Shetan
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सुन लो आनंद बाबू. किसका रेट लग रहा है. अरे तुम्हारी उस छिनार बहेनिया का. वो भी पूरा 100 रुपया. और तुम्हारी सजनी गुड्डी क्या कहे रही है. अरे रेट मत ख़राब करो. 10 रूपए भी ज्यादा है.अब मेरी बारी
मैं झटके से मुड़ा, और बोला- “कर लिया तुम दोनों ने, जो कर सकती थी। चलो अब मेरी बारी है। ऐसा डालूँगा ऐसा डालूँगा…”
और वो दोनों हिरणियां 1- 2- 3- फुर्र। और छत के दूसरी ओर से मुझे अंगूठा दिखा रही थीं।
चन्दा भाभी भी मुश्कुरा रही थी।
मैंने बोला- “एक बार पकड़ लूंगा तो ऐसा रंगूंगा ना…”
“तो पकड़ो न…” हँसकर मेरी जान बोली।
“रंग है भी क्या? क्या लगाओगे?” कैटरीना, मेरा मतलब मस्त-मस्त चीज, रीत बोली। बात तो उसकी सोलह आना सही थी। मेरे पास तो रंग था नहीं। और पेंट की सब ट्यूबें उन दोनों ने हथिया ली थी। यहाँ तक की मेज पे रखा अबीर गुलाल भी।
“रंग चाहिये तो पैसा लगेगा…” रीत बोली।
“लेकिन पैसा भी तो बिचारे के पास है नहीं…” गुड्डी ने छत के दूसरे कोने से आवाज लगायी।
रीत बोली- “अरे यार इन्हें पैसे की क्या कमी? इनके पास तो पूरी टकसाल है। थोड़ा एडवांस पैसा ले लेंगे अपने माल का और क्या? दो दिन दो रात का 100 रूपये मैं दे दूँगी। है मंजूर?”
गुड्डी बोली- “यार तू तो रेट खराब कर देगी। अभी तो 10 रूपये में चलती होगी वो। लेकिन किसके लिए। दो दिन दो रात?”
“अरे और कौन? अपने…” और आँख नचाकर वो चुप हो गई।
मैं उसे ध्यान से देख रहा था, कि क्या बोलने वाली है। अब वो मेरे पास आ चुकी थी।
पास से रीत बोली- “ये आफर कहीं नहीं मिलेगा। दो दिन दो रात राकी के साथ। पचास आज और पचास कराने के बाद…”
वो जान गई थी की मेरे पास रंग तो है नहीं।
पर मेरा दिमाग भी ना। कभी-कभी चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, रीत के साथ का असर ।
मैंने अपने दोनों हाथों में अपने गालों का रंग रगड़ा और जब तक रीत समझे-समझे। वो मेरी बांहों की गिरफ्त में। रंग से सनी मेरी हथेलियां उसके गुलाबी गालों की ओर बढीं। पर उस चतुर बाला ने झट से अपने कोमल कपोल अपनी हथेलियों के पीछे।
यही तो मैं चाहता था, मेरे दोनों हाथ सीधे उसके टाईट कुरते को फाड़ते जवानी के खिलौनों, उसके गदराये गोरे उभारों की ओर, और एक पल में वो मेरे मुट्ठी में थे।
वो बिचारी। अब लाख कोशिश कर रही थी पर बहुत देर हो चुकी थी। मैं जमकर दबा रहा था, बिना रगड़े मसले। सिर्फ मेरी उंगलियों का दबाव उसके कुरते पे ठीक जोबन के ऊपर।
सिर्फ चंदा भाभी मेरा मतलब समझ रही थी और मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
“हे छुड़ा ना क्या खड़ी-खड़ी, टुकुर-टुकुर देख रही है…” उस कातर हिरनी ने गुड्डी की ओर देखकर गुहार लगाई।
गुड्डी भी दूर खड़ी मुश्कुराती रही। वो समझ गई थी की कहीं वो नजदीक आई तो रीत को छोड़कर मैं उसे ना गड़प कर लूँ।
“आ ना मेरी माँ। क्या वहां से। देख ना तेरे यार ने कितनी कसकर दबोच रखा है। प्लीज गुड्डी। अगर ना आई ना। तो जब तेरी फटेगी ना। तो मैं भी ताली बजाऊँगी…” रीत ने फिर पुकार लगायी।
“क्या दीदी। पता नहीं कब फटेगी। अरे आपसे चिपके हैं तो आप ही। मेरी तो वैसे भी छुट्टी के दिन चल रहे हैं…” हँसकर गुड्डी बोली।
क्या मस्त उभार थे, मुझसे नहीं रहा गया और अपने आप मेरा ‘जंगबहादुर’ उसकी पाजामी के ऊपर से ही। उसके मस्त चूतड़ों के ऊपर से रगड़ने लगा। मेरी उंगली ने एक निपल को पकड़ लिया और कसकर पिंच कर दिया।
रीत जानबूझ कर चीखी और बोली- “उईईईई…” “हे अपनी बहन की समझ रखी है क्या? जा कर रहे हो ना। जाकर उसकी इस तरह से दबाना, मसलना, या वो जो सामने खड़ी खिलखिला रही है। बहुत चींटे काटते हैं उसको। जाकर उसकी…”
और जवाब में मैंने दूसरे निपल पे भी पिंच कर दिया।
अब तो रीत के मुँह से,… वो एकदम चंदा भाभी की ननद लग रही थी-
“हे। हे अच्छा, आएगी ना वो तुम्हारी बहना कम रखैल मेरी पकड़ में। ना अपने सारे भाईयों को चढ़वाया उसके ऊपर। एक निकालेगा दूसरा डालेगा। एक आगे से एक पीछे से…” उसकी गालियां भी मजे दे रही थी, लेकिन उसकी बात गुड्डी ने पूरी की।
“और एक मुँह में…” गुड्डी अब तक पास आ गई थी।
" और असली मजा तो उस छिनार को तब आएगा जब रॉकी चढ़ेगा और उसकी गाँठ बनेगी, तेरी बहना के बिल के अंदर। तेरा असली जीजा वही होगा, एक बार रॉकी चढ़ जाएगा न तो खुद उस के सामने जाके कुतिया बन के निहुरी रहेगी वो " रीत ने रगड़ाई का लेवल और बढ़ाया।
वाह 50 काम होने से पहले 50 काम के बाद. और पूरा बनारस लाइन मे लगा रहेगा. बारी बारी. एक आएगा एक जाएगा. तुम्हारी बहेनिया के आगे और पीछे. गुड्डी मौका ना छोड़े. एक मुँह मे.
पर साली की रागड़ाई का आनंद तो और ही है. उसका रंग उसपे ही. सच मे साली के जोबनो को भींच कर पूछवाड़े पर खुटा रागड़ने वाला इरोटिक सीन लिखा हेना माझा ही आ गया. बड़ी बोल रही थी अब मेरी बारी.
और तुम्हारी सजनी की कब बारी आएगी. अमेज़िंग.