• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
फागुन के दिन चार भाग ९
--
--
रीत की रीत,
रीत ही जाने
1,11,995
---

salwar-IMG-20231120-102422.jpg

“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।

“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”

गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।

“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।

हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।

“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।

“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।



“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।

“हे बचना चाहते हो क्या?” आँख नचाकर वो जालिम अदा से बोली।

“ना…” मैंने कबूल किया।

“बचकर रहना कहीं दिल विल। कोई…” वो जानते हुए भी गुड्डी की ओर ,शोख निगाहों से देख कर बोली।

मैं जाकर गुड्डी के पास खड़ा हो गया था। मैंने हाथ उसके कन्धे पे रखकर कहा-

“अब बस यही गनीमत है। अब उसका डर नहीं है। ना कोई ठग सकता है ना कोई चुरा सकता है…।”

मैंने भी बड़े अंदाज से गुड्डी की आँखों में झांकते कहा।

उस सारंग नयनी ने जैसे एक पल के लिए अपनी बड़ी कजरारी आँखें झुका के गुनाह कबूल कर लिया।
Girl-8f82d2695f80996718de4e38a8c08e18.jpg


लेकिन रीत ने फिर पूछा- “क्यों क्या हुआ दिल का?”


“अरे वो पहले ही चोरी हो गया…” और अब मेरा हाथ खुलकर गुड्डी के उभारों पे था।

रीत कुछ-कुछ बात समझ रही थी लेकिन उसने छेड़ा- “चोर को सजा क्या मिलेगी?”
Shalwar-4c5e29e602138ae6d914574bf361f04f.jpg


“अभी मुकदमा चल रहा है लेकिन आजीवन कारावास पक्का…” मैं मुश्कुराकर गुड्डी को देखते बोला-

“बस डर यही की मिर्चे वाली ब्रेड रोल…”

मेरी बात काटकर रीत बोली-

“अरे यार। ससुराल में, ये तो तुम्हारी सीधी सालियां थी। ये गनीमत मनाओ की मैं इन दोनों के साथ नहीं थी। लेकिन दहीबड़े के साथ डरने की कोई बात नहीं है। लो मैं खाकर दिखाती हूँ…”



dahi-bhalle.jpg

और उसने एक छोटी सी बाईट लेकर अपनी लम्बी गोरी उंगलियों से मेरे होंठों के पास लगाया।

मेरे मुँह की क्या बिसात मना करता। मैं खा गया।

“नदीदे…” गुड्डी बोली।



“अरे यार। ऐसी सेक्सी भाभी कम साली । फागुन में कुछ दे, जहर भी दे ना तो कबूल…” मैं मुश्कुराकर बोला।



“अरे ऐसे देवर पे तो मैं बारी जाऊँ…” कहकर रीत ने अपने हाथ में लगा दहीबड़े का दही मेरे गाल पे लगा दिया और थोड़ा और प्लेट से लेकर और।

दही बड़े में मिर्च नहीं थी। लेकिन वो सबसे खतरनाक था। दूबे भाभी के दहीबड़े मशहूर थे वहाँ… उनमें टेबल पे जितनी चीजें थी, उनमें से किसी से भी ज्यादा भांग पड़ी थी। गुड्डी को ये बात मालूम थी लेकिन उस दुष्ट ने मुझे बताया नहीं।

गुड्डी बस खड़ी खी-खी कर रही थी।


मैंने रीत को गुलाब जामुन खिलाने की कोशिश की तो उसने मुँह बनाया। लेकिन मैंने समझाया- “दिल्ली से लाया हूँ…” तब वो मानी।
gulabjamun-recipe.jpg


एक बार में पूरा ही ले लिया लेकिन साथ में मेरी उंगलियां भी काट ली और जब तक मैं सम्हलता। मेरा हाथ मोड़कर शीरा मेरा हाथ का मेरे ही गाल पे लगा दिया।

“चाट के साफ करना पड़ेगा…” मैंने उसे चैलेन्ज दिया।

“एकदम। हर जगह चाट लूँगी, घबड़ाओ मत…” हँसकर वो बोली। रीत की निगाहें टेबल पे कुछ पीने के लिए ढूँढ़ रही थी।



“ठंडाई…” मैंने आफर की।

“ना बाबा ना। चन्दा भाभी की बनायी, एक मिनट में आउट हो जाऊँगी…” फिर उसकी निगाह बियर के ग्लास पे पड़ी- “बियर। पीते हो क्या?”

मैंने मुश्कुराकर कबूल किया- “कभी कभी। अगर तुम्हारा जैसे कोई साथ देने वाला मिल जाय…”

“थोड़ी देर में। लेकिन सबको पिलाना तब मजा आएगा। खास तौर से इसे…” मुड़कर उसने गुड्डी की ओर देखा।

मैं- “एकदम। लेकिन अभी…”

गुड्डी रीत जो बैग साथ लायी थी उसे खोलकर देख रही थी और मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

“हे मैं चलूँ। ये बैग अन्दर देकर आती हूँ। कुछ काम वाम भी होगा। बस पांच मिनट में…” गुड्डी बैग लेकर अन्दर जाते हुए बोली।+++

" आराम से आना, दस मिनट क्या पन्दरह मिनट बीस मिनट, तबतक मैं इस अपने देवर कम छोटे जीजा कम साले का क्लास लेती हूँ, "

" एकदम दी, खूब रगड़के, बहुत बोल रहे थे न बनारस की ठगिनियाँ, अब पता चलेगा, " गुड्डी खिलखिलाते हुए जाते जाते बोली, लेकिन मेरी बात सुन के ठहर गयी,

" हे ये देवर, जीजा तक तो ठीक लेकिन साला किधर से " मैंने रीत से पूछा।

मैं देख ज्यादा रहा था, बोल कम रहा था, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, जिसमे शरारत नाच रही थी, धनुष ऐसी भौंहे, सुतवां नाक, भरे हुए होंठ, और निगाहें ठुड्डी की गड्ढे में जाके डूब जा रही थीं,

" स्साले, स्साले को स्साला नहीं बोलूंगी तो क्या " मुस्कराते हुए रीत मेरे पास आयी और कस के पास आयी और मेरी नाक पकड़ के हिलाके चिढ़ाते हुए बोलने लगी। गुड्डी मुझे देख के मुस्करा रही थी।

" स्साले समझ में नहीं आया न, अच्छे अच्छे बनारस में आके बनारसी बालाओं के आगे समझ खो देते हैं तो तुम क्या चीज हो। ये बताओ की तुम अपनी उस ममेरी बहन एलवल वाली छमक छल्लो को यहाँ बनारस में ला के बैठाने वाले हो न, एकदम ठीक सोच रहे हो, अरे जो चीज वो फ्री में बांटेंगी, उसके पास कोई असेट है तो उसे मॉनिटाइज कर सकती है तो करना चाहिए न, काम वही, अंदर बाहर, रगड़ घिस तो कुछ पैसा हाथ में आ जाए तो क्या बुराई और सबसे अच्छी बात अभी तक उस पे कोई जी एस टी भी नहीं, तो ये बताओ दिन रात सब बनारस वाले उस के ऊपर चढ़ेंगे उतरेंगे, उसकी तलैया में डुबकी मारेंगे, तो तुम क्या लगोगे उन सबके साले न, तो स्साले हम सब भी तो बनारस वाले हैं हम सबके भी तो स्साले, तुम साले ही लगोगे न, स्साले "

Shalwar-Screenshot-20230330-011156.jpg



गुड्डी मुझे देख के मुस्कराती रही जैसे कह रही हो देखा, अब समझ में आया किस के पाले पड़े हो, मैंने तुमसे झूठ ही नहीं कहा था की मेरी रीत दी का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, और बैग लेके चंदा भाभी के पास किचेन में।



मैं समझ गया था की बनारसी बालाओं से बहस करना बेकार है, और ये रीत उससे तो बहस के बारे में सोचना ही बेकार है।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
रीत की क्लास


shalwar-11.jpg




मेरी नाक अभी भी रीत के हाथ में थी। नाक पकडे पकडे वो बोली

" स्साले क्या बोल रहे थे तीन ठगिनियाँ, "

लेकिन मेरी निगाह रीत के खूब टाइट कमीज को फाड़ते दोनों उभारों पर थी, वाकई बड़े थे, और मेरे मुँह से निकल गया दो ठग, असल में मुझे एक दोहा याद आ गया था, दूसरी लाइन, मेरे होंठ से निकल गयी


एक पंथ दुई ठगन ते, कैसे कै बिच जाय॥

( एक रास्ता, जोबन के बीच की गहराई और दो दो ठग यानी दोनों जोबन, तो कैसे कोई बच के निकल सकता है )
Guddi-nips-f451f2adec7c446c18a8405684ad9a82.jpg


मैं सोच भी नहीं सकता था, रीत के उरोज अब मेरे सीने को बेधते, जैसे दो बरछियाँ चुभ गयी हों, और रगड़ते उसने उस दोहे को पूरा कर दिया,



उठि जोबन में तुव कुचन, मों मन मार्यो धाय।

एक पंथ दुई ठगन ते, कैसे कै बिच जाय॥


और मुस्कराकर आँखों में आँखे डालकर पूछा, बचना चाहते हो, इन दो ठगों से, अपने दोनों ठगों, मेरे मतलब दोनों कबूतरों की ओर इशारा कर के पूछा

और चंदा भाभी के नाइट स्कूल और गुड्डी की इतनी झिड़कियां सुन के थोड़ा तो सुधर ही गया था, बोला, " एकदम नहीं "

मेरे गाल मींड़ते हुए वो शोख बोली,

" वो चुहिया थोड़ी बेवकूफ है, तेरा असर, वरना तेरे ऐसे चिकने लौंडे को तो पटक के रेप कर देना चाहिए , "


Salwar-K-12295377-1003053559788362-3187296665085240283-n.jpg


फिर कुछ सोच के समझाते हड़काते बोली,

" हे मेरी छोटी बहन है , पक्की सहेली है बचपन की, मैं चाहे चुहिया कहूं चाहे, तू कुछ मत कहना "

मैंने समझदारी में ना का इशारा किया

" और ये तीन ठगिनिया, " रीत की बात पूरी भी नहीं हुई थी,

" आप, मेरा मतलब तुम, गुड्डी और गुंजा। " मुस्कराते हुए मैंने कबूल किया।

" ठगे वो जाते हैं जो बने ही होते हैं ठगे जाने के लिए और खुद ठगे जाना चाहते हैं, और जो बुद्धू होते हैं उन्हें बनाना नहीं पड़ता वो होते ही वैसे हैं " मुस्कराकर रीत बोली और फिर एकदम से टोन बदलकर, स्कूल मास्टरनी की तरह से थोड़ी दूर खड़ी हो के कड़क आवाज में पूछा



" ठोस तरल और गैस सुना है , तरल क्या होता है ?

और मैंने भी क्लास के उन बच्चो की तरह जो सबसे पहले हाथ खड़ा करते हैं, तन कर बोला ( बस यस मैडम नहीं बोला ),

"तरल पदार्थ की मात्रा और आयतन नियत होता है लेकिन वह जिस पात्र में रखे जाते हैं उसका आकार ग्रहण कर लेते हैं "

" पानी सामान्यतया, रूम टेम्प्रेचर पर क्या होता है " रीत मैडम ने अगला सवाल पूछ।

" तरल " मैंने तुरंत जवाब दिया।

"नाश्ते की टेबल पर क्या कभी किसी तरल पदार्थ को प्लेट, कैसरोल में देखा है "
Salwar-IMG-20231120-102404.jpg

अब मैं समझ गया बात किधर मुड़ रही थी, लेकिन जो बात थी मैंने बोल दिया, नही।
" प्याले में क्या था ? " अगला सवाल था।

" प्याला था ही नहीं, चाय तो बाद में चंदा भाभी गरम गरम ले आयीं, " मैंने स्थिति साफ़ की।

" टेबल पर क्या था, चंदा भाभी के आने के पहले " रीत सवाल पर सवाल दागे जा रही थी।

मुझे अपनी याददश्त और ऑब्जर्वेशन पावर पर भरोसा था मैंने सब गिना दिया, प्लेट, कैसलरोल, ग्लास, जग, केतली

" ग्लास में पानी था ? " रीत ने जानकर भी पूछा, मैंने किसी तरह झुंझलाहट रोकी, और हाल बयान किया

" होता तो मैं पी न लेता, मिर्च से मुंह जला जा रहा और गुँजा ने ये स्टाइल से जग उठा के दिया ( अभी भी मुझे उसके टॉप से झांकती हवा मिठाई याद आ रही थी )



Girl-Y-IMG-20240102-215423.jpg



और सिर्फ दो बूँद पानी "

पानी प्लेट में था नहीं, कैसरोल में होता तो ब्रैडरोल गीले होते, ग्लास और जग में नहीं तो सिर्फ एक ही चीज बचती है। रीत ने एकदम किसी जासूसी किताब में बंद कमरे में लाश मिलने का रहस्य जैसे खोलते हुए बोला। और फिर पूछा,

चंदा भाभी को कितना समय लगा पानी देने में ?

--
Teej-MIL-charmy-kaur-102219.jpg


" एकदम तुरंत, उन्होंने किसी से बात भी नहीं की, बस केतली उठा के ग्लास में पानी " मैंने कबूल किया ।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
लेडी शर्लोक होल्म्स

rakul-preet-singh-expressions31.jpg

" ग्लास में पानी था ? " रीत ने जानकर भी पूछा, मैंने किसी तरह झुंझलाहट रोकी, और हाल बयान किया

" होता तो मैं पी न लेता, मिर्च से मुंह जला जा रहा और गुँजा ने ये स्टाइल से जग उठा के दिया ( अभी भी मुझे गुँजा के टॉप से झांकती हवा मिठाई याद आ रही थी) और सिर्फ दो बूँद पानी "

" पानी प्लेट में था नहीं, कैसरोल में होता तो ब्रैडरोल गीले होते, ग्लास और जग में नहीं तो सिर्फ एक ही चीज बचती है। "

रीत ने एकदम किसी जासूसी किताब में बंद कमरे में लाश मिलने का रहस्य जैसे खोलते हुए बोला। और फिर पूछा, चंदा भाभी को कितना समय लगा पानी देने में?

" एकदम तुरंत, उन्होंने किसी से बात भी नहीं की, बस केतली उठा के ग्लास में पानी " मैंने कबूल किया ।

" तो गलती किस की है तेरी या मेरी दो बहनो की, ऑब्जर्वेशन , ओब्जेर्वेंट होना चाहिए पानी जग और ग्लास में नहीं है, प्लेट और कैसरोल में भी नहीं तो केतली, ऑब्जर्वेशन और एनालिसिस, एलिमेंट्री माय डियर वाट्सन "

वो एकदम लेडी शर्लाक होम्स की तरह बोली और मैं ये सेंटेंस बोलता की उसने एक नया मोर्चा खोल दिया।

" कभी जादू का शो देखा है, मजमे वाले की बात नहीं कर रही , जिसमे टिकट लगता है, स्टेज शो " रीत ने पूछ लिया,

" एकदम कितनी बार " और जबतक मैं गोगिया पाशा, पी सी सरकार जूनियर से लेकर आठ दस नाम गिनवाता रीत ने एक टेढ़ा सवाल कर दिया,
magician-pc-sarkar-junior-lft-performs-during-a-159389.jpg


" जादू देखते थे या जादूगर के साथ की लौंडियों को, जो मटकती चमकती रहती हैं ? "

मैं क्या बोलता, पहली बार रीत से मिला था और ये बात समझ गया था की रीत के आगे बोलती बंद हो जाती है।

" बस उसी का फायदा उठा के जादूगर हाथ की सफाई दिखा देता है और ये बताओ जब तुझे मिर्ची लग रही थी, पानी पानी चिल्ला रहे थे तो किसे देख रहे थे ? "

रीत का सवाल और मैं समझ गया की इससे झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं, वो बोलने के पहले पकड़ लेगी ।

" वो, वो गुंजा को, उसी ने ब्रेड रोल खिलाया था, " मैंने कबूल भी किया और बहाना भी बनाया और पकड़ा भी गया।

" गुंजा को या गुंजा का, "
Girl-Gunja-713461f5f2c65e5e5a0a02cc9bfe89cf.jpg


कह के वो मुस्करायी, फिर बोली,

" अरे यार तेरा तो जीजा साली का रिश्ता है, और तुम बुद्धू टाइप जीजा हो इसलिए देख देख के ललचाते हो, देखता तो सारा मोहल्ला है, सड़क और गली के लड़के हैं,"

और फिर रीत का टोन बदल गया वो अंग्रेजी में आ गयी।


when you have eliminated the impossible, whatever remains, however improbable, must be the truth.

और तुरंत मेरे दिमाग में शर्लाक होम्स की कहानी गूंजी, साइन आफ फोर,

sherlock-holmes-OIP.jpg


लेकिन रीत फिर तुरंत उस बनारसी बालाओं के रूप में वापस आ गयी जो इस धरा पर अवतरित ही होती हैं, मेरी रगड़ाई करने के लिए,

" गुड्डी तुझे सही ही बुद्धू कहती है, तो टेबल पर अगर प्लेट, कैसरोल, ग्लास और जग में पानी नहीं था तो बची केतली न, तो भले ही अजीब लगे, लेकिन देखने में क्या,... और चंदा भाभी ने देखो एक पल में, "

रीत की मुस्कराहट देख के मैंने हार भी मान ली और बात भी बदल दी,

" कई बार बुद्धू होने का फायदा भी हो जाता है, "

" एकदम तेरा तो हो गया न तीन ठगिनिया मिल गयीं, लेकिन फिर रोते क्यों हो ठगिनियों ने लूट लिया, होली है, बनारस है ससुराल है तो लुटवाने तो आये ही हो, क्या बचाने की कोशिश कर रहे हो, हाँ एक बात और ये बोल, दहीबड़ा खाने में तेरी फट क्यों रही थी, ?"


Shalwar-IMG-20230329-162105.jpg


" वो असल में, सुबह वाली बात, मिर्च, " हकलाते हुए मैंने अपना डर बताया ।



" भोले बुद्धू , मिर्च से भी खतरनाक भी कोई चीज भी तो हो सकती थी उसमे, सोचो, सोचो , " आँख नचाते उस खंजननयनी ने छेड़ा,

और सोच के मेरी रूह काँप गयी, गुझिया ठंडाई से इसलिए मैं दूर था तो कहीं, फिर मैंने ये सोच के तसल्ली दी की डबल डोज वाला गुलबाजामुन मैंने रीत को खिला दिया है, भांग की दो गोलियां बल्कि गोले, बनारस का पेसल गुलाबजामुन।

लेकिन अबकी रीत ने ट्रैक बदल दिया, पूछा उसने


" शाम को मुग़ल सराय किस ट्रेन से पहुंचे, गुड्डी बोल रही थी बहुत उठापटक कर के बड़ौदा से, चलो जानेमन से मिलना है तो थोड़ी उछल कूद तो करनी ही पड़ती है, "



और मैंने अपनी पूरी वीरगाथा ट्रेनगाथा सुना दी, मुग़लसराय तो कालका से, लेकिन बड़ौदा में कोई ट्रेन बनारस के लिए सीधी थी नहीं , तो अगस्त क्रान्ति से मथुरा, फिर दस मिनट बाद ताज एक्सप्रेस मिल गयी, उस से आगरा, और फिर वहां से किसी तरह बस से टूंडला और वहां बस कालका मिल ही गयी, तो कल शाम को आ गया वरना आज सुबह ही आ पाता । "



वो बड़ी देर तक मुस्कराती रही, फिर बोली,

"देवर कम जीजू कम स्साले, फिर तुम दिल्ली कब पहुँच गए नत्था के यहाँ से गुलाब जामुन लेने,"


Shalwar-IMG-20230329-162021.jpg



और मेरे गुब्बारे की हवा निकालने के बाद जोड़ा

: उस गोदौलिया वाले नत्था के गुलाबजामुन का स्वाद मैं पहचानती हूँ, अच्छे थे, लेकिन मेरे बनाये दहीबड़े में भांग की मात्रा उससे दूनी थी, चलो इस बात पर एक और दहीबड़ा हो जाए, मुंह खोलो, अरे यार इतनी देर में तो तेरी बहना अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों खोल देती, खोल स्साले"

और मैंने मुंह खोल दिया, सुन कौन रहा था, समझने का सवाल ही नहीं था, मैं तो सिर्फ रीत को देख रहा था, उसकी देह की सुंदरता के साथ उसकी सोचने की ताकत को,

दहीबड़ा उसने मेरे मुंह में डाल दिया, दही मेरे गाल पे पोंछ दिया, और बाकी उँगलियों में लगी दही चाटते हुए बोली,

" आब्जर्वेशन आनंद बाबू, आब्जर्व, देखते तो सब है लेकिन आब्जर्व बहुत कम लोग करते हैं "

और मैंने तुरंत आब्जर्व किया जो बहुत चालाक बन कर गुलाब जामुन मैंने रीत को खिलाया था उस की चौगुनी भांग रीत के दो दहीबड़ों से मैं उदरस्थ कर चुका हूँ और बस दस मिनट के अंदर उसका असर,...और रीत की ओर अचरज भरी निगाहों से देखता बोला

" आप, मेरा मतलब तुम तो एकदम लेडी शरलॉक होम्स हो "

" उन्हह अपनी दही लगी उंगलिया जो उसने थोड़ी चाट के साफ़ की थीं लेकिन अभी भी लगी थी, मुझे चाटने के लिए ऑफर कर दी और वो मेरे मुंह में, और वो बोली,

" मगज अस्त्र मैं तो फेलु दा की फैन हूँ। "

" सच्ची, " मैं चीखा।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
फेलू दा *

---
Rakul-26992b1a11cbd9023d0b5bd92a224dc3.jpg

" आप, मेरा मतलब तुम तो एकदम लेडी शरलॉक होम्स हो "

" उन्हह अपनी दही लगी उंगलिया जो उसने थोड़ी चाट के साफ़ की थीं लेकिन अभी भी लगी थी, मुझे चाटने के लिए ऑफर कर दी और वो मेरे मुंह में, और वो बोली,

" मगज अस्त्र मैं तो फेलु दा की फैन हूँ। "

" सच्ची, " मैं चीखा।

" तुम भी, " वो चीखी।

और हम दोनों ने हाथ नहीं मिलाया, सीधे गले और कस के फिर अलग होने के पहले, पहला सवाल उसी ने पूछा,

" नाम "

"प्रोदेश चंद्र मित्तर, मैंने फेलू दा का असली नाम बता दिया
Feluda-816cb188ae87bd7dc15c97b6e7c51943.jpg


अगला सवाल मेरा था , पता

रीत ने मुस्कराते हुए बिना एक मिनट खोये झट्ट से जवाब दे दिया, २१ रजनी सेन रोड और एक थोड़ा टेढ़ा सवाल भी दाग दिया,

पहली बार कहाँ, किस कहानी में, ये सवाल सचमुच में टेढ़ा था मुझे सोचना पड़ा और उस शोख ने १ २ ३ गिनना शुरू कर दिया, और मैंने भी मगज अस्त्र का इस्तेमाल किया और उसके ५ पहुँचने के पहले जवाब दे दिया,

" सन्देश, १९६५ और कहानी थी , फेलुदा गोयेंदागिरि या डेंजर इन दार्जिलिंग,"

और बात फिल्मों की ओर मोड़ के मैंने बोला, पहली फिल्म फेलुदा की,

सवाल ख़तम हुआ भी नहीं था की उस शोख का जवाब आ गया, सोनार केला

और अगली यहीं बनारस की जय बाबा फेलुनाथ,



Feluda-Joi-Baba-Felunath-The-Elephant-God-862799942-large.jpg


मैंने वो जगह भी देखी हैं शूटिंग हुयी थी, चलो ये बता दो तो मान जाउंगी जय बाबा फेलुनाथ में उत्पल दत्त फेलु दा के एक दोस्त पे चाक़ू फेंक के डराता है , उसका नाम"



अब एक एक सीन किसे याद रहता है, मैंने सोचा और सोचा, और याद आ गया, और मैंने झट्ट से जवाब दे दिया,

"जटायु लालमोहन घोषाल और अपनी ओर से एक बात और जोड़ दी उनके बाबा ने लेकिन उनका नाम रखा था, मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी की रीत ने बात पूरी कर दी.

" सर्बोंय गंगोपाध्याय लेकिन वो नाम इस्तेमाल नहीं करते और किताब तो जटायु के नाम से ही बिकती है "
bride-shalwar-hd.jpg



मैं चकित रह गया, ये एक क्विज में फाइनल राउंड का क्वेशन था, और ये लड़की, सत्यजीत राय की ट्रिविया मेरी क्विजिंग का फेवरिट एरिया था और मैंने उनकी सारी कहानियां पढ़ रखी थीं, फिल्मे देख रखी थीं,

यू पी एस सी के इंटरव्यू में हॉबी में सबसे ऊपर मैंने सत्यजीत रे मूवीज एंड स्टोरीज लिखी थी और चेयरमैन भी एक एक बंगाली भद्रलोक, दो सवाल तो सोनार केला पे ही, ८० % नंबर इंटरव्यू में मिले इसलिए फर्स्ट अटेम्प्ट में ही,



लेकिन मुझे नहीं मालूम था की फेलुदा की कोई शिष्या यहाँ सिगरा, औरंगाबाद बनारस में टकरा जायेगी,
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
भूतनाथ की मंगल होरी,



Shalwar-82781cf0791430ee45be38db34c6e71b.jpg




रीत का ध्यान कहीं और मुड़ गया था- “हे म्यूजिक का इंतजाम है कुछ क्या?”

“है तो नहीं। पर चंदा भाभी के कमरे में मैंने स्पीकर और प्लेयर देखा था। लगा सकते हैं। तुम्हें अच्छा लगता है?” मैंने पूछा।

“बहुत…” वो मुश्कुराकर बोली- “चल उसी से कुछ कर लेंगे…”

“और डांस?” मैंने कुछ और बात आगे बढ़ाई।

“एकदम…” उसका चेहरा खिल गया- “और खास तौर से जब तुम्हारे जैसा साथ में हो। वैसे अपने कालेज में मैं डांसिंग क्वीन थी…मजा आजयेगा, बहुत दिन से डांस नहीं किया किसी के साथ, चल यार गुड्डी तो तुझे जिंदगी भर नचाएगी, आज मैं नचाती हूँ , शुरुआत बड़ी बहन के साथ कर लो, जरा मैं भी तो ठोक बजा के देख लू , मेरी बहन ने कैसा माल पसंद किया है। "
Shalwar-IMG-20230416-153839.jpg


तब तक मैंने उसका ध्यान टेबल पे रखे कोल्ड ड्रिंक्स की ओर खींचा- “हे स्प्राईट चलेगा?”

रीत ने गौर से बोतल की सील को देखा, वो बंद थी। मुश्कुराकर रीत बोली- “चलेगा…”मैंने एक ग्लास में बर्फ के दो क्यूब डाले और स्प्राईट ढालना शुरू कर दिया।

उसे कोल्ड-ड्रिंक देते हुए मैंने कहा- “स्प्राईट बुझाए प्यास। बाकी सब बकवास…”

“एकदम…” चिल्ड ग्लास उसने अपने गोरे गालों पे सहलाते हुए मेरी ओर ओर देखा,

और एक तगड़ा सिप लेकर मुझे ऑफर किया, और जबतक मैं कुछ सोचता बोलता अपने हाथों में पकडे पकडे ग्लास मेरे होंठों में


रीत को कौन मना कर सकता है, मैंने भी एक बड़ी सी सिप ले ली।

लेकिन तब तक उसे कुछ याद आया, वो बोली, यार वो चंदा भाभी के कमरे का म्यूजिक सिस्टम मेरे हाथ लगे बिना ठीक नहीं होता, उसका प्लग, कनेक्टर, सब इधर उधर, बस दो मिनट में मैं चेक कर लेती हूँ, फिर सच में मजा आ जाएगा आज होली बिफोर होली का

वो चंदा भाभी के कमरे में घुसी लेकिन दरवाजे के पास रुक के वो कमल नयनी बोली,

" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "



और वह अंदर चली गयी और मैं सोचने लगा बल्कि कुछ देर तक तो सोचने की भी हालत में नहीं था, ये लड़की क्या बोल के चली गयी।

मैं सन्न रह गया। बात एकदम सही थी और कितनी आसानी से मुस्कराते हुए ये बोल गयी,

बीता हुआ कल, बल्कि बीता हुआ पल कहाँ बचता है, कुछ आडी तिरछी लकीरों में कुछ भूली बिसरी यादों में जिसे समय पुचारा लेकर हरदम मिटाता रहता है जिससे नयी इबारत लिखी जा सके, और उस बीते हुए पल के भी हर भोक्ता के स्मृतियों के तहखाने में वो अलग अलग तरीके से,

अभी गुड्डी रीत का बैग लेकर चंदा भाभी के पास गयी, बस वो पल गुजर गया, उसका होना, उसका अहसास,

और आनेवाला कल, जिसके बारे में अक्सर मैं, हम सब, वो,

पल भर के लिए मेरा ध्यान नीचे सड़क पर होने वाले होली की हुड़दंग की ओर चला गया, बहुत तेज शोर था, लग रहा था कोई जोगीड़ा गाने वालों की टोली,

सदा आनंद रहे यही द्वारे, कबीरा सारा रा रा ,

वो टोली बगल की किसी गली में मुड़ गयी थी,

और अचानक कबीर की याद आ गयी,



साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी

चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास

चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।

और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.

हम अतीत का बोझ लाद कर वर्तमान की कमर तोड़ देते हैं, कभी उसके अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं, कभी उन्ही पलों में जीते रहते हैं और जो पल हमारे साथ है उसे भूल जाते हैं।


जहां छत पर गुड्डी का और चंदा भाभी का घर था वो छत बहुत बड़ी थी और खुली थी, ऊँची मुंडेर से आस पास से दिखती भी नहीं थी, लेकिन अगल बगल के घरों की गलियों की आवाजें तो मुंडेर डाक के आ ही जाती थी। पड़ोस के किसी घर में किसी ने होली के गाने लगा रखे थे और अब छुन्नूलाल मिश्र की होरी आ रही थी,




खेलें मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी,

भूत पसाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी।


लखि सुंदर फागुनी छटा के मन से रंग गुलाल हटा के,

चिता भस्म भर झोरी, दिगंबर खेलें मसाने में होरी।



यही बात एकदम यही बात, मृत्यु के बीच जीवन, यही तो बोल के गयी वो, कल नहीं रहा, कल का पता नहीं, लेकिन जो पल पास में है उसका रस लो, यही आनंद है आनंद बाबू। उसे जीना, उसका सुख लेना, उस पल का क्षण का अतीत को, भविष्य को भूल कर,

और यही बनारस का रस है। बनारसी मस्ती है, जीवन के हर पल को जीना, उसके रस के हर बिंदु को निचोड़ लेना,



" हे म्यूजिक सिस्टम मिल भी गया, ठीक भी हो गया, आ जाओ अंदर और स्प्राइट भी ले आना " अंदर से रीत की आवाज आयी
salwar-e6e5e14a4af7ef70c39f77fb8e2bce43.jpg




बगल से होरी की आखिरी लाइने बज रही थीं,



भूतनाथ की मंगल होरी, देख सिहायें ब्रज की गोरी।

धन धन नाथ अघोरी, दिगंबर मसाने में खेले होरी।




अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
Updates are posted Please, read enjoy like and comment.
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,106
57,263
259
फेलू दा *
आप से में शायद बहुतों का मालूम होगा की मैं फिल्मो की विशेष रूप से सत्यजीत रे की जबरदस्त फैन हूँ, और इसी फोरम में सत्यजीत रे की जन्म शताब्दी पर उन्हें समर्पित मैंने एक थ्रेड भी शुरू किया था। यह पोस्ट फेलू दा आगे भी कहीं कहीं उस का असर इस कहानी में देखने को मिलेगा /



Tribute to Satyajit Ray- Birth Centenary​


 
Last edited:

Rajizexy

Punjabi Doc, Rajiii
Supreme
46,372
48,139
304
फागुन के दिन चार भाग ९
रीत की रीत,
रीत ही जाने
salwar-IMG-20231120-102422.jpg

“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।

“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”

गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।

“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।

हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।

“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।

“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।



“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।

“हे बचना चाहते हो क्या?” आँख नचाकर वो जालिम अदा से बोली।

“ना…” मैंने कबूल किया।

“बचकर रहना कहीं दिल विल। कोई…” वो जानते हुए भी गुड्डी की ओर ,शोख निगाहों से देख कर बोली।

मैं जाकर गुड्डी के पास खड़ा हो गया था। मैंने हाथ उसके कन्धे पे रखकर कहा-

“अब बस यही गनीमत है। अब उसका डर नहीं है। ना कोई ठग सकता है ना कोई चुरा सकता है…।”

मैंने भी बड़े अंदाज से गुड्डी की आँखों में झांकते कहा।

उस सारंग नयनी ने जैसे एक पल के लिए अपनी बड़ी कजरारी आँखें झुका के गुनाह कबूल कर लिया।

लेकिन रीत ने फिर पूछा- “क्यों क्या हुआ दिल का?”



“अरे वो पहले ही चोरी हो गया…” और अब मेरा हाथ खुलकर गुड्डी के उभारों पे था।

रीत कुछ-कुछ बात समझ रही थी लेकिन उसने छेड़ा- “चोर को सजा क्या मिलेगी?”

“अभी मुकदमा चल रहा है लेकिन आजीवन कारावास पक्का…” मैं मुश्कुराकर गुड्डी को देखते बोला- “बस डर यही की मिर्चे वाली ब्रेड रोल…”

मेरी बात काटकर रीत बोली- “अरे यार। ससुराल में, ये तो तुम्हारी सीधी सालियां थी। ये गनीमत मनाओ की मैं इन दोनों के साथ नहीं थी। लेकिन दहीबड़े के साथ डरने की कोई बात नहीं है। लो मैं खाकर दिखाती हूँ…” और उसने एक छोटी सी बाईट लेकर अपनी लम्बी गोरी उंगलियों से मेरे होंठों के पास लगाया।

मेरे मुँह की क्या बिसात मना करता। मैं खा गया।

“नदीदे…” गुड्डी बोली।



“अरे यार। ऐसी सेक्सी भाभी कम साली । फागुन में कुछ दे, जहर भी दे ना तो कबूल…” मैं मुश्कुराकर बोला।



“अरे ऐसे देवर पे तो मैं बारी जाऊँ…” कहकर रीत ने अपने हाथ में लगा दहीबड़े का दही मेरे गाल पे लगा दिया और थोड़ा और प्लेट से लेकर और।

दही बड़े में मिर्च नहीं थी। लेकिन वो सबसे खतरनाक था। दूबे भाभी के दहीबड़े मशहूर थे वहाँ… उनमें टेबल पे जितनी चीजें थी, उनमें से किसी से भी ज्यादा भांग पड़ी थी। गुड्डी को ये बात मालूम थी लेकिन उस दुष्ट ने मुझे बताया नहीं।

गुड्डी बस खड़ी खी-खी कर रही थी।


मैंने रीत को गुलाब जामुन खिलाने की कोशिश की तो उसने मुँह बनाया। लेकिन मैंने समझाया- “दिल्ली से लाया हूँ…” तब वो मानी।

एक बार में पूरा ही ले लिया लेकिन साथ में मेरी उंगलियां भी काट ली और जब तक मैं सम्हलता। मेरा हाथ मोड़कर शीरा मेरा हाथ का मेरे ही गाल पे लगा दिया।

“चाट के साफ करना पड़ेगा…” मैंने उसे चैलेन्ज दिया।

“एकदम। हर जगह चाट लूँगी, घबड़ाओ मत…” हँसकर वो बोली। रीत की निगाहें टेबल पे कुछ पीने के लिए ढूँढ़ रही थी।



“ठंडाई…” मैंने आफर की।

“ना बाबा ना। चन्दा भाभी की बनायी, एक मिनट में आउट हो जाऊँगी…” फिर उसकी निगाह बियर के ग्लास पे पड़ी- “बियर। पीते हो क्या?”

मैंने मुश्कुराकर कबूल किया- “कभी कभी। अगर तुम्हारा जैसे कोई साथ देने वाला मिल जाय…”

“थोड़ी देर में। लेकिन सबको पिलाना तब मजा आएगा। खास तौर से इसे…” मुड़कर उसने गुड्डी की ओर देखा।

मैं- “एकदम। लेकिन अभी…”

गुड्डी रीत जो बैग साथ लायी थी उसे खोलकर देख रही थी और मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

“हे मैं चलूँ। ये बैग अन्दर देकर आती हूँ। कुछ काम वाम भी होगा। बस पांच मिनट में…” गुड्डी बैग लेकर अन्दर जाते हुए बोली।+++

" आराम से आना, दस मिनट क्या पन्दरह मिनट बीस मिनट, तबतक मैं इस अपने देवर कम छोटे जीजा कम साले का क्लास लेती हूँ, "

" एकदम दी, खूब रगड़के, बहुत बोल रहे थे न बनारस की ठगिनियाँ, अब पता चलेगा, " गुड्डी खिलखिलाते हुए जाते जाते बोली, लेकिन मेरी बात सुन के ठहर गयी,

" हे ये देवर, जीजा तक तो ठीक लेकिन साला किधर से " मैंने रीत से पूछा।

मैं देख ज्यादा रहा था, बोल कम रहा था, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, जिसमे शरारत नाच रही थी, धनुष ऐसी भौंहे, सुतवां नाक, भरे हुए होंठ, और निगाहें ठुड्डी की गड्ढे में जाके डूब जा रही थीं,

" स्साले, स्साले को स्साला नहीं बोलूंगी तो क्या " मुस्कराते हुए रीत मेरे पास आयी और कस के पास आयी और मेरी नाक पकड़ के हिलाके चिढ़ाते हुए बोलने लगी। गुड्डी मुझे देख के मुस्करा रही थी।

" स्साले समझ में नहीं आया न, अच्छे अच्छे बनारस में आके बनारसी बालाओं के आगे समझ खो देते हैं तो तुम क्या चीज हो। ये बताओ की तुम अपनी उस ममेरी बहन एलवल वाली छमक छल्लो को यहाँ बनारस में ला के बैठाने वाले हो न, एकदम ठीक सोच रहे हो, अरे जो चीज वो फ्री में बांटेंगी, उसके पास कोई असेट है तो उसे मॉनिटाइज कर सकती है तो करना चाहिए न, काम वही, अंदर बाहर, रगड़ घिस तो कुछ पैसा हाथ में आ जाए तो क्या बुराई और सबसे अच्छी बात अभी तक उस पे कोई जी एस टी भी नहीं, तो ये बताओ दिन रात सब बनारस वाले उस के ऊपर चढ़ेंगे उतरेंगे, उसकी तलैया में डुबकी मारेंगे, तो तुम क्या लगोगे उन सबके साले न, तो स्साले हम सब भी तो बनारस वाले हैं हम सबके भी तो स्साले, तुम साले ही लगोगे न, स्साले "



गुड्डी मुझे देख के मुस्कराती रही जैसे कह रही हो देखा, अब समझ में आया किस के पाले पड़े हो, मैंने तुमसे झूठ ही नहीं कहा था की मेरी रीत दी का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, और बैग लेके चंदा भाभी के पास किचेन में।



मैं समझ गया था की बनारसी बालाओं से बहस करना बेकार है, और ये रीत उससे तो बहस के बारे में सोचना ही बेकार है।
Superb gazab 👙👠💋 update
👌👌👌👌👌👌
🌟🌟🌟🌟🌟
✔️✔️✔️

Devar aur jiju se, sala bhi bna dia 😛
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Rajiii
Supreme
46,372
48,139
304
फेलू दा *
आप से में शायद बहुतों का मालूम होगा की मैं फिल्मो की विशेष रूप से सत्यजीत रे की जबरदस्त फैन हूँ, और इसी फोरम में सत्यजीत रे की जन्म शताब्दी पर उन्हें समर्पित मैंने एक थ्रेड भी शुरू किया था। यह पोस्ट फेलू दा आगे भी कहीं कहीं उस का असर इस कहानी में देखने को मिलेगा /


Tribute to Satyajit Ray- Birth Centenary​


Hum to sirf aapke fan hain Komal didi.
Is ke sivay hum na hi kuchh jan te hain aur na hi jan na chahte hain.Oaky ❣️
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Rajiii
Supreme
46,372
48,139
304
Last edited:
Top