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अपडेट 106
ज्योति ने जल्दी से अपनी साड़ी उठाकर अपने जिस्म को आगे से ढक दिया।
"अरे क्या हुआ बेटी तुम तो ऐसे डर गयी जैसे अपने सामने कोई साँप देख लिया हो?" महेश ने सोफ़े से उठकर अपनी बेटी के सामने खड़े होकर मुस्कराते हुए कहा।
"पिता जी आपको शर्म आनी चहिये" ज्योति ने गुस्से से सिर्फ इतना कहा।
"वाह बेटी मुझे शर्म आनी चाहिए और तू जो हर रात को अपने भाई का बिस्तर गरम करती हो?" महेश ने अपनी बेटी के सामने ही अपना हाथ अपनी धोती के अंदर ड़ालते हुए कहा ।
"पिता जी प्लीज आप यहाँ से चले जाईये" ज्योति ने शर्म और गुस्से से अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा ।ज्योति के आँखों से आंसू निकल आये थे।
"अरे बेटी यह वक्त आंसू बहाने का नहीं बल्कि मज़े लेने का है जब तुम अपने भाई के साथ सब कुछ कर चुकी हो तो अपने इस पिता पर भी थोड़ी दया कर दो वैसे भी मेरा तुम्हारे भाई से बड़ा और तगड़ा है तुम्हें इससे वह मजा आएगा की तुम ज़िंदगी भर इसे अपनी चूत में लेने के लिए मिन्नते करती रहोगी" महेश ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को निकालकर ज्योति की आँखों के सामने करते हुए कहा ।
"पिता जी जाइये मैं आपके साथ कुछ नहीं कर सकती" ज्योति की साँसें अपने पिता के लंड को देखते ही ज़ोर से चलने लगी और उसने अपनी नज़रों को वहां से हटाये बिना कहा।
"च तुम कुछ मत करो मगर एक बार इसे अपने हाथों में तो लेकर देखो" महेश अपनी बेटी को यो अपने लंड की तरफ घूरता हुआ देखकर समझ गया की चिडया दाना चुगने के लिए तैयार है इसीलिए उसने अपने लंड को अपने हाथ से ऊपर नीचे करते हुए अपनी बेटी से कहा ।
"नही पिता जी मुझे शर्म आती है" ज्योति ने अपने पिता के लंड को गौर से घूरते हुए कहा उसका दिल अपने पिता के इतने बड़े लंड को नज़दीक से देखकर बुहत ज़ोर से धड़क रहा था और उसका पूरा जिस्म भी गरम हो गया था।
"अरे बेटी तुम भी न इसमें शर्माने की क्या बात है" महेश ने यह कहते हुए अपनी बेटी के एक हाथ को पकडकर अपने लंड के ऊपर रख दिया ।
"आआह्ह्ह्ह पिता जी यह क्या किया आपने?" ज्योति ने अपने हाथ को अपने पिता के गरम और सख्त लंड पर परडते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा । ज्योति का पूरा जिस्म अपने हाथ को अपने बाप के लंड पर पडते ही सिहर उठा और उसके पूरे जिस्म को जैसे चींटियाँ काटने लगी, ज्योति की साँसें बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी और उसे अपना हाथ वहां रखे हुए अजीब किस्म का मज़ा आ रहा था ।
ज्योति ने जल्दी से अपनी साड़ी उठाकर अपने जिस्म को आगे से ढक दिया।
"अरे क्या हुआ बेटी तुम तो ऐसे डर गयी जैसे अपने सामने कोई साँप देख लिया हो?" महेश ने सोफ़े से उठकर अपनी बेटी के सामने खड़े होकर मुस्कराते हुए कहा।
"पिता जी आपको शर्म आनी चहिये" ज्योति ने गुस्से से सिर्फ इतना कहा।
"वाह बेटी मुझे शर्म आनी चाहिए और तू जो हर रात को अपने भाई का बिस्तर गरम करती हो?" महेश ने अपनी बेटी के सामने ही अपना हाथ अपनी धोती के अंदर ड़ालते हुए कहा ।
"पिता जी प्लीज आप यहाँ से चले जाईये" ज्योति ने शर्म और गुस्से से अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा ।ज्योति के आँखों से आंसू निकल आये थे।
"अरे बेटी यह वक्त आंसू बहाने का नहीं बल्कि मज़े लेने का है जब तुम अपने भाई के साथ सब कुछ कर चुकी हो तो अपने इस पिता पर भी थोड़ी दया कर दो वैसे भी मेरा तुम्हारे भाई से बड़ा और तगड़ा है तुम्हें इससे वह मजा आएगा की तुम ज़िंदगी भर इसे अपनी चूत में लेने के लिए मिन्नते करती रहोगी" महेश ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को निकालकर ज्योति की आँखों के सामने करते हुए कहा ।
"पिता जी जाइये मैं आपके साथ कुछ नहीं कर सकती" ज्योति की साँसें अपने पिता के लंड को देखते ही ज़ोर से चलने लगी और उसने अपनी नज़रों को वहां से हटाये बिना कहा।
"च तुम कुछ मत करो मगर एक बार इसे अपने हाथों में तो लेकर देखो" महेश अपनी बेटी को यो अपने लंड की तरफ घूरता हुआ देखकर समझ गया की चिडया दाना चुगने के लिए तैयार है इसीलिए उसने अपने लंड को अपने हाथ से ऊपर नीचे करते हुए अपनी बेटी से कहा ।
"नही पिता जी मुझे शर्म आती है" ज्योति ने अपने पिता के लंड को गौर से घूरते हुए कहा उसका दिल अपने पिता के इतने बड़े लंड को नज़दीक से देखकर बुहत ज़ोर से धड़क रहा था और उसका पूरा जिस्म भी गरम हो गया था।
"अरे बेटी तुम भी न इसमें शर्माने की क्या बात है" महेश ने यह कहते हुए अपनी बेटी के एक हाथ को पकडकर अपने लंड के ऊपर रख दिया ।
"आआह्ह्ह्ह पिता जी यह क्या किया आपने?" ज्योति ने अपने हाथ को अपने पिता के गरम और सख्त लंड पर परडते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा । ज्योति का पूरा जिस्म अपने हाथ को अपने बाप के लंड पर पडते ही सिहर उठा और उसके पूरे जिस्म को जैसे चींटियाँ काटने लगी, ज्योति की साँसें बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी और उसे अपना हाथ वहां रखे हुए अजीब किस्म का मज़ा आ रहा था ।