा हा
सरला के गाल शरम से लाल हो गये
सरला- चल पगली तु तो एक ही बात पर अडी रहती है
सुनिल घर का ताला खोलकर सरला के पास आया
कविता- क्यू भाईसाब दीदी को शहर घुमाया की नही मजे कराये की नही पसंद आया शहर दीदी को
सुनिल- शहर भी घुमाया और मजे भी कराये अब दीदी से ही पुछो पसंद आया की नही ।
सरला रवी को गोद मे उठाये शरमाती घर की ओर दौड पडी
कविता- लगता है बडा पसंद आया है दीदी को
सुनिल हसते हसते घर के अंदर आया,
सरला दरवाजा बंद कीये साडी बदलने लगी सरला ने नई साडी उतार दी सुनिल उसे देख रहा था सरला आईने के सामने खडी हुई बाल सवारने लगी सरला केवल ब्लाउज
और पेटीकोट मे सुनिल के सामने थी सुनिल की घुरती नजर को सरला मादक नजरों से आईने से देख रही थी । औरत के बदन को चखने की प्यास उसे सुनिल के आंखो
मे दीखाई दे रही थी ।
लग रहा जैसे सरला ने अभी नाडा खोल के पेटीकोट निचे सरका दीया तो जीभ लपलपाते हुए सुनिल उस पे तूट पडेगा । थियेटर के मस्ती भरे पल ने सरला की सालों की
प्यास जगाई थी । सरला के बदन का हर अंग मर्द के स्पर्श के लिए तडप रहा था । ना जाने सरला ईस चाहत मे सुनिल के साथ कब हद पा कर जाती । पर रह-रह के
सरला के अंदर की मां उसे रोक रही थी ।
साडी पहनने के बाद सुनिल उठ कर सरला के पास आया , सरला के पिछे खडा हुआ गजरे की पुडीया खोलकर उसने गजरा सरला के बालों मे लगाया और उसने अपना मुंह
सरला के बालों मे समा दीया वो गजरे की सुगंध से मदहोश होने लगा । वो सरला के बदन को चिपक के रगडने लगा मर्द के बदन के अहसास भर से ही सरला पागल हुई
जा रही थी । सुनिल उसका गदराया बदन मसल रहा था, सरला की आंख से बुंद झलक उठी जो प्यार उसके पती से उसे मिलना चाहीये था वो प्यार सुनिल उसे कर रहा था
। सरला के जिंन्दगी मे पती का प्यार बोहत कम मिल पाया था । पर सुनिल जो की उसके पती का अंश था वो सरला के पती की कमी पुरी कर रहा था । सरला भी अब
सुनिल को अपने पति के जगह देखने लगी वो भी बेचारी क्या करती कुछ ही समय मे उसके शादीशुदा जिंन्दगी खत्म हो गई । पर नसिब ने एसे पासे पलटे की समाजने
उसे विधवा हो कर भी उसे सुहागन बना दीया और अब उसे विधवा होने पर ना मिल पाया प्यार फीर पाने की लालसा सरला को होने लगी ,मर्द के स्पर्श से उसके मन मे
दबी भुक जगने लगी वैसे भी इस नई दुनिया मे कीसीका डर तो उसे न था ।
तभी रवी के रोने की आवांज सरला को सुनाई पडी
सरला- सुनिल बेटा छोड रवी रो रहा है
सुनिल- रोने दे
सरला- बेटा छोड मुझे उसे भुक लगी होगी
सुनिल- थोडा देर रूक जा
सरला ने जैसे-तैसे खुद को सुनिल से अलग कीया और रवी को गोद लिए थपथपाने लगी
गजरे वाला- साब बीस के दो
सरला- हाय रहने दो कीतने महंगे है
गजरे वाला- अरे भाभी जी कहा महंगे है
सुनिल- ये लो बीस रूपये
गजरे वाला- अरे साब ये लिजीये, देखिये भाभी जी आपके पति आपसे कीतना प्यार करते है।
सरला उसके बात से शरमा गई और उसने मुंह घुमा लिया । जीससे सुनिल देख ना ले ।
दोनो घर पहूंचे
सरलाने कविता के घर की कुंडी खटखटाई
कविता- अरे दीदी आ गई
सरला- हां
कविता- तोह मजे कीये की नही दोनो ने आज हा हा हा
सरला के गाल शरम से लाल हो गये
सरला- चल पगली तु तो एक ही बात पर अडी रहती है
सुनिल घर का ताला खोलकर सरला के पास आया
कविता- क्यू भाईसाब दीदी को शहर घुमाया की नही मजे कराये की नही पसंद आया शहर दीदी को
सुनिल- शहर भी घुमाया और मजे भी कराये अब दीदी से ही पुछो पसंद आया की नही ।
सरला रवी को गोद मे उठाये शरमाती घर की ओर दौड पडी
कविता- लगता है बडा पसंद आया है दीदी को
सुनिल हसते हसते घर के अंदर आया,
सरला दरवाजा बंद कीये साडी बदलने लगी सरला ने नई साडी उतार दी सुनिल उसे देख रहा था सरला आईने के सामने खडी हुई बाल सवारने लगी सरला केवल ब्लाउज
और पेटीकोट मे सुनिल के सामने थी सुनिल की घुरती नजर को सरला मादक नजरों से आईने से देख रही थी । औरत के बदन को चखने की प्यास उसे सुनिल के आंखो
मे दीखाई दे रही थी ।
लग रहा जैसे सरला ने अभी नाडा खोल के पेटीकोट निचे सरका दीया तो जीभ लपलपाते हुए सुनिल उस पे तूट पडेगा । थियेटर के मस्ती भरे पल ने सरला की सालों की
प्यास जगाई थी । सरला के बदन का हर अंग मर्द के स्पर्श के लिए तडप रहा था । ना जाने सरला ईस चाहत मे सुनिल के साथ कब हद पा कर जाती । पर रह-रह के
सरला के अंदर की मां उसे रोक रही थी ।
साडी पहनने के बाद सुनिल उठ कर सरला के पास आया , सरला के पिछे खडा हुआ गजरे की पुडीया खोलकर उसने गजरा सरला के बालों मे लगाया और उसने अपना मुंह
सरला के बालों मे समा दीया वो गजरे की सुगंध से मदहोश होने लगा । वो सरला के बदन को चिपक के रगडने लगा मर्द के बदन के अहसास भर से ही सरला पागल हुई
जा रही थी । सुनिल उसका गदराया बदन मसल रहा था, सरला की आंख से बुंद झलक उठी जो प्यार उसके पती से उसे मिलना चाहीये था वो प्यार सुनिल उसे कर रहा था
। सरला के जिंन्दगी मे पती का प्यार बोहत कम मिल पाया था । पर सुनिल जो की उसके पती का अंश था वो सरला के पती की कमी पुरी कर रहा था । सरला भी अब
सुनिल को अपने पति के जगह देखने लगी वो भी बेचारी क्या करती कुछ ही समय मे उसके शादीशुदा जिंन्दगी खत्म हो गई । पर नसिब ने एसे पासे पलटे की समाजने
उसे विधवा हो कर भी उसे सुहागन बना दीया और अब उसे विधवा होने पर ना मिल पाया प्यार फीर पाने की लालसा सरला को होने लगी ,मर्द के स्पर्श से उसके मन मे
दबी भुक जगने लगी वैसे भी इस नई दुनिया मे कीसीका डर तो उसे न था ।
तभी रवी के रोने की आवांज सरला को सुनाई पडी
सरला- सुनिल बेटा छोड रवी रो रहा है
सुनिल- रोने दे
सरला- बेटा छोड मुझे उसे भुक लगी होगी
सुनिल- थोडा देर रूक जा
सरला ने जैसे-तैसे खुद को सुनिल से अलग कीया और रवी को गोद लिए थपथपाने लगी
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