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Erotica फागुन के दिन चार

Sutradhar

Member
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बहुत बहुत आभार

रीत की एक झलक सी मिली है लेकिन रीत की असली एंट्री अगले पोस्ट में बस एक दो दिन में और आपने पिछली एक पोस्ट में जिस कशीदाकारी का जिक्र किया था, उसकी थोड़ी सी बानगी अगले पोस्ट में मिलेगी, और वह पोस्ट करीब करीब पूरी तरह रीत की, रीत के लिए होगी।


वाह क्या बात है कोमल मैम !!!!

आपको इतना याद रहा वो भी इतने सारे कमेंट्स में !!!

आपकी स्मरण शक्ति विलक्षण है वस्तुतः आपका संपूर्ण व्यक्तित्व ही अद्वितीय है चाहे आपकी लेखनी हो, आपका विभिन्न विधाओं पर अधिकार, विषयवस्तु पर पकड़ आदि - आदि।

आपका हार्दिक आभार


सादर
 

Mass

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Wonderful update madam...the conversation between Reet and Anand Babu was really free flowing...the references to PC Sarkar and Sherlock Holmes was outstanding...
but more importantly, where you really excel is in finding such gems (pics) which are rare to find. I am sure, it takes a lot of effort on your part to search for those pics..it truly is magnificent.

Great work!!

komaalrani
 

komaalrani

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Superb gazab 👙👠💋 update
👌👌👌👌👌👌
🌟🌟🌟🌟🌟
✔️✔️✔️

Devar aur jiju se, sala bhi bna dia 😛
Thanks so much for nice comments, You are the first one to comment on this post

Thanks again
 

komaalrani

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Last Post is on last page, Page 132, please do read enjoy and comment.
 
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" रीत की रीत , रीत ही जाने " बिल्कुल ठीक कहा आपने । इस लड़की की इंटेलिजेंसी , इसकी वाक - चातुर्यता , बाल मे से भी खाल निकाल लेने की कुशलता इन्हे विशिष्ट और बाकी लड़कियों से अलग बनाती है ।
शेरलाॅक होम्स की तरह उन्होने जिस तरह से ' जल कहां थी ' की तहकीकात करी और फिर ठोस - तरल - गैस का पाठ पढ़ाई वह वास्तव मे अद्भुत था ।
लेकिन सबसे अधिक आश्चर्यचकित किया उन्होने प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे साहब की फिल्मों का जिक्र करके ।
आजकल के नौजवान बल्कि यूं कहूं सत्यजीत रे साहब के होम स्टेट ' बंगाल ' के भी नौजवान इनके अविश्वसनीय प्रतिभा से अनभिज्ञ हैं ।
इन्होने अपनी पहली फिल्म ' पथेर पांचाली ' से ही दुनियाभर मे ख्याति अर्जित कर ली थी । लेकिन इन्हें आलोचनात्मक प्रशंसा भी झेलनी पड़ी थी । इन पर आरोप था कि वो भारतीय गरीबी का निर्यात करने वाले फिल्म निर्देशक है ।
मुझे याद है जब इन्हें 1992 मे आस्कर का विशेष पुरस्कार " मानद अकादमी पुरस्कार " प्राप्त हुआ था । इनसे पहले यह पुरस्कार सिर्फ पांच व्यक्ति को मिला था जिनमे एक सर्वश्रेष्ठ अदाकार चार्ल चैप्लिन साहब थे ।
इसी से आप सत्यजीत रे साहब की योग्यता का आकलन कर सकते है ।
इनकी फिल्म मे सबसे अधिक काम उस वक्त के सबसे महान और सबसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं मे से एक सौमेन मित्र साहब ने किया था ।
उत्पल दत्त साहब के बारे मे क्या ही कहा जाए ! सत्यजीत रे साहब ने इनकी भूरी भूरी प्रशंसा की थी ।
उत्पल दत्त साहब की काॅमिक टाइमिंग गजब की थी । ऐसा लगता था जैसे उत्पल दत्त साहब एक्टिंग नही बल्कि नेचुरल लाइफ फिल्मों मे जी रहे थे ।

बंगाली फिल्म इंडस्ट्रीज मे , खासकर बंगाली लेंग्वेज फिल्म मे सत्यजीत रे साहब , सौमेन मित्र साहब , उत्पल दत्त साहब , उतम कुमार साहब , सुचित्रा सेन जी का योगदान सबसे अधिक है ।


खैर , रीत मैडम के साथ साथ आनंद भाई साहब भी सत्यजीत रे के बिग प्रशंसक निकले । इसके साथ दोनो का टेस्ट डांसिंग पर भी एक समान है ।

कहीं रीत की माया मे आनंद साहब नई रीत न अपना ले !
इस रीत के चक्कर मे कहीं अपना प्रीत न गंवा बैठे !

वैसे अपडेट मे महान जादूगर ' गोगियापाशा ' और ' पी सी सरकार जूनियर का जिक्र भी आया था । आधुनिक जादूगरी के दुनिया मे जहां तक मुझे याद है , गोगियापाशा का नाम सबसे पहले आता है जिन्होंने एक अमेरिकन एयरपोर्ट को ही अदृश्य कर दिया था । इसके बाद पी सी सरकार का नाम आता है जिन्होंने एक बार शिप पर स्वयं को लोहे के जंजीर से बंधवा कर फिर खुद को एक बक्से मे बंद कर समुद्र मे फेंकवा दिया था ।

इस स्टोरी मे बदलाव स्पष्ट नजर आ रहा है । GST का जिक्र उन दिनों दूर दूर तक नही था ।


बहुत ही खूबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 

komaalrani

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कोमल मैम

ये "फेलू दा" के बारे में विस्तृत जानकारी देने की कृपा करें।

सादर


फेलू दा और कुछ और बातें



फेलुदा , या प्रोदोष चंद्र मित्रा [मित्तर] , भारतीय निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे द्वारा निर्मित एक काल्पनिक जासूस , निजी अन्वेषक है । फेलुदा 21 रजनी सेन रोड, बालीगंज , कलकत्ता , पश्चिम बंगाल में रहते हैं । फेलुदा ने पहली बार 1965 में रे और सुभाष मुखोपाध्याय के संपादकीय में संदेश नामक बंगाली बच्चों की पत्रिका में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । उनका पहला साहसिक कार्य फेलुदर गोएन्डागिरी था ।

फेलुदा के साथ अक्सर उनका चचेरा भाई, जो उनके सहायक भी है, तपेश रंजन मित्तर (फेलुदा उसे प्यार से टॉपशे कहते हैं) आता है, जो कहानियों में सुनाने का काम करता है।

छठी कहानी, सोनार केला (द गोल्डन फोर्ट्रेस) से, यह जोड़ी एक लोकप्रिय थ्रिलर लेखक जटायु (लालमोहन गांगुली) से जुड़ गई है।

फेलुदा को कई बार फिल्माया गया है, जिसमें सौमित्र चटर्जी , सब्यसाची चक्रवर्ती , अहमद रुबेल , शशि कपूर , अबीर चटर्जी , परमब्रत चटर्जी , टोटा रॉय चौधरी और इंद्रनील सेनगुप्ता ने किरदार निभाया है । सत्यजीत रे ने दो फेलुदा फिल्में निर्देशित कीं - सोनार केला (1974) और जोई बाबा फेलुनाथ (1978)।

फेलुदा का चरित्र शर्लक होम्स से मिलता जुलता है और तपेश/टॉपशे का चरित्र डॉ. वॉटसन से मिलता जुलता है । [ फेलुदा की कहानियों में, उन्हें शर्लक होम्स के एक बड़े प्रशंसक के रूप में प्रदर्शित किया गया है जिसका उल्लेख उन्होंने कई बार किया है।

मार्शल आर्ट में निपुण एक मजबूत शरीर वाले व्यक्ति होने के बावजूद , फेलुदा ज्यादातर इस पर निर्भर रहते हैं शारीरिक शक्ति या हथियारों का उपयोग करने के बजाय मामलों को हल करने के लिए उनकी शानदार विश्लेषणात्मक क्षमता और अवलोकन कौशल (मजाक में इसे मगजस्त्र या मस्तिष्क-हथियार कहा जाता है) वह मामलों को लेने के बारे में बहुत चयनात्मक हैं और उन मामलों को प्राथमिकता देते हैं जिनमें मस्तिष्क के प्रयास की आवश्यकता होती है।

लेकिन एक बात

फेलू दा का संबंध इस कहानी से और विशेष रूप से रीत से एक अलग ढंग से भी है पर वह अपने आप कहानी के साथ पता चल जाएगा।

मैं मानती हूँ की कहानी अपनी बात खुद कहती है और एक बार पोस्ट होने के बाद हर पाठक उसे अपने ढंग से पढ़ने, समझने के लिए आजाद है, लेकिन आप ऐसे पाठको से कथा शिल्प की बात, जिस तरह से मैंने लिखा वह कहना भी अनुचित नहीं

रीत सेंसुअस, सुन्दर वाक् पटु तो है ही लेकिन इस के इन भागों से उसके आबजर्वेंट होने का भी संकेत मिलता है,

दूसरी बात की एक घटना , ब्रेकफास्ट में ब्रेड रोल में मिर्चे और पानी वाला मामला शुरू में ( और है भी ) दो टीनेजर कन्याओं की छेड़खानी के तौर पर आता है, लेकिन उसी का विशेलषण रीत अपने ढंग से कर के अपने ऑबजर्वेंट होने को भी दिखाती है और आनंद बाबू इम्प्रेस हो जाते है।

लेकिन तीसरी बात है रीत के मन की गहराई जो इस प्रसंग के आखिरी पोस्ट में मिलती है जिसमें रीत की एक बात



'कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "



रीत के मन की गहराई का जीवन के प्रति उसके नजरिये को दिखता है और उसकी पुष्टि के लिए मैंने कबीर के एक पद ' मुर्दों का गाँव " और एक मशहूर होरी का सहारा लिया।

आनंद बाबू का रीत के प्रति दृष्टिकोण जो बना उसमें ये सभी बिंदु समाहित हैं

मैं मानती हूँ की कहानी मल्टी लेयर्ड होनी चाहिए, अलग अलग स्तरों पर मन को, मस्तिष्क को छुए, और चरित्र भी मल्टी डायमेंशनल होने चाहिए, हम लोग जो कहानी लिखते हैं उनकी यह जिम्मेदारी है की भले हम इरोटिका लिख रहे हैं लेकिन हम कथाकारों की एक लम्बी परम्परा की कड़ी है। और कहानी को कुछ कहना चाहिए, अपने पात्रों के जरिये, संवादों के जरिये।



इस कहानी के पाठक अभी कम है लेकिन मैं मानती हूँ कुछ पाठक ही हों जिन्हे कहानी में रूचि हो जिनसे कहानी के बारे में बातचीत की जा सके तो मेहनत वसूल हो जाती है।










 

komaalrani

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इस पोस्ट के आखिरी हिस्से में ( भूतनाथ की मंगल होरी ) रीत ने जो ये बात कही

" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "

उसी के संदर्भ में उसी हिस्से में कबीर की कुछ लाइने उद्धृत की गयी हैं,

" और अचानक कबीर की याद आ गयी,


साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी

चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास

चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।


और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.


कबीर का पूरा भजन, " साधो यह मुर्दो का गाँव " जिसकी यह लाइने हैं, यहाँ सूधी पाठको के लिए उद्धृत कर रही हूँ और साथ ही एक वीडियों लिंक भी उस भजन का जो कबीर सीरियल का हिस्सा था

साधो ये मुरदों का गांव!
पीर मरे, पैगम्बर मरि हैं,
मरि हैं ज़िन्दा जोगी,
राजा मरि हैं, परजा मरि हैं,
मरि हैं बैद और रोगी।
साधो ये मुरदों का गांव!

चंदा मरि है, सूरज मरि है,
मरि हैं धरणी आकासा,
चौदह भुवन के चौधरी मरि हैं
इन्हूँ की का आसा।
साधो ये मुरदों का गांव!

नौहूँ मरि हैं, दसहुँ मरि हैं,
मरि हैं सहज अठ्ठासी,
तैंतीस कोटि देवता मरि हैं,
बड़ी काल की बाज़ी।
साधो ये मुरदों का गांव!

नाम अनाम अनंत रहत है,
दूजा तत्व न होइ,
कहे कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो मत कोई।
 

komaalrani

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