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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

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Shetan

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फागुन के दिन चार भाग ८

चिकनी चमेली

१,०१,४००


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“मतलब?” मुश्किल से पीछे मुड़कर उस तौलिये को बाँधकर मैंने पूछा।

अब खुलकर हँसती हुई उस सारंग नयनी ने कहा- “मतलब ये है की आपकी भाभी ने आदेश दिया है की आपको चिकनी चमेली बना दिया जाय। सुबह तो सिर्फ मंजन किया था ना। तो फिर…”

और हाथ पकड़कर वो मुझे चंदा भाभी के कमरे में ले आई जहां मैं रात में सोया था।



“पर मेरा तो कोई सामान ही नहीं रेजर, शेविंग का सामान। बाकी सब…” मैंने दुहराया।


“बुद्दू राम जी ये सब आपकी चिंता का विषय नहीं है, जब तक मैं हूँ आपके पास। मैं हूँ ना…” मेरे गाल कसकर पकड़कर वो दुष्ट बोली-

“अरे यार मैंने भाभी से पूछा था तो उनके पति का फ्रेश रेजर ब्रश सब कुछ हैं और साबुन वाबुन तो लड़कियों के लगाने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए तुम्हें…”
बाकी भाभी के ड्रेसिंग टेबल की ओर इशारा करते हुए हुए वो आँख नचाकर बोली-

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“लिपस्टिक, नेल पालिश, रूज जो भी चाहिए। लेकिन ये बताओ जब मैंने तुम्हारी लुंगी खींची तो इतना छिनछिना क्यों रहे थे? क्या कभी रैगिंग में तुम्हारे कपड़े वपड़े नहीं उतरवाये गए क्या? मैंने तो सुना है की रैगिंग में बहुत कुछ होता है…”

“सही सुना है तुमने लेकिन बस मैं बच गया, हुयी तो लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। फिर रैगिंग में कपडे उतरते तो हैं लेकिन लड़कों के सामने यहाँ तो …”


मेरी बात काटकर वो बोली- “चलो कोई बात नहीं, वो सब कसर आज पूरी हो जायेगी। दूबे भाभी, साथ में,... बस देखना…” और खींचकर उसने मुझे बाथरूम में पहुँचा दिया। और शरारत से वो बोली-

“मैं नहला दूं?”

“नहीं नहीं…” मुझे सुबह का बन्दर छाप लाल दन्त मंजन याद था।

“जाने दो यार। मेरे भी वो पांच दिन चल रहे हैं। वरना तुम्हारे मना करने का मेरे ऊपर क्या फर्क पड़ता। अभी मैं ब्रश रेजर वेजर लेकर आती हूँ…” और वो बाथरूम के बाहर निकलकर एक आलमारी खोलने लगी।

क्या मस्त बाथरूम था। हल्के गुलाबी रंग की टाइल्स, एकक बड़ा सा बाथटब, शावर, एकदम माडर्न फिटिंग्स, और जब मैंने ऊपर नजर घुमाई। इम्पोर्टेड साबुन, शैम्पू, जेल, डियो, जो आप सोच सकते हैं वो सब कुछ। टब के साथ बबल-बाथ वाले सोप। मैंने बाथटब का टैप आन कर दिया, और उसमें बबल-बाथ वाला सोप डाल दिया। थोड़ी ही देर में टब भर गया था। मैंने सोचा था अच्छे से शेव करके थोड़ी देर टब में नहाऊंगा। रात भर की थकान उतर जायेगी। और उसे बाद ठन्डे पानी से बढ़िया शावर।

हाँ वो रेजर वेजर।

वो गुड्डी की बच्ची पता नहीं कहाँ गायब हो गई। शैतान का नाम लो शैतान हाजिर। वो आ गई हांफते कांपते-

“देखो मैं तुम्हारे लिए सब चीजें ले आई…” वो बोली।

हाँ। रेजर था, वो भी नया। बिना इश्तेमाल किया। मेरी पसंद वाला ब्रश भी था। लेकिन। शेविंग क्रीम- “हे क्रीम कहाँ है? उसके बिना…” मैंने उसकी ओर देखा।

“अरे कर लो ना यार। क्या फर्क पड़ता है?” उसने मुझे फुसलाया।
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“अच्छा थोड़े देर बाद आज रात ही को तो, मैं करूँगा। तुम्हारे साथ बिना क्रीम के बिना कुछ लगाए। तो पता चलेगा…” मैंने शरारत से छेड़ा।

“तुम ना हरदम एक ही बात…” कुछ मुँह फुलाकर वो बोली फिर हँसकर कहने लगी-

“अरे यार उसकी बात और है और इसकी बात और है…”

“अच्छा जी तुम्हारी मुलायम है मलमल की, और मेरे गाल हैं टाट के…” मैंने और छेड़ा।

प्यार से मेरे गालों को सहलाकर बोली- “अरे मेरे यार के गाल तो गुलाब हैं…”
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और तिरछी आँख करके मुझे घूरा और बोली- “आज कस-कसकर ना रगड़ा तो कहना, इन गालों को…” और मुड़ गई।

फिर जाते-जाते बोलने लगी- “तुम ना बाबा एक ही हो। ले आती हूँ कहीं से ढूँढ़ ढांढ़ के, तुम भी क्या याद करोगे…”

फिर बाहर से उठक पटक, धड़ाक पड़ाक दराज खोलने, बंद करने की आवाजें। गुस्से में लग रही थी वो-


“मिल गई है लेकिन कम है, मैं दबा-दबाकर अपनी हथेली में निकालकर ले आऊं?” उसकी खीझी हुई आवाज आई।

अब मना करना खतरे से खाली नहीं था। मैंने मस्का लगाया- “हाँ ले आओ ले आओ। तू बहुत अच्छी हो…”

“ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं है…” वो बोली। थोड़ा गुस्से में अभी भी लग रही थी।

उसने हथेली में रोप कर ढेर सारी पीली-पीली क्रीम जैसी। मैंने लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसने झट से मना कर दिया-

“मंगते। हर जगह हाथ फैला देते हो। तुमने इधर-उधर गिरा दिया तो। फिर मैं कहाँ से ढूँढ़ कर लाऊँगी। इत्ती मुश्किल से तो। और इसके बिना तुम्हारा काम। लाओ अपने मुलायम-मुलायम हेमा मालिनी के गाल…”

और उसने चारों ओर अच्छी तरह चुपड़ दिया। जरा भी जगह नहीं बची। उसके हाथ में अभी भी थोड़ी सी क्रीम बची थी, और उसके होंठों पे शरारत भरी मुश्कान खेल रही थी।

जब तक मैं समझ पाता। उसका हाथ तौलिये के अन्दर-

“अरे यहाँ पर भी तो। यहाँ भी बाल तो बनाते होगे। क्रीम तो लगाना पड़ेगा ना। कहीं कट वट गया तो। नुकसान तो मेरा ही होगा…”

फिर वो मुझे अदा से घूरती रही।

“तुम न…” मेरे समझ में नहीं आ रहा था क्या बोलूं?

“मैं क्या?” वो अब पूरी शरारत से मुश्कुरा रही थी- “मैं बहुत बुरी हूँ ना…”

मेरी समझ में नहीं आया और मैंने बाहों में पकड़कर चुम्मी ले लिया।

वो बाथटब की ओर देख रही थी, और बोली- “साथ-साथ नहाते तो इतना मजा आता…”

“तो आओ ना…” मैंने दावत दी।

“अरे नहीं यार मेरी वो साली। वो पांच दिन वाली सहेली। ऐसे गलत समय आई है ना। वरना ये मौका मैं छोड़ती। जब हम लौटकर आयेंगे ना तो एक दिन तुम्हारे साथ जरूर नहाऊँगी। तुम्हें नहालाऊँगी भी और। धुलाऊँगी भी…”गुड्डी मुस्कराते हुए बोली।
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तब तक चन्दा भाभी ने आवाज दी, और वो परी उड़ चली लेकिन उसके पहले कहा-

“हे, तुम ये तौलिया लपेटे टब में जाओगे क्या?” और खिलखिलाते हुए उसने मेरी तौलिया खींच ली और मेरा ‘वो’ 90° डिग्री पे था। जाते-जाते वो फिर ठिठक गई और ‘उसकी’ ओर देखकर, वो शैतान मुश्कुराकर पूछने लगी-

“अच्छा जब मैंने तुम्हारी लुंगी खींची थी तो तुम उसे छिपा क्यों रहे थे?”

“वो। वहां पे…” मैं हकला रहा था- “वहां पे गुंजा जो थी…”


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“अच्छा जी…” वो इत्ते जोर से हँसी-
“तुम ना बुद्धू थे, बुद्धू रहोगे। गुंजा, अरे यार। वो साली तेरी साली है। उसने खुद बोला। उसकी मम्मी ने बोला, इत्ता वो आज तुम्हें छेड़ रही थी। अरे तुम्हारी जगह कोई और होता ना। तुम दिखाने से डर रहे थे। वो तो उसे अब तक हाथ में पकड़ा देता। घुसेड़ने को सोचता। और तुम ना…” मुश्कुराकर वो बोली और चल दी।


मैंने शेव करनी शुरू की। क्रीम चुनचुना रही थी, झाग भी नहीं बन रहा था। मुझे लगा शायद इम्पोर्टेड है इसीलिए। मैंने दो बार शेव बनाई रेजर काफी शार्प था। फिर गुड्डी की बात याद आ गई नीचे के बालों के बारे में। क्रीम तो उसने वहां भी खूब लिथड़ दी थी। कभी-कभी वहां के बाल मैं साफ करता ही था। मैंने कर लिया। एकदम साफ हो गए।

फिर मैं टब में जाकर बैठा। थोड़ी देर में सारी थकान, मैल सब कुछ दूर, और उसके बाद शावर शैम्पू। जब मैं तैयार होकर बाहर निकाला तो एकदम हल्का जैसे कहते हैं ना लाईट एस फेदर, बिलकुल वैसा। हाँ एक बात और जब मैंने कैबिनेट खोली तो मुझे उसमें वो बोतल दिख गई जिसमें से चन्दा भाभी ने, वही सांडे के तेल वाली। उन्होंने समझाया था, दो बार रोज इश्तेमाल से परमानेंट फायदा होता है तो मैंने बस थोड़ा सा लगा लिया। बाद में पता चला की कड़ा और खड़ा करने के साथ-साथ उसमें से एक गंध निकलती है जिसका लड़कियों पे बहुत मादक और कामुक असर होता है। मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन साथ में कुछ परेशानी भी।


मैंने गुंजा का दिया टाप और बर्मुडा पहना और कमरे में आ गया।

बाहर गुड्डी कुछ कर रही थी। मेरी निगाह उसी पे लगी रही। क्या है उस जादूगरनी में? मैं सोच रहा था।

मेरे मन ने कहा- “सब कुछ। जो तुम चाहते हो। बल्की उससे भी बहुत ज्यादा। पकड़ लो कसकर अगर वो फिसल गई ना तो पूरी जिंदगी पछताओगे…”



भाभी ने एक बार मुझसे पूछा था- “तुम्हें कैसी लड़की पसंद है?” असल में भाभी ने कहा था तुम्हें- “कैसा माल पसंद है?”

शर्माते झिझकते, मैंने बोला- “असल में। वो वो। जो दीवाल से सटकर खड़ी है। फेस करके उसकी ओर तो तो…”

“अरे यार। तो तो क्या लगा रखी है? बोलो ना साफ साफ?” भाभी बोली।

“वो। जो दीवाल से सटकर खड़ी है। फेस करके उसकी और तो पहली चीज जो दीवाल से लगे तो वो उसकी। नाक ना हो…” मैंने बहुत मुश्किल से कहा।

“उन्ह्ह। उन्ह…” एक पल में वो समझ गई पर मुझे छेड़ते हुए कहा- “अच्छा, तो उसकी नाक छोटी हो। समझ गई मैं…” बड़ी सीरियस होकर वो बोली।



“ना ना…” मैं कैसे समझाऊँ उनको। मेरी समझ में नहीं आ रहा था।
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वो हँसते-हँसते दुहरी हो गईं- “अरे साफ-साफ क्यों नहीं कहते की तुम्हें ‘बिग-बी’ पसंद है। सही तो है। मुझे भी जीरो फिगर एकदम पसंद नहीं…”

मेरी निगाह गुड्डी से चिपकी हुई थी। वो झुकी हुई थी, टेबल ठीक कर रही थी और उसके दोनों उरोज कसी-कसी फ्राक से एकदम छलकते हुए।

मेरा मन कह रहा था की बस जाकर दबोच लूं। गुंजा कह रही थी ना की गुड्डी को स्कूल में टाइटिल मिली थी ‘बिग-बी’ एकदम सही टाइटिल थी।


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उसकी चोटियां भी खूब मोटी घनी और सीधे नितम्बों की दरार तक, और नितम्ब भी एकदम परफेक्ट, कसे रसीले। लम्बाई भी उसकी उम्र की लड़कियों से एक-दो इंच ज्यादा ही थी।


वो मासूम चेहरा।


लेकिन क्या शैतानी, शरारत छिपी थी उनमें। वो दो काली काली आँखें। उन्होंने ही तो लूट लिया था मुझे।
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लेकिन सबसे बढ़कर उसका एटीट्युड।

दो बातें थीं, एक तो वो हक से। मुझे कोई चाहिए भी था ऐसा। शायद मैं बचपन से ज्यादा पैम्पर था इसलिए, थोड़ी डामिनेटिंग। और हक भी पूरे हक से। अगर मैं कोई चीज खाने में मना करता था तो वो जानबूझ के डाल देती थी मेरी थाली में, और मेरी मजाल जो छोडूँ। किसी भी चीज पे, और इसी के साथ उसका विश्वास। एक बार वो मुंडेर के सहारे झुकी थी, थोड़ी ज्यादा ही झुक रही थी, तो मैंने मना किया- “हे गिर जायेगी…”

वो आँख नचाकर बोली- “तुम किस मर्ज की दवा हो। बचा लेना…” उसका मानना था की वो कुछ भी करे मैं हूँ ना। और मैं कुछ भी करूँ सही ही होगा।

तभी मेरी निगाह फिर उसपे पड़ी। वो मुझे ही देख रही थी। उसने एक फ्लाईंग किस दी और मैंने भी जवाब में एक। सर हिला के उसने मुझे बुलाया। मैं जब पहुँचा तो बहुत बीजी थी वो। टेबल पे प्लेटें ढेर सारा सामान था।


टिपिकल गुड्डी, नाराज होकर वो बोली- “हे मैं यहाँ, काम के मारे मरी जा रही हूँ और वहां तुम। एसी में मजे से बैठे हो चलो। काम में हेल्प करवाओ…”

मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।

“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊप
र तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।
उफ्फ्फ.... जब शरारत और रोमांस को आप मिक्स कर देती हो तो कुछ अजीब सा मीठा आभास करवा देती हो आप. क्या जबरदस्त एहसास करवाया. मुजे तो मोहे रंग दे की याद आ गइ. बस फरक बिन ब्याहे प्रेम की कहानी है. और इस बार सजनी के बदले साजन की जुबानी का एहसास है. फिर भी बाथरूम वाली सेविंग क्रीम वाली जबरदस्त शारारत वही छेड़ छाड़ वाला एहसास करवाती है. जो वहां शादी के माहौल का एहसास करवाया था. प्रेमी के नजर से प्रेमिका के आकर्षक का एहसास जबरदस्त था. दिल को छू गया ये अपडेट.

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Shetan

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गायब, सफाचट


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मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।

“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊपर तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।


उसकी एक उंगली ने मेरे गाल पे सहलाया और मैं नीचे तक सिहर गया। और फिर गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर उसने उंगली से मेरी ठुड्डी उठायी और आँख में आँख डालकर बोली- “बहुत मस्त शेव बनाया। एकदम मक्खन…”

मैं सिर्फ मुश्कुरा दिया। हाथ से गाल सहलाते एक उंगली वो मेरी नाक के ठीक नीचे ले गई। मुझे कुछ अजब सी अलग सी फीलिंग हुई। उसने बिना कुछ बोले मेरी गर्दन दीवार पे लगे शीशे की ओर मोड़ दी, और मुश्कुरा दी।

मैं चौंक गया- “हे। ये क्या?”

मेरी मूंछें साफ थी, एकदम चिकनी। वैसे मैं एक पतली सी मूंछ रखता था, लेकिन रखता जरूर था।


“अरे किस करने के लिए ज्यादा जगह। मैंने बोला था ना की तुम्हारी भाभी ने बोला है की चिकनी चमेली, तो…” वो शैतान बोली और उसने झप्प से मेरे होंठों पे एक बड़ी सी किस्सी ले ली।

“अरे वो जो तुमने क्रीम लगाई थी ना…” आँखें नचाकर, मुश्कुराकर वो बोली।

“हाँ। तो मतलब…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

“मतलब सीधा है, बुद्धू…” उसने मेरे गाल पे एक मीठी सी चिकोटी काटी और बोली-

“वो क्रीम चन्दा भाभी अपनी झांटें साफ करने के लिए प्रयोग करती हैं। और कभी-कभी मैं भी कर लेती हूँ। एकाध बाल शायद इसीलिए उसमें रह गया हो…”

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“यानी?” अब मेरे चौंकने की बारी थी।

“अरे यानी कुछ नहीं। वो भी इम्पोर्टेड थी। यार एकदम स्पेशल और बहुत इफेक्टिव। लेकिन तुमने लगा भी तो कित्ता सारा लिया था। थोड़ी सी ही काफी होती है उसकी। मैं तो बस उंगली बराबर लगाती हूँ। लेकिन तुमने तो ढेर सारा लिथड़ लिया था। अब कम से कम पन्दरह दिन तक कोई घास फूस नहीं होगा…”

उसे लगा शायद मैं थोड़ा नाराज हूँ। लेकिन अब तो मुझे उसकी शैतानियों की आदत सी लग गई थी।

मेरे बरमुडा में हाथ डालकर अन्दर भी हाथ फिराते बोली- “अरे यहाँ भी तो एकदम चिकना हो गया है। ‘उसे’ उसने मुट्ठी में ले लिया और आगे-पीछे करते हुए छेड़ा- “हे। गुंजा का नाम लेकर 61-62 किया की नहीं?”

“छोड़ो ना यार…” मेरे जंगबहादुर की हालत खराब होती जा रही थी। वो अब पूरे जोश में आ रहा था।


गुड्डी- “पहले बताओ…” अब उसकी उंगली मेरे सुपाड़े के मुँह पे थी।



“नहीं यार। मैंने बोला ना की अब…” मेरी निगाह घड़ी पे थी, 10:00 बज रहे थे- “उन्ह 12-14 घंटे के बाद। बस अब ये तुम्हारे अन्दर घुस के 61-62 करेगा…”


गुड्डी- “तुम ना…” अब उसकी शर्माने की बारी थी। लेकिन वो कितने देर चुप रहती, बोली-

“असल में कल जब तुम्हें। वो गुंजा से मैं बात करके आ रही थी तो वो बोली की अगर इत्ते गोरे चिकने हैं तो उन्हें सिर्फ पूरा श्रृंगार कराना चाहिए…”


गुड्डी बोली- “बस एक थोड़ी सी कसर है…” तुम्हारी साली गुंजा बोली- “मूंछें हैं तो फिर। कैसे…”

गुड्डी- “मैंने सोच लिया और बोला- “चल उसका भी कुछ इंतजाम कर देंगे…” और वो खिलखिला के हँसने लगी।


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मैं- “तुम दोनों ना। आने दो उसको स्कूल से…”

गुड्डी ने चिढ़ाया भी उकसाया भी, " अरे तेरी साली है, मेरी छोटी बहन, अब देख तो लिया ही है उसने बस घुसा देना, लेकिन पीछे तुम्ही रह जाते हो , मेरी बहन नहीं पीछे रहेगी, देखूंगी, आज इसका जोश, और मेरी बहन के साथ कुछ करोगे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा हाँ कुछ नहीं करोगे तो जरूर बुरा लगेगा, इत्ती मुश्किल से तो बेचारी को एक जीजा मिला है, छोटी बहन का हक पहले होता है " और बरमूडा के ऊपर से ' उसे ' कस के दबा दिया।



और जोड़ा - “ये मत समझना बच्ची है वो, मेरी बहन, अरे यार, यहाँ बच्चे तो सिर्फ तुम हो। जानते हो मेरी क्लास में। …”

अबकी बात काटने का काम मैंने किया। मैंने उसे मक्खन लगाते हुए कहा- “अरी मेरी सोनिये मुझे मालूम है। तू अपने क्लास में सबसे प्यारी है, सबसे सेक्सी है, और सबसे पहले तेरी बिल में सेंध लगने वाली है…”


आँखें नचाते हुए उसने कसकर मेरा कान पकड़कर खींचा और बोली-

“यही तो। पता कुछ नहीं, लेकिन बोलेंगे जरूर। वैसे आधी बात तो सच है। सबसे सेक्सी और सोनी तो मैं हूँ। लेकिन मेरे प्यारे बुद्धूराम, मेरी क्लास की मेरी आधे से ज्यादा सहेलियों की बिल में सेंध लग चुकी है। सिर्फ तीन-चार बची हैं मेरे जैसी, और मेरे पल्ले तो तेरे जैसा बुद्धू पड़ गया है इसलिए। पता है और उनमें से आधे से ज्यादा किससे फँसी हैं?”


“ना…” मुझे बात सुनने से ज्यादा उसके गुलाबी गालों को देखने में मजा आ रहा था। वो इत्ती उत्तेजित लग रही थी।

“अरे यार। अपने कजिन्स से। किसी का चचेरा भाई है तो किसी का ममेरा, फुफेरा, मौसेरा। घर में किसी को शक भी नहीं होता, मौका भी मिल जाता है…”



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अचानक उसकी कजारारी आँखों में एक नई चमक उभरी।

मैं समझ गया कोई शैतानी इसके दिमाग में आई है।

वो मेरे पास सट गई और बोली- “सुन ना। वो जो तेरी कजिन है ना। चलवा दूँ उससे तेरा चक्कर? अरे वही जिसका नाम लेकर कल मम्मी और चंदा भाभी तुम्हें मस्त गालियां सुना रही थी। तो उनकी बात सच करवा दो ना इस होली में। अरे यार इत्ती बुरी भी नहीं है। मस्त है। हाँ थोड़ा छोटा है, ढूँढ़ते रह जाओगे टाईप। लेकिन कुछ मेहनत करोगे तो उसका भी मस्त हो जाएगा। वैसे हम दोनों का भी फायदा है उसमें…” किसी चतुर सुजान की तरह वो बोली।

“क्या?” मुझसे बिना पूछे नहीं रहा गया।

“अरे यार कभी हम लोगों को एक साथ चिपटा-चिपटी करते देख लेगी तो कहीं गाएगी तो नहीं, अगर एक बार तुमसे खुद करवा लेगी तो। वैसे बुरी नहीं है वो…” मुश्कुराकर वो बोली।

मेरी समझ में नहीं आ रहा था की वो मजाक कर रही है या सीरियस है। मैंने बात बदलने की कोशिश की- “ये तुम कर क्या रही हो?”

और अब उल्टे मुझे डाट पड़ गई- “तुम ना। देखो तुम्हारी बातों में आकर मैं भी ना। कित्ता टाइम निकल गया। अब मुझे ही डांट पड़ेगी और समझ में भी नहीं आ रहा है। की। …” और मुझे हड़काते हुए बोली।


“बताओ न…” मैंने पूछने की कोशिश की और अबकी थोड़ा कामयाब हो गया।

“अरे यार वो तुम्हारी भाभी ना। थोड़ी देर में यहाँ दंगल शुरू होगा…”

“दंगल मतलब?” मेरी समझ में नहीं आया।

“अरे यार। तुम बात तो पूरी नहीं करने देते और बीच में। अरे यहाँ कुछ स्नैक्स वैक्स का इंतजाम करना था। दूबे भाभी ने दही बड़े बनाए हैं। अभी उनकी ननद लेकर आ रही होगी। तो मीठे के लिए आज सुबह चन्दा भाभी ने गुझिया गरम-गरम बनायी है, वैसी ही जिसे खाकर कल तुम झूम गए थे। लेकिन होली में गुझिया खाता कौन है, खा-खाकर लोग थक जाते हैं और लोगों को शक भी रहता है की कहीं उसमें। और वैसे तो उन्होंने ठंडाई भी बनायी है लेकिन उसमें भी…”

गुड्डी न, अगर पांच मिनट में दो तीन बार मुझे डांट न ले कस के उसकी बात पूरी नहीं होती थी।

“पड़ी है की नहीं उसमें?” मैंने मुश्कुराकर पूछा।

“अरे एकदम चंदा भाभी बनाए। उन्होंने मुझे कहा है की अगर नहीं चढ़ी तो वो मेरी ऐसी की तैसी कर देंगी आज। लेकिन जल्दी कोई हाथ नहीं लगाएगा ठंडाई में…”

“बात तो तेरी सही है यार। हूँ हूँ…” ऐसा करते हैं सुन- “कल वो नाथा हलवाई के यहाँ से वो गुलाब जामुन लाये थे ना…” मैंने आइडिया दिया।
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“अरे वो। डबल डोज वाली ना स्पेशल। हाँ आइडिया तो तुम्हारा ठीक है। किसी को पता भी नहीं चलेगा…” वो खुश होकर बोली।

“हाँ एक बात और कितना टाइम है सबके आने में?” मैंने पूछा।

“बस दस पंद्रह मिनट…”

“अरे तो ठीक है, दो बोतल बियर कल लाये थे ना…”

“हाँ…” उसकी आँखों में चमक आ गई।

“बस पांच मिनट बाद उसे फ्रिज से निकालकर। मैं सील खोल दूंगा। और बर्फ ड़ाल के…” मैं बोला।

“सील खोलने का बहुत मन करता है तुम्हारा। अब तक कितने की खोल चुके हो?” खी खी करके वो हँसी।

“एक की तो आज खोलने वाला हूँ…” उसके गाल पे चिकोटी काटकर मैं बोला।

“धत्…” और शर्माकर वो टेसू हो गई। उसकी यही अदा जान ले लेती थी, कभी इतना शर्माती थी और कभी इत्ती बोल्ड। वो प्लेट में गुलाब जामुन लगाने लगी।

मैं बीयर की बोतल ले आया। लेकिन मुझे एक आइडिया और आया।

मैंने भाभी के कमरे में कुछ इम्पोर्टेड दारू देखी थी। मैं पीता नहीं था लेकिन अंदाज तो था ही, बैकार्डी जिसमें 80% अल्कोहल थी, वोदका कैनेबिस। जिसमें 80% अल्कोहल के साथ कनेबिस भी होती है और एक बोतल।


स्त्रह ( Stroh) ओरिजिनल औस्ट्रिया की रम जो काफी स्ट्रांग होती है। जो चंदा भाभी की अलमारी में थी वो तो ८० % थी।
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मुझे भी शरारत सूझी।

मैंने दो बोतल लिम्का और स्प्राईट में बैकार्डी और वोदका, और पेप्सी और कोक में वो ८० % वाली आस्ट्रियन रम रम मिला दी और उसको इस तरह बंद कर दिया जैसे सील हों। ये बात मैंने गुड्डी को भी नहीं बतायी।
बैकार्डी व्हाइट रम होती है तो लिम्का के साथ उसकी अच्छी दोस्ती हो जाती है, वोदका भी। लिम्का और स्प्राइट के नाम पर और रमोला तो वैसे भी होली में चलता है लेकिन इस ऑस्ट्रियन रम के साथ उसका असर धमाल करने वाला होता।

7-8 ग्लास लगाकर मैंने उसमें बियर निकाल दी और गुड्डी को बोला की कोई पूछे तो बोल देना की इम्पोर्टेड कोल्ड-ड्रिंक है, मैं लाया हूँ।
वो प्लेटों में लाल, गुलाबी, नीला, रंग गुलाल अबीर रख रही थी, मुश्कुराकर बोली- “ये रंग तुम्हारे लिए नहीं हैं…”
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“मुझे मालूम है मेरे ऊपर तो तुम्हारा रंग चढ़ गया है, अब किसी रंग का कोई असर नहीं होने वाला है…” हँसकर मैंने बोला।



“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्स्से में बोली और एक हाथ में प्लेट से गुलाबी रंग लेकर मेरे गालों पे।

“अच्छा चलो डालो। आज रात को ना बताया तो। पूरी पिचकारी अन्दर कर दूंगा। और पूरा सफेद रंग…” मैं बोला।

“कर देना कौन डरता है? रात की रात को देखी जायेगी अभी तो मैं…” और दूसरे हाथ में प्लेट से लाल रंग लेकर। सीधे मेरे बार्मुडा में।

‘वहां’ रगड़-रगड़कर लगाती हुई बोली-

“बहुत रात की बात करके डरा रहे थे ना। इस पिचकारी को पिचका के रख दूंगी और एक-एक बूँद सफेद रंग निचोड़ लूँगी…” अब उसपे होली का रंग चढ़ गया था।
जो रंग उसने मेरे गाल पे लगाया था वो मैंने उसके गाल पे लगा दिया अपने गाल से उसके गाल को रगड़कर थोड़ी देर में हम लोग उभरे

यार तेरे चक्कर में मेरी ली जाएगी कस के, गुड्डी हड़बड़ाती पता नहीं कहाँ से फोन निकालती बोली,



एक बार आसपास देख के मैंने कस के उसे बाहों में भींच के एक जबरदस्त चुम्मी ले ली, और छेड़ा, मेरे रहते मेरी रूपा सोना को मेरे सिवाय और कौन लेने वाला पैदा हो गया ,

" तेरी, मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,

" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "

गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "
जबरदस्त. जिस कहानी मे शारारत ना हो तो कोमलरानी नहीं. मझा आआ गया. बीवी बने तो गुड्डी रानी जैसी. बाँट के खाती है. खुद साली को को साजन के बिस्तर तक ले आए. अमेज़िंग लेडी को कोल्ड फीलिंग्स. मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई.

सेविंग क्रीम के बदले हेयर रिमूवर क्रीम. वाह. यहाँ तो आप ने जोरू के गुलाम वाली फीलिंग्स ला दी. मेला छोनु मोनू....

और गुंजा के नाम से जो 61,62 वाला किस्सा तोजबरदस्त मज़ेदार था.

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komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २२२

गुड्डी बाई
updates posted, please do read, enjoy, like and comment.
 

Mass

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जबरदस्त. जिस कहानी मे शारारत ना हो तो कोमलरानी नहीं. मझा आआ गया. बीवी बने तो गुड्डी रानी जैसी. बाँट के खाती है. खुद साली को को साजन के बिस्तर तक ले आए. अमेज़िंग लेडी को कोल्ड फीलिंग्स. मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई.

सेविंग क्रीम के बदले हेयर रिमूवर क्रीम. वाह. यहाँ तो आप ने जोरू के गुलाम वाली फीलिंग्स ला दी. मेला छोनु मोनू....

और गुंजा के नाम से जो 61,62 वाला किस्सा तोजबरदस्त मज़ेदार था.

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Shetan, welcome back. Maine bhi apne story ke updates diye hai. Aapke comments kaa intezaar rahega. Thanks.

Shetan
 

Shetan

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फोन


मम्मी, छुटकी




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" तेरी, ...मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,



" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "

गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "

और नंबर लग गय। और फोन गुड्डी ने मेरे हाथ में और उधर से मम्मी की आवाज, लेकिन कुछ वो बोल पातीं, मैंने पूछ लिया,

" मम्मी, पहुँच गयीं ठीक ठाक "

मेरे मम्मी बोलने पे गुड्डी जोर से मुस्करायी और पिछवाड़े कस के चुटकी काट ली, स्पीकर फोन ऑन था,

मम्मी बहुत खुस बोलीं ,

" तोहरे रहते, कौन परेशानी हो सकती है, कानपूर पहुँचने के पहले ही टीटी आगये, सब सामान, और जैसे स्टेशन आया , कम से कम चार पांच आदमी, अरे जो टोपी वोपी लगाए, मास्टर थे, गोड़ भी छुए हमारा, माता जी, माता जी, एक एक सामन उतरा गया आराम से, और वो स्टेशन मास्टर अपने कमरा में बैठाये के पहले चाय पियाये फिर, और छुटकी को अपना नंबर भी नोट कराये की जब लौटना हो या कोई काम हो तो पहले से, तो वो लोग स्टेशन के बाहर ही मिल जाएंगे। एकदम पता नहीं चला, सोच सोच के हम इतने परेशान थे, तोहार महतारी न जानी केकरे आगे टांग फैलाये होइए, केकर मलाई घोंटी होंगी, उनको भी नहीं याद होगा, लेकिन लड़िका बढ़िया निकाली हैं। "

मेरी तारीफ़ सुन के मुझसे ज्यादा गुड्डी खुश होती थी, मैं कनखियों से उसे देख रहा था,

तबतक पीछे से छुटकी की आवाज आयी दी , वीडियो काल, वीडियो काल और गुड्डी ने काल वीडियो पे शिफ्ट कर दी।

मम्मी को देखते ही मेरी हालत खराब, लगता था अभी नहा के निकली थीं, बाल खुले थोड़े भीगे, सफ़ेद देह से चिपका स्लीवलेस ब्लाउज, आर्म पिट साफ़ साफ़ दिख रही थी, गोरी गोरी कांखों में एकदम छोटे छोटे काले काल बाल जैसे रोयें बड़े हो गए, ब्लाउज साइड से भी बहुत खुला था, और ऊपर से भी लो कट, उभारों को कस के दबाये, चिपकाए हुए, औरतों के तीसरी आँख होती है। अंदाज उन्हें हो गया था की मेरी आंखे कहाँ चिपकी है, और आँचल ठीक करने के बहाने ऐसा लहराया, गिराया, की अब दोनों उभार एकदम खुल के, चोली सिर्फ उभारो के बेस तक थी,


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गोरा पेट भी खुला था और गहरी नाभी साफ़ दिख रही थी।

जंगबहादुर एकदम विद्रोह को तैयार, तनतना रहे थे और बची खुची कसर पूरी हो गयी,

छुटकी की आवाज आयी मैं भी, मैं भी, और मम्मी ने हाथ से पकड़ के खींच के उसे भी मोबायल के कैमरे की रेंज में,

उसने एक छोटा सा खूब टाइट टॉप, थोड़ा घिसा हुआ पहन रखा था और कबूतर की दोनों चोंचे साफ़ साफ़ नुकीली दिख रही थीं,
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वैसे तो शायद इतना नहीं लेकिन जो कल चंदा भाभी ने अर्था अर्था कर समझाया था की चौदह की हुयी तो चुदवासी, और पिछले साल होली में उन्होंने हाथ अंदर डाल के मसल के रगड़ रगड़ के गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की कच्ची अमिया में रंग लगाया था, गुलाबो में हाथ लगाया था, दोनों फांक फैला के ऊँगली कर के हाल चाल ली थी, रगड़ने मसलने लायक भी दोनों हो गयी थी और लेने लायक भी। और उसके बाद सुबह सुबह गूंजा की हवा मिठाई की रगड़ाई,



और अब जिस तरह से छुटकी के चूजे टॉप से झांक रहे थे, मूसलचंद को पागल होना ही था,

और सबसे पहले छुटकी ने नोटिस किया, खी खी खी खी, और पहले अपनी नाक के नीचे एक ऊँगली लगा कर आँख के इशारे से मेरी मूंछ के बारे में पुछा, क्या हुआ, फिर गुड्डी से

" दी, क्या हुआ, गायब ?"

और अब मम्मी ने देखा और उन पर जो हंसी का दौरा पड़ा वो रुकने वाला नहीं था, लेकिन खुद को रोका और छुटकी को अपने बाँहों में दबोच के चुप करते हुए कहा,

" अच्छा तो लग रहा है, एकदम नमकीन, गाल चूमने लायक, बल्कि कचकचौवा, काटने लायक कचकचा कर, "

छुटकी क्यों छोड़ती, मुस्करा के बोली, सीधे मुझसे, छेड़ते हुए,

“चिकने।“



वो असल में, वो वाली क्रीम थी, मतलब जो वहां नीचे, वो वाली गलती से, वो वही, " मैं घबड़ाते हुए समझाने की कोशिश कर रहा था ।

छुटकी बदमाश तीखी निगाहों से देख के मुस्करा रही थी, लेकिन मम्मी तो मम्मी, खिलखिला के बोली,

" साफ़ साफ बोलो न झांट साफ़ करने वाली क्रीम, इतना लजात काहें हो, सब लगाते हैं, मैं, छुटकी, और झांट नीचे वाले होंठ के चारो ओर होती है और मूंछ दाढ़ी ऊपर वाले होंठ के, बाल तो बाल। लेकिन ये कम से कम पंद्रह बीस दिन का पक्का हिसाब हो गया, अरे तोहार महतारी आयी थीं , सावन में तोहिं तो छोड़ गया था, मनौती मानी थी तोहरे नौकरी के लिए, तो हम उनसे बोले की अरे झांट वांट अच्छी तरह साफ़ कर लीजिये, ये बनारस क पंडा सब, पहले तो चुसवाते हैं, फिर खुदे चाटते चूसते हैं तब पेलते है। अरे आधी बोतल क्रीम लगी, चुपड़ चुपड़ के अपने भोंसड़ा के चारो ओर, एक झांट नहीं बची।"


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मम्मी बोल तो रही थीं

लेकिन मेरी निगाह छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।


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टॉप थोड़ा पुराना था, इसलिए घिसे होने के साथ टाइट भी, बस आ रहे दोनों उभारों की गोलाई, कड़ापन सब साफ़ साफ़ नजर आ रहा, बस यही सोच रहा था की अगली बार मिलेगी तो बिना दबाये मसले, रगड़े, इन दोनों को छोडूंगा नहीं, और छुटकी भी मेरे निगाह को समझ रही थी। अपने दोनों हाथों को उन चूजों के ठीक नीचे, और वो और उभर के,


ठुमक के बोली छुटकी, " अच्छा तो लग रहा है, दी और अब उसने गुड्डी को सुझाव दे दिया, ऐसे गोरे गोरे चिकने चेहरे पे, होंठों पे डार्क रेड लिपस्टिक बहुत अच्छी लगेगी,

बस, मम्मी को आइडिया मिल गया, वो चालू हो गयीं,

" हाँ छुटकी सही कह रही है एकदम, और साडी ब्लाउज के साथ, अंगिया किसकी, दूबे भाभी की तो बड़ी होगी, उनकी हमारी साइज एक है ३८, हाँ चंदा भाभी वाली एकदम फिट आएगी, ३४ पक्का इन्ही की साइज होगी। नोक वाली। "


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" लेकिन ब्रा के अंदर, " गुड्डी ने अपनी परेशानी बताई,

" मैं बताऊं दी, एकदम मस्त लगेगा, गुब्बारे में रंग भरते ही हैं होली में, बस दो गुब्बारे, और हाँ थोड़ा सा फेविकोल ब्रा की टिप पे अंदर और थोड़ा सा गुब्बारों पे बस ऐसा सही चिपकेगा, थोड़ा हिलेगा डुलेगा, लेकिन बाहर नहीं निकल सकता, और हाँ, पिक्स जरूर भेजिएगा, हर स्टेप की, "


छुटकी ने चहकते हुए हल बता दिया,।

---

----
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" एकदम, हम लोगो का जो बहनों वाला ग्रुप हैं न उसमे भी पोस्ट कर दूंगी, सबको मिल जाएगा,

गुड्डी की बहनों वाले ग्रुप में आधे दर्जन से ज्यादा उसकी थीं, दो ये सगी, दो मौसेरी, तीन उसकी ममेरी बहने थीं अलहाबाद में जिसने मैं एक बार मिल भी चुका था, और उसके अलावा भी।

मैं छुटकी की शरारत वाली बाते सुन तो रहा था लेकिन आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,


एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,

२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,

साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,

बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,

और असर सीधे जंगबहादुर पर, फनफनाया, बौराया और ऊपर से जंगबहादुर की मलकिन, गुड्डी, पहले तो बरमूडा के ऊपर से सीधे खुले सुपाड़े पर रगड़ती, सामने एक कच्ची कली के चूजों की नोकें हो और खूंटे के साथ, गुड्डी भी देख रही थी कैसे मैं नयनसुख ले रहा हूँ , बस उसने बरमूडा में हाथ डाल के औजार को पकड़ लिया और लगी मसलने, रगड़ने, बस तम्बू में बम्बू जबरदस्त, और ।



बरमूडा नौ इंच तना,
और अब गुड्डी ने बदमाशी की, मोबाइल मोड़ के सीधे मेरे तने बल्ज पर, और वो भी क्लोज अप में,

पहले मम्मी मुस्करायीं, फिर छुटकी, दोनों की निगाहें वहीँ चिपकी,

बोलीं मम्मी, " तेरी महतारी का भोंसड़ा मरवाऊ,"

छुटकी बड़ी भोली सूरत बना के मम्मी से पूछी, " लेकिन मम्मी किससे इनकी महतारी का, "

मम्मी ने मेरे खड़े खूंटे की ओर इशारा कर के छुटकी से कहा, " देख नहीं रही है, कितना बौराया है, इस से मरवाउंगी, और क्या "


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फिर तोप मेरी ओर मुड़ गयी,

" अरे तोहार महतारी निहाल हो जाएंगी, फिर तोहार मौसी, बुआ, चाची, सब पे चढ़वाएंगी तोहें, "

लेकिन तब तक मंझली की आवाज आयी, " मम्मी छुटकी नाश्ता लग गया है " लेकिन मम्मी ने जाने के पहले अपनी बड़ी बेटी को काम समझा दिया, " आज सांझ रात तक तो पहुँचोगी ही, कल दिन में बात करा देना। " और फोन छुटकी को पकड़ा दिया, और

छुटकी ने फोन थोड़ा सा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एक दम पास से, और मुंह से जीभ बाहर निकला के चिढ़ाया, जबरदस्त मुझे फिर उसका भी फोन बंद हो गया।

इधर चंदा भाभी गुड्डी को आवाज दे रही थीं।
अमेज़िंग. सिर्फ बातो से ही इरोटिका का एहसास करवा दिया.

मम्मी.... पढ़ते हुए तो मुजे भी हसीं आ ही गई. मतलब मान लिया आनंद बाबू ने. जबरदस्त.... आखिर होने वाला ससुराल जो है भैया. मम्मी.

लेकिन अपने वाले का कोई बखान करें तो सीना चौड़ा हो जता है. तो गुड्डी कैसे फूली ना समाती. ऊपर से वो भी मायका मे.

छुटकी तो सच मे कमल की है. उसके किस्से तो किसी भी कहानी मे. शरारती और मज़ेदार ही होते है.

I love this Update.

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Shetan

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हम आपके हैं कौन

आ गयी रीत
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इधर चंदा भाभी गुड्डी को आवाज दे रही थीं।



चंदा भाभी पूछ रही थीं, " नाश्ता लग गया, दूबे भाभी के यहाँ से दहीबड़ा आया की नहीं, और ये रीत कब तक आएगी।"

गुड्डी ने एक साँस में तीनो बातों का जवाब दे दिया, ' हाँ नाश्ता लग गया है, दहीबड़ा रीत ला रही है और रीत बस आने वाली है।

“हे ये रीत?” मैंने पूछा।

आँखे नचाते हुए गुड्डी ने पूरा इंट्रो दे दिया

“क्यों बिना देखे दिल मचलने लगा। बोला तो था ना की दूबे भाभी की ननद है। हमारे स्कूल में ही पढ़ती थी। पिछले साल इंटर किया था अभी ग्रेजुएशन कर रही हैं। लेकिन खास बात है डांस और गाना दोनों में कोई इनके आस पास नहीं, वेस्टर्न, फ़िल्मी यहाँ तक की भोजपुरी भी, कुछ साल पहले लखनऊ में कम्पटीशन था, सिर्फ इन्ही के चक्कर में हमारा कालेज फर्स्ट आया और स्पोर्ट में भी। और देख के , देखना क्या हालत होती है तेरी। लेकिन ये ध्यान रखना मेरी बड़ी दी,/

तब तक सीढ़ी पे पदचाप सुनाई पड़ी। वो चुप हो गई लेकिन धीरे से बोली- “एकदम हिरोइन लगती है। कालेज में सब कैटरीना कैफ कहते थे…”

---
तब तक वो सामने आ गई। वास्तव में कैटरीना ही लग रही थी। पीला खूब टाईट कुरता, सफेद शलवार, गले में दुपट्टा उसके उभारों की छुपाने की नाकमयाब कोशिश करता, और उभार भी जबरदस्त, बड़े भी कड़े भी, और एकदम शेपली, सुरू के पेड़ की तरह लम्बी, खूब गोरी लम्बी-लम्बी टांगें। मैं उसे देखता ही रह गया। और वो भी मुझे।

उसके मुंह से निकला, कैटरिना मत कहना, इक तो उसकी शादी होगयी और दूसरे हर दूसरा लड़का यही कहता है।

किसी तरह थूक गटकते हुए मैंने बोला, " नहीं कहूंगा, अरे आवाज निकल पाएगी तब न कुछ बोलूंगा ।

और किसी तरह मुँह से निकला,


तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो

तुम को देखें कि तुम से बात करें।


" दोनों " वो कौन चुप होने वाली थी, फिर हलके से आँख मार के बोली,

' कुछ और करने का मन हो तो वो भी कर सकते ही, मेरी छोटी बहन है बुरा नहीं मानेगी। क्यों गुड्डी। "

उसकी निगाहें मेरा मौका मुआयना कर रही थीं।

मैंने झुक के अपनी ओर देखा। गुंजा का टाप एक तो स्लीवलेश। बस किसी तरह मुझे कवर किये हुए था। मेरी सारी मसल्स साफ-साफ दिख रही थी, जिम टोंड ना भी हों तो उनसे कम नहीं और उसका बर्मुडा मेरे शार्ट से भी छोटा था, इसलिए जाँघों की मसल्स भी। थोड़ी देर पहले ही जिस तरह…मम्मी और छुटकी के कबूतर, उससे सबसे इम्पार्टेंट ‘मसल’ भी साफ-साफ दिख रही थी।


हम दोनों ने एक साथ एक दूसरे को देखा। दोनों की चोरी पकड़ी गई। हम दोनों एक साथ जोर से हँस दिए।


गुड्डी ने बोला- “उफफ्फ। मैंने आप दोनों का परिचय तो करवाया ही नहीं। ये हैं रीत। ये आनंद…”

रीत ने गुड्डी के गाल कस के मींज दिए और छेड़ते हुए बोली, साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहती ' तेरा माल है "

मैंने एक बार फिर उसे देखा। पीछे लग रहा था धुन बज रही है- “मैं चीज बड़ी हूँ मस्त। मैं चीज बड़ी हूँ मस्त…”

“मुझे मालूम है…” एक बार हम दोनों फिर एक साथ बोले।

“अरे आती हुई बहार का, खुशबू का, खिलखिलाती कलियों का, गुनगुनाती धुप का परिचय थोड़ी देना पड़ता है। वो अपना अहसास खुद करा देती हैं…” मैं बोला।

मस्का मस्का, गुड्डी चिल्लाई फिर जोड़ा मस्का लगाने से रीत दी आपको छोड़ेंगी नहीं, रगड़ाई बल्कि डबल होगी।

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“मुझे आप के बारे में सब मालूम है। इसने, इसकी मम्मी ने सब बताया है। लेकिन मैं सोच रही थी की। …” उस कली ने बोला।


“की हम आपके हैं कौन?” मुश्कुराकर मैं बोला।

“इकजैक्टली…” वो हँसकर बोली।

“अरे मैं बताती हूँ ना। ये बिन्नो भाभी के देवर, तो…” गुड्डी बोली।


“चुप मुझे जोड़ने दे? बिन्नो भाभी। यानी तुम्हारी मम्मी की ननद यानि चन्दा भाभी. मेरी भाभी, सबकी ननद। और मैं भी इस सबकी ननद,... तो फिर आप उनके देवर, तो आप मेरे तो देवर हुए…” और कैटरीना ने मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया।

“एकदम सही लेकिन सिर्फ दो बातें गलत…” मैं बोला और बजाय हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाने, मैं गले मिलने के लिए बढ़ा।वो खुद आगे बढ़कर मेरी बाहों में आ गई।

मैंने कसकर उसे भींच लिया। मेरे होंठ उसके कान के पास थे। उसके इयर लोबस को हल्के से होंठों से सहलाते हुए मैंने उसके कान में फुसफुसाया-

“हे भाभी से मैं हाथ नहीं मिलाता, गले मिलता हूँ…”

“मंजूर…” मुश्कुराते हुए वो बोली।

“और दूसरी बात। भाभी मुझे आप नहीं तुम बोलती हैं…” मैं बोला।

“लेकिन मैं तो आप। मेरा मतलब। तुमसे छोटी हूँ…” वो कुनमुनाई।

उसके उरोज अब मेरे सीने के नीचे दब रहे थे, मैंने और कसकर उसे भींचा। उसने छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की। बल्की और उभार के अपने उरोज मेरे सीने में दबा दिए।

“तो चलो हम दोनों एक दूसरे को तुम कहेंगे। ठीक?” मैंने सुझाया।

“ठीक…” वो कुनमुनाई।

मैंने थोड़ी और हिम्मत की। मैं एक हाथ को हम दोनों के बीच उसके, दबे हुए उरोज पे ले गया और बोला- “फागुन में तो भाभी से ऐसे गले मिलते हैं…”

मेरे दोनों पैर उसकी लम्बी टांगों के बीच में थे। मैंने उन्हें थोड़ा फैला दिया, और अपने ‘उसको’ वो भी अब टनटना गया था, सीधे उसके सेंटर पे लगाकर हल्के से दबा दिया। मेरा बदमाश लालची हाथ भी। हल्के से दबाने लगा था। उसके उरोज…”

वो मुश्कुराकर बहुत धीमे से मेरे कान में बोली- “अच्छा जी मैं भी तुम्हारी भाभी हूँ, कोई मजाक नहीं…” और बरमुडा के ऊपर से ‘उसे’ दबा दिया।

वो और तन्ना गया- “हे भाभी डरती हो क्या? काटेगा नहीं। ऊपर से क्यों? फागुन है। तुम मेरी भाभी बनी हो तो…” मैंने उसे और चढ़ाया।


हम दोनों ऐसे चिपके थे की बगल से भी नहीं दिख सकता था की हमारे हाथ क्या कर रहे हैं?

रीत दहीबड़े की प्लेट लायी थी और साथ में बैग में कुछ। गुड्डी उसे ही देख रही थी और बीच-बीच में हम लोगों को। रीत ने उसे हम लोगों को देखते हुए पकड़ लिया और मुझसे बोली-


“हे जरा सून्घों कहीं। कहीं कुछ जलने की, सुलगने की महक आ रही है…”
वाओ..... सायद ये भी कहानी की लीड हीरोइन है. मझा आ गया.

और ऊपर से देवर भाभी वाला सीन वो भी फागुन मे. अमेज़िंग. लगता है मतलब सायद अक्सन शुरू होने वाला है.

बट रीत है नई नवेली दुल्हन.



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Shetan

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रीत -भाभी नहीं, ....
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हम दोनों ऐसे चिपके थे की बगल से भी नहीं दिख सकता था की हमारे हाथ क्या कर रहे हैं?


रीत दहीबड़े की प्लेट लायी थी और साथ में बैग में कुछ। गुड्डी उसे ही देख रही थी और बीच-बीच में हम लोगों को। रीत ने उसे हम लोगों को देखते हुए पकड़ लिया और मुझसे बोली-

“हे जरा सून्घों कहीं। कहीं कुछ जलने की, सुलगने की महक आ रही है…”

मैंने अबकी गुड्डी को दिखाते हुए रीत के उभार हल्के से दबा दिए और बोला- “शायद। थोड़ा-थोड़ा आ रही है…”


गुड्डी भी वो समझ रही थी की हम लोग क्या कह रहे हैं? वो बोली- “लगे रहो, लगे रहो…” और रीत की ओर मुँह करके बोली-


“हे जो सुलगने वाली चीज होती है ना मैंने पहले ही साफ सूफ कर दी है…”


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तीनों हँस दिए।

“फेविकोल का जोड़ है इत्ती आसानी से नहीं छूटेगा…” रीत बोली।

“अचछा नए-नए देवरजी। अपनी भाभी को सिर्फ पकड़ा पकड़ी ही करियेगा या कुछ खिलाइए, पिलाइएगा भी?”

मैं गुड्डी का मतलब समझ गया। एक बार वो जो ड्रिंक्स मैंने बनाए थे और नत्था का गुलाब जामुन डबल डोज वाला, लेकिन वो चिड़िया इतनी आसानी से चारा घोंटने वाली नहीं थी। हम दोनों अलग हो गए।

वो मुझसे पूछने लगी- “हे आप मेरा मतलब, तुम। अभी…” उसने मुझसे बात की शुरूआत की।


मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उसने रोक दिया, मैं मान गया टिपिकल गुड्डी की दी, एकदम गुड्डी जैसे, पहले पूछेगी, फिर बोलो तो बोलने नहीं देगी, अपनी ही सुनाएगी।


“ना ना वो तो मुझे मालूम है। ये चुहिया हम सबको आपके बारे में बताती रहती है…” गुड्डी की ओर इशारा करके वो बोली।

गुड्डी झेंप गई जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।



“इस चुहिया ने मुझे आप मेरा मतलब है तुम्हारे बारे में ये…” मैं बोला।

गुड्डी जोर से चिल्लाई- “हे ये मेरी दीदी हैं। चुहिया कहें या चाहे जो लेकिन आप…”



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“ओके, बाबा। मैं अपनी बात वापस लेता हूँ…” मैं बोला और फिर कहा- “ गुड्डी ने ये बोला था की। आप मेरा मतलब तुमने इंटर-कोर्स किया है…”

“इंटर-कोर्स। नहीं इंटर का कोर्स…” मुँह बनाकर रीत बोली।

गुड्डी मुश्कुरा रही थी।

“तो क्या तुमने अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया। चचच्च…” मैं बड़े सीरियस अंदाज में बोला।

“कैसे करती। तुम तो अभी तक मिले नहीं थे…”

वो भी उसी तरह मुँह बनाकर बोली।
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मैं समझ गया की ये चीज बड़ी है मस्त मस्त। मैंने मुश्कुराते हुए पूछा- “आगे का क्या प्रोग्राम है?”

“अब तुम्हारे ऐसा देवर मिल गया है। तो हो जाएगा…” खिलखिलाते हुए वो बोली।

“तुम लोग ना। सिंगल ट्रैक माइंड। बिचारे बदनाम लड़के होते हैं। अरे मेरा मतलब था की पढाई का लेकिन तुम्हारे दिमाग में तो…” चिढ़ाते हुए मैंने कहा।

कुछ खीझ से कुछ मजे लेकर मेरा कान पकड़कर वो बोली- “फिलहाल तो आगे का प्रोग्राम तुम्हारी पिटाई करने का है…”

“एकदम-एकदम। मैं भी साथ दूंगी। कहो तो डंडा वंडा ले आऊं?” गुड्डी भी उसका साथ देते बोली।

बिना मेरा कान छोड़े वो बोली- “अरे यार आगे का प्रोग्राम “बी॰काम॰, बैचलर आफ कामर्स…कर रही हूँ , सेकेण्ड ईयर है ” वो मुश्कुराकर बोली। मेरा कान अब फ्री हो गया था।

“ओके। तो आप कामरस में ग्रजुएशन करेंगी? सही है। सही है…” कहकर ऊपर से नीचे तक मैंने उसे देखा। उसके टाईट कुरते में कैद जोबन पे मेरी निगाह टिक गईं-

“सही है। सिर से पैर तक तो तुम कामरस में डूबी हो। हे मुझे भी कुछ पढ़ा देना। कामरस। आम-रस। मैं तो रसिया हूँ रस का…” मेरी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थीं।

वो समझ रही थी की मैं किस आम-रस की बात कर रहा हूँ। वो भी उसी अंदाज में बोली-

“अरे आम-रस चाहिए तो पेड़ पे चढ़ना पड़ता है। आम पकड़ना पड़ता है…”
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“अरे मैं तो चढ़ने के लिए भी तैयार हूँ, और पकड़ने के लिए भी, बस एक बार खाली मुँह लगाने का मौका मिल जाए…” मैंने कहा।

एक जबरदस्त अंगड़ाई ली कैटरीना ने। दोनों कबूतर लगता था छलक के बाहर आ जायेंगे-

“इंतजार। उम्मीद पे दुनियां कायम है क्या पता। मिल ही जाय कभी?” वो जालिम इस अदा से बोली की मेरी जान ही निकल गई।



“हे अपनी भाभी का बात से ही पेट भरोगे…” गुड्डी ने फिर मुझे इशारा किया।

“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।
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“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”

गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।

“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।



हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।

भाभी वाले रिश्ते में मुझे भी कुछ अड़बड़ लग रहा था, लेकिन बोली रीत ही,

" यार, भाभी की तो शादी होनी चाहिए, कुँवारी भाभी में अटपट लगता है, और असली रिश्ता है ये जो चुहिया है जिसे तुम हरदम के लिए चूहेदानी में बंद करना चाहते हो, मेरी छोटी बहन भी है , सहेली भी, इसलिए साली, "
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गुड्डी ने बात काट दी, ' सिर्फ साली नहीं, बड़ी साली, "

" अरे यार रगड़ाई करने से मतलब, ये बेचारा इस अच्छे मौके पे बनारस आया है तो रगड़ाई तो मैं करुँगी, चाहे भौजी के रिश्ते से, चाहे साली के रिश्ते से, " वो बोली,

रगड़ाई तो इनकी गूंजा ने ही सुबह सुबह शुरू कर, मिर्च वाले ब्रेड रोल से, गुड्डी हँसते हुए बोली।

“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।



“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।




“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।
जबरदस्त..... आनंद बाबू... साली कहोगे या भाभी. दोनों रिस्ता लगेगा. प्रेम मे हलकी सी जलन कुछ अलग सा मीठा अहसास देती है. ऊपर से रीत के रूप ने तो माहौल को कुछ और ही रूप दे दिया. केटरिना..... माझा आ गया.

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Shetan

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फागुन के दिन चार भाग ९
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रीत की रीत,
रीत ही जाने
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“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।

“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”

गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।

“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।

हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।

“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।

“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।



“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।

“हे बचना चाहते हो क्या?” आँख नचाकर वो जालिम अदा से बोली।

“ना…” मैंने कबूल किया।

“बचकर रहना कहीं दिल विल। कोई…” वो जानते हुए भी गुड्डी की ओर ,शोख निगाहों से देख कर बोली।

मैं जाकर गुड्डी के पास खड़ा हो गया था। मैंने हाथ उसके कन्धे पे रखकर कहा-

“अब बस यही गनीमत है। अब उसका डर नहीं है। ना कोई ठग सकता है ना कोई चुरा सकता है…।”

मैंने भी बड़े अंदाज से गुड्डी की आँखों में झांकते कहा।

उस सारंग नयनी ने जैसे एक पल के लिए अपनी बड़ी कजरारी आँखें झुका के गुनाह कबूल कर लिया।
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लेकिन रीत ने फिर पूछा- “क्यों क्या हुआ दिल का?”


“अरे वो पहले ही चोरी हो गया…” और अब मेरा हाथ खुलकर गुड्डी के उभारों पे था।

रीत कुछ-कुछ बात समझ रही थी लेकिन उसने छेड़ा- “चोर को सजा क्या मिलेगी?”
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“अभी मुकदमा चल रहा है लेकिन आजीवन कारावास पक्का…” मैं मुश्कुराकर गुड्डी को देखते बोला-

“बस डर यही की मिर्चे वाली ब्रेड रोल…”

मेरी बात काटकर रीत बोली-

“अरे यार। ससुराल में, ये तो तुम्हारी सीधी सालियां थी। ये गनीमत मनाओ की मैं इन दोनों के साथ नहीं थी। लेकिन दहीबड़े के साथ डरने की कोई बात नहीं है। लो मैं खाकर दिखाती हूँ…”



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और उसने एक छोटी सी बाईट लेकर अपनी लम्बी गोरी उंगलियों से मेरे होंठों के पास लगाया।

मेरे मुँह की क्या बिसात मना करता। मैं खा गया।

“नदीदे…” गुड्डी बोली।



“अरे यार। ऐसी सेक्सी भाभी कम साली । फागुन में कुछ दे, जहर भी दे ना तो कबूल…” मैं मुश्कुराकर बोला।



“अरे ऐसे देवर पे तो मैं बारी जाऊँ…” कहकर रीत ने अपने हाथ में लगा दहीबड़े का दही मेरे गाल पे लगा दिया और थोड़ा और प्लेट से लेकर और।

दही बड़े में मिर्च नहीं थी। लेकिन वो सबसे खतरनाक था। दूबे भाभी के दहीबड़े मशहूर थे वहाँ… उनमें टेबल पे जितनी चीजें थी, उनमें से किसी से भी ज्यादा भांग पड़ी थी। गुड्डी को ये बात मालूम थी लेकिन उस दुष्ट ने मुझे बताया नहीं।

गुड्डी बस खड़ी खी-खी कर रही थी।


मैंने रीत को गुलाब जामुन खिलाने की कोशिश की तो उसने मुँह बनाया। लेकिन मैंने समझाया- “दिल्ली से लाया हूँ…” तब वो मानी।
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एक बार में पूरा ही ले लिया लेकिन साथ में मेरी उंगलियां भी काट ली और जब तक मैं सम्हलता। मेरा हाथ मोड़कर शीरा मेरा हाथ का मेरे ही गाल पे लगा दिया।

“चाट के साफ करना पड़ेगा…” मैंने उसे चैलेन्ज दिया।

“एकदम। हर जगह चाट लूँगी, घबड़ाओ मत…” हँसकर वो बोली। रीत की निगाहें टेबल पे कुछ पीने के लिए ढूँढ़ रही थी।



“ठंडाई…” मैंने आफर की।

“ना बाबा ना। चन्दा भाभी की बनायी, एक मिनट में आउट हो जाऊँगी…” फिर उसकी निगाह बियर के ग्लास पे पड़ी- “बियर। पीते हो क्या?”

मैंने मुश्कुराकर कबूल किया- “कभी कभी। अगर तुम्हारा जैसे कोई साथ देने वाला मिल जाय…”

“थोड़ी देर में। लेकिन सबको पिलाना तब मजा आएगा। खास तौर से इसे…” मुड़कर उसने गुड्डी की ओर देखा।

मैं- “एकदम। लेकिन अभी…”

गुड्डी रीत जो बैग साथ लायी थी उसे खोलकर देख रही थी और मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

“हे मैं चलूँ। ये बैग अन्दर देकर आती हूँ। कुछ काम वाम भी होगा। बस पांच मिनट में…” गुड्डी बैग लेकर अन्दर जाते हुए बोली।+++

" आराम से आना, दस मिनट क्या पन्दरह मिनट बीस मिनट, तबतक मैं इस अपने देवर कम छोटे जीजा कम साले का क्लास लेती हूँ, "

" एकदम दी, खूब रगड़के, बहुत बोल रहे थे न बनारस की ठगिनियाँ, अब पता चलेगा, " गुड्डी खिलखिलाते हुए जाते जाते बोली, लेकिन मेरी बात सुन के ठहर गयी,

" हे ये देवर, जीजा तक तो ठीक लेकिन साला किधर से " मैंने रीत से पूछा।

मैं देख ज्यादा रहा था, बोल कम रहा था, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, जिसमे शरारत नाच रही थी, धनुष ऐसी भौंहे, सुतवां नाक, भरे हुए होंठ, और निगाहें ठुड्डी की गड्ढे में जाके डूब जा रही थीं,

" स्साले, स्साले को स्साला नहीं बोलूंगी तो क्या " मुस्कराते हुए रीत मेरे पास आयी और कस के पास आयी और मेरी नाक पकड़ के हिलाके चिढ़ाते हुए बोलने लगी। गुड्डी मुझे देख के मुस्करा रही थी।

" स्साले समझ में नहीं आया न, अच्छे अच्छे बनारस में आके बनारसी बालाओं के आगे समझ खो देते हैं तो तुम क्या चीज हो। ये बताओ की तुम अपनी उस ममेरी बहन एलवल वाली छमक छल्लो को यहाँ बनारस में ला के बैठाने वाले हो न, एकदम ठीक सोच रहे हो, अरे जो चीज वो फ्री में बांटेंगी, उसके पास कोई असेट है तो उसे मॉनिटाइज कर सकती है तो करना चाहिए न, काम वही, अंदर बाहर, रगड़ घिस तो कुछ पैसा हाथ में आ जाए तो क्या बुराई और सबसे अच्छी बात अभी तक उस पे कोई जी एस टी भी नहीं, तो ये बताओ दिन रात सब बनारस वाले उस के ऊपर चढ़ेंगे उतरेंगे, उसकी तलैया में डुबकी मारेंगे, तो तुम क्या लगोगे उन सबके साले न, तो स्साले हम सब भी तो बनारस वाले हैं हम सबके भी तो स्साले, तुम साले ही लगोगे न, स्साले "

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गुड्डी मुझे देख के मुस्कराती रही जैसे कह रही हो देखा, अब समझ में आया किस के पाले पड़े हो, मैंने तुमसे झूठ ही नहीं कहा था की मेरी रीत दी का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, और बैग लेके चंदा भाभी के पास किचेन में।



मैं समझ गया था की बनारसी बालाओं से बहस करना बेकार है, और ये रीत उससे तो बहस के बारे में सोचना ही बेकार है।
सच मे रीत का दिमाग़ तो चाचा चौधरी से भी तेज़ है. आनंद बाबू से कुछ भी उगलवा सकती है. रियल साली वाली छेड़ छाड़ तो अब शुरू की है रीत ने. साले बनारस मे है तू.

अब क्या करें रीतवा भाभी भी तो लगी. वो भी बनारस वाली. अब बनारस मे दिल बहोत चोरी होते है.

सबसे मज़ेदार तो आनंद बाबू का कबूलनामा था. जो दिल चोरी बली बात पर बोला. और ज्यादा गुड्डी का देखना. भावुक और रोमांटिक सीन दिल छू लेने वाला.

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Shetan

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Shetan, welcome back. Maine bhi apne story ke updates diye hai. Aapke comments kaa intezaar rahega. Thanks.

Shetan
पहले मै यहाँ के अपडेट तो पढ़ लू. एक दो दिन बाद आप की स्पेशल पर भी जारी रहेंगी
 
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