माँ कोई नहीं आएगा आप डरो मत" विजय इतना कहकर अपनी माँ की ब्रा को अपने हाथों से पकडते हुए ज़ोर से खीँच लिया । विजय के ऐसा करने से रेखा की ब्रा उसकी बड़ी बड़ी चुचियों से निकलकर विजय के हाथों में आ गयी।
"आह्ह्ह्ह बेटे तुमने मेरी ब्रा को फाड दिया" रेखा ने अपनी ब्रा के फ़टते ही विजय की तरफ देखते हुए कहा।।
विजय अपनी माँ की बात सुने बगैर ही उसकी चुचियों पर टूट पड़ा और अपनी माँ की दोनों चुचियों को बारी बारी अपने मूह में लेकर चूस्ने चाटने और काटने लगा।
"आह्ह्ह्ह बेटे आराम से ओह्ह्ह्हह क्या कर रहे हो" रेखा के मूह से बुहत ज़ोर की सिस्कियाँ निकल रही थी।
विजय कुछ देर तक अपनी माँ की चुचियों से खेलने के बाद अपना मूह नीचे करते हुए उसकी पेंटी तक आ गया । रेखा की पेंटी उसकी चूत से निकले हुए पानी से बुरी तरह गीली हो चुकी थी, विजय अपनी माँ की चूत को उसकी गीली पेंटी के ऊपर से ही अपनी जीभ से चाटने लगा।
विजय कुछ देर तक अपनी जीभ को अपनी माँ की पेंटी के ऊपर फिराने के बाद उसकी पेंटी को अपने दोनों हाथों से खीचकर उसकी टांगों से अलग कर दिया । विजय पेंटी के उतरने के बाद अपनी माँ की फूली हुयी चूत को घूरते हुए अपनी जीभ को उसकी चूत के बड़े दाने पर रख दिया।
"आह्ह्ह्ह बेटे" रेखा अपने बेटे की जीभ को अपनी चूत के दाने पर लगते ही सिसक उठी और वह अपने बेटे के बालों में अपने हाथों को डालकर उसे अपनी चूत पर दबाने लगी ।
विजय कुछ देर तक अपनी माँ की चूत के दाने को चाटने के बाद सीधा होते हुए अपनी माँ के होंठो को चूसने लगा । रेखा ने अचानक अपने बेटे के होंठो से अपने मुँह को अलग करते हुए नीचे झुकते हुए अपने बेटे के लंड को पकड लिया और उसे अपने हाथ सहलाते हुए अपनी जीभ निकालकर उसके सुपाडे पर फिराने लगी ।
रेखा ने अपने बेटे के लंड को अपनी जीभ से चाटते हुए अपना मुँह खोलकर उसके सुपाडे को अपने मूह में भर लिया और अपने होंठो और जीभ से अपने बेटे के लंड को चूसने लगी।
"अअअअआह माँ" विजय अपनी माँ के ऐसे करने से मज़े से हवा में उड़ रहा था।