इन मुंबई :-
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घर से निकल कर दीप सीधा मेन रोड पर आ गया ...ना तो उसके पास कार थी ना ही पहन'ने को फॉर्मल कपड़े, बस पागलो की तरह भटकता हुआ चला जा रहा था ...तभी उसे सरकारी ( नगर निगम उद्द्यान ) पार्क दिखाई पड़ा और खुद ब खुद उसके कदम पार्क के अंदर जाने के लिए बढ़ गये.
हलाकी अभी इतनी धूप नही निकली थी कि पार्क टोटल खाली होता ...कुछ इकके - दुक्के कपल और आस - पड़ोस की गलियों के लड़के उसे वहाँ उच्छल खूद करते हुए दिखाई पड़े, वो पार्क के सेंटर में लगी सेमेंट की पट्टी पर बैठ गया.
" साला !!! ये बैठ क्यों नही रहा ? " ........निक्कर में बने तंबू को कोसते हुए उसने उस पर हल्के हाथ की चपत लगा दी, यकीन से परे था ...अभी थोड़ी देर पहले उसकी सग़ी छोटी बेटी उसका लंड चूसने वाली थी.
" सब उल्टा - पुल्टा मेरे साथ ही क्यों होता है ? " ......उसने खुद से सवाल किया और तभी उसे कम्मो की कही बात याद आ गयी ...... " निम्मी आज कल बहुत गरम रहने लगी है " .......फॉरन दीप झुंझला गया ...... " अगर गरम रहती है तो क्या अपनी गर्मी बाप के हाथो ख़तम करवाएगी ..पूरी दुनिया पड़ी है, जिससे चाहे ..उससे चुदवा ले "
कुछ देर इसी उधेड़ बुन में लगे रहने के बाद उसके दिमाग़ की बत्ती जली ....... " तौबा !!! यह गुस्से में मैं क्या बोल गया ..वो मेरी बेटी है, ऐसे तो समाज में मेरी नाक कट जाएगी और उसकी लाइफ खराब होगी सो अलग ..नही - नही मैं ऐसा कभी नही होने दूँगा, सम्झाउन्गा उसे ..लेकिन कैसे ? " .......दीप का दिमाग़ घूमने लगा, उसकी आँखें अब भी वही सीन देख रही थी ...जब निम्मी ने उसके लंड को नेकेड देखा था, वो एक - दम से कितना डर गयी थी ...लेकिन बाद में उसी लंड को चूसने के लिए मचल उठी, वो तो भला हो निक्की का जिसकी आवाज़ सुनने के बाद निम्मी ने उसे बक्श दिया ...वरना आज अनर्थ हो जाता.
" मैं खुद भी तो पापी हूँ, ज़रा भी सहेन नही कर पाया ..अकेले निम्मी की ग़लती नही, मैं तो खुद चाह रहा था वो मेरा लंड चूसे " .....आख़िरकार सच बात दीप के होंठो पर आ ही गयी ...उसकी के इशारे पर तो निम्मी ने लंड के सुपाडे को चूमा था, यदि वो उस वक़्त खुद पर कंट्रोल कर लेता ...तो शायद अभी चूतियों जैसा पार्क मे नही बैठा होता.
" मैं अब कहाँ जाो, घर जा नही सकता ..जेब भी खाली पड़ी है, भिखारी बन गया हूँ आज तो " .......पार्क के बीचों - बीच सूर्यादेव का प्रकोप बढ़ा और दीप तुरंत पसीने से तर - बतर होने लगा.
" फोन होता तो निक्की का पता कर लेता, भरोसा नही निम्मी का ..कहीं उसी के सामने मेरा रेप ना कर दे " .........चिलचिलाती धूप दीप की सहेंशक्ति से बाहर हो गयी, थक हार कर वो बैंच से उठा और वापस घर की तरफ जाने लगा.
" अब जो होगा देखा जाएगा ..घर पहुचते ही चुपके से अपने कमरे में घुस जाउन्गा, निम्मी लाख दरवाज़ा पीटे ..गेट नही खोलूँगा " .......दीप के बढ़ते कदम बार - बार लड़खड़ा कर उसे घर ना जाने की चेतावनी दे रहे थे ...पर उसके लिए एक - एक पल की गर्मी बर्दास्त से बाहर होती जा रही थी, जैसे - तैसे वो घर के बाहरी कॉंपाउंड तक आया और सबसे पहले उसने निक्की की अक्तिवा चेक ही ...जो वहाँ मौजूद नही थी.
" उफफफफफ्फ़ !!! बच गया " ......इसके बाद उसके कदम घर की चौखट तक पहुचे, किसी चोर की भाँति उसने अंदर झाक कर निम्मी की वर्तमान स्थिति का जायज़ा लिया ...लेकिन महारानी हॉल में बिछे सोफे पर आँखें मूंद कर लेटी दिखाई दी.
वो दबे पाओ घर के अंदर आया और बिना कोई खटपट किए हौले - हौले सीढ़ियों तक पहुच गया ...लेकिन यहाँ उसकी किस्मत खराब रही, जो स्लीपर पहने सीढ़ियाँ चढ़ने लगा था ...ज़रा सी आहट से निम्मी उठ कर बैठ गयी.
" डॅड सुनो तो सही ..मुझे आप से ज़रूरी काम है " .......एक कामुक अंगड़ाई लेते हुए निम्मी ने कहा और सोफे से नीचे उतरने लगी ......" अभी कोई काम नही ..मुझे नींद आ रही है " ........बेटी के सोफे से फ्लोर पर पाओ रखते ही दीप ने दौड़ लगा दी, जैसे कोई पागल कुत्ता उसके पीछे छोड़ दिया गया हो और सीधा वो अपने कमरे में एंटर हो गया ...उतनी ही तेज़ी से उसने गाते भी अंदर से बोल्ट कर लिया.
" हहेहहे !!! कब तक बचोगे डॅड " .......एक चिर - परिचित कमीनी मुस्कान छोड़ते हुए निम्मी वापस सोफे पर ढेर हो गयी ...... " मैं भी थोड़ा सो लेती हूँ ..रात में डॅड की नींद जो हराम करनी है " .......थोड़ी देर तक अपनी कुँवारी चूत को सहलाने के बाद उसने भी आँखें मूंद ली और नींद के आगोश में जाने लगी.
इन पुणे :-
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निकुंज के कमरे से बाहर जाते ही कम्मो ने गेट को अंदर से बोल्ट कर लिया और कुछ गहरी साँसें लेने के बाद, सामने लगे बड़े से मिरर में अपना अक्स देखने लगी.
" हे भगवान !!! यह मैं कितना नीचे गिरती जा रही हूँ " .......ब्रा और टवल नुमा स्कर्ट में खुद का उघरा बदन देखते ही कम्मो की सिट्टी पिटी गुम हो गयी और वो तेज़ कदमो से शीशे के सामने आ कर खड़ी हो गयी.
" औरत चाहे 100 साल की उमर पार क्यों ना कर ले पर शीशा उसे कभी बूढ़ा नही होने देता " ........यही इस वक़्त कम्मो के साथ भी हुआ, दो चार पल अपने बदन को निहारने के बाद उसे कुछ कमी सी दिखाई पड़ी ...एक लंबी साँस खिचते हुए उसने अपना पेट अंदर को सिकोडा और खुद ब खुद उसका सीना बाहर की तरफ निकल आया, फॉरन उसके होंठ फैल गये ...वो मुस्कुरा उठी.
गीले बालों का जूड़ा बनाने के बाद उसने ड्रेसिंग टेबल का पहला ड्रॉयर खोला और जिस चीज़ के मिलने की उसे आशा थी ...वो उसके हाथो के क़ब्ज़े में आ गयी.
होटेल काफ़ी महँगा था और अक्सर वहाँ रुकने वाले गेस्ट भी वीआइपी ही आते थे, शायद किसी ने रूम छोड़ने से पहले ध्यान ना दे पाया हो और जो मेक - अप कीट कम्मो के हाथ लगी ...वो ज़रूर किसी गेस्ट की भूल का नतीजा जान पड़ी.
" इसमें तो सब कुछ है " ........वो खुशी से झूमते हुए बोली और इसके तुरंत बाद उसने अपना चेहरा सजाना शुरू कर दिया.
कम्मो ने जी जान लगा दी, जैसे आज के बाद उसे अपने प्रेमी को रिझाने का मौका दोबारा नही मिलने वाला ...पर वह प्रेमी है कौन, कहीं स्वयं उसका लाड़ला निकुंज तो नही ...वो इस बात से भी अंजान नही थी, बस उसे तो सनक चढ़ि थी अपने बेटे को उत्तेजित करने की ...वो चाहती थी आज उसे कुछ भी करना पड़ जाए लेकिन बेटे का लिंग तनाव में आना चाहिए.
" बस एक बार मैं अपनी आँखों से उसका वीर्य - पात देख लूँ ...फिर अपने कदम वापस पीछे खीच लूँगी, जानती हूँ यह सरासर ग़लत है ...एक मा हो कर मेरे मन में अपने सगे बेटे के लिए इस तरह की पापी भावना नही आनी चाहिए, पर मैं उसका उदास चेहरा और उदास नही देख सकती ...मेरे बेटे को ज़रूर न्याय मिलेगा और मेरी बहू तनवी को भी, फिर चाहे जीवन पर्यंत मुझे अपनी नज़रो से नीचे गिरना क्यों ना पड़े ...मुझे मज़ूर है " ...कम्मो ने प्रन करते हुए कहा, उसका दृढ़ - संकल्प देखने लायक था ...फिर अपने बालो को संवार कर वो सोफे पर बैठ गयी और निकुंज के लौट आने का इंतज़ार शुरू हो गया.
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कमरे से बाहर निकल कर निकुंज लिफ्ट तक पहुचा जो टॉप फ्लोर से नीचे लौट रही थी, बटन प्रेस करने के 10 सेकेंड्स बाद उसका डोर ओपन हुआ और वह उसके अंदर एंटर कर गया.
कुछ ही पल बीत पाए होंगे, उसे अपने पीछे से ख़ुसर - फुसर की आवाज़ें सुनाई देने लगी, ऐसा लगा जैसे कोई हंस रहा हो ...उसने पलट कर देखा तो अपने पीछे एक यंग कपल खड़ा पाया, थोड़ा नाराज़गी भरा फेस एक्सप्रेशन देते हुए वो अपनी पहली पोज़िशन में मुड़ा ही था कि उसकी नज़र उन दोनो के चेहरे पर पड़ी और उनकी आँखों का पीछा करते हुए वह अपने हाथ तक पहुच गया ...तुरंत उसे मालूम पड़ गया, वह हसी का पात्र क्यों बना.