"क्यों !! कोई दिक्कत है क्या. देख शिवानी मैने तुझसे प्रॉमिस किया था कि मैं तुझे जॉब दिलवाने में तेरी मदद करूँगी. पूरे दिन हॉस्टिल में बोर होती रहती है, चार-पैसे कमा लेगी और तेरा टाइम पास भी हो जाएगा" प्रवचन देने के पश्चात निम्मी मुस्कुराइ.
"तू मेरी दोस्त है, मुझे कैसी परेशानी यार ?" वह उसके कंधे को सहलाते हुए बोली.
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"पर ...." शिवानी ने अंतिम प्रयास किया लेकिन निम्मी उसकी कहाँ सुनने वाली थी.
"पर-वर छोड़ शिवानी !! तूने मुझे माफ़ कर दिया है, मैं तभी मानूँगी जब तेरी नौकरी का बन्दो-बस्त करवा दूँगी" उसने रही-सही कसर भी पूरी कर दी.
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शिवानी बिस्तर से उठ कर अपनी आल्मिराह के समीप पहुँची "सलवार-कमीज़ ठीक रहेगा" सोचने के उपरांत उसने एक सिलेटी रंग का चूड़ी-दार सूट पसंद कर लिया. आख़िर पहली बार अपने ससुराल जा रही थी, सादगी दिखाना भी ज़रूरी था.
"मैं चेंज कर के आती हूँ" बोलते हुए वह बाथरूम की दिशा में अपने कदम बढ़ाने लगती है.
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"बहुत बड़ी नौटंकी है तू !! मैं कोई लड़का नही जो तुझे शरम आए, कम से कम अपनी दोस्त की जवानी तो देख ही सकती हूँ" निम्मी ने अपनी दोस्त को छेड़ा.
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"ऐसी कोई बात नही यार !! वो मैं नहा भी लेती" शिवानी ने लजा कर कहा, उसका शर्मीला स्वाभाव निम्मी के ठीक विपरीत था तो अपनी होने वाली ननंद के समक्ष नंगी होना वह कैसे स्वीकार कर सकती थी.
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"हम घर जा रहे हैं शिवानी !! किसी फंक्षन में नही, मुझे 30 मिनिट के अंदर वहाँ पहुँचना होगा वरना मोम फालतू का टेन्षन लेंगी" निम्मी सफाई पेश करती है.
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"ह्म्म" शिवानी ने सूट बिस्तर पर रख दिया और अपने टॉप की निचली कीनोर पकड़ ली. निम्मी की निगाहें अपने जिस्म पर महसूस कर वह अजीब सी कैफियत से रूबरू हो रही थी, ज्यों-ज्यों वह अपने टॉप को ऊपर उठाती उसकी सांसो की रफ़्तार भी तीव्रता से बढ़ती जाती. उसका सपाट पेट अब वस्त्र-हीन हो चुका था.
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"नही नामिता !! मुझसे नही होगा" शिवानी टॉप को व्यवस्थित करते हुए बोली और निम्मी से नज़रें चुराने लगी.
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"हे हे हे हे !! तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे सुहाग सेज पर अपने होने वाले पति के सामने नंगी होने जा रही हो" निम्मी ने ज़ोरों से हसना शुरू कर दिया.
"वैसे तूने मेरा दिल तोड़ दिया, सोचा था एक हॉट स्ट्राइप-टीज़ शो देखने का मौका मिलेगा. चल बाथरूम में चेंज कर ले, मैं इंतज़ार करती हूँ" वह उसे उसका सूट थमाते हुए बोली और शिवानी बिना कुच्छ कहे सीधे बाथरूम के भीतर घुस जाती है.
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"अजीब है यह लड़की" दोनो ही एक-दूसरे के बारे में कुच्छ यही सोच रही थी. शिवानी ने जल्द अपना चेहरा धोया और सूट पहेन कर वापस कमरे में आ गयी.
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सिलेटी रंगत का सूट शिवानी के पूर्ण विकसित सुडोल बदन और उसकी अत्यंत गोरी त्वचा पर बेहद फॅब रहा था. निम्मी प्रत्यक्ष-रूप से अपनी दोस्त की मदमस्त काया को घूर्ने से खुद को कतयि नही रोक पाई. इसमें उसे दोष देना न्याय-संगंत नही होगा, हर स्त्री की तरह निम्मी के मश्तिश्क में भी कहीं ना कहीं हल्की सी ईर्ष्या सा संचार होना लाज़मी था. इक्षा, लालसा, जलन, कुढन, होड़ इत्यादि भाव यदि स्त्री जात से सदा के लिए प्रथक हो जाएँ तो यक़ीनन यह कलयुगी संसार क्षण मात्र में सुधार सकता है, निम्मी कोई अपवाद नही थी.