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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद, कोमल जी! :)
आपकी पाती पढ़ कर स्पष्ट है कि आप मंझी हुई लेखिका हैं। अवश्य ही आपकी कहानियाँ पढ़ूँगा।
मैंने देखा है कि आपने मेरी एक दो कहानियाँ पढ़ भी ली हैं - मैं इस मामले में थोड़ा फ़िसड्डी हूँ।
लेकिन वायदा है आपसे - आपकी कहानियाँ ज़रूर पढ़ूंगा!
अपना ध्यान रखें! शीघ्र ही मिलते हैं!
आपको निराशा नहीं होगी.. बल्कि एक अद्भुत लेखिका की रचना से रूबरू होने का आनंद मिलेगा...
 

Tiger 786

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पात्र परिचय

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ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।

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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।

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सबसे पहले मैं यानी आनंद। उम्र जब की बात बता रहा हूँ। 23वां लगा था, लम्बाई 5’11…” इंच कोई जिम टोंड बदन वदन नहीं लेकिन छरहरा कह सकते हैं, गोरा। चिढ़ाने के लिए खास तौर से भाभी, चिकना नमकीन कह देती थी पर आप जानते हैं भाभी तो भाभी हैं। हाँ ये बात सही थी की मैं जरा शर्मीला था और शायद इसलिए मैं अब तक “कुँवारा…” था। मेरी इमेज एक सीधे साधे लड़के की थी। चलिए बहुत हो गई अपनी तारीफ। हाँ अगर आप “उस…” चीज के बार मैं जानना चाहते हैं की। तो वो इस तरह की कहानियों के नायक की तरह तो नहीं था लेकिन उन्नीस भी नहीं था।



मेरी भाभी- बहुत अच्छी थी। शायद वो पहली महिला लड़की जो चाहे कह लीजिये जो मुझसे खुलकर बातचीत करती थी।

जो लोग कहते हैं भाभी को माँ के समान समझना चाहिए वैसा कत्तई नहीं था, और वो बात उन्होंने मुझसे पहले खुद साफ कर दी थी, लेकिन जो ' देवर भाभी के किस्से ' टाइप किताब होती है वैसा भी कत्तई नहीं था. वो मुझे चिढ़ा लेती थी, मौका पड़ने पर अच्छी वाली गारी भी देती थीं पर मैं चुप ही रहता था, कभी बहुत हिम्मत की तो थोड़ा बहुत बोल दिया।


रिश्ता देवर भाभी का ही था लेकिन एक तरह से मेरी अकेली दोस्त, सहेली जो कहिये,...

कारण दो थे घर में और कोई नहीं था उनके अलावा। भाई साहेब मेरे प्रेमचंद के बड़े भाई साहेब टाइप बल्कि और सीरियस, उमर में भी बहुत बड़े। भाभी चार पांच साल ही बड़ी रही होंगी और ये दूसरा कारण था। चिंता भी जरूरत से ज्यादा करती थीं, एक दो बार मैंने बोला भी तो उन्होंने टोक दिया, " तेरे बस का तो है नहीं, और देवरानी मेरी अभी आयी नहीं। जिस दिन देवरानी मिल जायेगी, उसके हाथ में तेरा हाथ दे दूंगी तब चिंता करना बंद कर दूंगी।

मेरे सेलेक्शन में, सिविल सर्विस के इम्तहान में कहते हैं जितना पढाई का रोल होता है उतनी किस्मत का,... तो पढ़ाई वाला काम तो मैंने किया लेकिन देवी देवता मनाने का भाभी ने, गली मोहल्ले के देवी देवता से लेकर गंगा मैया की आर पार की चुनरी सब मान ली थी उन्होंने और ख़ुशी भी मुझसे ज्यादा उन्हें हुयी।

हर चीज , यहाँ तक की मेरे लिए मस्तराम किराए पे लाने की फंडिंग भी वही करती थी। और उनका भी हर काम बाजार से कुछ लाना हो, उन्हें मायके ले जाना और वहां से लाना। बस चिढ़ाती बहुत थी और खास तौर पर मेरी कजिन का नाम लेकर, मजाक करने में तो एक नम्बर की।

और जो मजाक में भाभी थोड़ी झिझकती थी, गारी सुनाने में गाने में तो उनकी एक साथी सहेली थी मंजू।
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मंजू उम्र में भाभी से दो तीन साल छोटी होगी, लेकिन साइज में मेरा मतलब,.... ओके ३६ डी नहीं डबल डी , बाहर एक कोठरी में रहती थी शादी हुए दो साल हुए होंगे, मरद उसका पंजाब गया था कमाने, और घर का सारा काम काज करने में भाभी का हाथ बटाती थी, और हम लोगों के लिए भाभी ही। उसके आने से होली से लेकर मजाक तक में भाभी २० पड़ने लगी थीं,



मेरी कजिन पास के ही मोहल्ले में रहती थी और भाभी की एकलौती ननद थी। जैसा की भाभी ने अपनी चिठ्ठी में लिखा था की

वह दसवें का बोर्ड का इम्तहान पास करके ग्यारहवे में गयी थी। बनारस वाली गुड्डी की समौरिया, और दोनों पक्की सहेली। एक दूसरे से झगड़ा करने में, चिढ़ाने में गरियाने में, ... बताया तो पिक्चर हाल में जब गुड्डी ने मेरा हाथ पकड़ के अपने सीने पर रखा था,.... जैसे सांप सीढ़ी के खेल में किसी को २१ वाली सीढ़ी मिल जाए और सीधे ९३ पर पहुँच जाय, जिस गुड्डी को देख के मैं सिर्फ ललचाता रहता था, बस सोचता रहता था ये मिल जाये, उसके चूजों के बारे में सोच के पजामे में तम्बू बन जाता था, खुद उसने,... तो उस समय गुड्डी के बगल में वही थी, पिक्चर हाल में।




मेरी ममेरी बहन, और भाभी की रिश्ते नाते में भी जोड़ कर एकलौती ननद, तो सारे मजाक का सेंटर वही बनती थी और मुझे बी ही भी उसी से जोड़ कर. लम्बी थी अच्छी खासी, पढ़ने में भी तेज थी, ... और वो जिस गली में रहती थी उसके शुरू के घर कुछ धोबियों के थे, वहां गदहे बंधे रहते थे तो मजाक का एक जड़ वो भी था, भाभी के लिए।

भाभी की भाभी और गुड्डी की मम्मी -

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ये रिश्ता भी उतना ही दिलचस्प है जितना जिनका रिश्ता है। असल में वो कोई भाभी की सगी भाभी नहीं थी, लेकिन एक बात की भाभी की कोई सगी भाभी वैसे भी नहीं थीं,... दूसरे रिश्ता वो जो माना जाए और रखा जाये,... और जिसका लिहाज हो।


वो भाभी से दस बारह साल बड़ी रही होंगी, लेकिन मजाल की कभी नाम लिया हो, ननद का नाम नहीं लिया जाता तो बस बिन्नो। गाँव में घर दोनों लोगों का सटा था, और उनका घर, मेरा मतलब की भाभी के भाभी का घर बहुत बड़ा, जैसे पहले के गाँव के घर होते थे, दो खंड के मरदाना -जनाना वाले, काफी कुछ पक्का, दो मंजिला, ... और वहीँ से भाभी की शादी हुयी थी, सामने बड़ी सी आम की बाग़,... डेढ़ दो सौ पेड़ तो रहे होंगे, उसी बाग़ में बरात टिकी थी। अभी भी मुझे याद है तीन दिन की बरात,... मैं एकलोता छोटा भाई, शहबाला,... खिचड़ी की रस्म में भाभी की भाभी ने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की नाम ले ले के असली वाली गारियाँ सुनायीं, ...


लेकिन गाँव घर के रिश्ते उलझे भी रहते हैं, मेरी भाभी की ननिहाल और भाभी की भाभी का मायका एक ही था और वहां वो रिश्ते में बड़ी थीं। पर उन्होंने चुना अपनी ससुराल का रिश्ता,... ननद भाभी से ज्यादा रसीला रिश्ता कौन होगा।


देखने में , ओके चलिए वो भी बता देता हूँ, ३५ -३६ की होंगी तो थोड़ी स्थूल लेकिन मोटी एकदम नहीं, जो एम् आई एल ऍफ़ वाली कैटगरी होती है समझिये उसके पहले पायदान पे कदम रख चुकी थीं दीर्घ नितंबा, दीर्घ स्तना, .. गोरी खूब, गुड्डी उन्ही पर गयी थी। तीन लड़कियों की माँ, सबसे बड़ी, और बाकी दोनों भी दो तीन साल के अंदर,... लेकिन देख के कोई कह नहीं सकता था। और मजाक करते समय या गारी गाते समय उन्हें इस बात का कोई फरक नहीं पड़ता था की उनकी बेटियां उनके पास हैं।

भाभी कुछ दिन उनके यहाँ रह के पढ़ी भी थीं, इसलिए वो रिश्ता और तगड़ा हो गया था.

गुड्डी लेकिन मेरी भाभी को दीदी कहती थी, और उसके भी दो कारण थे एक तो भाभी को उनके मायके में सब लोग दीदी ही कहते थे, दूसरी बात जब भाभी वहां रह के पढ़ती थीं तो गुड्डी से दोस्ती भी बहुत हो गयी थी और उम्र का अंतर् भी उतना नहीं था,...
Awesome update
 

Tiger 786

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बनारस का रस


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कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाकात हो जायेगी। तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था। यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था।


तो मैंने जल्दी से जल्दी सारी तैयारी कर डाली।

पहले तो भाभी के लिए साड़ी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी, बनयान, एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी। फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं। बनारस के लिए कोई सीधी गाड़ी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहां से बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और आटो से बनारस। बड़ौदा में हम लोग एक फील्ड अटैचमेंट में थे और कह सुन के एक दो दिन पहले निकलना पॉसिबल था, पर कोई सीधी गाड़ी बनारस छोड़िये मुग़लसराय की भी उस दिन की नहीं थी जिस दिन का मेरा प्रोग्राम था इसलिए इतनी उछल कूद.

वहां मैंने एक रेस्टहाउस पहले से बुक करा रखा था। सामान वहां रखकर मैं फिर से नहा धोकर फ्रेश शेव करके तैयार हुआ। क्रीम आफ्टर शेव लोशन, परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुई सफेद शर्ट।

आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्की,...

शाम हो गई थी। मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाकर मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ। गुड्डी से मिल लूंगा और कल एकदम सुबह जाकर उसके साथ घर चला जाऊँगा। बस से दो-तीन घंटे लगते थे। रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली। मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं।

लेकिन वहां पहुँच कर तो मेरी फूँक सरक गई।

वहां सारा सामान पैक हो रहा था। भाभी की भाभी या गुड्डी की माँ (उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं। अचानक प्रोग्राम बन गया।

अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बनाकर आया था। मैंने मन ही मन अपने को गालियां दी और प्लानिंग कर बच्चू।


गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई। फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया। लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे। बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे। इसलिए सब जल्दी-जल्दी तैयारी करनी पड़ गई लेकिन अब सब पैकिंग हो गई है। मेरा चेहरा और लटक गया था।

हम लोग बगल के कमरे में थे।

भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे। गुड्डी एक बैग में अपने कपड़े पैक कर चुकी थी। वो बिना मेरी ओर देखे हल्के-हल्के बोलने लगी- जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं, है ना। वो उठकर मेरे सामने आ गई और मेरे गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर बोलने लगी-

“अरे बुध्धू। सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं। मैं तुम्हारे साथ ही जाऊँगी। पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी और तुम्हारी रगड़ाई करूँगी…”

मेरे चेहरे पे तो 1200 वाट की रोशनी जगमग हो गई-


“सच्ची…” मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

“सच्ची…” और उस सारंग नयनी ने इधर-उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भरकर एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़कर उधर ले गई जहां बाकी लोग थे। मेरे कान में वो बोली-

“मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे…”
“एकदम…” मैंने भी हल्के से कहा।

किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रही थी। मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाऊँगा रेस्टहाउस में रुका हूँ। कल सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा।

वो बोली

अरे ये कैसे हो सकता है। अभी तो आप रुको खाना वाना खाकर जाओ। लेकिन मैं तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाकात तो हो ही गई। आप लोग भी बीजी हैं। थोड़ी देर में ट्रेन भी है।

तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी।
गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। बह भी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी। लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।

मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।
भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर। अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा।

लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-

“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”

“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं। उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…”

भाभी को एक साथी मिल गया था।

“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के…” चंदा भाभी ने छेड़ा।

गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। “मेरे साथ की ही है, पिछले साल दसवां पास किया है

“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। भैया। जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”

लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं। “अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…” भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।

मैंने फिर वही रट लगाई- “मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”

“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।

“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। इम्तहान तो हो ही गया है उसका। लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी। लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”



चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
Bohot hi mazedaar update
 

Tiger 786

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फागुन के दिन चार भाग २

रस बनारस का - चंदा भाभी

१४,४३५

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तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी। गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। वह भी भाभी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी, लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।


मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।

भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर, अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा। लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-

“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”

“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं, उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…” भाभी को एक साथी मिल गया था।

“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के… चौदह से उपर तो बिन्नो की शादी में ही लग रही थी, चौदह की तो हो गयी न भैया, "” चंदा भाभी ने छेड़ा।

ये सवाल मेरे से था लेकिन जवाब गुड्डी ने दिया . गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। बोली

“मेरे साथ की ही है। मेरे साथ ही पिछले साल दसवां पास किया था, और चौदह की तो कब की हो गयी। " …”


“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। चौदह की हो गयी मतलब चुदवाने लायक तो हो गयी, अब तो पक्की चुदवासी होगी , भैया, जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”

चंदा भाभी ने मेरी रगड़ाई का लेवल बढ़ा दिया।
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लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं।

“अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…”

भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।


मैंने फिर वही रट लगाई-

“मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”


“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।


“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। तुम खुद ही कह रहे हो चौदह की कब की हो गयी . बस लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी।

लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”

चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
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“और क्या हम लोग बिन्नो को क्या मुँह दिखायेंगे…” भाभी भी उन्हीं की भाषा बोल रही थी। वो उठकर किसी काम से दूसरे कमरे में गईं तो अब गुड्डी ने मोर्चा खोल लिया।

“अरे क्या एक बात की रट लगाकर बैठे हो। जाना है जाना है। तो जाओ ना। मैं भी मम्मी के साथ कानपुर जा रही हूँ। थोड़ी देर नहीं रुक सकते बहुत भाव दिखा रहे हो। सब लोग इत्ता कह रहे हैं…”

“नहीं। वैसा कुछ खास काम नहीं। मैंने सोचा की थोड़ा शौपिंग वापिंग। और कुछ खास नहीं। तुम कहती हो तो…” मैंने पैंतरा बदला।


“नहीं नहीं मेरे कहने वहने की बात नहीं है। जाना है तो जाओ। और शौपिंग तुम्हें क्या मालूम कहाँ क्या मिलता है। यहाँ से कल चलेंगे ना। दोपहर में निकलेंगे यहाँ से फिर तुम्हारे साथ सब शौपिंग करवा देंगे। अभी तो तुम्हें सैलरी भी मिल गईं होगी ना सारी जेब खाली करवा लूँगी…”

ये कहकर वो थोड़ा मुश्कुराई तो मेरी जान में जान आई।

चन्दा भाभी कभी मुझे तो कभी उसे देखती।


“ठीक है बाद में सब लोगों के जाने के बाद…” मैंने इरादा बदल दिया और धीरे से बोला।


“तुम्हें मालूम है कैसे कसकर मुट्ठी में पकड़ना चाहिए…” चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए गुड्डी से कहा।

“और क्या ढीली छोड़ दूं तो पता नहीं क्या?”
गुड्डी मुस्करा के बोली।


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और मैं भी उन दोनों के साथ मुश्कुरा रहा था। तब तक भाभी आ गईं और गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया। मैं खुद ही बोला- “भाभी ठीक ही है। आप लोग चली जाएंगी तभी जाऊँगा। वैसे भी वहां पहुँचने में भी टाइम लगेगा और फिर आप लोगों से कब मुलाकात होगी…”



चन्दा भाभी तो समझ ही रही थी की। और मंद-मंद मुश्कुरा रही थी। लेकिन भाभी मजाक के मूड में ही थी वो बोली-

“अरे साफ-साफ ये क्यों नहीं कहते की पिछवाड़े के खतरे का खयाल आ गया। ठीक है बचाकर रखना चाहिए। सावधानी हटी दुर्घटना घटी… पिछवाड़े तेल वेल लगा के आये थे की नहीं, अरे बनारस है तुम्हारी ससुराल भी है, फिर फटने वाली चीज कब तक बचा के रखोगे "
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भाभी , गुड्डी की मम्मी अब पूरे जोश में आ गयी थीं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की उनकी बेटियां, गुड्डी और छुटकी वहीँ बैठीं हैं। दोनों मुस्करा रही थीं।


“अरे इसमें ऐसे डरने की क्या बात है देवरजी, ऐसा तो नहीं है की अब तक आपकी कुँवारी बची होगी। ऐसे चिकने नमकीन लौंडे को तो, वैसे भी ये कहा है ना की मजा मिले पैसा मिले और… कड़वा तेल की आप चिंता न करिये। अरे ये कानपुर जा रही हैं मैं तो हूँ न। पक्का दो ऊँगली की गहराई तक,... नहीं होगा तो कुप्पी लगा के, पूरे ढाई सौ ग्राम पीली सरसों का तेल,... गुड्डी साथ देगी न मेरा बस इन्हे पकड़ के निहुराना रहेगा। अब इतनी कंजूसी भी नहीं की एक पाव तेल के लिए बेचारे देवर की पिछवाड़े की चमड़ी छिले। "

चंदा भाभी तो गुड्डी की मम्मी से भी दो हाथ आगे।”

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गड्डी मैदान में आ गई मेरी ओर से- “इसलिए तो बिचारे रुक नहीं रहे थे। आप लोग भी ना…”


“बड़ा बिचारे की ओर से बोल रही हो। अरे होली में ससुराल आये हैं और बिना डलवाए गए तो नाक ना कट जायेगी। अरे हम लोग तो आज जा ही रहे हैं वरना। लेकिन आप लोग ना…” गुड्डी की मम्मी बोली।


“एकदम…” चन्दा भाभी बोली।

“आपकी ओर से भी और अपनी ओर से भी इनके तो इत्ते रिश्ते हो गए हैं। देवर भी हैं बिन्नो के नंदोई भी। और इनकी बहन आके दालमंडी में बैठेगी तो पूरे बनारस के साले भी, इसलिए डलवाने से तो बच नहीं सकते। अरे आये ही इसलिये हैं की, क्यों भैया वेसेलिन लगाकर आये हो या वरना मैं तो सूखे ही डाल दूँगी। और तू किसका साथ देगी अपनी सहेली के यार का। या…”

चन्दा भाभी अब गुड्डी से पूछ रही थी।

गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी। और मैं उसी में खो गया था। भाभी किचेन में चली गई थी लेकिन बातचीत में शामिल थी।

“अरे ये भी कोई पूछने की बात है आप लोगों का साथ दूँगी। मैं भी तो ससुराल वाली ही हूँ कोई इनके मायके की थोड़ी। और वैसे भी शर्ट देखिये कित्ती सफेद पहनकर आये हैं इसपे गुलाबी रंग कित्ता खिलेगा। एकदम कोरी है…”
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गुड्डी ने मेरी आँख में देखते हुए जो बोला तो लगा की सौ पिचकारियां चल पड़ी

“इनकी बहन की तरह…” चंदा भाभी जोर से हँसी और मुझसे बोली,

“लेकिन डरिये मत हम लोग देवर से होली खेलते हैं उसके कपड़ों से थोड़े ही…”

तब तक भाभी की आवाज आई-

“अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”

चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला-

“हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…


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Lazwaab shandaar update
 

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गुझिया

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तब तक भाभी की आवाज आई- “अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”

चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला- “हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…”

वो मुझे बगल के कमरे में ले गई और उसने बैठा दिया-


“हे कहाँ जा रही हो…” मैं फुसफुसा के बोला।

“तुम ना एकदम बेसबरे हो। पागल। अभी तो खुद भागे जा रहे थे और अभी। अरे बाबा बस अभी गई अभी आई। बस यहीं बैठो।"


उसने मेरी नाक पकड़कर हिला दिया और हिरणी की तरह उछलती 9-2-11 हो गई। मेरे तो पल काटे नहीं कट रहे थे। मैं दीवाल घड़ी के सेकेंड गिन रहा था।

पूरे चार मिनट बाद वो आई। एक बड़ी सी प्लेट में गुझिया लेकर। गरम गरम ताजी और खूब बड़ी-बड़ी गदराई सी। अबकी सोफे पे वो मुझसे एकदम सटकर बैठ गई। उसकी निगाहें दरवाजे पे लगी थी।

“लो…” मैंने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ रोक दिया। और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली-

“मेरे रहते तुम्हें हाथों का इश्तेमाल करना पड़े…”
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उसका द्विअर्थी डायलाग मैं समझ तो रहा था लेकिन मैंने भी मजे लेकर कहा-

“एकदम और वैसे भी इन हाथों के पास बहुत काम है…”

और मैंने उसे बाहों में भर लिया। बिना अपने को छुड़ाये वो मुश्कुराकर बोली-

“लालची बेसबरे।“

और अपने हाथ से एक गुझिया मेरे होंठों से लगा दिया। मैंने जोर से सिर हिलाया। वो समझ गई और बोली-
"तुम ना। नहीं सुधरने वाले


और गुझिया अपने रसीले होंठों में लगाकर मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने आधा खाने की कोशिश की लेकिन उसकी जीभ ने पूरी की पूरी मुँह में धकेल दी।

“हे आधे की नहीं होती। पूरा अन्दर लेना होता है…” मुश्कुराकर वो बोली।

मेरा मुँह भरा था लेकिन मैं बोला- “हे अपनी बार मत भूल जाना मना मत करने लगना…”

“जैसे मेरे मना करने से मान ही जाओगे और जब पूरा मेरा है तो आधा क्यों लूंगी…”
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उसकी अंगुलिया अब मेरे पैंट के बल्ज पे थी। तम्बू पूरी तरह तन गया था। मेरे हाथ भी हिम्मत करके उसके उभारों की नाप जोख कर रहे थे।

“हे एक मेरी ओर से भी खिला देना…” किचेन से चन्दा भाभी की आवाज आई।

“एकदम…” गुड्डी बोली और दूसरी गुझिया भी मेरे मुँह में थी।
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गुड्डी ने बताया की चन्दा भाभी एकदम बिंदास हैं और उसकी सहेली की तरह भी। उनके पति दुबई में रहते हैं कभी दो-तीन साल में एक बार आते हैं लेकिन पैसा बहुत है। इनकी एक लड़की है गुंजा 9वीं में पढ़ती है। गुड्डी के ही स्कूल में ही।

“हे गुड्डी खाना ले जाओ या बातों से ही इनका पेट भर दोगी…” किचेन से उसकी मम्मी की आवाज आई।

“प्लानिंग तो इसकी यही लगती है…” हँसकर मैं भी बोला।

गुड्डी जब खाना लेकर आई तो पीछे से चन्दा भाभी की आवाज आई-

“अरे पाहुन खाना खा रहे हो और वो भी सूखे सूखे। ये कैसे?”

मैं समझ गया और बोला की अरे उसके बिना तो मैं खाना शुरू भी नहीं कर सकता।

“अरे इनकी बहनों का हाल जरा सुना दो कसकर…” भाभी बोली।

“क्या नाम है इनके माल का?” चन्दा भाभी ने पूछा। बिना नाम के गारी का मजा ही क्या?
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गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी। उसने वहीं से हुंकार लगाई-

“मेरा ही नाम है। गुड्डी…”
--

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“आनंद की बहना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी।



अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो। अरे रूपये में ले लो अठन्नी में ले लो,

अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लो अरे अठन्नी में ले लो चवन्नी में ले लो

जियरा जर जाय मुफ्त में ले लो अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लो।
Fantastic update
 

komaalrani

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बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट है
अब तो गुंजा ने भी जीजा पर अपना हक जमा लिया है वह साली बन गई है आनंद बाबू को चंदा भाभी की चिड़िया उड़ने की बात याद आ गई है वो भी गुंजा की चिड़िया को उड़ाना चाहता है खिलाड़ी बनने के बाद आनंद ने बिना झिझक के गुंजा के साथ मस्ती शुरू कर दी है गुंजा ने भी हथियार का मुआवना कर लिया है गुंजा भी अपने जीजा को देने के लिए तैयार है चंदा भाभी से भी परमिशन मिल गई है मम्मी के साथ बेटी भी मिलने वाली है तीनो के बीच मस्ती का जो चित्रण किया है वह बहुत ही सुन्दर है
एकदम छोटी स्साली भी राजी, जीजा भी राजी

बस गूंजा स्कूल से आ जाये और कसम धरा के गयी है बिना उससे होली खेले जाना नहीं है

और छोटी साली है जीजा है तो होली तो रंग से ज्यादा देह की होनी ही है
 

komaalrani

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होने वाली घरवाली और साली जीजा के साथ फुल मस्ती के मुंड में है अब तो आनंद भी बिना हिचक के साथ अपनी साली के साथ मस्ती कर रहे हैं होली आनंद के लिए धमाकेदार होने वाली है एक कच्ची कली मिल गई है देखते हैं आनंद क्या करते हैं
एकदम और ऊपर से गुड्डी है ही, आग में घी डालने वाली, आनंद बाबू को ललकारने वाली
 

komaalrani

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Mehak ko ese situation me bhi romance aa raha hai, yeh jiju ka ehsaan bahut jald utaregi
Thanks, I shared some snippets of thriller parts so that the readers realise it is not only erotica but also a thriller, ' Love in the Time of Terror' to paraphrase the name of a famous novel.
 

komaalrani

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क्या जबरदस्त नशीला और रंगीला अपडेट दिया है कोमलजी. दिल खुश कर दिया. एक तो चौगना भाँग का नशा. और सामने रीत जैसी कातिल हसीना. वो भी आनंद बाबू के सामने मद मस्त पिछवादा.

वही रीत का भी वैसा ही हाल. नशे मे ठल्ली भाँग और वोडका. ऐसी साली हो और बस दूर से देखोगे तो पाप लगेगा. गाना भी तो मस्त है. सब छोड़ छाड़ के अपने सलीम........

रीत भी सायद लीड किरदार है. बिलकुल कातिल हसीना. ऊपर से सली. और नाचती हुई बाहो मे. माझा ही ला दिया.

और आनंद बाबू तुम्हारी वाली(गुड्डी) ने क्या कहा समझ नहीं आया. तुम्हारे ससुराल वाली हो या मेरे ससुराल वाली. छोड़ना मत. दो बून्द से क्या टंकी खाली हो जाएगी क्या. तेरा दिल तो मेरे ही पास है.


लास्ट मे जो गुड्डी की शारारत भरी लाइन ने तो दिल जीत लिया.

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गुड्डी बात बात में आनंद बाबू के मायकेवालियों को घसीट लेती है, एकदम अपनी मम्मी की तरह, इसलिए उसने साफ़ साफ़ बोल दिया, " तेरी ससुराल वालियां या मेरी ससुराल वालियां " गुड्डी की होने वाली ननदें और आनंद बाबू की बहनें
 
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