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सुरज भी अपना बदन पोंछने के बाद वैसे ही एक अंडरवियर पहना हुआ सीधा शीला के पास सोफ़े पर जा बैठा । शीला का जिस्म सूरज को नंगा ही अपने पास बैठता देखकर सिहरने लगा और वह चोरी चोरी सूरज के बदन को देखने लगी। शीला को यकीन नहीं हो रहा था की इतनी ज्यादा उम्र के बावजूद सूरज का बदन बिलकुल गठीला था। एक सेहतमन्द नौजवान की तरह।
"बेटी किस कॉलेज में हो?" सूरज ने अपने एक हाथ को शीला की जाँघ पर रखते हुए कहा।
"जी मैं आचार्य नरेन्दर देव कॉलेज में हूँ" शीला ने हकलाते हुए कहा उसका पूरा जिस्म सूरज के हाथ लगने से काँप रहा था।
"गूड़ और सुनाओ पढ़ाई के बाद क्या इरादा है" सूरज ने इस बार अपने हाथ को शीला की जाँघ पर आगे पीछे करते हुए कहा।
"जी फ़िलहाल कुछ सोचा नहीं है" शीला के मुँह से बड़ी मुश्किल से निकला । उसका जिस्म से पसीना निकलने लगा था । अचानक शीला की नज़र सूरज के अंडरवियर पर पड़ी। जिस में अब उसका मुसल लंड खड़ा होकर झटके मार रहा था।
"अंकल एक मिनट में अभी आई" शीला सूरज के लंड को देखकर पानी पानी हो गई और वह सोफ़े से उठकर बहाना बनाकर बाहर निकल गयी।
"कब तक भागेगी बेटी अब तो तुझे मेरे लंड से चुदना ही है" शीला के जाते ही सूरज ने हँसते हुए कहा और चाय पीने लगा । शीला भगती हुयी अपने कमरे में आ गयी थी । उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे । वह बेड पर बैठे हुए तेज़ साँसें ले रही थी । आज कई दिन बाद शीला को फिर से अपने जिस्म में वही गर्मी महसूस हो रही थी जो उसे अपनी मामी के घर में महसूस होती थी, शीला को अचानक सूरज के अंडरवियर का उभार याद आया जिसे देखकर वह यहाँ भाग आई थी। बुहत ही बड़ा और मोटा था शायद उसका यह सब सोचते हुए अचानक ही शीला खुद ही शर्म के मारे हंसने लगी की वह क्या सोच रही है।
शीला कुछ देर बाद फिर से उठकर सूरज के कमरे में चलि गयी कप और ट्रे उठाने । इस बार शीला ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया और सीधे ही अंदर घुस गयी ।शीला को सूरज कहीं भी नज़र नहीं आया। वह कप और ट्रे उठाकर जाने ही वाली थी की उसका ध्यान बाथरूम की तरफ गया। जहाँ से पानी की आवाज़ आ रही थी। वह समझ गयी के सूरज नहा रहा है मगर वह अभी तो नहाकर निकला था यही सोचकर वह बाथरूम की तरफ बढ़ने लगी। बाथरूम का दरवाज़ा भी खुला हुआ था। वह जैसे ही बाथरूम के दरवाज़े के पास पुहंची उसने देखा सूरज सीधा खड़ा होकर हाँफते हुए अपने हाथ से कुछ हिला रहा है सूरज का पीठ शीला की तरफ नहीं था जिस वजह से वह उसे देख नहीं पाया।
शीला को पहले तो कुछ समझ में नहीं आया मगर अगले ही पल वह समझ गयी की सूरज मुठ मार रहा है और वह जल्दी से वहां से जाने लगी। जाते हुए उसे आवाज़ सुनायी दी " ओह्ह्ह शीला मेरी बेटी आहहह्ह्ह्ह्ह् शायद सूरज झड रहा था । मगर वह उसका नाम क्यों ले रहा था ओहहहह भगवान कहीं वह उसे याद करके तो मुठ नहीं मार रहा था। यह सब सोचकर शीला का जिस्म फिर से गरम होने लगा । उसके जिस्म से पसीना निकलने लगा । वह जल्दी से कमरे से निकलकर किचन में आ गई।
"बेटी किस कॉलेज में हो?" सूरज ने अपने एक हाथ को शीला की जाँघ पर रखते हुए कहा।
"जी मैं आचार्य नरेन्दर देव कॉलेज में हूँ" शीला ने हकलाते हुए कहा उसका पूरा जिस्म सूरज के हाथ लगने से काँप रहा था।
"गूड़ और सुनाओ पढ़ाई के बाद क्या इरादा है" सूरज ने इस बार अपने हाथ को शीला की जाँघ पर आगे पीछे करते हुए कहा।
"जी फ़िलहाल कुछ सोचा नहीं है" शीला के मुँह से बड़ी मुश्किल से निकला । उसका जिस्म से पसीना निकलने लगा था । अचानक शीला की नज़र सूरज के अंडरवियर पर पड़ी। जिस में अब उसका मुसल लंड खड़ा होकर झटके मार रहा था।
"अंकल एक मिनट में अभी आई" शीला सूरज के लंड को देखकर पानी पानी हो गई और वह सोफ़े से उठकर बहाना बनाकर बाहर निकल गयी।
"कब तक भागेगी बेटी अब तो तुझे मेरे लंड से चुदना ही है" शीला के जाते ही सूरज ने हँसते हुए कहा और चाय पीने लगा । शीला भगती हुयी अपने कमरे में आ गयी थी । उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे । वह बेड पर बैठे हुए तेज़ साँसें ले रही थी । आज कई दिन बाद शीला को फिर से अपने जिस्म में वही गर्मी महसूस हो रही थी जो उसे अपनी मामी के घर में महसूस होती थी, शीला को अचानक सूरज के अंडरवियर का उभार याद आया जिसे देखकर वह यहाँ भाग आई थी। बुहत ही बड़ा और मोटा था शायद उसका यह सब सोचते हुए अचानक ही शीला खुद ही शर्म के मारे हंसने लगी की वह क्या सोच रही है।
शीला कुछ देर बाद फिर से उठकर सूरज के कमरे में चलि गयी कप और ट्रे उठाने । इस बार शीला ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया और सीधे ही अंदर घुस गयी ।शीला को सूरज कहीं भी नज़र नहीं आया। वह कप और ट्रे उठाकर जाने ही वाली थी की उसका ध्यान बाथरूम की तरफ गया। जहाँ से पानी की आवाज़ आ रही थी। वह समझ गयी के सूरज नहा रहा है मगर वह अभी तो नहाकर निकला था यही सोचकर वह बाथरूम की तरफ बढ़ने लगी। बाथरूम का दरवाज़ा भी खुला हुआ था। वह जैसे ही बाथरूम के दरवाज़े के पास पुहंची उसने देखा सूरज सीधा खड़ा होकर हाँफते हुए अपने हाथ से कुछ हिला रहा है सूरज का पीठ शीला की तरफ नहीं था जिस वजह से वह उसे देख नहीं पाया।
शीला को पहले तो कुछ समझ में नहीं आया मगर अगले ही पल वह समझ गयी की सूरज मुठ मार रहा है और वह जल्दी से वहां से जाने लगी। जाते हुए उसे आवाज़ सुनायी दी " ओह्ह्ह शीला मेरी बेटी आहहह्ह्ह्ह्ह् शायद सूरज झड रहा था । मगर वह उसका नाम क्यों ले रहा था ओहहहह भगवान कहीं वह उसे याद करके तो मुठ नहीं मार रहा था। यह सब सोचकर शीला का जिस्म फिर से गरम होने लगा । उसके जिस्म से पसीना निकलने लगा । वह जल्दी से कमरे से निकलकर किचन में आ गई।