होटेल वाली घटना भले ही निकुंज भूल सकता हो लेकिन कम्मो के इस नये जीवन की सारी उथल पुथल ... सारी बेचैनी ... सारी सोच का आगाज़ वहीं से शुरू हुआ था.
" लेकिन क्यों ? " ...... इसका जवाब उसे, उसकी टाँगो की जड़ में उठते पेन ने दे दिया.
ज़ाहिर था वह अपने माइंड में अपने बेटे के विशाल लंड को इमॅजिन करने लगी थी और ठीक उसी पल उसकी बॉडी उन्माद से काँप उठी .... खुद ब खुद उसके हाथो ने बिना ब्रा की अपनी मोटी चूचियों को कठोरता से मसलना शुरू कर दिया.
" ओह !!! " ...... सिसकारी लेती कम्मो के होंठ फटने लगे, जैसे अपने बेटे का विशाल लंड वह पूरा अपने मूँह में निगलना चाहती हो और उसकी इस कोशिश में जल्द ही उसकी कामुक आँखें बंद होने की कगार पर पहुचने लगती हैं .... उसका हाथ तेज़ी से नीचे फिसलता हुआ उसकी गीली चूत से टच होता है और फॉरन झटके से वह अपनी बंद होती आँखें खोल देती है.
मात्र 15 से 20 सेकेंड्स में ही वह बेहद उत्तेजित हो उठी थी, अब भी उसकी आँखों के सामने वह सीन ज्यों का त्यों चल रहा था .... जिसमे वह अपने बेटे के मर्दाने अंग का स्वादिष्ट स्वाद चख रही थी और जब उसे अपनी सिचुयेशन का ख़याल आता है .... वह शरम से सराबोर अपना हाथ, अपनी रस छोड़ती चूत से हटा लेती है.
" मैं निकुंज को बहुत प्यार करती हूँ और अब उसके बगैर जी नही पाउन्गि " ...... वह मान लेती है, उसकी बेचैनी की असल वजह क्या है और इसके बाद उसकी नज़र बेड पर सोते अपने बड़े बेटे रघु के चेहरे पर टिक जाती हैं.
" निकुंज !!! " ....... हैरत वश उसका मूँह खुला रहा जाता है जब रघु की सूरत में वह निकुंज का अक्स देखती है और कामोत्तजना का जो ज्वर शांत हो चुका था, वह वापस आग पकड़ने में ज़रा भी वक़्त नही लेता.
कम्मो बेड पर अपने बेटे के पॅरलेल लेट चुकी थी और बड़े प्यार से उसके बालो में अपनी उंगलियाँ चलाने लगती है .... उसे महसूस होता है निकुंज उसके बेहद करीब है और वह बेतहाशा उसके चेहरे को चूमने लग जाती है.
कुछ देर बाद ही उसका हाथ रेंगता हुआ रघु के ढीले लंड को पाजामे के ऊपर से अपनी मुट्ठी में कस चुका था और इससे कम्मो की चूत में वाइब्रेशन होने लगता है .... उसका होश में लौट आना और दोबारा अपने होश खो देना, उसके विचलित मन की पीड़ा ज़ाहिर कर रहा था ........ " निकुंज !!! अब अपनी मा को अकेला छोड़ कर कभी दूर मत जाना "
वह नागिन की तरह बल खाती हुई अपने बेटे के पेट तक पहुच जाती है और उसी तेज़ी से उसके हाथ रघु का पाजामा नीचे खीच देते हैं लेकिन ज्यों ही उसका सामना बेटे की मर्दानी झान्टो से होता है, कम्मो का मूँह आश्चर्य से खुल जाता है.
" रघु !!! " ...... एक चीख के साथ पूरा कमरा गूँज उठा .... कम्मो ने फॉरन अपनी आँखें रघु के ढीले लंड से हटानी चाही लेकिन वह इसमें पूरी तरह से नाकाम रही, उसका दिल उसे झकझोरने लगा ...... " यह निकुंज नही रघु है " ...... परंतु इसे कम्मो का पापी पुत्रप्रेम कहें या कुछ और .... वह इस बात में ज़रा भी अंतर ना कर सकी और अपने काँपते हाथ से उसने रघु का निर्जीव लंड पकड़ लिया.
कम्मो के जिस्म में झटके लग रहे थे और उसके दिमाग़ में उसकी दोस्त नीमा की बातें घूमने लगती हैं ...... " कम्मो !!! अपने बेटे के लंड से मुझे बहुत प्यार है और उस वक़्त मैं बहुत बेचैन हो जाती हूँ .. जब मुझे मेरे मनपसंद खिलोने से खेलने को नही मिलता " ...... यह बात सोचते ही कम्मो को अपनी हालत नीमा से बिल्कुल सिमिलर जान पड़ी और उसने फ़ैसला कर लिया .... वह नीमा से इस विषय में बात करेगी.
फॉरन अपने मोबाइल से उसने नीमा का नंबर मिलाया और वापस उसी जगह आ कर बैठ गयी .... जहाँ कुछ देर पहले वह अपने बेटे का लंड पकड़ कर लेती थी.
नीमा :- " हां कम्मो बोल !!! " ..... दो ही रिंग में उसने कॉल पिक कर लिया.
" कहाँ है तू नीमा .. मुझे तुझसे मिलना है " ...... कम्मो झिझकते हुए बोलती है, उसकी वाय्स बेहद लो थी.
" वैसे तो मैं अभी वॉशरूम में हूँ .. तू कभी भी आजा " ...... नीमा ने चहकते हुए जवाब दिया, उसकी आवाज़ में एक उत्साह था और जिसे महसूस कर कम्मो को अपनी हालत पर ज़्यादा दुख होने लगा था.
कम्मो :- " वॉशरूम में मोबाइल ? " ....... उसने हैरत में भरते हुए पूछा.
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