Pankaj Singh
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Hi dm meलेखक महाशय सूरज का भला करने के चक्कर मे उसकी बहन को तो भूल ही गये. ऐसा मत किजीये. उस बेचारी का भी कल्याण कर दिजीये. बाकी कहानी तो बढिया चल रही है.
Super awesome update rony bhai suraj ke man me bhi kamuk vichar panapne lage hai, wahi dusri or mujhiya ki biwi chudwane ko utavli ho rahi hai. Lagta hai suraj jaldi hi chdai ka path seekh lega. Mind blowing and sexy writingमुखिया की बीवी आम के बगीचे की रखवाली करने का बहाना देकर अपनी चाल चल चुकी थी,,, और इस बात से सूरज भी बहुत खुश नजर आ रहा था वैसे भी उसे मुखिया की बीवी के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता था और इसी बहाने वह रात भर मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली तो कर सकता था इसी बात को लेकर उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे।
मुखिया को इसमें कोई एतराज नहीं था क्योंकि इससे पहले की उसकी बीवी आपके बगीचे की रखवाली करने के लिए बगीचे में कई राते रुक चुकी थी लेकिन मुखिया इस बात से अनजान था कि आम के बगीचे की रखवाली करने के बहाने उसकी बीवी रात रंगीन करतीथी। इसीलिए तो मुखिया एकदम सहज था अपनी बीवी के प्रति उसे बिल्कुल भी शंका नहीं था और वैसे भी जिस तरह से वह खेत खलिहान का काम संभालती थी,,, मजदूरों को संभालती थी और हिसाब किताब देखी थी इतना कुछ करने की क्षमता मुखिया में बिल्कुल भी नहीं थी इसीलिए तो वह अपनी बीवी से बहुत खुश था क्योंकि उसके चलते ही उसे आराम मिलता था।
एक तरफ मुखिया की बीवी पूरी तरह से उत्सुक थी सूरज से रात को मिलने के लिए और दूसरी तरफ सूरज का भी यही हाल था जिस तरह का नजारा मुखिया की बीवी ने उसे दिखाई थी वह नजारा आज तक उसके मन-मस्तिष्क में किसी चित्र की भांति छप गया था और उसे नजारे के बारे में जब भी उसे ख्याल आता था तब तब उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती थी,,, वह उसकी आंखों के सामने कपड़ा उतारना अपनी खूबसूरत बदन की नुमाइश करना और जिस तरह से वह पेटीकोट को खोलकर आगे की तरफ खींची थी उसकी दोनों टांगों के बीच घुंघराले बाल को देखकर आश्चर्यचकित हो जाना यह सब याद करके सूरज के तन बदन में आग लग जाती थी,,, इसलिए तो वह भी बेसब्री से शाम ढलने का इंतजार कर रहा था और यह बात उसने अपने घर पर भी बता दिया था पहले तो उसकी मां थोड़ा नाराज हुई लेकिन,, क्योंकि घर पर उसका पति भी नहीं था और अब सूरज भी कहीं आम की रखवाली करने के लिए जा रहा था वैसे उसने इस बात को नहीं बताया था कि वह मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली करने के लिए जा रहा है वह सिर्फ इतना ही बताया था कि रात को आम के बगीचे की रखवाली करना है कुछ लोगों के साथ साथ में पैसे भी मिलेंगे और पके हुए आम भी मिलेंगे उसने मुखिया की बीवी के साथ वाली बात को छुपा ले गया था न जाने कहां से सूरज में इतना दिमाग आ गया था वरना अगर वह यह बात बता देता तो शायद सुनैना के मन में ढेर सारे शंका ने जन्म ले लिया होता। और आम के बगीचे की रखवाली के बदले में पैसे और पके हुए आम मिलने के लालच में सुनैना भी कुछ बोल नहीं पाई और जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगी।
शाम ढल चुकी थी बहुत जल्द ही उसे मुखिया के घर पर पहुंचना था वैसे तो उसे रात बिरात डर बिल्कुल भी नहीं लगता था लेकिन वह समय पर पहुंचना चाहता था,,, सूरज ठीक रसोई के सामने बैठकर भोजन का इंतजार कर रहा था और उसकी मां जल्दी-जल्दी तवे पर रोटियां पका रही थी लेकिन उसकी इस जल्दबाजी में वह यह भूल गई थी कि उसके कंधे पर से उसके साड़ी का पल्लू नीचे गिर चुका था और वह चूल्हे के सामने बिना साड़ी के पल्लू की बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी दोनों चूचियां ब्लाउज में एकदम कसी हुई नजर आ रही थी लेकिन ऐसी अवस्था में ,, उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां ब्लाउज फाड़कर बाहर आने के लिए एकदम आतुर नजर आ रहे थे इस पर नजर पडते ही सूरज की हालत खराब होने लगी,,,।
सूरज एकदम से भूल गया कि उसे मुखिया की बीवी के साथ जल्दी आम के बगीचे पर जाना है वह तो अपनी मां के दोनों खरगोश में खो गया था और चूल्हे के आगे बेटी होने की वजह से उसके बदन से पसीना टपक रहा था और उसके माथे से पसीना बुंद बनकर उसके गोरे-गोरे गाल से होते हुए उसके गर्दन का रास्ता नापते हुए सीधे-सीधे उसके ब्लाउज के बीच वाली घाटी से होते हुए ब्लाउज के अंदर की तरफ जा रहे थे यह सब देखकर सूरज के लंड में हरकत होना शुरू हो गया,,, सुनैना इस बात से बेखबर खाना बनाने में लगी हुई थी,,, सूरज यह जानते हुए भी की जो कुछ भी वह अपनी मां की तरफ देख कर सो रहा है वह गलत है लेकिन फिर भी वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था अपनी मां की तरफ देखने से,,,खास करके उसकी चूचियों की तरह और वह भी चूल्हे के सामने बैठी होने की वजह से चूल्हे में जल रही आग की पीली रोशनी में उसका खूबसूरत बदन और भी ज्यादा चमक रहा था।। यह सब सूरज के लिए बहुत ही ज्यादा असहनीय होता जा रहा था। जिस तरह से सुनैना रोटियां बेल रही थी उसके हाथों की हरकत की वजह से उसके ब्लाउज में भी उतार चढ़ाव एकदम साफ नजर आ रहा था यह सब देखकर सूरज के लंड की अकड़ बढ़ती जा रही थी। इस नजारे को देखकर अनायास ही उसके मन में यह ख्याल आ गया कि काश उसकी मां ब्लाउज नहीं पहनी होती तो उसकी नंगी चूचियों को देखने में कितना मजा आता है लेकिन अपने इसी ख्याल पर वह अपने आप पर ही गुस्सा दिखाने लगा,। क्योंकि वह सब जानता था कि जो कुछ भी वर्क कर रहा है अपने मन में सोच रहा है वह बहुत ही गलत है लेकिन वह इससे ज्यादा कुछ सोच पाता इससे पहले ही सुनैना बोली।
बस ले अब तैयार हो गया है गरमा गरम खा ले,,,(इतना कहने के साथ ही एक थाली में थोड़ी सी सब्जी दाल चावल और रोटी निकालकर सूरज की तरफ आगे बढ़ा दी सूरज भी अपना हाथ आगे बढ़कर थाली को ले लिया और खाना शुरू कर दिया उसकी मां तुरंत अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और मटके से ठंडा ठंडा पानी गिलास भरकर लाई और उसके पास रख दी और उसे हिदायत देते हुए बोली,,)
देख रात का समय है और बगीचे का इसलिए ध्यान देना कहीं अकेले मत जाना जहां भी जाना अपने साथी लोग के साथ ही जाना,,, वैसे तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन तू भी अब बड़ा हो गया है कामकाज देखेगा तभी तो जीवन की गाड़ी आगे बढ़ेगी।
तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो ना मैं सब संभाल लूंगा,,,(निवाला मुंह में डालते हुए बोला और थोड़ी ही देर में वह खाना खा लिया और जाने के लिए तैयार हो गया था लेकिन जाते-जाते वह अपनी मां को बोला)
मैं अब जा रहा हूं पिताजी भी घर पर नहीं है इसलिए दरवाजा बंद कर लेना और खोलना नहीं और तुम दोनों की जल्दी से खाना खाकर सो जाना।
ठीक है सूरज तू अपना ख्याल रखना,,
ठीक है मां,,,(और इतना कहते हुए वह मुखिया की बीवी के घर की तरफ निकल गया,,, लेकिन रास्ते में वह अपनी मां की चूचियों के बारे में सोचने लगा,,, और अपने आप से ही बातें करते हुए बोला
मां की चूचीया कितनी बड़ी-बड़ी है,,, ब्लाउज में इतनी जबरदस्त लगती है तो बिना ब्लाउज की जब एकदम नंगी होती होगी तो कितनी खूबसूरत लगती होगी एकदम गोल-गोल खरबूजे जैसी मैंने तो कभी देखा भी नहीं है लेकिन ब्लाउज में उसकी गोलाई देखकर अंदाजा लगा लेता हूं कि कैसी दिखती होगी ,,, कसम से अभी तो मेरी हालत खराब हो गई थी,, अच्छा हुआ कि मां ने नहीं देखी,,, यह साला मुझे क्या हो जाता है सब कुछ जानते हुए भी की जो कुछ भी मैं देख रहा हूं जो सोच रहा हूं सब गलत है फिर भी मैं अपने आप को रोक क्यों नहीं पाता,,,, लेकिन पहले तो मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तो अब ऐसा क्यों हो रहा है मां को देखते ही मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगती है क्यों मेरी नजर उनके अंगों पर चली जाती है वैसे भी जिस दिन से मा की चुदाई देखा हूं तब से तो न जाने मेरे मन में कैसे-कैसे विचार आने लगे हैं।
उस दिन कमरे में मां और पिताजी पूरी तरह से नंगे थे लेकिन मुझे ज्यादा कुछ नहीं दिखाई दिया सिर्फ मां की बड़ी-बड़ी गांड और उसकी दोनों टांगों के बीच पिताजी का अंदर बाहर होता हुआ लंड मां की बुर भी मै अभी तक नहीं देख पाया,,, लेकिन वह नजारा देखकर मेरी तो हालत खराब हो गई थी मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरी मां भी चुदवाती होगी लेकिन सब कुछ मैं अपनी आंखों से देखा था पिताजी कैसे जोर-जोर से धक्के लगा रहे थे और न जाने कैसे-कैसे आवाज मां के मुंह से निकल रही थी इसका मतलब मन को भी चुदवाने में मजा आता है।
(सूरज अपने मन में यही सब सोते हुए और अपने आप से ही बात करते हुए आगे की तरफ चले जा रहा था वह अपनी बात को अपने मन में ही आगे बढ़ाते हुए अपने आप से ही बोला)
कितना अच्छा मौका था उसे दिन पूरी तरह से मांगी थी पिताजी नंगे थे लेकिन फिर भी ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पिताजी मां को नीचे लेट कर उसकी चुदाई करते तो मैं सब कुछ देख लेता उनके बुर भी देख लेता की कैसी उनके बुर हैं,,, नीलू की तो मैं अपनी आंखों से देख लिया था एकदम चिकनी कचोरी की तरह खुली हुई क्या इस तरह की मां की भी बुर होगी,,, पता नहीं मैं अभी तक नीलू की छोड़कर किसी और की बुर देखा ही नहीं,,, मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि सब की एक जैसी होती है कि अलग-अलग होती है लेकिन जो नशा देखकर हुआ था वह नशा आज तक मेरी नस-नस में घुला हुआ है,,,
पिताजी कितने कसकस के धक्के लगा रहे थे,,, पूरा दम लगाकर पता नहीं मा कैसे उनके धक्को को सहन कर पा रही थी,,,,,, कुछ पता ही नहीं चला था की मां को कैसा लग रहा है पता नहीं उन्हें दर्द कर रहा था कि मजा आ रहा था और वैसे भी दीवाल पकड़ कर झुकी हुई थी एकदम घोड़ी बनकर,,, जैसे की घोड़ी के ऊपर घोड़ा,,,, जो मां और पिताजी कर रहे थे उसे ही चुदाई कहते हैं और यह सब शादी के बाद ही होता है काश मेरी भी शादी हो गई होती तो मैं भी सब कुछ जान जाता,,,। और रोज मजे लेता,,,,।
(वह यही सब सोते हुए मुखिया के घर की तरफ चले जा रहा था कि तभी एक कुत्ता भोकता हुआ उसकी तरफ लपका तो उसका ध्यान एकदम से भंग हुआ और वह तुरंत नीचे से पत्थर उठा दिया और गाली देता हुआ उसकी तरफ चल दिया कुत्ता तुरंत वहां से भाग गया तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था उसे इस बात का डर था कि कहीं देर तो नहीं हो गई कहीं मुखिया की बीवी अकेले तो बगीचे पर नहीं चली गई यही सब सोता हुआ वह जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा जो की दुर से ही मुखिया का घर नजर आ रहा था। ऊपर वाले मंजिले पर बाहर की तरफ लालटेन चल रही थी क्योंकि दूर से ही दिखाई दे रही थी।
सूरज जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा और थोड़ी देर में पहुंच गया बाहर ही कुर्सी पर बैठकर मुखिया और मुखिया की बीवी सूरज का इंतजार कर रही थी सूरज को देखते ही मुखिया की बीवी बोली।
कहां रह गया था रे मैं कब से तेरा इंतजार कर रही हूं देख कितना समय हो गया या अंधेरा हो गया हमें और जल्दी जाना चाहिए था।
मैं माफी चाहता हूं मालकिन घर पर खाना बनने में देर हो गया था इसलिए जल्दी से खाकर मैं जल्दी-जल्दी भागता हुआ यहां आया हूं मुझे तो लग रहा था कि कहीं आप अकेले ना निकल गई हो।
अकेले क्यों जाऊंगी तुझे लिए बिना कैसे जा सकती हूं,,, तूने खाना खा लिया है।
हां मालकिन,,,
चल कोई बात नहीं खाना खा लिया तो ठीक ही है लेकिन खाने का डब्बा भी ले ले कहीं रात को भूख लग गई तो ,,,,
(इतना सुनते ही पास में पड़ा हुआ खाने के डब्बे को सूरज उठा लिया और फिर मुखिया जो वही कुर्सी पर बैठा हुआ था वह बोला)
सूरज वह सामने कुल्हाड़ी पड़ी है उसे भी ले ले,,,
कुल्हाड़ी क्यों मालिक,,,(सूरज आश्चार्य जताते हुए बोला,,,)
अरे पागल रात का समय है चोर उचक्के का डर तो रहता ही है लेकिन जंगली जानवरों का भी डर रहता है हाथ में हथियार रहेगा तो डर तो नहीं रहेगा।
(मुखिया की बात सुनकर सूरज को थोड़ी घबराहट हुई लेकिन फिर भी वहां मुखिया के बताएं अनुसार कुल्हाड़ी को हाथ में ले लिया और फिर मुखिया खुद अपनी जगह से खड़ा होकर लालटेन अपने हाथ में लिया और उसे अपनी बीवी को थमा दिया.. लालटेन को अपने हाथ में लेते हुए वह मुस्कुरा कर बोली,,,)
इसकी तो ज्यादा जरूरत है,,,,(और फिर एक हाथ में लालटेन और एक बड़ा सा डंडा अपने हाथ में लेकर दोनों आम के बगीचे की तरफ निकल गए)
लेखक महाशय सूरज का भला करने के चक्कर मे उसकी बहन को तो भूल ही गये. ऐसा मत किजीये. उस बेचारी का भी कल्याण कर दिजीये. बाकी कहानी तो बढिया चल रही है.
Sexy update Rony bhai tumhari lekhni ka jabaab nahi bina chudai ke pani nikalwa sakte ho tum. suraj or mukhiya ki biwi dono garam hai. Bas suraj nausikhiya hai is liye use samajh nahi aaraha. Varna to mukhiya ki biwi ko pel chuka hota abhi tak Lekin lagta hai bagiche me malish ke bahane baat ban jayegi awesome update aand superb writing मुखिया की बीवी एक हाथ में लालटेन और एक हाथ में बड़ा सा डंडा लेकर आम के बगीचे की ओर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी सूरज भी हाथ में कुल्हाड़ी ले लिया था हालांकि कुल्हाड़ी का जिक्र आते ही उसे थोड़ी बहुत घबराहट हुई थी लेकिन मुखिया की बीवी के साथ में होते ही ना जाने क्यों उसकी हिम्मत दुगनी हो जाती थी,,, वह भी बेफिक्र होकर हाथ में कुल्हाड़ी ले लिया था। सूरज के लिए यह पहला मौका था जब पहली बार वह रात को आम की रखवाली करने के लिए आम के बगीचे में जा रहा था वरना आज तक वह कभी रात को कहीं रुका ही नहीं था,,,। पैसों का लालच या किसी चीज को पाने का लालच उसमें बिल्कुल भी नहीं था अगर ऐसा होता तो शायद वह जाने के लिए तैयार भी नहीं होता लेकिन यहां बात थी मुखिया की बीवी के साथ रात गुजारने की उसके साथ रख कर आम के बगीचे की रखवाली करने की इसलिए सूरज तुरंततैयार हो गया था। क्योंकि मुखिया की बीवी का साथ ही उसके लिए काफी था।
देर तो हो चुकी थी लेकिन फिर भी मुखिया की बीवी सूरज को बिल्कुल भी डांट नहीं रही थी,,, और इसके पीछे उसका लालच भी छुपा हुआ था। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। घर से निकलते समय मुखिया की बीवी रोटी और सब्जी रुमाल में बांध ली थी ताकि रात को अगर भूख लगे तो खा सके वैसे तो दोनों घर से खा कर ही निकले थे और मुखिया की बीवी तो सूरज के खाने का इंतजाम घर पर एक ही थी लेकिन वह घर से खा कर ही आया था और इसी में देर भी हो चुकी थी।
धीरे-धीरे मुखिया की बीवी और सूरज दोनों आगे बढ़ रहे थे चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था थोड़ी देर में दोनों गांव से दूर निकल गए थे वैसे तो आम का बगीचा कुछ खास दूरी पर नहीं था लेकिन फिर भी आधा घंटे का समय लगता था। बात की शुरुआत इस तरह के माहौल में वैसे तो मुखिया की बीवी ही करती थी लेकिन सूरज से रहा नहीं जा रहा था इसलिए वह बोला।
मालकिन तुम इसी तरह से आपकी रखवाली करने के लिए रात को आती रहती हो।,,,,
हां रे,,, मेरा तो रोज का काम है आए दिन में आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए आती ही रहती हूं।
अकेली आती हो या फिर किसी के साथ,,,
वैसे तो अकेली कभी आई नहीं हूं क्योंकि रात का समय होता है तो अकेले थोड़ा तो डर लगता ही है लेकिन वैसे मुझे डर नहीं लगता लेकिन कोई साथ होता है तो अच्छा ही लगता है आज तू मिल गया तो तुझे लेकर आई हूं तू घर पर बात कर तो आया है ना।
हां मालकिन में घर पर बात कर आया हूं वैसे मैं घर से बाहर कभी रात को कहीं रुकता नहीं हूं लेकिन तुम्हारे कहने पर मैं चल रहा हूं।
(सूरज की इस बात पर मुखिया की बीवी मंद मंद मुस्कुराने लगी क्योंकि एक जवान होते लड़के के मन की बात को वह भी अच्छी तरह से समझती थी वह जानती थी कि सूरज किस लालच से उसके साथ रात को बगीचे की रखवाली करने के लिए आया है,,, सूरज की बात सुनकर मुस्कुराते हुए वह बोली,,)
तब तो बहुत अच्छा है कि तू मेरी बात मानने लगा है,,,, वैसे तुझे डर तो नहीं लगता ना रात में,,,
बिल्कुल भी नहीं मालकिन इसमें डरने का क्या है,,,
तब तो बहुत अच्छा है वैसे भी मुझे निडर लोग बहुत अच्छे लगते हैं डरपोक मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है,,,।
तुम भी बहुत बहादुर हो मालकिन वरना इस तरह से रात को कोई बगीचे की रखवाली करने के लिए औरत नहीं आती।
बात तो तो सही कह रहा है। और वैसे भी पहले में डरपोक रही थी लेकिन धीरे-धीरे जब घर की जिम्मेदारी अपने सर पर लेना पड़ता है तो निडर होना पड़ता है।
( मुखिया की बीवी भी काफी खुश नजर आ रही थी क्योंकि आज बहुत दिनों बाद वह आम के बगीचे की रखवाली जो करने जा रही थी और वह भी एक जवान लड़के के साथ,,,, चारों तरफ धुप्प अंधेरा छाया हुआ था,,, तकरीबन तीन-चार मीटर से ज्यादा दूर दिखाई नहीं दे रहा था इतना दे रहा था वह तो गनीमत थी कि आगेआगे मुखिया की बीवी लालटेन लेकर चल रही थी जिसकी रोशनी में सूरज सब कुछ साफ़-साफ़ देख पा रहा था उस दिन की तरह आज भी मुखिया की बीवी आगे आगे चल रही थी क्योंकि उसे दिन भी सूरज को नहीं मालूम था कि कहां जाना है और आज भी सूरज को नहीं मालूम था कि आम का बगीचा कहां है इसलिए दिशा निर्देश के लिए मुखिया की बीवी खुद आगेवानी करते हुए आगे आगे चल रही थी लेकिन उसके इस तरह से आगे चलने पर इसकी भारी भरकम नितंबों का घेराव लालटेन की पीली रोशनी में,,, एकदम साफ साफ दिखाई दे रहा था जो कि वातावरण और सूरज के मन में मादकता भर रहा था।
सूरज का ध्यान पूरी तरह से मुखिया की बीवी की गांड पर था,,, न जाने क्यों उसे मुखिया की बीवी की गांड का आकर्षण कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा था हालांकि अभी तक उसने मुखिया की बीवी की गांड को संपूर्ण रूप से नग्न अवस्था में नहीं देखा था। लेकिन फिर भी उसे पूरा यकीन था कि पूरा कपड़ा उतारने के बाद सबसे ज्यादा आकर्षक उसकी गांड ही नजर आती होगी,,, हालांकि नहाते समय जिस तरह से वह अपने कपड़े उतार रही थी उसके बदन की थोड़ी बहुत झलक सूरज देख लिया था जिसकी वजह से ही तो आज उसका मन उसका नजरिया पूरी तरह से बदल चुका था।,,,, कुछ देर वातावरण में पूरी तरह से खामोशी छाई रही,,,।
वातावरण में झींगुर की आवाज बड़ी तेज सुनाई दे रही थी रह रहकर कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी। बस्ती से दोनों काफी दूर आ चुके थे और वैसे भी एक गांव पूरी तरह से पहाड़ों से घिरा हुआ था इसलिए अंधेरे में कुछ ज्यादा ही,,, डरावना नजर आता था। जिस तरह का माहौल बना हुआ था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था अगर ऐसे समय में केवल मुखिया की बीवी को ही आना होता तो शायद वह डर के मारे नहीं आती और शायद सूरज भी इस तरह से अंधेरे में बाहर निकलने से घबराता,,, क्योंकि इससे पहले कभी भी वहां रात को बाहर और अभी इतनी दूर निकला नहीं था लेकिन आज की बात कुछ और थी,,, दोनों के मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं था दोनों निडर होकर आगे बढ़ रहे थे क्योंकि एक दूसरे का साथ जो था और उससे भी बड़ी बात थी कि दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण था,,,
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जवानी से भरी हुई मुखिया की बीवी सूरज का साथ पाकर पूरी तरह से भाव भी बोर हो चुकी थी वह एक साजिश के तौर पर उसे आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए ले जा रही थी क्योंकि वह उसकी जवानी से खेलना चाहती थी और जवानी के दहलीज पर कदम रख चुका सूरज एक जवान औरत का साथ प्रकार पूरी तरह से मत हो चुका था,,, उसके बदन के आकर्षण में पूरी तरह से अपने आप को डूबो चुका था,,, उसे यह तो नहीं मालूम था कि आम के बगीचे में उसके साथ क्या होने वाला है लेकिन वह बहुत खुश था,,,।
कुछ देर की खामोशी के बाद मुखिया की बीवी बोली,,,,।
बस अब आने ही वाला है,,,,आहहहह,,,(दर्द भरी कहानी की आवाज मुंह से निकलने के साथ ही अपनी हथेली को अपनी कमर पर रख दी और हल्का सा झुक गई और एक ही जगह पर खड़ी होकर,,) हाय दइया मर गई रे,,,
क्या हुआ मालकिन,,,,?(एकदम आश्चर्य से सूरज भी अपनी जगह पर खड़ा होकर बोला)
हाय मेरी कमर ऐसा लगता है कि जैसे मेरी जान लेकर छोड़ेगी,,,,,(मुखिया की बीवी उसी जगह पर खड़ी होकर अपनी हथेली को कमर पर हल्के-हल्के घूमाते हुए बोली,,, वह अपनी हरकत से सूरज का ध्यान अपनी कमर पर लाना चाहती थी लेकिन सूरज का ध्यान उसकी गोलाकार नितंबों पर था फिर भी वह कमर की तरफ देखते हुए बोला,,,)
कमर में क्या हो गया मालकिन,,,,!
ऊबड खाबड रास्ते से चलते हुए मेरी कमर लचक गई है,,,,आहहहहह,,,, बहुत दर्द कर रही हैं,,,,(एक कदम बढ़ाकर एकदम से लड़खड़ाने का नाटक करते हुए वह बोली,,, और मुखिया की बीवी को इस तरह से लड़खड़ाता हुआ देखकर सूरज से रहने की और वह तुरंत आगे बढ़ाकर उसकी कमर को दोनों हाथों से थाम लिया,,, और बोला,,,)
संभाल कर मालकिन,,,,,,
(जैसे ही मुखिया की बीवी ने अपनी कमर पर सूरज के मर्दाना हथेलियां का स्पर्श महसूस की वह पूरी तरह से मदहोश हो गई उसके बदन में एकदम से सुरसुराहट बढ़ गई,,,, खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में तो मानो जैसे आग लग गई हो,,,, तुरंत उसकी बुर नुमा कटोरी मदन रस से भर गई,,, मन तो उसका कर रहा था कि इसी समय सूरज को धर दबोचे और उसके ऊपर चढ़ जाए,,, लेकिन अनुभव से भरी हुई मुखिया की बीवी जल्दबाजी करने में नहींमानती थी,,,, वह जानती थी कि उसके दोनों टांग खोलते ही सूरज लार टपकाते हुए उसकी दोनों टांगों के बीच आ जाएगा,,,)
हाय दईया,,,,,,,(एकदम से मदहोश होते हुए मुखिया की बीवी बोली,,,,) अच्छा हुआ तू थाम लिया वरना मैं तो गिर जाती,,,,
मेरे होते हुए तुम कैसे गिर जाओगी मालकिन,,, मैं किस लिए हूं,,,,
अरे इसीलिए तो तुझे लेकर आई हूं,,,,(और इतना कहने के साथ ही वह खुद ही सूरज के कंधे पर हाथ रख दी और बोली) मुझे तो एक कदम भी नहीं चला जा रहा है,,,,, तुझे सहारा देकर ही मुझे ले जाना पड़ेगा,,,,,।
(सूरज के कंधे पर हाथ डालकर सहारा लेते ही सूरज के तन बदन में आग लग गई थी एक खूबसूरत औरत का इस तरह से उसके बदन से चिपकना उसे बहुत ज्यादा उत्तेजित कर रहा था उसका लंड पूरी तरह से औकात में आकर खड़ा हो चुका था उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि जिस तरह से वह उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर सहारा ली थी उसकी भाई च सीधे-सीधे उसके एक तरफ की छाती से स्पर्श हो रही थी और सूरज भी उसे सहारा देते हुए अपने हाथ को दूसरी तरफ से उसकी कमर पर लपेट रखा था कुल मिलाकर दोनों की हरकत बेहद कामोत्तेजना से भरी हुई थी ,,,)
लाओ मालकिन लालटेन मुझे दे दो,,,(और इतना कहने के साथ ही सूरज मुखिया की बीवी के हाथ से लालटेन को अपने हाथ में ले लिया और उसकी पीली रोशनी में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा,,,,)
मुझे नहीं मालूम था रे की कमर इतनी ज्यादा परेशान करेगी वरना मैं आज नहीं आती,,,,(धीरे-धीरे लंगड़ा कर पैर आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)
कोई बात नहीं मालकिन में हूं ना तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं है,,,।
तू तो बहुत अच्छा लड़का है मुझे लगता है कि तो हम लोगों का साथ बहुत देगा,,,, अब तो हमारे लिए ही काम किया कर पैसे इज्जत सब कुछ मिलेगा।
यह तो आपका बड़प्पन है मालकिन जो आपने काम के लिए मुझे चुना है,,,,(सूरज और मुखिया की बीवी बातें करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे मुखिया की बीवी की कमर में और ना ही पैर में बिल्कुल भी तकलीफ नहीं थी वह तो सिर्फ अपना जादू चल रही थी सूरज के ऊपर जो कि अच्छा खासा काम भी कर रहा था क्योंकि लालटेन की रोशनी में मुखिया की बीवी की नजर उसके पजामा के आगे वाले भाग पर थी जो की काफी उठा हुआ था उसमें तंबू बना हुआ था यही देखकर मुखिया की बीवी मन ही मनपसंद भी हो रही थी और उतेजित भी हो रही थी क्योंकि उसका जादू काम कर रहा था,,,, सूरज बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)
अभी कितना दूर है मालकिन,,,,
बस आने ही वाला है तुझे तकलीफ हो रही है क्या,,,!
नहीं नहीं मालकिन मुझे बिल्कुल भी तकलीफ नहीं हो रही है मैं तो जिंदगी भर तुम्हें सहारा देकर इसी तरह से चल सकता हूं,,,।
अरे वाह रे बातें तो तू बड़ी-बड़ी करता है,,, एकदम मर्द की तरह,,,
मैं भी तो मर्द ही हूं मालकिन,,,,
हां वह तो दिखाई दे ही रहा है,,,(कनखियों से सूरज के पजामे की तरफ देखते हुए बोली,,, वैसे भी इस तरह से मुखिया की बीवी को सहारा देने में उसे किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं थी जिस तरह से वह मुखिया की बीवी की कमर पर हाथ रखा हुआ था उसके कमर की चिकनाहट उसकी हथेली में स्पर्श हो रही थी,,, सूरज को अब जाकर इस बात का एहसास हो रहा था की औरतों की कमर कितनी चिकनी होती है एकदम मक्खन की तरह उसकी हथेली फिसल जा रही थी और मुखिया की बीवी सूरज की हथेली को अपनी कमर पर महसूस करके गनगना जा रही थी,,,,)
मैंने कितनी बार शालू और नीलू को कहा कि मेरी कमर की मालिश कर दे लेकिन वह दोनों है कि दिनभर बस खेलती रहती है इधर-उधर मेरी बात सुनती ही नहीं है,,,,
(मुखिया की बीवी जानबूझकर सूरज से कमर की मालिश वाली बात बोली थी और सच तो यही था कि ना तो उसकी कमर में दर्द हो रहा था ना ही वह मालिश के लिए चालू और नीलू को बोली थी वह तो बस सूरज के मन को टटोल रही थी)
हां मालकिन वो तो में देखा हूं,,, शालू और नीलू दोनों दिन भर बस घूमती रहती है उन्हें चाहिए था कि तुम्हारी कमर की मालिश कर देती ताकि आराम हो जाता,,,,
अरे सूरज मेरी कहां सुनने वाली है दोनों मैं तो परेशान हो गई हूं बस जल्दी से जल्दी दोनों के हाथ पीले करके ससुराल भेज दु तो समझ लूं की गंगा नहा ली,,, अच्छा सूरज तुझे आता है क्या मालिश करना,,,,
ममममम,, मालिश करना,,,,,,हां,,,हां,,, आता तो है एक दो बार मैंने मालिश किया हूं मां की उनकी भी कमर में इसी तरह का दर्द होता था,,,,(सूरज हड बढ़ाते हुए झूठ बोल रहा था,,, क्योंकि मालिश वाली बात सुनकर उसके मन में उमंग जगने लगी थी ,,, उसे इस बात का एहसास होने लगा था की मुखिया की बीवी उसे मालिश करने के लिए जरुर बोलेगी इसीलिए वह इनकार नहीं कर पाया और सच तो यही था कि उसे मालिश करना नहीं आता था और ना ही कभी उसने अपनी मां की मालिश किया था बस वह ईस मौके को जाने नहीं देना चाहता था,,,, मालिश के बहाने वहां मुखिया की बीवी की मक्खन जैसी कमर को अपने हाथों से छूना चाहता था स्पर्श करना चाहता था रगड़ना चाहता था इसलिए सूरज की बात सुनते ही वह बोली,,,,)
तब तो ठीक है तब तो तू मेरी भी मालिश कर लेगा ना,,,
जरूर मालकिन इसमें कौन सी बड़ी बात है,,,
सूरज तु कितना अच्छा लड़का है,,, काश तू मेरा बेटा होता तो मुझे यह सब चिंता करने की जरूरत ही नहीं होती,,,,
कोई बात नहीं मालकिन अपना ही समझो,,,,
(वैसे तो सूरज को औरतों से बात करने का अनुभव बिल्कुल भी नहीं था लेकिन न जाने क्यों इस समय वह मुखिया की बीवी के साथ एक मजे हुए मर्द की तरह बातें कर रहा था ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह पहली बार किसी औरत से बात कर रहा हो ऐसा लग रहा था कि जैसे वह इस तरह की बातें औरतों से कर चुका है और उसे इस तरह की बातें करने में मजा भी आ रही थी,,,, मुखिया की बीवी की तो हालत खराब होती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का तूफान उठ रहा था वह न जाने किस तरह से अपने आप को संभाली हुई थी वरना उसका मन तो चुदवाने के लिए मचल रहा था,,, उसकी बर पानी पानी हो रही थी उसे अपनी बुर से मदन रस टपकता हुआ महसूस हो रहा था,,,, मालिश वाली बात का जिक्र छेड़ कर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी की मालिश करवाने के बहाने वह अपने हर एक अंक को खोलकर सूरज को दिखा सकेगी और फिर सूरज को अपनी जवानी का जलवा दिखाकर मदहोश करके अपनी मनमानी करवा सकेगी और अपनी जवानी की आग बुझा सकेगी,,,,, क्योंकि अभी तक खेतों में जिस तरह से उसे गिरने से बचाते हुए सूरज ने उसे अपनी बाहों में भर लिया था,,, साड़ी के ऊपर से ही उसके लंड की चुभन उसे अभी तक महसूस होती थी,,,, और इस चुभन को महसूस करके मुखिया की बीवी अंदाजा लगा ली थी कि सूरज के पास जो मर्दाना अंग है वह बहुत खास और मजबूत है जो कि उसे अपनी बुर में लेकर वह पूरी तरह से अपनी जवानी का रस निचोड़ सकेगी,,,,)
रात धीरे-धीरे गहरा रही है देखो तो सही चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है और वैसे भी हम लोग गांव से काफी दूर आ चुके हैं,,,,
सही कह रहा है सूरज तू,,,, इसीलिए तो मुझे आम के बगीचे की रखवाली करने आना पड़ता है क्योंकि यह दूर है और यहां पर लोग आसानी से आम चुरा ले जाते हैं,,,,
(चूड़ियों की खनक पायल की झनक से वातावरण और भी ज्यादा उत्तेजित हुआ जा रहा था मुखिया की बीवी के खूबसूरत बदन की मादक खुशबू सूरज के तन बदन में आग लग रही थी पहली बार वह किसी औरत को इस तरह से अपने बदन से सटाया हुआ था इसीलिए तो औरत के बदन की खुशबू भी उसे महसूस हो रही थी,,,,,,, यहां तक की उसकी चूचियों की रगड़ से उसके बदन में उत्तेजना बरकरार थी वह पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था यहां तक कि उसे अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा था,,,। और यही हाल मुखिया की बीवी का भी था उसकी बुर पानी पानी हो रही थी यहां तक की उसकी पर से निकलने वाला पानी उसे अपनी जांघों पर टपकता हुआ महसूस हो रहा था और जिस तरह से उसकी चूची उसकी छाती से रगड़ खा रही थी,,, उसकी वजह से उसकी चूची में उत्तेजना के चलते कसाव बढ़ता जा रहा था,,,,,, थोड़ी ही देर में आपका बगीचा दिखाई देने लगा बड़े-बड़े पेड़ की वजह से उसे जगह पर और भी ज्यादा अंधेरा छाया हुआ था,,,,, बगीचे पर नजर पडते ही मुखिया की बीवी बोली,,,।)
वह देख सूरज बगीचा आ गया,,,,
हां मालकिन बहुत बड़े-बड़े पेड़ हैं इसके आम भी तो बड़े-बड़े होंगे,,,,
बहुत बड़े-बड़े है रे चल तुझे दिखाती हूं,,,,
(मुखिया की बीवी यह बात अपनी चूचियों को लेकर बोली थी लेकिन सूरज समझ नहीं पाया था,,,, सूरज अभी भी उसी तरह से उसे सहारा देकर आगे बढ़ रहा था उसके हाथ में लालटेन थी और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी थी और मुखिया की बीवी उसके कंधे पर हाथ रखकर एक हाथ में डंडा लेकर उसके सहारे से चल रही थी,,,, आम के बगीचे में प्रवेश करने से पहले ही वह शर्माने का नाटक करते हुए धीरे से बोली,,,)
ररररररर,,,, यही रुक जा सूरज,,,,,
(उसकी बात सुनते ही सूरज एकदम से रुक गया और उसकी तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोला)
क्यों क्या हुआ मालकिन,,,,
अब तुझे कैसे कहूं मैं,,,,(इधर-उधर देखकर शर्माने का नाटक करते हुए बोली)
क्यों क्या हुआ बोलो तो सही,,,,
मुझे बड़ी जोरों की पेशाब लगी है,,,,
(मुखिया की बीवी के मुंह से पेशाब शब्द सुनते ही उत्तेजना के मारे सूरज का गला सूखने लगा पहली बार किसी औरत के मुंह से पेशाब करने वाली बात सुन रहा था उसका दिल जोरो से धड़कने लगा था वह पल भर में उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुका था वह आश्चर्य से मुखिया की बीवी के खूबसूरत चेहरे की तरफ देख रहा था जो की लालटेन की पीली रोशनी में और भी ज्यादा दमक रहा था,,,)
Gajab ka update kamuk update, awesome updateमुखिया की बीवी और सूरज दोनों आम के बगीचे में पहुंच चुके थे बगीचा एकदम घना था चारों तरफ आम के बड़े-बड़े पेड़ नजर आ रहे थे वैसे रात का समय था इसलिए कुछ खास ज्यादा दिखाई तो नहीं दे रहा था लेकिन जिस तरह का घना अंधेरा था उसे देखते हुए सूरत समझ गया था कि यह जगह आम के पेड़ों से पूरी तरह से घिरा हुआ था,,, और ऐसे में मुखिया की बीवी का पेशाब करने वाली बात का कहना सूरज के लिए पूरी तरह से उत्तेजना का संचार करने वाला साबित हो रहा था क्योंकि आज तक सूरज ने किसी औरत के मुंह से यह कहते हुए नहीं सुना था कि उसे बड़े जोरों की पेशाब लगी है यह मौका उसके लिए पहली बार का था इसीलिए तो उसके कान एकदम से खड़े हो गए थे और साथ में उसके पजामे में उसका लंड भी,,,, अपनी औकात में आ चुका था,,,,।
मुखिया की बीवी के मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से चौंक गया था क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई औरत उसे यह शब्द का प्रयोग कर सकती है वह आश्चर्य से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था जो की लालटेन की पीली रोशनी में पूरी तरह से दमक रहा था सूरज को पहली बार एहसास हो रहा था की मुखिया की बीवी कुछ ज्यादा ही खूबसूरत है उसका भरा हुआ चेहरा गोल-गोल ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे गुलाब का फूल हो,,,, वह अभी भी सूरज के कंधों का सहारा लेकर खड़ी थी उसके बदन से उठ रही मादक खुशबू सूरज की तन बदन में आग लग रही थी इतने करीब वह किसी भी औरत के नहीं आया था जितना करीब मुखिया की बीवी के था,,,।
वैसे तो वह जानबूझकर ही सूरज को अपनी गांड दिखाने के लिए पेशाब करने वाली बात कही थी लेकिन पेशाब करने के नाम से ही उसे वास्तव में बड़े जोरों की पेशाब लग गई थी जिसकी वजह से वह अपने पैर को इधर-उधर रख रही थी वह अपनी पेशाब की तीव्रता को रोक नहीं पा रही थी उसकी हालत को देखकर सूरज भी समझ गया था कि वाकई में इसे पेशाब लगी है लेकिन वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था क्योंकि उसने आज तक किसी भी औरत को पेशाब करने की मुद्रा में कल्पना नहीं किया था उसके जीवन में पहली औरत उसके दोस्त की चाची थी जिसे वह पेशाब करते हुए देखा था और उसके दोस्त ने हीं दिखाया था,,,। सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि मुखिया की बीवी से वह क्या बोले,,, और मुखिया की बीवी खेली खाई औरत थी सूरज के मन की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी सूरज के चेहरे के बदलते भाव को देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह समझ गई थी कि उसके मुंह से पेशाब करने वाली बात सुनकर सूरज पूरी तरह से हक्का-बक्का हो गया है,,,, इसलिए वह फिर से बोली,,,,।
समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,,,,!
अब जैसा तुम ठीक समझो अगर रोक सको तो,,,(घबराते हुए सूरज ने बोला उसकी बात सुनकर मुखिया की बीवी बोली,,,,)
पागल हो गया है क्या कोई रोक सकता है अगर रोक भी सकता है तो कितनी देर तक पेट दर्द करने लगेगा पागल,,,
नहीं मेरे कहने का मतलब यह नहीं था,,,,
तू रहने दे अपने खाने के मतलब को यहां मेरी हालत खराब हो रही है अच्छा तो एक काम कर लालटेन को ठीक से पकड़,,,, और मेरी तरफ तु बिल्कुल भी मत देखना,,,
कैसी बात कर रही हो मालकिन मैं इतना बेशर्म थोड़ी हूं जो किसी औरत को,,,,(इतना कहकर सूरज रुक गया क्योंकि आगे का शब्द उसे कहने में शर्म महसूस हो रही,,, थी,,,।)
अच्छा ठीक है तो मुझे सहारा देकर उस झाड़ियों के पास ले जा,,,,
कहां ,,,,,,उधर,,,,(हाथ के इशारे से घनी झाड़ियां के बीच बताते हुए सूरज बोला,,,)
हां वही आज तो मुझे आना ही नहीं चाहिए था अगर मुझे पता होता है कितनी दिक्कत होगी तो मैं आता ही नहीं लेकिन अगर नहीं आती तो,,,, फिर कोई भी जाकर आम तोड़ कर ले जाता तूने देखा नहीं है सूरज इस बगीचे के हम बहुत बड़े-बड़े हैं खरबूजे जैसे मैं तुझे कल दूंगी,,,,,(मुखिया की बीवी के बाद जीत के दौरान सूरज उसे सहारा देकर घड़ी झाड़ियां के पास ले गया)
अब तू थोड़ा पीछे हो जा,,, लालटेन जितना लालटेन की रोशनी से ज्यादा दूर नहीं क्योंकि सांप बिच्छू का डर रहता है।
तुम चिंता मत करो मालकिन मैं चारों तरफ देख रहा हूं,,,,
भले तो चारों तरफ देखना लेकिन मेरी तरफ अभी मत देखना मुझे बहुत शर्म आती है,,,
नहीं नहीं मालकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा मैं इतना गिरा हुआ नहीं हूं,,,,।
(मुखिया की बीवी जान बैठकर उसे अपनी तरफ ना देखने के लिए बोल रही थी लेकिन वह जानती थी कि सूरज उसे देखे बिना नहीं रह पाएगा क्योंकि वह मर्दों की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ थी,,, सूरज तीन-चार कदम दूर जाकर खड़ा हो गया जहां से लालटेन की रोशनी मुखिया की बीवी तक आराम से पहुंच रही थी वैसे भी वह इससे ज्यादा दूर नहीं जाना चाहता था क्योंकि वह लालटेन की रोशनी में मुखिया की बीवी को पेशाब करते हुए देखना चाहता था उसकी नंगी गांड के दर्शन करना चाहता था वह देखना चाहता था की पेशाब करती हुई औरत कितनी खूबसूरत लगती है क्योंकि वह अपने मां के इस लालच को दवा नहीं पा रहा था भले ही मुखिया की बीवी ने उसे ऐसा न करने की सलाह दी थी लेकिन वह मानने वाला नहीं था वह क्या दुनिया का कोई भी मर्द होता तो शायद इस समय मुखिया की बीवी की बात मानने से इनकार कर देता,,,,, मुखिया की बीवी झाड़ियां के पास खड़ी थी वह जानती थी कि इस बगीचे में सूरज के सिवा और कोई नहीं है फिर भी वह इधर-उधर देख ले रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है यह उसकी आदत में शुमार था वैसे भले ही वह छिनार बन चुकी थी लेकिन फिर भी पेशाब करते हैं समय आदत के अनुसार वह इधर-उधर देख लेती थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है और वैसे भी ज्यादा तर वह पेशाब करने बैठी थी तो किसी ना किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ही,,,, जिसमें आज सूरज का नंबर था सूरज को वह पूरी तरह से अपनी जवानी का दीवाना बना देना चाहती थी ताकि वह उसका गुलाम बनकर रह जाए,,,, मुखिया की बीवी अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ कर सूरज की तरफ देखे बिना ही वह बोली,,,)
तु यहां देख तो नहीं रहा है ना,,,,
नहीं मालकिन बिल्कुल भी नहीं,,,,( वह जानबूझकर अपनी नजर को दूसरी तरफ घूम लिया था)
ठीक है ऐसे ही खड़े रहना जब तक कि मैं पेशाब न कर लूं,,,,,(और इतना कहते हुए वहां अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों का सहारा लेकर अपनी साड़ी को उसमें फंसा कर ऊपर की तरफ उठने लगी जैसे-जैसे साड़ी ऊपर की तरफ जा रही थी वैसे सूरज का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था वह तिरछी नजर से मुखिया की बीवी की तरफ ही देख रहा था,,,, देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसके घुटनों तक उड़ गई उसकी मोटी मोटी मांसल चिकनी पिंडलियों को देखकर सूरज के बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसका लंड अकड़ने लगा,,,, धीरे-धीरे मुखिया की बीवी साड़ी को अपनी टांगों के ऊपर ले जा रही थी वह जानबूझकर धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर उठा रही थी ताकि सूरज उसके बेहतरीन हुस्न को देखकर मदहोश हो जाए उसकी जवानी चारों खाने चित हो जाए,,, और ऐसा हो भी रहा था।
देखते ही देखते मुखिया की बीवी की साड़ी उसकी मोटी मोटी जांघों की ऊपर तक आ गई इतना ऊपर की सूरज को उसके नितंबों का नीचला हिस्सा दिखने लगा था और नितंबों के उसे गोलाकार आकार को देखकर सूरज की तो जैसे सांस ही अटकी जा रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था गांव से दूर अाम के बगीचे में इतना गर्म गर्म दृश्य देखने को मिलेगा उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था। जिस तरह से सूरज की हालत खराब थी उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी हालत खराब हो रही थी हालांकि वह कई मर्दों के सामने अपने वस्त्र उतार कर नग्न हो चुकी थी लेकिन आज पहली बार उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि कपड़े उतारते समय भी उसके बाद में उत्तेजना की लहर उठ रही थी वह मदहोश हो रही थी,,, आज उसे एक जवान लड़की के सामने अपने कपड़े उठाने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी और इस शर्म की महसूसियत उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार से बहती हुई महसूस हो रही थी,,,,।
जिस तरह से सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था उसी तरह से मुखिया की बीवी की भी सांस बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि बस थोड़ा सा और उसकी अपनी साड़ी उठाना था इसके बाद सूरज को वही दिखने वाला था जो वह दिखाना चाहती थी उसकी गांड एकदम नंगी हो जाने वाली थी और इसी पल का सूरज के साथ-सा त मुखिया की बीवी को भी बड़ी बेसब्री से इंतजार,,,।
आम के बगीचे में पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ था बस चारों तरफ झींगुरों का शोर मचा हुआ था रहने कर दूर दराज से कुत्ते के भौंकने की भी आवाज आ रही थी कुल मिलाकर वातावरण भयानक ही था लेकिन इस भयानक वातावरण में भी मुखिया की बीवी अपनी जवानी के जोर से पूरे वातावरण को मदहोश बना दी थी,, सूरज जो की रात को बेवजह घर के बाहर नहीं निकलता था आज पहली बार मुखिया की बीवी के साथ वह खुली रात का आनंद ले रहा था और उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि रात में कितना मजा आता है रात में जितना दर का माहौल होता है उससे भी ज्यादा कहीं आनंद का माहौल बना होता है बस माहौल बनाने वाली होनी चाहिए,,, और इस समय रात के भयानक वातावरण में मदहोश कर देने वाला माहौल बनाने वाली थी मुखिया की बीवी जिसके अंग अंग से जवानी टपक रही थी,,,।
मुखिया की बीवी अब ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी क्योंकि अभी रात बहुत बाकी थी और पूरी रात उसे आनंद लेना था इसलिए वह अपनी उंगलियों को हरकत करते हुए बाकी साड़ियों को भी अपने नितंबों से ऊपर उठा ली और देखते ही देखते लालटेन की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी की भारी भरकम गोरी गोरी गांड एकदम से चमकने लगी जिस पर नजर पड़ते ही सूरज की हालत एकदम से खराब हो गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई मुखिया की बीवी की नंगी गांड देखकर वह मदहोश हो गया,,,,।
देख तो नहीं रहा है ना रे,,,,।
(मुखिया की बीवी पीछे नजर घुमाई बिना ही बोली क्योंकि वह तो जानती ही थी कि सूरज उसे ही देख रहा होगा पर इसीलिए वह सूरज के रंग में भंग नहीं डालना चाहती थी,,,, मुखिया की बीवी के इस सवाल पर सूरज पूरी तरह से हड़बड़ा गया और हडबढ़ाते स्वर में बोला,,,।)
नननन,,, नहीं बिल्कुल भी नहीं मैं ऐसा कर भी नहीं सकता,,,,।
(सूरज के लड़खड़ाते शब्दों को सुनकर मुखिया की बीवी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव में जलने लगी क्योंकि उसके लड़का आते हुए शब्द ही उसके मन की बात को बयां कर रहे थे वह मुस्कुराने लगी और साड़ी को कमर तक उठाए हुए ही वह नीचे बैठ गई और अगले ही पल उसकी गुलाबी पूरे से पेशाब की धार फूट पड़ी और उसमें से एक तीर्व मधुर आवाज पूरे वातावरण में गुंजने लगी जो कि यह आवाज सूरज के कानों तक बड़े आसानी से पहुंच रही थी सूरत समझ गया था कि उसकी बुर से पेशाब निकल रहा है वह भी इस एहसास से ही मदहोश हुआ जा रहा था उसका लंड पूरी तरह से अकड़ गया था,,,। सूरज के लिए यह नजारा बेहद अद्भुत और अतुलनीय इस तरह के नजर को कभी अपनी आंखों से देखा नहीं था बस उसके दोस्त ने दूर से ही दिखाया था लेकिन इतना साफ-साफ उसे समय भी नहीं नजर आ रहा था क्योंकि वह काफी दूर था और झाड़ियां के पीछे खुद छुपा हुआ था लेकिन यहां सब कुछ खुला था लाल टीम की पीली रोशनी में मुखिया की बीवी पूरी तरह से नजर आ रही थी उसकी नंगी बड़ी-बड़ी गांड देखकर तू सूरज के मुंह में पानी आ रहा था उसका मन कर रहा था कि आगे बढ़कर मुखिया की बीवी की गांड को दोनों हाथों से पकड़ ले वह औरत की गांड को दोनों हाथों से पकडने का सुख भोगना चाहता था उसे सहलाना चाहता था देखना चाहता था की साड़ी में कसी हुई गांड वास्तव में छूने पर कैसी होती है,,,,।
मुखिया की बीवी की गुलाबी बुर में से निकल रही सीधी की आवाज पूरे वातावरण में गूंज रही थी और इस बात का एहसास मुखिया की बीवी को भी था वह अच्छी तरह से जानती थी कि बुर से निकल रही सिटी की आवाज सूरज के कानों में अच्छी तरह से पहुंच रही होगी और वही समाज को सुनकर पूरी तरह से मदहोश हो चुका होगा,,, वह इतना तो जानती ही थी कि सूरज उसकी तरफ ही देख रहा होगा लेकिन फिर भी वह अपने मन की तसल्ली के लिए हल्की नजरों से पीछे की तरफ देखने की कोशिश की तो वास्तव में सूरज आंख फाड़े उसकी तरफ ही देख रहा था उसके एक हाथ में कल आ रही थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी,,, मुखिया की बीवी के तेज नजरों ने उसकी पजामे में उठे हुए भाग को भी देख ली थी और उसे भाग को देखकर उसके चेहरे की प्रसन्नता बढ़ने लगी और अंदर ही अंदर खुश होने लगी क्योंकि वह अपनी चाल में कामयाब होती हुई नजर आ रही थी वह जानती थी कि आज रात भर वह सूरज के साथ मजा लुटेगी,,,। फिर भी वह बोली,,,)
क्या रे सूरज देखा तो नहीं रहा है ना,,,
बिल्कुल भी नहीं मालकिन मैं अपने वादे का पक्का हूं एक बार कह दिया तो कह दिया,,,
मुझे तुझे यही उम्मीद थी तेरी जगह कोई और होता तो अपनी नजरों को यहां घूमाने से रोक नहीं पाता तु बहुत सीधा लड़का है,,।
(ऐसा कहते हुए वह अपनी बुर की गुलाबी छेद के अंदर से जोर लगाकर बड़े जोरों से पेशाब कर रही थी और उसके पेशाब की धार सामने की घास को भिगो रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पानी दे रही हो,,,, देखते ही देखते वह पूरी तरह से पेशाब कर चुकी थी लेकिन उसके झांट के बालों में उसके पेशाब की बूंदे अभी भी लगी हुई थी जिसे वह उठने से पहले अपनी बड़ी-बड़ी भारी भरकम गांड को झटका देते हुए अपने झांट के बाल में से पेशाब की बूंद को नीचे गिराने की कोशिश करने लगी,,, लेकिन उसकी यह हरकत सूरज के लिए बेहद जानलेवा साबित हो रही थी सूरज ठीक उसके पीछे खड़ा होकर मुखिया की बीवी को अपनी गांड झटकाते हुए देख रहा था,,, और उसके ऐसा करने पर उसकी गांड पूरी तरह से पानी में गिरे कंकड की तरह लहर मार रही थी,,, मुखिया की बीवी की तरफ से उसकी है हरकत सूरज को पूरी तरह से मदहोश कर गई और अनजाने में ही उसका हाथ पजामा के ऊपर से ही उसके खड़े लंड पर आ गया जिसे वह जोर से दबा दिया,,,, और उसकी यह हरकत पैनी नजरों से मुखिया की बीवी ने देख ली थी,,,। और मंद मंद मुस्कुराने लगी उसे यकीन हो गया था कि उसका जादू सूरज पर पूरी तरह से चल गया था,,, और वह पेशाब करने के बाद धीरे से उठकर खड़ी हो गई और फिर कमर तक उठे हुई साड़ी को वह धीरे से नीचे गिरा दी और पल भर में ही एक खूबसूरत नाटक पर पर्दा पड़ गया,,,, वह मुस्कुराते हुए सूरज की तरफ घूम गई और बोली,,,।
अब जाकर राहत हुई वरना ऐसा लग रहा था कि मैं चल ही नहीं पाऊंगी इतना दर्द कर रहा था मेरा पेट,,,,
चलो अच्छा हुआ मालकिन की तुम्हें आराम हो गया,,,,।
(सूरज चलने को तैयार था लेकिन मुखिया की बीवी उसके पास आकर उसके हाथ से लालटेन और कुल्हाड़ी लेते हुए बोली,,,,)
एक काम कर सूरज तू भी पेशाब कर ले वरना रात को लगेगी तो ऐसे माहौल में बाहर निकलना ठीक नहीं है क्योंकि सियार घूमते ही रहते हैं,,,,।
(सियार शब्द सुनकर ही सूरज को थोड़ी घबराहट हुई वह पेशाब नहीं करना चाहता था क्योंकि उसे लगी नहीं थी लेकिन मुखिया की बीवी का ठीक कहना भी था अगर रात को लगेगी तब क्या करेगा,,,, इसलिए वह तैयार हो गया और जहां पर मुखिया की बीवी बैठकर पेशाब कर रही थी उसे जगह पर जाने लगा और उसने लालटेन की रोशनी में गीली जमीन को देखा तो मन ही मन उत्तेजित होने लगा क्योंकि जहां पर मुखिया की बीवी बेठी थी वहां की मिट्टी मुखिया की बीवी के पेशाब से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,,,,। सूरज कदम आगे बढ़कर वहां से आगे निकल जाना चाहता था क्योंकि उसे भी मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में शर्म महसूस हो रही थी लेकिन तभी मुखिया की बीवी ने उसे रोकते हुए बोली,,,)
अरे आगे मत जा जहां पर मैं कर रही थी वही कर ले आगे सांप बिच्छू का डर रहता है,,,,।
(मुखिया की बीवी अपने फायदे के लिए उसे पास में रखना चाहती थी लेकिन वह शर्म के मारे आगे चला गया लेकिन जैसे ही वह अपने पजामे पर हाथ रख वैसे ही झाड़ियां में हलचल हुई और वह एकदम से घबरा गया और तो कभी पीछे ले लिया मुखिया की बीवी भी इसी पल का फायदा उठाते हुए उसके पास पहुंच गई और उसका हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ खींचने लगी और बोली,,,,)
मैं कह रही हूं ना कि मत जा सांप बिच्छू का डर रहता है देख सांप निकल कर गया ना,,,,।
ओहहहह मालकिन मैं तो देखा ही नहीं मैं तो एकदम से घबरा गया,,,,।(डर के मारे हांफते हुए सूरज बोला,,,)
इसलिए तो कह रही हूं,,,, चल अब आगे मत जा यही पेशाब कर ले,,,, अगर तुझे कुछ हो गया तो तेरे घर वालों को क्या जवाब दूंगी,,,,,।
(झाड़ियों में सुरसुराहट की वजह से मुखिया की बीवी का काम बनता हुआ नजर आ रहा था,,,,, मुखिया की बीवी की बात सुनकर सूरज असहज होता हुआ बोला,,,,)
यहां,,,, नहीं नहीं मुझसे नहीं होगा,,, तुम्हारे सामने कैसे,,,,,
अरे तो क्या हो गया,,,, तू तो मेरे बेटे जैसा है और कोई मां भला अपने बेटे को नुकसान होने देना चाहेगी इसलिए तू यहीं पर कर ले अगर तुझे शर्म आती है तो मैं अपनी नजर घुमा लेती हूं,,,,,।
(इतना कहते हुए मुखिया की बीवी चालाकी दिखाते हुए अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमली थी उसके हाथ में कुल्हाड़ी थी और दूसरे हाथ में लालटेन थी लालटेन की पीली रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था मुखिया की बीवी के सामने पेशाब करने में सूरज शर्म महसूस कर रहा था लेकिन उसे भी जोरों की पेशाब लग चुकी थी और मुखिया की बीवी नजर दूसरी तरफ घूम कर रखी थी इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ने लगी और वह धीरे से पजामे को पकड़ कर नीचे कर दिया पजामे के नीचे होते ही उसका खड़ा लंड एकदम से हवा में झूलने लगा,,,, झाड़ियों में हुई सुरसुराहट की वजह से कुछ देर के लिए उसके लंड में थोड़ा ढीलापन आ गया था लेकिन सूरज के हाथ में आते ही एक बार फिर से उसमें रक्त का प्रभाव बड़ी तेजी से होने लगा और वह एकदम से कड़क हो गया और वह शर्म महसूस करते हुए पेशाब करना शुरू कर दिया,,, पेशाब गिरने की आवाज कान में पडते ही,,, मुखिया की बीवी की दोनों कामों के बीच हलचल होना शुरू हो गया उसकी उत्सुकता बढ़ने लगी और वह अपने आप को सूरज की तरफ देखने से रोक नहीं पाई,,,, और वह धीरे से सूरज के लंड की तरफ निगाह घूमा कर देखने लगी तो उसके होश उड़ गए,,,, उसका मुंह खुला का खुला रह गया उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि आज तक कुछ नहीं इतना मोटा और लंबा लंड कभी नहीं देखी थी,, ।
सूरज के मोटे तगड़े लंड पर मुखिया की बीवी की नजर पढ़ते ही उसकी बुर उत्तेजना के मारे फुलने पीचकने लगी,,,, उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था उसे लग रहा था कि वह कोई सपना देख रही है कितना मोटा और लंबा लंड भी हो सकता है इसका उसे अंदाजा ही नहीं था,,, क्योंकि जवानी से लेकर उम्र के ईस पड़ाव तक बन जाने कितने लैंड को अपनी बुर में ले चुकी थी लेकिन आज तक उसकी आंखों के सामने उसकी बुर के अंदर इतना मोटा और तगड़ा लंड कभी भी प्रवेश नहीं कर पाया था,,, या यूं कह लो कि आज तक जितने भी मर्द उससे मिले थे उनका लंड ऐसा था ही नहीं तभी तो मुखिया की बीवी एकदम आश्चर्य चकित हो गई थी उसकी आंखों में उसे पाने की चमक साफ नजर आ रही थी सूरज को भी इस बात का एहसास हो गया था की मुखिया की बीवी उसके लंड को देख रही थी और यह एहसास होते ही सूरज के तन-बड़े में आग लगने लगी यह पहली मर्तबा था जब कोई औरत उसके लंड की तरफ देख रही थी,,,, सूरज शर्म से मरा जा रहा था लेकिन उसे अपने बदन मेंअत्यधिक उतेजना का अनुभव हो रहा था उसके हाथ में अभी भी उसका लंड था जिसमें से पेशाब की धार फूट रही थी वह मुखिया की बीवी को यह नहीं बोल पाया कि वह अपनी नजर को दुसरी तरफ कर ले क्योंकि ना जाने क्यों उसके मन में भी ऐसा हो रहा था की मुखिया की बीवी उसके लंड की तरफ देखते ही रहे,,, यही तो जवानी का नशा था यही तो इस उम्र की चाहत थी और इसी में सूरज मदहोशी के चरम शिखर पर विराजमान होता जा रहा था,,,,।
पेशाब करने के बाद जैसे ही सूरज ने लंड में से पेशाब की बूंद को झटकने के लिए अपने लंड को ऊपर नीचे करके दो-चार बार झटका और उसके इस तरह से झटकते हुए लंड को देखकर मुखिया की बीवी की उत्तेजना उसके बस में बिल्कुल भी नहीं रही और उसकी बुर से मदन रस की बुंद टपक कर नीचे जमीन पर गिर गई,,,, और फिर बिना कुछ बोले सूरज अपने लंड को वापस पजामे में डाल दिया लेकिन उसमें तंबू बना हुआ था,,,,।
हो गया मालकिन,,,,
हां अब ठीक है ,,ले लालटेन पकड़,,,, अब हमें चलना चाहिए,,,,, देख वह रही झोपड़ी बड़े से पेड़ के नीचे,,,, मैं आम के बगीचे की रखवाली के लिए ही है झोपड़ी बनवा कर रखी हूं,,,,,।
(हालांकि घना अंधेरा होने की वजह से वह झोपड़ी ठीक से सूरज को दिखाई नहीं दे रही थी लेकिन वह लालटेन पकड़कर आगे आगे चलने लगा,,,, और देखते ही देखते दोनों उस झोपड़ी के पास आ गए कुछ झोपड़ी के पास एक हेड पंप भी बना हुआ था,,, और हेड पंप को देखकर सूरज बोला,,,)
यह तो अच्छा की हो मालकिन की यहां पर हेड पंप गडवा कर रखी हो वरना अगर पानी प्यास लग जाए तो इंसान तो अपनी बिगर ही मर जाएगा,,,,।
इसीलिए तो हेड पंप लगवाई हूं,,,,,(इतना कहते हुए दोनों झोपड़ी के एकदम पास पहुंच गए एक हाथ में कुल्हाड़ी लिए हुए,,, मुखिया की बीवी लकड़ी के बने दरवाजे को खोलने लगी और लकड़ी का दरवाजा खोलते ही सूरज के हाथ में से लालटेन को ले ली और खुद पहले झोपड़ी में प्रवेश कर गई और उसके पीछे सूरज,,,,)
Net se li hui hai bhaiBrother आप ये drawing pencil ✏ से बनाते हो या mobile app se? कोई देख नहीं लेता अगर pencil से drawing book मैं बनाते hoge तो?
लेखक महाशय सूरज का भला करने के चक्कर मे उसकी बहन को तो भूल ही गये. ऐसा मत किजीये. उस बेचारी का भी कल्याण कर दिजीये. बाकी कहानी तो बढिया चल रही है.
चलो आज फिर थोड़ा मुस्कुराया जाये ,.. बिना माचिस के कुछ लोगो को जलाया जाये (राज)🩵लेखक महाशय सूरज का भला करने के चक्कर मे उसकी बहन को तो भूल ही गये. ऐसा मत किजीये. उस बेचारी का भी कल्याण कर दिजीये. बाकी कहानी तो बढिया चल रही है.
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