Shetan
Well-Known Member
- 15,202
- 40,974
- 259
उफ्फ्फ.... जब शरारत और रोमांस को आप मिक्स कर देती हो तो कुछ अजीब सा मीठा आभास करवा देती हो आप. क्या जबरदस्त एहसास करवाया. मुजे तो मोहे रंग दे की याद आ गइ. बस फरक बिन ब्याहे प्रेम की कहानी है. और इस बार सजनी के बदले साजन की जुबानी का एहसास है. फिर भी बाथरूम वाली सेविंग क्रीम वाली जबरदस्त शारारत वही छेड़ छाड़ वाला एहसास करवाती है. जो वहां शादी के माहौल का एहसास करवाया था. प्रेमी के नजर से प्रेमिका के आकर्षक का एहसास जबरदस्त था. दिल को छू गया ये अपडेट.फागुन के दिन चार भाग ८
चिकनी चमेली
१,०१,४००
“मतलब?” मुश्किल से पीछे मुड़कर उस तौलिये को बाँधकर मैंने पूछा।
अब खुलकर हँसती हुई उस सारंग नयनी ने कहा- “मतलब ये है की आपकी भाभी ने आदेश दिया है की आपको चिकनी चमेली बना दिया जाय। सुबह तो सिर्फ मंजन किया था ना। तो फिर…”
और हाथ पकड़कर वो मुझे चंदा भाभी के कमरे में ले आई जहां मैं रात में सोया था।
“पर मेरा तो कोई सामान ही नहीं रेजर, शेविंग का सामान। बाकी सब…” मैंने दुहराया।
“बुद्दू राम जी ये सब आपकी चिंता का विषय नहीं है, जब तक मैं हूँ आपके पास। मैं हूँ ना…” मेरे गाल कसकर पकड़कर वो दुष्ट बोली-
“अरे यार मैंने भाभी से पूछा था तो उनके पति का फ्रेश रेजर ब्रश सब कुछ हैं और साबुन वाबुन तो लड़कियों के लगाने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए तुम्हें…”
बाकी भाभी के ड्रेसिंग टेबल की ओर इशारा करते हुए हुए वो आँख नचाकर बोली-
“लिपस्टिक, नेल पालिश, रूज जो भी चाहिए। लेकिन ये बताओ जब मैंने तुम्हारी लुंगी खींची तो इतना छिनछिना क्यों रहे थे? क्या कभी रैगिंग में तुम्हारे कपड़े वपड़े नहीं उतरवाये गए क्या? मैंने तो सुना है की रैगिंग में बहुत कुछ होता है…”
“सही सुना है तुमने लेकिन बस मैं बच गया, हुयी तो लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। फिर रैगिंग में कपडे उतरते तो हैं लेकिन लड़कों के सामने यहाँ तो …”
मेरी बात काटकर वो बोली- “चलो कोई बात नहीं, वो सब कसर आज पूरी हो जायेगी। दूबे भाभी, साथ में,... बस देखना…” और खींचकर उसने मुझे बाथरूम में पहुँचा दिया। और शरारत से वो बोली-
“मैं नहला दूं?”
“नहीं नहीं…” मुझे सुबह का बन्दर छाप लाल दन्त मंजन याद था।
“जाने दो यार। मेरे भी वो पांच दिन चल रहे हैं। वरना तुम्हारे मना करने का मेरे ऊपर क्या फर्क पड़ता। अभी मैं ब्रश रेजर वेजर लेकर आती हूँ…” और वो बाथरूम के बाहर निकलकर एक आलमारी खोलने लगी।
क्या मस्त बाथरूम था। हल्के गुलाबी रंग की टाइल्स, एकक बड़ा सा बाथटब, शावर, एकदम माडर्न फिटिंग्स, और जब मैंने ऊपर नजर घुमाई। इम्पोर्टेड साबुन, शैम्पू, जेल, डियो, जो आप सोच सकते हैं वो सब कुछ। टब के साथ बबल-बाथ वाले सोप। मैंने बाथटब का टैप आन कर दिया, और उसमें बबल-बाथ वाला सोप डाल दिया। थोड़ी ही देर में टब भर गया था। मैंने सोचा था अच्छे से शेव करके थोड़ी देर टब में नहाऊंगा। रात भर की थकान उतर जायेगी। और उसे बाद ठन्डे पानी से बढ़िया शावर।
हाँ वो रेजर वेजर।
वो गुड्डी की बच्ची पता नहीं कहाँ गायब हो गई। शैतान का नाम लो शैतान हाजिर। वो आ गई हांफते कांपते-
“देखो मैं तुम्हारे लिए सब चीजें ले आई…” वो बोली।
हाँ। रेजर था, वो भी नया। बिना इश्तेमाल किया। मेरी पसंद वाला ब्रश भी था। लेकिन। शेविंग क्रीम- “हे क्रीम कहाँ है? उसके बिना…” मैंने उसकी ओर देखा।
“अरे कर लो ना यार। क्या फर्क पड़ता है?” उसने मुझे फुसलाया।
“अच्छा थोड़े देर बाद आज रात ही को तो, मैं करूँगा। तुम्हारे साथ बिना क्रीम के बिना कुछ लगाए। तो पता चलेगा…” मैंने शरारत से छेड़ा।
“तुम ना हरदम एक ही बात…” कुछ मुँह फुलाकर वो बोली फिर हँसकर कहने लगी-
“अरे यार उसकी बात और है और इसकी बात और है…”
“अच्छा जी तुम्हारी मुलायम है मलमल की, और मेरे गाल हैं टाट के…” मैंने और छेड़ा।
प्यार से मेरे गालों को सहलाकर बोली- “अरे मेरे यार के गाल तो गुलाब हैं…”
और तिरछी आँख करके मुझे घूरा और बोली- “आज कस-कसकर ना रगड़ा तो कहना, इन गालों को…” और मुड़ गई।
फिर जाते-जाते बोलने लगी- “तुम ना बाबा एक ही हो। ले आती हूँ कहीं से ढूँढ़ ढांढ़ के, तुम भी क्या याद करोगे…”
फिर बाहर से उठक पटक, धड़ाक पड़ाक दराज खोलने, बंद करने की आवाजें। गुस्से में लग रही थी वो-
“मिल गई है लेकिन कम है, मैं दबा-दबाकर अपनी हथेली में निकालकर ले आऊं?” उसकी खीझी हुई आवाज आई।
अब मना करना खतरे से खाली नहीं था। मैंने मस्का लगाया- “हाँ ले आओ ले आओ। तू बहुत अच्छी हो…”
“ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं है…” वो बोली। थोड़ा गुस्से में अभी भी लग रही थी।
उसने हथेली में रोप कर ढेर सारी पीली-पीली क्रीम जैसी। मैंने लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसने झट से मना कर दिया-
“मंगते। हर जगह हाथ फैला देते हो। तुमने इधर-उधर गिरा दिया तो। फिर मैं कहाँ से ढूँढ़ कर लाऊँगी। इत्ती मुश्किल से तो। और इसके बिना तुम्हारा काम। लाओ अपने मुलायम-मुलायम हेमा मालिनी के गाल…”
और उसने चारों ओर अच्छी तरह चुपड़ दिया। जरा भी जगह नहीं बची। उसके हाथ में अभी भी थोड़ी सी क्रीम बची थी, और उसके होंठों पे शरारत भरी मुश्कान खेल रही थी।
जब तक मैं समझ पाता। उसका हाथ तौलिये के अन्दर-
“अरे यहाँ पर भी तो। यहाँ भी बाल तो बनाते होगे। क्रीम तो लगाना पड़ेगा ना। कहीं कट वट गया तो। नुकसान तो मेरा ही होगा…”
फिर वो मुझे अदा से घूरती रही।
“तुम न…” मेरे समझ में नहीं आ रहा था क्या बोलूं?
“मैं क्या?” वो अब पूरी शरारत से मुश्कुरा रही थी- “मैं बहुत बुरी हूँ ना…”
मेरी समझ में नहीं आया और मैंने बाहों में पकड़कर चुम्मी ले लिया।
वो बाथटब की ओर देख रही थी, और बोली- “साथ-साथ नहाते तो इतना मजा आता…”
“तो आओ ना…” मैंने दावत दी।
“अरे नहीं यार मेरी वो साली। वो पांच दिन वाली सहेली। ऐसे गलत समय आई है ना। वरना ये मौका मैं छोड़ती। जब हम लौटकर आयेंगे ना तो एक दिन तुम्हारे साथ जरूर नहाऊँगी। तुम्हें नहालाऊँगी भी और। धुलाऊँगी भी…”गुड्डी मुस्कराते हुए बोली।
तब तक चन्दा भाभी ने आवाज दी, और वो परी उड़ चली लेकिन उसके पहले कहा-
“हे, तुम ये तौलिया लपेटे टब में जाओगे क्या?” और खिलखिलाते हुए उसने मेरी तौलिया खींच ली और मेरा ‘वो’ 90° डिग्री पे था। जाते-जाते वो फिर ठिठक गई और ‘उसकी’ ओर देखकर, वो शैतान मुश्कुराकर पूछने लगी-
“अच्छा जब मैंने तुम्हारी लुंगी खींची थी तो तुम उसे छिपा क्यों रहे थे?”
“वो। वहां पे…” मैं हकला रहा था- “वहां पे गुंजा जो थी…”
“अच्छा जी…” वो इत्ते जोर से हँसी-
“तुम ना बुद्धू थे, बुद्धू रहोगे। गुंजा, अरे यार। वो साली तेरी साली है। उसने खुद बोला। उसकी मम्मी ने बोला, इत्ता वो आज तुम्हें छेड़ रही थी। अरे तुम्हारी जगह कोई और होता ना। तुम दिखाने से डर रहे थे। वो तो उसे अब तक हाथ में पकड़ा देता। घुसेड़ने को सोचता। और तुम ना…” मुश्कुराकर वो बोली और चल दी।
मैंने शेव करनी शुरू की। क्रीम चुनचुना रही थी, झाग भी नहीं बन रहा था। मुझे लगा शायद इम्पोर्टेड है इसीलिए। मैंने दो बार शेव बनाई रेजर काफी शार्प था। फिर गुड्डी की बात याद आ गई नीचे के बालों के बारे में। क्रीम तो उसने वहां भी खूब लिथड़ दी थी। कभी-कभी वहां के बाल मैं साफ करता ही था। मैंने कर लिया। एकदम साफ हो गए।
फिर मैं टब में जाकर बैठा। थोड़ी देर में सारी थकान, मैल सब कुछ दूर, और उसके बाद शावर शैम्पू। जब मैं तैयार होकर बाहर निकाला तो एकदम हल्का जैसे कहते हैं ना लाईट एस फेदर, बिलकुल वैसा। हाँ एक बात और जब मैंने कैबिनेट खोली तो मुझे उसमें वो बोतल दिख गई जिसमें से चन्दा भाभी ने, वही सांडे के तेल वाली। उन्होंने समझाया था, दो बार रोज इश्तेमाल से परमानेंट फायदा होता है तो मैंने बस थोड़ा सा लगा लिया। बाद में पता चला की कड़ा और खड़ा करने के साथ-साथ उसमें से एक गंध निकलती है जिसका लड़कियों पे बहुत मादक और कामुक असर होता है। मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन साथ में कुछ परेशानी भी।
मैंने गुंजा का दिया टाप और बर्मुडा पहना और कमरे में आ गया।
बाहर गुड्डी कुछ कर रही थी। मेरी निगाह उसी पे लगी रही। क्या है उस जादूगरनी में? मैं सोच रहा था।
मेरे मन ने कहा- “सब कुछ। जो तुम चाहते हो। बल्की उससे भी बहुत ज्यादा। पकड़ लो कसकर अगर वो फिसल गई ना तो पूरी जिंदगी पछताओगे…”
भाभी ने एक बार मुझसे पूछा था- “तुम्हें कैसी लड़की पसंद है?” असल में भाभी ने कहा था तुम्हें- “कैसा माल पसंद है?”
शर्माते झिझकते, मैंने बोला- “असल में। वो वो। जो दीवाल से सटकर खड़ी है। फेस करके उसकी ओर तो तो…”
“अरे यार। तो तो क्या लगा रखी है? बोलो ना साफ साफ?” भाभी बोली।
“वो। जो दीवाल से सटकर खड़ी है। फेस करके उसकी और तो पहली चीज जो दीवाल से लगे तो वो उसकी। नाक ना हो…” मैंने बहुत मुश्किल से कहा।
“उन्ह्ह। उन्ह…” एक पल में वो समझ गई पर मुझे छेड़ते हुए कहा- “अच्छा, तो उसकी नाक छोटी हो। समझ गई मैं…” बड़ी सीरियस होकर वो बोली।
“ना ना…” मैं कैसे समझाऊँ उनको। मेरी समझ में नहीं आ रहा था।
वो हँसते-हँसते दुहरी हो गईं- “अरे साफ-साफ क्यों नहीं कहते की तुम्हें ‘बिग-बी’ पसंद है। सही तो है। मुझे भी जीरो फिगर एकदम पसंद नहीं…”
मेरी निगाह गुड्डी से चिपकी हुई थी। वो झुकी हुई थी, टेबल ठीक कर रही थी और उसके दोनों उरोज कसी-कसी फ्राक से एकदम छलकते हुए।
मेरा मन कह रहा था की बस जाकर दबोच लूं। गुंजा कह रही थी ना की गुड्डी को स्कूल में टाइटिल मिली थी ‘बिग-बी’ एकदम सही टाइटिल थी।
उसकी चोटियां भी खूब मोटी घनी और सीधे नितम्बों की दरार तक, और नितम्ब भी एकदम परफेक्ट, कसे रसीले। लम्बाई भी उसकी उम्र की लड़कियों से एक-दो इंच ज्यादा ही थी।
वो मासूम चेहरा।
लेकिन क्या शैतानी, शरारत छिपी थी उनमें। वो दो काली काली आँखें। उन्होंने ही तो लूट लिया था मुझे।
लेकिन सबसे बढ़कर उसका एटीट्युड।
दो बातें थीं, एक तो वो हक से। मुझे कोई चाहिए भी था ऐसा। शायद मैं बचपन से ज्यादा पैम्पर था इसलिए, थोड़ी डामिनेटिंग। और हक भी पूरे हक से। अगर मैं कोई चीज खाने में मना करता था तो वो जानबूझ के डाल देती थी मेरी थाली में, और मेरी मजाल जो छोडूँ। किसी भी चीज पे, और इसी के साथ उसका विश्वास। एक बार वो मुंडेर के सहारे झुकी थी, थोड़ी ज्यादा ही झुक रही थी, तो मैंने मना किया- “हे गिर जायेगी…”
वो आँख नचाकर बोली- “तुम किस मर्ज की दवा हो। बचा लेना…” उसका मानना था की वो कुछ भी करे मैं हूँ ना। और मैं कुछ भी करूँ सही ही होगा।
तभी मेरी निगाह फिर उसपे पड़ी। वो मुझे ही देख रही थी। उसने एक फ्लाईंग किस दी और मैंने भी जवाब में एक। सर हिला के उसने मुझे बुलाया। मैं जब पहुँचा तो बहुत बीजी थी वो। टेबल पे प्लेटें ढेर सारा सामान था।
टिपिकल गुड्डी, नाराज होकर वो बोली- “हे मैं यहाँ, काम के मारे मरी जा रही हूँ और वहां तुम। एसी में मजे से बैठे हो चलो। काम में हेल्प करवाओ…”
मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।
“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊपर तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।

