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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

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फागुन के दिन चार- भाग १२
पहले रंगाई फिर धुलाई

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“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”दूबे भाभी कड़क के बोलीं

“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।



बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया उसकी रक्षा करने -

“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही, पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”

दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।


वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।

“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?” वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।

“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर गुड्डी और रीत को हड़काया - “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…” मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”

हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”

“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।

“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।


तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।

“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।

तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया


दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”

उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।

मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”

“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।

तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया। “चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।

उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर-

“क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।

चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- “उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- “क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”

चन्दा भाभी ने शर्माते झिझकते बोला- “अरे नहीं। आपका ही तो इंतजार हम कर रहे थे। ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका…”

दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”

मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”

“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”

मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।
 
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----दूबे भाभी और भांग के गुलाबजामुन
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दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”

मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”

“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”वो मुस्कराते हुए बोलीं, उनकी निगाहे मेरे चिकने चेहरे पर चिपकी थी, जहाँ से गुड्डी और रीत ने रगड़ रगड़ कर एक एक दाग रंग का साफ़ कर दिया था, और चेहरा और साफ़ चिकना लग रहा था।

मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।

“सच। अरे तब तो एक और…”
डबल डोज वाले नत्था के दो गुलाब जामुनों का असर तो होना ही था थोड़े देर में। उनकी निगाह बियर के ग्लासों पे पड़ी- “ये क्या है?”

रीत अब मेरी परफेक्ट असिस्टेंट बनती जा रही थी- “अरे भाभी ये इम्पोर्टेड ड्रिंक है, स्पेशल। ये लाये हैं…”

मेरे कहने पे वो शायद ना मानती लेकिन रीत तो उनकी अपनी ननद थी।

“हाँ एकदम। लीजिये ना मेरे हाथ से…” मैं बोला।

उन्होंने लेते समय मेरी उंगलियों को रगड़ दिया। बियर पीते-पीते उनकी निगाह गुड्डी की ओर पड़ी-

“तू पिछले साल बचकर आ गई थी ना होली में आज सूद समेत। सारे कपड़े उतारकर…” दूबे भाभी पे गुलाब जामुन का असर चढ़ रहा था।

चंदा भाभी ने कुछ उनके कान में फुसफुसाया। दूबे भाभी की भौंहें चढ़ गईं। लेकिन फिर बियर की एक घूँट लगाकर बोली-

“गलत मौके पे आती है तेरी ये सहेली…”

फिर कुछ सोचकर कहा- “चल कोई बात नहीं। आज छुट्टी है तो होली के दिन तक तो। होली के तो अभी 5 दिन है। उस दिन कोई नाटक मत करना…”

“लेकिन मैं तो आज, इनके साथ। मम्मी ने बोला था। अभी थोड़े देर में ही। होली वहीं…” गुड्डी घबड़ाते हुए बोल रही थी।

अब तो दूबे भाभी का पारा जैसे किसी के हाथ से शिकार निकल जाय। मुझसे बोली- “तुम तो आओगे ना इसको छोड़ने। तो फिर रंग पंचमी में। रुकोगे ना…”

“असल में मेरी ट्रेनिग. फिर हफ्ते में दो ही दिन यहाँ से सीधी गाडी है सिकंदराबाद के लिए और ट्रेन से टाइम लगता है, इसलिए इसको छोड़ने के बाद, मैंने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की, कितने दिन रुकूंगा, कब आऊंगा लेकिन,...

दूबे भाभी का जैसे चेहरा उतर गया हो सारा भांग और बियर का नशा गायब हो गया। फिर उनकी भौंहे चढ़ गईं। उन्होंने कुछ चंदा भाभी से कहा। मैं और रीत थोड़ी दूर खड़े थे।

चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा।

उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।
दूबे भाभी ने जैसे गुड्डी के साथ जम के मस्ती करने की सोची हो और साथ में बोनस में मैं, लेकिन गुड्डी का वो पांच दिन का चक्कर

तो आज होली बिफोर होली में वो साफ़, मतलब उसकी चुनमुनिया साफ़ बच गयी,

और होली के दिन भी वो यहाँ नहीं होती, और सबसे बड़ी बात

होली आफटर होली में मैं बच निकलता, ट्रेनिंग पर जाने के नाम पर तो उनकी सारी प्लानिंग, न होली बिफोर होली में, न होली में न होली आफ्टर होली में मतलब रंग पञचमी में
 
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शर्त - होली आफटर होली की
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चन्दा भाभी ने अलग हटकर कुछ गुड्डी को बुलाकर कहा। उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया। वो बार-बार ना ना के इशारे से सिर हिलाती रही। जैसे कोई अर्जेंट कांफ्रेंस चल रही हो।

फिर वो मेरे पास आई और मेरे कान में बोली-

“हे दूबे भाभी बहुत नाराज हैं। क्या तुम किसी तरह और नहीं रुक सकते। वो रंग पंचमी के दिन। कोई रास्ता निकालो प्लीज…”



"तुम्हें तो मेरी मजबूरी मालूम है ना। उसी दिन मेरी ट्रेनिंग शुरू होने वाली है। और फिर ट्रेन से कम से कम दो दिन लगता है। कैसे बताओ…” मैंने उसे समझाने की कोशिश की।

“लेकिन मैं भी क्या करूँ। तुम्हीं बताओ?” वो हाथ मसल रही थी।



मैं क्या बोलता।

मैंने फिर उसे समझाया- “अरे यार टिकट एयर का। मालूम है। चलो मान लो। लेकिन तुम्हारे मम्मी पापा भी तो आ जायेंगे।

भूल गए तुम गुड्डी ने हड़काया, गुड्डी के दिमाग में कुछ चमका और वो मुस्करायी

सच में भूल गया था,


एक तो रीत के हाथ के बनाये दहीबड़े में पड़े डबल डोज भांग का नशा, दूसरे रीत के जोबन का भी नशा, तीन दिन का रुकना तो कल ही तय हो गया था गुड्डी की मम्मी और बहनों के सामने फोन पे बात करते हुए और यही तो



और गुड्डी न होती न याद दिलाने के लिए तो मेरी कस के ली जाती वो भी बिना तेल लगाए और गुड्डी और उसी सब बहनों के सामने, लेती उसकी मेरा मतलब मम्मी, उन्होंने मुझसे वायदा किया था की मैं होली पे लौट के कम से कम तीन दिन यहाँ रहूं, गुड्डी की बहनो और श्वेता ने मुझे बाँट भी लिया था होली खेलने के नाम पे और फ्लाइट का टाइम भी मैंने देख लिया था, एकदम टाइम से पहुँच जाता, और गुड्डी के पापा तो कानपुर से ही दस बारह दिन के लिए बाहर

अब मुझे एक एक बात याद आ गयी थी, ये गुड्डी न हो तो मेरा एक पल काम न चले, और वो सरंगनायनी जिस तरह देख रही थी, मानो कह रही हो, क्यों नहुँ होउंगी मैं, ऊपर से लिखवा के लायी हूँ, पानी चाहे जहाँ इधर उधर गिराओ, लेकिन तुम और तेरा दिन मेरी मुट्ठी में है और रहेगा ,

आवाज से ज्यादा मन में, गुड्डी की मम्मी और उनका चेहरा, छेड़ती आँखे और बातें और सबसे बढ़ कर ब्लाउज फाड़ते,... और उनकी आवाज एक बार फिर चालू हो गयी



" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...



" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "



और मैं जल्दी जल्दी कैलकुलेट कर रहा था, बनारस से भी हफ्ते में दो ही दिन सिकंदराबाद के लिए ट्रेन थी, जिससे मैंने लौटने का रिजर्वेशन करा रखा था, उसके हिसाब से मुझे एक डेढ़ दिन मिलता गुड्डी के यहाँ, लेकिन एक दिन का गुड्डी का एक्स्ट्रा साथ,... इसके लिए तो मैं,... और मैंने हल भी ढूंढ लिए, बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट ) से दिल्ली की तो तीन चार फ्लाइट रोज हैं और दिल्ली से सिकंदराबाद की भी, ... तो अगर मैं फ्लाइट से प्लान बनाऊं ,... तो कम से कम डेढ़ दिन और मिल जाएगा, और ट्रेनिंग शुरू होने के चार पांच घंटे पहले पहुँच जाऊँगा तो थोड़ा लेट वेट भी हुआ तो टाइम से,... हाँ रगड़ाई होगी तो हो , गुड्डी तो रहेगी न पास में,... और मम्मी खुश हो गयी तो क्या पता जो सपने मैं इत्ते दिन से देख रहा हूँ इस लड़की को हरदम के लिए उठा ले जाने का, ... वो पूरा ही हो जाए , ...



फिर श्वेता और छुटकी की बात भी याद आ गयी,



" गुड्डी मेरा भी रिजर्वेशन " श्वेता की आवाज थी,

" दी आपका तो ये दौड़ के के कराएंगे,... सबसे पहले,... होली आफ्टर होली में आखिर आप नहीं होंगी तो इनके कपडे कौन फाड़ेगा अंदर तक रंग कौन लगाएगा "
गुड्डी चहक के बोली।

" देख यार गुड्डी, कपडे पे रंग लगाना, एक तो कपडे की बर्बादी, दूसरे रंग की बर्बादी। फिर कपड़े उतारने में बहुत टाइम बर्बाद होता है, इसलिए सीधे फाड़ ही देने चाहिए, ... मैं तो यही मानती हूँ " श्वेता, गुड्डी से एक साल सीनियर, बारहवीं वाली,बोली।


दो आवाजें और आयी, पहले छुटकी की फिर मंझली जो अब तक चुप थी, ' मैं भी यही मानती हूँ , दी "

" देख यार, मेरी जिम्मेदारी इन्हे इनके मायके से पकड़ के ले आने की है, फिर तीन दिन तक,... तुम सब जानो, तेरे हवाले वतन साथियों। " गुड्डी अंगड़ाई लेकर बोली,



और दूबे भाभी भी तो यही चाह रही हैं, तीन दिन कम से कम, अगर घर से थोड़ा पहले निकल लूँ, वहां भी तो गुड्डी से ही होली खेलने का लालच है तो गुड्डी की मम्मी के आने के पहले ही यहाँ और सबके मन की बात हो जायेगी, सबसे बढ़ के गुड्डी की।


और यही बात दूबे भाभी भी चाह रही थीं, की मैं होली के बाद की होली के लिए, तो दूबे भाभी भी खुश, मम्मी भी खुश और गुड्डी की बहने भी खुश

बस मैं मान गया



“तुम भी तो समझो। मैं कुछ कहती हूँ। कुछ करो ना और यार तुम तीन दिन रह लोगे यहाँ। रीत भी तो है। उसके साथ भी…”

समझ तो गुड्डी भी गयी थी, मैं सपने में भी उसकी, मेरा मतलब मम्मी की बात टालने की नहीं सोच सकता था लेकिन बोनस के ऊपर बोनस, सामने रीत खड़ी थी, उसे सुनाते हुए वो बोली

मैंने सामने देखा। रीत। एकदम सेक्सी, टाईट कुरते में उसके मस्त उभार छलक रहे थे। जवानी के कलशे रस से भरे, पतली बलखाती कमर और नीचे मस्त गदराये चूतड़, चिकनी केले के तने की तरह जांघें। मुझे देखकर मुश्कुराते हुये उसने अपने रसीले होंठों को हल्के से काट लिया और एक भौंह ऊँची कर दी। बस। बिजली गिर गई।

“चलो तुम इतना कहती हो तो आ जायेंगे रंगपंचमी तो नहीं लेकिन उसके पहले तीन दिन, …” मैं मुश्कुराकर बोला।

रीत पास आ गई थी।

“लौटकर आयेंगे भी ये और तीन दिन रुकेंगे भी, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाएंगे "…” गुड्डी बोली।



“अरे वाह फिर तो…र हम लोग रंगपंचमी पहले मना लेंगे, तीन दिन मना लेंगे, जैसे आज होली बिफोर होली ” रीत ने अपनी गोरी कलाई ऊँची की और दोनों ने दे ताली। गुड्डी चंदा भाभी की ओर गई। रीत ने मेरी ओर हाथ किया और हम दोनों ने भी दे ताली।

“हे तुम्हें मालूम है ना की मैं क्यों लौट रहा हूँ?” मैंने रीत से पूछा।

“एकदम…” और उसकी निगाहों ने मेरी आँखों की चोरी, उसके किशोर जोबन को घूरते पकड़ ली थी- “नदीदे। लालची। बदमाश…” वो बोली और मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ा दिया।

तब तक गुड्डी लौट आई थी। उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। वो बोली-

“चंदा भाभी कह रही थी की तुम खुद दुबे भाभी से बोलो ना तो उन्हें अच्छा लगेगा…”

“चलो…” और मैं गुड्डी का हाथ पकड़कर दूबे भाभी की ओर चल पड़ा।



“मैं, हम दोनों रंग पंचमी के पहले ही आ जायेंगे। और मैं तीन दिन रुक के जाऊँगा। गुड्डी बोल रही थी की यहाँ पे रंग पंचमी जबरदस्त होती है तो मैंने सोचा की पहले तो मैंने कभी देखी नहीं हैं फिर आप लोगों के साथ…फिर आप की बात टालने की तो, आपने कहा तो, हाँ रंगपंचमी के एक दिन पहले निकल जाऊँगा लेकिन तीन दिन पूरा यहीं,

लेकिन दूबे भाभी समझदार नहीं, महा समझदार, रीत की भी भाभी, उन्होंने एक बार मेरी ओर देखा फिर गुड्डी की ओर और जोर से मुस्करायी, फिर चंदा भाभी की ओर, मानों उनसे कह रही हो लोग तो शादी के बाद जोरू का गुलाम होते हैं ये तो पहले से ही, एक बार गुड्डी ने बोला और,

लेकिन मैं रुकने को मान गया था मुझे चिढ़ाए गरियाये बिना क्यों छोड़ती
" अगर न रुकते न तो तेरी भी गांड मारती और तेरी महतारी की भी, वो भी सूखे, कडुवा तेल बहुत महंगा हो गया है। "

मेरी निगाहें रीत के कटाव पे, गदराये मस्त उभारों पे टिकी हुई थी। आज भले बच जाय उस दिन तो, चाहे जो हो जाय और वो सारंग नयनी भी मुश्कुरा रही थी। मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली-

“होना है तो हो जाय। अब इत्ते दिनों से बचाकर तो ये जोबन रखा है। लुट जाय तो लुट जाय…”



हमारी आँख का खेल रुका दूबे भाभी की आवाज से- “अरे ये तो बहुत अच्छी बात है चलो कुछ मीठा हो जाय…” और प्लेट से उठाकर उन्होंने एक गुलाब जामुन मेरे मुँह में।

मैंने बहुत नखड़ा किया। मुझे तो मालूम था कि ये दिल्ली के नहीं नत्था के भंग के डबल डोज वाले हैं और मेरे अलावा चंदा भाभी को और गुड्डी को भी।



लेकिन चंदा भाभी भी दूबे भाभी के साथ- “अरे ये ऐसे कोई चीज नहीं घोटते, जबरदस्ती करनी पड़ती है। ये बिन्नो के ससुराल वालों की आदत है…” और ये कहकर उन्होंने दबाकर मेरा मुँह खुलवा लिया। जैसे रात में पान खिलाने के लिए उन्होंने और गुड्डी ने मिलकर किया था। और गप्प से बड़ा सा गुलाब जामुन मेरे अन्दर, मैं आ आ करता रह गया।
 
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आनंद की बहना
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तभी रीत बोली- “असल में रंग पंचमी में आने की इनकी एक शर्त थी, बोलो ना। भाभी से क्या शर्माना?”

वो शैतान की चरखी। मेरे समझ में नहीं आ रहा था की ये क्या खतरनाक तीर छोड़ने जा रही है।

“बोलो ना…” बचा खुचा शीरा मेरे गाल पे लथेड़ती दूबे भाभी प्यार से बोली। मुझे मालूम होता तो बोलता न?

“तू बोल ना। तुझसे तो तिहरा रिश्ता है…” चन्दा भाभी ने रीत को चढ़ाया।

“बोल दूं…” अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें नचाकर वो बोली।



“बोलो न…” दूबे भाभी और चंदा भाभी एक साथ बोली।



“असल में इनकी एक बहन है…” रीत ने मुझे देखकर मुश्कुराते हुए कहा- “मेरे ही क्लास में पढ़ती है, इंटर में गई है…” गुड्डी बोली।

मैंने बोला- “मेरी ममेरी…लेकिन सगी से बढ़कर, सगी तो कोई हैं नहीं तो वही।"

“बिन्नो की इकलौती ननद…” चंदा भाभी बोली।



“वो असल में जब से राकी को उन्होंने देखा है। ‘उसका’ इन्हें पसंद आ गया है तो उसके लिए। इसलिए ये तोल मोल के बोल-कर रहे थे। उसे ये अपना…” रीत ने आग लगायी, मेरी बहन को जोड़ कर। पक्की स्साली।

लेकिन उसकी बात काटकर दूबे भाभी बोली- “नहीं ऐसे नहीं…”

गुड्डी और चन्दा भाभी मुश्किल से अपनी हँसी दबा रही थी। सिर्फ मेरी समझ में नहीं आ रहा था की कैसे रियेक्ट करूं समझ में नहीं आ रहा था।



दूबे भाभी बोली- “मेरी भी एक, बल्की दो शर्त है। पहली राकी का रिश्ता सिर्फ उससे थोड़े ही इनके घर की सारी। मायके वालियों से…”

“एकदम सही बोली आप…” चंदा भाभी ने जोड़ा- “और एक बार जब राकी उसपे चढ़ जाएगा। तो इनके घर वालियां सारी उसकी साली, सलहज, तो लगेंगी ही। और दूसरी बात…”

“ठीक बोली तुम। तो पहली शर्त तो मंजूर ही हो गई और दूसरी सुन…” वो गुड्डी से मुखातिब थी-

“इनकी जो कजिन है। ना उसकी सील अभी खुली है की नहीं?”

गुड्डी तो तुरंत उस गेम में जवाइन हो गई- “नहीं मेरे खयाल से नहीं…” बड़ी सीरियस बनकर वो बोली।



“तो फिर वो राकी का कैसे?” दूबे भाभी ने कुछ सोचकर फिर गुड्डी को पकड़ा-

“अच्छा सुन तू जा रही है ना इनके साथ। तो ये तेरी जिम्मेदारी है की यहाँ लाने के पहले उसकी नथ उतरवा देना। किससे उतरवाएगी?” दूबे भाभी ने फिर गुड्डी से बोला।

गुड्डी कुछ बोल पाती उसके पहले रीत मैदान में आ गई और मेरी रूह काँप उठी।

उसने सीधे दूबे भाभी से बोला-

“अरे इसमें कौन सी प्रोब्लम है? ये है ना पांच हाथ का आदमी और वैसे भी गुड्डी ये तेरी कोई बात तो टालते नहीं। तो तू बोलेगी तो ये वो काम भी कर देंगे। अरे सीधे से नहीं तो टेढ़े से। है ना? और मजा तो इनको भी आएगा है ना?”

उसकी शरारत से भरी आँखें मेरी ओर ही थी।



मैं या गुड्डी कुछ बोलते उसके पहले दूबे भाभी बोल पड़ी-

“ये तो तूने सही बात बोली, और इस गुड्डी की हिम्मत नहीं मेरी कोई बात टालने की और सीधे गुड्डी को धमकाते बोली-

“समझ गई ना तू। अगर तूने नथ नहीं उतरवाई ना उसकी यहाँ आने से पहले। तो सोच ले मैं चेक करूँगी। अगर वो कच्ची कली निकली। तो मैं तेरी गाण्ड की नथ उतार दूंगी। पूरी कुहनी तक डालकर, तू तो जानती है मुझको…”



दुष्ट रीत वह मौका क्यों छोड़ती- “और वो भी समझ ले की उतरवानी किससे है। कोई कनफूजन नहीं होना चाहिए…”

“एकदम…” चन्दा भाभी और दूबे भाभी दोनों ने मेरी ओर देखते हुए, मुश्कुराकर एक साथ बोला।
 
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मस्ती

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“अरे यार तुम्हारी कुँवारी बहन की नथ उतरने वाली है कित्ती बड़ी खुशखबरी है। चलो इसी खुशी में मीठा हो जाए…” और चंचल रीत ने एक झटके में फिर गुलाब जामुन मेरे मुँह में।

“हे हे…” मैंने खाने से पहले कुछ नखड़ा किया। लेकिन वो कहाँ मानने वाली।

“दूबे भाभी दे रही थी तो झट से ले लिया और मैं दे रही हूँ तो। इत्ता नखड़ा। भाव बता रहे हो…” वो इस अदा से बोली की,...


“अरे नहीं यार। तुम दो और मैं ना लूं ये कैसे हो सकता है?” मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया।

“अरे तो एक और लो ना…” वो बोली।

लेकिन मैंने बात मोड़ दी- “अरे गुड्डी को भी तो खिलाओ…”

और मैंने कसकर गुड्डी को पकड़ लिया और दबाकर उसका मुँह खोल दिया। भांग वाला एक गुलाब जामुन उसके मुँह के अन्दर। वो छटपटाती रही

और मैंने एक और गुलाब जामुन
लेकर कहा- “मेरे हाथ से भी तो खाओ ना। रीत का हाथ क्या ज्यादा मीठा है?”

खा तो उसने लिए लेकिन बोली-

“पहले तो मैं सोच भी रही थी लेकिन जैसे तुमने जबरदस्ती की ना। वैसे ही तुम्हारे साथ हाथ पैर पकड़कर। भले ही अपने हाथ से पकड़कर डलवाना पड़े तुम्हीं से उसकी नथ उतरवाऊँगी…”

“क्या पकड़ोगी, क्या डलवाओगी?” चन्दा भाभी ने हँसकर गुड्डी से पूछा।

बात काटने के लिए मैंने चन्दा भाभी से कहा- “भाभी, आपने गुझिया इत्ती अच्छी बनायी है, खुद तो खाइए…” और उनके न न करते हुए भी मैंने और रीत ने मिलकर उन्हें खिला ही

“अन्दर नहीं जा रहा है, तो लीजिये इसके साथ…” और मैंने बैकार्डी मिली हुई लिम्का भी चन्दा भाभी को पिला दी। सब पे असर शुरू हो गया।

रीत ने गुड्डी को भी बियर का एक ग्लास पिला ही दिया। खुद उसे तो मैं पहले ही वोदका कैनेबिस और भांग से मिले दो गुलाब जामुन खिला चुका था। रीत ने दूबे भाभी को भी बियर दे दिया था और मुझे भी।
“हाँ तो तुमने बताया नहीं। क्या पकड़ोगी, क्या डलवाओगी?” चंदा भाभी गुड्डी के पीछे पड़ गई थी।



मैंने बचाने की कोशिश की तो रीत बिच में आ गई। उसे भी चढ़ गई थी-


“अरे बोल ना गुड्डी। अरे नाम लेने में शर्म लग रही तो कैसे पकड़ोगी और कैसे डलवाओगी?” रीत ने उसे चैलेंज किया और बोली- “सुन अगर बिना उसे नथ उतरवाए ले आई ना…”

“एकदम…” गुड्डी के गोरे-गोरे गालों को सहलाते हुए दूबे भाभी ने प्यार से कहा-


“अरे बोल दे ना साफ-साफ की इसका लण्ड पकडूँगी और इसकी बहन की बुर में डलवाऊँगी…”

“अरे ये गाने वाने का इंतजाम किया है तो कुछ लगाओ ना…” चंदा भाभी ने कहा।

और दूबे भाभी भी बोली- “ये रीत बहुत अच्छा डांस करती है…”


“पता नहीं, मैंने तो देखा नहीं…” मैंने उसे चढ़ाया।
 
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रीत - डांस--पव्वा चढ़ा के आई।
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“अभी दिखाती हूँ…” वो बोली और उसने गाना लगा दिया कुछ देर में स्पीकर गूँज रहा था- “आय्यी। चिकनी चमेली, चिकनी चमेली…” और साथ में रीत शुरू हो गई-



बिच्छू मेरे नयना, वादी जहरीली आँख मारे।

कमसिन कमरिया साली की। ठुमके से लाख मारे।

सच में कैट के जोबन की कसम। रीत की बलखाती कमर के आगे कैटरीना झूठ थी।

मैंने जोर से सीने पे हाथ मारा और गिर पड़ा। बदले में रीत ने वो आँख मारी की सच में जान निकल गई। उस जालिम ने जाकर बियर की एक ग्लास उठाई, पहले तो अपने गदराये जोबन पे लगाया और फिर गाने के साथ-


आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली। छुप के अकेली,
पव्वा चढ़ा के आई। वो जो उसने होंठों से लगाया।


उधर रीत का डांस चल रहा था इधर गुड्डी ने बियर के बाकी ग्लास चंदा और दूबे भाभी को।

एक मैंने गुड्डी को दे दिया और और एक खुद भी। चंदा भाभी पे भंग और बियर का मिक्स चढ़ गया था। मेरे चेहरे पे हाथ फेरकर बोली-

“अरे राज्जा बनारस। तुन्हू तो चिकनी चमेली से कम ना हौउवा…”

दूबे भाभी को तो मैंने बैकर्डी के दो पेग लगवा दिए थे। ऊपर से बियर और उसके पहले डबल भांग वाले दो गुलाब जामुन। लेकिन नुकसान मेरा ही हुआ। मेरे पीछे की दरार में उंगली चलाती बोली-

“अरे राज्जा। कोइयी के कम थोड़ी है। ये बस निहुराओ। सटाओ। घुसेड़ो। बचकर रहना बनारस में लौंडे बाजों की कमी नहीं है…”

लेकिन इन सबसे अलग मेरी निगाह। मन सब कुछ तो वो हिरणी, कैटरीना, ऊप्स मेरा मतलब रीत चुरा के ले गई थी। वो दिल चुराती बांकी नजर, चिकने चिकने गोरे-गोरे गाल। रसीले होंठ।


जंगल में आज मंगल करूँगी मैं।

भूखे शेरों से खेलूंगी मैं आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली। छुप के अकेली।

मेरा शेर 90° डिग्री पे हो गया। मेरे हाथ का बियर का ग्लास छीन के पहले तो उसने अपने होंठों से लगाया और फिर मुझे भी खींच लिया और अपनी बलखाती कमर से एक जबरदस्त ठुमका लगाया। मैंने पकड़कर उसे अपनी बांहों में भर लिया और कसकर उसके गालों पे एक चुम्मा ले लिया।

हाय, गहरे पानी की मछली हूँ राज्जा,

घाट घाट दरिया में घूमी हूँ मैं,

तेरी नजरों की लहरों से हार के आज डूबी हूँ मैं।


बिना मेरी बाहें छुड़ाये मेरी आँखों में अपनी कातिल आँखों से देखती। वो श्रेया के साथ गाती रही और उसने भी एक चुम्मा कसकर मेरे होंठों पे।

हम दोनों डूब गए, बिना रंग के होली।


उसने कसकर अपनी जवानी के उभारों से मेरे सीने पे एक धक्का लगाया, और वो मछली फिसल के बाहों के जाल से बाहर और मुझे दिखाते हुए जो उसने अपने उभार उभारे। वैसे भी मेरी रीत के उभार कैटरीना से 20 ही होंगे उन्नीस नहीं।


आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली

जोबन ये मेरा कैंची है राज्जा

सारे पर्दों को काटूँगी मैं

शामें मेरी अकेली हैं आ जा संग तेरे बाटूंगी मैं।



उसके दोनों गोरे-गोरे हाथ उसके जोबन के ठीक नीचे, और जो उभारा उसने। फिर सीटी।

जवाब में दूबे भाभी ने भी सीटी मारी और बोली-

“अरे दबा दे, पकड़कर साली का मसल दे…”

जवाब में रीत ने अपनी मस्त गोरी-गोरी जांघें चौड़ी की और मेरी ओर देखकर फैलाकर एक धक्का दिया, जैसे चुदाई में मेरे धक्के का जवाब दे रही हो और अपने हाथ सीधे अपने उभारों पे करके एक किस मेरी ओर उछाल दिया।

“अरे अब तो बसंती भी राजी। मौसी भी राजी…”

ये कहकर मैंने पीछे से उसे दबोच लिया और उसके साथ डांस करने लगा। मेरे हाथ उसके उभारों के ठीक नीचे थे। दुपट्टा तो ना जाने कब का गायब हो गया था।

गुड्डी ने आँखों से इशारा किया, अरे बुद्धू ठीक ऊपर ले जा ना। सही जगह पे। साथ में चन्दा भाभी ने भी। डांस करते-करते वो बांकी हिरणी भी मुड़कर मुश्कुरा, और फिर उसने जो जोबन को झटका दिया-


तोड़कर तिजोरियों को लूट ले जरा,

हुस्न की तिल्ली से बीड़ी-चिल्लम जलाने आय्यी,

आई चिकनी,.. चिकनी,... आई,...आई।


फिर तो मेरे हाथ सीधे उसके मस्त किशोर छलकते उभारों पे।

जवाब में उसने अपने गोल-गोल चूतड़ मेरे तन्नाये शेर पे रगड़ दिया। फिर तो मैंने कसकर उसके थिरकते नितम्बों के बीच की दरार पे लगाकर। अब मन कर रहा था की बस अब सीधी इसकी पाजामी को फाड़कर ‘वो’ अन्दर घुस जाएगा।

हम दोनों बावले हो रहे थे, फागुन तन से मन से छलक रहा था बस गाने के सुर ताल पे मैं और वो। मेरे दोनों हाथ उसके उभारों पे थे और, बस लग रहा था की मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा हूँ और वो मस्त होकर चुदवा रही है।

हम भूल गए थे की वहां और भी हैं।

लेकिन श्रेया घोषाल की आवाज बंद हुई और हम दोनों को लग रहा था की किसी जादुई तिलिस्म से बाहर आ गए।

एक पल के लिए मुझे देखकर वो शर्मा गई और हम दोनों ने जब सामने देखा तो दूबे भाभी, चंदा भाभी और गुड्डी तीनों मुश्कुरा रही थी। सबसे पहले चंदा भाभी ने ताली बजाई। फिर दूबे भाभी ने और फिर गुड्डी भी शामिल हो गई।

“बहुत मस्त नाचती है ना रीत…” दूबे भाभी बोली और वो खुश भी हुई, शर्मा भी गई। लेकिन भाभी ने मुझे देखकर कहा- “लेकिन तुम भी कम नहीं हो…”




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komaalrani

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Rajizexy

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फागुन के दिन चार- भाग १२
पहले रंगाई फिर धुलाई

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“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”दूबे भाभी कड़क के बोलीं

“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।



बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया उसकी रक्षा करने -

“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही, पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”

दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।


वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।

“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?” वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।

“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर गुड्डी और रीत को हड़काया - “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…” मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”

हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”

“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।

“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।


तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।

“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।

तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया


दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”

उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।

मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”

“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।

तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया। “चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।

उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर-

“क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।

चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- “उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- “क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”

चन्दा भाभी ने शर्माते झिझकते बोला- “अरे नहीं। आपका ही तो इंतजार हम कर रहे थे। ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका…”

दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”

मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”

“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”

मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।
Sab ladkiyo ne milkar, dulhan ki tarah sharmane ke liye majboor kr dia.
Soooooo romantic update
👌👌👌👌👌👌
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Rajizexy

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Kya mix kiya hai colours, gulab jamun aur daaru ko.Very nicely, romantically crafted updates.
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Shetan

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“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”दूबे भाभी कड़क के बोलीं

“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।



बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया उसकी रक्षा करने -

“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही, पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”

दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।


वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।

“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?” वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।

“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर गुड्डी और रीत को हड़काया - “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…” मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”

हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”

“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।

“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।


तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।

“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।
“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।

तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया


दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”

उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।

मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”

“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।

तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया। “चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।

उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर-

“क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।

चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली- “उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा- “क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”

चन्दा भाभी ने शर्माते झिझकते बोला- “अरे नहीं। आपका ही तो इंतजार हम कर रहे थे। ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका…”

दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुश्कुराकर बोली- “चीज ही ललचाने लायक है। तुम दोनों मचल गई तो…”

मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था। बात बदलने के लिए मैंने कहा- “भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए…”

“एक क्या मैं दो खाऊँगी। तुम खिलाओगे तो…”

मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया। रीत भी झट से मेरे साथ आ गई- “ये दिल्ली से लाये है। वो चांदनी चौक वाली मशहूर दुकान से…” वो बोली।
सच मे डूबे भाभी नहीं आई होती तो रीत से भी प्रीत हो जाती. वैसे तो हो ही गई है. सली जो ठहरी. और साली आधी घरवाली.

वाह दोनों के जोबन का रंग आनंद बाबू के रंग से मिल गया. वर्णिश वाला. पर डूबे भाभी भी मस्त खुले विचारों वाली मिली है. ऐसी सालिया हो तो..... उन्हें ही वापस आनंद बाबू को वैसा ही चिकन बनाने का काम सौपा. वाओ. माझा आ गया.

पर आनंद बाबू तुम्हरे देख कर तो डूबे भाभी की नियत भी फिसल रही है. फुल माझा आया. जबरदस्त...

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