- 3,092
- 12,424
- 159
विजय अपने कमरे के पास आकर दरवाज़े को खटकाने लगा, दरवाज़े के खटकाने से शीला की नींद टूट गयी और वह हडबडाकर उठते हुए दरवाज़ा खोलने चली गई।
"क्या हुआ भैया" दरवाज़ा खोलते ही शीला ने एक अँगड़ाई लेते हुए कहा ।
"दीदी आप कंचन दीदी के पास जाओ ना" विजय ने शीला को गौर से देखते हुए कहा।
"क्यों भैया पेट भर गया क्या। कैसी लगी हमारी कंचन दीदी आपको" शीला ने विजय की बात सुनकर उसे टोकते हुए कहा।
"क्या दीदी में समझा नही" विजय का लंड शीला के मूह से ऐसी बात सुनकर फिर से तनने लगा, विजय ने अपने लंड को आगे से दबाते हुए शीला से कहा।
"भइया अब इतने भोले भी मत बनो । तुम ने तो दीदी को खूब मजा दिए होंगे हमारी तरह थोडी सो गये होगे" शीला ने विजय की तरफ देखते हुए कहा ।
"क्यों दीदी नरेश भैया तो थे यहाँ फिर आप" विजय इतना कहकर चुप हो गया। शीला के मूह से ऐसी बातें सुनकर विजय का लंड अब झटके मारने लगा था।
"भइया माँ की तबीयत खराब थी तो वह भैया को अपने कमरे में ले गयी सर दबाने के लिए । पता नहीं वह कब उसके कमरे से निकलकर यहाँ आये" शीला ने फिर से अंगड़ाई लेते हुए कहा । शीला ने इस बार जानबूझकर अपनी चुचियों को जितना हो सकता था । आगे करते हुए अंगड़ाई ली ताकी उसका भाई उसकी चुचियों का फिगर सही तरीके से जान सके।
"दीदी आपका फिगर तो बुहत बढ़िया है, मगर नरेश भाई ने आपको जगाया नही" विजय ने शीला की चुचियों को बाहर की तरफ आने से गौर से देखकर उसकी तारीफ करते हुए उससे पूछा।
"नही भैया जाने क्या हो गया उसे" शीला ने यह कहते हुए बाथरूम का दरवाज़ा खोलते हुए उसमें घुस गयी। शीला ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद नहीं किया और अपनी नाइटी को उतार दिया ।
विजय के दिल की धडकनें शीला के जिस्म को सिर्फ छोटी सी पेंटी और ब्रा में देखकर ज़ोर से धडकने लगी और वह ज़ोर से साँसें लेते हुए शीला को देखने लगा। विजय का लंड उसकी पेंट में झटके मारते हुए इतना अकड़ चूका था की उसे अब अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा था।
"क्या भैया कंचन को देखकर आपका मन नहीं भरा क्या जो मुझे देख रहे हो" शीला ने मुसकुराकर अपने भाई को अपनी तरफ देखते हुए टोक कर कहा।
"शीला दीदी आप बुहत सूंदर हो" विजय के मूह से सिर्फ इतना निकला ।
"क्यों झूठी तारीफ कर रहे हो, कंचन के सामने तो हम पानी भरेंगी" शीला ने नीचे झुककर अपने एक पाँव को खुजाते हुए कहा।
"दीदी सच में आप बुहत सूंदर हो" शीला के नीचे झुकने से विजय ने उसकी चुचियों को आधा नंगा होकर अपने सामने आने से अपने गले में थूक को गटकते हुए कहा।
"क्या हुआ भैया" दरवाज़ा खोलते ही शीला ने एक अँगड़ाई लेते हुए कहा ।
"दीदी आप कंचन दीदी के पास जाओ ना" विजय ने शीला को गौर से देखते हुए कहा।
"क्यों भैया पेट भर गया क्या। कैसी लगी हमारी कंचन दीदी आपको" शीला ने विजय की बात सुनकर उसे टोकते हुए कहा।
"क्या दीदी में समझा नही" विजय का लंड शीला के मूह से ऐसी बात सुनकर फिर से तनने लगा, विजय ने अपने लंड को आगे से दबाते हुए शीला से कहा।
"भइया अब इतने भोले भी मत बनो । तुम ने तो दीदी को खूब मजा दिए होंगे हमारी तरह थोडी सो गये होगे" शीला ने विजय की तरफ देखते हुए कहा ।
"क्यों दीदी नरेश भैया तो थे यहाँ फिर आप" विजय इतना कहकर चुप हो गया। शीला के मूह से ऐसी बातें सुनकर विजय का लंड अब झटके मारने लगा था।
"भइया माँ की तबीयत खराब थी तो वह भैया को अपने कमरे में ले गयी सर दबाने के लिए । पता नहीं वह कब उसके कमरे से निकलकर यहाँ आये" शीला ने फिर से अंगड़ाई लेते हुए कहा । शीला ने इस बार जानबूझकर अपनी चुचियों को जितना हो सकता था । आगे करते हुए अंगड़ाई ली ताकी उसका भाई उसकी चुचियों का फिगर सही तरीके से जान सके।
"दीदी आपका फिगर तो बुहत बढ़िया है, मगर नरेश भाई ने आपको जगाया नही" विजय ने शीला की चुचियों को बाहर की तरफ आने से गौर से देखकर उसकी तारीफ करते हुए उससे पूछा।
"नही भैया जाने क्या हो गया उसे" शीला ने यह कहते हुए बाथरूम का दरवाज़ा खोलते हुए उसमें घुस गयी। शीला ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद नहीं किया और अपनी नाइटी को उतार दिया ।
विजय के दिल की धडकनें शीला के जिस्म को सिर्फ छोटी सी पेंटी और ब्रा में देखकर ज़ोर से धडकने लगी और वह ज़ोर से साँसें लेते हुए शीला को देखने लगा। विजय का लंड उसकी पेंट में झटके मारते हुए इतना अकड़ चूका था की उसे अब अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा था।
"क्या भैया कंचन को देखकर आपका मन नहीं भरा क्या जो मुझे देख रहे हो" शीला ने मुसकुराकर अपने भाई को अपनी तरफ देखते हुए टोक कर कहा।
"शीला दीदी आप बुहत सूंदर हो" विजय के मूह से सिर्फ इतना निकला ।
"क्यों झूठी तारीफ कर रहे हो, कंचन के सामने तो हम पानी भरेंगी" शीला ने नीचे झुककर अपने एक पाँव को खुजाते हुए कहा।
"दीदी सच में आप बुहत सूंदर हो" शीला के नीचे झुकने से विजय ने उसकी चुचियों को आधा नंगा होकर अपने सामने आने से अपने गले में थूक को गटकते हुए कहा।