- 3,092
- 12,512
- 159
अचानक दरवाज़ा खुला और रेखा अंदर दाखिल हो गई कंचन अपनी माँ को देखकर बेड से उठकर खड़ी हो गई।
"अरे वाह यहाँ तो बहन भाई का प्यार चल रहा है" रेखा ने अंदर दाखिल होते ही कंचन को घूरते हुए कहा।
"आप कहो तो यहाँ पर माँ बेटे का प्यार शुरू कर दूं" विजय ने बेड से उठकर अपनी माँ को पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए कहा ।
"छोड़ो नालायक मुझे। कुछ तो शर्म करो" रेखा ने अचानक अपने बेटे की इस हरकत से परेशान होकर उसे अपने आप से दूर धकेलते हुए कहा।
"क्यों माँ क्या हुआ अपनी बेटी के सामने शर्म आ रही है" विजय ने अपनी माँ से दूर होते ही हँसकर कहा।
"हँस ले बेटे तेरी हंसी को अभी बंद करती हूँ" रेखा ने विजय को हँसता हुए देखकर गुस्से से कहा ।
"क्यों माँ क्या बात है" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर परेशान होते हुए कहा।
"अरे बेटे तुम परेशान क्यों होते हो। वह तुम्हारे पिता आज मुझे तुमसे चुदता हुआ देखना चाहते हैं और कंचन को तेरे सामने चोदना चाहते है" रेखा ने विजय के पास जाकर हँसते हुए कहा ।
"क्या?" कंचन और विजय के मुँह से हैंरानी के मारे एक साथ निकला।
"क्यों बेटे क्या हुआ?" रेखा ने वैसे ही मुस्कराते हुए कहा।
"माँ पिता जी के सामने । कहीं आप मज़ाक तो नहीं कर रही है?" विजय ने हैंरानी से अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है?" रेखा ने विजय की बात सुनकर उसकी तरफ देखते हुए कहा ।
"मगर माँ हम यह नहीं कर सकते" इस बार कंचन ने बोलते हुए कहा।
"नही दीदी हम करेंगे जैसे पिताजी कहेंगे वैसे ही" अचानक विजय ने बीच में बोलते हुए कहा।
"बुहत खूब यह हुई न मरदों वाली बात" रेखा ने खुश होते हुए कहा । कंचन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है । इसीलिए वह चुपचाप खड़ी थी ।
"आओ दोनों मेरे साथ" रेखा ने विजय और कंचन को देखते हुए कहा।
"माँ मगर नरेश हमें यहाँ न देखकर क्या सोचेगा वह तो आपका बेसबरी से इंतज़ार कर रहा था" विजय ने अपनी माँ को देखते हुए कहा।
"तुम उसकी फिकर मत करो उसे बाद में समझ लेंगे" रेखा ने विजय की बात का जवाब देते हुए कहा और वहां से बाहर जाने लगी । विजय भी कंचन का हाथ पकडकर अपनी माँ के साथ उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा ।
"अरे वाह यहाँ तो बहन भाई का प्यार चल रहा है" रेखा ने अंदर दाखिल होते ही कंचन को घूरते हुए कहा।
"आप कहो तो यहाँ पर माँ बेटे का प्यार शुरू कर दूं" विजय ने बेड से उठकर अपनी माँ को पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए कहा ।
"छोड़ो नालायक मुझे। कुछ तो शर्म करो" रेखा ने अचानक अपने बेटे की इस हरकत से परेशान होकर उसे अपने आप से दूर धकेलते हुए कहा।
"क्यों माँ क्या हुआ अपनी बेटी के सामने शर्म आ रही है" विजय ने अपनी माँ से दूर होते ही हँसकर कहा।
"हँस ले बेटे तेरी हंसी को अभी बंद करती हूँ" रेखा ने विजय को हँसता हुए देखकर गुस्से से कहा ।
"क्यों माँ क्या बात है" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर परेशान होते हुए कहा।
"अरे बेटे तुम परेशान क्यों होते हो। वह तुम्हारे पिता आज मुझे तुमसे चुदता हुआ देखना चाहते हैं और कंचन को तेरे सामने चोदना चाहते है" रेखा ने विजय के पास जाकर हँसते हुए कहा ।
"क्या?" कंचन और विजय के मुँह से हैंरानी के मारे एक साथ निकला।
"क्यों बेटे क्या हुआ?" रेखा ने वैसे ही मुस्कराते हुए कहा।
"माँ पिता जी के सामने । कहीं आप मज़ाक तो नहीं कर रही है?" विजय ने हैंरानी से अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है?" रेखा ने विजय की बात सुनकर उसकी तरफ देखते हुए कहा ।
"मगर माँ हम यह नहीं कर सकते" इस बार कंचन ने बोलते हुए कहा।
"नही दीदी हम करेंगे जैसे पिताजी कहेंगे वैसे ही" अचानक विजय ने बीच में बोलते हुए कहा।
"बुहत खूब यह हुई न मरदों वाली बात" रेखा ने खुश होते हुए कहा । कंचन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है । इसीलिए वह चुपचाप खड़ी थी ।
"आओ दोनों मेरे साथ" रेखा ने विजय और कंचन को देखते हुए कहा।
"माँ मगर नरेश हमें यहाँ न देखकर क्या सोचेगा वह तो आपका बेसबरी से इंतज़ार कर रहा था" विजय ने अपनी माँ को देखते हुए कहा।
"तुम उसकी फिकर मत करो उसे बाद में समझ लेंगे" रेखा ने विजय की बात का जवाब देते हुए कहा और वहां से बाहर जाने लगी । विजय भी कंचन का हाथ पकडकर अपनी माँ के साथ उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा ।