"निक्की !! कॉलेज से इतनी जल्दी कैसे लौट आई ?" डाइनिंग टेबल पर बैठते ही निकुंज ने अपनी बहेन से पुछा मगर पुछ्ते वक़्त उसने अपनी आँखें अपनी मा के खूबसूरत चेहरे पर जमा रखी थी.
"क्यों मोम !! पापा भी टाइम से पहले आ गये ना ?" वह दोबारा सवाल करता है और उसकी बात सुन जहाँ कम्मो अपनी कजरारी आँखों को बड़ा करते हुए इशारो में उसे चुप रहने का संकेत करती है वहीं अपने कोमल होंठो को खिलने से नही रोक पाती.
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"काम से फ्री हो गये होंगे" कम्मो ने कहा. निकुंज और निक्की आमने-सामने और कम्मो अपनी बेटी के बगल में बैठी थी.
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"भाई !! आज हमारे कॉलेज में फुटबॉल चॅंपियन्षिप का इनॉग्रेषन था तो मैं वापस लौट आई" बिना सर ऊपर उठाए निक्की ने नॉर्मल टोन में जवाब दिया और अपनी प्लेट में मौजूद राजमा-चावल चुग्ने लगती है.
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"कितने दिनो तक चलेगी यह चॅंपियन्षिप ?" अपनी प्यारी बहेन के चेहरे पर छाई गहेन उदासी निकुंज प्रत्यक्ष रूप से देख रहा था. जिस तरह वह अपना सर नीचे झुकाए अपनी प्लेट में चम्मच घुमा रही थी, उसके भाई पर उसका दुख ज़ाहिर होने के लिए उतना काफ़ी था.
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"10 दिन" वह फुसफुसाई और अगले ही पल अपनी कुर्सी समेत फर्श पर गिर पड़ी.
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"निक्की" निकुंज के साथ उसकी मा की चीख से पूरा हॉल गूँज उठता है. वह फॉरन अपनी बहेन के समीप पहुच गया जिसका सर उसकी मा ने अपनी गोद में सँभाल रखा था.
"क्या हुआ निक्की !! बेटा कैसे गिर गयी ?" रुआंसे स्वर में कम्मो ने उसका गाल थप-थपा कर पुछा. वह खुद नही समझ पाई आख़िर कैसे उसकी बेटी अचानक अपनी कुर्सी समेत नीचे गिर सकती है.
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"निकुंज !! लगता है इसे चक्कर आ गये" कम्मो ने चिंता जाताई और निकुंज अपनी मा का आशय समझ तुरंत निक्की को अपनी गोद में उठा लेता है.
"कमरे में चल !! मैं ग्लूकोस ले कर आती हूँ" कम्मो सीढ़िया चढ़ते हुए बोली और निकुंज अपनी बहेन के कमरे की ओर चल पड़ा.
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"भाई !! मैं ठीक हूँ" कह कर निक्की की आँखों से आँसू बह निकले, जिन्हें देख निकुंज को अपनी करनी पर अफ़सोस होने लगा.
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"माफ़ कर दे निक्की !! मैने तो मज़ाक में तेरे पाँव पर अपना पाँव रखा था. मुझे थोड़ी ना पता था कि तू घबरा कर नीचे ही गिर जाएगी" निकुंज भर्राये गले से बस इतना ही कह सका, उसकी आँखें भी नम हो गयी थी. निक्की को उसके बिस्तर पर लिटने के उपरांत वह खुद उसके बगल में बैठ गया.
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"भाई !! मोम नाराज़ होंगी, आप इधर मत बैठो" वह सुबक्ते हुए बोली और अपनी बहेन की बात सुन निकुंज हैरत भरी निगाहों से उसका चेहरा घूर्ने लगा.
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"तू मोम से इतना डरती क्यों है !! क्या तुझे अपने भाई पर भरोसा नही ?" अपनी बहेन के आँसू पोन्छ्ते हुए उसने पुछा. निक्की के लिए तो वह हर हद से गुज़रने को तैयार था, फिर चाहे उसके माता-पिता ही क्यों ना उसके दुश्मन बन जाते. निक्की अपने ही घर में चैन से नही जी पाए ऐसा निकुंज को कतयि मज़ूर नही था.
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"आप के ऊपर तो अपनी जान से ज़्यादा भरोसा है भाई मगर ...." कमरे के दरवाज़े पर अपनी मा की आकृति देख निक्की ने अपना कथन अधूरा ही छोड़ दिया और बल-पूर्वक अपनी पलकें भींच लेती है. अपनी बहेन की यह हृदय-विदारक हरक़त व उसकी बुरी दशा निकुंज सह नही पाता और कम्मो के कमरे में प्रवेश करने के उपरांत बिना किसी जीझक के अपने होंठ अपनी बहेन के होंठो से जोड़ देता है.
निक्की के कुर्सी समेत फर्श पर गिर पड़ने से अत्यंत व्याकुल कम्मो तीव्रता से कमरे में प्रवेश करती है, बगैर किसी अव्रुद्धि के वह काफ़ी भीतर तक घुस आई थी मगर ज्यों ही उसकी नम आँखें अपने सगे पुत्र वा पुत्री के दरमियाँ पनपे चुंबन से टकराई, उस पहले से दुखी मा के पाँव वहीं जाम कर रह जाते हैं, जहाँ तक वह पहुँच पाई थी.
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अपनी मा के सामने ही अपने होंठ, अपनी बहेन के होंठो से जोड़ देने वाले अपने भाई निकुंज की हिम्मत से अभिभूत निक्की का संपूर्ण जिस्म काँप उठता है, उसे निकुंज पर बेहद भरोसा था वरना डर के मारे यक़ीनन वह चीख देती. रोमांच से भरपूर कि उसके प्यारे भाई के होंठ उसके होंठो से चिपके हुए हैं, अब वह सच में बेहोशी की कगार पर पहुचने लगी थी.
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अपनी मा की उपस्थिति को जानने के उपरांत भी निकुंज बिल्कुल भयभीत नही हुआ और अनुमान-स्वरूप कि कम्मो के बढ़ते कदम स्वयं उसी की अविश्वसनीय हरक़त देख थम गये हैं, वह फॉरन अपना दाहिना हाथ अपनी बहेन की दाईं चूची पर रखते हुए दोबारा अपनी मा को अचंभित कर देता