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उन सब के जाते ही यहाँ के सभी लोग भी अपने अपने कमरों में चले गए । रेखा घर के काम काज में बिजी हो गई और देखते देखते रात हो गई । रेखा ने खाना बनाकर टेबल पर लगाया और सभी को अपने कमरों से बुला लायी, सभी बैठकर खाना खाने लगे मगर विजय, कंचन और कोमल बुहत धीमी रफ़्तार से खाना खा रहे थे।
"क्या हुआ बच्चों तुम लोगों को खाना पसंद नहीं आया क्या?" रेखा ने अपने बच्चों की तफ देखते हुए कहा ।
"माँ मुझे ज्यादा भूख नहीं लगी है" विजय ने कहा और वहां से उठकर अपने कमरे में चला गया । विजय के बाद कोमल भी उठकर अपने कमरे में चले गई।
"कंचन बेटा तुम्हें भी ज्यादा भूख नहीं होगी?" रेखा ने कंचन की तरफ देखते हुए कहा।
"जी माँ" कंचन ने सिर्फ इतना कहा।
"मुझे पता है उन लोगों के जाने से तुम्हें दुःख हुआ है मगर कुछ दिनों में ही तुम लोगों को सब ठीक लगने लगेगा ज़रा अपने भाई का ख़याल रखना" रेखा ने कंचन को देखते हुए कहा ।
कंचन अपनी माँ की बात सुनकर वहां से उठकर चले गयी । रेखा ने सब के जाने के बाद बर्तनों को उठाकर किचन में रखा और सारा काम निपटाने के बाद अपने कमरे में जाकर लेट गयी, रेखा ने देखा की उसका पति सो चुका है इसीलिए वह भी नाईट लैंप को बंद करके सोने की कोशिश करने लगी ।
कंचन अपने कमरे में बैठे बैठे बोर हो रही थी इसीलिए वह अपने कमरे से उठकर अपने भाई के कमरे में आ गयी । कंचन अंदर आते ही विजय के पास उसके साथ बेड पर बैठ गई और उसके सर में हाथ डालकर सहलाने लगी, विजय को पता नहीं था की कंचन वहां आई हुई है इसीलिए अपनी बहन का हाथ महसूस करके वह चोंक गया ।
"क्या हुआ भैया?" कंचन ने विजय को देखते हुए कहा।
"कुछ नहीं दीदी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है" विजय ने अपनी दीदी की गोद में अपना सर रखते हुए कहा।
"वो तो है भैया मगर हम कर भी क्या सकते है" कंचन ने अपने भाई के सर को दबाते हुए कहा।
"दीदी आप बुहत अच्छी हो। मेरा कितना ख़याल रखती हो" विजय ने कंचन के हाथ को अपने सर से हटाकर उसे नीचे झुका दिया और अपने होंठो को उसके होंठो पर रख दिया ।
कंचन के नीचे झुकते ही उसके रेश्मी बालों ने विजय और उसके चेहरे को पूरी तरह ढ़क लिया । विजय ने कुछ देर तक अपनी दीदी के रसीले होंठो को चूसने के बाद उसे खींचकर अपने साथ सुला दिया और फिर से दोनों भाई बहन अपनी जवानी की प्यास एक दुसरे से मिटाने लगे । दोनों पूरी तरह से एक दुसरे के जिस्मों का मजा लेने के बाद नंगे ही एक दुसरे की बाहों में सो गए ।
"क्या हुआ बच्चों तुम लोगों को खाना पसंद नहीं आया क्या?" रेखा ने अपने बच्चों की तफ देखते हुए कहा ।
"माँ मुझे ज्यादा भूख नहीं लगी है" विजय ने कहा और वहां से उठकर अपने कमरे में चला गया । विजय के बाद कोमल भी उठकर अपने कमरे में चले गई।
"कंचन बेटा तुम्हें भी ज्यादा भूख नहीं होगी?" रेखा ने कंचन की तरफ देखते हुए कहा।
"जी माँ" कंचन ने सिर्फ इतना कहा।
"मुझे पता है उन लोगों के जाने से तुम्हें दुःख हुआ है मगर कुछ दिनों में ही तुम लोगों को सब ठीक लगने लगेगा ज़रा अपने भाई का ख़याल रखना" रेखा ने कंचन को देखते हुए कहा ।
कंचन अपनी माँ की बात सुनकर वहां से उठकर चले गयी । रेखा ने सब के जाने के बाद बर्तनों को उठाकर किचन में रखा और सारा काम निपटाने के बाद अपने कमरे में जाकर लेट गयी, रेखा ने देखा की उसका पति सो चुका है इसीलिए वह भी नाईट लैंप को बंद करके सोने की कोशिश करने लगी ।
कंचन अपने कमरे में बैठे बैठे बोर हो रही थी इसीलिए वह अपने कमरे से उठकर अपने भाई के कमरे में आ गयी । कंचन अंदर आते ही विजय के पास उसके साथ बेड पर बैठ गई और उसके सर में हाथ डालकर सहलाने लगी, विजय को पता नहीं था की कंचन वहां आई हुई है इसीलिए अपनी बहन का हाथ महसूस करके वह चोंक गया ।
"क्या हुआ भैया?" कंचन ने विजय को देखते हुए कहा।
"कुछ नहीं दीदी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है" विजय ने अपनी दीदी की गोद में अपना सर रखते हुए कहा।
"वो तो है भैया मगर हम कर भी क्या सकते है" कंचन ने अपने भाई के सर को दबाते हुए कहा।
"दीदी आप बुहत अच्छी हो। मेरा कितना ख़याल रखती हो" विजय ने कंचन के हाथ को अपने सर से हटाकर उसे नीचे झुका दिया और अपने होंठो को उसके होंठो पर रख दिया ।
कंचन के नीचे झुकते ही उसके रेश्मी बालों ने विजय और उसके चेहरे को पूरी तरह ढ़क लिया । विजय ने कुछ देर तक अपनी दीदी के रसीले होंठो को चूसने के बाद उसे खींचकर अपने साथ सुला दिया और फिर से दोनों भाई बहन अपनी जवानी की प्यास एक दुसरे से मिटाने लगे । दोनों पूरी तरह से एक दुसरे के जिस्मों का मजा लेने के बाद नंगे ही एक दुसरे की बाहों में सो गए ।