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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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Sab ladkiyo ne milkar, dulhan ki tarah sharmane ke liye majboor kr dia.फागुन के दिन चार- भाग १२
पहले रंगाई फिर धुलाई
1,42,810
“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”दूबे भाभी कड़क के बोलीं
“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।
बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया उसकी रक्षा करने -
“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही, पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”
दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।
वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।
“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?” वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।
“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर गुड्डी और रीत को हड़काया - “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…” मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”
हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”
“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।
“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।
तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।
“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।
तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया
दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”
उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।
मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”
“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।
तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया। “चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।
उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर-
“क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।
चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- “उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- “क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”
चन्दा भाभी ने शर्माते झिझकते बोला- “अरे नहीं। आपका ही तो इंतजार हम कर रहे थे। ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका…”
दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”
मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”
“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”
मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।
Kya mix kiya hai colours, gulab jamun aur daaru ko.Very nicely, romantically crafted updates.Updates Posted, please, read, like, enjoy and comment.
सच मे डूबे भाभी नहीं आई होती तो रीत से भी प्रीत हो जाती. वैसे तो हो ही गई है. सली जो ठहरी. और साली आधी घरवाली.फागुन के दिन चार- भाग १२
पहले रंगाई फिर धुलाई
1,42,810
“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”दूबे भाभी कड़क के बोलीं
“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।
बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया उसकी रक्षा करने -
“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही, पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”
दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।
वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।
“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?” वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।
“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर गुड्डी और रीत को हड़काया - “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…” मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”
हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”
“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।
“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।
तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।
“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।
तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया
दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”
उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।
मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”
“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।
तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया। “चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।
उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर-
“क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।
चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- “उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- “क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”
चन्दा भाभी ने शर्माते झिझकते बोला- “अरे नहीं। आपका ही तो इंतजार हम कर रहे थे। ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका…”
दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”
मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”
“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”
मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।