इस पोस्ट के आखिरी हिस्से में ( भूतनाथ की मंगल होरी ) रीत ने जो ये बात कही
" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
उसी के संदर्भ में उसी हिस्से में कबीर की कुछ लाइने उद्धृत की गयी हैं,
" और अचानक कबीर की याद आ गयी,
साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी
चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास
चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।
और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.
कबीर का पूरा भजन, " साधो यह मुर्दो का गाँव " जिसकी यह लाइने हैं, यहाँ सूधी पाठको के लिए उद्धृत कर रही हूँ और साथ ही एक वीडियों लिंक भी उस भजन का जो कबीर सीरियल का हिस्सा था
साधो ये मुरदों का गांव!
पीर मरे, पैगम्बर मरि हैं,
मरि हैं ज़िन्दा जोगी,
राजा मरि हैं, परजा मरि हैं,
मरि हैं बैद और रोगी।
साधो ये मुरदों का गांव!
चंदा मरि है, सूरज मरि है,
मरि हैं धरणी आकासा,
चौदह भुवन के चौधरी मरि हैं
इन्हूँ की का आसा।
साधो ये मुरदों का गांव!
नौहूँ मरि हैं, दसहुँ मरि हैं,
मरि हैं सहज अठ्ठासी,
तैंतीस कोटि देवता मरि हैं,
बड़ी काल की बाज़ी।
साधो ये मुरदों का गांव!
नाम अनाम अनंत रहत है,
दूजा तत्व न होइ,
कहे कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो मत कोई।